मजबूरी का फैसला complete

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jay
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Re: मजबूरी का फैसला

Post by jay »

Mitr mast kahani hai aapki
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(^^d^-1$s7)
(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
abpunjabi
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Re: मजबूरी का फैसला

Post by abpunjabi »

कहते हैं कि माँ बनने के बाद ही एक औरत की तकमील होती है |

इसीलिए हर औरत की तरह अपनी शादी के बाद ज़ाकिया की भी यह दिली ख्वाइश थी कि वो एक बच्चे की माँ बनकर अपने आप को एक मुकम्मल औरत के रूप में ढाले मगर अकरम बुढा होने की वजह से ज़ाकिया को औलाद की ख़ुशी ना दे सका |

और आज जब ज़ाकिया को पता चला कि वो प्रेग्नेंट है तो इस बात के बाजवूद कि उसके पेट में उसके अपने ही भाई का नाजायज़ बच्चा पल रहा है , फिर भी नाजाने क्यों आज ज़ाकिया अपने आप को एक मुकम्मल औरत महसूस करने लगी थी |

यह बातें सोचते सोचते ज़ाकिया के हाथ अपने आप शलवार के ऊपर से उसकी फूली हुई चूत के मोटे लिप्स तक जा पहुंचे | उसकी चूत में एक तंदूर जैसी आग लगी हुई थी |

“नहीईईइ.... मैं यह क्या बातें सोचने लगी हूँ , कुछ भी हो , बहन भाई का किसी भी किसम का जिस्मानी ताल्लुक़ एक बहुत बड़ा गुनाह है और मैं यह गुनाह नहीं कर सकती”, ज़ाकिया ने अपने जज़्बात से लडते हुए फ़ौरन अपनी चूत से अपना हाथ हटाया |

बाबा बुल्ले शाह का एक बहुत ही प्यारा शेयर है कि

“ऐविं रोज़ शैतान दे नाल लड़दा
कदी नफस अपने नाल लडया ही नई”

यह सच्ची बात है कि इंसान एक शैतान से तो लड़ सकता है मगर अपने जिस्म के अन्दर छूपे हुए “नफस” (अपनी ख्वाइश और जज़्बात” से लड़ना हर किसी के बस की बात नहीं |

इसीलिए यह लगता था कि आज ज़ाकिया भी अपनी नफस से लड़ते हुए अपनी लड़ाई हारने लगी थी |

आखिरकार ज़ाकिया खुबसूरत और जवान थी और हर जवान औरत की तरह उसके जिस्म में भी उमंगें और जज़्बात कूट-कूट कर भरे हुए थे | उसके जिस्म की भी कुछ जरूरतें थीं |

जिनको अकरम सारी ज़िन्दगी कभी भी सही तरीके से पूरा नहीं कर पाया था | वो ज़ाकिया को हर दफ़ा प्यासा और तडपता छोड़ देता और ज़ाकिया इसे अपनी किस्मत समझकर सबर शुक्र के साथ बर्दाश्त करती रही |

मगर आज अपनी बहनों के सलूक की वजह से ज़ाकिया के अन्दर अपनी बहनों के लिए ना सिर्फ नफरत पैदा हो गई बल्कि इस नफरत ने फ़ौरन ही एक बगावत की शकल इख़्तियार कर ली |

ज़ाकिया यह सोचने लगी कि जब उसकी बहनें लालच में आ कर उसके साथ बहन के सगे रिश्ते को बुला बैठी हैं तो फिर उसका भी यह हक बनता है कि वो भी

“चाहत में क्या दुनियादारी
इश्क में कैसी मजबूरी”

वाले इस शेयर के बकोल अपने आपको रिश्तों की क़ैद से आज़ाद करके अपनी ज़िन्दगी को अपनी मर्ज़ी के मुताबिक गुज़ारे और एन्जॉय करे |

हमारे इलाके में एक मिसाल बहुत मशहूर है कि “रंडी (बेवा औरत) तो शायद अपना रंडेपा काट ही ले मगर उसे मोहल्ले के “छ्दाई ((Bachelor) नहीं काटने देते |

इसी तरह कहते हैं कि पहली बार किसी से भी चुदवाने में हर लड़की या औरत नखरा जरूर करती है , लेकिन एक बार चुदने के बाद जब उसे चुदाई का स्वाद आता है तो फिर वो चुदाई के बगैर रह नहीं पाती |

और पेप्सी के टी.वी. ऐड की तरह हर वक़्त यह ही कहती है कि

“यह चूत मांगे मोर”

ऐसा ही कुछ हाल उस वक़्त ज़ाकिया का हो रहा था |

वोही ज़ाकिया जो इससे पहले अपने भाई से जिंसी ताल्लुक़ात को गुनाह समझती थी |

आज वो इस क़दर बागी हो गई थी कि बिस्तर पर पड़ी अपने भाई के लंड के बारे में सोचने पर मजबूर हो गई |

ज़ाकिया उलटी हो कर बिस्तर पर लेटी हुई थी | अब दुबारा उसका एक हाथ उसके पेट के निचे से और दूसरा हाथ उसकी कमर के पीछे से होकर उसकी चूत पर आ कर उसकी फुद्दी से खेलने लगा था |

ज़ाकिया ने अपनी आँखें मूँद लीं और उस लम्हे को याद करने लगी जब वेगास में वकास का लंड उसकी चूत की दीवारों को छेदता हुआ उसकी फुद्दी में पहली बार दाखिल हुआ था तो एक शादी शुदा औरत होने के बावजूद ज़ाकिया को उस वक़्त ऐसा लगा जैसे वो अपनी सुहागरात को पहली दफ़ा चुदवा रही हो |

“भाई के लंड का तड़का
बहन की चूत का अंग अंग फड़का”
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mastram
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Re: मजबूरी का फैसला

Post by mastram »

abpunjabi wrote: 29 Aug 2017 19:29

ज़ाकिया ने अपनी आँखें मूँद लीं और उस लम्हे को याद करने लगी जब वेगास में वकास का लंड उसकी चूत की दीवारों को छेदता हुआ उसकी फुद्दी में पहली बार दाखिल हुआ था तो एक शादी शुदा औरत होने के बावजूद ज़ाकिया को उस वक़्त ऐसा लगा जैसे वो अपनी सुहागरात को पहली दफ़ा चुदवा रही हो |

“भाई के लंड का तड़का
बहन की चूत का अंग अंग फड़का”
kya mast dialogue chipakaya hai wahhhhhhhhhhhhhhhhh
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