मजबूरी का फैसला complete

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abpunjabi
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Re: मजबूरी का फैसला

Post by abpunjabi »

ज़ाकिया को याद आने लगा कि कैसे उस रात वकास के लौड़े ने उसकी चूत के अंग अंग में हलचल मचाई थी |

वकास के लौड़े में ऐसी सख्ती थी जिसका ज़ाकिया ने कभी अकरम के लंड में तसव्वुर भी ना किया था |

ज़ाकिया की आँखें बंद थीं और उसे अपनी बंद आँखों में अपना भाई अपने सामने नंगा हो कर खड़ा नज़र आ रहा था |

ज़ाकिया को यूं महसूस हो रहा था जैसे वकास का खालिस मरदाना हिस्सा उसे अपनी तरफ खीच रहा है कि वो आगे बढे और वकास के मज़बूत और मोटे लंड से अपनी प्यासी चूत की प्यास बुझा ले |

लेकिन इससे पहले कि ज़ाकिया आगे बढती वकास का तसव्वुर उसकी निगाहों के सामने से एक दम गायब हो गया |

वकास के बारे में सोचते सोचते ज़ाकिया का एक हाथ खुद बाखुद उसकी शलवार के अन्दर चला गया |

ज़ाकिया बिस्तर पर पड़ी सिसक रही थी , तडप रही थी और अपनी चूत से खेल रही थी |

ज़ाकिया के जिस्म में एक ऐसी आग थी , जिससे ज़ाकिया का बदन पिघलता जा रहा था | ज़ाकिया का दिल चाह रहा था कि वकास इसी वक़्त उसके पास हो और वो ज़ाकिया के जिंसी हिस्सों को छुए , उन्हें चूसे , उन्हें मसले और उसे चोदे |

ज़ाकिया के जिस्म का हर हिस्सा जवानी के महकते रस से भरा हुआ था | उसकी छातियाँ जैसे तन कर अकड़ गई थी और ऐसे लगता था कि शिद्दत– ए–जज़्बात से फट जाएँगी |

ज़ाकिया के दिमाग में बस अपने भाई वकास की शकल ही आ जा रही थी और साथ ही उसका हाथ कभी उसके मम्मो पर आ जाता तो कभी पेट से होता हुआ शलवार के अन्दर चला जाता |

ज़ाकिया की चूत अब तक ना जाने कितनी ही बार अपने ही पानी से से भीग चुकी थी |

ज़ाकिया ने अपनी चूत से खेलते हुए अपनी शलवार का नाडा खोला |

और अपनी शलवार को आहिस्ता से अपनी टांगों से थोडा निचे किया जिससे उसकी मोटी टांगें नंगी हो गईं | अब ज़ाकिया थोड़ी साइड पर लेटी हुई थी और इस तरह लेटकर वो अकरम और वकास की चुदाई की तुलना करने लगी |

कि कैसे अकरम उससे चुदाई के वक़्त उसके जिंसी जज़्बात को भड़काता , उनको आंच देता मगर फिर वो ज़ाकिया की चूत की तसल्ली करने से पहले ही फ़ारिग हो जाता |

मगर इसके उलट वकास में कुछ अलग ही था | आज पहली बार ज़ाकिया यह महसूस करने पर मजबूर हो गई कि वकास सही मायनों में उसके लिए एक ज़बरदस्त जिंसी कशिश रखता है |

अगर चे कि ज़ाकिया ने अकरम से शादी मजबूरी में की थी लेकिन हर लड़की की तरह ज़ाकिया ने भी अपनी चढ़ती जवानी में अपने ज़ेहन और दिल के एक कोने में अपना एक आइडल बनाया था |

आज ज़ाकिया को समझ आई कि जिस आइडियल को वो आज तक अपने दिल के कोने में बैठा कर उसकी “पूजा” करती रही और उसे बाहर तलाश करती रही | उसके ख्वाबों का वो शह्जादा तो उसके भाई की शकल में हमेशा से ही उसके सामने ही था |

वकास ने एक शह्जादे की तरह आकर ज़ाकिया की प्यासी और बंजर चूत को चोद कर ना सिर्फ ज़ाकिया को असल चुदाई का मज़ा दिया बल्कि अपनी बहन को उसकी बेवगी की क़ैद से भी निजात दिलाई थी |
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pongapandit
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Re: मजबूरी का फैसला

Post by pongapandit »

mast update hai mitr
abpunjabi
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Re: मजबूरी का फैसला

Post by abpunjabi »

ज़ाकिया सोचने लगी कि अगर वकास उस रात उसे ज़बरदस्ती ना चोदता तो फिर शायद उसकी ज़िन्दगी में जीने का कोई मकसद ही बाकी ना रहता |

वकास ने एक ही रात में जिंसी सैटीसफैकसन ज़ाकिया को दी थी उसका असर ज़ाकिया अपनी चूत में अभी तक महसूस कर रही थी |

उस एक ही रात में वकास ने ज़ाकिया को जवानी का वो मज़ा दिया जो अकरम उसे पूरी शादी शुदा ज़िन्दगी में ना दे पाया था |

अपनी चुदाई को याद करते हुए ज़ाकिया के जिस्म से एक ज़बरदस्त किस्म की जिंसी आग निकलती गई और वो आग उसके जिस्म की तपिश बढाती गई |

ज़ाकिया को इतनी गर्मी लगी कि उसके बदन को पसीना आ गया और उसने अपने आप को फ़ौरन अपने कपड़ों के बोझ से आज़ाद कर दिया |
ज़ाकिया बिलकुल नंगी हो गई और बिस्तर पर करवटें बदलती हुई अपनी प्यासी फुद्दी से खेलती रही |

“ओह्ह्ह्हह्ह मुझे आज पता चला कि इस दुनिया में अगर कोई मर्द मेरी जन्म जन्म की प्यासी चूत की प्यास बुझा सकता है तो वो मर्द सिर्फ तुम हो मेरे भाईईईईईई” |

भाई से चुदाई की यादों को अपने ज़ेहन में ताज़ा करते हुए ज़ाकिया का जिस्म टूटने लगा, दिल अंगडाईयां लेने लगा, उस पर अजीब सी मस्ती सवार हो गई और उसकी आँखों में एक खुमार उतर आया |

ज़ाकिया अपनी आँखें बंद किए हुए अपने जिस्म से खेल रही थी , वो अपनी एक ऊँगली अपनी चूत में डालकर अन्दर बाहर कर रही थी और साथ साथ हल्की अवाज में आह्ह्ह्हह्ह आह्ह्ह्हह्ह कर रही थी |

अपनी चूत से खेलते हुए वकास की न्यू यॉर्क एअरपोर्ट पर कही हुई थी एक बात ज़ाकिया के कानों में दुबारा गूंजी | जब वकास ने उसे कहा था कि वो उसे अब अपनी बीवी की हैसियत से देखता और प्यार करता है | ज़ाकिया को उस वक़्त तो भाई के यह अल्फाज़ अच्छे नहीं लगे थे |

मगर अब अपनी चूत से खेलते हुए अपने भाई के यह अल्फाज़ याद करके ज़ाकिया की चूत इन्ताहाई गर्म हो गई |

साथ ही ज़ाकिया हल्की आवाज़ में बडबडाने लगी, “भाई अगर तुम मुझे अपनी बीवी के रूप में कबूल कर चुके हो तो फिर मुझे भी तुम आज से एक शोहर के रूप में कबूल हो...कबूल हो....कबूल होहहहहहह...मेरे सरताज, मेरे भाई वकास्स्स्सस्स्स और फिर ज़ाकिया के जिस्म ने एक ज़ोरदार झटका लिया और झटके पे झटके खाती हुई ज़ाकिया इतनी छूटी कि उसकी चूत से पानी की नदियाँ बह निकली जो ज़ाकिया की टांगों को भी गीला कर गईं |

उस रात ज़ाकिया कई बार फारिग हुई | ज़ाकिया की चूत रात भर बहती रही मगर एक बार भी उसके जिस्म की प्यास नहीं बुझ पाई |

सुबह होते तक ज़ाकिया ने फैसला कर लिया था कि वो अपने अरमानों को मारकर, घुट घुट कर एक बेवा की तरह अपनी ज़िन्दगी मजीद नहीं गुज़ारेगी |

वो जाली निकाह की वजह से अमेरिका में लोगों और कानून की नज़र में पहले भी अपने भाई की बीवी बनी हुई थी इसलिए ज़ाकिया ने अब यह तह कर लिया था कि वो वकास के पास वापिस न्यू यॉर्क चली जाएगी |

और फिर गुनाह और सवाब के तसव्वुर को भुलाकर अपनी बाकी की ज़िन्दगी अपने भाई की “असल बीवी” बन कर मज़बूत बाँहों के हसर में क़ैद हो कर उसके घोड़े जैसे लौड़े को अपनी गर्म चूत के आगोश में जज़ब कर गुज़ार देगी |

और अपने पेट में पलते हुए भाई के बच्चे को जरूर जन्म देगी |

ज़ाकिया के पहले दो मजबूरी का फैसलों की तरह उसका यह तीसरा फैसला भी एक मजबूरी का फैसला था | मगर इस फैसले को करते हुए ज़ाकिया को एक अजीब सी ख़ुशी भी हो रही थी |

ज़ाकिया अपने इस फैसले पर मुत्मीन होने के बाद एक पुरसकून नींद में चली गई |


समाप्त
abpunjabi
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Re: मजबूरी का फैसला

Post by abpunjabi »

दोस्तों यह कहानी यहीं पे पूरी होती है , सब कुछ अच्छा रहा तो एक नई कहानी ले कर आपकी सेवा में फिर से हाज़िर हूँगा |
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pongapandit
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Re: मजबूरी का फैसला

Post by pongapandit »

मित्र बहुत ही मस्त और सेक्सी कहानी है आपकी और उतना ही अच्छा इस कहानी का एंड है हमें आपकी नेक्स्ट कहानी का बैचैनि से इंतजार रहेगा
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