बीबी से प्यारी बहना
दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक और मस्त कहानी लेकर हाजिर हूँ जिसे पढ़ कर आपको बहुत मज़ा आएगा दोस्तो ये कहानी पाकिस्तानी पृष्ठभूमि की है और इस कहानी का ताना बाना पारवारिक पृष्ठभूमि पर बना हैं जिन दोस्तो को पारवारिक सेक्स की कहानियों से अरुचि होती हो वो कृपया इसे ना पढ़े . दोस्तो ये कहानी एक ऐसे भाई की है जिसे अपनी बीबी से ज़्यादा अपनी बहन पर ज़्यादा ऐतबार होता है दोस्तो ज़्यादा ना कहते हुए ये कहानी शुरू कर रहा हूँ और हमेशा की तरह आपसे उम्मीद करता हूँ आप मेरा हौंसला ज़रूर बढ़ाएँगे आपका दोस्त राज शर्मा
मेरा नाम वसीम है मेरा संबंध मुल्तान के एक छोटे से गांव से है मेरे घर में केवल 5 लोग हैं मैं मेरी अम्मी मेरे अब्बा जी और मेरी दो बहन हैं। पहले मेरी बड़ी बहन है जिसका नाम जमीला है वह शादीशुदा है और दो बच्चों की माँ है। फिर दूसरा नंबर मेरा है मेरी भी शादी हो चुकी है और अंत में मेरी छोटी बहन नबीला है जो अभी अविवाहित है। अब मैं मूल कहानी पर आता हूँ यह उन दिनों की बात है जब मैं मैट्रिक करके फ्री हुआ था और आगे पढ़ने के लिए मुल्तान शहर के एक कॉलेज में जाता था। मेरे अब्बा जी एक जमींदार थे हमारे पास अपनी 10 एकड़ जमीन थी .अब्बा जी एक छोटा भाई था आधी ज़मीन उसकी थी आधी मेरे अब्बा जी की थी मेरे अब्बा जी और चाचा अपने अपने हिस्से की जमीन पे खेती करते थे जिससे हमारे घर का गुज़ारा चलता था। जब मेरा कॉलेज का अंतिम वर्ष चल रहा था तो मेरे छोटे चाचा ने मेरे अब्बा जी को कहा कि वह जमीन बेचकर अपने परिवार के साथ लाहौर शहर में जाकर सेट होना चाहता है और अपनी बेटियों को शहर में ही अच्छा पढ़ाना चाहता है
मेरे चाचाकी केवल 2 बेटियां ही थीं, इसलिए वो अपने हिस्से की जमीन बेच देना चाहता है। मेरे अब्बा जी ने उसे बहुत समझाया और कहा कि यहाँ ही रहो यहाँ रहकर अपनी बेटियों को पढ़ा लो लेकिन अपनी ज़मीन मत बेचो लेकिन मेरा चाचा नहीं माना और आखिरकार मेरे अब्बा जी ने अपनी भी और चाचा की भी जमीन बेच दी और आधी राशि छोटे चाचा को दे दी और आधी राशि को बैंक में अपना खाता खुलवा कर जमा करा दिया और फिर एक दिन मेरा चाचा अपने परिवार के साथ लाहौर शहर चला गया। और मेरे अब्बा जी भी घर के होकर रह गए। मेरी बड़ी दीदी की उम्र 27 साल हो चुकी थी मेरे अब्बा जी ने जमीन के कुछ पैसों से बाजी की शादी कर दी मेरी बाजी की शादी भी अपने रिश्तेदारों में ही हो रही थी मेरी दीदी का मियां मेरी चाची का ही बेटा था। मैंने जब कॉलेज में बारहवीं जमात पास कर ली तो मेरे घर के हालात अब आगे पढ़ने की अनुमति नहीं देते थे। और मैंने भी अपने घर की स्थिति को ध्यान में रखते हुए अपने अब्बा जी पे बोझ बनना गवारा न किया और घर को संभालने का सोच लिया। मैं यहाँ वहाँ पे रोजगार के लिए बहुत हाथ पैर मारा लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। फिर मैंने बाहर के देश जाने का सोचा पहले तो मेरे अब्बा जी ने मना कर दिया लेकिन फिर मैंने उन्हें घर की स्थिति समझाकर राजी कर लिया और अब्बा जी के पास जो बाकी पैसे थे उन पैसों से मुझे बाहर सऊदी भेज दिया और में 22 साल की उम्र में ही रोजगार के लिए सऊदी चला गया। सऊदी आकर पहले तो मुझे बहुत मुश्किल साहनी पड़ी लेकिन फिर कोई 1 साल बाद यहां सेट हो गया मैंने यहाँ आकर ड्राइविंग सीख ली और फिर यहाँ पे ही टैक्सी चलाने लगा। शुरू-शुरू में मुझे टैक्सी के काम का इतना नहीं पता था लेकिन फिर धीरे धीरे मुझे पता चलता गया और मैं एक दिन में 14 घंटे लगातार टैक्सी चलाकर पैसे कमाता था। धीरे धीरे मेरी मेहनत से पाकिस्तान में मेरे घर के हालात ठीक होने लगे और लगभग 5 साल में 2 बार ही पाकिस्तान गया लेकिन इस मेहनत की वजह से मेरे घर के हालात काफी अधिक ठीक हो चुके थे
मैंने अपने घर को बहुत ज्यादा अच्छा और मजबूत बना लिया था हमारा घर एक मरले का था पहले वह एक हवेली नुमा घर ही था 3 कमरे और रसोई और बाथरूम ही था। फिर मैंने सऊदी में रहकर पहले अपने घर को ठीक किया अब वह हवेली नुमा घर पूरा घर बन गया था हमने उसे तोड़ कर 2 स्टोरी वाला घर बना लिया पहली स्टोरी पे 3 ही कमरे थे और दूसरी स्टोरी पे 2 और कमरे बाथरूम और किचन बना लिए थे। मुझे सऊदी में काम करते हुए कोई 6 साल हो चुके थे लेकिन मेरी उम्र 28 साल थी तो मेरे अब्बा जी ने मेरी शादी का सोचा और मुझे पाकिस्तान बुलाकर अपने छोटे भाई यानी मेरी चाचा की बड़ी बेटी ज़ुबैदा से मेरी शादी कर दी।
ज़ुबैदा की उम्र 25 साल थी वह मेरी छोटी बहन की हमउम्र थी। शहर में रहकर शहर के वातावरण को अधिक पसंद करती थी। इसलिए जब सऊदी चला जाता था तो वह ज्यादातर अपने माता पिता के घर लाहौर में ही रहती थी। जब पाकिस्तान शादी के लिए आया तो अब्बा जी ने मेरी शादी बड़ी धूमधाम से की और मैं भी खुश था मुझे ज़ुबैदा शुरू से ही पसंद थी वह सुंदर भी थी और सुडौल और सेक्सी शरीर की मालिक थी। उसका कद भी ठीक था और गोरा चिट्टा और भरा शरीर रखती थी। सुहाग रात को मैं बहुत खुश था क्योंकि आज से मुझे सारी जिंदगी ज़ुबैदा के शरीर से मज़ा लेना था बरात के दिन सब काम समाप्त हो कर जब रात को अपने कमरे में गया तो ज़ुबैदा दुल्हन बनी बैठी थी। मैंने कमरे का दरवाजा बंद कर दिया और फिर दूसरे लोगों की तरह मैंने भी उससे काफी बातें की और कई प्रकार के वादे और दिए और फिर मैंने अपनी सुहाग रात को ज़ुबैदा को सुबह 4 बजे तक जमकर 3 बार चोदा। वैसे भी जमींदार का बेटा था गांव के वातावरण में ही ज्यादातर रहा था शुद्ध और अच्छी चीजें खाने का शौकीन था मेरा शरीर भी ठीक ठाक था और मेरा हथियार भी काफी मजबूत और लंबा था लगभग 7 इंच लंबा मेरा लंड था। जिसके कारण मैंने ज़ुबैदा को पहली ही रात में जम कर चोदा था जिसका उसे भी ठीक से पता लगा था। क्योंकि सुबह उसकी कमर में दर्द हो रहा था। जो मेरी छोटी बहन नबीला ने महसूस कर लिया था क्योंकि वह ज़ुबैदा की सहेली भी थी। लेकिन जब मैं सुबह सो कर उठा तो ज़ुबैदा मेरे से पहले उठ चुकी थी और वह अंदर बाथरूम में नहा रही थी। मैंने जब बेड की चादर पे नजर मारी तो मुझे आश्चर्य का करारा झटका लगा क्योंकि बेड की सफेद चादर बिल्कुल साफ थी उसके ऊपर ज़ुबैदा की योनी के खून की एक बूंद भी नहीं थी और जहां तक मुझे पता था यह ज़ुबैदा के जीवन की पहली चुदाई थी और मेरे काफी अच्छे और मजबूत लंड से उसकी योनी की सील टूटना चाहिए थी और खून भी निकलना चाहिए था। बस इसी सवाल ने मेरा दिमाग खराब कर दिया था।
अगले दिन मलाई था और मैं सारा दिन बस सोच में था क्या ज़ुबैदा की योनी सीलबंद नहीं थी। वो पहले भी किसी से करवा चुकी है। या लाहौर में उसका कोई दोस्त है जिससे वह अपनी योनी मरवा चुकी है। बस ये ही सवाल मेरे मन में चल रहे थे। यूं ही मलाई वाला दिन भी बीत गया और रात हो गई और उस रात भी मैंने 2 बार जमकर ज़ुबैदा की योनी मारी लेकिन सीलबंद योनी वाली बात मेरे दिमाग से निकल ही नहीं रही थी। मैं हैरान था ज़ुबैदा दो दिन से दिल व जान से मुझसे चुद रही है और खुलकर मेरा साथ दे रही है और हंसी खुशी मेरे साथ बात कर रही लेकिन पता नहीं क्यों मेरा मन बस ज़ुबैदा की सीलबंद योनी वाली बात पे ही अटक गया था और मैंने अपने दिल और दिमाग में ही भ्रम पाल लिया था। हर इंसान की इच्छा होती हैकि उसकी होने वाली पत्नी पाक और पवित्र हो और सील पैक हो लेकिन मेरे साथ तो शायद धोखा ही हो गया था।
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- rajsharma
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: बीबी से प्यारी बहना
मलाई वाली रात भी बीत गई और मुझे समझ नहीं आ रही थी मैं करूँ तो क्या करूँ और कैसे अपने दिल की बात करूं। और फिर अगली सुबह ज़ुबैदा के घरवाले आ गए और ज़ुबैदा उस दिन दोपहर को अपने माता पिता के साथ लाहौर अपने घर चली गई। ज़ुबैदा के चले जाने के बाद बस अपने कमरे में ही पड़ा रहा बस अपने भ्रम के बारे में ही सोचता रहा मेरी बड़ी बाजी जमीला भी अपने बच्चों के साथ घर पे ही आई हुई थी शादी के बाद वह अपने घर ससुराल नहीं गई थी। शाम तक अपने कमरे में ही था तो 6 बजे के वक्त होगा जब जमीला बाजी मेरे कमरे में आई और लाइट ऑन कर मेरे बिस्तर के पास आ गई में इस लेकिन जाग रहा था।
बाजी मेरे पास आकर बोली वसीम क्या हुआ यूं कमरे में अकेला क्यों बैठा है बाहर सब से अब्बा जी तुम्हारा पूछ रहे हैं। मैं उठ कर बैठ गया और बोला बाजी बस वैसे ही तबीयत ठीक नहीं थी और लेटा हुआ था। बाजी मेरे बेड पे बैठ गई और मेरे माथे पे हाथ रखा तो मुझे बुखार आदि तो नहीं था इसलिए बाजी बोली तुम्हें बुखार भी नहीं है फिर मन क्यों खराब है। मैंने कहा वैसे ही बाजी थकान सी हो गई थी तो शरीर में दर्द था . बाजी ने कहा चल मेरे भाई लेट जा तेरा शरीर दबा देती हूँ। मैंने कहा नहीं बाजी मैं ठीक हूँ बस थोड़ी सी थकावट के कारण ऐसा हो रहा है आप परेशान न हों। मैं बेड से उठ कर खड़ा हो गया और बाजी से बोला चलो बाजी बाहर ही चलते हैं बाजी और मैं बाहर आ गए बाहर आंगन में सब बैठे चाय पी रहे थे। मैं भी वहां बैठ गया और चाय पीने लगा और यहाँ वहाँ की बातें करने लगा। घर में शायद नबीला ही थी जो मेरी हर परेशानी और बात को समझ जाया करती थी
वह बाजी के चले जाने के बाद भी मेरा बहुत ध्यान रखती थी घर की सारी जिम्मेदारी उसके ऊपर थी और घर का काम वह अकेले ही करती थी मैं वहाँ काफी देर तक बैठा बाजी और नबीला उठकर किचन में खाना बनाने चली गई। और मैं वहाँ से उठकर सीधा छत पे चला गया और वहाँ चार पायी रखी थी उस पे लेट गया और दुबारा फिर से ज़ुबैदा के बारे में सोचने लगा। । लगभग 1 घंटे बाद नबीला छत पे आई और आकर बोली वसीम भाई खाना तैयार हो गया है नीचे आ जाओ सब इंतजार कर रहे हैं। मैंने कहा ठीक है तुम चलो मैं आता हूँ वह यह कहकर नीचे चली गई और मैं भी वहाँ से उठ कर नीचे आ गया और सभी के साथ मिल बैठ कर खाना खाने लगा खाने के दौरान भी मैं चुप ही था। खाना खाकर मैं थोड़ी देर तक अम्मी और अब्बा जी से बातें करता रहा और फिर उठ कर अपने कमरे में आ गया और आकर बेड पे लेट गया मैं सोचने लगा मुझे ज़ुबैदा से बात करनी चाहिए और अपना कार्यक्रम समाप्त करना चाहिए। फिर मैं यही सोचता सोचता सो गया अगले दिन दोपहर का वक्त था जब मैं अपने कमरे में बैठ कर टीवी देख रहा था तो जमीला बाजी मेरे कमरे में आ गई और आकर मेरे साथ बेड पे बैठ गई।
कुछ देर तक वे भी चुपचाप टीवी देखती रही फिर कुछ ही देर बाद बोली वसीम मुझे तुमसे एक बात पुछनी है। मैंने टीवी की आवाज धीरे कर दी और बाजी की ओर देखकर बोला कहो बाजी आपको क्या पूछना है। बाजी बोली वसीम में 3 दिन से देख रही हूँ तुम बहुत चुप चुप से रहते हो शादी तक तुम इतना खुश थे और शादी की रात तक इतना खुश नजर आ रहे थे और वैसे भी ज़ुबैदा तुम्हें पसंद भी थी तो आखिर ऐसी क्या बात है तुम शादी रात से लेकर अब तक चुप हो क्या समस्या है मुझे बताओ मैं तुम्हारी बड़ी बाजी हूँ कोई ज़ुबैदा के साथ समस्या हुई है। मुझे बताओ शायद मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकूँ।
में बाजी की बात सुनकर थोड़ा बौखला-सा गया और फिर जल्दी से अपने आप को संभाला और बाजी को कहा बाजी कोई ऐसी बात नहीं है और न ही ज़ुबैदा के साथ कोई समस्या हुई है। आप बेवजह परेशान ना हों। बाजी ने कहा फिर अपने कमरे में ही क्यों बैठे रहते हो बाहर क्यों नहीं निकलते तो बाजी थोड़ा हंस कर बोली लगता मेरे छोटे भाई को ज़ुबैदा की याद बहुत आती होगी। में बाजी की बात सुनकर शर्मा गया और बोला नहीं बाजी ऐसी कोई बात नहीं है। बाजी ने कहा अगर मेरा भाई उदास है तो ज़ुबैदा को फोन करती हूं वह जल्दी वापस आ जाए और आकर मेरे भाई का ख्याल रखे। मैंने तुरंत बोला नहीं बाजी ऐसा मत करो मैं बिल्कुल ठीक हूँ कोई उदास नहीं हूँ आप उसको मत बुलाओ वह अपने माता पिता के घर गई हुई है उसे रहने दो।
बाजी ने कहा, ठीक है नहीं करती लेकिन तुम अपनी हालत ठीक करो बाहर निकलो किसी से मिलो बात करो। मैंने कहा जी बाजी आप चिंता न करें मैं जैसा आप कह रही हैं, वैसा ही करूंगा। फिर बाजी कुछ देर वहाँ बैठी यहाँ वहाँ की बातें करती रही और फिर उठ कर चली गई। मैंने सोचा मुझे घर में किसी को दुख में नहीं डालना चाहिए जब ज़ुबैदा आएगी तो उससे बात करके ही कुछ आगे विचार होगा 2 दिन के बाद बाजी अपने घर चली गई और दिन यूं ही गुजर रहे थे तो कोई एक सप्ताह बाद ज़ुबैदा वापस आ गई उसके माता पिता ही उसे छोड़ने आए थे वे एक दिन रह कर वापस चले गए। हर रोज़ ही ज़ुबैदा के साथ बात करने का सोचता लेकिन वक्त आने पे मेरी हिम्मत जवाब दे जाती थी। लगभग हर दूसरे दिन ही ज़ुबैदा को चोदता था उसका मेरे साथ खुलकर साथ देना और हंसी खुशी मेरे साथ रहना और बातें करना मेरे दिमाग़ के टेन्षन को समाप्त कर देता था लेकिन अकेले में मेरा ज़मीर मुझसे सवाल करता रहता था। और यूं ही दिन बीतते जा रहे थे और अंत में नौकरी की मेरी छुट्टी खत्म हो गई मुझे पाकिस्तान आए हुए 3 महीने हो गए थे
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Re: बीबी से प्यारी बहना
दोस्तो कहानी शुरू कर दी है अपडेट रोज तो नही पर एक दिन छोड़ कर दे दिया करूँगा
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Re: बीबी से प्यारी बहना
मैं इन 3 महीनों में ज़ुबैदा से बात तक न कर सका और यूं ही वापस सऊदी चला गया। जब सऊदी से घर पे फोन करता तो ज़ुबैदा मेरे साथ हँसी खुशी बात करती रहती थी। मुझे सऊदी वापस आकर 1 साल हो चुका था इस दौरान मैंने नोट किया मेरी छोटी बहन नबीला मुझसे ज्यादा बात करने लगी थी और मुझे घर की एक एक बात बताती थी और मेरे बारे में पूछती रहती थी। मुझे एक वक्त ये अहसास भी हुआ कि शायद नबीला मुझे कुछ कहना चाहती है लेकिन वह कह नहीं पाती और हर बार बस यहाँ वहाँ की बातें कर फोन बंद कर देती थी।
मेरे सऊदी आ जाने से ज़ुबैदा अधिकांश अपने माता पिता के घर ही रहती थी। कभी 1 महीना अपने माता-पिता के पास कभी अपने ससुराल में बस यूँ ही चल रहा था। यूं ही 2 साल पूरे हुए और मैं फिर पाकिस्तान छुट्टी पे घर आ गया। मुझे आए हुए 1 सप्ताह हो गया था। एक दिन मैंने अपने अब्बा जी और अम्मी से कहा आप नबीला के लिए कोई रिश्ता देखें अब उसकी उम्र बहुत हो गई है। मेरी यह बात करने की देर थी कि वहां पे बैठी नबीला गुस्से से उठी और मुंह बनाती वहां से अपने कमरे में चली गई। फिर अब्बा जी बोले कि वसीम पुत्तर देख लिया है उसका गुस्सा हम तो इसके पीछे 2 साल से लगे हुए हैं, लेकिन यह है बात ही नहीं मानती। रिश्ता तो बहुत ही अच्छा है इसके लिए लेकिन यह मानती ही नहीं है। मैंने कहा अब्बा जी लड़का कौन है मुझे पता है तो अब्बा जी ने कहा लड़का कोई और नहीं तेरी बुआ का बेटा है ज़हूर पढ़ा लिखा है शक्ल सूरत वाला है सरकारी कर्मचारी है।
मैंने जब ज़हूर का सुना तो सोचने लगा घर वालों ने रिश्ता तो अच्छा देखा हुआ है लेकिन आखिर यह नबीला मानती क्यों नहीं है। फिर मैंने कहा अब्बा जी आप चिंता न करें मैं नबीला खुद बात करूंगा। और अगले दिन शाम को मैं छत पे चार पायी पे लेटा हुआ था तो कुछ देर बाद ही नबीला ऊपर आ गई उसने धुले वाले कपड़े उठा हुए थे शायद वह धोकर ऊपर छत पे डालने आई थी। जब वह कपड़े सुखाने के लिए डाल कर फ्री हो गई तो बाल्टी वहाँ रख कर मेरे पास आ कर खाट पे बैठ गई और बोली वसीम भाई मुझे आपसे एक बात करनी है।
मैं भी उठ कर बैठ गया और बोला नबीला मुझे भी तुमसे एक बात करनी है। तो नबीला बोली भाई आप को मुझ से मेरी शादी की बात करनी है तो आप को साफ साफ बता देती हूँ मुझे शादी नहीं करनी है। में नबीला की बात सुनकर हैरान हो गया और उसकी तरफ देखने लगा तो मैंने कहा नबीला मेरी बहन बता समस्या क्या है तुम्हे शादी क्यों नहीं करनी है। क्या तुम्हें ज़हूर पसंद नहीं है या कोई और है जिसे तुम पसंद करती हो। मुझे बताओ मैं गुस्सा नहीं करूंगा तुम जैसा चाहो वैसा ही होगा। नबीला तुरंत बोली ऐसी कोई बात नहीं है मुझे कोई लड़का पसंद नहीं है और न ही में ज़हूर के साथ शादी करना चाहती हूँ मैं बस अपने घर में ही रहना चाहती हूँ अपने माता पिता के साथ मुझे शादी की कोई जरूरत नहीं है। तो मैंने कहा नबीला मेरी बहन तुम पागल तो नहीं हो देखो अपनी उम्र देखो 27 साल की हो गई हो क्यों अपने ऊपर अत्याचार कर रही हो। अच्छी भली जवान हो सुंदर हो क्यों अपना जीवन तबाह करने तुली हो। तो वह बोली भाई मुझे यह जीवन मंजूर है लेकिन कम से कम आप की तरह तो नहीं होगा न पत्नी हो और आप न हो और बस अंदर ही अंदर घाव खाते रहे। वह इस बात को बोलकर लाल लाल हो चुकी थी और वहां से भागती हुई नीचे चली गई।
नबीला की इस आखिरी बात ने मुझे करारा झटका दिया और मैं हैरान व परेशान बैठा बैठा सोच रहा था कि नबीला क्या कह कर गई है। वह क्या कहना चाहती थी। क्या मेरे अंदर जो इतने साल से घाव है क्या वह उसे जानती है। क्या वह ज़ुबैदा के बारे में भी जानती है। एक बार फिर मेरे दिलो दिमाग में ज़ुबैदा वाली बात गूंजने लगी। यही सोचता सोचता नीचे अपने कमरे में आ गया और देखा ज़ुबैदा किसी के साथ फोन पे बात कर रही थी। मुझे देखते ही फोन पे बोली अच्छा अम्मी फिर बात करूंगी। और फोन बंद कर दिया। और मुझसे बोली आपके लिए चाय ले आऊँ। मैंने कहा हां लाओ और वह किचन में चली गई। फिर उस रात मैंने ज़ुबैदा के साथ कुछ नहीं किया और जल्दी ही सो गया। मैं अब मौके की तलाश में था मुझे अकेले में मौका मिले तो मैं नबीला से खुलकर बात करूँगा लेकिन शायद मुझे मौका नहीं मिला और एक दिन लाहौर से खबर आई ज़ुबैदा के अबू यानी मेरे चाचा जी बहुत बीमार हैं। में ज़ुबैदा को लेकर लाहौर आ गया चाचा की तबीयत ज्यादा खराब थी वह अस्पताल में एडमिट थे मैं सीधा चाचा के पास अस्पताल चला गया उनके गुर्दे फेल हो चुके थे वे बस अपनी अंतिम सांसें गिन रहे थे। मैंने जब चाचा की यह हालत देखी तो मुझे रोना आ गया क्योंकि मेरा चाचा के साथ बहुत प्यार था बचपन में भी चाचा ने मुझे किसी चीज़ की कमी नहीं होने दी। जब चाचा ने मुझे देखा तो उनकी आंखों में आंसू आ गए। मैं वहाँ बैठकर चाचा के साथ धीरे धीरे बातें करने लगा।
कुछ देर के लिए बाहर गया और नबीला के नंबर पे कॉल की और उसे बताया अब्बा जी को लेकर तुम सब लाहौर आजाओ चाचा की तबियत ठीक नहीं है। फिर दोबारा आकर चाचा के पास बैठ गया जब मैं अंदर आया तो उस वक्त कोई अंदर नहीं था अकेला ही चाचा के साथ बैठा था। मैंने चाचा का हाथ पकड़ कर अपने माथे पे प्यार किया तो चाचा ने मुझे इशारा किया अपना कान मेरे मुंह के पास लेकर आओ जब चाचा के नजदीक हुआ तो चाचा ने कहा वसीम बेटा मुझे माफ कर देना मैंने तेरे साथ गलत किया है। तेरी चाची और तेरी पत्नी ज़ुबैदा ठीक नहीं हैं और तुम खुदा के लिए मेरी छोटी बेटी को उनसे बचा लेना। मैंने कहा चाचा जी यह आप क्या कह रहे हैं। बस फिर चाचा के मुंह से इतना ही अल्फ़ाज़ निकला नबीला ......और शायद चाचा की सांसों की डोरी टूट चुकी थी। चाचा की सांस उखड़ ने लग गई थी में भागता हुआ बाहर गया डॉक्टर को बुलाने के लिए लेकिन शायद कुदरत को कुछ और ही मंजूर था जब मैं वापस डॉक्टर को लेकर कमरे में दाखिल हुआ तो चाचा जी इस दुनिया को छोड़ कर जा चुके थे।
फिर हम मृतक चाचा को लेकर घर आ गए मेरे अब्बा जी और मेरे घर वाले भी शाम तक आ गए थे। मेरे अब्बा जी बहुत दुखी हुए क्योंकि उनका एक ही भाई था। मैं भी बहुत रोया और सोचता रहा कि चाचा को पता नहीं क्या दुख ज़ुबैदा और चाची ने दिए होंगे जो वह मुझे ठीक से बता भी न सके। जब जनाज़ा आदि हो गया तो चाचाके घर में एक अजनबी सा बंदा देखा उसकी उम्र शायद 29 या 30 साल के लग भग लग रही थी। वह बंदा अजनबी था पर अपने सारे रिश्ते दारों को जानता था। वह बार बार चाची के साथ ही बात करता था और उनके आगे पीछे ही फिर रहा था। एक बात और मैंने नोट की मेरी बहन नबीला उसे बहुत गुस्से से देख रही थी और उसकी हर हरकत पे नजर रखे हुए थी। यहाँ पे चाची के बारे मे बता दूँ मेरे चाचा ने परिवार से बाहर शादी की थी वह थी भी शक्ल सूरत वाली और नाज़ नखरे वाली थी। उसकी उम्र भी लग भाग 37 या 38 साल थी। उसने ही चाचा को जमीन बेचकर लाहौर में रहने के लिए उकसाया था। और मेरा बेचारा चाचा शायद उसकी बातों में आ गया था। खैर वह वक्त वहां गुज़र गया हम चाचा के घर एक सप्ताह रहे और फिर अपने घर वापस आ गए जब हम वापस आने लगे तो ज़ुबैदा ने तो अब कुछ दिन और यही रुकना था लेकिन ज़ुबैदा की छोटी बहन साना जिसकी उम्र 16 साल के करीब थी वह मेरे अब्बा जी से कहने लगी ताया अबू मैंने भी तुम्हारे साथ जाना है
मेरे अब्बा जी तुरंत राजी हो गए और उसे भी हम साथ लाने के लिए लेकिन मैं एक बात पे हैरान था ज़ुबैदा या उसकी माँ ने एक बार भी साना को साथ जाने से मना नहीं किया जो मुझे बहुत अजीब लगा। खैर हम वापस अपने घर आ गए। जब हम घर वापस आ गए तो एक दिन दोपहर को मैं अपने कमरे में बैठ कर टीवी देख रहा था तो नबीला मेरे कमरे में आ गई और आकर मेरे बेड के दूसरे कोनेपे आकर बैठ गई और बोली- भाई मुझे आपसे बहुत सी आवश्यक बातें करनी हैं।
मैं टीवी बंद कर दिया और बोला हां बोलो नबीला क्या बात करनी है मैं सुन रहा हूँ। नबीला ने कहा भाई साना ने मैट्रिक कर लिया है और वह अब बड़ी हो चुकी है आप इसे अगली पढ़ाई के लिए लाहौर से दूर एक अच्छे कॉलेज में दाखिला करवा दो मैं नहीं चाहती वो अपने घर में और अधिक रहे वह जितना अपने घर से दूर रहेगी तो सुरक्षित रहेगी। मैंने कहा नबीला वह तो ठीक है लेकिन वह अपने घर से बाहर कैसे सुरक्षित रहेगी मुझे तुम्हारी यह बात समझ नहीं आ रही है। चाचा ने भी मरते हुए मुझे चाची और ज़ुबैदा के बारे में कहा था यह दोनों ठीक नहीं है और तुम्हारा भी नाम ले रहे थे और फिर वह आगे कुछ न बोल सके और दुनिया से चले गए। नबीला यह सब क्या है क्या तुम कुछ जानती हो। इस दिन तुमने छत पे जो बात कही थी वह भी तुम ने बोलकर मुझे अजीब भ्रम में डाल दिया है।
नबीला ने कहा भाई आप फिल हाल पहले साना का कुछ करें और थोड़ा इंतजार करें में आप को सब कुछ बता भी दूँगी और समझा दूँगी। मैंने कहा ठीक है लेकिन क्या साना की भी यही इक्षा है। तो नबीला ने कहा वह तो खुश ही खुश है वह खुद अब उस घर में नहीं जाना चाहती है। मैं कहा अच्छा ठीक है कल इस्लामाबाद में किसी से बात करता हूँ वहाँ अच्छे कॉलेज में दाखिला भी करवा देता हूँ और हॉस्टल भी लगवा देता हूँ। नबीला फिर धन्यवाद बोल कर बाहर चली गई जब वो बाहर जा रही थी मेरी नज़र अपनी बहन की गांड पे गई तो देखा उसकी कमीज सलवार के अंदर फंसी हुई थी और उसकी गाण्ड भी काफी बड़ी और मोटी ताज़ी थी। मुझे अपने विवेक ने तुरंत मलामत किया और फिर मैं खुद ही अपनी सोच पे बहुत लज्जित हुआ। फिर मैं अपने बेड पे लेट गया और सोचने लगा नबीला ज़ुबैदा और चाची के बारे में क्या जानती है। क्या इस बात का चाचा को भी पता था कि उसने मुझे अंतिम समय पे बोला था। अगले दिन मैंने अपने एक दोस्त को फोन किया वह मेरे कॉलेज के वक्त का दोस्त था वह अभी इस्लामाबाद शहर में एक सरकारी महकमे में अधिकारी लगा हुआ था। उसने मुझे 2 दिन के भीतर सारी जानकारी इकट्ठी करके दी।
मैं साना को लेकर लाहौर आ गया और उसका सारा समान और साना को लेकर इस्लामाबाद चला गया फिर तो मैं और भी हैरान हुआ इस बार भी चाची या ज़ुबैदा ने साना के लिए मना नहीं किया खैर साना को इस्लामाबाद में आकर कॉलेज और हॉस्टल की सारी व्यवस्था करके फिर वापस लाहौर आ गया और लाहौर से ज़ुबैदा को लिया और अपने घर वापस आ गया जब मैं ज़ुबैदा को लाहौर से लेने गया तो चाची को भी कहा कि आप भी आओ वहाँ कुछ दिन जाकर रह लेना लेकिन चाची का जवाब बहुत ही अजीब और सही था उन्होंने कहा मेरा क्या वहाँ गांव में रखा है और वैसे भी दुनिया का मज़ा तो शहर में ही है। मुझे अब कुछ कुछ अपने चाचा की बात समझ आने लगी थी। घर आकर मौके की तलाश में था में नबीला से खुलकर बात कर सकूँ और सब बातें समझ सकूँ। लेकिन कोई अकेले में मौका नहीं मिल रहा था। मेरी छुट्टी भी 1 महीने की ही रह गई थी और मुझे वापस सऊदी भी जाना था। मेरा और ज़ुबैदा का शारीरिक संबंध तो लगभग चल रहा था लेकिन अब शायद वह बात नहीं रह गई थी क्योंकि मेरा शक विश्वास में बदलता जा रहा था। फिर एक दिन आंगन में बैठकर अखबार पढ़ रहा था तो नबीला शायद फर्श धो रही थी, उसने अपनी शर्ट अपनी सलवार में फँसाई हुई थी और फर्श धो रही थी। मेरी नज़र उस पर गई तो हैरान रह गया और देखा उसकी सलवार पूरी भीगी हुई थी उसने सफेद रंग की सूती सलवार पहनी हुई थी जिसके गीला होने के कारण उसके नीचे पूरी गाण्ड साफ नजर आ रही थी। नबीला का शरीर एकदम कड़क था सफेद रंग भरा सुडौल शरीर था। नबीला की गाण्ड को देखकर मेरी सलवार में बुरा हाल हो गया था। और अपने लंड को अपनी टांगों के बीच में दबा रहा था। मैंने अपनी नज़र अख़बार पर लगा ली लेकिन शैतान बहका रहा था और मैं चोर आँखों से बार बार नबीला को ही देख रहा था। मुझे पता ही नहीं चला कि कब मैंने अपना लंड अपनी सलवार के ऊपर से ही हाथ में पकड़ लिया था और उसे जोर से मसल रहा था। और नबीला की गाण्ड को ही देख रहा था। मेरी अंतरात्मा मुझे बार बार धिक्कार रही थी कि ये तेरी बहन है। लेकिन शैतान मुझे बहका रहा था। मुझे पता ही नहीं चला कि मेरी बहन ने मुझे एक हाथ से अखबार और दूसरे हाथ से अपना लंड मसलते हुए देख लिया था और मेरी आँखों को भी देख लिया था कि वह नबीला की गाण्ड को ही देख रही हैं।
मुझे उस वक्त एहसास हुआ जब पानी भरा मग नबीला हाथ से गिरा और मुझे होश आया मैंने नबीला को देखा तो वह मुझे पता नहीं कितनी देर से देख रही थी मुझे बस उसका चेहरा लाल लाल नजर आया और वह सब कुछ छोड़कर अंदर अपने कमरे में भाग गई। मुझे एक तगड़ा झटका लगा और मैं शर्म से पानी पानी हो गया और उठ कर अपने कमरे में आ गया था मेरी पत्नी बाथरूम में नहा रही थी। मैं बेड पर लेट गया और शर्म और मलामत से सोचने लगा यह मुझसे कितनी बड़ी गलती हो गई है। शाम तक अपने कमरे में ही लेटा रहा और अपने कमरे से बाहर नहीं गया और रात को भी तबियत का बहाना बनाकर ज़ुबैदा को बोला मेरा खाना बेडरूम में ही ले आओ। बस यही सोच रहा था मैं किस मुंह से अपनी बहन का सामना करूँगा वह मेरे बारे में क्या सोचती होगी।
बस यही सोच सोच कर मस्तिष्क फटा जा रहा था। फिर रात में खाना खाकर सो गया और उस रात भी मैंने ज़ुबैदा के साथ कुछ नहीं किया। शायद ज़ुबैदा लगातार 3 दिन से मेरे से मज़ा लिए बिना सो रही थी और सोच भी रही होगी आजकल क्या समस्या है। सुबह मैं जब 9 बजे उठा तो देखा ज़ुबैदा बेड पे नहीं थी फिर उठकर बाथरूम में गया नहा धो करबाहर आया अलमारी से अपने कपड़े निकालने लगा इतनी देर में ज़ुबैदा आ गई वो आते ही मेरे साथ चिपक गई मुझे होंठों पे किस किया और नीचे से मेरा लंड सलवार के ऊपर से ही हाथ में पकड़ लिया और बोली वसीम जानू क्या बात है 3 दिन हो गए आप भी नाराज हो और अपना शेर भी नाराज है मुझसे कुछ गलती हो गई है क्या। अभी इतनी ही बात ज़ुबैदा ने की थी कि नबीला अंदर कमरे में आ गई और बोलते बोलते रुक गई शायद वह नाश्ते के वक्त आई थी। लेकिन अंदर आकर जो दृश्य उसकी आँखों ने देखा वह मेरे और नबीला के लिए बहुत शर्मनाक था क्योंकि ज़ुबैदा तो मेरी पत्नी है लेकिन नबीला तो बहन है। नबीला ने ज़ुबैदा को मेरे लंड को पकड़े हुए देख लिया था और ज़ुबैदा ने भी नबीला को देख लिया था। फिर नबीला का चेहरा लाल लाल हो गया और वह भागकर बाहर चली गई। मैंने ज़ुबैदा से कहा कुछ तो ध्यान रखा करो एक जवान लड़की घर में है और वह भी मेरी सागी बहन है और तुम दिन में ही यह हरकत कर रही हो।
ज़ुबैदा तो शायद गुस्से में थी आगे बोली वह कौन सा बच्ची है उसे भी सब पता है अंत में उसने भी किसी न किसी दिन लंड लेना ही है तो इसमें इतना परेशान होने की क्या बात है मैं तो कहती हूँ तुम नबीला की शादी करवा दो वह बेचारी भी किसी लंड के लिए तरस रही होगी मैंने गुस्से से ज़ुबैदा को देखा और बोला तुम से तो बात करना ही व्यर्थ है और कपड़े लेकर बाथरूम में घुस गया और कपड़े बदलने लगा। कपड़े बदल कर घर से बाहर निकल गया और अपने कुछ मित्रों से जाकर गपशप लगाने लगा लगभग 2 बजे के करीब घर वापस आया तो दरवाजा नबीला ने ही खोला और दरवाजा खोलकर अंदर चली गई। जब मैं अंदर गया तो देखा सबसे बैठे खाना शुरू करने लगे थे भी मजबूरन वहां ही बैठ गया और खाना खाने लगा। मैं तिर्छि नज़रों से नबीला देखा लेकिन वह खाना खाने में व्यस्त थी। फिर जब सबने खाना खा लिया तो नबीला और ज़ुबैदा ने बर्तन उठाना शुरू कर दिए और मैं आकर अपने कमरे में आकर बेड पे लेट गया और कुछ ही देर में मेरी आंख लग गई।
मेरे सऊदी आ जाने से ज़ुबैदा अधिकांश अपने माता पिता के घर ही रहती थी। कभी 1 महीना अपने माता-पिता के पास कभी अपने ससुराल में बस यूँ ही चल रहा था। यूं ही 2 साल पूरे हुए और मैं फिर पाकिस्तान छुट्टी पे घर आ गया। मुझे आए हुए 1 सप्ताह हो गया था। एक दिन मैंने अपने अब्बा जी और अम्मी से कहा आप नबीला के लिए कोई रिश्ता देखें अब उसकी उम्र बहुत हो गई है। मेरी यह बात करने की देर थी कि वहां पे बैठी नबीला गुस्से से उठी और मुंह बनाती वहां से अपने कमरे में चली गई। फिर अब्बा जी बोले कि वसीम पुत्तर देख लिया है उसका गुस्सा हम तो इसके पीछे 2 साल से लगे हुए हैं, लेकिन यह है बात ही नहीं मानती। रिश्ता तो बहुत ही अच्छा है इसके लिए लेकिन यह मानती ही नहीं है। मैंने कहा अब्बा जी लड़का कौन है मुझे पता है तो अब्बा जी ने कहा लड़का कोई और नहीं तेरी बुआ का बेटा है ज़हूर पढ़ा लिखा है शक्ल सूरत वाला है सरकारी कर्मचारी है।
मैंने जब ज़हूर का सुना तो सोचने लगा घर वालों ने रिश्ता तो अच्छा देखा हुआ है लेकिन आखिर यह नबीला मानती क्यों नहीं है। फिर मैंने कहा अब्बा जी आप चिंता न करें मैं नबीला खुद बात करूंगा। और अगले दिन शाम को मैं छत पे चार पायी पे लेटा हुआ था तो कुछ देर बाद ही नबीला ऊपर आ गई उसने धुले वाले कपड़े उठा हुए थे शायद वह धोकर ऊपर छत पे डालने आई थी। जब वह कपड़े सुखाने के लिए डाल कर फ्री हो गई तो बाल्टी वहाँ रख कर मेरे पास आ कर खाट पे बैठ गई और बोली वसीम भाई मुझे आपसे एक बात करनी है।
मैं भी उठ कर बैठ गया और बोला नबीला मुझे भी तुमसे एक बात करनी है। तो नबीला बोली भाई आप को मुझ से मेरी शादी की बात करनी है तो आप को साफ साफ बता देती हूँ मुझे शादी नहीं करनी है। में नबीला की बात सुनकर हैरान हो गया और उसकी तरफ देखने लगा तो मैंने कहा नबीला मेरी बहन बता समस्या क्या है तुम्हे शादी क्यों नहीं करनी है। क्या तुम्हें ज़हूर पसंद नहीं है या कोई और है जिसे तुम पसंद करती हो। मुझे बताओ मैं गुस्सा नहीं करूंगा तुम जैसा चाहो वैसा ही होगा। नबीला तुरंत बोली ऐसी कोई बात नहीं है मुझे कोई लड़का पसंद नहीं है और न ही में ज़हूर के साथ शादी करना चाहती हूँ मैं बस अपने घर में ही रहना चाहती हूँ अपने माता पिता के साथ मुझे शादी की कोई जरूरत नहीं है। तो मैंने कहा नबीला मेरी बहन तुम पागल तो नहीं हो देखो अपनी उम्र देखो 27 साल की हो गई हो क्यों अपने ऊपर अत्याचार कर रही हो। अच्छी भली जवान हो सुंदर हो क्यों अपना जीवन तबाह करने तुली हो। तो वह बोली भाई मुझे यह जीवन मंजूर है लेकिन कम से कम आप की तरह तो नहीं होगा न पत्नी हो और आप न हो और बस अंदर ही अंदर घाव खाते रहे। वह इस बात को बोलकर लाल लाल हो चुकी थी और वहां से भागती हुई नीचे चली गई।
नबीला की इस आखिरी बात ने मुझे करारा झटका दिया और मैं हैरान व परेशान बैठा बैठा सोच रहा था कि नबीला क्या कह कर गई है। वह क्या कहना चाहती थी। क्या मेरे अंदर जो इतने साल से घाव है क्या वह उसे जानती है। क्या वह ज़ुबैदा के बारे में भी जानती है। एक बार फिर मेरे दिलो दिमाग में ज़ुबैदा वाली बात गूंजने लगी। यही सोचता सोचता नीचे अपने कमरे में आ गया और देखा ज़ुबैदा किसी के साथ फोन पे बात कर रही थी। मुझे देखते ही फोन पे बोली अच्छा अम्मी फिर बात करूंगी। और फोन बंद कर दिया। और मुझसे बोली आपके लिए चाय ले आऊँ। मैंने कहा हां लाओ और वह किचन में चली गई। फिर उस रात मैंने ज़ुबैदा के साथ कुछ नहीं किया और जल्दी ही सो गया। मैं अब मौके की तलाश में था मुझे अकेले में मौका मिले तो मैं नबीला से खुलकर बात करूँगा लेकिन शायद मुझे मौका नहीं मिला और एक दिन लाहौर से खबर आई ज़ुबैदा के अबू यानी मेरे चाचा जी बहुत बीमार हैं। में ज़ुबैदा को लेकर लाहौर आ गया चाचा की तबीयत ज्यादा खराब थी वह अस्पताल में एडमिट थे मैं सीधा चाचा के पास अस्पताल चला गया उनके गुर्दे फेल हो चुके थे वे बस अपनी अंतिम सांसें गिन रहे थे। मैंने जब चाचा की यह हालत देखी तो मुझे रोना आ गया क्योंकि मेरा चाचा के साथ बहुत प्यार था बचपन में भी चाचा ने मुझे किसी चीज़ की कमी नहीं होने दी। जब चाचा ने मुझे देखा तो उनकी आंखों में आंसू आ गए। मैं वहाँ बैठकर चाचा के साथ धीरे धीरे बातें करने लगा।
कुछ देर के लिए बाहर गया और नबीला के नंबर पे कॉल की और उसे बताया अब्बा जी को लेकर तुम सब लाहौर आजाओ चाचा की तबियत ठीक नहीं है। फिर दोबारा आकर चाचा के पास बैठ गया जब मैं अंदर आया तो उस वक्त कोई अंदर नहीं था अकेला ही चाचा के साथ बैठा था। मैंने चाचा का हाथ पकड़ कर अपने माथे पे प्यार किया तो चाचा ने मुझे इशारा किया अपना कान मेरे मुंह के पास लेकर आओ जब चाचा के नजदीक हुआ तो चाचा ने कहा वसीम बेटा मुझे माफ कर देना मैंने तेरे साथ गलत किया है। तेरी चाची और तेरी पत्नी ज़ुबैदा ठीक नहीं हैं और तुम खुदा के लिए मेरी छोटी बेटी को उनसे बचा लेना। मैंने कहा चाचा जी यह आप क्या कह रहे हैं। बस फिर चाचा के मुंह से इतना ही अल्फ़ाज़ निकला नबीला ......और शायद चाचा की सांसों की डोरी टूट चुकी थी। चाचा की सांस उखड़ ने लग गई थी में भागता हुआ बाहर गया डॉक्टर को बुलाने के लिए लेकिन शायद कुदरत को कुछ और ही मंजूर था जब मैं वापस डॉक्टर को लेकर कमरे में दाखिल हुआ तो चाचा जी इस दुनिया को छोड़ कर जा चुके थे।
फिर हम मृतक चाचा को लेकर घर आ गए मेरे अब्बा जी और मेरे घर वाले भी शाम तक आ गए थे। मेरे अब्बा जी बहुत दुखी हुए क्योंकि उनका एक ही भाई था। मैं भी बहुत रोया और सोचता रहा कि चाचा को पता नहीं क्या दुख ज़ुबैदा और चाची ने दिए होंगे जो वह मुझे ठीक से बता भी न सके। जब जनाज़ा आदि हो गया तो चाचाके घर में एक अजनबी सा बंदा देखा उसकी उम्र शायद 29 या 30 साल के लग भग लग रही थी। वह बंदा अजनबी था पर अपने सारे रिश्ते दारों को जानता था। वह बार बार चाची के साथ ही बात करता था और उनके आगे पीछे ही फिर रहा था। एक बात और मैंने नोट की मेरी बहन नबीला उसे बहुत गुस्से से देख रही थी और उसकी हर हरकत पे नजर रखे हुए थी। यहाँ पे चाची के बारे मे बता दूँ मेरे चाचा ने परिवार से बाहर शादी की थी वह थी भी शक्ल सूरत वाली और नाज़ नखरे वाली थी। उसकी उम्र भी लग भाग 37 या 38 साल थी। उसने ही चाचा को जमीन बेचकर लाहौर में रहने के लिए उकसाया था। और मेरा बेचारा चाचा शायद उसकी बातों में आ गया था। खैर वह वक्त वहां गुज़र गया हम चाचा के घर एक सप्ताह रहे और फिर अपने घर वापस आ गए जब हम वापस आने लगे तो ज़ुबैदा ने तो अब कुछ दिन और यही रुकना था लेकिन ज़ुबैदा की छोटी बहन साना जिसकी उम्र 16 साल के करीब थी वह मेरे अब्बा जी से कहने लगी ताया अबू मैंने भी तुम्हारे साथ जाना है
मेरे अब्बा जी तुरंत राजी हो गए और उसे भी हम साथ लाने के लिए लेकिन मैं एक बात पे हैरान था ज़ुबैदा या उसकी माँ ने एक बार भी साना को साथ जाने से मना नहीं किया जो मुझे बहुत अजीब लगा। खैर हम वापस अपने घर आ गए। जब हम घर वापस आ गए तो एक दिन दोपहर को मैं अपने कमरे में बैठ कर टीवी देख रहा था तो नबीला मेरे कमरे में आ गई और आकर मेरे बेड के दूसरे कोनेपे आकर बैठ गई और बोली- भाई मुझे आपसे बहुत सी आवश्यक बातें करनी हैं।
मैं टीवी बंद कर दिया और बोला हां बोलो नबीला क्या बात करनी है मैं सुन रहा हूँ। नबीला ने कहा भाई साना ने मैट्रिक कर लिया है और वह अब बड़ी हो चुकी है आप इसे अगली पढ़ाई के लिए लाहौर से दूर एक अच्छे कॉलेज में दाखिला करवा दो मैं नहीं चाहती वो अपने घर में और अधिक रहे वह जितना अपने घर से दूर रहेगी तो सुरक्षित रहेगी। मैंने कहा नबीला वह तो ठीक है लेकिन वह अपने घर से बाहर कैसे सुरक्षित रहेगी मुझे तुम्हारी यह बात समझ नहीं आ रही है। चाचा ने भी मरते हुए मुझे चाची और ज़ुबैदा के बारे में कहा था यह दोनों ठीक नहीं है और तुम्हारा भी नाम ले रहे थे और फिर वह आगे कुछ न बोल सके और दुनिया से चले गए। नबीला यह सब क्या है क्या तुम कुछ जानती हो। इस दिन तुमने छत पे जो बात कही थी वह भी तुम ने बोलकर मुझे अजीब भ्रम में डाल दिया है।
नबीला ने कहा भाई आप फिल हाल पहले साना का कुछ करें और थोड़ा इंतजार करें में आप को सब कुछ बता भी दूँगी और समझा दूँगी। मैंने कहा ठीक है लेकिन क्या साना की भी यही इक्षा है। तो नबीला ने कहा वह तो खुश ही खुश है वह खुद अब उस घर में नहीं जाना चाहती है। मैं कहा अच्छा ठीक है कल इस्लामाबाद में किसी से बात करता हूँ वहाँ अच्छे कॉलेज में दाखिला भी करवा देता हूँ और हॉस्टल भी लगवा देता हूँ। नबीला फिर धन्यवाद बोल कर बाहर चली गई जब वो बाहर जा रही थी मेरी नज़र अपनी बहन की गांड पे गई तो देखा उसकी कमीज सलवार के अंदर फंसी हुई थी और उसकी गाण्ड भी काफी बड़ी और मोटी ताज़ी थी। मुझे अपने विवेक ने तुरंत मलामत किया और फिर मैं खुद ही अपनी सोच पे बहुत लज्जित हुआ। फिर मैं अपने बेड पे लेट गया और सोचने लगा नबीला ज़ुबैदा और चाची के बारे में क्या जानती है। क्या इस बात का चाचा को भी पता था कि उसने मुझे अंतिम समय पे बोला था। अगले दिन मैंने अपने एक दोस्त को फोन किया वह मेरे कॉलेज के वक्त का दोस्त था वह अभी इस्लामाबाद शहर में एक सरकारी महकमे में अधिकारी लगा हुआ था। उसने मुझे 2 दिन के भीतर सारी जानकारी इकट्ठी करके दी।
मैं साना को लेकर लाहौर आ गया और उसका सारा समान और साना को लेकर इस्लामाबाद चला गया फिर तो मैं और भी हैरान हुआ इस बार भी चाची या ज़ुबैदा ने साना के लिए मना नहीं किया खैर साना को इस्लामाबाद में आकर कॉलेज और हॉस्टल की सारी व्यवस्था करके फिर वापस लाहौर आ गया और लाहौर से ज़ुबैदा को लिया और अपने घर वापस आ गया जब मैं ज़ुबैदा को लाहौर से लेने गया तो चाची को भी कहा कि आप भी आओ वहाँ कुछ दिन जाकर रह लेना लेकिन चाची का जवाब बहुत ही अजीब और सही था उन्होंने कहा मेरा क्या वहाँ गांव में रखा है और वैसे भी दुनिया का मज़ा तो शहर में ही है। मुझे अब कुछ कुछ अपने चाचा की बात समझ आने लगी थी। घर आकर मौके की तलाश में था में नबीला से खुलकर बात कर सकूँ और सब बातें समझ सकूँ। लेकिन कोई अकेले में मौका नहीं मिल रहा था। मेरी छुट्टी भी 1 महीने की ही रह गई थी और मुझे वापस सऊदी भी जाना था। मेरा और ज़ुबैदा का शारीरिक संबंध तो लगभग चल रहा था लेकिन अब शायद वह बात नहीं रह गई थी क्योंकि मेरा शक विश्वास में बदलता जा रहा था। फिर एक दिन आंगन में बैठकर अखबार पढ़ रहा था तो नबीला शायद फर्श धो रही थी, उसने अपनी शर्ट अपनी सलवार में फँसाई हुई थी और फर्श धो रही थी। मेरी नज़र उस पर गई तो हैरान रह गया और देखा उसकी सलवार पूरी भीगी हुई थी उसने सफेद रंग की सूती सलवार पहनी हुई थी जिसके गीला होने के कारण उसके नीचे पूरी गाण्ड साफ नजर आ रही थी। नबीला का शरीर एकदम कड़क था सफेद रंग भरा सुडौल शरीर था। नबीला की गाण्ड को देखकर मेरी सलवार में बुरा हाल हो गया था। और अपने लंड को अपनी टांगों के बीच में दबा रहा था। मैंने अपनी नज़र अख़बार पर लगा ली लेकिन शैतान बहका रहा था और मैं चोर आँखों से बार बार नबीला को ही देख रहा था। मुझे पता ही नहीं चला कि कब मैंने अपना लंड अपनी सलवार के ऊपर से ही हाथ में पकड़ लिया था और उसे जोर से मसल रहा था। और नबीला की गाण्ड को ही देख रहा था। मेरी अंतरात्मा मुझे बार बार धिक्कार रही थी कि ये तेरी बहन है। लेकिन शैतान मुझे बहका रहा था। मुझे पता ही नहीं चला कि मेरी बहन ने मुझे एक हाथ से अखबार और दूसरे हाथ से अपना लंड मसलते हुए देख लिया था और मेरी आँखों को भी देख लिया था कि वह नबीला की गाण्ड को ही देख रही हैं।
मुझे उस वक्त एहसास हुआ जब पानी भरा मग नबीला हाथ से गिरा और मुझे होश आया मैंने नबीला को देखा तो वह मुझे पता नहीं कितनी देर से देख रही थी मुझे बस उसका चेहरा लाल लाल नजर आया और वह सब कुछ छोड़कर अंदर अपने कमरे में भाग गई। मुझे एक तगड़ा झटका लगा और मैं शर्म से पानी पानी हो गया और उठ कर अपने कमरे में आ गया था मेरी पत्नी बाथरूम में नहा रही थी। मैं बेड पर लेट गया और शर्म और मलामत से सोचने लगा यह मुझसे कितनी बड़ी गलती हो गई है। शाम तक अपने कमरे में ही लेटा रहा और अपने कमरे से बाहर नहीं गया और रात को भी तबियत का बहाना बनाकर ज़ुबैदा को बोला मेरा खाना बेडरूम में ही ले आओ। बस यही सोच रहा था मैं किस मुंह से अपनी बहन का सामना करूँगा वह मेरे बारे में क्या सोचती होगी।
बस यही सोच सोच कर मस्तिष्क फटा जा रहा था। फिर रात में खाना खाकर सो गया और उस रात भी मैंने ज़ुबैदा के साथ कुछ नहीं किया। शायद ज़ुबैदा लगातार 3 दिन से मेरे से मज़ा लिए बिना सो रही थी और सोच भी रही होगी आजकल क्या समस्या है। सुबह मैं जब 9 बजे उठा तो देखा ज़ुबैदा बेड पे नहीं थी फिर उठकर बाथरूम में गया नहा धो करबाहर आया अलमारी से अपने कपड़े निकालने लगा इतनी देर में ज़ुबैदा आ गई वो आते ही मेरे साथ चिपक गई मुझे होंठों पे किस किया और नीचे से मेरा लंड सलवार के ऊपर से ही हाथ में पकड़ लिया और बोली वसीम जानू क्या बात है 3 दिन हो गए आप भी नाराज हो और अपना शेर भी नाराज है मुझसे कुछ गलती हो गई है क्या। अभी इतनी ही बात ज़ुबैदा ने की थी कि नबीला अंदर कमरे में आ गई और बोलते बोलते रुक गई शायद वह नाश्ते के वक्त आई थी। लेकिन अंदर आकर जो दृश्य उसकी आँखों ने देखा वह मेरे और नबीला के लिए बहुत शर्मनाक था क्योंकि ज़ुबैदा तो मेरी पत्नी है लेकिन नबीला तो बहन है। नबीला ने ज़ुबैदा को मेरे लंड को पकड़े हुए देख लिया था और ज़ुबैदा ने भी नबीला को देख लिया था। फिर नबीला का चेहरा लाल लाल हो गया और वह भागकर बाहर चली गई। मैंने ज़ुबैदा से कहा कुछ तो ध्यान रखा करो एक जवान लड़की घर में है और वह भी मेरी सागी बहन है और तुम दिन में ही यह हरकत कर रही हो।
ज़ुबैदा तो शायद गुस्से में थी आगे बोली वह कौन सा बच्ची है उसे भी सब पता है अंत में उसने भी किसी न किसी दिन लंड लेना ही है तो इसमें इतना परेशान होने की क्या बात है मैं तो कहती हूँ तुम नबीला की शादी करवा दो वह बेचारी भी किसी लंड के लिए तरस रही होगी मैंने गुस्से से ज़ुबैदा को देखा और बोला तुम से तो बात करना ही व्यर्थ है और कपड़े लेकर बाथरूम में घुस गया और कपड़े बदलने लगा। कपड़े बदल कर घर से बाहर निकल गया और अपने कुछ मित्रों से जाकर गपशप लगाने लगा लगभग 2 बजे के करीब घर वापस आया तो दरवाजा नबीला ने ही खोला और दरवाजा खोलकर अंदर चली गई। जब मैं अंदर गया तो देखा सबसे बैठे खाना शुरू करने लगे थे भी मजबूरन वहां ही बैठ गया और खाना खाने लगा। मैं तिर्छि नज़रों से नबीला देखा लेकिन वह खाना खाने में व्यस्त थी। फिर जब सबने खाना खा लिया तो नबीला और ज़ुबैदा ने बर्तन उठाना शुरू कर दिए और मैं आकर अपने कमरे में आकर बेड पे लेट गया और कुछ ही देर में मेरी आंख लग गई।
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: बीबी से प्यारी बहना
मस्ती से भरपूर कहानी लगती है राज भाई
मस्त राम मस्ती में
आग लगे चाहे बस्ती मे.
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भाई बहन,ननद भाभी और नौकर .......... सेक्स स्लेव भाभी और हरामी देवर .......... वासना के सौदागर .......... Incest सुलगते जिस्म और रिश्तों पर कलंक Running.......... घर की मुर्गियाँ Running......नेहा बह के कारनामे (Running) ....मस्तराम की कहानियाँ(Running) ....अनोखा इंतकाम रुबीना का ..........परिवार बिना कुछ नहीं..........माँ को पाने की हसरत ......सियासत और साजिश .....बिन पढ़ाई करनी पड़ी चुदाई.....एक और घरेलू चुदाई......दिल दोस्ती और दारू...
आग लगे चाहे बस्ती मे.
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