होली (complete) बजाज का सफरनामा

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s_bajaj4u
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होली (complete) बजाज का सफरनामा

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दोस्तों में संजय कुमार आपके लिए एक कहानी लेके आया हु जो मेरे को किसी ने email पर भेजी थी ।

होली

मुझे त्योहारों में बहुत मज़ा आता है, खास तौर से होली में.

पर कुछ चीजे त्योहारों में गडबड है. जैसे मेरे मायके में मेरी मम्मी और उनसे भी बढ़के छोटी बहने.
कह रही थी कि मैं अपनी पहली होली मायके में मनाऊँ. वैसे मेरी बहनों की असली दिलचस्पी तो अपने जीजा जी के साथ होली खेलने में थी. परन्तु मेरे ससुराल के लोग कह रहे थे कि बहु की पहली होली ससुराल में ही होनी चाहिये.

मैं बड़ी दुविधा में थी. पर त्योहारों में गडबड से कई बार परेशानियां सुलझ भी जाती है. और ऐसा हुआ भी, इस बार होली २ दिन पड़ी. (दरअसल हिन्दुओं के सारे त्यौहार हिन्दी महीनों (जैसे- चैत्र, वैशाख….आदि) से मनाए जाते है और हिन्दी महीने तारीख से नही बल्कि तिथियों से चलते है. कई बार एक ही दिन और एक ही तारीख को दो तिथि मिल जाती है या एक ही तिथि दो दिनों तक रहती है. इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ.)

मेरी ससुराल में 14 मार्च को और

मायके में 15 को होली मनाई जानी थी.

मेरे मायके में जबर्दस्त होली होती है और वो भी दो दिन. तय हुआ कि मेरे घर से कोई आ के मुझे होली वाले दिन ले जाए और ‘ये’ होली के अगले दिन सुबह पहुँच जायेंगे. मेरे मायके में तो मेरी दो छोटी बहनों नमिता और श्वेता के सिवाय कोई था नहीं. मम्मी ने फिर ये प्लान बनाया कि मेरा ममेरा भाई, विक्रम, जो 11वी में पढ़ता था, वही होली के एक दिन पहले आ के ले जायेगा.

“विक्रम की चुन्नी” मेरी ननद सपना ने छेड़ा.

वैसे बात उसकी सही थी. वह बहुत कोमल, खूब गोरा, लड़कियों की तरह शर्मीला, बस यु समझ लीजिए कि जब से वो class 8 में पहुँचा, लड़के उसके पीछे पड़े रहते थे. यूं कहिये कि ‘नमकीन’ और highschool में उसकी टाइटिल थी, “है शुक्र कि तू है लड़का”, पर मैंने भी सपना को जवाब दिया, “अरे आएगा तो खोल के देख लेना, क्या है अंदर हिम्मत हो तो…”

“हाँ, पता चल जायेगा कि नुन्नी है या लंड(penis)” मेरी जेठानी ने मेरा साथ दिया.

“अरे भाभी उसका तो मुंगफली जैसा होगा, उससे क्या होगा हमारा..???” मेरी बड़ी ननद ने चिढ़ाया.

“अरे मूंगफली है या केला..??? ये तो पकड़ोगी तो पता चलेगा. पर मुझे अच्छी तरह मालूम है कि तुम लोगों ने मुझे ले जाने के लिये उसे बुलाने की शर्त इसीलिये रखी है कि तुम लोग उससे मज़ा लेना चाहती हो.” हँसते हुए मैं बोली.

“भाभी उससे मज़ा तो लोग लेना चाहते है, पर हम या कोई और ये तो होली में ही पता चलेगा. आपको अब तक तो पता चल ही गया होगा कि यहाँ के लोग पिछवाड़े के कितने शौक़ीन होते है..???” मेरी बड़ी ननद रानू जो शादी-शुदा थी, खूब मुह-फट्ट थी और खुल के मजाक करती थी.

बात उसकी सही थी.

मैं Flash-Back में चली गई…………………..

सुहागरात के 4-5 दिन के अंदर ही, मेरे पिछवाड़े की शुरुआत तो उन्होंने दो दिन के अंदर ही कर दी थी.

मुझे अब तक याद है, उस दिन मैंने सलवार-सूट पहन रखा था, जो थोड़ा Tight था और मेरे मम्मे(boobs) और नितम्ब खूब उभर के दिख रहे थे. रानू ने मेरे चूतडों पे चिकौटी काटते चिढ़ाया, “भाभी लगता है आपके पिछवाड़े में काफी खुजली मच रही है….? आज आपकी गाण्ड बचने वाली नहीं है, अगर आपको इन कपड़ो में भैया ने देख लिया तो…”

“अरे तो डरती हूँ क्या तुम्हारे भैया से..??? जब से आई हूँ लगातार तो चालू रहते है, बाकि और कुछ तो अब बचा नहीं…… ये भी कब तक बचेगी..???” चूतडों को मटका के मैंने जवाब दिया.

और तब तक ‘वो’ भी आ गए. उन्होंने एक हाथ से खूब कस के मेरे चूतडों को दबोच लिया और उनकी एक उंगली मेरे कसी सलवार में गाण्ड के Crack में घुस गई. उनसे बचने के लिये मैं रजाई में घुस गई अपनी सास के बगल में…..

‘वह’ भी रजाई में मेरी बगल में घुस के बैठ गए और अपना एक हाथ मेरे कंधे पे रख दिया. ‘उनकी’ बगल में मेरी जेठानी और छोटी ननद बैठी थी.
छेड़-छाड़ सिर्फ कोई ‘उनकी’ जागीर तो थी नहीं..???

सासू के बगल में मैं थोड़ा safe भी महसूस कर रही थी और रजाई के अंदर हाथ भी थोड़ा bold हो जाता है. मैंने पजामे के ऊपर हाथ रखा तो उनका खुटा पूरी तरह खड़ा था. मैंने शरारत से उसे हल्के से दबा दिया और उनकी ओर मुस्कुरा के देखा.
बेचारे…. चाह के भी….. अब मैंने और Bold हो के हाथ उनके पजामे में डाल के सुपाड़े को खोल दिया. पूरी तरह फूला और गरम था. उसे सहलाते-सहलाते मैंने अपने लंबे नाख़ून से उनके pi hole को छेड़ दिया. जोश में आके उन्होंने मेरे कबूतर(Boobs) कस के दबा दिए.
उनके चेहरे से उत्तेजना साफ़ झलक रही थी. वह उठ के बगल के कमरे में चले गए जो मेरी छोटी ननद का Study Room था. बड़ी मुश्किल से मेरी ननद और जेठानी ने अपनी मुस्कान दबायी.
“जाइये-जाइये भाभी, अभी आपका बुलावा आ रहा होगा.” शैतानी से मेरी छोटी ननद बोली.
Sanjay Bajaj
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Re: होली

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हम दोनों का दिन-दहाड़े का ये काम तो सुहागरात के अगले दिन से ही चालू हो गया था. पहली बार तो मेरी जेठानी जबरदस्ती मुझे कमरे में दिन में कर आई और उसके बाद से तो मेरी ननदें और यहाँ तक की सासु जी भी……. सच्ची, बड़ा ही खुला मामला था मेरी ससुराल में……
एक बार तो मुझसे ज़रा सी देर हो गई तो मेरी सासु बोली, “बहु, जाओ ना… बेचारा इंतज़ार कर रहा होगा…”
“ज़रा पानी ले आना…” तुरन्त ही ‘उनकी’ आवाज सुनाई दी.
“जाओ, प्यासे की प्यास बुझाओ…” मेरी जेठानी ने छेड़ा.
कमरे में पँहुचते ही मैंने दरवाजा बंद कर दिया. उनको छेड़ते हुए, दरवाजा बंद करते समय, मैंने उनको दिखा के सलवार से छलकते अपने भारी चूतडों को मटका दिया. फिर क्या था.? वो भी कहाँ कम पड़ने वाले थे.? पीछे आके उन्होंने मुझे कस के पकड़ लिया और दोनों हाथों से कस-कस के मेरे मम्मे दबाने लगे. मेरे कमसिन कबूतर छटपटाने लगे. ‘उनका’ पूरी तरह उत्तेजित हथियार भी मेरी गाण्ड के दरार पे कस के रगड़ रहा था. लग रहा था, सलवार फाड़ के घुस जायेगा.
मैंने चारों ओर नज़र दौडाई. कमरे में कुर्सी-मेज़ के अलावा कुछ भी नहीं था.
मैं अपने घुटनों के बल पे बैठ गई और उनके पजामे का नाडा खोल दिया. फन-फ़ना कर उनका लंड बहार आ गया. सुपाडा अभी भी खुला था, पहाड़ी आलू की तरह बड़ा और लाल. मैंने पहले तो उसे चूमा और फिर बिना हाथ लगाये अपने गुलाबी होठों के बीच ले चूसना शुरू कर दिया. धीरे-धीरे मैं Lolypop की तरह उसे चूस रही थी और मेरी जीभ उनके Pi Hole को छेड़ रही थी.
उन्होंने कस के मेरे सर को पकड़ लिया. अब मेरा एक मेहन्दी लगा हाथ उनके लंड के Base को पकड़ के हल्के से दबा रहा था और दूसरा उनके अंडकोष (Balls) को पकड़ के सहला और दबा रहा था. जोश में आके मेरा सर पकड़ के वह अपना मोटा लंड अंदर-बाहर कर रहे थे. उनका आधे से ज्यादा लंड अब मेरे मुँह में था. सुपाडा हलक पे धक्के मार रहा था. जब मेरी जीभ उनके मोटे कड़े लंड को सहलाती और मेरे गुलाबी होठों को रगड़ते, घिसते वो अंदर जाता…. खूब मज़ा आ रहा था मुझे. मैं खूब कस-कस के चूस रही थी, चाट रही थी.
उस कमरे में मुझे चुदाई का कोई रास्ता तो दिख नहीं रहा था. इसलिए मैंने सोचा कि मुख-मैथुन कर के ही काम चला लू.
पर उनका इरादा कुछ और ही था.
“कुर्सी पकड़ के झुक जाओ…” वो बोले.
अंधा क्या चाहे…. दो आँखें….. मैं झुक गई.
पीछे से आके उन्होंने सलवार का नाडा खोल के उसे घुटनों के नीचे सरका दिया और कुर्ते को ऊपर उठा के Bra खोल दी. अब मेरे मम्मे आजाद थे. मैं सलवार से बाहर निकलना चाहती थी, पर उन्होंने मना कर दिया कि जैसे झट से कपडे फिर से पहन सकते है, अगर कोई बुला ले तो…..
इस आसन में मुझे वो पहले भी चोद चुके थे पर सलवार पैर में फँसी होने के कारण मैं टाँगे ठीक से फैला नहीं पा रही थी और मेरी चुत और भी ज्यादा कस चुकी थी.
शायद वो ऐसा ही चाहते थे.
एक हाथ से वो मेरा जोबन (Boobs) मसल रहे थे और दूसरे से उन्होंने मेरी चुत में उँगली करनी शुरू कर दी. चुत तो मेरी पहले ही गीली हो रही थी, थोड़ी देर में ही वो पानी-पानी हो गई. उन्होंने अपनी उँगली से मेरी चुत को फैलाया और सुपाडा वहाँ Center कर दिया. फिर जो मेरी पतली कमर को पकड़ के उन्होंने कस के एक करारा धक्का मारा तो मेरी चुत को रगड़ता, पूरा सुपाडा अंदर चला गया.
दर्द से मैं तिलमिला उठी. पर जब वो चुत के अंदर घिसता तो मज़ा भी बहुत आ रहा था. दो चार धक्के ऐसे मारने के बाद उन्होंने मेरी चुचियों को कस-कस के रगड़ते, मसलते चुदाई शुरू कर दी. जल्द ही मैं भी मस्ती में आ कभी अपनी चुत से उनके मोटे हलब्बी लंड पे सिकोड़ देती, कभी अपनी गाण्ड मटका के उनके धक्के का जवाब देती. साथ-साथ कभी वो मेरी Clit, कभी Nipples पिंच करते और मैं मस्ती में गिन्गिना उठती.
तभी उन्होंने अपनी वो उँगली, जो मेरी चुत में अंदर-बाहर हो रही थी और मेरी चुत के रस से अच्छी तरह गीली थी, को मेरी गाण्ड के छेद पे लगाया और कस के दबा के उसकी Tip अंदर घुसा दी.
“हे…अंदर नहीं……उँगली निकाल लो…..प्लीज़…” मैं मना करते बोली.
पर वो कहा सुनने वाले थे.? धीरे-धीरे उन्होंने पूरी उँगली अंदर कर दी.
अब उन्होंने चुदाई भी Full Speed में शुरू कर दी थी. उनका बित्ते भर लंबा मुसल पूरा बाहर आता और एक झटके में उसे वो पूरा अंदर पेल देते. कभी मेरी चुत के अंदर उसे गोल-गोल घुमाते. मेरी सिसकारियाँ तो कस-कस के निकल रही थी.
उँगली भी लंड के साथ मेरी गाण्ड में अंदर-बाहर हो रही थी. लंड जब बुर से बाहर निकलता तो वो उसे Tip तक बाहर निकालते और फिर उँगली लंड के साथ ही पूरी तरह अंदर घुस जाती. पर उस धक्का पेल चुदाई में मैं गाण्ड में उँगली भूल ही चुकी थी.
जब उन्होंने गाण्ड से गप से उँगली बाहर निकली तो मुझे पता चला. सामने मेरी ननद की टेबल पर Fair & Lovely Cream रखी थी.
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Re: होली

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उन्होंने उसे उठा के उसका नोज़ल सीधे मेरी गाण्ड में घुसा दिया और थोड़ी सी क्रीम दबा के अंदर घुसा दी. और जब तक मैं कुछ समझती उन्होंने अबकी दो उंगलियां मेरी गाण्ड में घुसा दी. कुछ पता नहीं चल पा रहा था कि क्या करूँ.? दर्द से चिल्लाऊं या चुदाई की आहें भरूं.
दर्द से मैं चीख उठी. पर अबकी बिन रुके पूरी ताकत से उन्होंने उसे अंदर घुसा के ही दम लिया.
“हे…निकालो ना…. क्या करते हो.? उधर नहीं…प्लीज़….चुत चाहे जित्ती बार चोद लो ओह…” मैं चीखी. लेकिन थोड़ी देर में चुदाई उन्होंने इत्ती तेज कर दी कि मेरी हालत खराब हो गई. और खास तौर से जब वो मेरी Clit मसलते, मैं जल्द ही झड़ने के कगार पर पँहुच गई तो उन्होंने चुदाई रोक दी.
मैं भूल ही चुकी थी कि जिस रफ़्तार से लंड मेरी बुर में अंदर-बाहर हो रहा था, उसी तरह मेरी गाण्ड में उँगली अंदर-बाहर हो रही थी.
लंड तो रुका हुआ था पर गाण्ड में उँगली अभी भी अंदर-बाहर हो रही थी. एक मीठा-मीठा दर्द हो रहा था पर एक नए किस्म का मज़ा भी मिल रहा था. उन्होंने कुछ देर बाद फिर चुदाई चालू कर दी.
दो-तीन बार वो मुझे झड़ने के कगार पे ले जाके रोक देते पर गाण्ड में दोनों उँगली करते रहते और अब मैं भी गाण्ड, उँगली के धक्के के साथ आगे-पीछे कर रही थी.
और जब कुछ देर बाद उँगली निकली तो क्रीम के Tube का नोज़ल लगा के पूरी की पूरी Tube मेरी गाण्ड में खाली कर दी. अपने लंड पर भी क्रीम लगा के उसे मेरी गाण्ड के छेद पे लगा दिया और अपने दोनों ताकतवर हाथों से मेरे चूतडो को पकड़, कस के मेरी गाण्ड का छेद फैला दिया. उनका मोटा सुपाडा मेरी गाण्ड के दुबदुबाते छेद से सटा था. और जब तक मैं समझती, उन्होंने मेरी पतली कमर पकड़ के कस से पूरी ताकत से तीन-चार धक्के लगा दिये…..
“उईईई….माँआआआआ…..” मैं दर्द से बड़े जोर से चिल्लाई. मैंने अपने होंठ कस के काट लिये पर लग रहा था मैं दर्द से बेहोश हो जाऊँगी. बिना रुके उन्होंने फिर कस के दो-तीन धक्के लगाये और मैं दर्द से बिलबिलाते हुए फिर चीखने लगी. मैंने अपनी गाण्ड सिकोड़ने की कोशिश की और गाण्ड पकड़ने लगी पर तब तक उनका सुपाडा पूरी तरह मेरी गाण्ड में घुस चुका था और गाण्ड के छल्ले ने उसे कस के पकड़ रखा था. मैं खूब अपने चूतडो को हिला और पटक रही थी पर जल्द ही मैंने समझ लिया कि वो अब मेरी गाण्ड से निकलने वाला नहीं है. उन्होंने भी अब कमर छोड़ मेरी चुचियाँ पकड़ ली थी और उसे कस के मसल रहे थे. दर्द के मारे मेरी हालत खराब थी. पर थोड़ी देर में चुचियों के दर्द के आगे गाण्ड का दर्द मैं भूल गई.
अब बिना लंड को और धकेले, अब वो प्यार से कभी मेरी चुत सहलाते, कभी चने (Clit) को छेड़ते. थोड़ी देर में मस्ती से मेरी हालत खराब हो गई. अब उन्होंने अपनी दो उंगलियां मेरी चुत में डाल दी और कस-कस के लंड की तरह उसे चोदने लगे.
जब मैं झड़ने के कगार पे आ जाती तो वो रुक जाते. मैं तड़प रही थी.
मैंने उनसे कहा, “मुझे झड़ने दो…” तो वो बोले, “तुम मुझे अपनी ये मस्त गाण्ड मार लेने दो.” मैं अब पागल हो रही थी.
मैं बोली, “हा राजा चाहे गाण्ड मार लो, पर…………”
वो मुस्कुरा के बोले, “जोर से बोल….”
और मैं खूब जोर से बोली, “मेरे राजा, मार लो मेरी गाण्ड, चाहे आज फट जाये… पर मुझे झाड़ दो….. आह्ह्ह्ह्ह…..उम्म्म्म्म्म्म….” और उन्होंने मेरी चुत के भीतर अपनी उँगली इस तरह से रगड़ी जैसे मेरे G-Point को छेड़ दिया हो और मैं पागल हो गई. मेरी चुत कस-कस के काँप रही थी और मैं झड रही थी, रस छोड़ रही थी.
और मौके का फायदा उठा के उन्होंने मेरी चुचियाँ पकडे-पकडे कस-कस के धक्के लगाये और पूरा लंड मेरी कोरी गाण्ड में घुसेड़ दिया. दर्द के मारे मेरी गाण्ड फटी जा रही थी. कुछेक देर रुक के उनका लंड पूरा बाहर आके मेरी गाण्ड मार रहा था.
करीब आधे घन्टे से भी ज्यादा गाण्ड मरने के बाद ही वो झडे. और उनकी उंगलियां मेरा चुत मंथन कर रही थी और मैं भी साथ-साथ झड़ी.
उनका वीर्य मेरी गाण्ड के अंदर से निकल के मेरे चूतडो पे आ रहा था. उन्होंने अपने लंड निकाला भी नहीं था की मेरी ननद की आवाज़ आई, “भाभी, आपका फोन….”
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Re: होली

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जल्दी से मैंने सलवार चढाई, कुरता सीधा किया और बाहर निकली. दर्द से चला भी नहीं जा रहा था. किसी तरह सासु जी के बगल में पलंग पे बैठ के बात की. मेरी छोटी ननद ने छेड़ा, “क्यों भाभी, बहुत दर्द हो रहा है.?”
मैंने उसे उस वक्त खा जाने वाली नज़रों से देखा. सासु बोली, “बहु, लेट जाओ…” लेटते ही जैसे मेरे चूतडो में करंट दौड़ गया हो. एक भयंकर दर्दभरी टीस उठी. उन्होंने समझाया, “करवट हो के लेट जाओ, मेरी ओर मुँह कर के…” और मेरी जेठानी से बोली, “तेरा देवर बहुत बदमाश है, मैं फूल-सी बहु इसीलिए थोड़ी ले आई थी.”
“अरी माँ, इसमें भैया का क्या दोष.? मेरी प्यारी भाभी है ही इत्ती प्यारी और फिर ये भी तो मटका-मटका कर……..” उनकी बात काट के मेरी ननद बोली.
“लेकिन इस दर्द का एक ही इलाज है, थोड़ा और दर्द….. कुछ देर के बाद आदत पड़ जाती है.” मेरा सर प्यार से सहलाते हुए मेरी सासु जी धीरे से मेरे कान में बोली.
“लेकिन भाभी भैया को क्यों दोष दे? आपने ही तो उनसे कहा था मारने के लिये…… खुजली तो आपको ही हो रही थी.” सब लोग मुस्कुराने लगे और मैं भी अपनी गाण्ड में हो रही टीस के बावजूद मुस्कुरा उठी.
सुहागरात के दिन से ही मुझे पता चल गया था की यहाँ सब कुछ काफी खुला हुआ है. तब तक वो आके मेरे बगल में रजाई में घुस गए. सलवार तो मैंने ऐसे ही चढा ली थी. इसलिए आसानी से उसे उन्होंने मेरे घुटने तक सरका दी और मेरे चूतडो को सहलाने लगे.
मेरी जेठानी उनसे मुस्कुराकर छेड़ते हुए बोली, “देवर जी, आप मेरी देवरानी को बहोत तंग करते है और तुम्हारी सजा ये है की आज रात तक अब तुम्हारे पास ये दुबारा नहीं जायेगी.”
मेरी सासु जी ने उनका साथ दिया. जैसे उनके जवाब में उन्होंने मेरे गाण्ड के बीच में छेदती उँगली को पूरी ताकत से एक ही झटके में मेरी गाण्ड में पेल दिया. गाण्ड के अंदर उनका वीर्य लोशन की तरह काम कर रहा था. फिर भी मेरी चीख निकल गई. मुस्कराहट दबाती हुई सासु जी किसी काम का बहाना बना बाहर निकल गई. लेकिन मेरी ननद कहाँ चुप रहने वाली थी.
वो बोली, “भाभी, क्या हुआ.? किसी चींटे ने काट लिया क्या.?”
“अरे नहीं लगता है, चीटा अंदर घुस गया है.” छोटी वाली बोली.
“अरे मीठी चीज होगी तो चीटा लगेगा ही. भाभी आप ही ठीक से ढँक कर नहीं रखती हो क्या.?” बड़ी वाली ने फिर छेड़ा.
तब तक उन्होंने रजाई के अंदर मेरा कुरता भी पूरी तरह से ऊपर उठा के मेरी चूची दबानी शुरू कर दी थी और उनकी उँगली मेरी गाण्ड में गोल-गोल घूम रही थी.
“अरे चलो बेचारी को आराम करने दो, तुम लोगों को चींटे से कटवाउंगी तो पता चलेगा.” ये कह के मेरी जेठानी दोनों ननदों को हांक के बाहर ले गई. लेकिन वो भी नहीं थी. ननदों को बाहर करके वो आई और सरसों के तेल की शीशी रखती बोली, “ये लगाओ, Anti-Septic भी है.”
तब तक उनका हथियार खुल के मेरी गाण्ड के बीच धक्का मार रहा था. निकल कर बाहर से उन्होंने दरवाजा बंद कर दिया.
फिर क्या था.? उन्होंने मुझे पेट के बल लिटा दिया और पेट के नीचे दो तकिये लगा के मेरे चूतड़ ऊपर उठा दिए. सरसों का तेल अपने लंड पे लगा के सीधे शीशी से ही उन्होंने मेरी गाण्ड के अंदर डाल दिया.
वो एक बार झड़ ही चुके थे इसलिए आप सोच ही सकते है इस बार पूरा एक घंटा गाण्ड मारने के बाद ही वो झडे और जब मेरी जेठानी शाम की चाय ले आई तो भी उनका मोटा लंड मेरी गाण्ड में ही घुसा था.
उस रात फिर उन्होंने दो बार मेरी गाण्ड मारी और उसके बाद से हर हफ्ते दो-तीन बार मेरे पिछवाड़े का बाजा तो बज ही जाता है.

मेरी बड़ी ननद रानू मुझे Flash-back से वापस लाते हुए बोली, “क्या भाभी, क्या सोच रही है अपने भाई के बारे में..???”
“अरे नहीं तुम्हारे भाई के बारे में…” तब तक मुझे लगा कि मैं क्या बोल गई.? और मैं चुप हो गई.
“अरे भाई नहीं अब मेरे भाईयों के बारे में सोचिये, फागुन लग गया है और अब आपके सारे देवर आपके पीछे पड़े है. कोई नहीं छोड़ने वाला आपको और ननदोई है सो अलग..” वो बोली.
“अरे तेरे भाई को देख लिया है तो देवर और ननदोई को भी देख लूंगी……” गाल पे चिकौटी काटती मैं बोली.

होली के पहले वाली शाम को वो आया……..
पतला, गोरा, छरहरा किशोर. अभी रेखा आई नहीं थी. सबसे पहले मेरी छोटी ननद मिली और उसे देखते ही वो चालू हो गई, ‘चिकना’
वो भी बोला, “चिकनी…” और उसके उभरते उभारों को देख के बोला, “बड़ी हो गई है.” मुझे लग गया कि जो ‘होने’ वाला है वो ‘होगा’. दोनों में छेड़-छाड़ चालू हो गई.
वो उसे ले के जहाँ उसे रुकना था, उस कमरे में ले गई. मेरे bed room से एकदम सटा, Ply का Partition कर के एक कमरा था उसी में उसके रुकने का इंतज़ाम किया गया था. उसका bed भी, जिस Side हम लोगों का bed लगा था, उसी से सटा था.
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Re: होली

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मैंने अपनी ननद से कहा, “अरे कुछ पानी-वानी भी पिलाओगी बेचारे को या छेड़ती ही रहोगी..???”
वो हँस के बोली, “भाभी अब इसकी चिंता मेरे ऊपर छोड़ दीजिए.” और गिलास दिखाते हुए कहा, “देखिये इस साले के लिये खास पानी है.”
जब मेरे भाई ने हाथ बढ़ाया तो उसने हँस के गिलास का सारा पानी, जो गाढा लाल रंग था, उसके ऊपर उड़ेल दिया. बेचारे की सफ़ेद शर्ट पर…. लेकिन वो भी छोड़ने वाला नहीं था. उसने उसे पकड़ के अपने कपड़े पे लगा रंग उसकी frock पे रगड़ने लगा और बोला, “अभी जब मैं डालूँगा ना अपनी पिचकारी से रंग, तो चिल्लाओगी”
वो छूटते हुए बोली, “बिल्कुल नहीं चिल्लाउंगी, लेकिन तुम्हारी पिचकारी में कुछ रंग है भी कि सब अपनी बहनों के साथ खर्च कर के आ गए हो..???”
वो बोला, “सारा रंग तेरे लिये बचा के लाया हूँ, एकदम गाढ़ा सफ़ेद”
उन दोनों को वही छोड़ के मैं गई रसोईघर में जहाँ होली के लिये गुझिया बन रही थी और मेरी सास, बड़ी ननद और जेठानी थी. गुझिया बनाने के साथ-साथ आज खूब खुल के मजाक, गालियाँ चल रही थी. बाहर से भी कबीर गान, गालियों कि आवाज़ें, फागुनी बयार में घुल-घुल के आ रही थी.
ठण्डाई बनाने के लिये भांग रखी थी और कुछ बर्फी में डालने लिये.
मैंने कहा, “कुछ गुझिया में भी डाल के बना देते है, लोगों को पता नही चलेगा.?!!! और फिर खूब मज़ा आएगा.”
मेरी ननद बोली, “हाँ, और फिर हम लोग वो आप को खिला के नंगा नचायेंगे…..”
मैं बोली, “मैं इतनी भी बेवकुफ नहीं हूँ, भांग वाली और बिना भांग वाली गुझिया अलग-अलग डब्बे में रखेंगे.”
हम लोगों ने तीन डिब्बों में, एक में Double Dose वाली, एक में Normal भांग की और तीसरे में बिना भांग वाली रखी. फिर मैं सब लोगों को खाना खाने के लिये बुलाने चल दी.
मेरा भाई भी उनके साथ बैठा था. साथ में बड़ी ननद के Husband मेरे ननदोई भी….. उनकी बात सुनके मैं दरवाजे पे ही एक मिनट के लिये ठिठक के रुक गई और उनकी बात सुनने लगी. मेरे भाई को उन्होंने सटा के, Almost अपने गोद में (खींच के गोस में ही बैठा लिया). सामने ननदोई जी एक बोतल (दारू की) खोल रहे थे. मेरे भाई के गालों पे हाथ लगा के बोले, “यार तेरा साला तो बड़ा मुलायम है..”
“और क्या एकदम मक्खन मलाई….” दूसरे गाल को प्यार से सहलाते ‘ये’ बोले.
“गाल ऐसा है तो फिर गाण्ड तो…… क्यों साले कभी मरवाई है क्या..??” बोतल से सीधे घुट लगाते मेरे ननदोई बोले और फिर बोतल ‘उनकी’ ओर बढ़ा दी.
मेरा भाई मचल गया और मुँह फूला के अपने जीजा से बोला, “देखिये जीजाजी, अगर ये ऐसी बात करेंगे तो….”
उन्होंने बोतल से दो बड़ी घुट ली और बोतल ननदोई को लौटा के बोले, “जीजा, ऐसे थोड़े ही पूछते है.!! अभी कच्चा है, मैं पूछता हूँ…”
फिर मेरे भाई के गाल पे प्यार से एक चपत मार के बोले, “अरे ये तेरे जीजा के भी जीजा है, मजाक तो करेंगे ही…. क्या बुरा मानना..?? फिर होली का मौका है. तू लेकिन साफ-साफ बता, तू इत्ता गोरा चिकना है लौंडियों से भी ज्यादा नमकीन, तो मैं ये मान ही नहीं सकता कि तेरे पीछे लड़के ना पड़े हो.!!! तेरे शहर में तो लोग कहते है कि अभी तक इसलिए बड़ी लाइन नहीं बनी कि लोग छोटी लाइन के शौक़ीन है.” और उन्होंने बोतल ननदोई को दे दी.
ना नुकुर कर के उसने बताया कि कई लड़के उसके पीछे पड़े तो थे और कुछ ही दिन पहले वो साईकिल से जब घर आ रहा था तो कुछ लडको ने उसे रोक लिया और जबरन स्कुल के सामने एक बांध है, उसके नीचे गन्ने के खेत में ले गए. उन लोगों ने तो उसकी पेन्ट भी सरका के उसे झुका दिया था. लेकिन बगल से एक टीचर की आवाज सुने पड़ी तो वो लोग भागे.
“तो तेरी कोरी है अभी..??? चल हम लोगों की किस्मत… कोरी मारने के मज़ा ही और है.” ननदोई बोले और अबकी बोतल उसके मुँह से लगा दिया. वो लगा छटपटाने….
उन्होंने उसके मुँह से बोतल हटाते हुए कहा, “अरे जीजा अभी से क्यों इसको पीला रहे है..???” (लेकिन मुझको लग गया था कि बोतल हटाने के पहले जिस तरह से उन्होंने झटका दिया था, दो-चार घूंट तो उसके मुँह में चला ही गया.) और खुद पिने लगे.
“कोई बात नहीं…कल जब इसे पेलेंगे तो पिलायेंगे….” संतोष कर ननदोई बोले.
“अरे डरता क्यों है.??” दो घुट ले उसके गाल पे हाथ फेरते वो बोले, “तेरी बहना की भी तो कोरी थी, एकदम कसी… लेकिन मैंने छोड़ी क्या.?? पहले उँगली से जगह बनाई, फिर क्रीम लगा के, प्यार से सहला के, धीरे-धीरे और एक बार जब सुपाडा घुस गया, वो चीखी, चिल्लाई लेकिन…. अब हर हफ्ते उसकी पीछे वाली दो-तीन बार तो कम से कम…..” और उन्होंने उसको फिर से खींच के अपनी गोद में सेट करके बैठाया.
दरवाजे की फाँक से साफ़ दिख रहा था. उनका पजामे जिस तरह से तना था मैं समझ गई कि उन्होंने Center करके सीधे वहीँ लगा के बैठा लिया उसको. वो थोड़ा कुनमुनाया, पर उनकी पकड़ कितनी तगड़ी थी, ये मुझसे बेहतर और कौन जान सकता था.?
Sanjay Bajaj
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