मजबूरी का फैसला complete

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abpunjabi
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Re: मजबूरी का फैसला

Post by abpunjabi »

(हर इंसान अपनी ज़िन्दगी में अक्सर रात को सोते हुए ख्वाब देखता है , कहते हैं कि इंसान अक्सर जो दिन भर सोचता और देखता है वही रात को ख्वाब की सुरत में भी उसके सामने आता है )
कुछ ऐसे ही हालात अन्दर कमरे में अपने बिस्तर पर सोती ज़ाकिया की थी | जो रात के पिछले पहर नींद में दिन वाले स्पेनिश ड्रामे के हीरो का ख्वाब देख रही थी | असल में दोपहर को ड्रामा के गर्म सीन देखने की वजह से ज़ाकिया के जिस्म में जो गर्मी पैदा हुई थी, उस गर्मी को ज़ाकिया ने बाथरूम में नहाते वक़्त अपने हाथों से कम करने की कोशिश की थी |
लेकिन वकास का बेवक्त फोन आने से ज़ाकिया अपनी चूत का पानी निकाल कर फारिग ना हो पाई |
इसीलिए लगता था कि दिन की गर्मी का असर ज़ाकिया के दिल ओ दिमाग पर अभी तक छाया हुआ था जो ज़ाकिया के नींद में होने की वजह से अब एक ख्वाब की शक्ल में उसके सामने आने लगा |
अपने ख्वाब में ज़ाकिया स्पेनिश हीरो की बाँहों में हीरोइन की जगह अपने आप को देख रही थी |
ज़ाकिया के ख्वाब में हीरो और ज़ाकिया पूरे नंगे खड़े थे | दोनों के होंठ एक दुसरे में जज़ब थे और वो एक दुसरे के साथ जबरदस्त क़िस्म की किस्सिंग कर रहे थे |
ज़ाकिया के हाथ हीरो की कमर और गांड पर फिसल रहे थे | जबकि ज़ाकिया हीरो का एक हाथ अपनी नंगी चूत के ऊपर बेताबी से फिरता हुआ महसुसू कर रही थी |
थोड़ी ही देर में , चूत पर गर्मजोशी से हाथ फेरते हीरो के हाथ की दो उँगलियाँ एक दम ज़ाकिया की प्यासी फुद्दी की गहराईओं में गडप से दाखिल हो गई |
यूँ ही ज़ाकिया को हीरो की उँगलियाँ अपनी चूत में दाखिल होती हुई महसूस हुई | ज़ाकिया एक दम से सिस्करीईइ, “आह्ह्ह्हह्ह” और साथ ही ज़ाकिया की आंखें खुल गयीं |
यूँ पकी नींद से अचानक उठने पर पहले तो ज़ाकिया को समझ नहीं आई कि वो किधर है और यह सब क्या हुआ है |
दुसरे ही लम्हे ज़ाकिया ने महसूस किया कि उसका अपना हाथ उसकी शलवार के अन्दर है और उसके हाथ की दो उँगलियाँ उसकी चूत के अन्दर घुसी हुई तेजी से अन्दर बाहर हरकत कर रही हैं |
ज़ाकिया की चूत पानी पानी हो रही थी | ज़ाकिया अपनी इस हरकत पर खुद भी हैरान हुई कि उसे यह क्या हो गया है | अब उसे समझ आई कि वो जिस बात को एक ख्वाब समझी थी | वो ख्वाब नहीं बल्कि काफी हद तक एक हकीकत थी |

फर्क सिर्फ इतना था कि उसकी चूत से खेलने और उसमें दाखिल होने वाली उँगलियाँ किसी हीरो की नहीं बल्कि उसकी अपनी ही थी |
ज़ाकिया के हाथ अभी तक उसकी शलवार के अन्दर था और वो आहिस्ता आहिस्ता अपनी चूत से खेल रही थी |
ज़ाकिया ने शलवार के अन्दर से तो हाथ निकाल लिया | मगर बिस्तर पर लेटी लेटी शलवार के ऊपर से अपनी फुद्दी पर हाथ फेरती रही |
चूत से खेलते खेलते ज़ाकिया का दिमाग आज दिन में भाई वकास और उसके दरमियाँ होने वाली बातों की तरफ मुड गया |
(यह हकीकत है कि औरत चाहे कोई भी हो , वो हमेशा तारीफ की भूखी होती है, हर औरत चाहती है कि कोई उसका ख्याल रखे , उसको पसंद करे और उसकी तारीफ करे )
शादी के बाद जब भी ज़ाकिया ने कोई नए कपडे पहने या कभी कहीं जाने के लिए तैयार हो कर अकरम के सामने आई तो वो हमेशा इसी बात की मुतिज़र रही कि अकरम उसे देखे और तारीफ करे |
मगर अकरम हमेशा ज़ाकिया पर एक सरसरी निगाह डालकर खामोश रहता | जो ज़ाकिया को अच्छा नहीं लगता था |
इसीलिए आज पहली बार जब वो भाई की पसंद के कपडे पहन कर उसके सामने आई और जिस तरह उसके भाई ने उसको देखा और तारीफ की वो नाजाने क्यों ज़ाकिया के दिल को अच्छी लगी |
लेकिन साथ साथ वकास के आज के दिन का “रविया” ज़ाकिया के लिए काफी हैरतकुन भी था |
( कुदरत ने औरत को यह “खूबी” अता की है कि जब एक मर्द उसके जिस्म पर निगाह डालता है तो औरत की सिक्स्थ सेंस उसे फ़ौरन यह बता देती है कि यह मर्द उसे किस नज़र से देख रहा है )
ज़ाकिया ने भी आज पहली बार अपने भाई वकास को अपने जिस्म के पोशीदा और छुपाए हुए नाज़ुक हिसों से खेलते और देखते महसूस किया था |
भाई का ख्याल आते ही ज़ाकिया की चूत से खेलती हुई उँगलियाँ रुक गईं |
“स्पेनिश हीरो का ख्वाब देखते यह वो अचानक अपने ही भाई के बारे में क्यों सोचने और उस पर शक करने लगी है”, यह सोच कर ज़ाकिया अपने आप से शर्मिंदा सी हुई |
“यह कैसे हो सकता है कि एक भाई अपनी ही बहन पर गन्दी नज़र डाले, यह नामुमकिन है” |
बिसतर पर पड़ी ज़ाकिया अपने आप से लडती रही कि उसका भाई एक शरीफ इंसान है और वो बेवजह अपने भाई को गलत समझ रही है |
दुसरे ही लम्हे ज़ाकिया के ज़ेहन में वो मंज़र दौड़ गया | जब वकास का खड़ा हुआ लंड उसे अपनी गुदाज टांगों के दरमियाँ चुबता हुआ महसूस हुआ था |
“क्या वाकई ही उसका भाई उसके लिए गर्म हुआ था ?”
ज़ाकिया सोच में पड गयी | वो भाई की निगाहों का मतलब तो गलत समझ सकती है लेकिन उसके जिस्म से टच होने वाले उस तने हुए लंड का मतलब वो क्या समझे |
“वकास बेशक उसका भाई है , मगर है तो एक जवां मर्द” और ज़ाकिया ने आज पहली बार अपने मरहूम शोहर के इलावा किसी और मर्द के लंड को अपने जिस्म के साथ टच होते महसूस किया था |
“क्या गर्म रोड जैसा था” , यह सोच कर ज़ाकिया के जवान जिस्म में एक सनसनी सी दौड़ गई | उसका भाई एक मर्द के रूप पहली बार उसके सामने आया था |
ना चाहते हुए भी ज़ाकिया की अपनी चूत पर उसकी उँगलियाँ खुद बाखुद हरकत करने लगी |
अब उसके बदन में सुरसुराहट होने लगी थी | ज़ाकिया ने कई बार अपनी चूत को शलवार के उपर से ही दबाया और सिसकारी मारी ......स्स्स्सीईईइ......ईईईईईईई......
अब की बार ज़ाकिया की उँगलियाँ उसकी गर्म चूत में मज़ीद तेज़ी से चलने लगी |
“ऊफ्फ्फ्फफ्फ्फ्फ़ नहींइइइइइ.... यह मै क्या कर रही हूँ” , ज़ाकिया ने अपनी प्यासी चूत पर फिसलते हाथ को रोक लिया |

ज़ाकिया के जिस्म में गर्मी दौड़ रही थी | जिसकी वजह से ना सिर्फ उकी चूत पानी छोड़ रही थी | बल्कि उसका पूरा जिस्म भी चूत की गर्मी के असर से पसीने पसीने हो रहा था |
ज़ाकिया बिस्तर से उठी और दरवाज़े पर लगी कुण्डी को चेक किया कि वो लगी हुई है जा नहीं |
उसके बाद ज़ाकिया ने अपने कपडे उतारे और सिर्फ ब्रा और पैंटी में बिस्तर पर औंधे मुंह आ कर लेट गई |

इस तरह लेटने से उसका अंडरवियर उसकी बड़ी गांड में फंस गया और उसकी बाहरी गांड की बड़ी बड़ी पहाड़ियाँ फ़ैल गयीं |
ज़ाकिया ने अपनी आँखें बंद कर लीं और वकास के ख्याल को ज़ेहन से निकालने के लिए उसने दुबारा स्पेनिश हीरो का ख्याल अपने ज़ेहन में लेने की कोशिश की |
लेकिन ज़ाकिया के ज़ेहन में हीरो का चेहरा आने की बजाए रेस्टोरेंट में भाई के साथ गुज़ारे वक़्त का ख्याल आया और वो दुबार भाई के रवइये के बार में सोचने लगी |




रेस्टोरेंट में भी कई बार उसे महसुस हुआ था कि उसके भाई की गर्म निगाहें उसके सीने पर टिकी हुई हैं | जैसे वो बेताब हो कि कब वो ज़रा सी झुके और कब वो अपनी बहन की उभरी हुई जवान छातियों का नज़ारा करे |
ज़ाकिया को यकीन था कि जब वो घर का दरवाज़ा खोलने में मशरूफ थी | तो उसका भाई उसके पीछे से उसके बड़े बड़े कूल्हों को घुर रहा था |
भाई की अपनी खुबसुरती के बार में कहे हुए अल्फाज़ ज़ाकिया के कानो में रस घोलते जा रहे थे |
“यह मुझे क्या हो गया है , क्यों बार बार भाई का ख्याल मेरे ज़ेहन में आ रहा है” , ज़ाकिया ने खुद को अपने भाई के ख्यालों से निकालते हुए अपने आप से खुद ही सवाल किया |
ज़ाकिया के बदन में लगी आग कपडे उतारने से भी कम ना हुई | ज़ाकिया को अभी भी नाजाने क्यों गर्मी महसूस हो रही थी |
ज़ाकिया एक हाथ अपनी कमर से पीछे ले गई और अपने ब्रेज़िएर की हुक खोल कर ब्रेज़िएर उतार दी और सीधी हो कर बिस्तर पर लेट गई |
ज़ाकिया ने अपना एक हाथ अपने अंडरवियर में डाला और चूत से खेलने लगी |
ज़ाकिया की चूत बहुत पानी छोड़ रही थी | जिससे ज़ाकिया की चूत की गर्मी मजीद बढ़ने लगी | ज़ाकिया ने अपने दुसरे हाथ से अपना अंडरवियर भी उतार दिया था | कि उसका हाथ पूरी आज़ादी से उसकी चूत के साथ खेल सके |
ज़ाकिया की चूत पर उसका हाथ पूरी रफ़्तार से हरकत में था और ज़ाकिया तेजी से अपनी चूत के मोटे लबों के दरमियाँ से अपनी ऊँगली को अपनी गुदाज चूत के अन्दर घुसा रही थी |
ज़ाकिया अपनी टाँगे खोले बिस्तर पर पड़ी पड़ी अपनी फुद्दी की आग को अपने हाथों से कम करने की कोशिश में मशगुल थी |
उस लम्हे ज़ाकिया की फुद्दी की आग ने उसको इतना बेकाबू कर दिया था कि उसकी सोच समझ की शक्ति जैसे ख़त्म हो गई |
उसे अब ना किसी हीरो का ख्याल था न वो अपने भाई के बारे में सोच रही थी | उसे फिक्र थी तो बस यह कि वो अपनी फुद्दी की भडकी हुई आग को कैसे ठण्ड करे |




फिर चूत से खेलते खेलते आखिर ज़ाकिया को मंजिल मिल ही गई | उसकी चूत ने इतना पानी छोड़ा कि वो पानी उसकी गुदाज रानों के दरमियाँ में से बहता बिस्तर की चादर में जज़ब हो गया |
आज काफी टाइम बाद ज़ाकिया ने अपनी फुद्दी से इस तरह खेला और उसकी चूत बहुत ज्यादा छूटी थी | मगर फिर भी ज़ाकिया को सकून नहीं मिला | उसका जिस्म फिर भी प्यासा ही रहा |
रातभर ज़ाकिया करवटें बदलती रही | रात भर बिना कुछ किए ही ज़ाकिया कई बार गीली हो गई |
आज दोनों बहन भाई घर की दीवार को दोनों तरफ अपने अपने जिस्म की आग को अपने हाथों से मिटाने की नाकाम कोशिश में मशगुल थे | लेकिन वो कहते हैं ना कि
“इश्क ऐसी आग है ज़ालिम
लगे ना लगे , बुझे ना बुझे”
इसीलिए यह भी वो आग थी जो मुठ या ऊँगली से अब बुझने वाली नहीं थी |
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rajsharma
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Re: मजबूरी का फैसला

Post by rajsharma »

shandaar update
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साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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007
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Re: मजबूरी का फैसला

Post by 007 »

बहुत खूब
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

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