परदेसी complete

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Sexi Rebel
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Re: परदेसी

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"हां तो रोहित. कॉन्सेंट्रेट. तुझे हल्का महसूस हो रहा है... तू चलते चलते बहुत हल्का हो रहा है. अब तू हवा में उड़ रहा है... अब तू नीचे देख..."

"अबे तू क्या मुझे हाइप्नटिज़ कर रहा है हिन्दी फिल्मों की तरह?? ज़मीन पर ही हूँ मैं"

"यार मैं तेरी मदद कर रहा हूँ और तू ऐसे कर रहा है... कोशिश कर ना..."

"नही होती मुझसे और कोशिश."

"अबे तो कल कैसे हवा में चल रहा था... गांजा ख़तम है नहीं तो अभी तेरी नसों में घुसेड देता मैं.. तू उड़ बस.. मैं नही जानता"

"अबे मैं कोई रिमोट कंट्रोल्ड प्लेन नहीं हूँ जो ऐसे ही उड़ जाउन्गा"

"देख तू उड़ नहीं तो मैं फिर से अपना हाथ काट लूँगा. फिर खून को देख कर तुझे उल्टी होगी... तू जब तक नही उड़ेगा मैं तब तक ऐसा ही करता रहूँगा"

"शट अप बिट्टू.. क्या बच्पना है... नहीं उड़ा जा रहा मेरे से मैं क्या करूँ"

"क्या मैं तुझे नीचे धक्का दूं?? अपने आप उड़ जाएगा"

"और अगर नही उड़ पाया तो?"

"तो यमराज आ के उड़ा लेगा तुझे" कहता हुआ बिट्टू हँसने लग गया.

"तुझे हर वक़्त मज़ाक ही क्यूँ सूझता है यार? चल बहुत ठंड लग रही है, अंदर चलते हैं" असल में बात यह थी कि रोहित बिट्टू के सामने उड़ना नही चाहता था. वो नहीं चाहता था कि बिट्टू को पता लगे कि वो भी एक आम इंसान नही है. बिट्टू की हरकतें उसे अभी भी कोई ट्रिक लग रही थी. उससे नहीं लग रहा था कि बिट्टू अपनी उंगली काट रहा है. उसको लगा शायद वो कोई नयी ट्रिक सीख के आया है और उसको मूरख बना रहा है... "वैसे बिट्टू तू है कौन सी जगह से" रोहित ने पूछा तो पाया कि बिट्टू उसके पास नही है. उसने पीछे मूड के देखा तो बिट्टू छत की एड्ज पे खड़ा नीचे देख रहा था

"रोहित तेरे को पता है कि अगर मैं यहाँ से कूद गया, तो नीचे गिर के मुझे कुछ नही होगा"

"बिट्टू फालतू के काम मत कर और चुप चाप नीचे चल"

"अर्रे मैं सच कह रहा हूँ. यह देख" कह कर बिट्टू ने छलाँग मार दी

"बिट्टू...." रोहित ज़ोर से चिल्लाया और उसके पीछे दौड़ा. बिट्टू नीचे गिर रहा था. उसकी आँखें बंद थी. जब काफ़ी देर तक वो ज़मीन से नही टकराया तो उसने अपनी आँखें खोली

"हे हे हे.. उड़ गये ना फिर तुम. चलो मुझे वहाँ ले कर चलो" बिट्टू ने इशारा करते हुए कहा

"दिमाग़ खराब है तेरा बिट्टू. कहते हुए रोहित उसे ले कर वापस छत की तरफ बढ़ा"

"कसम है तुम्हें अपने प्यार करने वालों की रोहित, मुझे वहाँ ले कर चलो" बिट्टू ने फिर इशारा करते हुए कहा

"क्या है वहाँ बिट्टू जिस के लिए तू अपनी जान तक पे खेल गया"

"मेरी जान है वहाँ. आज ही कॉलेज के डेटबेस में हॅक करके उसका अड्रेस निकाला है. चल ले चल ना यार. एक पल भी नही रहा जाता अब उसको देखे बिना."


"पागल हो गया है तू बिट्टू."

"हां हो तो गया हूँ. लेकिन थोड़ा सा. चल उस बिल्डिंग के आगे से राइट टर्न ले लेना... और हां थोड़ा उपर उड़ ताकि कोई हमें देख ना ले" बिट्टू ने उसे गाइड करते हुए कहा

"बिट्टू मेरे से और नही उड़ा जा रहा बिट्टू. मैं थक गया हूँ"

"अर्रे बस पहुँच गये मेरे यार. होसला रख"

"अबे होसला क्या रख साले. गधा हूँ मैं जो मेरी पीठ पर इतना भारी समान लाद दिया"

"अर्रे तू मुझे समान मत कह. चल मैं तेरा मनोबल बढ़ाता हूँ गाना गा के"

"अबे बकवास मत कर.."

"तू जहाँ, जहाँ रहेगा, मेरा साया साथ होगा...."

"अबे यह क्या गाने गा रहा है... इससे कोई मनोबल उठेगा क्या"

"अबे बहुत हिट गाना है अपने टाइम का. कोई ममता कुलकर्णी का रापचिक आइटम सुनाऊं क्या"

"बिट्टू मेरे से सच में ... नही.. हो रहा" कहते हुए रोहित ने झट से नीचे हो कर छत का एंड पकड़ लिया और उसपे लटक के उपर खिच गया. अब बिट्टू बेचारे को पता भी नही था कि ऐसा होने वाला है. वो मज़े से रोहित की पीठ पे लदा हुआ था और कि अचानक से रुक जाने के कारण धम्म से उसकी पीठ से नीचे गिरा. कम से कम 10 मीटर की उचाई से वो नीचे गिरा.

"कौन है वहाँ..."घर के अंदर से आवाज़ आई. बिट्टू की आँखों के सामने तारे नाच रहे थे. सर पे चोट ज़ोर की लगी थी. थोड़ी देर ऐसे ही पड़ा रहा फिर खड़ा हो गया. "कौन है वहाँ, बाहर निकलो" फिर वो आवाज़ आई. बिट्टू को लगा कहीं वो आदमी गोली वोलि ना चला दे तो चुप चाप बाहर निकल गया.

"जी मैं बिट्टू हूँ. कोई चोर नही है. हाथ मेरे उपर ही हैं. प्लीज़ गोली मत चलना"

"यह तुम उपर से कहाँ से गिर रहे थे ??"

"जी मैने सोचा संतरे का पेड़ है. मूड हो रहा था खाने का तो चाढ़ गया"

"पर यह संतरे का पेड़ नही है"

"हां. उसपे तो बॅलेन्स की आदत है. ये कोई और पेड़ है इसलिए नीचे गिर गया. आप गोली मत चलाना"

"मेरे हाथ में बंदूक नही टॉर्च है. घर का फ्यूज़ उड़ गया है. वोही चेक करने आया था. तुम्हें फ्यूज़ ठीक करना आता है"

"अर्रे बिल्कुल आता है. मैने तो फ्यूज़ में ही पला बढ़ा हूँ. दिखाओ इधर" बिट्टू ने चैन की सास ली और लगा फ्यूज़ देखने.

"यह तो पूरा पिघल गया है.. नया लेना पड़ेगा सर जी आपको"

"अब इतनी रात में नया कहाँ से लाउ... यह तो कल सुबह ही हो सकता है अब.. लगता है रात अंधेरे में ही काटनी पड़ेगी"

"अर्रे हॅव नो फियर व्हेन बिट्टू ईज़ हियर... मैं डाइरेक्ट कनेक्षन कर देता हूँ.. मीटर की तार निकाल के... बहुत किया है गाओं में... लेकिन सुबह ठीक कर देना. गाओं में चलता था.. यहाँ किसी को पता चल गया तो कहीं फासी ना हो जाए"

"हां हां कर दूँगा. तुम लगाओ तो सही"

"अर्रे आप टॉर्च की लाइट मारो तो सही, ऐसे थोड़े लगेगा." बिट्टू ने कहा और लग गया काम में. 5 मिनिट में घर में बत्ती आ गयी. "लो जी हो गया. आप भी क्या याद रखोगे. घर मे संतरा है क्या?? मूड कर रहा है थोड़ा"

"हां हां अभी ला देता हूँ. अंदर ही क्यूँ नही आ जाते."

"अर्रे वाह आप तो बड़े बहादुर हो. किसी अंजान लड़के को ऐसे ही घर में घुसा दोगे संतरे के लिए..."

"शकल से तुम वैसे ज़्यादे बड़े चोर नही लगते.. और घर में मेरे पास बंदूक भी है" हँसते हुए उस आदमी ने कहा.."आ जाओ अंदर"

"संतरे के लिए तो मैं छत से कूद जाउ, यह घर में आना कौन सी बड़ी बात है.. चलिए... आज आपके घर का संतरा भी चख ही लेते हैं" बिट्टू ने कहा और पीछे पीछे हो लिया.
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Re: परदेसी

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अंदर से घर बहुत आलीशान था. ऐसा हर बिट्टू ने अपने गाओं में कभी नही देखा था. वॉल टू वॉल कार्पेटिंग, सेंट्रली टेंपरेचर कंट्रोल्ड, महनगा फर्निचर.. यह पार्टी तो सच मुच मालदार लगती थी. वो अभी घर की खूबसूरती निहार ही रहा था कि उसकी नज़र एक बड़ी सी फोटू पे पड़ी. फॅमिली पोर्ट्रेट था. वो आदमी, उसकी बीवी और दिया. "वाह रे उपर वाले.. भला हो तेरा... टपकाया भी तो सीधा मेरी माशूका की गोद में" उसने सोचा और इधर उधर देखने लग गया कि शायद दिया कहीं दिख जाए.
"क्या देख रहे हो मियाँ.. कहीं सच में कोई चोरी का इरादा तो नहीं..."

"अर्रे नहीं जी... मैं देख रहा था कि मेज़ पे एक प्लेट पड़ी है खाने की और घर में आपके सिवा कोई भी नहीं है..."

"मेरी वाइफ सो गयी है. बेटी का मूड थोड़ा ठीक नही है, तो उसने खाया नहीं.. मुझे तो वैसे ही कम नींद आती है... कुछ पियोगे"

"जी संतरे का जूस है क्या..."

"यह क्या संतरा संतरा लगा रखा है.. संतरा ना हुआ हीरा हो गया... कुछ बियर वगेरह पीयोगे?"

"अर्रे नही सर.. इतनी ठंड में बियर पी के कहाँ जाउन्गा... चलो आप इन्सिस्ट करते हो तो... विस्की है क्या.."

"हां हां क्यूँ नही... रोज़ अकेला पीता हूँ.. आज तुम्हारा साथ मिल गया..." कहते हुए अंकल ग्लास और दारू लेने चले गये और बिट्टू फिर इधर उधर देखने लग गया

दिया का भी भूख के मारे बुरा हाल था. जोश में वो खाना छोड़ के तो आ गयी थी, पर अब उसको भूख लगी थी. वो बिस्तर से उठी और सीडीयों की तरफ चल पड़ी डाइनिंग एरिया में जाने के लिए. उसका रूम 1स्ट फ्लोर पे था. वो जैसे ही सीडीयों के पास पहुँची उसको किसी की आवाज़ आई नीचे से उसके पापा से बात करते हुए. वो सोचने लगी कि इतनी रात में कौन आ गया है. उसने थोड़ी सी बातें सुनी तो उसको वो आवाज़ जानी पहचानी सी लगी .. कहीं यह..... वो फटाफट से नीचे उतरी और सच में बिट्टू वहाँ खड़ा हुआ था... उसको देख के अजीब से हँसी हँस रहा था. दिया भी उस को देखती रह गयी.. कैसा लड़का है.. यहाँ तक पहुँच गया .. वो उसे देख कर बस सोचती रही

"तुम यहाँ कैसे आ गये"

"उड़ के आया हूँ. खीच लाई तुम"

"तुम्हें यहाँ का अड्रेस किसने दिया"

"भगवान की कृपा है मेडम"

"तुम अंदर कैसे घुस गये?"

"संतरे का कमाल मेडम संतरे का कमाल.. तुम क्या जानो कितनी महान चीज़ है संतरा... अर्रे अंकल आप रहने दो अब.. मेरा हो गया..."

"क्या हो गया बेटा.." अंकल हाथ में 2 ग्लास ले कर आ गये थे. "अर्रे आप भी यहाँ है.. गुस्सा हो गया ठंडा.. इनसे मिलो.. यह हैं... यह हैं..."


"बिट्टू जी.. बिट्टू नाम है मेरा. बताया था ना आपको.. शायद बंदूक के डर से ज़ोर से नही बोला था.. वैसे हम दोनो मिल चुके हैं"

"मिल चुके हो... कहाँ??"

"पापा मैने बताया था ना कि हेलिकॉप्टर में 4 लोग थे.. यह भी उनमें से एक है" दिया बोली.

"वेरी इंट्रेस्टिंग... बैठो बिट्टू... कौन कौन है तुम्हारे घर में"

"रहने दो पापा.. यह एक बार शुरू हो गया तो फिर इसका बंद होना मुश्किल है.. रात बहुत हो गयी है.. आप सो जाओ..."

"हा हा हा.. सीधा क्यूँ नही कहती बेटी कि तुम्हें अकेले वक़्त बिताना है इसके साथ.. तुम्हारा बाप हूँ.. बुढ्ढा हो गया हूँ लेकिन थोड़ी बहुत अकल है अभी भी मुझमें" कहते हुए अंकल उठे और अपने रूम में चले गये

"देखो भगा दिया पापा को.. कैसी बेटी हो तुम" बिट्टू ने एक ही सास में सारी विस्की हलक से उतारते हुए कहा

"रहने दो तुम इन बातों को.. और यह बताओ कि यहाँ तक पहुँचे कैसे."

"मैं और रोहित घूमते घूमते आ गये थे."

"उस खड़ूस को साथ लाए हो?"

"अर्रे अच्छा आदमी है वो भी... उस दिन थोड़ा रिज़र्व्ड था, बट दिल का बहुत अच्छा है... मेरी तरह"

"तुम्हारे से तो हर कोई अच्छा होगा... पीछा करते करते यहाँ तक आ गये"

"अर्रे यह तो उपर वाले की मेहेरबानी है... और वैसे भी अब तो हमारी कॉफी डेट पक्की है... कल चलें"

"अर्रे इतनी ठंड में कॉफी की याद मत दिलाओ... "

"ओ तेरी.. ठंड से याद आया.. रोहित तो बाहर ही रह गया..."

"कितने बड़े गधे हो तुम, अंदर ले आओ उसे. कुलफी जाम गयी होगी उसकी तो" दिया ने हँसते हुए कहा
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Re: परदेसी

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बिट्टू बाहर गया और इधर उधर देखा. रोहित का कहीं नामोनिशान नही था. उसने इधर उधर काफ़ी ढूँढा पर रोहित कहीं दिख नही रहा था. वो वापस अंदर गया और बहाना बना के दिया को छत पर ले गया. उसे लगा कि रोहित वहाँ होगा लेकिन वहाँ भी और कोई नही था

"कहाँ चला गया रोहित."
"अर्रे छत पे कहाँ ढूँढ रहे हो उसे?? आसमान से टपके थे क्या तुम लोग"
"टपके तो थे. पर उसको यहीं कहीं होना चाहिए"
"उसको फोन कर के क्यूँ नही पूछ लेते कि वो कहाँ है"
"अर्रे हां. काफ़ी इंटेलिजेंट हो तुम. फोन तो कर ही सकते हैं. अपना फोन दो. मेरे में बॅलेन्स कम है" दिया नीचे अपना फोन लेने चली गयी और बिट्टू छत पे घूमता रहा
"अर्रे पापा. आप क्यूँ ग्लास उठा रहे हो... मैं उठा दूँगी ना"
"अर्रे बेटा कुछ नही होता. वैसे भी मुझे नींद नही आ रही. तुम एंजाय करो" उसके पापा ने कहा. अगर दिया थोड़ी देर और रुकती तो देखती कि उसके पापा वो ग्लास डिश वॉशर में डालने की बजाए अपनी बेसमेंट की लॅबोरेटरी में ले गये हैं.

"लो. ले लो फोन... कंगाल कहीं के" बिट्टू को फोन देते हुए दिया बोली.

"अर्रे कंगाल नही हूँ. बस थोड़ा बुरे दौर से गुज़र रहा हूँ. और तुम्हारे सामने तो पूरी दुनिया ही कॅंगाल है. इतनी अमीरी मैने देखी नहीं है किसी पे"

"चुप रहो और फोन लगाओ"

"अर्रे फोन कहाँ भागा जा रहा है. अच्छा ही है कि रोहित यहाँ नहीं है. कम से कम हमे थोड़ा टाइम अकेले में बिताने का मौका तो मिला"

"तुम्हें क्यूँ अकेले में मेरे साथ टाइम बिताना है? मुझे कोई ऐसी-वैसी लड़की मत समझना"

"अर्रे तुम्हें मैं अगर ऐसी वैसी लड़की समझता तो सीधा तुम्हारे बिस्तर पे आता, छत पे नही"

"शट अप और फोन लगाओ..."

"लगा रहा हूँ. जितनी मुझे रोहित की चिंता नही है, उससे कहीं ज़्यादा तुम्हें लग रही है... कुछ है तो बता दो... रास्ते से हटा दूँगा उसको"

"उफ्फ तुम कितना बोलते हो.."

"ह्म्म लेकिन अच्छा बोलता हूँ ना... हेलो.." कॉल लग गयी थी "अबे कहाँ है बे... मुझे यहाँ छोड़ के कहाँ भाग गया"

"मेरी हालत ठीक नही है बिट्टू. बहुत वीकनेस लग रही है. तुम्हें वापस उठाने की हिम्मत नही थी मेरे में.. और वैसे भी मुझे लगा कि तुम्हारा कोई प्रॉब्लम हो गया है मकान मालिक के साथ, इसलिए मैने वहाँ रुकना मुनासिब नही समझा"

"वाह.. दोस्त को प्राब्लम में देख के भाग गया... तुझसे आ के निपट-ता हूँ. कहाँ है अभी"

"रास्ते में ही थोड़ा रेस्ट कर रहा हूँ.. उड़ा नही जा रहा... सब तेरी वजह से हुआ.. शायद रास्ता भी भूल गया हूँ मैं.. किसने कहा था तुझे इतना ठूँसने को"

"अबे फोन धर अब... आके तेरा हिसाब किताब क्लियर करता हूँ मैं" कहते हुए बिट्टू ने फोन वापस दिया को दे दिया "कैसे बंद करते हैं इसे... फोन है या करमफूटर"

"तुम्हें यहाँ का अड्रेस मिला कैसे ? सच सच बताना..." दिया ने फोन लेते हुए कहा

"देखो दिया.. मैने इस बात को छुपा के नहीं रखा है कि तुम मुझे अच्छी लगती हो. अब मैं उन लोगों में से नही हूँ जो भगवान की मर्ज़ी प्रकट होने का इंतेज़ार करते रहें. मुझे तुमसे मिलना था, मैने अड्रेस ढूँढ लिया और टपक पड़ा. डीटेल्स में क्यूँ जाना है तुम्हें"

"तुम्हें पता है तुम कितने अजीब हो..."

"हां मैं अजीब ही सही दिया.. लेकिन मुझे लगता है कि तुम्हें मुझे एक मौका देना चाहिए. एक बार मेरे साथ होके देखो. अगर तुम्हें मैं पसंद नही आया, बस एक बार बोलने भर की देर है.. मैं कभी तुमसे बात नही करूँगा"

"बिट्टू इतनी जल्दी मैं ऐसा डिसिशन नही ले सकती. यह हमारी दूसरी मुलाक़ात है बस. तो मैं कैसे तुम्हें इतनी जल्दी जड्ज कर सकती हूँ. थोड़ा टाइम दो, सब ठीक हो जाएगा."

"ओके.. चलो रोमॅंटिक बातें करते हैं.."

"व्हाट....."

"वो चाँद देख रही हो..."

"यार अब यह चाँद तारों की बोरिंग बातें मत करना..."

"बोरिंग??"

"हां मैं जानती हूँ कि तुम अब कहोगे कि मैं चाँद की तरह हूँ, उसपे दाग है, मुझपे नहीं एट्सेटरा एट्सेटरा"

"अर्रे चाँद को तो लोगों ने ऐसे ही मशहूर कर रखा है.. क्या सुंदर है उसमें ?? अपनी रोशनी तक नही है उसके पास. सूरज की उधार ले कर धरती को रोशन करता है. तुम्हें चाँद से कंपेर करना तुम्हारी सुंदरता की बदनामी करना होगा दिया.."

"हा हा हा... तुम तो बिल्कुल फिल्मी हो बिट्टू... मुझे नही पता था कि तुम ऐसी बातें भी कर सकते हो"

" हा हा हा... सीख के आया था यह डाइलॉग... वैसे चाँद को देखना हो तो कभी हमारे खेत से देखो, गन्ने चूस्ते हुए... ऐसा लगता है कि हम किसी और दुनिया में हैं... जहाँ सिर्फ़ हम और चाँद. जब बहुत टेन्षन में होता हूँ, तो मैं यही करता हूँ"

" कभी इंडिया आई तो ज़रूर तुम्हारे खेत आउन्गि.."

" बहुत बढ़िया.. वहाँ तुम्हें हॅपी से भी मिल्वाउन्गा. बहुत अच्छा दोस्त है मेरा. मेरे दिल, जिगर, फेफड़ा, अंडकोष - सक का टुकड़ा है वो"

"छी..."
"ओह सॉरी.. में थोड़ा जज़्बात में बह गया था...."

"बिट्टू मुझे नींद आ रही है"

"तो मेरे कंधे पे सर रख के सो जाओ... कसम वाहे गुरु की.. ऐसी नींद कभी नही आई होगी तुमको."

"शट अप बिट्टू. रात बहुत हो चुकी है. अब तुम्हें भी जाना चाहिए."

"ना... मुझे तो ऐसा नही लगता... मुझे लगता है यह रात सिर्फ़ इसलिए बनी है कि हम दोनो एक दूसरे को जान पाए"

" अब मैं जा रही हू सोने.. तुम्हें जो करना है करो..."

" मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूँ.."

"शट अप..."

"मतलब है नीचे तक...यहाँ से कूद के तो नीचे उतरून्गा नहीं..."
" हां चलो.."
" पहले अपना फोन तो दो"
" अब क्या करना है?"
" एक मिस कॉल मारूँगा अपने नंबर पे और एक कॉल कॅब कंपनी को. मैं नहीं चाहता कि तुम्हारे ख़याल दिमाग़ में रख कर मैं इतनी दूर पैदल जाऊं"
" यह लो"

बिट्टू ने कॅब कंपनी को कॉल किया तो मेसेज मिला के 15 मिनिट में कॅब पहुँच जाएगी. उसने दिया का नंबर अपने सेल में स्टोर किया और उसके साथ नीचे चल पड़ा
"यह नीचे की लाइट क्यूँ जल रही है.."
"पापा की लॅब है नीचे.. कुछ कर रहे होंगे.."
" अंकल डॉक्टर हैं?"
" नहीं साइंटिस्ट हैं.."
" क्या फरक पड़ता है... कोट तो दोनो ही पहनते हैं... चलो तुम भी जा के सो जाओ. मैं अंकल को बाइ करके निकलता हूँ"

" ओके... गुड नाइट... कॉलेज में मुलाक़ात होगी.."

"हां.. कॉलेज में शायद मुलाक़ात हो जाए.." बिट्टू ने कहा और विदा ले कर नीचे चला गया "क्या कर रहे हो अंकल"

" कुछ नही बेटा... ऐसे ही थोड़ा रिसर्च कर रहा था.."

"इतनी रात में काम... बहुत ज़रूरी है क्या..."

" काफ़ी स्ट्रेंज पज़्ज़ील है.. सुलझाने की कोशिश कर रहा हूँ... वैसे तुम्हारे घर में और कौन कौन है...."

" माँ बाप है... रिश्ते की बात करनी है तो उनका नंबर ले लेना..." कहते हुए बिट्टू हँसने लगा "वैसे मैं सिर्फ़ बाइ बोलने आया था. मैं जा रहा हूँ. आउन्गा कभी. फिर बता दूँगा सारी फॅमिली हिस्टरी आप को.. गुड नाइट"

" गुड नाइट बेटा.. आते रहना.. अपना ही घर समझना इसे"

" मेरे तो 2 घर आ जाएँगे यहाँ... थॅंक यू" कहते हुए बिट्टू बाहर निकल गया. टॅक्सी आ गयी तही. वो उसमें बैठ गया और उसको हॉस्टिल का अड्रेस दे दिया

रोहित ने फोन रखा तो वो बहुत हाफ़ रहा था. एक जगह से दूसरी जगह उड़ के जाने में सच मुच उसकी बहुत एनर्जी खरच हो रही थी. उसको लग रहा था कि वो अभी नही उड़ पाएगा और. वो थोड़ी देर छत पे बैठ कर अपनी एनर्जी रिस्टोर करने लगा. अब खाली बैठा है तो उल्टे सीधे ख़याल तो आएँगे ही. वो सोचने लगा कि इतनी बड़ी दुनिया, 19 साल में आज तक उसने एक भी आदमी नही देखा था जिसके पास सूपरहीरो पवर्स हो. अब ना सिर्फ़ उसके पास पवर्स थी, पर बिट्टू के पास भी थी. क्या यह सिर्फ़ लक है कि 4 अजनबी प्लेन क्रॅश में बच गये और एक अंजान हेलिकॉप्टर में सेफ्ली अपनी डेस्टिनेशन पर पहुँचाए गये. क्या यह लक ही है कि उन चार में से 2 लोगों के पास वो पवर्स हैं... रोहित का रॅशनल दिमाग़ यह मान-ने को तय्यार नही था कि यह सब लक या कोयिन्सिडेन्स है. हो ना हो, कुछ कनेक्षन तो है हम चारों में - वो ऐसा सोचने लगा.
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Re: परदेसी

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जितना ज़्यादा वो सोच रहा था, उतना ही ज़्यादा उसे यकीन हो रहा था कि वो सही है. क्या कनेक्षन है, वो नही समझ पा रहा था, लेकिन कनेक्षन है ज़रूर यह उसने डिसाइड कर लिया. "तो अगर बिट्टू और मेरे पास पवर्स हैं, तो हो ना हो दिया और तान्या के पास भी पवर्स होंगी. और कितने लोग हैं जिनके पास यह पवर्स हैं ?? क्यूँ यह पवर्स हमारे पास हैं?? क्या रणवीर और सोनिया जानते हैं हमारी पवर्स के बारे में या वो भी सिर्फ़ एक मोहरा ही हैं ?? क्या हमारे घर वालों को पता है कि हम नॉर्मल नहीं है ??" ऐसा वो सोचता ही रहा काफ़ी देर तक. जितनी देर वो सोचता, सल्यूशन उससे उतना ही दूर भागता. अब तो उसके दिमाग़ ने भी इस पेचीदा प्राब्लम के आगे घुटने टेक दिए. उसका सर ज़ोर से दुखने लगा. वो खड़ा हो गया और सोचा कि अब वापस हॉस्टिल जाना चाहिए. तभी उसकी नज़र नीचे गयी

नीचे गली में एक लड़की अकेली जा रही थी. उसके हाथ में पर्स और कुछ सामान था. गली बिल्कुल सुनसान थी और वो लड़की भी आराम से चले जा रही थी. शायद उसने थोड़ी पी हुई थी क्यूंकी उसकी चाल रह रह कर एक ग़लत कदम लेती थी. तभी एक आदमी उस लड़की के पास आया और उसका बॅग छीन के भागने लगा. रोहित पहले से ही सूपरहीरो की तरह फील कर रहा था. अब तो उसका सूपरमन बनने का टाइम आ ही गया था. उसने आव देखा ना ताव, बिल्डिंग से नीचे कूद गया और उड़ता हुआ उस आदमी से जा टकराया और आदमी और बॅग लेकर आगे उड़ गया. थोड़ा दूर चलने पर उसने आदमी को छोड़ दिया जो रोड पे गिर गया. रोहित भी नीचे उतर आया और आदमी को जा के 2 पंच मार दिए. वो दर्द से कराह रहा था. शायद उसकी टाँग टूट गयी थी. फिर किसी हीरो की तरह रोहित वापस मुड़ा और उस लड़की की तरफ चलने लगा. उसको लगा कि उड़ के जाने से थोड़ी ज़्यादा हीरोगिरी हो जाएगी.

वो अभी 10-12 कदम ही चला था कि ज़ोर से गोली चलने की आवाज़ आई. उसके हाथ से वो बॅग छूट गया और कंधे में तेज़ दर्द होने लग गया. उसने अपना बाया हाथ जब दायें कंधे पे रखा तो उससे कुछ चिपचिपा सा महसूस हुआ. उसने गौर से देखा तो उसके कंधे में से खून निकल रहा था. उस का सर चकराने लगा और वो नीचे गिर गया. गिरते हुए उसने देखा कि सामने से वो लड़की भागी हुई उसके पास आ रही है और साइड से 4 बदमाश और आ रहे हैं.

उसने उठने की कोशिश करी पर उठ ना सका. उड़ने की कोशिश करी पर कंधे में दर्द होने के कारण वहाँ भी कॉन्सेंट्रेट ना कर पाया. तभी वो लड़की उसके पास आ गयी

"ओह माइ गॉड... रोहित.. क्या ज़रूरत थी यह करने की"

"तान्या... वो.. गन... वहाँ... 4.." रोहित के मूह से शब्द भी नही निकल रहे थे. तान्या ने तभी देखा कि 4 और बदमाश टाइप लोग पीछे से आ के उन दोनो को घेरने लगे. 2 और लोग जा कर उस गिरे हुए गुंडे की मदद करने लगे.

"देखो जो तुम्हें चाहिए, तुम ले लो. बस हमे छोड़ दो"

"तुम्हारे साथी ने हमारे आदमी को चोट पहुँचाई है... अब तो हम तुम दोनो को ऐसे नही जाने दे सकते. तुम्हारा सारा समान तो हम लूटेंगे ही, साथ में तुम्हारी जान भी लेंगे... पता चला कल को पोलीस ले कर आ गये तुम दोनो हमारी पहचान करने"

"ऐसा कुछ नही होगा, मैं वादा करती हूँ.. ऐसा कुछ नही होगा"

"हाहाहा.. पता नहीं क्यूँ तुम्हारे वादे पे यकीन नही आता... पहले इसको मारूँगा.. फिर हम लोग तेरी इज़्ज़त लूटेंगे, फिर तू मरेगी... पकड़ लो इन दोनों को और ले चलो अड्डे पे" लगभग साडे 6 फीट की हाइट वाले उस बंदे ने बोला. बोलने के तरीके से वो इन लोगों का बॉस लग रहा था.

"बॉस लड़के का एक्सट्रा बोझ क्यूँ उठा के चलें? इसे यहीं पे मार के छोड़ देते हैं... अपने आप कल किसी को मिल जाएगी बॉडी" एक बंदे ने बोला

"बात तो तेरी ठीक है. चल इसको यहीं पर ख़तम कर देते हैं" कहते हुए बॉस ने उंगली ट्रिग्गर पर रख दी... वो ट्रिग्गर दबाना चाह रहा था पर दबा नही पा रहा था अपना पूरा ज़ोर लगाने पर भी.

"मैने तुम्हें बोला था कि हमे छोड़ दो... तुम्हें मेरी बात मान लेनी चाहिए थी... अब बहुत देर हो गयी..." तान्या ने कहा

उस बॉस ने देखा कि उसके तीनो आदमी जो तान्या को पकड़े हुए थे, अगले ही पल उड़ के अलग अलग दिशाओं में जा गिरे. उसने हड़बड़ा के गन तान्या के उपर तान दी लेकिन अभी भी उससे ट्रिग्गर नही दब रहा था... "तूने कहा था ना कि अगर तूने हमे ज़िंदा छोड़ दिया तो तुझे डर है कि हम कल को तुझे पहचान लेंगे... मुझे भी इसी बात का डर है... इसलिए मैं तुम्हें ज़िंदा नही छोड़ सकती" तान्या बोली और इशारे से ही "बॉस" को हवा में उठा लिया. डर के मारे उस आदमी का बुरा हाल हो रहा था. वो समझ नही पा रहा था कि आज किस से टकरा गया है. लेकिन इतना समझ गया था कि आज उसका बच निकलना असंभव था. मौत उसको अपने सर पर तांडव करती हुई दिख रही थी... एक तेज़ चुभन उसको हुई और फिर कुछ भी महसूस होना बंद गया.

तान्या ने उस निर्जीव शरीर को दूर फेंका और बाकी तीनो के उपर कॉन्सेंट्रेट करने लग गयी. वो सोचने लगी कि ऐसा क्या किया जाए कि किसी को शक ना हो कि यह मर्डर है... एक पल में ही उससे आइडिया आ गया... उसने एक एक कर के उन सब आदमियों को हवा में उठा लिया... वो उनको तब तक उड़ाती रही जब तक वो बिल्डिंग की हाइट तक नही पहुँच गये. फिर उसने एक एक कर के उन तीनो को रिलीस कर दिया. इतनी उँचाई से ज़मीन पर टकराते ही उनके सर से खून का फव्वारा छूटने लगा और भेजा इधर उधर गिर गया.

वो बाकी बचे 3 लोगों को ढूँढ रही थी कि तभी पोलीस साइरन की ज़ोर ज़ोर से आवाज़ आने लगी. उसकी पहली इन्स्टिंक्ट थी कि अपना सारा समान उठा के भाग जाए. लेकिन तभी उसने सोचा कि उसको रोहित को ऐसे छोड़ कर नही जाना चाहिए. क्या पता इसने क्या देखा है और पोलीस के सामने क्या बक दे... और तो और, यह धोखा नही था कि तान्या को लगा कि रोहित बिल्डिंग के उपर से कूदा और उड़ कर उस आदमी से जा टकराया. उसने इधर उधर नज़र दौड़ाई तो एक पार्क्ड कार दिखी... उसने अपनी पवर से उसके डोर्स खोलें और रोहित को उसके अंदर डाल दिया... फिर उसने अपना सारा सामान समेट के कार में रखा.. यह सब करने में उसको सिर्फ़ 2 पल ही लगे थे. कार में बैठ कर उसने देखा कि उसमें चाबी नही है, और होती भी क्यूँ... उसने फटाफट से कार को हॉटवाइर किया और फुल स्पीड में वहाँ से निकल गयी...

10 मिनिट तक 100अंपेच की स्पीड से चलाने के बाद ही उसे साँस आई... अब वो सोचने लगी कि आगे क्या किया जाए. रोहित को वो हॉस्पिटल ले कर जा नही सकती थी. वहाँ पे उसको बहुत सारे सवालों का जवाब देना पड़ता. उस ने डिसाइड किया कि वो उसको अपनी आंटी के यहाँ ले जाएगी. आंटी और अंकल छुट्टियाँ के लिए बाहर गये हैं तो घर पे कोई होगा नहीं, और चाबी तान्या के पास थी ही... उसको यह आइडिया बहुत ही अच्छा लगा और उसने वो गाड़ी घुमा ली... थोड़ी और दूर जाने पर उसे रियलाइज़ हुआ कि यह कार चोरी की है और जीपीआरएस से आराम से ट्रॅक किया जा सकता है और इन दोनों को पकड़ा भी जा सकता है. यह ख़याल दिमाग़ में आते ही उसने कार एक जगह पार्क कर दी. फिर उसने एक टॅक्सी ली और रोहित को किसी तरह से उसमें लादा. थोड़ी ही दूर जाने पर उसने चोरी की कार में भी आग लगा दी ताकि पोलीस चाह के भी उस तक ना पहुँच पाए. वो इतने सालों से क्राइम वर्ल्ड में आक्टिव थी कि यह सारी सावधानियाँ बरतना उसके लिए नॅचुरल हो गया था
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Re: परदेसी

Post by Sexi Rebel »

तान्या ने रोहित को घर में ले जा कर सीधा बाथ टब में बैठा दिया और उसका घाव धोने लगी. रोहित बेहोश ही था. शायद खून ज़्यादा बह जाने के कारण. तान्या ने आंटिसेपटिक ढूँढा और रोहित के घाव को सॉफ करने लगी और उसके बाद अच्छी तरह से पट्टी कर दी. अब रोहित बीच बीच में कुछ बोल रहा था लेकिन तान्या के समझ में नही आ रहा था कि वो बोल क्या रहा है. रोहित का जिस्म बुखार से तप रहा था. तान्या ने उसको एक पेरासीटामोल और एक पेन किल्लर भी दे दी और उसको बिस्तर पे लेटा दिया. तान्या को टेन्षन हो रही थी कि कहीं रोहित को कुछ हो ना जाए. वैसे तो रोहित से उसका कोई लेना देना नहीं था पर अगर उसको कुछ हो जाता है तो वो उम्र भर अपने आप को माफ़ नही कर पाएगी कि एक आदमी उसको बचाते हुए मारा गया. अगर वो पहले ही अपनी पवर से उस गुंडे को रोक लेती तो शायद रोहित नीचे ना कूद ता और अभी तक ठीक होता.

"पानी.. पानी" रोहित ने बुदबुडाया. तान्या झट से उसके लिए पानी ले आई और थोड़ा थोड़ा कर के उसको पिलाने लगी. थोड़ा सा पानी पी के रोहित फिर बेहोश हो गया. तान्या भी बिस्तर पर उसके पास ही लेट गयी और उसे कब नींद आ गयी, उसे पता ही नही चला. थोड़ी देर में उसकी नींद फोन की घंटी से टूटी. रोहित का फोन बज रहा था. उसने फोन निकाला तो देखा बिट्टू का कॉल है. वो सोचने लगी कि फोन उठाया जाए या नहीं कि तभी फोन कट गया. एक पल बाद वापस फोन बजने लग गया बिट्टू के कॉल से. तान्या को लगा कि बिट्टू आराम से नही मानेगा इसलिए उसने फोन उठा ही लिया.

"अबे कहाँ है साले... मुझे वहाँ छोड़ कर खुद रफूचक्कर हो गया... अब दरवाज़ा नही खोल रहा"

"हेलो"
सामने से लड़की की आवाज़ सुनकर बिट्टू चौंक गया. "हाई. मैं बिट्टू बोल रहा हूँ. आप कौन" उसको लगा कि रॉंग नंबर है, पर जब लड़की सामने हो तो फोन क्यूँ रखा जाए.

"रॉंग नंबर" तान्या बोली

"अच्छा ठीक है रॉंग नंबर है तो.. पैसा तो मेरा कट रहा है.. तुम अपना नाम तो बताओ"

"किससे बात करनी है तुम्हें?"

"मेडम अब नंबर आपका लगा है तो आप ही बात कर लो... "

"इतनी रात में तुम्हें कोई काम नही है?"

"काम तो तुम्हें भी नही लग रहा... ऐसे ही टाइम पास कर रही हो.. नाम बता देती तो ठीक होता"


"शट अप." कहके तान्या ने फोन काट दिया.

"यह कैसा नाम है... हेल्लू.. हेलो.... अबे फोन मत काटो यार... " जब सामने से फोन कट गया तो बिट्टू थोड़ा उदास सा हो गया... उसके साथ ही ऐसा क्यूँ होता है... क्या जा रहा था उस लड़की का थोड़ी देर बात करने में.... उसको लगा कि रोहित शायद सो रहा होगा, इसलिए वो भी अपने कमरे में जा कर सो गया.

सुबह जब बिट्टू उठा तो फिर लेट था. गनीमत थी कि वो रात को कपड़े बदले बिना सो गया था... तो वो फटाफट से टाय्लेट गया और मूह धो के, बॅग कंधे पे टाँग कर निकल पड़ा. बदक़िस्मती से जब वो कॉलेज पहुँचा तो क्लास स्टार्ट हो चुकी थी.

"एक्सक्यूस मी मॅम.. मे आइ एंटर?"

"नो यू मे नोट. रोज़ रोज़ लेट आने की आदत है क्या?"

"मॅम वो लूस मोशन लग गये हैं यहाँ के खाने से, इसलिए लेट हो गया" बिट्टू ने झूट बोला और सारी क्लास हंस पड़ी.

"शट अप. तुम्हें सिर्फ़ बहाने बनाना आता है... तुम मेरी क्लास में लेट नहीं घुस सकते. स्टे आउट"

"अर्रे मेडम थोड़ी तो दया करो. टाइम डिफरेन्स देखो इंडिया और कॅनडा का... इतनी जल्दी कैसे कोई आदमी अड्जस्ट हो सकता है?"

"बाकी लोग भी तो हैं... उन्हें तो कोई प्राब्लम नही हुई..."

"मेडम आज के लिए माफ़ कर दो प्ल्ज़"

"नो... स्टे आउट"

"मेडम प्ल्ज़"

"मेरी बात ध्यान से सुनो. इस लेक्चर में या तुम रहोगे, या मैं... जल्दी डिसाइड करो.."

"मेडम एक आइडिया है... आप स्लाइड्स को ऑटो टाइमर पे लगा दो.. मैं बैठ जाता हूँ, आप बाहर से लेक्चर देते रहना" जब बिट्टू ने देखा कि टीचर की आँखें गुस्से में लाल हो रही हैं तो "सॉरी आइ वाज़ जोकिंग.. जा रहा हूँ मैं" कह के वो निकल गया. उसने सोचा कि कॅंटीन में बैठ कर थोड़ा नाश्ता कर लेगा अगली क्लास तक.. वो कॅंटीन जा ही रहा था कि उसको सामने से दिया आती हुई दिखाई दी."हाई दिया क्या हाल चाल है... लेट हो गयी क्या?"

"नहीं.. मेरी क्लास शुरू होने में 10 मिनिट हैं.. क्लास के बाद मिलते हैं"

"आओ कॅंटीन चलते हैं." उसने दिया का हाथ पकड़ के कहा

"बिट्टू मेरी क्लास है. हाथ छोड़ो मेरा.. मुझे जाना है.. तुम क्लास में क्यूँ नही हो"

"अर्रे क्या रखा है ऐसी क्लास में.. उल्टा सीधा पढ़ा रही थी टीचर, उठ के बाहर आ गया मैं"

"मतलब तुम्हें बाहर निकाल दिया गया क्लास से"

"तुम्हारी कसम.. मुझे बाहर नही निकाला क्लास से"

"फिर तुम यहाँ क्या कर रहे हो.."

"मुझे क्लास में घुसने ही नही दिया.. आक्च्युयली टीचर मेरी नालेज से जलती है.. चलो ना कॅंटीन प्ल्ज़... थोड़ा साथ में रहेंगे... पढ़ाइयाँ तो होती रहेंगी" बिट्टू ने दिया को खीचते हुए बोला

"बिट्टू मैं क्लास मिस नही करूँगी. आइ म लीविंग."

"तुम्हारी क्लास 10 मिनिट पहले शुरू हो चुकी है.. मैने ही तुम्हारी फ्रेंड को कल बोला था तुम्हें ग़लत टाइम मेसेज करने को" बिट्टू ने अंधेरे में तीर छोड़ा

"व्हाट!!! तुम ऐसा कैसे कर सकते हो... कितनी इंपॉर्टेंट क्लास है पता है तुम्हें?"

"ना मुझे तो कुछ नही पता... मैं तो एक गवार आदमी हूँ जो अभी क्लास में ही बैठा है... रोने से कोई फ़ायदा नहीं. चलो कॅंटीन". दिया ने बिट्टू की बात का विश्वास कर लिया और दोनो गप्पे मारते हुए कॅंटीन की ओर चल दिए

"बिट्टू... बिट्टू को बुलाओ...." रोहित ने बदहवासी में बोला..

"क्या रोहित.. क्या हुआ..." तान्या की नींद टूटी और वो झट से रोहित के पास हो ली... उसने चेक किया तो रोहित का माथा एकदम गरम था. शायद दवाई ने असर नही किया था

"बिट्टू को यहाँ बुलाओ..."

"अर्रे क्या करेगा वो यहाँ आ कर.. और दिमाग़ खाएगा तुम्हारा. आइ विल मेक श्योर दट यू आर अलराइट" तान्या ने कहा

"बिट्टू को बुलाओ..." रोहित ने एक बार और बोला और बेहोश हो गया. तान्या सोचती रही कि क्या उसे बिट्टू को फोन करके बुलाना चाहिए या खुद ही रोहित की देखभाल करनी चाहिए. अंत में उसने डिसाइड किया कि बिट्टू को बुला ही लेना चाहिए. वो इन्सिडेंट में इन्वॉल्व्ड नही था और शायद आराम से रोहित को हॉस्पिटल ले जाए. यह सोचते ही उसने रोहित का फोन उठाया और बिट्टू को मिला दिया

"हां तो उस दिन रात को हॅपी ने ट्रॅक्टर चुरा लिया..." बिट्टू ने सॅंडविच का एक बड़ा बाइट लिया और दिया को किस्सा सुनाने लगा...तभी उसके फोन की घंटी बज गयी..."हां रोहित"

"दिस ईज़ तान्या.."

"ओह्ह.. कल रात को तुमने फोन उठाया था जब मैने कॉल किया था... तुम और रोहित...."

"रोहित का आक्सिडेंट हो गया है... यह अड्रेस लिखो और जल्दी से यहाँ पर पहुँच जाओ..."

"व्हाट... जल्दी दो अड्रेस. " बिट्टू जल्दी जल्दी अपनी कॉपी में अड्रेस नोट करने लगा और फोन रख दिया. "सॉरी दिया.. मुझे जाना पड़ेगा." उसने दिया को कारण बताना मुनासिब नही समझा.

"व्हाट डू यू मीन जाना पड़ेगा... तुमने मेरी क्लास मिस करवाई और अब तुम मुझे छोड़ के जा रहे हो??"

"मैने झूठ बोला था ऑलराइट... तुम्हारी क्लास शुरू होने में अभी भी 1 मिनिट रहता है... अगर तुम भाग के जाओगी तो पहुँच जाओगी.. मुझे अर्जेंट काम आ गया है... आइ हॅव टू रश..."

"व्हाट अन आस यू आर" दिया ने कहा और अपनी बुक्स उठा के क्लासरूम की तरफ भागी... बिट्टू भी भागते हुए मेन रोड तक पहुँचा और एक टॅक्सी ले कर, तान्या के बताए अड्रेस की तरफ रवाना हो गया
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