मजबूरी का फैसला complete

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abpunjabi
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मजबूरी का फैसला complete

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साल : 1985

इस कहानी का आगाज आज से कई साल पहले साल 1985 में मंडी बहाउद्दीन के पास एक छोटे से गाँव में हुआ | उस गाँव में सब लोग ज्यादातर ज़मींदारी कर के अपनी गुज़र बसर करते थे |

इधर एक खानदान रहमत मोची का भी था | रहमत की उम्र 55 साल की थी | उसकी बीवी शरीफा बीवी की उम्र उस वक़्त अंदाज़न 50 साल की होगी | उनके 5 बच्चे थे | सब से बड़ी लड़की मुख़्तार बीवी थी , जिस की उम्र उस वक़्त 25 साल थी | उसके बाद अस्मत बीवी थी जिसकी उम्र 23 साल फिर रेहाना बीवी 21 साल फिर एक बेटा था जिस का नाम वकास हुसैन था और उसकी उम्र 19 साल और सब से आखिर में ज़ाकिया खानुम थी जिस की उम्र उस वक़्त अभी सिर्फ 16 साल की थी |

ज़ाकिया अपनी तीनो बड़ी बहनों से मुक्तलिफ़ और प्यारी थी आवो बेहद हसीं ना सही लेकिन वो पुर कशिश ज़रूर थी उसका जिस्म डबल पतला मगर गर्म और नशीला था |
जवां होते हुए सीने पर छोटे छोटे मम्मे थे | जिनकी नरमी का अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं था | पतली सी कमर , भरपूर सुडोल जांघें और सबसे बड़ी बात उसकी मस्त करने वाली चाल थी | ज़ाकिया का कद ऊंचा था और उसके बाल काफी लम्बे थे | जोकि उसकी छोटी सी गांड तक आते थे |
ज़ाकिया और उसका भाई वकास हुसैन ही अपने घर में दो ऐसे इंसान थे जोकि कुछ पड़े लिखे थे | उसका भाई मेट्रिक पास कर चूका था , जब कि ज़ाकिया ने अपनी अभी मिडिल क्लास का इम्तिहान दिया था |

बाबा रहमत मोची का खानदान बहुत ही गरीब था | बाबा रहमत गाँव के लोगो के जूते और चप्पल सी कर अपनी रोज़ी रोटी चला रहा था | उनकी गुज़र बसर बहुत ही मुश्किल से हो रही थी | वो कभी कभी दिन में सिर्फ एक वक़्त ही खाना खाते | बाबा रहमत मोची की बेटियां जवान हो कर शादी की उम्र को पहुँच रही थी | उनकी शादी और दहेज़ के लिए होने वाले खर्च का सोच कर बाबा रहमत और उसकी बीवी शरीफा बीबी दोनों बहुत परेशान थे |

इसी गाँव में 42 साला ज़मिंदार चौधरी अकरम गुज्जर भी था | चौधरी अकरम के माँ बाप दोनों मर चुके थे | अकरम अपनी माँ बाप की इकलोती औलाद है उसने अभी तक शादी नहीं की थी | उसको जुआ खेलने और घस्ती औरतों को चोदने की लत लगी हुयी थी | जिस को पूरा करने के लिए वो अपनी जद्दी पुश्तेनी ज़मीन अहिस्ता अहिस्ता बेच रहा था | चौधरी अकरम ज्यादातर वक़त गाँव से बाहर बने अपने डेरे पर ही गुजारता था | रहमत मोची का बेटा वकास हुसैन , चौधरी अकरम गुज्जर के डेरे पर काम करता था |
abpunjabi
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Re: मजबूरी का फैसला

Post by abpunjabi »

आज दो दिन से वकास डेरे पर नहीं आया था | उसके यूं बगैर वजह बताए ना आने से चौधरी अकरम बहुत गुस्से में था और वो वकास का पता करने आज काफी दिनों बाद अपने डेरे से गाँव की तरफ चल पड़ा |

बाबा रहमत मोची के घर के बाहर पहुँच कर अकरम ने दरवाज़ा ख़ट खटाया |
बाबा रहमत ने थोड़ी देर बाद दरवाज़ा खोला और पूछा , “कौन”?
अकरम : “बाबा रहमत मैं हूँ अकरम “.
बाबा रहमत: चौधरी आज तू किधर रास्ता भूल कर इधर आ निकला |
चौधरी अकरम : बाबा , वकास का पता करने आया हूँ आज दो दिन से डेरे पर नहीं आया |
बाबा रहमत: चोधरी साहब वकास को तो दो दिन से बुखार है और वोह अभी भी हकीम के पास दवाई लेने गया है |

चौधरी अकरम का गुस्सा बाबा रहमत की बात सुन कर थोडा ठंडा हुआ |
चौधरी अकरम : अच्छा बाबा, जब वकास बेहतर हो जाये तो उसे डेरे भेज देना | मैं चलता हूँ | इतना कह कर अकरम वापिस मुडने लगा |
बाबा रहमत : ना चोधरी अकरम तू आज पहली दफा हमारे घर आया है | मैं तुझे ऐसे नहीं जाने दूंगा | आ अंदर आजा , अंदर बैठ कर बातें करते हैं और तुझे चाय भी पिलाता हूँ .
चौधरी अकरम ने थोडी देर बाबा रहमत की दावत टालने की कोशिश की , मगर बाबा रहमत के इसरार पर चाय पीने के लिए मान गया |

चौधरी अकरम और बाबा रहमत साथ साथ चलते बाबा रहमत के घर दाखिल हुए | अकरम आज जिन्दगी में पहली बार बाबा रहमत के घर के अन्दर आया था |

रहमत मोची का घर कच्ची ईटों और गारे से बने हुए दो कमरों पर मुश्तिमल था उन दो कमरों के दरमियाँ एक छोटा सेहन भी था |

चौधरी अकरम सेहन में पड़ी एक चारपाई पर बैठ गया जो रस्सी से बनी हुयी थी |
उनके बैठते ही रहमत ने आवाज़ लगायी , “ज़ाकिया बेटी चाय तो पिलाना”|
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Re: मजबूरी का फैसला

Post by rajaarkey »

दोस्त नई कहानी के लिए शुभकामनाएँ

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