नए पड़ोसी complete

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Rishu
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नए पड़ोसी complete

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दोस्तों आज आपके लिए एक नयी कहानी लेकर हाजिर हुआ हूँ. लेकिन अपडेट जल्दी जल्दी नहीं दे पाऊँगा इसके लिए पहले ही माफ़ी मांग लेता हूँ...
मेरा नाम मनीश है और मैं लखनऊ में रहता हूँ. मैं १२वी क्लास में पढता हूँ. मेरे घर पर मेरे पापा मम्मी और मेरी बड़ी बहन रश्मि है. मेरे मम्मी पापा दोनों नौकरी करते है और मेरी बहन ग्रेजुएशन सेकंड इयर में पढ़ रही है. जहा हमारा घर है वो एरिया अभी नया बसा है. वह अभी ज्यादा मकान नहीं है. जब हम यहाँ आये थे तब हमारी लाइन में सिर्फ हमारा ही घर बना था. धीरे धीरे और घर बन गए सामने भी काफी घर बन गए पर हमारे पड़ोस में कोई नहीं आया. पर पिछले साल हमारे बगल में भी एक नया मकान बन गया था और उसमे एक फॅमिली भी आकर रहने लगी थी. पापा उनसे मिलने गए और लौट कर उन्होंने मम्मी को बताया की अच्छे लोग है. उनके घर में भी 4 लोग ही थे. अंकल एक सरकारी नौकर थे और आंटी घर पर ही रहती थी. उनका बड़ा लड़का मयंक मेरे ही कॉलेज में पड़ता था और उनकी छोटी बेटी रुची ११वी क्लास में पढ़ रही थी. मम्मी ने कहा चलो अच्छा है की कम से कम कोई पडोसी तो आये. पापा ने कहा एक और अच्छी बात है उन्होंने अपने घर में जो दुकान बनवाई है वो भी जल्दी खुल जाएगी. अभी मेरे सामने ही एक लड़का किराये की बात पक्की करके गया है. फिर पापा ने मुझसे कहा की कल कॉलेज जाते समय मयंक को अपने साथ ले जाना क्योंकि वो कह रहा था की उसको यहाँ का बस रूट अभी पता नही है. इस बातचीत में मेरे लिए दो ख़ुशी की बाते थी. एक तो मेरा कॉलेज सिर्फ लडको का कॉलेज है और मेरे मोहल्ले में भी ज्यादा लडकिया नहीं थी इसीलिए मैं रुची की खबर से थोडा खुश हुआ क्योंकि जब से मैंने मस्तराम पढना शुरू किया था बस एक ही सपना था की कैसे भी किसी लौंडिया की मिल जाए. और दूसरा मुझे घर का सामान लेने काफी दूर जाना पड़ता था अगर बगल में दुकान खुलेगी तो मुझे ज्यादा दौड़ना नहीं पड़ेगा.
Rishu
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Re: नए पड़ोसी

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अगले दिन मैं तैयार होकर कॉलेज के लिए निकला और उनके घर जाकर बेल बजायी. आंटी ने दरवाजा खोला तो मैंने देखा की वो एक ३८-४० साल की काफी खूबसूरत महिला थी. रंग एक दम दूध जैसा. लम्बे काले बाल. गुलाबी रंग की साढ़ी में वो बहुत कमाल लग रही थी. मैंने उन्हें बताया की मैं बगल के घर में रहता हूँ और मयंक को साथ ले जाने के लिए आया हूँ. उन्होंने कहा की मयंक तैयार हो रहा है. ५ मिनट वेट कर लो मैं भेजती हूँ. और वो अन्दर चली गयी. मैंने सोचा की जब माँ ही ऐसा माल है तो बेटी तो और भी कमाल होगी. उन्होंने दरवाजा बंद नहीं किया था और तभी मैंने पहली बार रुची को देखा. वो शायद नहाकर अपने रूम में जा रही थी. एक झलक में ही उसने मुझे पागल कर दिया. ख़ूबसूरत तो वो थी ही पर उसका कटीला बदन और भी क़यामत था. उसकी लचकती कमर का तो मैं उसी दिन से दीवाना हो गया. मैं उसके ख्यालों में खोया था की तभी एक लड़का बाहर निकला और मुझसे हाथ मिलाता हुआ बोला की मैं ही मयंक हूँ. मैंने उसे गौर से देखा. स्मार्ट लड़का था. शायद जिम भी जाता होगा क्योंकि उसकी बॉडी काफी फिट थी पर उम्र में वो मुझे थोडा बड़ा लग रहा था. मैं बोला चलो वरना कॉलेज में देर हो जाएगी और हम दोनों बस स्टैंड के लिए चल दिए. अब तो हमारा यही रूटीन था. मयंक अलग सेक्शन में था और मैं अलग सेक्शन में पर हम दोनों साथ ही कॉलेज जाते तो कुछ ही दिनों में हमारी अच्छी दोस्ती हो गयी. तभी मुझे पता चला की मयंक मुझसे 2 साल बड़ा है और एक साल बीमार होने के कारण और एक बार फेल होने की वजह से उसके दो साल ख़राब हो गए और वो मेरी ही तरह १२वी क्लास में पढ़ रहा है. मुझे ये भी पता चला की ये दोनों आंटी अंकल के अपने बच्चे नहीं है बल्कि आंटी की बड़ी बहन के बच्चे है. एक एक्सीडेंट में आंटी की बड़ी बहन और जीजा की मौत हो गयी थी और इनके अपने कोई बच्चे नहीं थे इसीलिए आंटी ने इन दोनों को गोद ले लिया था. मयंक पढने में थोडा कमजोर था तो वो कॉलेज के बाद सीधा कोचिंग पढने चला जाता था और मैं अकेले घर लौट आता था. रुची की मेरी दीदी से अच्छी दोस्ती हो गयी थी और वो अक्सर दीदी से मिलने घर भी आती थी लेकिन रुची से मेरी दोस्ती तो दूर जान पहचान भी नहीं हो पाई थी. इसका एक कारण तो ये था की हमारे कॉलेज और रुची के कॉलेज का टाइम अलग अलग था. हम सुबह ८ से १२ कॉलेज जाते और १ बजे तक घर वापस आ जाते जबकि रुची १० बजे कॉलेज जाती और ४ बजे लौट कर आती थी. दीदी कॉलेज से शाम को ५ बजे तक आती थी और उसी टाइम मैं कोचिंग चला जाता था और ९ बजे तक लौटता था. रुची दीदी से मिलने ५ और ९ के बीच ही आती थी जब मैं घर पर नहीं होता था. मैंने सोचा की कुछ ही दिन में पेपर हो जायेंगे फिर छुट्टियों में २ महीने मैं घर पर ही रहूँगा. रुची वाला प्रोजेक्ट तभी पूरा किया जायेगा.
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मयंक के घर में जनरल स्टोर भी खुल गया था और मैं अक्सर उस दुकान से सामान लेने जाता रहता था तो मेरी उन दुकान वाले भैया से भी अच्छी दोस्ती हो गयी थी. उनकी उम्र करीब २७-२८ साल थी और उनका नाम ओम था. वो काफी मजाकिया थे और हमेशा गंदे गंदे चुटकुले सुनाते थे तो मैं कभी कभी खाली टाइम में भी उनके पास चला जाता था क्योंकि दोपहर में उनकी दुकान भी खाली ही रहती थी. उन्होंने अपनी दुकान में एक टीवी भी लगा रखा था तो मैं कभी कभी मैच देखने भी उनके यहाँ चला जाता था क्योंकि मेरे घर पर कोई मैच नहीं देखता था तो उनके साथ मैच देखने में बहुत मजा आता था. पर इधर कुछ दिनों से मैं नोटिस कर रहा था की जब भी मैं उनके पास जाता था वहा आंटी पहले से ही उनसे बाते कर रही होती थी. और मेरे जाते ही आंटी घर के अन्दर चली जाती और अब ओम भैया भी मुझसे पहले की तरह ज्यादा बात नहीं करते थे. मुझे थोडा शक हुआ की आंटी ऐसे क्या बाते करती है जो मेरे सामने नहीं कर सकती तो मैं अगले दिन चुपके से उनके घर के पीछे से उनकी दुकान की तरफ गया. आंटी आज भी हंस हंस कर ओम भैया से बातें कर रही थी. मैं दुकान की दीवार के पास बैठ कर उनकी बातें सुनने लगा. ओम भैया बोले, "अरे एक चुटकुला और याद आया भौजी, सुनाऊ."
आंटी बोली सुनाओ. मुझे लगा की ये तो बस आंटी को जोक सुना रहे है. तभी ओम भैया बोले "एक आदमी अपनी बीवी के साथ बाइक पर जंगल से जा रहा था की बाइक पंक्चर हो गयी. उन्होंने काफी गाडियों को रोकने की कोशिश की लेकिन रात का वक़्त था किसी ने उनकी मदद नहीं की. तभी बीवी बोली सुनो जी आप सड़क के एक किनारे खड़े हो जाओ और मैं आपका लंड खीच कर सड़क के दुसरे किनारे पर खड़ी हो जाती हूँ फिर तो लोग लंड को रस्सी समझ कर गाडी रोक ही देंगे."
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Re: नए पड़ोसी

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अरे ये तो आंटी से खुले आम लंड चूत की बात कर रहा है ये सोच के मेरे कान गरम हो गए. मैं और ध्यान से सुनने लगा. ओम भैया बोले, "तो सड़क के एक कोने में ये आदमी और दुसरे कोने में इसकी बीवी इसका लंड पकड़ कर खड़ी हो गयी. तभी वहाँ से एक ट्रक तेज़ी से निकला और बिना ब्रेक मारे निकल गया बीवी एक तरफ गिरी और आदमी एक तरफ. बीवी उठी और बोली की बाल बाल बचे. तो पति बोला की बस बाल ही बाल बचे."
आंटी जोर जोर से हँसे जा रही थी और मैं सोच रहा था की क्या ओम भैया आंटी को पेलते है जो ऐसे गंदे चुटकुले सुना रहे है. तभी आंटी बोली, "क्या ओम क्या किसी का इतना लम्बा भी होता है जो सड़क के एक किनारे से दुसरे किनारे तक चला जाए." इस पर ओम भैया ने जवाब दिया, "अरे भौजी अभी आपने देखा ही क्या है. एक बार हुकुम तो करो जन्नत न दिखा दूं तो कहना. सेवा का मौका तो दो." "अरे हाथ छोड़ो, कोई देख लेगा." आंटी बोली.
"अरे तो आप अन्दर चलो. मैं शटर डाउन करके आता हूँ." ओम भैया बोले. "तुमको तो बस दिन रात एक ही चीज का सपना दिखता है. टाइम तो देखो अभी एक घंटे में मयंक आ जायेगा." आंटी ने जवाब दिया. ओम भैया बोले, "अरे भौजी आप एक बार असल में दिखा देती तो ये स्वपन दोष भी ठीक हो जाता और एक घंटा तो बहुत है. अपना काम तो आधे घंटे में हो जायेगा." "इतनी बड़ी बड़ी बातें करते हो और बस आधे घंटे में काम हो जायेगा" आंटी फिर से हँसने लगी और घर के अन्दर जाने लगी. मैं समझ गया की अभी तक तो आंटी ने ओम भैया को अपनी चूत के दर्शन नहीं करने दिए है लेकिन अब ओम भैया को आंटी की ओखली में अपना मूसल कूटने में ज्यादा देर नहीं लगेगी क्योंकि आंटी सुबह १० बजे से शाम ४ बजे तक घर में अकेली ही रहती है और ओम भैया से वो जितना खुल चुकी है बस अब किसी भी दिन उनके लिए टाँगे पसार देंगी. मैं वहां से निकल कर सीधे ओम भैया के पास पहुच गया. ओम भैया आंटी का पिछवाडा देख कर अपना लंड मसल रहे थे. अचानक मुझे देख कर चौंक पड़े. बोले "अरे मनीष. आज इधर से कहा से आ रहे हो." "इधर से न आता तो आपकी और आंटी की बातें कैसे सुनता ओम भैया". "कौन सी बातें" ओम ने बहुत आराम से पुछा. "वोही बातें जो अंकल सुनेगें तो बस आपके बाल ही बाल बचेंगे." मैंने मजे लेते हुए बोला. "देखो भाई अगर तुम्हे अंकल को बताना होता तो तुम मुझे न बताते. काहे फडफडा रहे हो. तुम्हे भी दिलवा देंगे." ओम भैया ने कहा.
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मुझे लगा जब ये खुल रहे है तो मुझे भी खुलना चाहिए. मैंने कहा, "आंटी की चूत आपको ही मुबारक हो, मुझे तो रुची की लेनी है. उसकी दिलवाओ". "ये लो इधर तुम मयंक की बहन की चूत के पीछे पागल हो और मयंक तुम्हारी बहन की लेने की फ़िराक में है. दोनों बहनों की अदला बदली कर लो" ओम भैया की ये बात सुन कर मुझे झटका लग गया. "आपसे ये किसने कहा, मयंक ने?". "उसने तो नहीं कहा पर बेटा ताड़ने वाले क़यामत की नज़र रखते है. तुम तो झोला उठाकर कोचिंग चल देते हो. तुम्हे क्या पता की शाम को यहाँ क्या क्या होता है. कैसे मयंक बाबु छत पर टंगे रहते है तुम्हारी बहन की एक झलक पाने के लिए और हो भी क्यों न तुम्हारी बहन है भी तो १००% सोने की बेबी डॉल. अब तो जब रश्मि रुची से मिलने आती है तो थोड़ी बहुत बात भी कर लेती है मयंक से. थोडा अपनी गाड़ी को स्पीड दो वरना मयंक मारेगा झटके और तुम ताड़ने में ही अटके रहोगे". "क्या बकवास कर रहे हो" मैंने गुस्से से कहा. ओम भैया पर मेरे गुस्से का कोई असर नहीं हुआ. वो आराम से बोले, "भाई नाराज़ क्यों होते हो. हम जब आंटी की ले लेगे तो तुमको भी दिलवा देंगे. बाकी रुची कोई रांड तो है नहीं जो मेरे कहने से तुमको दे देगी. या तो खुद मेहनत करो या फिर मयंक के साथ मिल कर जैसा हमने कहा वैसा करो."
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