चूत के चक्कर में

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Rohit Kapoor
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चूत के चक्कर में

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चूत के चक्कर में

मित्रो आपने इससे पहले मेरी रचना अनोखा सफर को जो प्यार और स्नेह दिया उसके लिए धन्य वाद । उम्मीद है आप मेरी या रचना को भी वैसा ही आशीर्वाद देंगे । धन्यावाद।

रामलाल आज अपनी सेना की नौकरी छोड़ कर वापस अपने गाँव लौट रहा था । 18 साल की उम्र में सेना में भर्ती हुआ रामलाल अंग्रेजो की सेना में युद्ध लड़ा फिर भारत के आजाद होने के बाद भी वो भारतीय सेना में रहा । अब 14 वर्ष की सेना की नौकरी छोड़ वो वापस गांव लौट रहा था । करता भी क्या रामलाल , इसी वर्ष उसके पिता स्वामीनाथ का स्वर्गवास हो गया, माता की तो उसके बचपन में ही मृत्यु हो चुकी थी, कुछ वर्ष पूर्व उसकी पत्नी कमला को भी गाँव में फैले हैजा ने लील लिया था। अब गाँव पे उसके खेत और घर की देखभाल करने वाला कोई नहीं था अतः रामलाल ने अपनी फ़ौज की नौकरी छोड़ गाँव लौटने का फैसला किया ।
32 वर्षीय रामलाल खुद को अब बहुत अकेला महसूस कर रहा था जबतक उसकी बीवी कमला जीवित थी तबतक तो वो गाँव आता जाता रहता था पर उसके मरने के उपरान्त उसने गाँव आना ही छोड़ दिया। भगवान् ने उसे कोई औलाद भी नहीं दी थी जिसके सहारे वो बाकी की जिंदगी काटे । कई लोगो ने उसको दुबारा विवाह करने की सलाह दी पर रामलाल अब दुबारा इस व्यर्थ के झंझटों में नहीं फंसना चाहता था । बस एक समस्या थी उसके सामने की वो अपनी ठरक को कैसे शांत करेगा। रामलाल ने सोचा किसी न किसी तरह वो गाँव पहुच कर एक परमानेंट चूत का जुगाड़ करेगा ।
शाम ढल चुकी थी और रामलाल भी अब गाँव पहुच चूका था । गाँव की चौपाल पे कुछ बुजुर्ग बैठ कर हुक्का फूंक रहे थे । उनमे से एक गाँव के मंदिर का पुजारी माधव था दूसरा गाँव का सरपंच लखन और तीसरा गाँव के मौलवी साहब बिलाल मियां थे।
रामलाल ने पास पहुच कर सबको प्रणाम करते हुए कहा " पुजारी जी प्रणाम लखन ताऊ राम राम और मौलवी साहब आदाब "
रामलाल को देखते ही तीनो खुश हो गए । लखन सिंह बोले " आओ रामलाल बेटा बैठो कब आये ?"
रामलाल " बस ताऊ अभी आया "
तभी पुजारी जी बोल पड़े " और सुनाओ रामलाल शहर में क्या हाल चाल है ?"
रामलाल " सब बढ़िया है पुजारी जी आप कैसे है और पुजारन जी कैसी हैं ।"
पुजारी " हम दोनों बहुत अच्छे हैं ।"
अब मौलवी साहब भी बोल पड़े " और रामलाल तुम्हारे बापू के जाने के बाद तो हमारी गोल ही टूट गयी तुम कितने दिन के लिए आये हो ?"
रामलाल " मौलवी साहब अब तो मैं यहीं गाँव में रहूँगा और घर और खेती की देखभाल करूँगा ।"
मौलवी साहब " ये तो बहुत अच्छा है बेटा तुम्हारे यहाँ रहने से तुम्हारे पिता जी की कमी हमे नहीं खलेगी । रोज आते रहना चौपाल पे हमसे मिलने हम भी मियां गप्पे मारेंगे तुम्हारे साथ "
राम लाल " जी मौलवी साहब "
लखन सिंह " आज रात कहाँ खाना वाना खाओगे चलो मेरे घर चलो वहीं आज भोजन करो फिर घर जाना ।"
रामलाल " नहीं ताऊ आज नहीं फिर कभी । रमुआ होगा घर पे और उसकी महरी भी वही खाना बना देंगे आज मेरा ।"
लखन सिंह " रमुआ तो कहीं पी पा के पड़ा होगा ससुरा पर हाँ उसकी महरी कजरी होगी घर पे । ठीक है पर एक दिन हमारे यहाँ भी भोजन करने आओ "
रामलाल " जी ताऊ "
रामलाल तेजी से अपने कदम घर की तरफ बढ़ाता है । रामलाल का घर ज्यादा बड़ा तो नहीं था पुराना खपरैल का मकान । आगे की तरफ एक खुला आँगन था जो चारो ओर से कच्ची दिवार से घिरा था । पीछे दो कमरे और एक रसोई घर था ।
रामलाल ने घर पहुच कर घर का ताला खोला और अपना सामान बरामदे में रखा । अंदर के कमरे से एक चारपाई निकाल के वो आँगन में बिछा दी। उसने अपना पेंट बूसट निकाल दिया और बनयान और धोती पहन ली ।
उसको भूख लगी थी तो उसने रामू को बुलाने की सोची। रामू रामलाल के घर से अलग कुछ दूर पर बनी झोपडी में रहता था ।
रामलाल रामू की झोपड़ी के पास पहुंचा और रामू को आवाज देके बुलाया " रमुआ ओ रमुआ कहाँ है बे "
तभी उसकी दुल्हन कजरी अंदर से घूँघट में निकली " मालिक पाई लागु हमरे मर्द तो अभही नहीं हैं "
रामलाल " अच्छा कहाँ गवा है रमुआ "
कजरी " कहाँ गए होइहे मालिक बस उहि मुई दारू के ठेके पे पड़े होंगें। "
रामलाल " ठीक है मुझे भूख लग रही है जरा कुछ बना दो ।"
कजरी " अभी लो मालिक "

कुछ देर बाद कजरी रामलाल के घर के आँगन में बने मिट्टी के चूल्हे में लकड़ी डाल उसपर खाना पका रही थी । रामलाल वही खाट पे लेटा उसे देख रहा था । रामलाल को वो दिन भी याद आ गया जब रमुआ की माँ कजरी का ब्याह रमुआ से करा के लाई थी। दोनों की शादी बचपनमें ही कर दी गयी थी । कजरी अपने नाम स्वरुप ही रंग से अत्यंत ही काली थी । इतना की जब वो हंसती थी उसके दांतो की सिर्फ सफेदी उसके चेहरे पे सिर्फ दिखाई देती थी । अब वो 20 22 साल की हो गयी थी । रामलाल ने एक बार उसे अपना परमानेंट जुगाड़ बनाने की सोची पर उसके काले हाथो को देख विचार त्याग दिया ।
कुछ देर बाद वो खाना बना के चली गयी रामलाल ने भोजन किया और दिन भर की थकान के कारण ही जल्द ही वो सो गया ।

अगले दिन सुबह रामलाल की आँख खुली तो सूरज सर पे चढ़ आया ता । रामलाल उठा और घर से बाहर निकल आया देखा तो कजरी उसकी भैसों और बैलों को चारा डाल रही थी । रामलाल सामने लगे नीम के पेड़ से दातून तोड़ लाया और घर के अंदर आ के अपने दांत घिसने लगा । फिर रामलाल ने कुल्ला किया और लोटा उठा के घर के पिछवाड़े झाड़ियों में संडास करने चला गया।
रामलाल ने एक जगह झाड़ियों के पीछे साफ जगह देख कर बैठ गया और संडास करने लगा । तभी उसने देखा की कजरी वहां आ गयी । उसने एक बार इधर उधर नजर दौड़ाई मैं चूंकि झाड़ियों के पीछे था इसलिये उसे दिखाई नहीं पड़ा । उसे शायद मूतना था तो उसने अपनी साड़ी को घुटनों तक उठाया और वही बैठ गयी। रामलाल को अब उसकी काली चूत में से झांकती उसकी गुलाबी मुनिया साफ़ साफ़ दिखाई दे रही थी। चूत देख कर रामलाल का लंड भी खड़ा हो गया । उधर कजरी के मूत्रद्वार से सी की आवाज के साथ पानी की एक धार छूट गयी । मूतने के बाद वो उठी और वहां से चली गयी।रामलाल अपने लंड को शांत करने के लिए वहीँ बैठे बैठे मुठ मारी । फिर वो अपना काम निपटा के वापस अपने घर ने आ गया ।
घर आके रामलाल ने स्नान किया और कुरता धोती पहन के घर से बाहर निकला । बाहर कजरी हाथ में चाय का गिलास लिए उसकी तरफ आ रही थी । रामलाल को देख उसने घूघट ले लिया और बोली " मालिक चाय पी लीजिये ।"
रामलाल ने उसके हाथों से चाय का गिलास ले लिया और उससे पूछा " रमुआ कहाँ है ?"
कजरी को तो जैसे यही चाहिए था वो तुनक के बोली " वो देखिये मालिक वहीँ झोपडी के सामने खटिया तोड़ रहे हैं ।"
रामलाल रामू के पास पंहुचा और एक जोर की लात उसकी कमर पे लगाई । रामू खटिया से नीचे गिर पड़ा और चिल्लाते हुए खड़ा हुआ " कौन है ससुर के नाती "
रामलाल ने खींच के एक झापड़ उसके कान पे लगाया तो उसकी आँखों के साथ उसकी बुद्धि भी खुल गयी । रामलाल को देखते ही वो खींस निपोरते हुए उसके पैरों में गिर गया और बोला " भैया माफ़ कर दो मैं जान नहीं पाया आप कब आये।"
रामलाल " कल ही आया हु और तेरी करतुते देख रहा हु ।"
रामू " अरे वो तो भैया ऐसे ही ।"
रामलाल " ससुरे काम पे ध्यान दे अब मैं आ गया हूं कोई गलती हुई तो गांड तोड़ दूंगा ।"
रामू " जी भैया "
रामलाल " चल अब तैयार हो जा और मुझे खेतो पे ले चल "
कुछ देर रामलाल अपने खेतों पे घूमता रहा और उनकी स्थिति जांचता रहा । खेत बहुत बुरी स्थिति में तो नहीं थे पर उनकी स्थिति सुधारी जा सकती थी ।
कुछ देर तक इधर उधर टहलने के बाद रामलाल ने रामू से पूछा " और बता रमुआ गाँव की कोई खबर ?"
रामू ये बात सुन के खुश हो गया और चहकते हुए बोला " अरे भैया आपको क्या बताऊँ इस गाँव में बूढों को ठरक चढ़ गयी है ।"
रामलाल चौंकते हुए " क्या हुआ बे ?"
रामू मजा लेते हुए " अरे भैया अपनें मौलवी साहब हैं न वो चौथी बेगम लाये हैं और वो भी अपनी बेटी की उम्र की ।"
रामलाल " सही में बे "
रामू " हाँ भैया और सुना है ससुरी चौचक माल है ।"
रामलाल " तुझे कैसे पता बे "
रामू " अरे भैया पंडित जी बता रहे थे ।"
रामलाल " अरे पंडित जी की ठरक कैसी है ?"
रामू " वैसे ही भैया जैसे पहले थी मौका देख के गोटी फंसा लेते है ।"
रामलाल " बेचारी पंडिताइन ।"
यही सब बात करते हुए दोनों वापस घर आ गए । कजरी ने रामलाल का भी खाना बना दिया था । रामलाल ने खाना खाया और दुपहर की नींद लेने के लिए खटिया पे लेट गया ।
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शाम को रामलाल की नींद लखन सिंह की आवाज से टूटी । रामलाल घर से बाहर निकला तो देखा की लखन सिंह दरवाजे पे खड़े थे।
रामलाल बोला " ताऊ प्रणाम आओ अंदर आओ। "
लखन सिंह " न बेटा अभी नहीं अभी तू जल्दी मेरे साथ चल काम है तुझसे ।"
रामलाल " क्या काम ताऊ ?"
लेखन सिंह " तू तैयार हो जा बड़ी हवेली चलना है जरुरी काम से ।"
रामलाल एक बार के लिए चौंका बड़ी हवेली पर ताऊ की बात मान कर चलने के लिए तैयार हो गया । कुछ देर बाद दोनों बड़ी हवेली को चल पड़े।
रामलाल ने लखन सिंह से पूछा " ताऊ हवेली वालो को मुझसे क्या काम मैं तो अभी गांव आया हु ।"
लखन सिंह " अरे वहां के दीवान जी ने बुलाया है ।"

रामलाल को अब बड़ी हवेली से जुडी बचपन की यादें याद आने लगती हैं की कैसे अगर किसी को बड़ी हवेली से बुलावा आया जाता तो आधे लोगो की जान ही सूख जाती थी । एक जमाना था जब बड़ी हवेली राजा हुकमसिंह की रियासत का केंद्र हुआ करती थी । राजा हुकमसिंह बड़ा ही खूंखार और ऐय्याश किस्म का राजा था इसलिए अगर किसी गाँव वाले को हवेली से बुलावा आया जाता तो इसका मतलब होता की उसने हुकमसिंह की नाराजगी मोल ले ली हो और अब उसकी खैर नहीं । हुकमसिंह की तक़रीबन दस साल पहले शिकार के वक्त घोड़े से गिर कर मौत हो गयी और उसके खौफ के साम्राज्य का अंत हो गया । हुकमसिंह की मृत्यु के बाद अब उसकी विधवा रानी ललिता देवी ने राज पाट संभाला । रानी ललिता स्वाभाव से दयालु थी उन्होंने गाँव वालों की पिछले कुछ वर्षों में बहुत मदद की और इस समय वो विधायक भी हैं यहाँ की । पर अब भी अगर किसी को बड़ी हवेली से बुलावा आ जाता है तो कोई मना नहीं कर सकता ।
कुछ देर चलने के बाद रामलाल और लखन सिंह बड़ी हवेली पहुचते हैं । हवेली अब भी पहले की तरह ही सजी धजी थी बाहर सुरक्षा के लिए लठैतों की पूरी सेना तैनात थी । लखनसिंह ने दरवाजे पे पहुचकर अपने सर से पगड़ी और पैर से जूती निकल के हाथ में लेली। भारत को आजाद हुए 13 साल हो गए थे पर गुलामी की ये परंपरा अभी जिन्दा थी । रामलाल ने भी मन मारते हुए अपना जूता निकल के हाथ में ले लिया और लखन सिंह जे पीछे पीछे हवेली में हो लिया ।
हवेली के अंदर की भव्यता तो बाहर से भी ज्यादा थी । हर जगह सजावट की महँगी महँगी चीज़े लगी हुई थी । कुछ देर बाद लखन सिंह और रामलाल एक कमरे में पहुचे जहाँ बड़े से दीवान पे एक बूढ़ा आदमी बैठा हुआ था ।
लखन सिंह ने उससे कहा " प्रणाम दीवान जी "
उस बूढ़े ने लखन सिंह को देखा और बोला " आओ लखन सिंह आओ "
लखन सिंह आगे बढ़ा और बोला " दीवान जी यही है मेरा भतीजा रामलाल जिसके बारे में मैंने आपको बताया था "
रामलाल ने भी दीवानजी को प्रणाम किया।
दीवान ने कहा " अच्छा तो ये है रामलाल आओ बैठो "
वहां कुर्सियां तो लगी हुई थी पर लखन सिंह ज़मीन पर बैठ गया और रामलाल भी मन मारकर ज़मीन पर बैठ गया । फिर दीवान जी बोले " हाँ तो बेटा रामलाल तुम फ़ौज में थे ?"
रामलाल " जी दिवान जी "
दीवान " अच्छा तो बेटा तुम्हे अंग्रेजी तो आती होगी ।"
रामलाल " बहुत अच्छे से तो नहीं हां पर पढ़ लेता हूं लिख लेता हूं और टूटी फूटी बोल भी लेता हूं ।"
दिवान " बहुत अच्छे बेटा हमे तुमसे ही काम था देखो अब मेरी उम्र में मुझसे सही से देखा नहीं जाता एक चिट्ठी आयी थी विदेश से जो मैं पढ़ नहीं पा रहा था अब ईस रियासत में ज्यादा पढ़ा लिखा तो कोई है नहीं और अंग्रेजी पढ़ना सबके बस की बात नहीं इसलिये मैं बहुत परेशान था । आज सुबह लखन सिंह ने तुम्हारे बारे में बताया तो मैंने ही तुम्हे यहाँ लाने के लिए बोला ।"
रामलाल " ठीक है आप मुझे वो चिट्ठी दीजिये मैं पढ़ देता हूं ।"
फिर दीवान ने एक चिट्ठी निकाल के रामलाल को दी । रामलाल ने वो चिट्ठी पढ़के दीवान को सुना दी ।
दिवान बोला " बस बेटा बहुत धन्यवाद अब तुम जा सकते हो ।"
फिर रामलाल और लखन सिंह दीवानजी को प्रणाम करके हवेली से अपने गाँव लौट आते हैं । गाँव पहुचकर लखन सिंह रामलाल से कहता है " आओ बेटा आज रात का भोजन मेरे घर करो । शांति को भी तुम से मिल कर अच्छा लगेगा ।"
रामलाल " ठीक है चाचा ।"
रामलाल शांति के बारे में सोचने लगता है। शांति और रामलाल की उम्र लगभग एक ही होगी दोनों साथ ही पले बढ़े । लखन सिंह ने शांति का ब्याह बचपन में ही कर दिया था पर उसके ससुराल जाने से पहले ही उसके पति की मौत हो गयी। गाँव वालों ने शांति को अपशकुनी मान किया और लखन सिंह पे बहुत दबाव डाला की वो शांति को काशी छोड़ आए विधवाओं की तरह जीने के लिए । पर लखन सिंह ने किसी की एक न सुनी और शांति को अपने पास ही रखा । लखन सिंह की पत्नी के गुजरने के बाद शांति ही उनका आखिरी सहारा थी ।
कुछ ही देर में दोनों लखन सिंह के घर पहुचते हैं ।
लखन सिंह दरवाजे से आवाज लगाते हैं " शांति ओ शांति देख तो कौन आया है ?"
कुछ देर बाद सफ़ेद साड़ी में एक औरत घर से निकलती है । रामलाल उसको देखता है करीब 30 32 की होगी शांति रंग गोरा पर चेहरे पे एक अजीब सी वीरानी छाई हुई थी । शांति रामलाल को देखती है और कहती है " रामलाल भैया नमस्ते ।"
रमलाल " कैसी हो शांति "
शांति " ठीक ही हु भैया "
लखन सिंह " अब जा दौड़ के रामलाल के लिए पीने के लिए पानी ले आ और जल्दी से खाना बना दे आज रामलाल हमारे साथ ही खाना खायेगा ।"
शांती घर के अंदर चली जाती है और रामलाल और लखन सिंह घर के बाहर बैठ के हुक्का गुड़्गुड़ाने लगते हैं । कुछ ही देर बाद शांति पानी लेके आती है। रामलाल को पानी देने को झुकती है तो उसका पल्लू सरक जाता है और रामलाल को उसकी चूची की घाटियों का दर्शन हो जाता है । शांति रामलाल को नजरों को भांप लेती है और झट से अपना पल्लू सही कर घर के अंदर चली गयी।
कुछ देर तक रामलाल और लखन सिंह इधर उधर की बातें करते हैं । तब तक शांति खाना तैयार कर लेती है और उन्हें खाने के लिये बुलाती । घर के अंदर रसोई में खाने की व्यवस्था रहती है । रामलाल और लखन सिंह खाना खाने लगते हैं । कुछ देर बाद शान्ति रामलाल से कुछ और लेना का पूछती है तो रामलाल सब्जी मांगता है । शान्ति रामलाल के सामने झुक के फिर से उसकी थाली में सब्जी परोसने लगती है। उसका पल्लू फिर नीचे ढुलक जाता है और रामलाल को पुनः एक बार उसकी घाटियों के दर्शन हो जाते हैं पर इस बार शान्ति उन्हें छुपाने की कोशिश नहीं करती । वो धीरे धीरे रामलाल को सब्जी परोसती है और रामलाल मन भर के दर्शन करता है। फिर वो वापस अपनी जगह चली जाती है। कुछ ही देर बाद रामलाल खाना ख़त्म करके घर चला आता है और शान्ति के बारे में सोच के मुट्ठ मार के सो जाता है।
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अगली सुबह रामलाल की नींद कजरी के बुलाने की आवाज से खुलती है । रामलाल घर से बाहर निकालता है और कजरी से पूछता है " क्या हुआ ?"
कजरी " मालिक हमरे उ रात से ही घर नहीं आये हैं और आज खेतों में धान की रुपाई करना बहुत जरुरी है। थोड़ी ही देर में धुप तेज हो जायेगी तो काम करना मुश्किल हो जाएगा ।"
रामलाल " कहाँ है रमुआ ?"
कजरी " मालिक कहीं पी के पड़े हुईहै "
रामलाल " ठीक है तुम खेतों पे चलो मैं भी आता हूं "
कजरी " ठीक है मालिक "
रामलाल जल्दी से अपने सारी नित्यक्रिया पूरी करके खेतों पे पहुचता है । कजरी वहां पहले से ही धान की रुपाई कर रही होती है । कजरी अपनी साड़ी घुटनों तक उठा के कमर में खोंसी रहती है ताकि उसकी साडी खेत में भरे पानी से भीगे नहीं । रामलाल भी अपना कुरता उतार कर वही पास में एक पेड़ पर टांग देता है और अपनी धोती उठा के कमर पे बांध लेता है । धीरे धीरे दोनों खेतों में धान की रुपाई करने लगते हैं । करीब एक घंटे बाद अचानक आसमान में बादल छा जाते हैं और बारिश होने लगती है। बारिश के कारण मौसम सुहावना हो जाता है और दोनों को गर्मी से छुटकारा मिल जाता है। अब दोनों बारिश में भीगते हुए धान की रुपाई करने लगते हैं ।
तभी रामलाल पलट के कजरी के तरफ देखता है तो वो उसकी तरफ पीठ करके झुक के धान की रुपाई कर रही होती है । बारिश के कारण उसकी साडी भीगके उसके बदन से चिपक गयी रहती है । रामलाल को अब उसकी गांड एकदम साफ झलक रही होती है । रामलाल का लंड सलामी देने लगता है और उसकी काम भावनाएं भड़कने लगती हैं। वो धीरे धीरे कजरी के तरफ बढ़ने लगता है । जब वो उसके पास पहुचता है तो अचानक कजरी पलट जाती है पर उसका पैर फिसल जाता है। कजरी गिरने से बचने के लिए हाथ से कुछ पकड़ने की कोशिश करती है । उसके हाथ में रामलाल की धोती आ जाती है पर वो उसे गिरने से नहीं बचा पाती। नतीजा ये होता है कजरी पानी में छपाक से गिरती है और उधर रामलाल की धोती और लंगोट खुलके कजरी के हाथ में आ जाता है। कजरी की आँखों के सामने रामलाल का लंड झटके खा रहा होता है वो एकटक उसे देखने लगती है। उधर पानी में गिरने से कजरी के कपडे और भीगके उसके शरीर से चिपक जाते है और रामलाल को अब उसकी चूचियो का आकार साफ़ झलक रहा होता है । रामलाल से अब बर्दाश्त नहीं हो होता वो झुक के कजरी को अपनी गोद में उठा लेता है और उसे लेके खेत के किनारे पेड़ के नीचे लाके लिटा देता है । कजरी भी उसका कोई विरोध नहीं करती ये देख के रामलाल की हिम्मत बढ़ जाती है । रामलाल अब कजरी की साड़ी ऊपर उठा देता है जिससे उसकी चूत उसके सामने आ जाती है । रामलाल उसकी चूत की फांको को फैला कर उसकी चूत के दाने को अपने उंगलियों में लेके मसलने लगता है। कजरी को तो जैसे करंट लग गया हो वो एकदम से आनंद से अकड़ जाती है ।
धीरे धीरे जब कजरी की चूत हल्का हल्का पनियाने लगती है तो रामलाल उसमे एक ऊँगली डाल के अंदर बाहर करने लगता है। कजरी की अनान्द के मारे सिसकारियां निकलने लगती हैं। उसने ऐसे अनान्द की अनुभूति पहले कभी नहीं की थी । रामू तो बस लंड घुसा के अपना काम निपटा के सो जाता था पर रामलाल जो कर रहा था उससे कजरी को आज ये एहसास हो रहा था कि कामक्रिया का अनान्द क्या होता है। रामलाल की ऊँगली अब कजरी के चूत के रस से सन चुकी थी । रामलाल ने अपने लंड पे थूक लगाया और कजरी के पैरों के बीच आ गया। कजरी तो जैसे उसकी गुलाम जो गयी थी उसने कोई प्रतिकार नहीं किया। रामलाल ने अब अपना लंड उसकी चूत जे मुँह पे सेट किया और एक जोर का धक्का लगाया उसका लंड थोड़ा सा कजरी की चूत में घुस गया। कजरी जे मुह से हलकी सी घुटी हुई चीख निकल गयी। रामलाल अब अपने लंड को हल्का हल्का आगे पीछे करने लगा। थोड़ी देर बाद उसने एक और धक्का मारा अबकी बार रामलाल का लंड सरक के कजरी के चूत में पूरा का पूरा घुस गया। कजरी को ऐसा लगा जैसे रामलाल के लंड ने उसकी चूत को पूरा भर दिया हो। अब रामलाल कजरी के ऊपर लेट गया और अपना लंड जोर जोर से कजरी की चूत में पेलने लगा। कजरी असीम अनान्द में सराबोर खो गयी उसने अपनी दोनों टाँगे उठा के रामलाल की कमर पे रख ली जैसे की रामलाल का लंड उसकी चूत की और गहराई तक जा सके। रामलाल ने भी अब अपने धक्कों की स्पीड बढ़ाई तो कजरी के मुह से अजीब अजीब आवाजे आने लगी " हाय दैया ....उफ़्फ़ ...आह ....हाय अम्मा ....मार डाला मालिक ......और जोर से ....हाय ....हाय.... रमुआ ने तो कभी ऐसा मजा नहीं दिया .....और जोर से ......"
कजरी की ये बातें रामलाल को और उत्तेजित करने लगी और वो भी कजरी की चूत में लंबे लंबे शॉट मारने लगा । तभी कजरी का बदन पूरी तरह से अकड़ गया और वो झड़ गयी। रामलाल भी फिर अगले ही शॉट में कजरी की चूत में अपना वीर्य उगलते हुए झड़ गया।
रामलाल कजरी के ऊपर से हट के उसके बगल में लेट गया। कजरी भी कुछ देर वही ज़मीन ओर उस बगल पड़ी रही । फिर उसे दीन दुनिया का ध्यान आया और वो जल्दी से अपने कपडे सही करते हुए गाँव को चली गयी। कजरी ने जाते वक्त पलट के एक बार भी रामलाल की तरफ नहीं देखा रामलाल को लगा शायद वो भावनओं में बह गयी और अब उसे पश्चाताप हो रहा होगा। रामलाल ने भी सोचा की अब अगर कजरी पहल नहीं करेगी तो वो भी नहीं करेगा । फिर रामलाल ने अपने कपडे जो वही खेत में पड़े थे उठाये उन्हें साफ किया फिर पहन कर गाँव की तरफ चल दिया।

घर पहुच कर रामलाल ने नहाने की सोची और वो साफ कपडे लेके गाँव की नदी पे नहाने चला गया। नदी से लौट के रामलाल घर पंहुचा तो देखा कजरी आँगन में चूल्हे पे बैठ खाना बना रही थी। रामलाल ने उसकी तरफ देखा पर कजरी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। रामलाल ने और उसे परेशान करना उचित नहीं समझा और खाट लेके घर के बाहर चला गया। कुछ देर बाद कजरी खाना बना के चुपचाप चली गयी रामलाल ने भी खाना खाया और खाट पे लेट के आराम करने लगा।
शाम को रामलाल की नींद टूटी तो सूरज अस्त होने को था । रामलाल ने सोचा की आज गांव की चौपाल पे चलते हैं सो वो जा पंहुचा चौपाल पर। वहां पंडितजी , मौलवी साहब और लखन सिंह पहले से मौजूद थे। रामलाल को देखते ही लखन सिंह खुश हो गए और बोले " आओ रामलाल बेटा कभी हम बुजुर्गों के साथ भी बैठ लिया करो "
रामलाल " क्या ताऊ मजाक करते हो आप लोग और बुजुर्ग अभी तो आप लोग जवान हो यकीन न हो तो मौलवी साहब से पूछ लो "
ये बात सुन कर पुजारी जी और लखन सिंह ठहाके लगाके हँसने लगे और मौलवी साहब झेंप गए ।
मौलवी साहब ने सफाई देते हुए कहा " देखो मियां हमारे मजहब में कोई भी मर्द उतनी बेगमे रख सकता है जितनी को वो खिला पिला सके।"
मौलवी साहब की बात सुनके पुजारी जी बोले " बहुत बढ़िया है मौलवी तेरे धर्म में हमारे यहाँ तो सात जन्म तक उसी एक के साथ बंधे रहना रहता है।"
ये सुनकर मौलवी साहब ने पुजारी जी से कहा " तो भी तो तुम हर जगह मुह मारते रहते हो ।"
अब हम सब ठहाके लगा रहे थे और झेपने की बारी पंडितजी की थी। पंडित जी ने बात पलटते हुए अब निशाना मेरी तरफ कर दिया " रामलाल बेटा तुम अब शादी कर लो कब तक ऐसे रंडुवा रहोगे ?"
रामलाल " नहीं पंडितजी मुझे अब शादी नहीं करनी ।"
पंडित जी " अरे बेटा रामलाल तुम एक बार हाँ तो करो एक से एक सुन्दर और जवान लड़कियों के रिश्ते हैं मेरे पास ।"
रामलाल " नहीं पंडितजी अब मैं इस उम्र में अपने से आधी उम्र की लड़की से शादी करता अच्छा लगूंगा। "
पंडितजी " क्या गलत है उसमें बेटा न जाने कितने लोग करते हैं और तुम अपनी बाकी की जिंदगी ऐसे ही गुजरोगे ?"
रामलाल " हाँ चाचा "
अब लखन सिंह बोल पड़े " मैं पंडित की बात से सहमत हूँ की तुम्हे अब शादी कर लेनी चाहिए और मैं तुम्हारी बात से भी सहमत हूँ की तुम्हे अब बहुत छोटी लड़की से शादी नहीं करनी चाहिए। मेरी एक सलाह है कि तुम अपनी उम्र की किसी विधवा से शादी करलो ।"
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ये बात सुनके पंडितजी भड़क गए " देखो लखन सिंह मेरे जीवित रहते ये अधर्म नहीं होगा और मैं जानता हूं तुम ऐसा अपनी बेटी शांति की शादी रामलाल से करने के लिए कह रहे हो । मैंने तुम्हारी पहले की भी बहुत सी बातों को नजरअंदाज किया है पर मैं ऐसा नहीं होने दूंगा ।"
अब भड़कने की बारी लखन सिंह की थी पर बात और न बढे इसलिए रामलाल बीच में ही बोल पड़ा " देखिये ताऊ शांति मेरी छोटी बहन जैसी है इसलिये मैं उससे शादी करने की सोच भी नहीं सकता और पंडितजी अब मैं इस शादी ब्याह के झंझट में नहीं फंसना चाहता साला जिंदगी झंड हो जाती है शादी के बाद ।"
मेरी बात सुनके सब हँसने लगे और पंडितजी बोले " ये ज्ञान तो मुझे भी बहुत बाद में हुआ तुम तो बहुत कम उम्र में ही ज्ञानी हो गए ।"
फिर थोड़ी देर ऐसे ही इधर उधर की बात होती रही । फिर पंडितजी ने पूछा " भाई लखन सिंह और रामलाल अगले माह गंगाजी नहाने चलने का क्या विचार है ?"
रामलाल को याद आ गया कि बचपन में कैसे वो सब गांववालों और अपने माता पिता के साथ गंगा नहाने जाता था । जहाँ बहुत ही बड़ा मेला लगता था। सारे गांववाले करीब एक हफ्ते पहले गाँव छोड़कर पैदल ही निकलते थे और बीच के गाँवों में विश्राम करते हुए गंगातट पे पहुचते थे। फिर वहां नहाने पूजा करने के बाद वैसे ही लौटते थे। रामलाल ने सोचा की बहुत दिन हो गए उसे गंगा नाहये इस बार चलते हैं इसलिए वो बोला "ठीक है पंडितजी मैं चलूंगा ।"
लखन सिंह " देखो पंडित अब इस उम्र में मेरा इतनी दूर पैदल चलना संभव नहीं है ।"
पंडित जी " तो ठीक है शांति को भेज दो ।"
लखन सिंह " अरे इतनी दूर अकेले "
पंडित जी " अरे अकेले कहाँ मैं पंडिताइन रामलाल और गाँव के और लोग भी होंगे । "
लखन सिंह " ठीक है मैं शांति से पूछ के बताता हूं।"
पंडितजी खुश ही जाते हैं । कुछ देर बाद रामलाल वापास घर को लौटता है। रात हो चुकी थी । रामलाल घर पहुचता है तो देखता है कि कजरी खाना बना के जा चुकी थी। रामलाल खाना खा के सोने की सोचता है । अंदर बहुत उमस ही रही थी तो वो खाट उठा के बाहर आ जाता है । कजरी के झोपड़े की तरफ नजर घुमाता है तो वहां अँधेरा रहता है शायद कजरी अबतक सो चुकी थी। रामलाल भी खाट पे लेटता है और थोड़ी देर में उसे नींद आ जाती है ।
रात को रामलाल की नींद तब खुलती है जब उसे लगता है कि कोई उसके पैर दबा रहा है। रामलाल देखता है कि कजरी उसके पैर दबा रही है । रामलाल उससे पूछता है " क्या हुआ कजरी ?"
कजरी " कुछ नहीं मालिक "
रामलाल को कुछ समझ नहीं आ रहा था । उसने फिर पूछा " रमुआ कहाँ है ?"
कजरी " आज फिर घरे नहीं आया ।"
रामलाल ने अँधेरे में कजरी की तरफ देखा पर उसे कुछ दिखाई नहीं दिया । रामलाल ने फिर थोड़ा उसे कुरेदने की कोशिश की " कजरी आज सुबह जो हुआ उसके लिए मैं शर्मिंदा हु मुझसे सब्र नहीं हुआ मैं बहुत दिन का भूखा था । "
कजरी " मैं भी मालिक ।"
रामलाल ने चौंकते हुए पूछा " क्यों रमुआ क्या ...?"
रामलाल की बात पूरी भी नहीं हुई थी की कजरी बोल पड़ी " का मालिक दारु और रंडीबाजी से फुर्सत मिले तब कभी बस डाला और दो बार हिलाया और झड़ गया । इतने साल हो गए मेरे ब्याह को अभी तक मैं माँ नहीं बन पायी सारा गाँव मुझे बाँझ कहता है। "
ये कहके कजरी रोने लगती है। रामलाल उसे ढांढस बढ़ाने के लिए अपने सीने से लगा लेता है और कहता है " रो मत कजरी मैं हूँ न "
कजरी थोड़ी देर में संयमित होती है तो रामलाल से कहती है " मालिक मैं वो सब करुँगी जो आप कहोगे बस हमरी कोख हरी कर दो ।"
रामलाल " उसके लिए पहले तुझे ये कपडे निकालने होंगे कजरी और अपनी चूत मेरे हवाले करनी होगी ।"
कजरी शर्मा जाती है और कहती है " अंदर चले मालिक यहाँ कोई आ सकता है ।"
रामलाल खाट लेके अंदर आ जाता है और किवाड़ बंद कर देता है । कजरी तबतक एक लालटेन जलाके बरामदे में टांग देती है। फिर वो अपने कपडे निकाल के एकदम नंगी हो जाती है। लालटेन की मद्धम रोशिनी में कजरी का नंगा बदन देख के रामलाल का लंड फड़फड़ाने लगता है वो भी अपने सारे कपडे उतार के नंगा हो जाता है । फिर वो कजरी की तरफ देखता है कजरी शर्म से अपने हाथों से अपनी चूचियां ढक लेती है । रामलाल उसके पास जाता है और उसे बाहों में ले लेता है। कजरी भी रामलाल के सीने से चिपक जाती है और अपनी बाहें खोल के रामलाल के कंधे पे रख लेती है। रामलाल अपने दोनों हाथों से उसके नितंबो को पकड़के भीच देता है। कजरी की सिसकी निकल जाती है। रामलाल अब कजरी को खाट पे लिटा देता है। रामलाल अब उसके बदन को सहलाने लगता है । रामलाल उसकी चूची को पकड़के मसल देता है। कजरी को दर्द के साथ अब और मज़ा आ जाता है उसकी चूत अब धीरे धीरे पनियाने लगती है। रामलाल धीरे धीरे अपनी एक ऊँगली उसकी चूत के बालों पे फिराने लगता है। कजरी को सुबह की रामलाल की हरकत याद आ जाती है कि कैसे उसने उसकी चूत की का दाना मसला था । कजरी उम्मीद कर रही थी की रामलाल फिर वैसा ही करेगा पर रामलाल उसे तड़पा रहा था। जब कजरी से रहा नहीं गया तो उसने खुद अपने हाथ से रामलाल का हाथ पकड़कर अपनी चूत पे रख दिया । रामलाल समझ गया कि उसे क्या करना है रामलाल कजरी की चूत की फांको को फैलता है तो देखता है कि कजरी की चूत पानी छोड़ रही होती है। रामलाल फिर कजरी की चूत के दाने को पकड़के हलके हलके कुरेदने लगता है । कजरी मजे से अपना सर इधर उधर पटकने करने लगती है । रामलाल फिर उसकी चूत के दाने को मसलने लगता है तो कजरी से बर्दाश्त नहीं होता और वो चिल्लाते हुए झड़ जाती है। कजरी कभी भी ऐसे नहीं झड़ी थी । वो रामलाल से कहती है " मालिक आप के हाथों में जादू है बिना लौड़ा घुसाये ही मेरी चूत झाड़ दी "
रामलाल आगे झुक के कजरी के होठों को अपने होठों में लेके चूसने लगता है। कजरी ने कभी ऐसा नहीं किया था पर वो भी रामलाल की तरह ही उसके होठों को चूसने लगती है। धीरे धीरे कजरी को भी इसमें मजा आने लगता है और वो और जोरसे रामलाल के होठों को चूसने लगती है। रामलाल अब कजरी के होठों को चूसते हुए ही कजरी के ऊपर आ जाता है और उसके पैरों को फैला कर अपना लंड कजरी की चूत के मुंह पे रखता है। रामलाल धक्का लगाता है तो उसका लंड फिसल जाता है। कजरी अपना हाथ नीचे कर के उसके लंड को अपनी चूत पे लगाने की कोशिश करती है। कजरी जब रामलाल के लंड को पकड़ती है तो उसे पता चलता है कि रामलाल का लंड उसके पति रामू के लंड से ज्यादा मोटा और लंबा था । कजरी से अब सब्र नहीं होता और वो रामलाल का लंड अपनी चूत पर सेट करके रामलाल को धक्का लगाने का इशारा करती है। रामलाल धक्का लगता है तो चूत गीली होने के कारण उसका लंड एक झटके में ही कजरी की चूत में समा जाता है। कजरी की तो जैसे साँस ही थोड़ी देर के लिए रुक जाती है। कुछ देर बाद कजरी रामलाल से कहती है " बहुत मोटा है मालिक आपका लौड़ा चोदीये न अब जोरसे "
कजरी की बात सुनके रामलाल को जोश आ जाता है वो जोर जोरसे अपना लंड कजरी की चूत में पेलने लगता है । कजरी के मुह से आह आह की आवाजें निकलने लगती हैं। कजरी की चूत से निकलती फच्च फच्च की आवाज और खटिया की चरर मरर से पूरा घर गूंजने लगता है। कजरी भी पुरे जोश में आ जाती है और अनाप शनाप बकने लगती है " हाय दैया पहले क्यों नहीं मिले मालिक रोज ऐसे ही चुदती आपसे ......आह .....बहुत मोटा है .....पेलो और जोर से पेलो .....आह .....आई मार डाला ....."
रामलाल ने कजरी की दोनों टाँगे उठा के अपने कंधे पे रख ली और चुदाई करने लगा। कजरी को तो अब ऐसा लग रहा था कि उसके चूत की ऐसी ऐसी जगहों पे रामलाल का लंड गोते लगा रहा था जहाँ तक अभी तक कोई नहीं पंहुचा था । कजरी और उत्तेजित होके बकती है " मार डाला मालिक मेरी चूत फट गयी हाय रे .......पेलो न मेरे राजा और जोर से पेलो .......आह आह आह .....मालिक मैं झड़ने वाली हु ......आह आह आह .....आआआ आह ......झड़ गई ईई "
कजरी के झड़ने के बाद उसकी चूत और गीली हो जाती है रामलाल अब और जोर जोर से उसकी चूत चोदने लगा । रामलाल की कमर कजरी की गांड से लड़ने की थप थप की आवाज आने लगती है। रामलाल को लगता है कि उसके अंडकोषों में उबाल आने लगा है वो और जोर से अपना लंड कजरी की चूत में पलने लगा । फिर जल्दी ही उसने अपना पूरा का पूरा वीर्य कजरी की चूत में भर दिया। रामलाल अब कजरी के उपर ही गिर पड़ा । थोड़ी ही देर में उसे नींद आने लगती है तो वो कजरी के बगल में ही लेट जाता है।
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Rohit Kapoor
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Re: चूत के चक्कर में

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सुबह रामलाल की नींद खुलती है तो दरवाजे के कोई आवाज लगा रहा होता है । बगल में कजरी बेसुध सी नग्न अवस्था में सो रही होती है । रामलाल कजरी को जगाता है और रसोईघर में जाने के लिए कहता है। फिर वो कमर पे धोती लपेट बाहर निकालता है तो लखन सिंह खड़े रहते हैं । रामलाल उन्हें देखके कहता है " राम राम ताऊ आज इतनी सुबह सुबह ?"
लखन सिंह " हाँ बेटा बात ही कुछ ऐसी है एक जरुरी पंचायत करनी है आज और एक पंच के रूप में तुम्हे भी रहना है ।"
रामलाल " क्या ताऊ मैं और पंच ?"
लखन सिंह " देख बेटा तू हमारे गाँव का सबसे पढ़ा लिखा व्यक्ति है और बाहर की दुनिया भी देखी है तूने इसलिए क्या तू मुझे न्याय करने में मदद नहीं करेगा।"
रामलाल अब क्या करता वो लखन सिंह से कहता है " ठीक है ताऊ तुम कहते हो तो चलते है कब है ये पंचायत ?"
लखन सिंह " अभी बड़ी हवेली से दीवान जी भी आ रहे हैं इसलिये तू जल्दी चल ।"
रामलाल " ठीक है ताऊ तुम चलो मैं आता हूं ।"
लखन सिंह " ठीक है बेटा जल्दी आना ।"
रामलाल अंदर जाके कजरी से कहता है कि वो जल्दी से पीछे के रास्ते से निकल जाए और फिर वो अपनी नित्यक्रिया निपटाके गाँव की चौपाल पे पहुचता है।
चौपाल पे बहुत भीड़ पहले से इकठ्ठा थी गाँव के लगभग सभी लोग वहां थे। पुजारी जी मौलाना साहब और लखन सिंह चौपाल पे खाट पे बैठे थे । रामलाल भी उन्हीं के बगल जाके बैठ गया। कुछ ही देर में दीवानजी भी अपनी घोडा गाडी और दो लठैतों के साथ वहां पहुचे। सबने खड़े होके उनका स्वागत किया । और उनके बैठने के लिए कुर्सी मंगाई गयी।
बैठते ही दीवान जी बोले " लखन सिंह जल्दी करो मुझे रानी माँ के दिल्ली जाने की तैयारी भी करनी है ।"
ये सुनके लखन सिंह तुरंत खड़े हो जाते हैं और गाँव वालों को संबोधित करते हुए कहते है " गाँव वालों आज हम यहाँ करीम और उसकी पत्नी रुकसाना के तलाक का मसला सुनने के लिए यहाँ बैठे हैं । पंचों के तौर पे मैंने दीवान जी पुजारी मौलाना और रामलाल को चुना है। किसी को कोई आपत्ति है पंचों से तो अभी बोल सकते हैं ।"
कोई भी नहीं बोला तो लखन सिंह आगे बोलते हैं " हम सब यहाँ करीम और उसकी पत्नी रुकसाना के तलाक का मामला सुनने के लिए यहाँ इकठ्ठा हुए है। अब करीम आगे आये और अपनी बात रखे ।"
एक 24 साल का लड़का आगे आता है ।
करीम " साहब मैंने अपने होशो हवास में अपनी जोरू जो तलाक दिया है। "
अब मौलवी साहब ने पूछा " कैसे दिया तलाक़?"
करीम " मैंने अपने पूरे होशो हवास मे खुदा को हाजिर नाजिर मानकर अपनी जोरू को तीन बार तलाक तलाक तलाक बोला ।"
मौलाना " किस कारण से दिया तलाक ?"
करीम " मेरे निकाह को 5 साल हो गए पर अभी तक मेरी जोरू को बच्चे नहीं हुए अब मैं दूसरा निकाह करना चाहता हु पर मेरी हैसियत इतनी नहीं है की मैं दो बीवियां रख सकू इसलिए मैंने अपनी जोरू को तलाक दिया ।"
मौलवी साहब " ठीक है तब तलाक मंजूर किया जाता है ।"
तभी एक बुर्के में औरत सामने आती है और चीखते हुए कहती है " हुजूर मेरा कसूर क्या है ?"
मौलवी " देखो बीबी मजहब में यही है और ये तलाक मजहब के हिसाब से सही है।"

लखन सिंह " देखो रुकसाना तुमहारे मजहब के हिसाब से ही तुम्हारे आदमी ने तुम्हे तलाक दिया है इसलिए अब हम इसमें क्या कर सकते हैं ।"
रुकसाना " हुजूर तो अब मैं कहाँ जाऊंगी ?"
लखन सिंह " तुम अपने माँ बाप के पास चली जाओ ।"
रुकसाना " उन्होंने भी मुझे अपने घर में लेने से मना कर दिया है हुजूर अब आप लोग ही मेरी कोई व्यवस्था करो नहीं तो मैं नदी में कूद के जान दे दूंगी।"
अब सब पंच आपस में बहस करने लगते हैं । पहले दीवान जी कहते है " देखो लखन सिंह ये तुम्हारे गाँव का मसला है अब तुम ही इसे देखो मैं चला । "
ये कह कर दीवान जी वहां से चले जाते हैं । अब लखन सिंह मौलवी जी से कहते हैं " मौलवी देखो अब हम सब तो किसी गैर धर्म को अपने यहाँ नहीं रख सकते और ये बेचारी अबला अब कहाँ जायेगी तुम इसे अपने यहाँ ले जाओ।"
मौलवी साहब " भाई मेरी नयी बेगम को ये बात नहीं पसंद आएगी और मैं अपने घर में कोई झगड़ा टंटा नहीं चाहता तुम सरपंच हो तुम रख लो अपने यहाँ ।"
अब पुजारी बोल पड़ता है " क्या बात कर रहे हो मौलवी गैर धर्म को अपने यहाँ रखके अपना धर्म भ्रष्ट करले हम लोग ये नहीं हो सकता । तुम्हारे धर्म की है तुम रखो अपने यहाँ । "
इसी तरह बहुत देर तक कोई नतीजा नहीं निकलता है । लखन सिंह रामलाल से पूछते हैं " अब रामलाल तुम ही बताओ इस मुसीबत से कैसे निकला जाये अगर उसे अपने घर में रखते हैं तो धर्म भ्रष्ट होता है और अगर उसे सहारा नहीं देते तो पंचों का न्याय धर्म भ्रष्ट होता है।"
रामलाल को ये सब पहले ही ठीक नहीं लग रहा था एक तो पहले उस औरत को सिर्फ इस लिए घर से निकाल दिया की वो माँ नहीं बन सकती थी फिर कोई उसे अपने यहाँ रख भी नहीं रहा था । रामलाल लखन सिंह से कहता है " ताऊ जब तक उस औरत के कही रहने की व्यवस्था नहीं होती तब तक वो मेरे घर में रह सकती है ।"
लखन सिंह " पर बेटा वो गैर जात है "
रामलाल " मैं जात पात नहीं मानता ।"
पुजारी जी भी रामलाल को समझाने को कोशिश करते हैं पर रामलाल नहीं मानता अंत में यही फैसला होता है कि रुकसाना रामलाल के यहाँ रहेगी।
लखन सिंह अब गाँव वालों के सामने घोषणा करता है " हम पंचों ने ये फैसला किया है कि करीम का अपनी पत्नी को दिया गया तलाक सही है। साथ ही हमने रुकसाना की मांग पर भी विचार करते हुए ये फैसला किया है कि जबतक रुकसाना के रहने के कोई और प्रबंध नहीं होता वो रामलाल के यहाँ रहेगी।"
फैसला सुनने के बाद सब ग्रामीण वहां से चले जाते हैं । रामलाल भी बाकि पंचों से विदा लेके घर की तरफ चल पड़ता है। रुकसाना भी उसके पीछे अपना सामान उठाये चल पड़ती है। रामलाल को अब बस एक ही बात की चिंता थी की रुकसाना के रहते उसका और कजरी का खेल कैसे चलेगा । पर रामलाल ने सोचा की रमुआ अक्सर रात को नहीं रहता है तो उसकी गैर मौजूदगी में कजरी और उसके झोपड़े में खेल चल सकता है। रामलाल यही सब सोचके जब घर पहुचता है तो देखता है कि कजरी उसका इंतज़ार कर रही होती है उसके साथ एक आदमी और रहता है। रामलाल कजरी से पूछता है " क्या बात है कजरी ?"
कजरी " मालिक हमरी अम्मा की तबीयत बडी खराब है गाँव से अभी ये भैया आये है हैं मैं इनके साथ अपने गाँव जा रही हु हमरे वो आएंगे तो उन्हें भी भेज देना ।"
रामलाल " ठीक है कजरी तुम जाओ मैं उसे भेज दूंगा ।"
कजरी " आपके खाने का क्या होगा मालिक ?"
रामलाल " तुम चिंता मत करो मैं कुछ कर लूंगा तुम अब अपने गाँव जाओ ।"
ये कह के रामलाल ने कजरी को 5 रुपये थमा देता है। पहले तो कजरी मना करती है पर रामलाल के जिद करने पे रख लेती है।
रामलाल फिर अपने घर आता है और रुकसाना से कहता है " तुम्हे जहाँ ठीक लगे अपना सामान रख सकती हो। "
रुकसाना बरामदे के एक कोने में अपना सामान रख देती है। रामलाल घर के अंदर से पुराना गद्दा और चादर लाके उसे दे देता है। वो वही बरामदे में उसे बिछा देती है । रामलाल फिर बरामदे में पड़ी अपनी खाट पे आके लेट जाता है। रामलाल अब कजरी के बारे में सोचने लगता है । उसकी हालत भी अजीब हो गयी थी अभी तक उसने अपनी ठरक को कैसे भी काबू कर रखा था पर कजरी ने अब उसकी भावनाओं को भड़का दिया था । अब कजरी अपनी माँ के यहाँ चली गयी थी रामलाल को अपनी ठरक मिटाने का रास्ता खोजना होगा। तभी रामलाल की नजर सामने रुकसाना पे पड़ती है वो अब अपना बुरका उतार चुकी थी उम्र उसकी 20 साल के लगभग रही होगी रंग रूप भी ठीक ठाक था। रामलाल उसे आवाज देता है " सुनो मुझे तुमसे बात करनी है इधर आओ "
रुकसाना अपना चेहरा घूँघट में ढक लेती है और उसके पास आती है।
रामलाल " देखो कजरी जो मेरा खाना बनती थी चली गयी है और मुझे ठीक से खाना बनाना नहीं आता तुम्हे ऐतराज न हो तो तुम मेरा और अपना खाना बना दो।"
रुकसाना " पर हुजूर मैं तो गैर जात हु आप मेरे हाथ का बनाया खाएंगे ।"
रामलाल " देखो मैं इन सब बातों को नहीं मानता अगर तुम्हे खाना बनाने में कोई ऐतराज नहीं है तो मुझे खाने में भी नहीं है।"
रुकसाना " ठीक है हुजूर आप जैसा कहें "
रामलाल " ठीक है वो सामने रसोई है वहां बर्तन और बाकी सारा सामान मिल जायेगा तुम खाने की तैयारी करो।"
रुकसाना खाने की तयारी करने लगती है। रामलाल सोचता है की नाक नक्श तो ठीक है बस पटाया कैसे जाए । रामलाल की नजरें रुकसाना का पीछा कर रही थी रुकसाना भी इस बात से अनजान नहीं थी। रुकसाना को ये समझ नहीं आ रहा था की वो क्या करे उसका पति उसे छोड़ चूका था इस आदमी ने उसे सहारा दिया है नहीं तो वो रस्ते पे होती और न जाने वहां उसको नोचने खसोटने वाले पता नहीं कौन कौन होते। अभी तक इस आदमी ने कोई गलत बात नहीं की थी पर उसकी नजरें जैसे रुकसाना के बदन को घूर रहीं हो। रुकसाना धीरे धीरे खाना बनाने लगती है । उधर रामलाल के मन में अजीब द्वन्द चलने लगता है वो सोच रहा होता है की जो वो रुकसाना के बारे में सोच रहा है वो गलत है आखिर उसने इस अबला को आश्रय दिया है अब इसकी मज़बूरी का फायदा उठाना गलत होगा। रामलाल की तन्द्रा तब टूटती है जब रुकसाना उसे खाने के लिए आवाज देती है। रामलाल जाके अपना खाना ले आता है और अपनी खाट पे बैठ के खाने लगता है। रुकसाना वही बरामदे की ज़मीन पर बैठ कर खाने लगती है। रुकसाना के दिल में अब ये विचार चल रहा होता है की अगर रामलाल ने आश्रय के बदले अगर उसके जिस्म की मांग की तो वो क्या करेगी। आखिर एक अकेले अधेड़ का उसे अपने घर में आश्रय देने का और क्या उद्देश्य हो सकता है। पर वो क्या करेगी उसका कोई और ठिकाना भी तो नहीं है। धीरे धीरे उसने फैसला किया की अगर रामलाल उसके साथ सम्बन्ध बनाने की कोशिश करेगा तो वो विरोध नहीं करेगी। उधर रामलाल अपने ह्रदय में उठती काम ज्वाला को शांत करने की भरपूर कोशिश कर रहा था। किसी तरह उसने भोजन समाप्त किया और अपनी खाट लेके बाहर चला गया । रुकसाना ने भी राहत जी साँस ली पर उसे यकीन था की रात को रामलाल कोशिश जरूर करेगा।


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