वतन तेरे हम लाडले complete

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Kamini
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Re: वतन तेरे हम लाडले

Post by Kamini »

Welcome Back Raj
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Rohit Kapoor
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Re: वतन तेरे हम लाडले

Post by Rohit Kapoor »

खुशामदीद शर्मा जी देर आए दुरुस्त आए

कहानी का आगाज़ तो बहुत अच्छा है अब जल्दी से स्टार्ट कर दीजिए
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rajsharma
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Re: वतन तेरे हम लाडले

Post by rajsharma »

रात के 3 बज रहे थे और आगरा कॉलोनी से एक 2006 मॉडल कोरोला 80 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से शमा शॉपिंग सेंटर के सामने से होती हुई राज मार्ग आगरा फ्लाई ओवर पार करने के बाद राज मार्ग आगरा पर चली गई। राज मार्ग आगरा पर आते ही कार का स्पीड खतरनाक हद तक बढ़ चुका था। चालक शायद बहुत जल्दी में था रात 3 बजे हालांकि सड़क बिल्कुल सुनसान नहीं थी, कुछ हद तक यातायात मौजूद थी राज मार्ग पर मगर काले रंग की यह कोरोला कार अब 150 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से जा रही थी। ड्राइवर अत्यंत कौशल के साथ अन्य वाहनों से बचाता हुआ अपने गंतव्य की ओर दौड़ रहा था। महनास रोड जाने वाले टर्न के पास ड्राइवर ने ट्रांसमीटर पर एक कॉल प्राप्त की जिसमें उसे एक होंडा कार के बारे में जानकारी दी गई कि कुछ ही देर पहले इसी जगह से गुज़री थी। होंडा की गति 90 किलोमीटर प्रति घंटा बताई गई और उसे इस जगह से गुज़रे कोई 5 से 10 मिनट हो चुके थे।



यह जानकारी मिलते ही चालक ने अपनी कार की स्पीड और बढ़ा दी क्योंकि वह जल्दी होंडा कार ढूंढना चाहता था। नर्सरी फ्लाई ओवर पार करने के बाद कब्रिस्तान के पास कोरोला चालक को दूर लाल लाइट दिखना शुरू हुआ जो शायद किसी कार की रोशनी ही थीं। उसको देखकर कोरोला चालक ने अपनी रफ़्तार में कमी की और अब 150 की बजाय 100 की गति के साथ इस कार के पीछे जाने लगा। कुछ ही देर में यह दूरी और कम हो गई और अब कोरोला का चालक अपनी गति 90 किमी प्रति घंटे पर ले आया। सामने जाने वाली कार होंडा ही थी जिसका पीछा करना था। और इस में मौजूद व्यक्ति के बारे में जानकारी प्राप्त करना था। होंडा में कोई और नहीं बल्कि पाकिस्तानी सेना का कर्नल और पाकिस्तानी संगठन आईएसआई का विशेष एजेंट कर्नल इरफ़ान सिंह था जो अपने विशेष मिशन पर पिछले काफी दिनों से मुम्बई में मौजूद था।

भारत की खुफिया एजेंसी भी काफी दिनों से कर्नल इरफ़ान की गतिविधियों पर नजर रखे हुए थी मगर वह अब तक यह समझने में असफल रहे थे कि आखिर कर्नल इरफ़ान भारत में किस मकसद से आया है और क्या वह अब तक अपने मिशन में सफल हो सका है या नहीं इस बारे में भारत की खुफिया एजेंसी रॉ अब तक कुछ पता नहीं कर सकी थी। मेजर राज जो कि एक होनहार जवान था जिसने भारत आर्मी में कम उम्र में ही बहुत नाम किया था मगर अब वह रॉ का भी विशेष एजेंट था। रॉ अपने विशेष कार्यों के लिए अक्सर मेजर राज का ही चयन करती थी और आज भी रात 3 बजे मेजर राज को विशेष रूप से कर्नल इरफ़ान का पीछा करने का काम दिया गया था। मेजर राज अपनी तेज ड्राइविंग के लिए पहले से ही प्रसिद्ध था और आज भी वह तूफानी गति से ड्राइविंग करते हुए अंततः होंडा को ढूंढ निकाला था।

अब मेजर राज अगली कार से उचित दूरी रखते हुए लगातार उसके पीछे जा रहा था। रोड बिल्कुल सीधा था, होंडा राज मार्ग आगरा को छोड़कर क्लब रोड से होती हुई अब महात्मागाँधीरोड पर 70 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से जा रही थी। महात्मागाँधीरोड से नौसेना परिसर और फिर वहां से गाड़ी ने अचानक एक मोड़ लिया और सीधे मुम्बई बंदरगाह की ओर जाने लगी। यह आम मार्ग नहीं थी। यहां पुलिस और रेंजर्स द्वारा विशेष रूप से जाँच की जाती थी। मेजर राज ने देखा कि होंडा आगे आने वाली चेक पोस्ट पर कुछ देर के लिए रुकी है। यहां रेंजर्स हर आने वाली गाड़ी को विशेष तौर पर चेक करते थे। मेजर राज ने भी कार धीरे गति से चलने दी। जब मेजर राज की गाड़ी आगे खड़ी होंडा के बिल्कुल करीब पहुंच गई तो मेजर राज ने देखा रेंजर अधिकारी ने होंडा में मौजूद पिछली सीट पर बैठे व्यक्ति को सलयूट और चालक को एक कार्ड पकड़ा दिया। इसके साथ ही होंडा आगे चली गई।

मेजर राज की कार भी रेंजरों अधिकारी ने चेकिंग के लिए रोका तो मेजर ने अपना कार्ड रेंजर अधिकारी को दिखाया। अधिकारी ने वह कार्ड बैठे अपने अधिकारी को दिया जिसने कार्ड विशेष रूप से जाँच करने के बाद मेजर राज को भी आगे जाने की अनुमति दी और अधिकारी ने मेजर राज को सलयूट मारकर कार्ड वापस कर दिया। मेजर राज ने सलयूट मारने वाले व्यक्ति से पूछा कि अगली गाड़ी में कौन था तो उसने बताया कि अगली कार में लेफ्टिनेंट कर्नल रंगीला मौजूद थे जो किसी महत्वपूर्ण काम से बंदरगाह की ओर जा रहे हैं। यह सुनते ही मेजर राज को चिंता हो गई। क्योंकि अगली गाड़ी में तो कर्नल इरफ़ान मौजूद था। और वे बहुत कौशल के साथ रेंजर्स अधिकारी को धोखा देकर एक भारतीयलेफ्टिनेंट कर्नल के हुलिए में मुम्बई बंदरगाह पहुंच चुका था और रेंजर अधिकारी उसको पहचानने में असफल रहे थे।

यह सुनते ही मेजर राज ने अपनी कार चलाई और होंडा कार को ढूंढने लगा। कुछ ही दूर जाकर मेजर राज को होंडा मिल गई। उसकी रोशनी बंद हो चुकी थीं। मेजर राज ने अपनी कार दूर खड़ी की और पैदल ही होंडा की ओर बढ़ने लगा। मेजर राज इस समय अपनी वर्दी की बजाय सलवार कमीज पहने था। वे बहुत ही सावधानी के साथ होंडा की ओर जा रहा था क्योंकि वह जानता था कि कर्नल इरफ़ान आईएसआई का सबसे खतरनाक एजेंट है और अपन काम में माहिर है। वह आज तक अपने किसी भी मिशन में विफल वापस नहीं लौटा था। और रॉ जानती थी कि इस बार भी कर्नल इरफ़ान हो न हो किसी खतरनाक मिशन पर ही भारत में मौजूद है। मगर उस पर हाथ डालना इतना आसान नहीं था। कुछ ही देर में मेजर राज होंडा के करीब पहुंच चुका था उसको दूर से देखकर ही पता चल गया था कि कार में कर्नल मौजूद नहीं है। वह कार के पास पहुंचा तो ड्राइवर अभी कार में मौजूद था और ड्राइविंग सीट पर चाक चौबंद बैठा था।

मेजर राज ने ड्राइवर से पूछा कि तुम यहाँ क्यों खड़े हो और यह किस की कार है? तो ड्राइवर ने बताया कि लेफ्टिनेंट कर्नल रंगीला साहब आए हैं उन्हें यहां कोई काम है। यह कह कर ड्राइवर अपनी मस्ती में कार में लगे गाने सुनने लगा और मेजर राज अत्यंत सावधानी से लेकिन बहुत ला उबाली ढंग से आगे बढ़ने लगा। 32 वर्षीय मेजर राज चारों तरफ के हालात से अच्छी तरह वाकिफ था, उसकी छठी इंद्रिय उसको आने वाले खतरे के बारे में भी बता रही थी मगर वह जाहिरा तौर पर सामान्य तरीके से चलता जा रहा था। कुछ दूर उसको भारतीयवर्दी में एक आर्मी ओफीसर नज़र आया जो एक ही पल में गायब हो गया। मेजर राज ने सोचा हो न हो यह कर्नल इरफ़ान ही होगा। जो इस समय सभी सुरक्षा को चकमा देकर भारतीयलेफ्टिनेंट कर्नल के हुलिए में अत्यंत संवेदनशील क्षेत्र में मौजूद है।

जो व्यक्ति जाता नज़र आया था और एकदम से गायब हो गया था वहीं से एक कार निकली जो अब बंदरगाह से होती हुई कैमाड़िय की ओर जा रही थी। मेजर राज ने भी फौरन वापसी की और भागता हुआ अपनी कार में जा बैठा और उसी ओर चल पड़ा जहां अन्य कार जा रही थी। कैमाड़िय घाट पहुंच कर मेजर राज को वही गाड़ी फिर से दिखी लेकिन इस समय उसमे कोई भी व्यक्ति मौजूद नहीं था। मेजर राज तुरंत वहां से भागता हुआ साइड पर गया जहां पर बोट मौजूद होती हैं। वहां से मेजर राज को पता लगा कि रंगीला साहब, जो कि वास्तव में कर्नल इरफ़ान था, एक नाव पर सवार हो चुके हैं जो अब प्रायद्वीप जाएगी। मेजर राज भी सुरक्षा अधिकारी से नज़र बचाकर इस बड़ी सी नाव में छुप कर बैठ गया। कुछ देर बाद बोट दूसरी साइड पर पहुँच चुकी थी और कर्नल इरफ़ान अपने कुछ साथियों के साथ नाव से उतर गया। मौका देखकर मेजर राज भी नाव से नीचे उतरा। नीचे उतर कर मेजर राज ने देखा कि कर्नल इरफ़ान के लिए एक काले रंग की पजेरो खड़ी है। कर्नल इरफ़ान अपने 2 साथियों के साथ पजेरो पर सवार हुआ और कुछ साथी वापस उसी नाव की ओर जाने लगे।

मेजर राज समझ गया था कि अब उनका रुख प्रायद्वीप से ही होगा जहां से बड़े जहाज समुद्री रास्ते से दुनिया के विभिन्न देशों के लिए रवाना होते थे। आम तौर पर समुद्री जहाज के माध्यम से बड़े स्मगलर यात्रा करते हैं और मेजर राज के मन में पहला ख्याल यही आया कि कर्नल इरफ़ान एक कीमती चीज़ की तस्करी में इन्वोल्व है, लेकिन अगले ही पल मेजर राज ने इस विचार को अपने मन से निकाल दिया कि तस्करी के लिए आईएसआई जैसी एजेंसी कभी भी काम नहीं करेगी। ऐसा काम तो छोटे-मोटे समगलरज़ के माध्यम से करवाया जा सकता है, कर्नल इरफ़ान के इस मामले में शामिल होना किसी बड़े खतरे की ओर इशारा था। काले रंग की पजेरो यहाँ से जा चुकी थी, और मेजर राज अब पैदल ही प्रायद्वीप की ओर जा रहा था। मेजर राज भागता हुआ यह सारा रास्ता तय कर रहा था। पजेरो सड़क मार्ग से जा रही थी जबकि मेजर राज शॉर्टकट उपयोग करता हुआ अपने गंतव्य की ओर जा रहा था। सुबह की हल्की हल्की रोशनी हो रही थी और अब बिना रोशनी भी काफी हद तक निगाह काम करने लगी थी।
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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rajsharma
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Re: वतन तेरे हम लाडले

Post by rajsharma »

आधे घंटे लगातार भागने के बाद मेजर राज के फेफड़े जवाब देने लगे थे। उसका सांस धोकनी की तरह चल रहा था अब इसमें अधिक भागने की हिम्मत बाकी नहीं रही थी। मगर एक अनजाना डर उसको रुकने नहीं दे रहा था। कर्नल इरफ़ान आख़िर भारत का ऐसा कौन सा रहस्य लेकर जा रहा था यहाँ से ??? वतन मे आने वाले खतरे के बारे में सोच सोच कर मेजर राज का हौसला और बढ़ रहा था और वह बिना रुके लगातार भागता जा रहा था। अंत में मेजर राज को दूर एक जहाज दिखाई दिया। जो प्रस्थान के लिए तैयार था। लेकिन यहां से अब भी एक किलोमीटर का सफर तय करना बाकी था जो मेजर राज ने लगभग भागते हुए ही तय किया। रास्ते मे कुछ देर के लिए अपने आपको लोगों की नजरों में आने से बचाने के लिए मेजर राज कुछ चीज़ों की ओट लेकर रुक भी जाता तो वे कर्नल इरफ़ान को रंगे हाथों पकड़ सके। जब मेजर राज जहाज के बिल्कुल करीब पहुंच गया तो वहां से जहाज तक जाना मेजर राज के लिए असंभव हो गया था।

मेजर राज ने एक बार सोचा कि वह यहाँ मौजूद सभी सुरक्षा कर्मियों को बता दे कि यह भारतीयवर्दी में लेफ्टिनेंट कर्नल रंगीला साहब नहीं बल्कि आईएसआई का एजेंट कर्नल इरफ़ान है लेकिन फिर इस विचार को भी मेजर राज ने छोड़ दिया, ऐसा न हो कि सुरक्षाकर्मी भी भेष बदलकर आए हों और वास्तव में वह भी आईएसआई के ही एजेंट हों या फिर आईएसआई ने उन्हें भारी रकम देकर खरीद लिया हो ऐसे में मेजर राज खुद खतरे में फंस सकता था। जो रास्ता जहाज के डेक की ओर जाता था वहां पर 10 के करीब बंदूकधारी मौजूद थे और ऐसे में उनसे पंगा लेने का मतलब था आ बैल मुझे मार । अगर सामान्य परिस्थितियों में 10 बंदूकधारियों से लड़ना होता तो मेजर राज एक पल भी ना सोचता, लेकिन यहाँ समस्या उनसे लड़ने की नहीं बल्कि कर्नल इरफ़ान को पकड़ने की थी जो शायद भारत से कोई कीमती रहस्य चुरा कर दुश्मन देश जा रहा था। आखिरकार मेजर राज ने दूसरा रास्ता अपनाया, जहाज के डेक की ओर जाने की बजाय मेजर राज ने चुपचाप एक साइड पर पड़ी लाइफ ट्यूब उठाई और समुद्र के पानी में उतर गया। जो कि मेजर राज बहुत अच्छा तैराक भी था मगर वो बिना आवाज पैदा किए जहाज तक पहुंचना चाहता था जिसके लिए लाइफ ट्यूब का उपयोग ही सर्वोत्तम था। ट्यूब की मदद से मेजर राज समुद्री पानी में मौजूद बनाए गए अस्थायी रास्ते के नीचे हो लिया।

यहां पानी की गहराई तो ज्यादा नहीं होती मगर एक आम तैराक के लिए संभव नहीं होता कि वह पानी में उतर सके। लकड़ी के तख्तो की मदद से बनाए गए रास्ते का उपयोग होता है और मेजर राज इन्हीं तख्तो के नीचे नीचे जहाज पर जा रहा था। जहाज के बेहद करीब पहुंचकर मेजर राज बहुत चौकन्ना हो गया क्योंकि उसके ठीक ऊपर बंदूक धारी मौजूद थे जो आपस में कुछ बातें कर रहे थे। मेजर राज ने उनकी बातें सुनने की कोशिश की मगर ठीक से समझ नहीं पाया। यहां मेजर राज की छोटी सी गलती भी पानी में ध्वनि उत्पन्न कर ऊपर खड़े बंदूकधारियों को चौकन्ना कर सकती थी इसलिए मेजर राज बहुत सचेत हो के साथ जहाज के बिल्कुल करीब पहुंचा। जहाज अब चलने के लिए बिल्कुल तैयार खड़ा था। और उस पर सवार होना असंभव था जबकि मेजर राज वापस नहीं जा सकता था।


मेजर राज ने तुरंत ही अपने आसपास देखा तो उसे सौभाग्य से एक छोटा पाइप पानी पर तैरता हुआ मिला। समुद्री सीमा में आमतौर बहुत सा कचरा और गंदा सामान होता है, भारत में सफाई के खराब प्रबंधन की वजह से पानी न केवल बहुत अधिक भूरा होता है बल्कि इसमें बहुत सा काठ कबाड़ भी मौजूद होता है। यही बात आज मेजर राज के काम आई और उसे एक पाइप मिला। मेजर राज जहाज के बिल्कुल करीब था, जैसे ही जहाज़ चलने लगा और उसके सुरक्षा बंद तोड़े गए तो पानी में बहुत अधिक शोर पैदा हुआ जोकि सामान्य बात थी, इसी शोर का लाभ उठाते हुए मेजर राज ने एक डुबकी लगाई और पानी के नीचे जाकर जहाज के साथ एक कोने को पकड़ कर खड़ा हो गया। मेजर राज ने अपना सांस रोक रखा था। विशेष प्रशिक्षण की वजह से मेजर राज कम से कम 3 मिनट तक बा आसानी पानी में अपना सांस रोक सकता था। और इन 3 मिनट में जहाज इन बंदूकधारियों से काफी दूर आ चुका था। जब मेजर राज को अधिक सांस रोकने में कठिनाई का सामना होने लगा तो उसने पाइप का सहारा लिया। पाइप जल स्तर से कुछ ऊपर बाहर निकाल लिया और नीचे से अपना मुंह लगा लिया। जिससे मेजर राज को अब सांस लेने में आसानी हो रही थी। मगर पानी में जमे रसायन और अन्य गंदे अपशिष्ट मेजर राज के शरीर पर बहुत बुरा असर डाल रहे थे। ऐसे क्षेत्रों में अक्सर जहाज़ो का तेल भी समुद्री जल में ही छोड़ दिया जाता है जो मछलियों के जीवन के लिए जहर का काम करता है। मेजर राज के लिए इस पानी में अपनी आँखें खोल पाना भी मुश्किल हो रहा था। वह महज पाइप की मदद से साँस ले पा रहा था और इस इंतजार में था कि जहाज बंदरगाह से दूर निकल जाए ताकि वह लोगों की नजरों में आए बिना जहाज पर चढ़ सके।
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Re: वतन तेरे हम लाडले

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Raj bhai achhi shuruwat hai
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