वतन तेरे हम लाडले complete

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Kamini
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Re: वतन तेरे हम लाडले

Post by Kamini »

thanks for shearing it
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kunal
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Re: वतन तेरे हम लाडले

Post by kunal »

एक निहायत उम्दा कहानी, आगे क्या हुआ जानने की उत्सुकता है आशा है की जल्द ही नया कुछ आएगा
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rajsharma
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Re: वतन तेरे हम लाडले

Post by rajsharma »

Rohit Kapoor wrote:Raj bhai achhi shuruwat hai
Kamini wrote:thanks for shearing it
kunal wrote:एक निहायत उम्दा कहानी, आगे क्या हुआ जानने की उत्सुकता है आशा है की जल्द ही नया कुछ आएगा

धन्यवाद दोस्तो अपडेट थोड़ी ही देर मे
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


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rajsharma
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Re: वतन तेरे हम लाडले

Post by rajsharma »

अधिक से अधिक 10 मिनट बीतने के बाद मेजर राज को एहसास हुआ कि शायद अब पानी कुछ साफ है क्योंकि अब यह चिकनाहट और गंध नहीं रही थी। मेजर राज ने आंखें खोलीं तो वास्तव में पानी थोड़ा साफ था जिसका मतलब था कि अब जहाज बंदरगाह से दूर निकल आया है। मेजर राज ने उस सहारे को देखा जिसे पकड़कर वह जहाज के साथ यात्रा कर रहा था, वहां ऐसी बहुत सी सीढ़ी थीं। यह वास्तव में लोहे की रॉड से सीढ़ी बनाई गई थीं जिनकी मदद से कोई भी जहाज की ऊपर वाली सतह तक पहुंच सकता था. ज़रूरत पड़ने पर समुद्र के बीच इन्हीं सीढ़ियों का उपयोग करके समुद्री पानी में उतरा जाता है और जहाज की बाहरी मरम्मत की जरूरत अगर हो तो वह काम भी किया जा सकता है। इन्हीं सीढ़ियों की मदद से मेजर राज ने पानी से सिर बाहर निकाला और तुरंत पीछे बंदरगाह देखा जो अब काफी दूर रह चुका था और काफी धुंधली तस्वीर नजर आ रही थी। अब कम से कम वहाँ कोई भी मेजर राज को नहीं देख सकता था। मेजर राज सीढ़ियों का उपयोग करके जहाज के ऊपर चढ़ चुका था।

आश्चर्यजनक रूप से यहां सुरक्षा के लिए कोई मौजूद नहीं था बल्कि हर तरफ खामोशी थी।

मेजर राज झुककर चलता हुआ और अपने आप को अलग अलग चीजों से खुद को छिपाता हुआ एक केबिन में पहुँच चुका था। यहाँ से जहाज को नियंत्रित किया जाता था। अंदर पायलट भी मौजूद था और मेजर राज को तुरंत ही अंदाजा हो गया कि जहाज का रुख मस्कट ओमान और दूसरे अरब देशों की ओर था। ये बात मेजर राज के लिए आश्चर्यजनक थी क्योंकि मेजर राज के विचार के अनुसार कर्नल इरफ़ान को पाकिस्तान जाना चाहिए था मगर इस जहाज का रुख दूसरी ओर था। अब मेजर राज यह समझने की कोशिश कर रहा था कि उसे दूर एक छोटा जहाज इसी तरफ आता नजर आया। और जिस जहाज पर मेजर राज सवार था उसकी गति भी धीमी होने लगी। मेजर राज की छठी इंद्रिय ने काम किया और वो तुरंत ही फिर इन्हीं सीढ़ियों से उतर कर पानी के नीचे चला गया।

वह पाइप मेजर ने अपनी पाजामे के नेफे में फंसा लिया था पानी के नीचे जाकर मेजर ने दोबारा पाइप निकाला और इसी की मदद से सांस लेने लगा। कुछ ही देर में छोटा जहाज बड़े जहाज की दूसरी साइड पर आकर रुक गया। मेजर राज ने पानी से सिर बाहर निकाला तो उसे इस तरफ में कुछ नज़र नहीं आया, वह पानी में ही जहाज़ का सहारा लेकर दूसरी ओर गया तो उसने देखा कि कर्नल इरफ़ान एक सीढ़ी के माध्यम से बड़े जहाज से छोटे जहाज में सवार हो रहा था। मेजर राज एक बार फिर पानी के नीचे गया और तैर कर छोटे जहाज की दूसरी साइड पर पहुंच गया और वहां भी मौजूद पानी के नीचे जहाज के साथ लगी सीढ़ियों का सहारा लिया। कुछ देर के बाद जहाज़ ने चलना शुरू किया। अब की बार इस जहाज की गति पहले जहाज से अधिक थी और मेजर राज को पानी के नीचे रहना मुश्किल हो गया था।

वह सीढ़ियों से होते हुए ऊपर जहाज पर चढ़ आया और एक लोहे से बने डिब्बे की ओट में छुप कर बैठ गया। इस जहाज का रुख पहले चालक से उल्टी तरफ था। यानी कि यह जहाज दुश्मन देश पाकिस्तान था और कर्नल इरफ़ान भारत की सुरक्षा एजीनसीज़ की आंखों में धूल झोंक कर पाकिस्तान की तरफ जा रहा था। मेजर राज के पास यह आखिरी मौका था कर्नल इरफ़ान को रोकने के लिए। उसने तुरंत ही फैसला किया कि उसे इस जहाज पर कब्जा करना होगा इसे वापस भारत ले जाना होगा जो कि यह एक असंभव काम था मगर मेजर राज को इस समय कुछ और सुझाई न दिया और वो तुरंत ही छुपता छुपाता चालक नियंत्रण कक्ष में पहुंच गया। कांच की खिड़की से उसने अंदर देखा तो जहाज का पायलट सिख था। हल्की दाढ़ी और सिर पर सिखों वाली शैली की पगड़ी मौजूद थी। यह निशानी मेजर राज के संदेह को विश्वास मे बदलने के लिए पर्याप्त थी मेजर राज जिसके कपड़े भीगे हुए थे एक ही पल मे दरवाजे तक पहुंचा और बिना आहट किए पायलट के सिर पर पहुँच गया।

इससे पहले चालक को कुछ समझ आती मेजर राज का वार उसकी गर्दन की हड्डी पर पड़ा और पायलट को अपना सिर घूमता हुआ महसूस हुआ और फिर उसकी आँखें बंद होने लगी। मेजर राज के एक ही वार ने पायलट को बेहोश कर दिया था। जहाज में मौजूद नक्शे की मदद से मेजर राज ने अंदाज़ा लगाया कि वापस भारत की बंदरगाह पर पहुँचने के लिए उसे जहाज बाँई ओर घुमाना होगा और मेजर राज ने ऐसा ही किया। जहाज की गति तेज होने के कारण जहाज ने थोड़े हिचकोले लिए मगर मेजर राज ने तुरंत ही उसको काबू में कर लिया और जहाज की गति भी कम कर दी। जब जहाज सही डायरेक्शन में जाने लगा तो मेजर राज ने गति फिर से बढ़ा दीी।

जहाज के नीचे मौजूद वीआईपी कमरे में कर्नल इरफ़ान ने तुरंत महसूस किया कि जहाज में जो हिचकोले आए हैं यह किसी अनजान और अनाड़ी पायलट की वजह से ऐसा हुआ है। कर्नल इरफ़ान ने तुरंत अपने साथ एक कैप्टन को लिया और कंट्रोल रूम की तरफ बढ़ने लगा। कर्नल इरफ़ान की उम्र 45 के करीब थी और लंबा 6 फुट 2 इंच था। कर्नल इरफ़ान 45 साल का होने के बावजूद शारीरिक रूप से फिट और कई जवान अधिकारियों पर भारी था। ऊपर से उसका दिमाग़ भी किसी कंप्यूटर की तरह तेज चलता था।यही कारण था कि जहाज के हल्के से हचकोलों ने उसे खतरे से आगाह कर दिया था।

दूसरी ओर मेजर राज अपनी धुन में मगन जहाज की गति में लगातार वृद्धि किए जा रहा था। वह जल्द से जल्द जहाज़ को भारत की समुद्री सीमा में पहुंचाना चाहता था जहां से भारतीयनौसेना जल्दी इस जहाज को गिरफ्तार कर लेती और कर्नल इरफ़ान भी पकड़ा जाता मगर इससे पहले कि जहाज़ भारत की समुद्री सीमा में प्रवेश करता मेजर राज को दरवाजा खुलने की आवाज आई। मेजर राज की छठी इंद्रिय ने उसे खतरे से आगाह किया और वह बिना पीछे गये कलाबाज़ी लगाकर अपने दाहिने ओर घूम गया। एक सेकंड की देर मेजर राज को इस दुनिया से अगली दुनियाँ मे पहुंचा सकती थी। कर्नल इरफ़ान के साथ आने वाले कैप्टन ने एक भारी लोहे की रोड मेजर राज के सिर पर मारने की कोशिश की थी, लेकिन मेजर राज अपने स्पेशल प्रशिक्षण के कारण इस वार से बच गया। इससे पहले कि कैप्टन अगला वार करता मेजर राज एक ही छलांग में उसके सिर पर पहुँच चुका था और अपने लोहे जैसे हाथ से कैप्टन की गर्दन को एक ही झटके में तोड़ चुका था।

वो केप्टन मेजर राज के लिहाज से जमीन पर गिर चुका था और उसकी अंतिम सांसें निकल चुकी थीं। मेजर राज ने बिना समय बर्बाद किए अपना अगला वार कर्नल इरफ़ान पर किया मगर वह आश्चर्यजनक रूप से फुर्तीला निकला। वो ना केवल मेजर राज के वार से बच निकला बल्कि मेजर राज के वार से बच कर उसने अपनी लंबी टांग हवा में घुमाई जो मेजर राज की कमर पर लगी और मेजर राज हवा में उछलता हुआ नियंत्रण कक्ष की दीवार पर जाकर लगा। लेकिन अगले ही पल मेजर राज ने दीवार का सहारा लेते हुए वापस छलांग लगाई और कर्नल इरफ़ान की गर्दन पर वार किया, मगर इस बार भी कर्नल इरफ़ान की फुर्ती ने उसे बचा लिया, इससे पहले कि मेजर राज का हाथ कर्नल इरफ़ान की गर्दन पर पड़े कर्नल इरफ़ान ने कमाल के कौशल के साथ मेजर राज के हाथ पर अपना वार किया और मेजर राज को अपने हाथ की हड्डी दो भागों में विभाजित होती महसूस हुई। इससे पहले कि मेजर राज अगला वार करता, कर्नल इरफ़ान ने मेजर राज का वार उसी पर आजमाया और गर्दन पर हमला किया। कर्नल इरफ़ान ने कराटे की विशिष्ट शैली में अपने हाथ की हड्डी मेजर राज की गर्दन की हड्डी पर इस तरह मारी कि मेजर ने अपने आपको हवा में उड़ता हुआ महसूस किया और शरीर हल्का होता हुआ महसूस हुआ।

मेजर राज ने घूमकर फिर कर्नल इरफ़ान पर हमला करने की कोशिश की जो अब की बार बिल्कुल शांत खड़ा था। इससे पहले मेजर राज के हाथ कर्नल इरफ़ान की गर्दन तक पहुंचते मेजर का दिमाग़ उसका साथ छोड़ चुका था और वह अपने वजन पर ही नीचे गिरता चला गया। नीचे गिरने से पहले ही मेजर राज की आंखों के आगे अंधेरा छा गया था। और जैसे ही वह नीचे गिरा, इरफ़ान दरवाजा खोलकर बाहर जा रहा था।



मेजर राज की चेतना बहाल हुई तो उसने अपने आप को जमीन पर पड़ा देखा। कुछ देर मेजर राज आंखें खोले बिना जमीन पर पड़ा रहा और फिर हालात को समझने की कोशिश करने लगा। जो अंतिम बात उसको याद आई वह कर्नल इरफ़ान का शांत चेहरा था। मेजर राज के हाथ उसकी गर्दन की ओर बढ़ रहे थे मगर न जाने क्यों उसकी गर्दन तक पहुंचने से पहले ही उसकी आंखों के सामने अंधेरा छा गया था।

अब मेजर राज महसूस करने लगा कि उसके आस पास कोई खड़ा है या नहीं ??? मगर उसको ऐसा कुछ भी महसूस नहीं हुआ, न किसी के कदमों की आहट थी और न ही किसी की बातें न ही किसी के सांस लेने का एहसास। अचानक ही मेजर राज को एहसास हुआ कि उसे जहाज़ के चलने की आवाज नहीं आ रही और नही पानी के जहाज के हिचकोले महसूस हो रहे हैं बल्कि जिस स्थान पर वह लेटा हुआ था

वह बहुत ही शांत और स्तब्ध जगह थी। यह जहाज तो कदापि नहीं हो सकता था। मेजर राज ने धीरे धीरे अपनी आँखें खोली तो उसने अपने आप को एक बंद कमरे में पाया। उसने अपनी गर्दन को इधर उधर घुमा कर देखा तो वह एक खाली कमरा था जिसमें मेजर राज के अलावा और कोई मौजूद नहीं था। मेजर राज ने एक छलांग में उठने की कोशिश की मगर उसकी कोशिस बुरी तरह विफल हुई। उसके हाथ और पैर एक बहुत ही मजबूत रस्सी से बंधे थे। यह शायद नाइलोन की रस्सी थी।

मेजर राज को तुरंत समझ में आ गया कि वह कर्नल इरफ़ान के सामने बुरी तरह विफल हो चुका है। और इस समय निश्चित रूप से उसी की कैद में है। अगला विचार जो उसके मन में आया वह था कि कर्नल इरफ़ान उसे बेहोशी की हालत में दुश्मन देश पाकिस्तान ही ले आया होगा। और अब मेजर राज दुश्मन देश की कैद में है। यह एहसास होते ही मेजर राज के होश फाख्ता होने लगे और उसकी सोचने-समझने की शक्ति समाप्ति होने लगीं। मेजर राज ने हमेशा यही प्रार्थना की थी कि दुश्मन की कैद में जाने से बेहतर शहीद होना है। मगर इसके विपरीत मेजर राज अब दुश्मन की कैद में था।

ताक़त बहाल होने पर मेजर राज ने फिर से उठने की कोशिश की और थोड़ी सी कोशिश के बाद वह अब उठ कर बैठ गया था। जबकि उसके पैर और हाथ अब भी बंधे थे जिन्हें किसी भी रूप में खोलना संभव नहीं था। नाइलोन की रस्सी उसके हाथों पर बहुत मजबूती से बंधी हुई थी जिस पर अगर वह जोर आजमाइश की कोशिश करता तो वह रस्सियाँ उसकी त्वचा के अंदर धंस जातीं। वह जानता था कि जोर आजमाइश की कोशिस से इस रस्सी से अपने आप को मुक्त कर पाना संभव नहीं।

अब वह कमरे में स्तब्ध बैठा आसपास की समीक्षा कर रहा था। यह कमरा पूरी तरह से खाली था। कमरे में कोई प्रकाश नहीं था केवल एक साइड पर दीवार में मौजूद रोशनदान से हल्की हल्की रोशनी अंदर आ रही थी। सामने एक बड़ा सा लोहे का मजबूत दरवाजा था जो वास्तव में एक सुरक्षित कमरे में ही हो सकता है। आम घरों में या कार्यालयों में इस तरह के दरवाजे मौजूद नहीं होते। मात्र 2 मिनट की समीक्षा में ही मेजर राज को एहसास हो गया कि यहाँ से उसका बच कर निकलना संभव नहीं।

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Re: वतन तेरे हम लाडले

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वह अब सिर झुकाए बीते हुए लम्हों को याद कर रहा था। उसका घर से निकलकर कार में होंडा का पीछा करना वहां से फिर भागते हुए बंदरगाह तक पहुंचकर गंदे पानी में पाइप के माध्यम से साँस लेना फिर जहाज चेंज करना और वहां से इरफ़ान से आमना-सामना हुआ यह सब बातें उसके मन में एक फिल्म की तरह चल रही थीं। इसी फिल्म में अचानक ही मेजर राज को एक और चेहरा याद आया। यह चेहरा किसी और का नहीं बल्कि उसकी अपनी नई नवेली दुल्हन रश्मि का चेहरा था। रश्मि का विचार मन में आते ही एक झमाका हुआ और मेजर राज को याद आया कि अभी एक दिन पहले ही तो उसकी शादी हुई थी।

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मेजर राज मैरून कलर की शेरवानी में गजब ढा रहा था। आज मेजर राज की शादी की पहली रात थी। उसकी पत्नी रश्मि अपने कमरे में मौजूद दुल्हन बनी बैठी अपने दूल्हे का इंतज़ार कर रही थी, जबकि बाहर कमरे के सामने मेजर राज की बहनें उसका रास्ता रोककर खड़ी थीं। कल्पना जिसकी उम्र 25 साल थी और पिंकी जो अब 21 साल की थी दोनों ही अपने भाई का रास्ता रोककर खड़ी थीं। साथ में कुछ रिश्तेदारों की लड़कियाँ भी थीं जो दूल्हे को अपनी नई नवेली दुल्हन के पास जाने से रोक रही थी। मेजर राज ने जेब से हजार हजार के 10 नोट निकाले और पिंकी की तरफ बढ़ाए वह जानता था कि कल्पना 10 हजार में नहीं मानेगी मगर पिंकी छोटी है शायद वह मान जाएगी। मगर इससे पहले कि पिंकी वे पैसे पकड़ती और राज को अंदर जाने का रास्ता देती कल्पना ने राज का हाथ झटक दिया और बोली हम तो अपने प्यारे भाई से सोने का सेट लेंगे फिर अंदर जाने की अनुमति मिलेगी। यह सुनकर मेजर राज ने अपनी माँ की तरफ देखा मगर वह भी आज अपनी बेटियों का साथ देने का इरादा रखती थीं। उन्होंने यह भी कह दिया कि तुम भाई बहन का आपस का मामला है इस मामले में कुछ नहीं बोल सकती।

मेजर राज ने बहुत कहा कि सोने का सेट तुम जय से लेना मेरे पास यही पैसे हैं, लेकिन ना तो कल्पना मानी और न ही पिंकी। और अंत मे मेजर राज को हार माननी पड़ी और उसने सोने की चेन जो उसकी पत्नी रश्मि के लिए बनवाई थी थी वह कल्पना को दी और पिंकी से वादा किया कि उसे भी एक अच्छी सोने की चेन दिलवाई जाएगी। इस वादे के बाद दोनों बहनों ने राज की जान छोड़ी और जय की तरफ भागी जय मेजर राज का छोटा भाई था जिसकी उम्र 27 साल थी और उसकी भी आज ही शादी हुई थी। अब रास्ता रुकने की बारी उसकी थी और दोनों बहनें कल्पना व पिंकी जय का रास्ता रोके खड़ी थीं। जिसका कमरा मेजर राज के कमरे के साथ ही था। लेकिन राज के पास अब इतना धैर्य नहीं था कि वह देखता जय के साथ बहनों ने क्या किया उसने दरवाजा खोला और अंदर जाकर सुख का सांस लिया।
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सामने बेड पर लाल गुलाब और सफेद फूलों की सेज बनी हुई थी। बेड के एक तरफ सरक पत्तियां बिखरी पड़ी थीं। पूरा कमरा गुलाब की खुशबू से महक रहा था। और सामने ही लाल शादी का जोड़ा पहने 20 वर्षीय रश्मि सिमटी बैठी थी। यूं तो मेजर राज और रश्मि की उम्र में 12 साल का अंतर था मगर दोनों ही इस शादी से खुश थे। रश्मि ने जब से राज को देखा था वह तो उसकी दीवानी हो गई थी, इस दीवानगी ने उम्र का यह बड़ा अंतर भी मिटा दिया था और वो केवल राज की ही होकर रह गई थी। रश्मि ने अपने नाम की लाज रखी थी। वह हर तरह की अनैतिक बातों से दूर रही और उसने अपनी इज्जत की रक्षा भी की। अपनी जवानी में उसने किसी गैर मर्द का साया तक नहीं पड़ने दिया था। रश्मि एक उदार और आधुनिक लड़की ज़रूर थी मगर उसके साथ विनम्रता हया और पाकदामनी में भी अपनी मिसाल आप थी। कभी किसी गैर मर्द को उसने अपने पास नहीं आने दिया था। गोरी रंग और भरपूर जवानी के बावजूद रश्मि ने अपनी रश्मि को बनाए रखा था और मेजर राज को भी रश्मि की पाकदामनी और हुश्न संहिता ने प्रभावित किया था।
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यही कारण था कि मेजर राज रश्मि को अपनी पत्नी बनाने के लिए खुशी खुशी तैयार हो गया था। कमरे में दाखिल होकर पहले राज ने अपनी शेरवानी उतारी। लगातार 4 घंटे से राज इस भारी शेरवानी में बड़ी मुश्किल से गुजारा कर रहा था। वह अपनी शादी के लिए पेंट कोट सिल्वाना चाहता था मगर रश्मि की फरमाइश पर उसने शेरवानी सलवाई। राज इस तरह के कपड़े पहनने का पूरी तरह आदी नहीं था। बस अपनी होने वाली पत्नी के कहने पर उसने 4 घंटे से शेरवानी शोभा ए तन कर रखी थी। शेरवानी उतार कर एक साइड पर रखने के बाद वह धीरे धीरे चलता हुआ सेज के पास पहुंचा, जहां सिमटी हुई रश्मि शर्म के मारे और भी सिमट गई थी। मेजर राज कुर्ता और पाजामा पहने अपनी पत्नी के सामने बैठ गया तो रश्मि ने घूँघट से ही आंखें उठाकर राज को देखा लाल दुपट्टे से राज का मुस्कुराता हुआ चेहरा नजर आया। राज के चेहरे पर नज़र पड़ते ही रश्मि के चेहरे पर चमक आ गई और उसने फिर से अपनी नजरें झुका लीं। राज ने भी अपनी पत्नी का यह अंदाज देखा तो सच मे उस पर प्यार आ गया, राज ने धीरज के साथ अपने दोनों हाथों से रश्मि के घूँघट को ऊपर उठाया। । । घूँघट को उठाते ही राज के मुंह से अपनी पत्नी के हुस्न में प्रशंसा के शब्द निकलना शुरू हुए जिन्हें सुनकर रश्मि के चेहरे का रंग अनार के रस की तरह लाल होने लगा। शर्म के मारे वो न तो अपनी आंखें ऊपर उठा रही थी और न ही कुछ बोल पा रही थी।
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राज ने अपनी एक उंगली से रश्मि का चेहरा ऊपर उठाया तो भी रश्मि की आँखें झुकी रहीं। इस पर राज ने कहा अब हम इतने भी बुरे नहीं जो आप हमारी ओर देखना भी गवारा न करें। यह सुनते ही शरमाई हुई रश्मि ने अपनी आंखें खोल लीं और राज को देखने लगी। बड़ी-बड़ी आँखों में मौजूद खुशी स्पष्ट दिख रही थी। और उनमें छिपा राज को प्यार भी अब स्पष्ट हो गया था। राज आगे बढ़ा और उसकी हसीन आंखों पर एक चुंबन दे दिया। रश्मि ने राज को बिल्कुल मना नहीं किया सिर्फ अपनी आँखें बंद कर लीं राज ने अपने होंठ कुछ देर आंखों पर रखने के बाद उठाए फिर से हुश्न की इस मूरत को देखने लगा। रश्मि का चेहरा अभी भी खुशी और प्यार के मिश्रित भाव की वजह से लाल हो रहा था। और उसकी भारी भारी सांसें उसके जज़्बात को प्रतिबिंबित कर रही थीं।
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इससे पहले मेजर राज पुनः हुश्न की इस प्रतिमा का चुंबन लेता, रश्मि ने अपना हाथ आगे बढ़ा कर अपनी सुंदर और नाजुक हथेली राज के सामने फैला दी। राज ने हैरान होकर रश्मि के हाथ को देखा और फिर रश्मि की ओर सवालिया नज़रों से देखा। थोड़े से अंतराल के बाद रश्मि ने पहली बार अपने होंठ खोले। रश्मि ने बहुत प्यार भरी आवाज़ में राज को संबोधित किया और बोली हर पति अपनी पत्नी का चेहरा पहली बार देखने के बाद उसे मुँह दिखाई कुछ देता है। आप तो मेरा चुंबन भी ले चुके मगर मुंह दिखाई में कुछ नहीं दिया। यह सुनकर राज को भी अपनी गलती का एहसास हुआ और वह लज्जित होकर बोला कि बस तुम्हारी सुंदरता ने मुझे मदहोश कर दिया था और मुझे कुछ याद ही नहीं रहा। अपने हुस्न की तारीफ में यह कुछ मामूली वाक्य रश्मि के लिए बहुत बड़ा उपहार थे। उन्हें सुनकर रश्मि को लगा जैसे उसका जीवन धन्य हो गया हो और उसे जीवन में राज के साथ के सिवा और कुछ नहीं चाहिए।

इससे पहले रश्मि कुछ बोलती, राज आगे झुका, और बेडसाइड पर पड़े आल्मीरा की दराज खोलकर एक छोटी सी डिबिया निकाली जिसमें एक सोने की चेन मौजूद थी। इस की चैन में एक छोटी लेकिन बहुत ही सुंदर लटकन भी मौजूद था जो दिल के आकार का था। मेजर राज ने वह चैन रश्मि की ओर बढ़ाई तो रश्मि ने इठलाते हुए कहा खुद पहनाएं तो उपहार के मूल्य का पता चलेगा।
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यह सुनकर राज मुस्कुराया और अपने हाथ से चैन के हुक को खोल कर हाथ रश्मि की गर्दन से लेकर गया। रश्मि ने राज को रुकने का इशारा किया और अपना बड़ा सा दुपट्टा कंधे से हटा कर अपना भारी पर कम सोने का सेट अपने गले से उतारने लगी। सेट उतारते हुए राज बड़े ही प्यार के साथ अपनी पत्नी को देख रहा था, राज की नजर जब रश्मि के सीने पर पड़ी तो वह अपनी आंखें झपकाना ही भूल गया। रश्मि की सुराही दार लंबी गर्दन गोरा गोरा सीना, नीचे सीने के उभार और बीच में क्लीवेज़ की लाइन। रश्मि के चेहरे की नैन छवि तो प्यारी थी ही मगर आज राज उसके सीने के उलटफेर देखकर सांस लेना भूल गया था।

रश्मि जब अपने गले से जेवर उतार चुकी तो उसने दुपट्टा और थोड़ा पीछे हटाया और राज की नजरें रश्मि के सीने पर गढ़ी हुई थीं। रश्मि ने भी इस बात को महसूस कर लिया और उसका सीना गर्व से और फूलने लगा। फिर उसने राज के सामने एक चुटकी बजाई और एक मुस्कान से बोली क्या देख रहे हैं जी ?? राज को होश आया और वह अपनी चोरी पकड़ी जाने पर थोड़ा शर्मिंदा हुआ मगर फिर बोला अपनी किस्मत को दाद दे रहा हूँ, ऐसी सुंदर और जवानी से भरपूर पत्नी का साथ खुशनसीब लोगों को ही मिलता है। यह कह कर वह आगे बढ़ा और अपने हाथ रश्मि की गर्दन के पीछे ले गया। उसने पीछे से चैन का हुक बंद किया और फिर पीछे हटकर रश्मि के गले में मौजूद मुंह दिखाई में दी हुई सोने की चैन को देखने लगा। चैन में झूलता हुआ लटकन रश्मि की क्लीवेज़ लाइन से कुछ ऊपर था, राज ने लटकन को देखा और आगे बढ़ कर अपने होंठ लटकन वाली जगह पर रखकर एक प्यार भरा चुंबन दिया। रश्मि को राज के होंठ अपने सीने पर महसूस हुए तो उसकी भी एक सिसकी निकल गई। यह पहला मौका था कि एक आदमी के होठों ने रश्मि के सीने में प्यार भरा चुंबन दिया था।
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राज ने यहीं बस नही की बल्कि आगे बढ़कर रश्मि की कमर के चारों ओर अपने हाथ डाल लिए, रश्मि भी उठी और अपने पति के पास गई। रश्मि ने कभी किसी पुरुष को अपने पास नहीं आने दिया था मगर वह अपने जीवन साथी अपने पति से किसी भी प्रकार की शर्म महसूस नहीं कर रही थी। लेकिन नाज़ुक और प्राकृतिक शर्म तो उसमें मौजूद थी ही मगर बनावटी शर्म और अपने पति से संकोच इस रश्मि की प्रकृति में शामिल नहीं था। वह जानती थी कि यौन संतुष्टि न केवल उसका अधिकार है बल्कि उसके पति का अधिकार है। और दोनों एक दूसरे के साथ सहयोग करेंगे तो पूरी संतुष्टि हासिल की जा सकती है।

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