मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग complete

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Dolly sharma
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Re: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग

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तभी एक सांवली सी लड़की ट्रे पर एक शराब की बोतल और दो गिलास लेकर आयी. उम्र कुछ 18-19 की लग रही थी. उसने घुटने तक घाघरा और चोली पहना हुआ था. हाथ मे कांच की चूड़ियाँ, पाँव मे चांदी की पायल, गले मे मंगलसूत्र, और माथे पर सिंदूर था. कद थोड़ा छोटा था और पेट थोड़ा फूला हुआ था, पर देखने मे काफ़ी आकर्शक लग रही थी.

उसने विश्वनाथजी के सामने गिलास रखी और उसमे शराब, सोडा, और बरफ़ मिलाई.

"लो विश्वनाथ, थोड़ा गला तर कर लो." मामाजी बोले, "तुम्हारे पसंद की विस्की है."

विश्वनाथजी उस लड़की को लंपट नज़रों से ऊपर से नीचे तक देखे जा रहे थे. वह एक घूंट लेकर बोले, "गिरिधर, विस्की तो बहुत अच्छी है, पर यह लड़की कौन है?"
"यार, यह मेरे घर की नौकरानी है - गुलाबी." मामाजी बोले, "यह भी तुम्हारे पसंद की ही है."

"मामाजी, तो यही है गुलाबी!" मैं बोल पड़ी, "भाभी के मुंह से बहुत तारीफ़ सुनी है इसकी."

गुलाबी शर्म से सर झुकाकर खड़ी रही.

मामाजी बोले, "गुलाबी, यह वीणा दीदी है. तेरी भाभी की ननद और मेरी भांजी. इससे शरमाने की ज़रूरत नही है. यह तेरे बारे मे सब कुछ जानती है."

गुलाबी ने मुझे नमस्ते किया.

मामाजी बोले, "विश्वनाथ, हाथ लगाकर देखो. लड़की बहुत खेल खायी है."

विश्वनाथजी ने गुलाबी का हाथ पकड़ा और कहा, "इधर आ लड़की. शादी-शुदा है तु?"
"जी, साहेब."
"तेरा मरद कहाँ है?"
"ऊ बाजार गये हैं." गुलाबी ने जवाब दिया.
"बहुत किस्मत वाला है तेरा मरद." विश्वनाथजी ने कहा और गुलाबी के भरे भरे नितंभों को दबाया. "हमे भी चखने देगी न यह सब?"
"साहेब, आपकी इच्छा हो तो ज़रूर देंगे." गुलाबी बोली. उसकी आंखें वासना से चमक रही थी.

विश्वनाथजी हंसे और उन्होने गुलाबी को अपनी गोद मे बिठा लिया. शायद उनका खूंटे जैसा लन्ड पजामे मे खड़ा हो गया था. गुलाबी बैठते ही "उई माँ!" करके उठ गयी.
"क्या हुआ, लड़की? डर गयी क्या?" विश्वनाथजी बोले, "अभी तो तुने देखा नही है. देखेगी तो क्या करेगी?" उन्होने गुलाबी को खींचकर फिर अपने गोद मे बिठा लिया.

गुलाबी उनके लन्ड पर अपने चूतड़ रगड़ने लगी. विश्वनाथजी ने अपना हाथ उसके घाघरे के नीचे डाला और उसकी चूत तक ले गये.

चूत को सहला कर बोले, "गिरिधर, यह तुम्हारे घर की रीत है क्या कि नौकरानियाँ चड्डी नही पहनती?"

मामाजी बोले, "यार, हमारे घर की औरतें कपड़े थोड़े कम ही पहनती हैं."

तभी मामीजी बैठक मे आयी और मुझे देखकर बोली, "वीणा, तु आ गयी बेटी! कितने दिनो बाद देख रही हूँ तुझे! कितनी सुन्दर हो गयी है तु!"

मै जाकर मामीजी से लिपट गयी.

"और मोटी भी हो गयी हूँ, मामी!" मैने कहा, "यह सब विश्वनाथजी और उनके दोस्तों की कृपा है."

"अरे हमने क्या किया, बेटी?" विश्वनाथजी ने पूछा.
"आपने और आपके उन बदमाश दोस्तों ने मेरा गर्भ बना दिया है." मैने कहा.

"विश्वनाथजी, आपने और आपके उन दोस्तों ने मुझे और मेरी बहु को भी गर्भवती कर दिया है." मामीजी ने भी शिकायत की.

"अरे विश्वनाथ, औरतें रंडी की तरह चुदवायेंगी तो गर्भ तो ठहरेगा ही! तुम इसकी चिंता मत करो." मामाजी बोले, "भाग्यवान, तुम भी मेरे दोस्त के साथ क्या दुखड़ा लेकर बैठ गयी! कुछ खाने को लाओ! और घर के बाकी सब कहाँ गये हैं?"
"बलराम और किशन तो खेत मे गये हैं." मामीजी बोली, "बहु रसोई मे है. अभी आ रही है."

तभी मीना भाभी एक प्लेट मे पकोड़े लेकर बैठक मे आयी. मामीजी ने उसके हाथ से प्लेट ले ली और चाय की छोटी मेज पर रख दी.

भाभी ने मुझे गले से लगा लिया. "वीणा! मैं कितनी खुश हूँ तुम आ गयी!" वह बोली.
"भाभी, मैं भी बहुत खुश हूँ आकर!" मैने कहा, "तुम भी मेरी तरह मोटी हो गयी हो!"
"मेरे कोख मे विश्वनाथजी का बच्चा जो पल रहा है!" वो हंसकर बोली.

मैने भाभी को ऊपर से नीचे देखा. उसने सिर्फ़ एक ब्लाउज़ और पेटीकोट पहन रखी थी. ब्लाउज़ के ऊपर के दो हुक खुले हुए थे जिससे उसकी गोरी गोरी चूचियां छलक के बाहर आ रही थी. उसने ब्रा नही पहनी थी और शायद चड्डी भी नही पहनी थी. बहुत ही कामुक लग रही थी भाभी. जाने कैसे घर की बहु इस तरह बेहया होकर सबके सामने चली आयी थी.

विश्वनाथजी भाभी की जवानी को आंखों से ही पीये जा रहे थे.

मैने कहा, "भाभी, आजकल तुम ऐसी ही रहती हो क्या?"
"क्या करुं, वीणा!" भाभी मजबूरी जताकर बोली, "एक तो इतनी गर्मी है. ऊपर से घर के मर्द लोग कपड़े पहने कब देते हैं? इनका बस चले तो हम औरतों को दिन भर नंगी ही रखें!"

विश्वनाथजी गुलाबी की चोली मे हाथ डालकर उसके चूची को दबा रहे थे और भाभी की अध-नंगी जवानी को देख रहे थे. गुलाबी मस्ती मे "आह!! ऊह!" कर रही थी.

मामीजी बोली, "विश्वनाथजी, मन करे तो गुलाबी को अपने कमरे मे ले जाईये और उसे इत्मिनान से लूटिये. लग रहा है वह आपके औज़ार पर फ़िदा हो गयी है."
"नही, भाभीजी." विश्वनाथजी बोले, "शाम को दावत है. इसे मैं तब ही चखूंगा."

"हाँ, कौशल्या." मामाजी बोले, "सब से कह दो कि अपनी उर्जा बचाकर रखे नही तो दावत मे मज़ा नही आयेगा."
"मामाजी, मैं तो सोची थी अमोल के साथ अभी एक बार..." मैं आपत्ती जतायी.
"अरे बेटी, अब तो तु अमोल के साथ रोज़ रात को सोयेगी." मामीजी बोली, "इतनी भी जल्दी क्या है उससे मिलन करने की? बहु, वीणा बिटिया को अमोल के कमरे मे ले जा. थोड़ा हाथ मुंह धोकर ताज़ी हो ले."

भाभी ने मुझे अमोल के कमरे मे धकेल दिया और बोली, "देखो वीणा, अभी अपने यार से चुदवा मत लेना. तुम्हारी चूत मारने के लिये घर पर सब लोग अधीर हो रहे हैं. थक जाओगी तो किसी को मज़ा नही दे पाओगी."

मैने दरवाज़ा बंद किया और अमोल से लिपट गयी. उसने तुरंत मुझे चूमना शुरु कर दिया और मेरे कपड़े उतारने लगा. उसने जल्दी से मेरी सलवार और कमीज़ उतार दी. मैं भी उसे कमरे मे अकेले पाकर मस्ती मे पागल होने लगी.

पर मुझे मामाजी की हिदायत याद आयी. उससे छुटकर बोली, "अमोल, अभी नही. शाम को दावत है, तब जितना चाहे मुझे लूट लेना."
"नही, मेरी जान!" अमोल बोला, "तब तो कोई मुझे तुम्हारे पास भी नही आने देगा! बस एक पानी चोदने दो अभी. मैं कबसे तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ."
"नही, अमोल. तुम्हे भी दावत मे सब औरतों को मज़ा देना है." मैने कहा, "अभी अपनी शक्ति गवांकर सबका मज़ा खराब मत करो."
"तो अभी मैं क्या करूं?" उसने निराश होकर पूछा.
"मै तुम्हारे लिये एक तोहफ़ा लायी हूँ." मैने शरारत से कहा, "अभी तुम उसका स्वाद लो."
"कैसा तोहफ़ा?"

मैने अपनी चड्डी उतारी. चड्डी उन दो गुरु-चेले के वीर्य से पूरी तरह चिपचिपा हो गयी थी और बहुत महक रही थी. अमोल के हाथ मे देकर बोली, "तुम इसे बैठकर सूंघो. मेरे दो यारों ने तुम्हारे लिये भेजी है."

अमोल ने गुस्से से मेरी चड्डी फेंक दी. मैं खिलखिला कर हंसती हुई बाथरूम मे घुस गयी.

मै नहाकर बाहर आयी, और अपने सूटकेस से अपनी साड़ी ब्लाउज़ निकालने लगी.

अमोल बोला, "वीणा, चड्डी, ब्रा, और साड़ी छोड़ो. दीदी तो बस ब्लाउज़ और पेटीकोट मे रहती है. तुम भी वैसी ही रहो. बहुत कामुक लगोगी. मैं चाहता हम तुम घर के मर्दों के सामने अध-नंगी घुमो."
"घर पर कोई आ गया तो?"
"कोई आयेगा तो कुछ लपेट लेना." अमोल बोला.

मैने उसके कहे अनुसर एक पेटीकोट पहनी और एक ब्रा पहन ली. मेरी चूचियां जो अब थोड़ी भारी होती जा रही थी ब्रा के ऊपर से बहुत आकर्शक लग रही थी.

"कैसी लग रही हूँ?" मैने पूछा.
"माल लग रही हो!" अमोल बोला और मुझे बाहों मे लेकर चूमने लगा, "अभी बाहर जाओगी तो लोग तुम्हारा बलात्कार न कर बैठें!"

हम दोनो कमरे से बाहर निकले. बैठक मे सब हंसी मज़ाक कर रहे थे. मुझे इस तरह अध-नंगे आते देखकर मामाजी और विश्वनाथजी कपड़ों के अन्दर अपना लन्ड सम्भालने लगे.

"बहुत सुन्दर लग रही हो, वीणा." विश्वनाथजी पजामे मे हाथ डालकर अपना लन्ड सहालते हुए बोले, "अबसे घर पर ऐसे ही रहा करो."

उनके लन्ड की तरफ़ देखकर मैं बोली, "और आप लोग क्या इतने सारे कपड़े पहने रहेंगे? हम औरतों को भी तो कुछ देखने का मन कर सकता है कि नही?"
"हाँ हाँ, क्यों नही? हम औरतों को भी मर्दों के जिस्म देखने का मन करता है." मामीजी बोली, "अबसे घर के मर्द केवल लुंगी पहनेंगे. कोई चड्डी नही पहनेगा!"

विश्वनाथजी खुश होकर बोले, "गिरिधर, लगता है मेरी यह यात्रा बहुत सुखद होने वाली है."

बलराम भैया और किशन शाम की तरफ़ खेत से लौटे. साथ मे रामु था.

मुझे देखते ही रामु बोला, "परनाम, दीदी!"
"कब आयी, दीदी?" किशन ने पूछा.
"अरे, वीणा रानी!" बलराम भैया ने कहा, "तु आ गयी? घर पर बुआ और फुफाजी ठीक हैं? और नीतु कैसी है?"

तीनो मेरा हाल-चाल पूछ रहे थे और मैं शर्म से लाल हो रही थी. तीनो मेरी ब्रा और पेटीकोट मे आधे ढके शरीर को खुली वासना की नज़रों से देख रहे थे.

"अरे हमरी बहनिया तो सरमा रही है!" बलराम भैया मुझे बाहों मे लेकर चिढ़ाकर बोले, "जैसे कोई अनचुदी कन्या हो."
"जाईये मैं आपसे बात नही करती!" मैं उनके बाहों मे मचलते हुए बोली, "अपनी बहन पर बुरी नज़र डालते आपको शरम नही आती?"
"तुम तो मेरी बुआ की बेटी हो. मेरा साला तो अपनी सगी दीदी के साथ संभोग करता है." बलराम भैया बोले.
"और आप जो अपनी माँ के साथ करते हैं?" मैने चिढ़ाकर कहा.
"तो तुम्हे मीना ने सब कुछ बता दिया है?" बलराम भैया बोले, "चलो तुम आ गयी हो, बहुत अच्छा हुआ. मैं, किशन, और रामु तुम्हारी जवानी को लूटने के लिये बेचैन हैं. अमोल, पिताजी और विश्वनाथजी तो तुम्हे भोग ही चुके हैं."

बलराम भैया के अश्लील बातों से मेरी शर्म जल्दी ही दूर हो गयी. उनकी भूखी नज़रें मेरे शरीर पर पड़ रही थी और मैं चुदास से सिहर रही थी. मैं सोचने लगी, हाय कब शुरु होगी दावत और मैं सब से चुदवा सकूंगी!

शाम को सात बजे दावत शुरु हुई. बैठक के कालीन पर एक बड़ा का गद्दा बिछाया गया था जिस पर सब लोग बैठ गये.

भाभी पेटीकोट और ब्लाउज़ मे थी. मामीजी ने भी एक पेटीकोट और ब्लाउज़ पहनी हुई थी. मैं पेटीकोट और ब्रा मे थी. मर्द लोग सब नंगे-बदन थे और सिर्फ़ लुंगी पहने हुए थे. सबका लौड़ा लुंगी मे खंबे की तरह खड़ा था.

गुलाबी ने चाय की मेज पर पकोड़े, गोश्त और चिकन सजाकर रख दिये और हमारे साथ बैठ गयी. रामु सबको गिलासों मे शराब परोस रहा था.

हम सब शराब के साथ पकोड़े खाने लगे और हंसी मज़ाक करने लगे.

गुलाबी विश्वनाथजी के बगल मे बैठी थी और मजे लेकर विलायती शराब पी रही ही. भाभी, जो अपने भाई के साथ बैठी थी, बोली, "गुलाबी, यह रामु की देसी दारु नही है. आराम से पी."

मै बलराम भैया की गोद मे उनसे सटकर बैठी थी और वह ब्रा के ऊपर से मेरी चूचियों को सहला रहे थे. मेरे पीठ पर उनका खड़ा लन्ड लग रहा था. मैं अपने गिलास से शराब की चुस्की ले रही थी. सोनेपुर से आने के बाद मैने शराब की एक बून्द भी नही पी थी. आज मुझे पीकर टल्ली होने का मन कर रहा था.

अमोल अपनी दीदी के साथ बैठा हुआ था और मुझे बलराम भैया के बाहों मे अठखेलियाँ करते देख रहा था. ईर्ष्या होने की बजाय उसकी आंखों मे एक विक्रित वासना थी.
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Dolly sharma
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थोड़ी देर मे हम सब को शराब का अच्छा नशा हो गया और हम बहुत ही भद्दे और अश्लील मज़ाक करने लगे.

मैने मामीजी से कहा, "मामी, किशन नही दिख रहा. मुझे तो उसका लन्ड भी लेना है!"
"अभी आ रहा है, बेटी." मामीजी बोलीं.

तभी किशन हाथ मे एक कैमेरा जैसी चीज़ लेकर बैठक मे आया.

"यह क्या है किशन?" मैने अचरज से पूछा.
"दीदी, यह एक वीडिओ कैमेरा है." किशन खुश होकर बोला, "भैया कल ही शहर से लाये हैं."
"इसमे हमारी वीडिओ बनेगी?" मैने उत्साहित होकर पूछा.
"हाँ." किशन बोला और कैमेरे को चालु करने लगा.

"हाय दईया!" गुलाबी चहक कर बोली, "किसन भैया, इससे का आप हमरी चुदाई फिलम बनायेंगे? जैसी उस दिन हमने टीवी पर देखी थी?" उसकी आवाज़ नशे मे लड़खड़ा रही थी.
"हाँ. बस देखती जा." किशन बोला.

उसने वीडिओ कैमेरा चालु किया और अमोल को पकड़ाकर बोला, "अमोल भैया, आपको तो वीडिओ कैमेरा चलानी आती होगी? आप ही फ़िल्म बनाइये."

अमोल ने खुशी खुशी कैमेरा ले लिया और सबकी वीडिओ बनाने लगा.

हम सबमे एक नया जोश भर गया क्योंकि हम आज जो करने वाले थे सब कैमेरे मे कैद होने वाला था.

सब ने अपनी शराब की गिलास खाली की और अपने अपने जोड़ीदार से चुम्मा-चाटी करने लगे. रामु ने फिर सब की गिलासें भर दी. उसका लन्ड भी लुंगी मे तनकर खड़ा था. उसकी भोली-भाली बीवी आज एक नये मर्द के बाहों मे रंगरेलियां मना रही थी.

गुलाबी ने विश्वनाथजी का लन्ड लुंगी के ऊपर से पकड़ रखा था और हिला रही थी. वह नशे मे हिचकी लेते हुए बोली, "अरे साला कोई चोदाई भी करेगा या सब चुम्मा-चाटी ही करते रहेंगे?"

शराब के नशे से मेरा सर घूम रहा था. मेरा पूरा शरीर गरम हो गया था और मेरी चूत गीली होकर चू रही थी. बलराम भैया ने मेरे ब्रा को ऊपर खींच दिया था और मेरी नंगी चूचियों को जोर से मसल रहे थे. साथ ही मेरे होठों को पी रहे थे.

वह बोले, "मै तो भई अब वीणा को चोदने वाला हूँ. मेरी बहन इतनी मस्त माल है और मैने आज तक इसकी जवानी का रस नही पिया है!"
"हाँ हाँ, चोद लीजिये अपनी बहन को और बहनचोद बन जाईये." भाभी अपने पति को छेड़कर बोली. भाभी की ब्लाउज़ सामने से खुली हुई थी और अमोल उसकी चूचियों को एक हाथ से दबा रहा था.
"कम से कम वीणा मेरी सगी बहन तो नही है." बलराम भैया बोले, "तुम तो अपने सगे भाई से चुदवाती हो."
"हाँ चुदवाऊंगी तो. आपको क्या?" भाभी नशे मे धुत्त आवाज़ मे बोली, "अपने बड़े भाई से भी चुदवाऊंगी. अपने बाप से भी चुदवाऊंगी. आप देखना और अपना लौड़ा हिलाना."

"अरे तुम लोग बातें बंद करो और कोई मुझे चोदो!" मैं खीजकर चिल्लायी. "कोई तो मेरी चूत मे एक लौड़ा डालो!"

"बलराम, बेचारी बहुत तड़प रही है. अब चोद दे उसे." मामीजी बोली, "अमोल, ज़रा वीणा को नंगी कर दे बेटा."
"हाँ हाँ, अमोल. आओ और अपनी मंगेतर को मेरे लिये तैयार करो." बलराम भैया बोले.

अमोल उठकर आया और मेरे पेटीकोट का नाड़ा खोलकर मेरे पैरों से अलग करने लगा. मैने अपने पीठ के पीछे हाथ ले जाकर ब्रा की हुक खोल दी. जल्दी ही मैं पूरी नंगी हो गयी.

बलराम भैया ने मुझे गद्दे पर लिटा दिया और मैने अपनी नंगी चूत उनके सामने कर दी. वह उठे और अपनी लुंगी उतारकर पूरे नंगे हो गये. उनका शरीर कसा हुआ और तराशा हुआ था. पर उनका लन्ड मैं पहली बार देख रही थी. सांवले रंग का लन्ड करीब 8 इंच का था और काफ़ी मोटा था. इसी लन्ड से बलराम भैया भाभी को चोदकर मज़ा देते थे. इस लन्ड को अपनी चूत मे लेने की मेरी बहुत दिनो की चाहत थी.

भैया ने मेरे दोनो पैर अलग किये और बीच मे बैठ गये. अपना मोटा, लाल सुपाड़ा मेरी चिकनी चूत के फांक मे रखकर ऊपर-नीचे रगड़ने लगे. मेरा पेट गर्भ होने के कारण थोड़ा फुल गया था और मेरी बुर भी थोड़ी मोटी हो गयी थी. शायद मैं उस समय बहुत ही अश्लील लग रही थी.

मैने अमोल की तरफ़ देखा जो मेरी चूत पर अपने जीजाजी के लन्ड की रगड़ाई देख रहा था. उसके हाथ मे वीडिओ कैमेरा था जिससे वह मेरे नंगेपन की फ़िल्म लिये जा रहा था.

"हाय अमोल! तुम्हारी होने वाली पत्नी अपने भाई से चुदने वाली है!" मैने कहा, "तुम्हे देखकर मज़ा आ रहा है?"
"हाँ, वीणा. बहुत अच्छा लग रहा है." अमोल भारी आवाज़ मे बोला, "जीजाजी, घुसा दीजिये वीणा की चूत मे अपना लौड़ा. पेल दीजिये पेलड़ तक अपना लन्ड!"
"हाँ, भैया! आह!! और मत सताइये मुझे! आह!!" मैने कहा और अपनी कमर उचकाने लगी.

बलराम भैया ने अपना सुपाड़ा मेरी चूत की छेद पर रखा और कमर का धक्का लगाया. लन्ड मेरी चूत को चौड़ी करके अन्दर घुस गया. मैं अनचुदी तो थी नही, इसलिये मुझे कोई तकलीफ़ नही हुई. और एक मस्ती मेरे पूरे शरीर मे छा गयी. मैं जोर से "आह!!" कर उठी.

बलराम भैया मुझे धीरे धीरे चोदने लगे. मैं सबके सामने पैर फैलाये उनसे चुदवाने लगी. शराब का नशा और इतना मोटा मस्त लन्ड. मैं आनंद के सगर मे गोते लगाने लगी. हर धक्के के साथ आह! ओह!! उफ़्फ़!! कर रही थी.

मेरी नज़र वीडिओ कैमेरे की तरफ़ जाती तो मैं और भी कामुक हो उठती. मैने कभी अपनी चुदाई की फ़िल्म नही बनवायी थी.

अमोल एक मन से मेरी चुदाई की वीडिओ बना रहा था. मीना भाभी ने उसकी लुंगी उतार दी थी और उसके खड़े लन्ड को हाथ मे लेकर सहला रही थी. वह खुद घुटनों के बल थी और उसकी पेटीकोट कमर के ऊपर चढ़ी हुई थी. उसके चूतड़ों के पीछे मामाजी थे और उसे कुतिया बनाकर उसको धीरे धीरे चोद रहे थे.

मैने बगल मे नज़र डाली तो देखा विश्वनाथजी पूरे नंगे होकर लेटे थे. उनका 10 इंच का मूसल तनकर खड़ा था और गुलाबी उसे मुंह मे लेकर चूस रही थी. लन्ड इतना मोटा और बड़ा था कि बेचारी के छोटे से मुंह मे पूरा जा भी नही रहा था. पर वह पूरे जोश और हवस के साथ विश्वनाथजी के लन्ड को चूसे जा रही थी.

उसके बगल मे मामीजी अपने पैरों को फैलाये गद्दे पर पड़ी थीं. उनकी पेटीकोट उनके कमर तक चड़ी हुई थी और किशन उनके पैरों के बीच बैठा उनकी मोटी बुर को चाट रहा था. किशन खुद पूरा नंगा हो गया था और उसका लन्ड तनकर खड़ा था.

रामु ने अपनी लुंगी उतार दी थी और पूरा नंगा हो गया था. एक हाथ से वह अपना काला लन्ड हिला रहा था और दूसरे हाथ मे एक गिलास पकड़े, विलायती शराब की चुसकी लेते हुए बाकी सबकी चुदायी देख रहा था.

यह सब देखकर मैं मस्ती की चरम सीमा को पार कर गयी. जोर जोर से चिल्लाते हुए मैं झड़ने लगी.

"ओह! पेलो और जोर से भैया! अपनी बहन को और पेलो! आह!! उम्म!" मैने चिल्लाने लगी, "अमोल! देखो...तुम्हारी वीणा कैसे चुदवा रही है! आह!! आह!! मैं झड़ रही हूँ! आह!! और पेलो! और जोर से पेलो मुझे!! आह!! आह!! आह!!"

मै झड़ रही थी और अमोल मेरी वीडिओ लिये जा रहा था.

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बलराम भैया भी मुझे पेलते पेलते झड़ने लगे. जोर जोर से मेरी चूत मारते हुए बोले, "साली की क्या कसी चूत है! आह!! मुझसे रोका नही जा रहा है! आह!!"
"सोनपुर के बाद ज़्यादा चुदी नही है ना." मामीजी बोली, "इसकी चूत फिर से कस गयी है."
"जीजाजी, भर दीजिये वीणा की चूत अपने वीर्य से!" अमोल उत्तेजित होकर बोला.

"आह! आह!! आह!! आह!!" करते हुए बलराम भैया मेरी चूत मे झड़ गये और मेरे ऊपर ढह गये. उनका लन्ड मेरी चूत मे ही फंसा रहा.

अमोल अब अपनी दीदी की चुदाई की वीडिओ बनाने लगा. मामाजी भाभी को अब भी कुतिया बनाकर चोदे जा रहे थे. वह अपने भाई के लन्ड को मुंह मे लेकर चूसने लगी और अपने ससुर से चुदवाने लगी.

"अमोल बेटा...अपनी दीदी की अच्छी सी वीडिओ बनाओ." मामाजी भाभी को पेलते हुए बोले, "फिर अपने माँ-बाप को भेजो...वह भी तो देखें...उनकी बेटी अपने ससुर...की कितनी सेवा करती है!"

अमोल अपनी दीदी को अपना लन्ड चुसाते हुए उसकी चुदाई की वीडिओ लेने लगा.

अपने दीदी की इतनी अश्लील हालत देखकर वह जोश मे आ गया और भाभी के मुंह को चोदते हुए झड़ने लगा.

उसके पेलड़ का गाढा, सफ़ेद वीर्य उसकी दीदी के मुंह मे गिरने लगा. भाभी पीछे से अपने ससुर के धक्के ले रही थी, इसलिये अमोल का वीर्य उसके मुंह से छलक का गद्दे पर गिरने लगा. अपने भाई का बाकी वीर्य भाभी गटक गयी.

तभी गुलाबी बोली, "अरे कोई हमरी भी तो फिलम बनाओ!" वह अब भी विश्वनाथजी का बांस जैसा लन्ड चुसे जा रही थी.

अमोल ने कैमेरा उसकी तरफ़ किया तो वह उठी और कैमेरा मे सामने बहुत ही कामुक अंदाज़ से अपने चोली खोलने लगी. चोली खोलते ही उसके सुन्दर गदरायी चूचियां नंगी होकर बाहर आ गयी. उसका मंगलसूत्र उसके नंगी चूचियों के बीच लटक रहा था. एक हाथ से अपने एक चूचियों को वह मलने लगी. दूसरे हाथ से उसने अपना घाघरा उठाया और अपनी नंगी चूत को सहलाने लगी.

"अमोल भैया, हमरे जोबन की फिलम अच्छी आ रही है?" वह बोली. वह बहुत ही नशे मे लग रही थी.
"हाँ, गुलाबी. बहुत अच्छी आ रही है." अमोल बोला.
"और हमरी चूत की?" गुलाबी अमोल को अपना घाघरा उठाकर अपनी चूत दिखा के बोली, "हमरी चूत की भी फिलम बनाइये!"
"तु घाघरा उतार, तब अच्छी आयेगी." अमोल बोला.

अब गुलाबी ने अपना घाघरा उतार फेंका और पूरी नंगी हो गयी. वह बहुत नशे मे थी और हद से ज़्यादा चुदासी हो गयी थी. एक रंडी की तरह कैमेरे को दिखा दिखाकर अपने चूत मे उंगली घुसाने लगी.

"अमोल भैया! अब हमरी चुदाई की फिलम बनाइये!" गुलाबी हिचकी लेकर बोली, "साहेब! अब हमरी चूत अपने खूंटे से मारकर फाड़ दीजिये!"

विश्वनाथजी ने गुलाबी को खींचकर अपने बाहों मे ले लिया और उसके नरम होठों को पीने लगे.

फिर उसे गद्दे पर लिटाकर उस पर चढ़ गये. उन्होने अपना विशालकाय लन्ड उसकी छोटी सी बुर पर रखकर जोर का धक्का मारा तो गुलाबी दर्द से चिल्ला उठी. "हाय, मर गयी! मेरी चूत फट जायेगी!"
"विश्वनाथ, ज़रा आराम से." मामाजी भाभी को पेलते हुए बोले, "इसने इतना बड़ा हबशी लन्ड कभी लिया नही है."

विश्वनाथजी ने थोड़ा रुक कर एक और धक्का मारा. गुलाबी की आंखें बड़ी बड़ी हो गयी. अगर वह इतने नशे मे न होती तो शायद डर जाती. उसके पैरों को पकड़कर विश्वनाथजी धीरे धीरे धक्का मारते रहे. आखिर उनका पूरा लन्ड गुलाबी की चूत मे घुस गया.

वह खुद भी नशे मे थे. इसलिये ज़्यादा सब्र नही कर सके. गुलाबी की कसी चूत को अपने विकराल लन्ड से जोर जोर से चोदने लगे.

गुलाबी की आंखें ऐसी हो गयी जैसे वह सांस नही ले पा रही हो. उसकी संकरी चूत विश्वनाथजी के लन्ड के धक्कों से बहुत चौड़ी हो जा रही थी. हर धक्के के साथ लग रहा था बेचारी का दम ही निकल जायेगा!

पर जल्दी ही उसे मज़ा आने लगा. और इतना मज़ा आने लगा कि वह अपने काबू के बाहर हो गयी. चूत के नाज़ुक तंत्रिकाओं पर मोटे लन्ड की रगड़ से उसे इतना सुख मिल रहा था कि वह बर्दाश्त नही कर पा रही थी.

आनप-शनाप बकते हुए गुलाबी जोर से झड़ने लगी. "हाय, फाड़ दो हमरी चूत को! आह!! ओह!! चुद गये हम दईया रे!! अपने मरद के सामने चुद गये!! आह!! उफ़्फ़!! क्या लौड़ा है रे राम! फाड़ दी हमरी चूत को! आह!! आह!! ओह!!"

गुलाबी झड़कर पूरी तरह पस्त हो गयी. लग रहा था चरम आनंद से वह बेहोश हो गयी थी.

विश्वनाथजी ने गुलाबी की चूत से अपने लन्ड को निकाला और कहा, "यह बेचारी तो गयी. अब कौन चुदेगी मुझसे?"
"विश्वनाथजी, मै!" भाभी मस्ती मे बोली, "मुझे चुदना है आपसे!"

मामाजी ने अपना लन्ड भाभी की चूत से निकाला और अलग हो गये.

भाभी अपनी चूत खोलकर लेट गयी. विश्वनाथजी आकर भाभी के पैरों के बीच बैठे और अपना लन्ड उसकी चूत पर रखकर धक्का देने लगे. एक एक धक्के मे लन्ड दो दो इंच अन्दर जा रहा था.

बलराम भैया मेरे ऊपर से उठकर बैठ गये थे. रामु ने उनकी गिलास भर दी थी और वह शराब पी रहे थे और विश्वनाथजी के लन्ड से अपनी प्यारी पत्नी की बर्बादी देख रहे थे.

भाभी अपने पति को देखकर बोली, "देखिये जी...इसी आदमी ने...आपकी मीना को एक रंडी बनाया है! आह!! मिलना चाहते थे ना आप...विश्वनाथजी से? मिल लीजिये! आह!! क्या मोटा लन्ड है! ओह!! लगता है मेरी चूत को...उम्म!! फाड़ ही देगा! और इतना लंबा है...के घुसता है तो लगता है...खतम ही नही होगा! आह!! इसी लौड़े से...आपकी बीवी सोनपुर मे रोज़ चुदती थी! इसी लौड़े ने...आपकी भोली भाली पत्नी को...चुदाई की लत लगायी है!"

बलराम भैया का लन्ड अपनी पत्नी की दशा देखकर फिर खड़ा हो गया था. उनकी माँ उनका लन्ड पकड़कर हिलाने लगी.

विश्वनाथजी भाभी को जोर जोर से चोदने लगे. भाभी का पेट भी मेरी तरह थोड़ा फुल गया था. विश्वनाथजी का मोटा लन्ड जब उसकी चूत मे घुसता तो पेलड़ उसकी गांड पर जाकर लगता. वह मस्ती मे हाथ पाँव मार रही थी.

इधर मैं फिर चुदाई के लिये तैयार हो गयी थी. मैने चिल्लाकर पूछा, "अब कौन चोदेगा मुझे?"

"दीदी, अब मेरी बारी है!" किशन ने कहा और जल्दी से आकर मेरे पैरों के बीच बैठ गया.
"किशन तु इतना बड़ा हो गया कि चूत मार सके?" मैने मज़ाक मे कहा.
"हाँ, दीदी!" किशन मेरी चूत पर अपना लन्ड सेट करता हुआ बोला, "मै तो गुलाबी, भाभी, और माँ को रोज़ ही चोदता हूँ."
"तो मुझे भी चोदकर दिखा तुझे क्या आता है." मैने कहा और अपनी कमर उचकायी.

किशन ने पूरी दक्षता से मेरी चूत मे अपना लन्ड घुसा दिया. उसका लन्ड अपने भैया से एक इंच छोटा था, पर काफ़ी सुन्दर था. मेरे ऊपर लेटकर वह मुझे चोदने लगा.

अमोल विश्वनाथजी के द्वारा अपनी दीदी की जबरदस्त चुदाई का वीडिओ बना रहा था. वह अब मेरी वीडिओ बनाने लगा. उसके सामने उसके मंगेतर को दूसरा आदमी चोद रहा था. उत्तेजना मे उसकी हालत खराब हो रही थी. मैं उसे दिखा दिखाकर किशन से चुदवाने लगी.

मैने पहले कभी किशन से चुदाया नही था. पर लग रहा था भाभी ने अपने देवर को अच्छी शिक्षा दी है. उसके ठापों से मैं जल्दी ही झड़ने के करीब आ गयी.

उधर भाभी विश्वनाथजी को पकड़कर झड़ रही थी. विश्वनाथजी के लन्ड के धक्कों से उसका शरीर बुरी तरह हिल रहा था. अपने पति को दिखा दिखा के कह रही थी, "विश्वनाथजी, चोद डालिये मुझे! आह!! देखिये जी, इसे कहते हैं चुदाई!! आह!! कुछ सीखिये विश्वनाथजी से!! ओह!! देखिये...आपकी बीवी कैसे चुद रही है!! हाय, क्या लौड़ा है! औरत को पागल का देता है!! आह!! आह!! ऊह!!"

विश्वनाथजी भी बहुत हो जोरों से भाभी को पेल रहे थे. वह अपना लन्ड भाभी की चूत से सुपाड़े तक बाहर ले आते और फिर एक जोरदार धक्के से पेलड़ तक पेल देते. उनका पेलड़ भी बहुत बड़ा था और भाभी की गांड मे जा जाकर लग रहा था. अचानक वह जोर से कराहे और भाभी को बेरहमी से पेलते हुए उसकी चूत मे झड़ने लगे.

"हाय, भर दो मेरी चूत को!! विश्वनाथजी, मेरे गर्भ मे आपका ही बच्चा है! हाय, मैं गयी!! मैं गयी!! आह!!" भाभी बड़बड़ाते हुए झड़ गयी.

विश्वनाथजी और भाभी नंगे होकर एक दूसरे से लिपटकर पड़े रहे.

उनकी चुदाई देखकर किशन बहुत ज़्यादा गरम हो गया. मुझे ठोकते हुए वह मेरी चूत मे झड़ने लगा. मेरी चूत पहले ही बलराम भैया के वीर्य से भरी हुई थी. उसमे वह अपना वीर्य मिलाने लगा.

झड़कर किशन मुझसे अलग हो गया. मैं तब मस्ती के शिखर पर थी. खीजकर चिल्लायी, "अबे साला कोई और लन्ड डालो मेरी चूत मे!"

रामु जो मेरी चुदाई देख रहा था और अपना लन्ड हिला रहा था बोला, "मालकिन, हम चोदे अब वीणा दीदी को?"
"हाँ हाँ चोद ले." मामीजी बोली, "छिनाल की चूत है. कोई भी मार ले."

यह सुनते ही रामु जल्दी से आकर मेरे ऊपर चढ़ गया.

मै पहली बार किसी नौकर से चुदवा रही थी. रामु थोड़े कम कद का, काले रंग का हट्टा-कट्टा आदमी था. उसका लन्ड बिलकुल काला था. लंबई किशन जैसी ही थी, करीब 7 इंच की, पर मोटाई बहुत ज़्यादा थी.

जैसे ही उसने मेरी चूत मे अपना मोटा सुपाड़ा घुसया, किशन का खूब सारा वीर्य पचाक! से मेरी चूत से निकल आया. मेरी चूत चौड़ी हो गयी पर वीर्य से मेरी चूत इतनी चिकनी हो चुकी थी कि उसका मोटा लन्ड आराम से अन्दर चला गया. वह मुझे पकड़कर जोरदार धक्कों से चोदने लगा. मुझे उससे चुदवाने मे बहुत मज़ा आने लगा.

"अमोल, तुम्हारे घर मे कोई जवान नौकर है?" मैने चूत मे लन्ड लेते हुए पूछा.
"नही, वीणा. क्यों?" अमोल ने पूछा. वह अब मेरी और रामु की चुदाई की फ़िल्म बना रहा था.
"अरे तुम काम पर जाओगे...तो तुम्हारे पीछे तुम्हारी बीवी किससे चुदवायेगी?" मैने पूछा, "मेरे लिये एक मोटे लन्ड वाला...जवान नौकर रख देना...जो तुम्हारी वीणा को चोदकर शांत रख सके...नही तो एक दिन...घर आकर देखोगे...तुम्हारी बीवी अपनी चूत की गर्मी मिटाने के लिये...किसी रंडीखाने मे चली गयी है!"

सुनकर सब हंसने लगे.
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Re: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग

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मै कमर उठा उठाकर रामु से चुदवा रही थी. रामु मेरे ऊपर लेटकर मेरे नर्म होठों को पी रहा था. उसके मुंह से बीड़ी और शराब की महक आ रही थी, पर मुझे उस समय एक नौकर से चुदने मे बहुत मज़ा आ रहा था.

मैने अपने चारों तरफ़ नज़र डालकर देखा.

गुलाबी को अब होश आ गया था. वह नंगी बैठकर शराब पी रही थी और अपने पति से मेरी चुदाई देख रही थी.

भाभी अभी भी पस्त होकर पड़ी थी, पर मामाजी उस पर चढ़कर उसे चोद रहे थे. वह बस लेटे लेटे लन्ड ले रही थी.

किशन बैठकर शराब पी रहा था.

बलराम भैया लेटे हुए थे. उनका लन्ड तन का खड़ा हो चुका था जिस पर मामीजी चढ़ी हुई थी. वह अपने बेटे का लन्ड अपनी चूत मे ले रही थी और मस्ती मे कराह रही थी.

विश्वनाथजी का लन्ड अब सुस्त हो चुका था, पर तब भी 7-8 इंच का लग रहा था.

और अमोल सबकी वीडिओ बना रहा था.

तभी विश्वनाथजी उठकर आये और मेरे मुंह के पास बैठकर बोले, "वीणा, ज़रा मेरा लन्ड चूसकर खड़ा कर दे, बेटी."

ऐस प्रस्ताव मैं छोड़ने वाली नही थी. उनके लन्ड को पकड़कर मैने अपने मुंह मे ले लिया और मज़े लेकर चूसने लगी. मेरा मुंह उनके लौड़े से भर गया. लन्ड पर भाभी और गुलाबी के चूतों का रस लगा हुआ था और विश्वनाथजी का वीर्य भी. चूसने मे बहुत स्वाद आ रहा था.

नीचे रामु मेरे पैर पकड़कर मुझे चोदे जा रहा था. जल्दी ही विश्वनाथजी का लन्ड तनकर लोहे की तरह सख्त हो गया. 10 इंच का वह हथौड़ा मेरे मुंह मे आधा भी नही समा रहा था.

रामु हुमच हुमचकर मुझे और 10-15 मिनट पेलता रहा. मैं विश्वनाथजी का लन्ड चूसते हुए बीच मे एक बार झड़ भी गयी.

तभी अचानक मुझे जोर जोर से ठोकते हुए रामु झड़ने लगा. मेरी चूत मे उसका वीर्य गिरने लगा. "आह!! आह!! आह!! आह!!" करके वह लंबे लंबे धक्के लगाने लगा और अपना पानी छोड़ने लगा.

रामु झड़ गया तो मेरे ऊपर से हटकर बैठ गया.

मैने अपने मुंह से विश्वनाथजी का लन्ड निकाला और कहा, "विश्वनाथजी, अब मेरी बारी है आपके हबशी लन्ड को लेने की."
"हाँ, वीणा. मैं भी तुझे चोदना चाहता हूँ. बहुत दिन हो गये हैं, तेरी चूत को मारे हुए." विश्वनाथजी बोले.

विश्वनाथजी मेरे पैरों के बीच आये. मेरी चूत से रामु का वीर्य बह रहा था. मेरी गांड के नीचे गद्दा तो गीला हो चुका था क्योंकि मेरी चूत से बलराम भैया और किशन का वीर्य भी निकला था.

विश्वनाथजी ने अपना टमाटर जैसा सुपाड़ा मेरी चूत पर रखा और मेरी चूत मे दबाने लगे. रामु की चुदाई से मेरी चूत चौड़ी हो चुकी थी, पर विश्वनाथजी के मूसल के लिये तैयार नही थी.

"विश्वनाथजी, ज़रा धीरे घुसाइये!" मैने विनती की, "मै आज बहुत दिनो बाद चुद रही हूँ."

विश्वनाथजी मुस्कुराये और कमर के धक्के से मेरी चूत मे अपना गधे जैसे लन्ड घुसाने लगे. मेरी चूत का भोसड़ा बनने मे कोई कमी थी तो वह उस दिन पूरी हो गयी. उनका लौड़ा मेरी चूत को पूरी तरह चौड़ी करके अन्दर समाने लगा. मैं सांस रोक कर पड़ी रही, पर लन्ड जैसे खतम ही नही हो रहा था. जब लन्ड पेलड़ तक घुस गया तो मुझे लगा जैसे मैं अन्दर से बुरी तरह भर गयी हूँ. हालांकि सोनपुर मे मैं विश्वनाथजी से बहुत चुदवाई थी, इतने दिनो बाद उनका लन्ड लेने मे एक नयापन था.

जब मेरी सांसें काबू मे आयी तो मैने कहा, "विश्वनाथजी, अब चोदिये मुझे जी भर के!"

विश्वनाथजी अब मुझे चोदने लगे. अपने लन्ड को मेरी चूत से खींचकर निकालते, फिर पूरा अन्दर पेल देते. हर धक्के मे इतना सुख मिल रहा था कि मेरी जान ही निकली जा रही थी. मेरी आंखें पलट जा रही थी. सांसें बेकाबु हो रही थी. पूरा शरीर मस्ती मे कांप रहा था. मैं जोर जोर से "आह!! आह!! आह!!" करने लगी और विश्वनाथजी के धक्कों का मज़ा लेने लगी.

मेरे बगल मे मामाजी अपनी बहु को चोदते हुए झड़ने लगे. पर भाभी विश्वनाथजी से चुदकर इतनी थक गयी थी कि अपने ससुर के नीचे पुतले की तरह पड़ी रही.

उधर मामीजी बलराम भैया पर चढ़कर चुदे जा रही थी.

अमोल विश्वनाथजी के लौड़े से मेरी चूत के सत्यानाश का वीडिओ बना रहा था.

मैने उसे कहा, "अमोल, शादी के बाद...मै विश्वनाथजी को...घर पर बुलाऊंगी...आह!! और उनसे...ऐसे ही...उम्म!! ...चुदवाऊंगी...आह!! तुम कुछ नही कहना!! मैं उनके लौड़े के बिना...जी नही सकती!!"

अमोल एक हाथ से अपना लन्ड सहला रहा था और दूसरे हाथ मे कैमेरा पकड़कर मेरी वीडिओ बना रहा था.

विश्वनाथजी एक मन से मुझे पेलते जा रहे थे.

और 4-5 मिनट की चुदाई के बाद मैं अपना आपा पूरी तरह खो बैठी. मुझे चूत मे इतना सुख मिल रहा था कि मैं विश्वनाथजी को जकड़कर, उनकी पीठ मे अपने नाखुन गाढ़कर झड़ने लगी. मेरी आंखे पलट गयी और मैं चरम आनंद मे बेहोश हो गयी. चुदाई का ऐसा सुख मुझे सोनपुर मे भी नही मिला था.

जब मुझे होश आया तो देखा विश्वनाथजी मामीजी पर चढ़कर उन्हे चोद रहे थे. बलराम भैया अपनी माँ की चुदाई देख रहे थे और शराब पी रहे थे. भाभी उठ गयी थी और अपने देवर के बाहों मे नंगी बैठी अपनी सास की चुदाई देख रही थी और शराब पी रही थी.

गुलाबी शराब की एक बोतल लेकर बैठी थी और उसमे मुंह लगाकर सीधे बोतल से पी रही थी. वह अब तक नशे मे धुत्त हो चुकी थी. इतनी छोटी सी लड़की न जाने कैसे इतनी बड़ी शराबी बन गयी थी.

मामाजी ने मुझे उठाया और मेरे हाथ मे शराब की एक गिलास देकर बोले, "ले बेटी, थोड़ी पीकर गला तर कर. बहुत बुरी तरह झड़ी है आज तु!"
"नही, मामाजी!" मैने एक घूंट लेकर कहा, "मेरी चुदास अभी मिटी नही है!"
"नही आज के लिये बस कर. चार-चार लन्ड ले चुकी है तु."
"नही, मामाजी!" मैं उनके नंगे बदन से लिपटकर बोली, "अभी तो मुझे अपने अमोल से भी चुदवाना है!"

पर अमोल मामी की चुदाई की वीडिओ बना रहा था. विश्वनाथजी के मोटे लन्ड के जादू से मामीजी भी झड़ने लगी. विश्वनाथजी भी मामीजी को चोदते हुए झड़ने लगे.


सब लोग झड़ कर शांत हो गये तो सब ने शराब की एक एक और गिलास पी. सब नंग-धड़ंग बैठे थे. औरतों की चूतों से मर्दों का वीर्य बह रहा था. सबके शरीर को झड़कर आराम मिल गया था.

मामीजी, जो कि काफ़ी नशे मे थी, बोली, "चलो सब खाना खा लेते हैं. बहुत रात हो चुकी है. गुलाबी, जा रसोई मे और खाने की मेज पर खाना लगा."
"जाते हैं, म-मालकिन!" गुलाबी लड़खड़ाती आवाज़ मे बोली. वह शराब की बोतल लेकर उठने लगी तो उसके पैरों ने जवाब दे दिये. वह फिर बैठ गयी और फिर बोतल को मुंह मे लगाकर शराब पीने लगी.

"माँ, गुलाबी को छोड़िये." भाभी बोली, "यह बेवड़ी तो पूरी टुन्न हो गयी है. मैं जाती हूँ."
"मै भी आती हूँ, भाभी!" मैने कहा.

भाभी और मैं नंगे ही डगमगाते हुए रसोई मे चले गये.

"रामु, अपनी जोरु को समझा," मामीजी बैठक मे बोल रही थी, "यह तो पूरी शराबी बन गयी है. दिन रात शराब पीती रहती है. घर का काम भी शराब पीकर करती है."
"हम का करें, मालकिन!" रामु कह रहा था, "ई अब हमरी कोई बात ही नही सुनती है. जिससे मर्जी चुदवाती है. जब चाहे सराब पीती है."
"चुदवाती है तो चुदवाने दे." मामीजी बोली, "आखिर उस पर घर के मर्दों का भी हक है. पर तु अपने कमरे मे शराब रखनी बंद कर. जब कोई दावत हो तो तेरे मालिक विलायती शराब ला देंगे. तब उसे जितनी पीनी हो पी लेगी."
"ठीक है मालकिन." रामु बोला.

मैने भाभी से पूछा, "भाभी, गुलाबी की उम्र क्या है?"
"18-19 साल की ही है." भाभी हंसकर बोली, "पहले बहुत भोली थी. न शराब पीती थी, न लन्ड चूसती थी, न किसी पराये मर्द से चुदवाती थी. पर सब ने उसे चोद चोदकर पूरी रंडी बना दिया है. अब तो वह हर रोज़ पी पीकर सबसे चुदवाती है."
"यानी उसके बचने की कोई उम्मीद नही है..."
"ननद रानी, तुम तो अच्छी तरह जानती हो - लन्ड और दारु की लत छूटे नही छूटती" भाभी हंसकर बोली.

भाभी और मैने मेज पर खाना लगाया. एक तो नशे मे सब की हालत खराब थी. दूसरे हमे नंगे रहने मे बहुत मज़ा आ रहा था. सब लोग नंगे ही खाने बैठ गये. गुलाबी ने उस रात खाना नही खाया. वहीं गद्दे पर नशे मे धुत्त होकर नंगी सो गयी.

सब लोग खाना खा चुके तो अपने अपने कमरों मे जाने लगे.

मामा और मामीजी अपने कमरे मे चले गये. किशन अपने कमरे मे चला गया. बलराम भैया अकेले ही अपने कमरे मे चले गये. अमोल भी अपने कमरे मे चला गया.

रामु घर की सारी बत्तियां बुझा रहा था. विश्वनाथजी भाभी का हाथ पकड़कर अपने कमरे मे ले जा रहे थे. दोनो पूरी तरह नंगे थे और एक दूसरे का सहारा लेकर डगमगाते हुए चल रहे थे. शायद विश्वनाथजी का भाभी को एक और बार चोदने का इरादा था.
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Re: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग

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भाभी नशे मे झूमती हुई मुझे बोली, "ननद रानीजी! तुम अमोल के कमरे मे जाओ. मेरा भाई अपनी होने वाली पत्नी का इंतज़ार कर रहा है."
"जाती हूँ, भाभी!" मैं खुश होकर बोली.
"अब से तुम अमोल के कमरे मे ही सोना. बिलकुल पति-पत्नी की तरह." भाभी बोली, "और उससे जितना मन हो चुदवाना."
"ठीक है भाभी." मैने कहा.

विश्वनाथजी भाभी का हाथ पकड़कर खींचते हुए बोले, "अरी चल ना! वीणा को कुछ सिखाने की ज़रुरत नही है. तु चल मेरे साथ."
"आपका लन्ड और खड़ा होगा आज?" भाभी ने उनके मुरझाये लन्ड को पकड़कर हिलाया और पूछा.
"खड़ा हुआ तो तेरी गांड मे डालूंगा." विश्वनाथजी बोले, "और नही हुआ तो तेरी नाज़ुक जवानी को बाहों मे लेकर सोऊंगा."
"बाप रे! फिर तो लन्ड खड़ा ना हो यही अच्छा है!" भाभी बोली.

फिर वह विश्वनाथजी से लिपटकर डगमगाते हुए उनके कमरे मे सोने चली गयी.


अमोल अपने कमरे मे नंगा लेटा था. उसका लन्ड तनकर खड़ा था. कमरे मे एक नीली बल्ब जल रही थी. मैं कमरे मे नंगी घुसी और पलंग पर चढ़कर उससे लिपट गयी.
"मेरे जान!" मैं उसे चूमकर बोली.
"अब तो सब से चुदवा चुकी हो. अब ज़रा अपने होने वाले पति का भी हक अदा करो." वह बोला और मेरी चूचियों को मसलने लगा.

मैं शाम से चार-चार मर्दों से चुदवा चुकी थी, पर अमोल की बाहों मे आकर मुझे फिर चुदास चढ़ने लगी. क्योंकि पूरा माहौल ही इतना रोमानी था.

अमोल से अभी मेरी शादी नही हुई थी. पर हम अबसे रोज़ रात को पति-पत्नी की तरह सोने वाले थे और जी भरके चुदाई करने वाले थे. अमोल के या मेरे घरवाले हमे इसकी इजाज़त बिलकुल नही देते, पर मेरे मामाजी के घर पर हमे पूरी इज़ाजत थी.

अमोल और मैं एक दूसरे के नंगे जिस्मों से लिपटकर संभोग मे डूब गये. होठों से हमारे होंठ जुड़ गये थे. हमारे हाथ एक दूसरे के शरीर पर फिर रहे थे. हमारे यौनांग एक दूसरे के यौनांग से रगड़ रहे थे. मेरे नर्म चूचियां उसके कठोर सीने से चिपकी हुई थी. शराब और प्यार का नशा हम दोनो पर चढ़ा हुआ था.

यूं ही प्यार करते करते जाने कब अमोल मेरे ऊपर चढ़ गया और मेरी बुरी तरह चुदी हुई चूत मे अपना लन्ड घुसाकर पेलने लगा. मैं भी कमर उठा उठाकर उसके धक्कों का जवाब देने लगी. हमारी सांसें तेज हो गयी. हम पसीने-पसीने होने लगे. जिस्म से जिस्म और चूत मे लन्ड रगड़ खा रहे थे.

अपने साजन की बाहों मे ऐसी मस्ती पाकर मैं झड़ने लगी. और मर्दों का लन्ड चाहे जितना भी बड़ा और मोटा हो, अपने आदमी से चुदवाकर एक अलग ही मज़ा आता है.

अमोल भी मेरी चूत की गहरायी मे लन्ड डाले झड़ने लगा और मुझ पर लेट गया. अपने चूत मे अमोल के लन्ड को लिये मैं उसके नीचे सो गयी. मुझे याद नही वह मेरे ऊपर से कब उतारा.

दावत के बाद के कुछ हफ़्ते जैसे एक सपने की तरह गुज़रे. घर मे हम सब तरह की अश्लीलता करते थे. कभी अध-नंगे होकर मर्दों को रिझाते थे तो कभी नंगे होकर चुदवाते थे. कभी बैठक मे, कभी कमरों मे, कभी आंगन मे, तो कभी खेत मे, हम अलग अलग साथी के साथ चुदाई करते थे. किसी किसी दिन दावत होती थी तो हम सब शराब पीकर सामुहिक चुदाई करते थे.

हमारी चुदाई की वीडिओ बनायी जाती थी, जिसे हम बाद मे मज़े लेकर देखते थे. खुद को टीवी पर चुदवाते हुए देखकर बहुत ही चुदास चढ़ती थी. मैं दिन मे विश्वनाथजी, मामाजी, बलराम भैया, किशन, या रामु से चुदवाती थी. पर रात को अमोल के साथ उसकी पत्नी की तरह सोती थी. हमे एक दूसरे से बेइंतेहा प्यार हो गया था.

इधर मेरा, भाभी, गुलाबी, और मामीजी का पेट भी काफ़ी बड़ा हो गया था. देखकर साफ़ लगता था कि हम सब गर्भवती हैं. भाभी, गुलाबी, और मामीजी पर तो कोई उंगली नही उठा सकता था क्योंकि वह तीनो शादी-शुदा हैं. पर मैं गाँव मे किसी से नही मिलती थी वर्ना सब सोचते कि मेरा पेट कैसे ठहर गया.

वैसे आजकल मर्दों को हमे चोदकर बहुत मज़ा आ रहा था. हमारे गर्भ मे ना जाने किसका बच्चा था. यही सोचकर उन सबको बहुत उत्तेजना होती थी. वह हमारे मोटे बुर मे लन्ड घुसाकर, हमारे भारी पेट पर चढ़कर हमारी चुदाई करते थे. इस हालत मे हमारी वीडिओ भी बनायी जाती थी जो देखकर बहुत ही अश्लील लगती थी.

अब मेरी शादी को तीन ही हफ़्ते बचे थे. विश्वनाथजी एक दिन हम सब से विदा लेकर सोनपुर लौट गये. उसी दिन मामाजी के पास मेरे पिताजी की चिट्ठी आयी. उन्होने लिखा कि वीणा को अब घर वापस भेज दो. उसे शादी के लिये तैयार होना है.

सुनकर मैं उदास हो गयी. घर जाकर तो मुझे एक भी लन्ड नही मिलेगा. मैं अपने चुदाई की लत को कैसे पूरी करुंगी? मोटे मोटे लन्ड लिये बिना तो मेरे लिये एक दिन भी जीना मुश्किल था.

भाभी बोली, "ननद रानी, तुम चुदाई की छोड़ो! यह सोचो कि इतना बड़ा पेट लेकर तुम अपने घर कैसे जाओगी? तुम्हारे माँ-बाप क्या कहेंगे? पूछेंगे नही कि तुम्हारे पेट मे किसका बच्चा है?"
"कह दूंगी अमोल का है." मैने कहा.
"इससे तुम्हारे मामाजी की बहुत बदनामी होगी." भाभी बोली, "तुम्हारे माँ-बाप कहेंगे तुम्हारे मामा ने अपने घर पर उनकी अनब्याही बेटी को चुदवाने का मौका दिया."

"ऐसा कुछ नही होगा, भाभी!" मैने कहा, "अमोल मेरा गर्भ गिराने ले जायेगा."
"कहाँ?"
"वह हाज़िपुर मे एक डाक्टर को जानता है." मैने कहा.

"हाय राम!" भाभी अपने माथे पर हाथ रखकर बोली, "पागल हो तुम? हाज़िपुर मे सब तुम्हारे मामाजी को जानते हैं. तुम वहाँ गर्भपात करवाने जाओगी तो उनकी इतनी बदनामी होगी कि पूछो मत! हम सबको गाँव छोड़ना पड़ेगा!"
"मामाजी को ही जानते हैं ना. मुझे तो नही!" मैने कहा, "और कोई अमोल को भी नही जानता है. हम कह देंगे हम दूसरे किसी गाँव से आये हैं."

"हूं." भाभी सोचकर बोली, "पर गुलाबी, मै, या मामीजी तो वहाँ नही जा सकते. हाज़िपुर के सब डाक्टर हमे जानते हैं. ऊपर से सवाल उठेगा हम शादी-शुदा होकर पेट क्यों गिराना चाहते हैं."
"तो तुम लोग क्या करोगी?" मैने पूछा.
"बच्चा देना ही पड़ेगा, चाहे बच्चा किसी का भी हो." भाभी बोली, "तुम्हारे भैया, रामु, या ससुरजी को तो कोई आपत्ती नही कि हम हराम के बच्चे को जनम देंगे."
"पर तुम आगे क्या करोगी?" मैने कहा, "सबसे चुदवाकर बार-बार पेट तो नही बना सकती हो?"
"तब की तब देखी जायेगी!" भाभी मुस्कुराकर बोली.

उस रात चुदवाते हुए मैने अमोल से ज़िद की कि वह अगले ही दिन मेरा गर्भ गिराने ले जाये. हालांकि उसे मेरे गर्भवती अवस्था मे चोदने और चुदाने मे बहुत मज़ा आता था वह राज़ी हो गया.


अगले दिन नाश्ते के बाद अपनी साड़ी को ढीली करके पहनकर मैं अमोल के साथ हाज़िपुर के लिये निकली. अमोल तांगे को हाज़िपुर स्टेशन के पीछे एक गली मे ले गया. गली मे एक डाक्टर मिश्रा के दवाखाने की बोर्ड लगी थी.

मैने अमोल का हाथ पीछे खींचकर कहा, "अमोल, मुझे यह कहाँ ले आये हो? मैं यहाँ बचपन मे मामाजी के साथ कई बार आयी हूँ!"
"मै तो बस इसी डाक्टर को जानता हूँ." अमोल ने कहा.
"यह डाक्टर मुझे पहचान लेगा!" मैने कहा, "फिर सोचो मामाजी की इज़्ज़त का क्या होगा!"
"नही पहचान सकेगा तुम्हे." अमोल मुझे खींचकर अन्दर ले जाते हुए बोला, "तुम तब बच्ची थी. अब तुम एक औरत बन गयी हो. ऊपर से तुम्हारा पेट बड़ा हो गया है."

मुझे अमोल दवाखने के अन्दर ले गया.

डाक्टर के कमरे के बाहर कुर्सी पर एक बुड्ढी औरत बैठी खांस रही थी. मुझे देखकर बोली, "बेटी, तबियत खराब है?"
"जी." मैने जवाब दिया.
"और पेट से भी हो?"
"न-नही तो!" मैने झट से कहा और अमोल की तरफ़ देखने लगी.
"अपने पति से शरमा रही हो?" बुढ़िया बोली, "अरे बच्चे तो भगवान की देन होते हैं!"

मैं बुढ़िया को कोसते हुए मन ही मन बोली, यह बच्चा भगवान की देन नही है. यह तो विश्वनाथजी और उनके चार बदमाश दोस्तों की देन है.

बुढ़िया डाक्टर दिखाकर चली गयी तो अमोल मुझे लेकर डाक्टर के कमरे मे गया.


डाक्टर मिश्रा एक अधेड़ उम्र के मोटे ताजे हंसमुख व्यक्ति थे. सर के बाल कुछ उड़ चुके थे और बाकी पक चुके थे. चेहरे पर आधी पकी हुई घनी मूंछे थी.

चश्मे के ऊपर से मुझे देखकर डाक्टर साहब बोले, "इधर बैठो, बेटी. क्या तकलीफ़ है?"

मेरे जवाब देने से पहले ही अमोल बोला, "डाक्टर साहब, वो बात यह है कि..."

डाक्टर साहब अमोल को गौर से देखकर बोले, "तुमको तो मैं पहले भी एक दो बार यहाँ देख चुका हूँ, है ना?"
"जी." अमोल ने जवाब दिया.
"कुछ महीनों पहले तुम एक स्कूल की लड़की को लेकर आये थे. एक मुसलमान लड़की थी. साथ मे उसकी माँ भी थी." डाक्टर साहब याद करके बोले, "और उससे पहले एक कामवाली को लेकर आये थे."
"जी उसी बारे मे..." अमोल बोलने लगा.
"क्यों करते हो यह सब गंदा काम?" डाक्टर साहब थोड़े रोश मे बोले, "अब न जाने किस बेचारी को बर्बाद करके यहाँ लाये हो. तुम बड़े बाप के ऐयाश बेटों को तो जेल होनी चाहिये."

सुनकर मुझे हंसी भी आ रही थी और शरम भी. बेचारा अमोल! मेरा गर्भ किसी और ने बनाया था और डांट उसे सुननी पड़ रही थी. वैसे यह स्कूल की मुसलमान लड़की कौन है? और वह अपनी माँ के साथ गर्भपात करवाने क्यों आयी थी? मुझे भाभी से पूछना पड़ेगा, मैने मन ही मन तय किया.

"जी आप मेरी बात सुनिये तो..." अमोल ने कहा.
"बोलो."
"डाक्टर साहब, इसका भी गर्भ गिराना है." अमोल ने कहा.
"वह तो मैं समझ ही गया हूँ. तुम जैसे लोग मेरे पास अपने पापों को धोने ही आते हो." डाक्टर साहब बोले, "पर तुम मेरी फ़ीस तो जानते ही हो."
"जी मैं रुपये लेकर ही आया हूँ." अमोल ने कहा.
"तुम तो जानते हो ऐसे मामलों मे मैं सिर्फ़ रुपये ही नही लेता हूँ." डाक्टर साहब बोले.
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