चूत के चक्कर में

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Rohit Kapoor
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Re: चूत के चक्कर में

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घर से बहार निकलकर रामलाल ने पेड़ की छाँव में अपनी खाट बिछा दी और उसपर लेट कर आराम करने की कोशिश करने लगा | पर उसका आराम और चैन तो अब लुट चुका था उसके मन में रुकसाना को लेके जो विचार आ रहे थे वो उन्हें जितना दबाने की कोशिश कर रहा था वो उतना ही उसे बेचैन किये जा रहे थे | रामलाल बड़ी देर तक ऐसे ही खाट पर पड़ा रहा पर जब उसे लगा की उसकी भावनाए कहीं कोई अनर्थ न कर दे तो वो उठा और गाँव में बहने वाली नदी पे चला गया | नदी किनारे बैठा रामलाल अपने मन में उठते विचारो को निकलते हुए नदी की बहती धारा को निहारे जा रहा था | तभी वहां एक घोडा गाड़ी आके रुकी जिसके साथ कुछ लठैत घोड़ो पे थे | उस घोडा गाडी से एक अत्यंत ही रूपवान युवती निकली | रामलाल की नजरे उसे देख ही रही थी की एक लठैत रामलाल के पास पहुच गया और कड़क आवाज में रामलाल से बोला " गाँव में नए हो क्या ?"
रामलाल की तन्द्रा टूटी वो बोला " जी क्या कहा आपने ?"
लठैत ने फिर अपनी बात दोहराते हुए कहा " गाँव में नए आये लगते हो इसीलिए शायद तुम्हे नहीं पता की राजकुमारी को ऐसे घूरने की सजा क्या हो सकती है "
रामलाल को अब अंदाजा हो गया की सामने जो युवती थी वो बड़ी हवेली की राजकुमारी थी | रामलाल ने तुरंत अपना सर झुका लिया और बोला " माफ़ कीजियेगा हुजुर आप सही कह रहे हैं मैं गाँव में नया हूँ आइन्दा ऐसा कभी नहीं होगा |"
लठैत " ठीक है अब जाओ यहाँ से "
रामलाल तुरंत वहां से निकला उसे पुराना जमाना याद आ गया की कैसे पहले जब बड़ी हवेली की औरते घर से निकलती थी तो रास्ते के सारे मर्द अपनी नजरें झुका लिया करते थे ऐसा न करने वालो को घड़ियालो के तालाब में फिकवा दिया जाता था | रामलाल कुछ आगे बढ़ा था की पंडित जी आते हुए दिखाई पड गए रामलाल ने उन्हें प्रणाम किया और पूछा " पंडित जी कहाँ जा रहे हैं "
पंडित जी " रामलाल मैं संध्या वंदना के लिए नदी किनारे जा रहा हु "
रामलाल " अरे वहां बड़ी हवेली की राजकुमारी आई हुई हैं "
पंडित जी " अच्छा तब तो मैं अभी वहां नहीं जा सकता तुम कहाँ से आ रहे हो?"
रामलाल " मैं भी नदी किनारे गया था पर वहां राजकुमारी आ गयी तो उनके लठैतो ने मुझे वहां से भगा दिया अब घर जा रहा हूँ "
पंडितजी " अरे कहाँ घर जाओगे बैठो यहीं मेरे साथ मैं अपनी संध्या वंदना के बिना घर नहीं जाऊंगा और अकेला यहाँ उनके जाने का इन्तेजार कैसे करूँगा "
रामलाल " ठीक है पंडित जी "
रामलाल और पंडित जी एक पेड़ के नीचे बैठ जाते हैं | रामलाल बात आगे बढाता है " बड़ी हवेली का डर अभी भी कम नहीं हुआ है ?"
पंडित जी " अरे नहीं बेटा अब हुकुमसिंह के ज़माने जैसा खौफ्फ़ कहाँ है उसके ज़माने में तो बड़ा डर रहता था न जाने कब किसकी मौत उसे हुकुमसिंह के रूप में मिल जाए | रानी ललिता देवी बहुत दयालु हैं हम गाँव वालो की हर संभव मदद करती रहती हैं | बीते साल अपने गाँव के मदिर का जीर्णोधार उन्होंने ही करवाया था | वो तो राजकुमारी जी को लेकर रानी ललिता देवी बहुत फिक्रमंद रहती हैं इसलिए किसी को उनके पास फटकने नहीं दिया जाता |"
रामलाल " ऐसा क्यों पंडित जी रानी जी राजकुमारी के लिए इतना चिंता क्यों करती हैं ?"
पंडित जी " अरे बेटा भगवान् ने उस बेचारी बच्ची के साथ बहुत अन्याय किया है ?"
रामलाल " क्या मतलब पंडित जी "
पंडित जी " बेटा राजकुमारी जी जन्म से ही नेत्रहीन हैं |"
रामलाल को धक्का सा लगा की भगवान् ने इतनी सुन्दर युवती के साथ ऐसा कैसे किया |
थोड़ी देर बाद राजकुमारी का काफिला वहां से निकल जाता है |
पंडित जी " अच्छा रामलाल अब मैं चलता हूँ अपनी संध्या वंदना के लिए |"
रामलाल " ठीक है पंडितजी प्रणाम "
रामलाल वापस अपने घर को चल पड़ता है | रामलाल जब घर पहुचता है तो शाम हो चुकी रहती है | घर में रुकसाना रात के खाने की तयारी कर रही होती है | रामलाल कजरी को झोपड़े पे जाके देखता है तो रामू खाट पे लेटा रहता है | रामलाल रामू को एक लात लगता है तो रामू हडबडा के उठ जाता है रामलाल को देख के कहता है " क्या हुआ भैया "
रामलाल " ससुरे पहले तू बता पहले कहाँ था ?"
रामू " भैया बस नाच देखने २ कोस दूर एक गाँव चला गया था "
रामलाल ने एक खेच के रामू के कान के नीचे लगाया और बोला " साले तुझे काम पे इसी लिए रखा है ?"
रामलाल का गुस्सा देख रामू की घिग्गी बांध गयी वो रेरियते हुए बोला " माफ़ कर दो भैया "
रामू " साले तेरी सास की तबियत खराब है और तेरी जोरू मायेके गयी है तुझे भी बुलाया है निकल तू भी अभी के अभी "
रामू डर के मारे तुरंत कुछ सामान उठाता है और निकल जाता है | रामलाल घर में वापस आता है तो रुकसाना खाना बना चुकी होती है वो रामलाल से कहती है " हुजुर खाना तैयार है बोले तो मैं आपके लिए लगा दूँ "
रामलाल " ठीक है लगा दो "
रुकसाना खाना लगा के ले आती है और रामलाल उसके हाथ से खाना लेके आगन में एक जगह बैठके खाने लगता है | वो अब रुकसाना के तरफ देख भी नहीं रहा था जिससे उसके ह्रदय में कोई और विचार आये | रामलाल ने जल्दी जल्दी अपना खाना ख़त्म किया और हाथ मुह धोया | फिर वो रुकसाना से बोला " मैं बाहर जा रहा हूँ सोने के लिए तुम अन्दर से किवाड़ बंद कर लेना "|
ये कहकर रामलाल घर से बाहर चला गया | उसके जाने के बाद रुकसाना सोचने लगी की सुबह तो ये आदमी उसे घूर घूर के देख रहा था अब क्या हो गया इसको | रुकसाना ने भी खाना खाया और वो बिस्तर पे लेट गयी |
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Rohit Kapoor
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Re: चूत के चक्कर में

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रामलाल घर के बाहर खाट बिछा के लेट जाता है पर नींद उसकी आँखों से कोसो दूर रहती है | उसे रह रह कर कजरी की चूत की याद आती है पर वो कर भी क्या सकता था कजरी अपनी माँ के यहाँ जा चुकी थी | रामलाल अपना ध्यान कजरी से हटाने की कोशिश करता है तो उसे ख्याल आता है की उसकी घर में अभी एक और चूत है | पर वो ये भी सोचने लगता है की अगर उसने रुकसाना के साथ कोई जबरदस्ती की तो हो सकता है की वो गाँव वालो को बता दे और उसकी इज्जत मिटटी में मिल जाए |



इधर घर के अन्दर रुकसाना को भी नींद नहीं आ रही थी वो सोच रही थी की रामलाल ने अब तक उसके साथ सम्बन्ध बनाने की कोशिश क्यों नहीं की कही ऐसा तो नहीं वो रामलाल के बारे में जैसा सोच रही हो वो वैसा ना हो | पर सुबह रामलाल की नजरों ने जैसे उसके शरीर को देखा था उससे तो ऐसा नहीं लग रहा था | क्या रामलाल को वो पसंद नहीं आई क्या खराबी थी उसमे अभी वो जवान थी | रुकसाना को याद आने लगा की उसके शौहर ने भी कई महीनो से उससे सम्बन्ध नहीं बनाये थे और उसके अन्दर की प्यास जागने लगी | बरबस ही उसका एक हाथ उसकी सलवार के अन्दर होता हुआ उसकी चूत तक जा पंहुचा | रुकसाना के शारीर में एक अजीब सी तपन उठने लगी उसकी चूत अब लंड मांग रही थी रुकसाना ने अपनी एक ऊँगली अपनी चूत पे घुमाई तो उसके मुह से सिसकारी निकल गयी | अब रुकसाना से रहा नहीं गया उसने अपना दूसरा हाथ भी सलवार के अन्दर घुसा लिया और अपनी चूत को एक हाथ से फैला कर वो दुसरे हाथ से अपनी चूत के दाने को कुरेदने लगी | रुकसाना का शारीर अब काम अग्नि में जलने लगा उसके होठ सुख गए और उसके माथे पे पसीना आ गया |



रुकसाना ने अपनी एक ऊँगली अपनी चूत में गुसा दी और धीरे धीरे उसे अन्दर बाहर करने लगी | धीरे उसके शारीर में मस्ती चढ़ने लगी उसके मुह से सिसकियाँ निकलने लगी | उसने मन में रामलाल के लंड के बारे में सोच कर एक और ऊँगली अपनी चूत में घुसा ली | अब उसकी चूत भी हलकी हलकी पनिया गयी थी रुकसाना के मन में अब रामलाल का लंड उसकी चूत में घुस चुका था और उसकी अन्दर बाहर होती उंगलियों की जगह अब रामलाल का लंड उसकी चुदाई कर रहा था | रुकसाना किसी और ही दुनिया में खो चुकी थी और अपनी उंगलियों को और जोर से अपनी चूत में अंदर बाहर कर रही थी | धीरे धीरे रुकसाना के शारीर में तरंगे उठने लगी और थोड़ी ही देर में रुकसाना झड गयी | आज बहुत दिन बाद रुकसाना की चूत ने पानी छोड़ा था पर अब उसने ठान लिया था की वो अब उंगलियों की जगह रामलाल का लंड अपनी चूत में लेगी |
उधर घर के बाहर रामलाल की रात खाट पे उलथते पलथते बिट रही थी | गर्मी और उमस से उसका बुरा हाल हो चुका था | रामलाल ने अपनी धोती उतार दी और लंगोट में ही बिस्तर पे पसर गया | थोड़ी ही देर में उसे नींद आ गयी |

सुबह रुकसाना की नींद खुली तो अभी सूरज नहीं उगा था बस हल्का हल्का उजाला होना शुरू हुआ था | रुकसाना ने सोचा की बाहर जा के रामलाल को उठा दे की वो घर के अन्दर आ जाए | रुकसाना बाहर निकल कर रामलाल की खाट के पास पहुची तो रामलाल को देखते ही उसकी आँखे फटी की फटी रह गयी | रामलाल की धोती निकली हुयी थी और उसकी लंगोट भी खुल चुकी थी और उसका लंड एकदम कड़क हो सलामी दे रहा था | रुकसाना कुछ देर वही खड़ी रामलाल के लंड को निहारती रही | न जाने कितने दिनों के बाद उसने लंड देखा था रामलाल का लंड उसके पति से काफी मोटा और लम्बा था और किसी काले भुजंग जैसा दिखता था | रुकसाना कुछ देर बाद रामलाल को बिना जगाये वापस घर में आ गयी पर अब उसने दृढ निश्चय किया था की वो रामलाल का लंड अपनी चूत में लेके रहेगी |

सुबह रामलाल की नींद खुलती है तो सूरज उग चूका होता है । रामलाल बिस्तर से उठता है तो उसे आभास होता है की उसकी लंगोट खुली हुई है और उसका लंड विकराल रूप लिए खड़ा है। रामलाल जल्दी से इधर उधर देखते हुए अपनी लंगोट बंधता है और धोती लपेट के घर की तरफ बढ़ता है । घर के दरवाजे पे पहुँच के उसके पाँव ठिठक जाते हैं उसे घर के अंदर से पानी गिरने की आवाज आती है। रामलाल हल्का सा दरवाजे को धकेलता है तो दरवाजा थोडा सा खुल जाता है । रामलाल अंदर झाँक के देखता है तो अंदर का नाज़ारा देख के उसका लंड फट पड़ने को होने लगता है। अंदर रुकसाना आँगन में एकदम नग्न अवस्था में नहा रही होती है। रुकसाना का शारीर रामलाल के नजरो के सामने था और वो बस उसे देखे ही जा रहा था। उसका गेहुआँ रंग , उसकी उभरी हुई चूचियां , उसके चूत के ऊपर के काले बाल सब रामलाल को पागल बना रहे थे । तभी उसने सामने पड़ी बाल्टी से एक लोटा पानी लिया और अपने सर के ऊपर से डाल लिया। रामलाल की नजरें अब रुकसाना के शारीर के ऊपर से गुजरती हुई पानी की धार का पीछा करने लगी। वो धार पहले उसके चेहरे से होते हुए उसके सुर्ख लबों को चूमते हुए उसके सीने पे पड़ती है जहाँ पे वो दो शाखाओं में बंट जाती है और रुकसाना के वक्षो के उभारों पे चढ़ती हुई उसके तने हुई चूचियों के निपल से उसके पेट पे गिरती है जहाँ पे वे दोनों वापस मिलकर रुकसाना की चूत की झाड़ियों में गुम हो जाती है ।


रामलाल ये सब देख के अत्यंत ही उत्तेजित हो जाता है और वो अपना लंड धोती के ऊपर से ही मसलने लगता है। अंदर रुकसाना ने अपने शरीर पर साबुन मलना शुरू कर दिया होता है वो साबुन की टिकिया को अपने वक्षो पे जोर जोर से घिसती है जिससे वो लाल हो जाते हैं फिर वो अपने पेट पे साबुन लगाती हुई अपनी टांगो को फैलाते हुए अपनी चूत पे घिसने लगती है। रामलाल से रहा नहीं जाता है वो अपने लंड को धोती से बाहर निकाल के हिलाने लगता है । अंदर रुकसाना के हाथ से साबुन फिसलके नीचे गिर जाता है और वो झुक के साबुन उठाने लगती है जिससे उसकी गांड एकदम से रामलाल के सामने आ जाती है जिसके बीच से रुकसाना की चूत झांकते हुये उसे निमंत्रण दे रही होती है। रामलाल के मष्तिष्क पे हवस सवार हो जाती है और वो समाज की परवाह किये बगैर घर के अंदर घुस जाता है और रुकसाना को जाके पीछे से पकड़ लेता है।



रुकसाना एकबार के लिए चौंक जाती है और ऊपर उठने की कोशिश करती है पर रामलाल एक हाथ से उसकी पीठ पे दबाव डालके उसे और झुका देता है। रुकसाना फिर उसकी पकड़ से छुटने की कोशिश करती है पर रामलाल उसे वैसे ही दबाये रखता है और अपना लंड उसकी चूत पे सेट करके एक धक्का देता है । रुकसाना की चूत पे लगे साबुन के कारण रामलाल का लंड फिसलता हुआ आधा उसकी चूत में घुस जाता है। रुकसाना की चूत ने बहुत दिन बाद लंड का स्वाद चखा था और उसकी भूख भी बढ़ने लगती है। रामलाल हलके हलके अपना लंड रुकसाना की चूत में अंदर बाहर करने लगता है। रुकसाना की चूत भी धीरे धीरे पनियाने लगती है रामलाल मौका देख के एक और धक्का मारता है जिससे उसका पूरा लंड रुकसाना की चूत में समां जाता है । रुकसाना के मुँह से हलकी सी चीख निकल जाती है। रामलाल धीरे धीरे रुकसाना की चूत में अपना लंड अंदर बाहर करने लगता है। रुकसाना को भी अब मजा आने लगता है उसकी चूत अब और जोर से पानी छोड़ने लगती है। रामलाल अब अपने दोनों हाथों से रुकसाना की गांड को पकड़के अपना लंड रुकसाना की चूत में पेलने लगता है।रुकसाना असीम आनंद के सागर में गोते लगाने लगती है । रामलाल को भी अब बहुत मजा आने लगता है और धीरे धीरे वो अपने चरम पे पहुचने लगता है। उधर रुकसाना को भी लगता है की उसका पानी निकलने वाला है तो वो भी जोर जोर से अपनी कमर आगे पीछे करने लगती है। दोनों के धक्कों की थाप से पूरा घर गूंजने लगता है। रामलाल को लगता है जैसे किसी ने उसके अंडकोषों में आग लगा दी हो और उसके वीर्य का उबाल उसके लंड से निकालता हुआ रुकसाना की चूत को भरने लगता है। रुकसाना को महसूस होता है की खौलता हुआ वीर्य उसकी चूत में भर रहा है तो वो और उत्तेजित हो के झड़ जाती है उसके पैर जवाब दे देते है और वो जमीन पे ही पसर जाती है। रामलाल अब होश में आ चुका होता है और सामने रुकसाना का हाल देख कर वो भयभीत हो जाता है । वो जल्दी से अपने कपडे सही करता है और घर से बाहर निकल जाता है।
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Rohit Kapoor
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Re: चूत के चक्कर में

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रामलाल तेजी से कदम बढ़ाता है उसका मन पश्चाताप की अग्नि में धधक रहा था न जाने कैसे उसने अपनी भावनाओ को फिर बह जाने दिया पहले कजरी और अब रुकसाना। रामलाल के ह्रदय में अपने लिए घृणा उठने लगती है वो सोच भी नहीं पा रहा था की वो आखिर ऐसा कैसे कर सकता है । रामलाल के कदम जब रुकते हैं तो नदी के किनारे पे खड़ा रहता है। रामलाल अपने दिमाग को ठंडा करने के लिए कपडे उतार नदी में उतर जाता है। नदी का ठंडा पानी उसको थोड़ी शान्ति प्रदान करता है । काफी देर तक पानी में रहने के बाद रामलाल नदी से बाहर निकालता है और पुराने कपडे पहन वही किनारे बैठ सोचने लगता है। उसके मन में ये विचार उठता है की रुकसाना ने ये बात अगर गाँव वालो को बता दी तो क्या होगा। भय के मारे उसके हाथ पाँव फूल गए । तरह तरह के विचार उसके मन में कौंधने लगे। उसकी हिम्मत जवाब देने लगी गाँव वापस जाने की।

जमीन पर पड़ी रुकसाना अभी भी अपनी चुदाई के खुमार से निकली नहीं थी ऐसी चुदाई तो उसके पति ने भी नहीं की थी । उसका मन और शारीर दोनों तृप्त हो गया था। रामलाल के लंड का उगला हुआ वीर्य उसकी चूत से निकलकर उसकी जांघो पे बह रहा था। रुकसाना को ऐसा लग रहा था न जाने कितने जन्मों की प्यास आज जाके पूरी हुई है। रुकसाना ने सुबह जब रामलाल का खड़ा लंड देखा था तभी से उसकी चूत पनियाने लगी थी । वो रामलाल के उठने का इंतेज़ार कर रही थी। उसने सारी योजना ऐसे बनायीं की रामलाल उसके जाल में फंस जाये। उसने जान बूझ कर घर का दरवाजा खुला रखा और रामलाल को रिझाना के लिए वो नंगे होके नाहा रही थी जबकि आजतक उसने अपने शौहर के सामने भी ऐसा नहीं किया। वो धीरे धीरे उठती है आज उसके चेहरे पे ख़ुशी दिख रही थी वो वापस नहाती है और चहकते हुए घर के कामों में लग जाती है।

रामलाल थोड़ी देर नदी के किनारे चहलकदमी करता रहा पर उसके पेट में उमड़ी भूख और दिमाग में उमड़ते हुए सवालो ने उसे परेशान कर रखा था। अंततः उसने फैसला किया की उसने रुकसाना के साथ जो गलत हरकत की है उसकी वो उससे माफ़ी मांग लेगा और अगर वो उसे दंड दिलवाना चाहती है तो वो खुद पंचायत के सामने अपना गुनाह कबूल कर लेगा। रामलाल अब ये ठान के अपने कदम घर की तरफ बढ़ा देता है। घर पहुचने पर वो देखता है की घर का दरवाजा खुला हुआ है । वो अंदर झांकता है तो उसे दिखाई देता है की रुकसाना गुनगुनाते हुए अपना काम कर रही है जैसे की सुबह कुछ हुआ ही नहीं । रामलाल को कुछ समझ नहीं आता है फिर भी वो पूरा साहस बटोर के घर में दाखिल होता है। रुकसाना उसे देखके खुश होते हुए पूछती है " आ गए हुजूर बोलिये तो आपका खाना लगा दू?"
रामलाल को अभी भी रुकसाना का बर्ताव कुछ समझ में नहीं आता पर वो जो ठान के आया था वो बात वो रुकसाना से कहने के लिए अपना मुह खोलता है " रुकसाना मुझे आज सुबह जो हुआ ..."
रुकसाना बीच में ही बात काटते हुए " क्या हुआ ..."
रामलाल झेंपते हुए बोला " वही जो मैंने तुम्हारी बिना मर्जी के ....."
रुकसाना ने फिर बात बीच में ही काटते हुए " आपसे किसने कहा की जो हुआ वो बिना मेरी मर्जी के हुआ ?"
रामलाल ने आश्चर्य से पूछा " मतलब ?"
रुकसाना " हर बात का मतलब नहीं होता हुजूर आप हाथ मुँह धोले मैं खाना लगा देती हूँ ।"
रामलाल ने भी बात आगे बढ़ाने के बजाये उसकी बात मानना उचित समझा।
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Re: चूत के चक्कर में

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Nice update....
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Re: चूत के चक्कर में

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Kautilay wrote:Nice update....
thanks dear
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