चूत के चक्कर में

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Rohit Kapoor
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Re: चूत के चक्कर में

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रामलाल घर के बाहर खाट बिछा के लेट जाता है पर नींद उसकी आँखों से कोसो दूर रहती है | उसे रह रह कर कजरी की चूत की याद आती है पर वो कर भी क्या सकता था कजरी अपनी माँ के यहाँ जा चुकी थी | रामलाल अपना ध्यान कजरी से हटाने की कोशिश करता है तो उसे ख्याल आता है की उसकी घर में अभी एक और चूत है | पर वो ये भी सोचने लगता है की अगर उसने रुकसाना के साथ कोई जबरदस्ती की तो हो सकता है की वो गाँव वालो को बता दे और उसकी इज्जत मिटटी में मिल जाए |



इधर घर के अन्दर रुकसाना को भी नींद नहीं आ रही थी वो सोच रही थी की रामलाल ने अब तक उसके साथ सम्बन्ध बनाने की कोशिश क्यों नहीं की कही ऐसा तो नहीं वो रामलाल के बारे में जैसा सोच रही हो वो वैसा ना हो | पर सुबह रामलाल की नजरों ने जैसे उसके शरीर को देखा था उससे तो ऐसा नहीं लग रहा था | क्या रामलाल को वो पसंद नहीं आई क्या खराबी थी उसमे अभी वो जवान थी | रुकसाना को याद आने लगा की उसके शौहर ने भी कई महीनो से उससे सम्बन्ध नहीं बनाये थे और उसके अन्दर की प्यास जागने लगी | बरबस ही उसका एक हाथ उसकी सलवार के अन्दर होता हुआ उसकी चूत तक जा पंहुचा | रुकसाना के शारीर में एक अजीब सी तपन उठने लगी उसकी चूत अब लंड मांग रही थी रुकसाना ने अपनी एक ऊँगली अपनी चूत पे घुमाई तो उसके मुह से सिसकारी निकल गयी | अब रुकसाना से रहा नहीं गया उसने अपना दूसरा हाथ भी सलवार के अन्दर घुसा लिया और अपनी चूत को एक हाथ से फैला कर वो दुसरे हाथ से अपनी चूत के दाने को कुरेदने लगी | रुकसाना का शारीर अब काम अग्नि में जलने लगा उसके होठ सुख गए और उसके माथे पे पसीना आ गया |



रुकसाना ने अपनी एक ऊँगली अपनी चूत में गुसा दी और धीरे धीरे उसे अन्दर बाहर करने लगी | धीरे उसके शारीर में मस्ती चढ़ने लगी उसके मुह से सिसकियाँ निकलने लगी | उसने मन में रामलाल के लंड के बारे में सोच कर एक और ऊँगली अपनी चूत में घुसा ली | अब उसकी चूत भी हलकी हलकी पनिया गयी थी रुकसाना के मन में अब रामलाल का लंड उसकी चूत में घुस चुका था और उसकी अन्दर बाहर होती उंगलियों की जगह अब रामलाल का लंड उसकी चुदाई कर रहा था | रुकसाना किसी और ही दुनिया में खो चुकी थी और अपनी उंगलियों को और जोर से अपनी चूत में अंदर बाहर कर रही थी | धीरे धीरे रुकसाना के शारीर में तरंगे उठने लगी और थोड़ी ही देर में रुकसाना झड गयी | आज बहुत दिन बाद रुकसाना की चूत ने पानी छोड़ा था पर अब उसने ठान लिया था की वो अब उंगलियों की जगह रामलाल का लंड अपनी चूत में लेगी |
उधर घर के बाहर रामलाल की रात खाट पे उलथते पलथते बिट रही थी | गर्मी और उमस से उसका बुरा हाल हो चुका था | रामलाल ने अपनी धोती उतार दी और लंगोट में ही बिस्तर पे पसर गया | थोड़ी ही देर में उसे नींद आ गयी |

सुबह रुकसाना की नींद खुली तो अभी सूरज नहीं उगा था बस हल्का हल्का उजाला होना शुरू हुआ था | रुकसाना ने सोचा की बाहर जा के रामलाल को उठा दे की वो घर के अन्दर आ जाए | रुकसाना बाहर निकल कर रामलाल की खाट के पास पहुची तो रामलाल को देखते ही उसकी आँखे फटी की फटी रह गयी | रामलाल की धोती निकली हुयी थी और उसकी लंगोट भी खुल चुकी थी और उसका लंड एकदम कड़क हो सलामी दे रहा था | रुकसाना कुछ देर वही खड़ी रामलाल के लंड को निहारती रही | न जाने कितने दिनों के बाद उसने लंड देखा था रामलाल का लंड उसके पति से काफी मोटा और लम्बा था और किसी काले भुजंग जैसा दिखता था | रुकसाना कुछ देर बाद रामलाल को बिना जगाये वापस घर में आ गयी पर अब उसने दृढ निश्चय किया था की वो रामलाल का लंड अपनी चूत में लेके रहेगी |

सुबह रामलाल की नींद खुलती है तो सूरज उग चूका होता है । रामलाल बिस्तर से उठता है तो उसे आभास होता है की उसकी लंगोट खुली हुई है और उसका लंड विकराल रूप लिए खड़ा है। रामलाल जल्दी से इधर उधर देखते हुए अपनी लंगोट बंधता है और धोती लपेट के घर की तरफ बढ़ता है । घर के दरवाजे पे पहुँच के उसके पाँव ठिठक जाते हैं उसे घर के अंदर से पानी गिरने की आवाज आती है। रामलाल हल्का सा दरवाजे को धकेलता है तो दरवाजा थोडा सा खुल जाता है । रामलाल अंदर झाँक के देखता है तो अंदर का नाज़ारा देख के उसका लंड फट पड़ने को होने लगता है। अंदर रुकसाना आँगन में एकदम नग्न अवस्था में नहा रही होती है। रुकसाना का शारीर रामलाल के नजरो के सामने था और वो बस उसे देखे ही जा रहा था। उसका गेहुआँ रंग , उसकी उभरी हुई चूचियां , उसके चूत के ऊपर के काले बाल सब रामलाल को पागल बना रहे थे । तभी उसने सामने पड़ी बाल्टी से एक लोटा पानी लिया और अपने सर के ऊपर से डाल लिया। रामलाल की नजरें अब रुकसाना के शारीर के ऊपर से गुजरती हुई पानी की धार का पीछा करने लगी। वो धार पहले उसके चेहरे से होते हुए उसके सुर्ख लबों को चूमते हुए उसके सीने पे पड़ती है जहाँ पे वो दो शाखाओं में बंट जाती है और रुकसाना के वक्षो के उभारों पे चढ़ती हुई उसके तने हुई चूचियों के निपल से उसके पेट पे गिरती है जहाँ पे वे दोनों वापस मिलकर रुकसाना की चूत की झाड़ियों में गुम हो जाती है ।


रामलाल ये सब देख के अत्यंत ही उत्तेजित हो जाता है और वो अपना लंड धोती के ऊपर से ही मसलने लगता है। अंदर रुकसाना ने अपने शरीर पर साबुन मलना शुरू कर दिया होता है वो साबुन की टिकिया को अपने वक्षो पे जोर जोर से घिसती है जिससे वो लाल हो जाते हैं फिर वो अपने पेट पे साबुन लगाती हुई अपनी टांगो को फैलाते हुए अपनी चूत पे घिसने लगती है। रामलाल से रहा नहीं जाता है वो अपने लंड को धोती से बाहर निकाल के हिलाने लगता है । अंदर रुकसाना के हाथ से साबुन फिसलके नीचे गिर जाता है और वो झुक के साबुन उठाने लगती है जिससे उसकी गांड एकदम से रामलाल के सामने आ जाती है जिसके बीच से रुकसाना की चूत झांकते हुये उसे निमंत्रण दे रही होती है। रामलाल के मष्तिष्क पे हवस सवार हो जाती है और वो समाज की परवाह किये बगैर घर के अंदर घुस जाता है और रुकसाना को जाके पीछे से पकड़ लेता है।



रुकसाना एकबार के लिए चौंक जाती है और ऊपर उठने की कोशिश करती है पर रामलाल एक हाथ से उसकी पीठ पे दबाव डालके उसे और झुका देता है। रुकसाना फिर उसकी पकड़ से छुटने की कोशिश करती है पर रामलाल उसे वैसे ही दबाये रखता है और अपना लंड उसकी चूत पे सेट करके एक धक्का देता है । रुकसाना की चूत पे लगे साबुन के कारण रामलाल का लंड फिसलता हुआ आधा उसकी चूत में घुस जाता है। रुकसाना की चूत ने बहुत दिन बाद लंड का स्वाद चखा था और उसकी भूख भी बढ़ने लगती है। रामलाल हलके हलके अपना लंड रुकसाना की चूत में अंदर बाहर करने लगता है। रुकसाना की चूत भी धीरे धीरे पनियाने लगती है रामलाल मौका देख के एक और धक्का मारता है जिससे उसका पूरा लंड रुकसाना की चूत में समां जाता है । रुकसाना के मुँह से हलकी सी चीख निकल जाती है। रामलाल धीरे धीरे रुकसाना की चूत में अपना लंड अंदर बाहर करने लगता है। रुकसाना को भी अब मजा आने लगता है उसकी चूत अब और जोर से पानी छोड़ने लगती है। रामलाल अब अपने दोनों हाथों से रुकसाना की गांड को पकड़के अपना लंड रुकसाना की चूत में पेलने लगता है।रुकसाना असीम आनंद के सागर में गोते लगाने लगती है । रामलाल को भी अब बहुत मजा आने लगता है और धीरे धीरे वो अपने चरम पे पहुचने लगता है। उधर रुकसाना को भी लगता है की उसका पानी निकलने वाला है तो वो भी जोर जोर से अपनी कमर आगे पीछे करने लगती है। दोनों के धक्कों की थाप से पूरा घर गूंजने लगता है। रामलाल को लगता है जैसे किसी ने उसके अंडकोषों में आग लगा दी हो और उसके वीर्य का उबाल उसके लंड से निकालता हुआ रुकसाना की चूत को भरने लगता है। रुकसाना को महसूस होता है की खौलता हुआ वीर्य उसकी चूत में भर रहा है तो वो और उत्तेजित हो के झड़ जाती है उसके पैर जवाब दे देते है और वो जमीन पे ही पसर जाती है। रामलाल अब होश में आ चुका होता है और सामने रुकसाना का हाल देख कर वो भयभीत हो जाता है । वो जल्दी से अपने कपडे सही करता है और घर से बाहर निकल जाता है।
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Rohit Kapoor
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Re: चूत के चक्कर में

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रामलाल तेजी से कदम बढ़ाता है उसका मन पश्चाताप की अग्नि में धधक रहा था न जाने कैसे उसने अपनी भावनाओ को फिर बह जाने दिया पहले कजरी और अब रुकसाना। रामलाल के ह्रदय में अपने लिए घृणा उठने लगती है वो सोच भी नहीं पा रहा था की वो आखिर ऐसा कैसे कर सकता है । रामलाल के कदम जब रुकते हैं तो नदी के किनारे पे खड़ा रहता है। रामलाल अपने दिमाग को ठंडा करने के लिए कपडे उतार नदी में उतर जाता है। नदी का ठंडा पानी उसको थोड़ी शान्ति प्रदान करता है । काफी देर तक पानी में रहने के बाद रामलाल नदी से बाहर निकालता है और पुराने कपडे पहन वही किनारे बैठ सोचने लगता है। उसके मन में ये विचार उठता है की रुकसाना ने ये बात अगर गाँव वालो को बता दी तो क्या होगा। भय के मारे उसके हाथ पाँव फूल गए । तरह तरह के विचार उसके मन में कौंधने लगे। उसकी हिम्मत जवाब देने लगी गाँव वापस जाने की।

जमीन पर पड़ी रुकसाना अभी भी अपनी चुदाई के खुमार से निकली नहीं थी ऐसी चुदाई तो उसके पति ने भी नहीं की थी । उसका मन और शारीर दोनों तृप्त हो गया था। रामलाल के लंड का उगला हुआ वीर्य उसकी चूत से निकलकर उसकी जांघो पे बह रहा था। रुकसाना को ऐसा लग रहा था न जाने कितने जन्मों की प्यास आज जाके पूरी हुई है। रुकसाना ने सुबह जब रामलाल का खड़ा लंड देखा था तभी से उसकी चूत पनियाने लगी थी । वो रामलाल के उठने का इंतेज़ार कर रही थी। उसने सारी योजना ऐसे बनायीं की रामलाल उसके जाल में फंस जाये। उसने जान बूझ कर घर का दरवाजा खुला रखा और रामलाल को रिझाना के लिए वो नंगे होके नाहा रही थी जबकि आजतक उसने अपने शौहर के सामने भी ऐसा नहीं किया। वो धीरे धीरे उठती है आज उसके चेहरे पे ख़ुशी दिख रही थी वो वापस नहाती है और चहकते हुए घर के कामों में लग जाती है।

रामलाल थोड़ी देर नदी के किनारे चहलकदमी करता रहा पर उसके पेट में उमड़ी भूख और दिमाग में उमड़ते हुए सवालो ने उसे परेशान कर रखा था। अंततः उसने फैसला किया की उसने रुकसाना के साथ जो गलत हरकत की है उसकी वो उससे माफ़ी मांग लेगा और अगर वो उसे दंड दिलवाना चाहती है तो वो खुद पंचायत के सामने अपना गुनाह कबूल कर लेगा। रामलाल अब ये ठान के अपने कदम घर की तरफ बढ़ा देता है। घर पहुचने पर वो देखता है की घर का दरवाजा खुला हुआ है । वो अंदर झांकता है तो उसे दिखाई देता है की रुकसाना गुनगुनाते हुए अपना काम कर रही है जैसे की सुबह कुछ हुआ ही नहीं । रामलाल को कुछ समझ नहीं आता है फिर भी वो पूरा साहस बटोर के घर में दाखिल होता है। रुकसाना उसे देखके खुश होते हुए पूछती है " आ गए हुजूर बोलिये तो आपका खाना लगा दू?"
रामलाल को अभी भी रुकसाना का बर्ताव कुछ समझ में नहीं आता पर वो जो ठान के आया था वो बात वो रुकसाना से कहने के लिए अपना मुह खोलता है " रुकसाना मुझे आज सुबह जो हुआ ..."
रुकसाना बीच में ही बात काटते हुए " क्या हुआ ..."
रामलाल झेंपते हुए बोला " वही जो मैंने तुम्हारी बिना मर्जी के ....."
रुकसाना ने फिर बात बीच में ही काटते हुए " आपसे किसने कहा की जो हुआ वो बिना मेरी मर्जी के हुआ ?"
रामलाल ने आश्चर्य से पूछा " मतलब ?"
रुकसाना " हर बात का मतलब नहीं होता हुजूर आप हाथ मुँह धोले मैं खाना लगा देती हूँ ।"
रामलाल ने भी बात आगे बढ़ाने के बजाये उसकी बात मानना उचित समझा।
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Kautilay
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Re: चूत के चक्कर में

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Nice update....
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Rohit Kapoor
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Re: चूत के चक्कर में

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Kautilay wrote:Nice update....
thanks dear
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Rohit Kapoor
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Re: चूत के चक्कर में

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रुकसाना रामलाल का खाना लाके उसे देती है। रामलाल चुपचाप खाट पे बैठ खाना खाने लगता है। रुकसाना भी अपना खाना लेके उसके सामने आके बैठ जाती है । रामलाल उसपे ध्यान न देते हुए अपने खाने पर अपना ध्यान लगा देता है। कुछ देर बाद रुकसाना रामलाल से कहती है " सुबह कहाँ चले गए थे ?"
रामलाल अब उसके चेहरे को देखता है जिसपे एक कुटिल मुस्कान तैर रही थी । रामलाल बोलता है " कहीं नहीं बस नदी पे नहाने चला गया था ?"
रुकसाना " क्यों घर में भी तो नहा सकते थे ?"
रामलाल " घर में तो तुम नहा रही थी "
रामलाल की बात सुनके रुकसाना हँसने लगी और बोली " तो क्या हुआ साथ में नहा लेते।"
रामलाल रुकसाना की बात सुनके झेंप जाता है और चुपचाप फिर से अपना ध्यान खाने पे लगा देता है। रामलाल जल्दी से अपना खाना ख़त्म करता है और खाट उठा के बाहर आराम करने जाने लगता है । थोड़ी देर बाद रुकसाना भी अपना काम ख़त्म करके उसकी खाट पर आ जाती है और उसका पैर दबाने लगती है । रामलाल चौंक जाता है और बोलता है " ये क्या कर रही हो ?"
रुकसाना मुस्कुराते हुये कहती है " सुबह से आपने खूब काम किया है थक गए होंगे आपके पैर दबा रही हूँ ।"
रामलाल कुछ नहीं कहता और आँखे बंद कर लेता है। उसे याद आता है की कैसे उसकी बीवी भी उसका रोज पैर दबाया करती थी। इधर रुकसाना के हाथ धीरे धीरे ऊपर की तरफ बढ़ने लगते हैं। जब वो रामलाल की जांघो को दबाने लगती है तो रामलाल के अंदर की इक्षायें फिर जागने लगती है और उसका लंड खड़ा होने लगता है। रुकसाना रामलाल के खड़े लंड को देखती है तो उसके मन भी कुछ कुछ होने लगता है। धीरे धीरे रामलाल का लंड विकराल रूप धर लेता है और उसकी धोती में तम्बू बना देता है। रुकसाना से रहा नहीं जाता वो ऊपर से ही रामलाल के लंड को दबा देती है। रामलाल की अब सिसकी निकल जाती है और वो आंखे खोल रुकसाना की तरफ देखता है वो नशीली आँखों से उसकी तरफ देखती है जैसे आगे बढ़ने की इजाजत मांग रही हो रामलाल भी अब उसको मौन सहमति दे देता है। रुकसाना झट से रामलाल की धोती और लंगोट में से उसके लंड को आजाद कर देती है । रामलाल का काला भुजंग फड़फड़ा के रुकसाना के सामने आ जाता है रुकसाना उसे हाथ में लेके सहलाने लगती है रामलाल की आँखे आनन्द से बंद हो जाती हैं । रुकसाना रामलाल के लंड को देख के सम्मोहित सी हो जाती है सुबह की चुदाई में उसे ये देखने का मौका नहीं मिला था वो रामलाल के लंड को अपने मुँह में लेके चूसने लगती है। रामलाल को झटका लगता है वो आँखे खोल के देखता है तो रुकसाना इसका लंड अपने होठों में लेके चूस रही होती है। रामलाल के साथ ऐसा पहले किसी ने नहीं किया था वी असीम आनंद के सागर में डूबने लगता है। इधर रुकसाना अपनी चुसाई की रफ़्तार बढ़ा देती है और रामलाल के अंडकोषों को हाथ में लेके कुरेदने लगती है। रामलाल को और मजा आने लगता है और वो अपनी कमर उठा के अपना पूरा का पूरा लंड रुकसाना के मुँह में घुसा देता है । रुकसाना की साँस ही अटक जाती है और वो रामलाल का लंड मुँह से निकाल जोर जोर से खांसने लगती है। रामलाल हक्का बक्का होके उसे देखने लगता है वो कहती है " बहुत ठरक चढ़ गयी है हुजूर को अभी इसे उतारने का इंतेजाम करती हूँ।"
रुकसाना फिर अपने सारे कपडे उतार नंगी हो जाती है। रामलाल उसके शारीर को देखता है जैसा उसने कल्पना किया था उससे कहीं अधिक खूबसूरत थी रुकसाना । सुबह वो शायद इतना सही से वो देख नहीं पाया था। रामलाल रुकसाना के रूप और सौंदर्य में ही खोया हुआ था की रुकसाना उसके ऊपर आ जाती है और अपनी चूत को रामलाल के लंड के मुँह पे रख देती है । रुकसाना धीरे धीरे अपना भार डालती है तो उसकी थूक से सना रामलाल का लंड फिसलके उसकी चूत में घुस जाता है। अब रुकसाना अपनी कमर उठा उठा के रामलाल के लंड की सवारी करने लगती है। रामलाल को पहली बार अपने जीवन में बिना कुछ किये चुदाई का ऐसा सुख प्राप्त हो रहा था वो अपने दोनों हाथ रुकसाना की गांड पे रखके धीरे धीरे उन्हें मसलने लगता है। रुकसाना की चूत रामलाल के लंड को अपने में लेके खूब रस छोड़ने लगती है और रुकसाना भी आनंदविभोर होके सिस्कारिया लेने लगती है। रामलाल अब अपने ऊपर चढ़ी रुकसाना के बदन को देखता है और उसकी तनी हुयी चूचियों को हाथ में पकड़कर मसलने लगता है। ऐसा करने से शायद रुकसाना के जैसे सब्र का बाँध का बाँध टूट जाता है और वो चीखते हुए झड़ जाती है। रुकसाना का निढाल शारीर रामलाल के ऊपर पसर जाता है और उसकी तनी हुयी चुचिया उसके सीने में धंस जाती है। रुकसाना धीरे धीरे अपनी साँसों को संयमित करने लगती है।
इधर रामलाल का लंड अभी भी खड़ा रहता है। रामलाल रुकसाना के चेहरे को अपने चेहरे के सामने लाता है और उसके होठो को चूसने लगता है। फिर रामलाल रुकसाना को पलट के नीचे कर देता है और खुद उसके ऊपर आ जाता है। वो पागलो की तरह रुकसाना को चूमने लगता है धीरे धीरे रुकसाना भी उसका साथ देने लगती है । रामलाल अपना लंड रुकसाना की चूत के मुँह पे लगाता है और धक्का देता है । रुकसाना की चूत पहले से ही झड़ने के कारण गीली हो चुकी थी रामलाल का लंड फिसलते हुए उसकी चूत की गहराइयों में उतर जाता है । रामलाल अब रुकसाना की चूत में धक्के पे धक्के पेलने लगता है। धीरे धीरे रुकसाना को फिर मजा आने लगता है वो अपने दोनों पाँव उठा के रामलाल की कमर पे रख लेती है जिससे रामलाल का लंड उसकी चूत में और अंदर तक चोट करने लगता है। रामलाल को आभास होता है की जल्दी ही वो झड़ने वाला है तो वो अपने धक्कों की रफ़्तार बढ़ा देता है। रुकसाना भी नीचे अपनी कमर हिला के उसका साथ देने लगती है । धीरे धीरे दोनों एकसाथ अपने चरम पे पहुँच कर झड़ जाते हैं।
रामलाल रुकसाना के ऊपर से उतरके उसके बगल में लेट जाताहै। जब उसकी साँसे संयमित होती है तो वो रुकसाना पे नजर डालता है उसकी चूचियां अभी भी ऊपर नीचे हो रही होती हैं । रामलाल उन्हें हाथ में पकड़के फिर भींच देता है। रुकसाना चौकते हुये कहती है " क्या हुआ हुजूर अभी मन नहीं भरा क्या ?"
रामलाल उसे खींच कर सीने से लगा लेता है और कहता है " अभी नहीं।"
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