मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग complete

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Dolly sharma
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Re: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग

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मैने अपने पति की तरफ़ देखा. वह मुस्कुरा रहे थे पर उनकी आंखों मे वासना छलक रही थी. लुंगी के अन्दर उनका लन्ड ठनक कर खड़ा था.

मैं उनके सीने से लिपट गयी और बोली, "मुझे तो डर लग रहा है जी. और शरम भी आ रही है."

अपने हाथ का बोतल मेरे हाथ मे पकड़ाकर बोले, "इसलिये तो तुम्हारे लिया यह बोतल लाया हूँ. लो, दो चार घूंट गटागट गले से उतार लो. फिर ऐसी मस्ती और चुदास चढ़ेगी कि सब शरम वरम भुल जाओगी और गाँव के चौराहे पर जाकर चुदवाने लगोगी."

मैने कांपते हाथों से शराब की बोतल खोली और अपने मुंह मे लगाकर दो घूंट पी गयी. नीट रम पिघले आग की तरह मेरे गले से नीचे उतारा और मेरा दिमाग झनझना उठा. मैं कुछ देर आंखें बंद किये खड़ी रही.

"बहु, दो चार घूंट और पी. और जा अपने ससुरजी के कमरे मे. मैने उनको सब समझा दिया है." सासुमाँ बोली, "तीनो मर्दों के साथ जी भरके मज़े लूट. तेरे भाई को हम यहाँ सम्भाल लेंगे."

मैने हिम्मत करके और पांच-छह घूंट शराब के पी लिये. जल्दी ही मेरा सर घूमने लगा और पूरे बदन मे मस्ती छा गयी.

नशे में झूमते हुए मैं रसोई के बाहर जाने लगी तो मेरे वह बोले, "अरे मीना, यह बोतल तो छोड़ती जाओ!"
"क्यों जी?" मैने लड़खड़ाती आवाज़ मे कहा, "अभी मुझे घंटे भर चुदना है. यह पूरी बोतल मैं पीऊंगी और चुदवाऊंगी! तुम जाओ और मेरे भाई को लेकर आओ. मैं उसे दिखाऊंगी कि उसकी दीदी भी गुलाबी की तरह अपनी गांड, बुर, और मुंह एक साथ मरा सकती है! जाओ! लेकर आओ मेरे बहनचोद भाई को!"

मैं शराब की बोतल हाथ मे लिये, डगमगाते हुए तुम्हारे मामाजी के कमरे मे चली गयी.

तुम्हारे मामाजी अपने पलंग पर लेटे अखबार पड़ रहे थे. कमरे की खिड़की जो बगीचे पर खुलती थी, खुली हुई थी.

मुझे शराब की बोतल हाथ मे लटकाये, लड़खड़ाते हुए आते देखकर बोले, "अरे बहु, तुने सुबह-सुबह शराब पी ली है?"
"हाँ बाबूजी! मैने बहुत शराब पी है! आपके बेटे अपनी प्यारी पत्नी के लिये यह शराब की बोतल लाये हैं." मैने नशे मे मचलते हुए कहा, "गुलाबी घर की नौकरानी होकर रोज़ शराब पी सकती है तो मैं भी घर की बहु होकर सुबह-सुबह शराब पी सकती हूँ!"
"आ मेरे पास बैठ." ससुरजी बोले.
"आपके पास बैठने नही आयी हूँ, बाबूजी!" मैने कहा. बोतल खोलकर एक और घूंट पीकर मैं पलंग पर चढ़ गयी और उनसे लिपट गयी. "आपसे चुदवाने आयी हूँ! मुझे बहुत चुदास चढ़ी है! कल रात आपसे चुदवाकर मेरी प्यास नही बुझी थी!"

ससुरजी का लन्ड लुंगी मे तुरंत खड़ा हो गया. वह लुंगी मे हाथ डालकर अपने लन्ड को सहलाने लगे.

वह मुझे बोले, "बहु, तेरी तो अभी भरपूर जवानी है. तेरी प्यास भला एक मर्द से थोड़े ही बुझती है."
"तभी तो देवरजी और रामु भी आने वाले हैं!" मैने कहा, "मै आज तीन तीन लन्डों से चुदूंगी! गुलाबी घर की नौकरानी होकर तीन मर्दों से चुदवा सकती है, तो मैं भी घर की बहु होकर तीन तीन मर्दों से चुदवा सकती हूँ!"
"कहाँ है वह दोनो?"
"मादरचोद लोग आते ही होंगे!" मैने कहा, "बाबूजी, आप मेरी जवानी को लूटना शुरु कीजिये. मेरा भाई भी देखे कि उसकी रंडी दीदी कैसे अपने ही ससुर से चुदवाती है."

मैने शराब की बोतल मे मुंह लगयी और एक और घूंट ली तो तुम्हारे मामाजी ने मेरे हाथ से बोतल ले ली और कहा, "बस, बहु. बहुत पी ली है तुने. पी के टल्ली हो जायेगी तो चुदवाने का मज़ा कैसे आयेगा?"
"ठीक कहा आपने, बाबूजी! मैं और नही पीऊंगी!" मैने कहा, और दरवाज़े की तरफ़ चिल्लाकर अपने पति को बोली, "सुनो जी! यह हरामज़ादे लोग क्यों नही आ रहे हैं! यहाँ मेरी चूत लन्ड लेने के लिये पनिया रही है!"

तुम्हारे मामाजी ने हंसकर मुझे अपनी ओर खींच लिया और मेरे नरम, गुलाबी होठों को चूमकर बोले, "बहु, तु पीकर बहुत ही मस्त हो जाती है. वह लोग आते ही होंगे. तब तक मैं तेरी जवानी का मज़ा लेता हूँ."

मेरा आंचल तो पहले से ही गिर चुका था. उन्होने मेरी ब्लाउज़ के हुक खोल दिये तो मेरी सुडौल चूचियां छलक कर बाहर आ गयी.

"बहु, तुने तो ब्रा भी नही पहनी है!" ससुरजी बोले.
"आपको अपने जोबन जो पिलाने हैं!" मैने मचलकर कहा, "मैने तो चड्डी भी नही पहनी है. चुदवाने की पूरी तैयारी करके आयी हूँ, बाबूजी!"
"अच्छा किया तुने, बहु. अब से ब्रा मत पहना कर."
"बाबूजी, मेरा भाई एक बार पट जाये तो मैं तो साड़ी भी नही पहनुंगी." मैने कहा, "बल्कि मैं तो पूरे घर मे नंगी ही घूमूंगी! जहाँ जिसका लन्ड मिले अपनी चूत मे ले लुंगी. और अपने बहनचोद भाई को दिखाऊंगी!"

मेरी ब्लाउज़ उतरते ही मैं ससुरजी के ऊपर चढ़ गयी और उनके मुंह मे अपने निप्पलों को डालकर उन्हे अपनी चूची पिलाने लगी.

"आह!! बाबूजी, अच्छे से चुसिये अपनी पुत्र-वधु के मम्मों को!" मैं मस्ती मे बोली, "बहुत मज़ा आ रहा है! यह मेरा गांडु भाई कहाँ है? साला देख रहा है कि नही कि उसकी रंडी दीदी अपने ही ससुर को अपनी चूची पिला रही है?"
"बहु, अभी आ जायेगा अमोल." ससुरजी बोले, "तु ज़रा अपनी साड़ी-पेटीकोट उतारकर नंगी हो जा."

मै डगमगाते हुए उठी और अपनी साड़ी और पेटीकोट उतारने लगी. मुझे शराब का बहुत ही नशा चढ़ चुका था.

कमरे की खिड़की जो बगीचे मे खुलती थी खुली हुई थी. मैने उधर नज़र डाली तो पाया कोई छुपके अन्दर देख रहा है. मैं समझ गयी वह मेरा भाई ही होगा. मेरा भाई अपनी दीदी को अपने ससुर के कमरे मे नंगी देख रहा था. मैं इतने नशे मे न होती तो शायद घबरा जाती पर. पर उस वक्त मुझे हद से ज़्यादा चुदास चढ़ गयी थी.

उधर ससुरजी ने भी अपनी बनियान और लुंगी उतार दी थी और पूरे नंगे हो गये थे. उनका मस्त मोटा लन्ड तनकर लहरा रहा था. मैं नंगी होकर उन पर टूट पड़ी.

"बाबूजी!" मैं अपने भाई को सुनाकर जोर से बोली, "चोद डालिये अपनी बहु को! अब मुझसे रहा नही जा रहा!"

ससुरजी मेरे नंगे बदन पर चढ़ गये और मेरी बहुत ही गीली चूत मे अपने फूले हुए सुपाड़े को रखकर कमर का धक्का देने लगे. मैं भी अपनी जांघों को पूरी खोलकर उनका स्वागत कर रही थी. एक ही धक्के मे ससुरजी का लन्ड आराम से मे चूत मे घुस गया और उनका पेलड़ मेरी गांड पर लगने लगा.

मैने जोर की आह भरी और अपनी कमर को उचकाने लगी. मेरी हालत को देखकर ससुरजी ने अपना लन्ड मेरी चूत से निकाला और फिर जोर के धक्के मे पूरा पेल दिया.

"आह!" मैने मस्ती मे कहा, "कितना मज़ा आ रहा है, बाबूजी! मुझे ऐसे ही जोर जोर के ठाप लगाइये. मेरी चूत का भोसड़ा बना दीजिये!"

ससुरजी मुझे पेलने लगे और मैं जोर जोर से मस्ती की आवाज़ें निकालने लगी.

मुझे पूरा यकीन था मेरा भाई ससुर-बहु के इस व्यभिचार को मज़े लेकर देख रहा है. उसका खयाल आते ही मैं गनगना उठी और ससुरजी को जकड़कर जोर से झड़ गयी.

ससुरजी अपनी हवस मिटाने के लिये मुझे चोदते रहे और मैं उनके नीचे पड़ी रही.

तभी कमरे का दरवाज़ा खुला और रामु अन्दर आया.

मुझे ससुरजी से चुदते देखकर बोला, "साली कुतिया, सुबह-सुबह अपना मुंह काला करवाने लग गयी? वह भी अपने ससुर से?"
"क्या करूं, रामु? तुम तो जानते हो मैं कितनी चुदैल औरत हूँ!" मैने कहा. मेरा शरीर ससुरजी के धक्कों से हिल रहा था.
"तभी तो हम तेरी चूत फाड़ने आये हैं." रामु बोला और अपनी पैंट उतारने लगा.

उसने चड्डी नही पहनी हुई थी. पैंट उतारते ही उसका काला लन्ड उछलकर बाहर आ गया. "ले रांड! थोड़ा चूस दे हमरे लौड़े को!" उसने हुकुम दिया.

रामु पलंग पर चढ़कर मेरे पास आया तो मैने उसका गरम लन्ड अपने हाथ मे पकड़ा और पूछा, "रामु, मेरा भाई बाहर से देख रहा है, क्या?"
"हाँ, देख रहा है ना." रामु ने अपना लन्ड मेरे मुंह मे ठूंसते हुए कहा, "तेरा बहिनचोद भाई बाहर छुपकर तेरी चूत-मरायी देख रहा है और अपना लौड़ा हिला रहा है. बड़े भैया खुदे भेजे हैं उसे देखने के लिये."

मै मज़े से रामु का लन्ड चूसने लगी और उधर ससुरजी भी मेरी चूत को मारे जा रहे थे. जल्दी ही मैं फिर गरम हो गयी.
तभी कमरे का दरवाज़ा फिर खुला और अब की बार किशन अन्दर आया.

उसे देखकर रामु बोला, "आओ, किसन भैया. मालिक और हम मिलकर तुम्हारी चुदैल भाभी की जवानी की प्यास को बुझा रहे हैं. बहुत छटी हुई रंडी है तुम्हारी भाभी. तुम भी नंगे होकर आ जाओ पलंग पर और लूटो हरामन की जवानी को!"

किशन का लन्ड पहले से ही उसके पजामे को फाड़कर बाहर आ रहा था. अपनी भाभी को बाप से चूत मराते हुए और नौकर का लन्ड चूसते हुए देखकर वह बहुत खुश हो गया. जल्दी से उसने अपने सारे कपड़े उतार दिये और नंगा होकर पलंग पर चढ़ गया.

मेरे दूसरे तरफ़ आकर उसने भी अपना खड़ा लन्ड मेरे हाथ मे दे दिया. मैने रामु का लन्ड अपने मुह से निकाला और किशन का लन्ड चूसने लगी.

बारी बारी से मैं दोनो मर्दों से अपना मुंह चुदवाने लगी. दोनो के मोटे और लंबे लन्ड का सुपाड़ा जा जाकर मेरी हलक मे लग रहा था.

ससुरजी तो मेरी टांगों को पकड़कर एक मन से मुझे चोदे जा रहे थे. उनका मोटा लन्ड मेरी चूत मे घुसता तो जैसे मैं अन्दर से भर जाती और लन्ड बाहर निकल जाता तो जैसे खाली हो जाती. हर धक्के के साथ मेरी नंगी चूचियां नाच उठती थी.

"रामु, आ जा. अब तु चोद ले बहु की चूत को." कुछ देर बाद ससुरजी ने मेरी चूत से अपना मूसल निकाला और कहा.
"मालिक, हम तो इसकी की गांड ही मारेंगे." रामु बोला, "अपनी गांड बहुत हिला हिलाकर चलती है साली."
"ठीक है तु गांड ही मार ले." ससुरजी बोले, "किशन, तो फिर तु ही अपनी भाभी की चूत को मार."

"पर पिताजी, आप?" किशन ने पूछा. घर की बहु की चूत पर बड़ों का पहला हक होता है ना!
"मै तो बहुत गरम हो गया हूँ, बेटा! और चोदुंगा तो मेरा पानी निकल जायेगा." ससुरजी बोले और बगल मे बैठ गये.

किशन और रामु ने मेरे मुंह से अपने लन्ड निकाल लिये.

"किसन भैया, आप इसकी चूत नीचे से मारिये." रामु बोला, "हम जरा ऊपर से इसकी गांड को अच्छे से मारते हैं."

किशन पलंग पर नंगा लेट गया. उसका 7 इंच का लन्ड, मेरी थूक से तर, छत की तरफ़ उठकर हिल रहा था.

"ए बाप की रखैल!" रामु मेरी एक चूची को जोर से भींचकर बोला, "अईसे चूत फैलाये काहे पड़ी है? देखती नही किसन भैया लन्ड खड़ा करके प्रतीक्सा कर रहे हैं? चल उठ और अपनी भोसड़ी मे उनके लन्ड को ले!"

मैं रामु के आज्ञानुसार उठी और अपने देवर के नंगे बदन पर चढ़ गयी. उसके कमर के दोनो तरफ़ अपने घुटने रखकर मैने अपनी चूत उसके खड़े लन्ड पर रख दी.
रामु ने किशन के लन्ड को पकड़कर मेरी चूत के फांक मे रखा और बोला, "साली, गांड का धक्का लगा और ले ले अपनी चूत मे लन्ड को."

मैने किशन के लन्ड पर दबाव डाला तो उसका लन्ड पेलड़ तक मेरी चूत मे घुस गया.

मै बहुत जोश मे आ गयी थी. किशन के होठों को पीते हुए मैं अपनी कमर जोर जोर से हिलाने लगी और उसके लन्ड पर चुदने लगी.

"कुतिया, अपनी गांड इतनी काहे हिला रही है?" रामु चिल्लाया, "हम अपना लौड़ा कैसे डालेंगे?"

मैने अपनी कमर हिलानी बंद की तो रामु किशन के दो पैरों के बीच बैठ गया. मेरे चूतड़ों को अलग करके उसने अपने लन्ड का मोटा, काला सुपाड़ा मेरी गांड के छेद पर रखा. उसका लन्ड पहले से ही मेरी थूक से तर था. मेरी कमर को जोर से पकड़कर वह सुपाड़े को मेरी गांड के छेद मे दबाने लगा.

"रामु, आराम से घुसाना नही तो लगेगा!" मैने कहा.
"चुप कर, छिनाल!" रामु ने मुझे डांटकर कहा, "गांड मरायेगी तो लगेगा ही. ज्यादा नखरे करेगी तो तेरी गांड मार मारकर फाड़ देंगे!"

उसकी इन बदतमीज़ी भरी बातों से मेरी चुदास और भी बढ़ गयी. न जाने मेरा भाई मेरे बारे मे क्या सोच रहा होगा! उसकी दीदी सिर्फ़ अपने ससुर, देवर, और नौकर से चुदवाती ही नही है. घर का नौकर उसे एक रंडी की तरह बेइज़्ज़त कर कर के चोदता भी है.
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Re: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग

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रामु का लन्ड मेरी गांड मे पेलड़ तक घुस गया. हालांकि मैं गांड बहुत मरवा चुकी थी, पर रामु का लन्ड औरों की अपेक्षा मोटा है. मेरे गांड की स्नायु पूरी फैल गयी और मेरी गांड उसके लन्ड से पूरी भर गयी.

मेरी चूत मे मेरे देवर का लन्ड भी पेलड़ तक घुसा हुआ था. मेरा शरीर एक सुखद अनुभुति से सिहरने लगा. मेरे गांड और चूत के स्नायु दोनो लौड़ों को जकड़ने लगे.

"आह!! रामु, अब मेरी गांड को अच्छे से मारो!" मैने कराहकर कहा, "देवरजी, तुम भी मेरी चूत को अच्छे से मारो!"

किशन नीचे से अपनी कमर उचकाने लगा जिससे उसका लन्ड मेरी चूत मे आने-जाने लगा. रामु ने अपना लन्ड खींचकर सुपाड़े तक निकाल लिया, फिर धक्का लगाकर अन्दर तक पेल दिया. दोनो मिलकर मेरी चूत और गांड का कचूमर बनाने लगे.

5-7 मिनट की लगातार ठुकाई के बाद मैं और खुद को सम्भाल नही पायी. एक तो शराब का नशा. ऊपर से मेरी चूत और गांड मे दो दो मोटे लन्ड! मैं अपने आपे से बाहर हो गयी. मैं जोर जोर से मस्ती मे कराहने लगी और बिस्तर के चादर को मुट्ठी मे लेकर नोचने लगी.

"ऊह!! रामु! कितना मज़ा आ रहा है...तुम्हारा काला लन्ड...गांड मे लेने मे!! आह!! आह!! देवरजी! और जोर से पेलो! उम्म!! और जोर से! रामु! आह!! फाड़ दो मेरी गांड! आह!! मैं बस झड़ने वाली हूँ! ओह!!"

रामु जोर जोर से मेरी गांड को पेलने लगा. "ले साली कुतिया! गांड मराने का...बहुत शौक है न तुझे! ले मेरा लन्ड गांड मे...ले और जी भर के झड़!" रामु बोला.

मेरी चूत और गांड मे एक साथ दो दो लन्डों की पेलाई से मुझे इतना तीव्र सुख मिलने लगा कि मैं जोर से झड़ गयी. जोर जोर से आह!! आह!! आह!! आह!! करके मैं अपना पानी छोड़ने लगी.

"अरे किसन भैया!" रामु बोला, "ई साली तो झड़ गयी! ठहर, साली! हम भी तेरी गांड भरते हैं अपनी मलाई से!"

मैं इधर झड़ रही थी और उधर रामु जोर जोर से मेरी गांड मारते हुए झड़ने लगा. वह मेरी पीठ पर लेट गया था और ऊंघ!! ऊंघ!! करके मेरी गांड की गहराइयों मे अपना वीर्य भरने लगा.

रामु झड़ गया तो तुम्हारे मामाजी बोले, "रामु, तु उतर. अब मैं थोड़ी बहु की चूत मारुं."

आज्ञाकारी सेवक की तरह रामु मेरी पीठ पर से उठ गया और मेरी गांड से अपना चिपचिपा लन्ड निकाल लिया. मेरी गांड से उसका वीर्य रिसने लगा.

मेरा देवर अब भी मुझे नीचे से चोदे जा रहा था.

ससुरजी उसके पाँव के बीच बैठे तो मैने सोचा अब वह मेरी गांड मे अपना लन्ड डालेंगे. पर वह अपने लन्ड का सुपाड़ा मेरी चूत पर दबाने लगे.

"बाबूजी, यह आप क्या कर रहे है?" मैने हैरान होकर पूछा.
"तेरी चूत मे अपना लन्ड घुसा रहा हूँ, बहु!"
"पर बाबूजी, मेरी चूत मे तो पहले से ही देवरजी का लन्ड है!"

"अरे तु रुक ना!" ससुरजी ने कहा. वह अपना लन्ड पकड़कर मेरी चूत मे घुसाने की कोशिश कर रहे थे. "चूत मे दो दो लन्ड लेगी तो बहुत मज़ा आयेगा. तु पहले कभी ली नही ना, इसलिये डर रही है. बलराम और मैने तेरी सास की चूत मे एक साथ अपना लन्ड डाला था. वह भी बहुत मज़ा ली थी."
"पर बाबूजी, सासुमाँ की चूत तो पूरी भोसड़ी है. मेरी चूत तो फट जायेगी!"
"चूत मराकर कभी कोई चूत फटी नही है, बहु! चाहे लन्ड एक हो कि पांच. बस...प्यार से...डालना चाहिये..." ससुरजी मेरी चुत पर अपने मोटे सुपाड़े को दबाकर बोले.

मै किशन के लन्ड को चूत मे लिये उसके नंगे सीने पर पड़ी रही. अपनी मुट्ठी मे मैने बिस्तर के चादर को जोर से पकड़ रखा था.

थोड़ी कोशिश के बाद ससुरजी के लन्ड का सुपाड़ा मेरी चूत मे घुस गया. मेरे कमर को पकड़कर उन्होने अपने कमर से जोर लगाया तो उनका लन्ड भी मेरी चूत मे पूरा घुस गया. अब बाप-बेटे दोनो के लन्ड साथ साथ मेरी चूत मे घुसे हुए थे.

वीणा, मुझे लग रहा था जैसे मेरी चूत चौड़ी होकर इंडिया गेट बन गयी है! मैने पहले कभी अपनी चूत को इतना भरा हुआ महसूस नही किया था.

अब बाप और बेटा मेरी चूत को मिलकर चोदने लगे. कभी कभी ताल मे उन दोनो का लन्ड एक साथ मेरी चूत मे घुसता और निकलता. और कभी एक घुसता तो दूसरा निकलता. अपनी इस मजबूर हालत में मुझे इतना मज़ा आने लगा कि मैं फिर से गरम हो गयी.

उन दोनो के लन्ड मेरी चूत के अन्दर एक दूसरे से घिस रहे थे और उन्हे बहुत आनंद आ रहा था. किशन ने ऐसा मज़ा पहले कभी नही लिया था. वह मस्ती मे कराहने लगा और झड़ने लगा.

ससुरजी भी और एक मिनट ही पेल सके. वह भी मेरी चूत मे अपना वीर्य छोड़ने लगे. दोनो बाप और बेटे एक साथ अपने वीर्य से मेरी चूत की सिंचाई करने लगे.

मेरी चूत इतनी चौड़ी हो गयी थी कि लन्डों की पेलाई से "फचक! फचक!" आवाज़ हो रही थी और हर धक्के के साथ बहुत सारा वीर्य बाहर निकल रहा था.

पूरे झड़ जाने के बाद ससुरजी मेरी पीठ पर लेट गये. उनका लन्ड मेरी चूत मे घुसा ही रहा. मैं अपने ससुर और देवर के बीच पिचक कर पड़ी रही. मेरी प्यास अभी बुझी नही थी, पर यह दोनो तो खलास हो गये थे.

उधर रामु जो अब तक मेरी चुत की दोहरी चुदाई देख रहा था, खिड़की के पास गया और बाहर देखने लगा.

फिर पलंग के पास आकर बोला, "मालिक, जरा उठकर देखिये अमोल भैया का कर रहे हैं!"
"क्या कर रहा है अमोल?" मैने उत्सुक होकर पूछा, "अपनी दीदी की सामुहिक चुदाई देख रहा है कि नही?"
"नही, भाभी. खिड़की के पास आइये तो दिखायें!" रामु ने कहा.

ससुरजी मेरी पीठ पर से उठ गये और उन्होने मेरी चुत से (जिसे अब भोसड़ी कहना ज्यादा ठीक होगा) अपना लन्ड निकाल लिया. मैं जल्दी से किशन के ऊपर से उठ गयी और नंगी ही खिड़की के पास चली गयी. मेरी चूत से मेरे ससुर और देवर का भरपूर वीर्य निकलकर मेरी जांघों पर बहने लगा.

मेरा नशा थोड़ा उतर गया था. इसलिये मेज़ के ऊपर से मैने शराब की बोतल भी उठा ली और जल्दी से दो घूंट गले से उतार ली.

कमरे की खिड़की बगीचे मे खुलती थी. यहीं खड़े होकर अमोल ने मेरी चुदाई देखी थी. पर अब वह वहाँ नही था.

खिड़की से थोड़ा हट के बगीचे मे एक नींबू का पेड़ है. वहाँ घाँस पर सासुमाँ लेट हुई थी. वह ऊपर से नंगी थी और उनकी साड़ी और पेटीकोट कमर तक चढ़ा हुआ था. अमोल उनके ऊपर चढ़ा हुआ था. वह पूरा नंगा था और हुमच हुमचकर सासुमाँ को चोद रहा था. उसका गोरा गोरा लन्ड सासुमाँ को मोटी बुर के अन्दर बाहर हो रहा था. वह सासुमाँ की विशाल चूचियों को मसल रहा था और सासुमाँ उसके जवान होठों को मज़े से पी रही थी. दोनो चुदाई मे इतने डूबे हुए थे कि उन्हे खबर ही नही थी कि हम उन्हे देख रहे हैं.

तभी पीछे से कमरे का दरवाज़ा खुला और मेरे पतिदेव अन्दर आये. आते ही उन्होने देखा हम चारों नंगे होकर खिड़की के बाहर झांक रहे हैं.

उन्हे देखते ही मैं मुस्कुरा दी.
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ससुरजी तुम्हारे भैया को देखकर बोले, "बलराम, तो तेरी माँ ने तेरे साले को पटा ही लिया! जाने कब से तरस रही थी उसका लन्ड अपनी बुर मे लेने के लिये."
"हाँ, पिताजी." मेरे वह बोले, "मै और अमोल खिड़की से मीना की सामुहिक चुदाई देख रहे थे. बेचारे को अपनी दीदी के कुकर्म देखकर इतनी चढ़ गयी कि वह पूरा नंगा हो गया और अपना लन्ड हिलाने लगा. तभी योजना के मुताबिक माँ वहाँ आ गयी. मैं तो वहाँ से भाग गया, और माँ ने जल्दी ही अमोल को पटा लिया."

"सुनो जी, फिर तो लगता है हमारी योजना सफ़ल हो गयी है." मैने खुश होकर कहा, और बोतल में मुंह लगाकर एक और घूंट शराब की पी. "आज रात गुलाबी अमोल के साथ नही सोयेगी. मैं अपने भाई के कमरे मे जाऊंगी और उससे चुदवाऊंगी."
"हाँ, मीना. ऐसा ही करो." मेरे वह बोले और मेरी नंगी चूची को पीछे से दबाने लगे. "तुम आज रात अपने भाई से चुदवा लो. कल उससे वीणा के बारे मे बात छेड़ना. मुझे लगता है वह वीणा से शादी करने तो तैयार हो जायेगा."
"ठीक है, जी." मैने कहा, "पर अभी तुम ज़रा मेरी चूत मार दो ना! मेरी अभी उतरी नही है. जल्दी से अपना लौड़ा मेरी भोसड़ी मे पेल दो."
"तुम्हारी चूत भोसड़ी कब से हो गयी?" तुम्हारे भैया ने पूछा.
"आज से." मैने हंसकर कहा, "बाबूजी और देवरजी ने तुम्हारी प्यारी पत्नी की चूत मे एक साथ अपने लन्ड घुसाये थे. ऐसा चलता रहा तो जल्दी ही मेरी चूत मे तुम अपना हाथ घुसा सकोगे."
"चिंता मत करो. सब ठीक हो जायेगा." तुम्हारे भैया बोले, "जवानी मे औरत की चूत बहुत लोचदार होती है."

तुम्हारे बलराम भैया ने जल्दी से अपने कपड़े उतार दिये और नंगे हो गये. उनका लन्ड बिल्कुल खड़ा था. अमोल से अपनी माँ की चुदाई देखकर वह पहले से ही बहुत गरम थे.

मै खिड़की के चौखट पर नंगी झुकी हुई थी. उन्होने ने मेरी कमर पकड़कर पीछे से मेरी चूत पर अपना लन्ड रखा और धक्का लगाकर अन्दर पेल दिया. फिर पीछे से मेरी चूचियों को मसलते हुए मुझे चोदने लगे.

बाहर नींबू के पेड़ के तले मेरा भाई अभी भी तुम्हारी मामीजी को चोदे जा रहा था. उन्हे देखते हुए हम पति-पत्नी चुदाई करने लगे.
रामु, किशन, और ससुरजी भी हमारे पास नंगे खड़े होकर अमोल और सासुमाँ को देख रहे थे.

"मीना, तुम्हारी चूत सच मे थोड़ी ढीली हो गयी है." मुझे पेलते हुए मेरे पति बोले, "अभी कुछ दिन अपने चूत को आराम दो. कोई मोटा लन्ड अन्दर मत लो."
"अभी कुछ दिन मैं अपने भाई के साथ ही सोऊंगी और उसी से चुदवाऊंगी." मैने जवाब दिया.

बाहर मेरा भाई अब बहुत जोर जोर से सासुमाँ को चोद रहा था. दोनो की मस्ती की आवाज़ हमे साफ़ सुनाई पड़ रही थी.

इधर अपने पति के धक्कों से मैं भी पूरे मस्ती मे आ चुकी थी. मैं भी जोर जोर से कराहने लगी.

मेरी आवाज़ सुनकर अमोल ने खिड़की की तरफ़ देखा तो हम दोनो की नज़रें मिल गयी. मेरी आंखें नशे मे मस्त और हवस से लाल थी. पति के जोरदार धक्कों से मेरी नंगी चूचियां उछल रही थी. मेरे दोनो तरफ़ ससुरजी, किशन और देवर नंगे खड़े थे और मेरी चूचियों को दबा रहे थे.

पर मैने अपनी नज़रें नही हटायी. एक तो मैं शराब के नशे मे थी. दूसरे मुझे अपने भाई के सामने चुदाकर बहुत कामुकता चढ़ गयी थी. अमोल की आखों मे आंखें डालकर मैं चुदवाती रही.

अमोल ने भी मेरी आंखों से आंखें नही हटायी. मुझे देखते हुए वह सासुमाँ को चोदता रहा. हम भाई-बहन एक दूसरे से नज़रें मिलाये हुए अपनी चुदाई मे लगे रहे. फिर मुझसे रहा नही गया और मैं मुस्कुरा दी. मुझे मुस्कुराते देखकर अमोल भी मुस्कुरा दिया और झेंपकर उसने अपनी नज़रें झुका ली.

उसके बाद वह सासुमाँ के होठों को पीते हुए उन्हे हुमच हुमचकर चोदने लगा.

कुछ देर की चुदाई के बाद सासुमाँ ने उसे जोर से जकड़ लिया और जोर जोर से कराहती हुई झड़ने लगी. अमोल भी और रुक नही सका. वह भी सासुमाँ की बुर मे अपना वीर्य गिराने लगा.

जब दोनो शांत हुए तो अमोल उठा और नीचे गिरे हुए अपने कपड़ों को पहनने लगा. उसका सर झुका हुआ था, पर बीच-बीच मे वह मेरी तरफ़ देख रहा था. मैं मुस्कुराकर उसे देखती हुई अपने पति से चुदवाये जा रही थी.

कपड़े पहनकर अमोल और सासुमाँ घर के अन्दर चले गये.

कुछ देर मे तुम्हारे भैया मुझे चोदते हुए झड़ गये और मैं भी खलास हो गयी.

जब हम सबकी हवस शांत हुई तो मैने कपड़े पहने और बाहर निकली.

अमोल का कहीं कुछ पता नही था. रसोई मे गयी तो सासुमाँ वहाँ बैठकर काम कर रही थी. उनके चेहरे पर बहुत तृप्ति थी, जैसे कोई मनचाही चीज़ उन्हे मिल गयी हो.

मुझे देखकर बोली, "बहु, तेरा भाई तो बहुत ही स्वादिष्ट माल है रे! तु भी जल्दी से उसे चखकर देख!"
"हाँ, माँ. आज रात ही चखती हूँ उसे!" बोलकर मैं काम मे लग गयी.

वीणा, उसके बाद भी बहुत कुछ हुआ, पर वह मैं अगले ख़त मे लिखूंगी. यह ख़त ऐसे ही बहुत बड़ा हो गया है!

तुम्हारी कलमुही भाभी

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Re: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग

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मीना भाभी की चिट्ठी पढ़कर मुझे यह तो समझ मे आ गया कि उन लोगों ने मिलकर मेरे अमोल को कैसे भ्रष्ट किया था. पर मुझे बहुत उत्सुकता हो रही थी कि उन्होने आखिर अमोल को मुझसे शादी करने के लिये कैसे राज़ी किया.

इस बीच अमोल की भी एक प्यारी सी चिट्ठी आयी जिसे मैने कई बार पढ़ा और सम्भालकर रख दिया. फिर मैने उसे एक सुन्दर सा जवाब लिख भेजा.

भाभी की चिट्ठी अगले दिन आयी. मैं उसे अपने कमरे मे ले जाकर पढ़ने लगी.

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मेरी प्यारी वीणा,

आशा करती हूँ तुम्हे मेरा पिछला ख़त मिल गया है. पढ़कर तुम समझ गयी होगी कि हमे तुम्हारे लिये एक अच्छा वर ढूंढने के लिये कितने पापड़ बेलने पड़े! आज के ख़त मे मैं तुम्हे बताती हूँ मैने अपने भाई को तुमसे शादी करने के लिये कैसे राज़ी किया.

उस रात खाने की टेबल पर एक अजीब स्थिति थी. अमोल चुपचाप खाना खा रहा था और बीच-बीच मे मेरी तरफ़ देख रहा था. हमारी आंखें मिलने पर मैं मुस्कुरा देती थी और वह शरमा के अपनी आंखें नीची कर लेता था.

सब ने चुपचाप खाना खाया और अपने अपने कमरों मे चले गये. खाना खाते ही अमोल अपने कमरे मे चला गया और बत्ती बुझाकर सो गया.

रोज़ रात की तरह जब गुलाबी एक शराब की बोतल लेकर अमोल के कमरे मे जाने लगी तो मैने उसे रोक कर कहा, "गुलाबी, ला बोतल मुझे दे."
"काहे भाभी?"
"अरे दे ना!" मैने उसके हाथ से बोतल लेकर कहा, "आज अमोल के साथ मैं सो*ऊंगी."
"आप सोयेंगी? काहे? रोज तो अमोल भैया के साथ हमे सोते हैं." गुलाबी बोली.

"क्यों, अमोल तेरा मरद लगता है क्या?" मैने पूछा.
"पर ऊ तो आपके छोटे भाई हैं!"
"तो क्या हुआ? उसके पास लन्ड है. मेरे पास चूत है. आज उसका लन्ड मैं अपनी चूत मे लुंगी." मैने जवाब दिया.

"तो हमरा का होगा!" गुलाबी बोली, "हम तो सुबह से बइठे हैं अमोल भैया से चुदाने के लिये."
"आज रात किसी और से चुदवा ले." मैने कहा, "बाबूजी अकेले होंगे. आज उनके साथ सो जा."

"और हमरी सराब की बोतल?"
"वह मैं पी लुंगी." मैने कहा, "शराब पीकर अपने भाई से चुदवाऊंगी."
"पर भाभी, हमको भी तो पीनी है! हम अब रोज रात को सराब पीते हैं."
"और दिन मे भी पीती है. बेवड़ी कहीं की!" मैने कहा, "बाबूजी के कमरे मे एक बोतल होगी. तेरे बड़े भैया मेरे लिये लाये हैं. विलायती माल है. जा वही पी ले."

गुलाबी खुश होकर ससुरजी के कमरे में चली गयी तो मैने अमोल का कमरा धीरे से खोला और अन्दर गयी. मैने सिर्फ़ अपनी ब्लाउज़ और पेटीकोट पहनी हुई थी. आज साड़ी, ब्रा, या चड्डी नही पहनी थी.

कमरे मे अंधेरा था. मेरी आवाज़ सुनकर अमोल बोला, "गुलाबी, आ गयी तु? कब से लन्ड खड़ा करके इंतज़ार कर रहा हूँ!"

मैने कोई जवाब नही दिया और पलंग के पास रखे मेज़ पर शराब की बोतल रख दी.

"गुलाबी, बोतल इधर दे. थोड़ा गला तर कर लूं." अमोल बोला, "और बत्ती जला दे. ज़रा तेरी जवानी पर अपनी आंखें फेरूं."

मैने बत्ती नही जलायी. शराब की बोतल खोलकर चार-पांच घूंट पी गयी.

रामु न जाने अपनी बीवी को कौन सी शराब पिलाता है, पर पीकर मुझे लगा मेरे गले और सीने मे आग लग गयी है. खैर किसी तरह मेरा गले का जलना रुका तो मैं पलंग पर चढ़ गयी और अमोल के पास लेटकर उससे लिपट गयी.

मेरा भाई पूरा नंगा लेटा था. मैने उसके सीने पर हाथ फेरा फिर अपना हाथ नीचे ले जाकर उसके खड़े लन्ड को पकड़ लिया. साथ ही अपने होंठ उसके होठों पर रखकर उसके गहरे चुंबन लेने लगी. देसी शराब के नशे और चुदास मे मेरा जिस्म गोते लगाने लगा था. अपनी ही छोटे भाई के जवान, मर्दाने होठों को पीकर मेरी चूत से मस्ती का पानी चुने लगा.

"गुलाबी, तुझे आज हो क्या गया है? मैने कहा बोतल मुझे देना!" अमोल ने हैरान होकर पूछा. फिर मेरे होठों को थोड़ा पीकर बोला, "गुलाबी? तुम तो गुलाबी नही हो!"
"उंहूं!" मैने जवाब दिया.

अमोल ने मेरी चूचियों को हाथ से टटोला. फिर थोड़ा रुक कर बोला, "दीदी?"
"हूं!" मैने उसका लन्ड हिलाते हुए जवाब दिया.

अमोल झटके से मेरी बाहों से छुटकर लपका और पलंग से उतरकर उसने बत्ती जला दी.

मै एक ब्लाउज़ और पेटीकोट मे उसके बिस्तर पर लेटी मुस्कुरा रही थी. और वह ज़मीन पर पूरा नंगा खड़ा था. उसका मोटा लन्ड तनकर लहरा रहा था.

अमोल ने बिस्तर पर से चादर खींचकर अपने नंगेपन को ढकने की कोशिश की तो मैने उससे चादर छीन ली.

"भाई, ऐसा क्या मुझसे छुपा रहा है जो मैने देखा नही है?" मैने शरारत से पूछा "आज बगीचे मे सासुमाँ के ऊपर पूरा नंगा चढ़ा हुआ था, तब तो शरम नही आयी थी!"

"दीदी, तु मेरे कमरे मे क्या कर रही है?" उसने पूछा, "गुलाबी कहाँ है?"
"तेरी रखैल आज मेरे ससुरजी का बिस्तर गरम कर रही है." मैने कहा, "इसलिये मैने सोचा..आज तेरा बिस्तर मैं गरम किये देती हूँ."

"दीदी, क्या बक रही है तु?" अमोल ने कहा. उसका लन्ड अब भी फनफना रहा था. "तुने शराब पी रखी है?"
"हाँ, पी रखी है तो?" मैने मचलकर कहा, "रोज़ गुलाबी तेरे साथ शराब पीती है तब तो तु कुछ नही कहता!"
"वह घर की नौकरानी है. और तु घर की बहु. घर की बहुयें शराब नही पीती." अमोल ने कहा.
"भाई, घर की बहुयें अपने ससुर, देवर और नौकर के साथ नंगी होकर रंगरेलियां भी नही मनाती." मैने हंसकर कहा, "पर तेरी दीदी एक छटी हुई छिनाल है. सब कुछ करती है. तुने तो सब खिड़की से देखा है आज. फिर इतना हैरान क्यों हो रहा है?"

अमोल चुप रहा तो मैने पूछा, "क्यों भाई, मुझे मेरे यारों के साथ देखकर मज़ा नही आया?"
"मुझे तो देखकर अपनी आंखों पर विश्वास नही हो रहा था. दीदी, तु यह सब कैसे कर सकती है?" अमोल ने कहा.
"पर तुझे मज़ा तो बहुत आया होगा!" मैने कहा, "नही तो खुले बगीचे मे सासुमाँ की इतनी ठुकाई नही करता."

अमोल ने जवाब नही दिया तो मैने कहा, "अरे बता ना, भाई! तुझे अपनी दीदी की नंगी जवानी कैसी लगी?"

वह कुछ नही बोला तो मैने उठकर अपने ब्लाउज़ के हुक खोल दिये जिससे मेरी गोरी गोरी चूचियां छुटकर बाहर आ गई.
अपने नंगी चूचियों को अपने हाथों मे पकड़कर कहा, "यह देख. इन्ही मस्त चूचियों को मेरे ससुरजी पी रहे थे."

अमोल ने मेरी नंगी चूचियों को अच्छे से देखा. उसका लन्ड ठुमक रहा था.

वह बोला, "दीदी, यह कैसा घर है तेरा! मुझे तो कुछ समझ मे नही आ रहा है. तु अपने ससुर और देवर के साथ...और जीजाजी भी तेरे कुकर्मो को देखकर मज़ा लेते हैं! गुलाबी तो एक वेश्या से भी गिरी हुई है. और भी न जाने क्या क्या होता है तेरे घर मे!"
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Re: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग

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मैं अमोल के पास गयी और उसके हाथ को पकड़कर पलंग के पास ले आयी.

"अमोल, सब बातें खड़े-खड़े ही करेगा? आ जा बिस्तर पर लेटकर बातें करते हैं." मैने कहा.
"दीदी मेरे कपड़े दे." उसने कहा.
"अरे कपड़ों का क्या करेगा? रोज़ तो गुलाबी के साथ नंगा ही सोता है!" मैने कहा, "मै भी अपने कपड़े उतारकर ही सो*ऊंगी. तु एक काम कर. बत्ती बुझा दे और नाइट बल्ब जला दे."

अमोल ने बत्ती बुझा दी और नाइट बल्ब की हलकी नीली रोशनी कमरे मे छा गयी. फिर वह पलंग पर मेरे पास आकर बैठ गया.

"भाई, लेट जा इधर." मैने कहा तो अमोल मेरे बगल मे लेट गया और बोला, "पर दीदी, मुझे हाथ नही लगाना."
"क्यों रे? देख, मैं तो नंगा मर्द देखती हूँ तो खुद को रोक नही पाती हूँ. खासकर जब उसका ऐसा मोटा, मस्त लौड़ा हो." मैने कहा और उससे लिपट गयी. मेरी नंगी चूचियां उसके नंगे बदन से चिपक गयी.

अमोल ने कुछ नही कहा. बस गहरी सांसें लेने लगा. धुंधली रोशनी मे उसका लन्ड खड़ा होकर ठुमक रहा था.

मैने अमोल के नंगे सीने पर हाथ फेरते हुए कहा, "अमोल, अपनी दीदी को प्यार नही करेगा?"
"दीदी, मैं तेरा भाई हूँ!" अमोल ने कहा.
"तो क्या हुआ?" मैने पूछा और अपना हाथ नीचे ले जाकर उसके खड़े लन्ड को पकड़ लिया. मुझ पर शराब का अच्छा नशा चढ़ चुका था और मुझे अमोल के साथ खिलवाड़ करने मे बहुत मज़ा आ रहा था.

"भाई है तो क्या तु मर्द नही है? और मैं बहन हूँ तो क्या औरत नही हूँ?" मैने पूछा, "मैं तो भई बहुत गरम हो चुकी हूँ - और कहते हैं ना, गीली चूत का कोई इमान-धरम नही होता है. और तेरा औज़ार जैसे खड़ा है...उससे तो लग रहा है तेरा इमान-धरम भी डांवा-डोल हो रहा है! आजा, भाई. मौका भी है और घर के सबकी अनुमति भी है. जी भर के प्यार कर अपनी दीदी को! लूट अपनी दीदी की जवानी को!"

अमोल चुप रहा तो मैने उसके निप्पलों को मुंह मे लेकर चूसना शुरु किया. एक हाथ से उसके गरम लन्ड को हिलाना जारी रखा.

मैने उसके कान को जीभ से चाटकर कहा, "क्यों भाई, अपने लन्ड पर दीदी का कोमल हाथ कैसा लग रहा है?"

अमोल भारी आवाज़ मे बोला, "ओह, दीदी!"

अचानक वह मेरी तरफ़ मुड़ा और मुझे पीठ के बल लिटाकर मेरे ऊपर टूट पड़ा. अपने होंठ मेरे होठों पर रखकर मुझे आवेग मे चूमने लगा. उसके हाथ मेरी नंगी चूचियों को मसलने लगे. उसने अपना एक पाँव मेरी जांघ पर चढ़ा दिया और उसका खड़ा लन्ड मेरी जांघ पर रगड़ खाने लगा.

"बहुत जोश मे आ गया, अमोल?" मैने छेड़कर कहा.
"दीदी, तु एक रंडी है." उसने भारी चुंबनों के बीच कहा, "तेरे और गुलाबी जैसी लड़की मैने कभी नही देखी."
"और हमारे जैसा मज़ा भी कोई और औरत नही दे सकती." मैने कहा.

"गुलाबी को तो देख लिया." अमोल बोला, "अब तुझे चोदकर देखुंगा तु कितना मज़ा देती है."
"हाँ, भाई! चोद अपनी दीदी को!" मैने भी उसके लन्ड को पकड़कर हिलाते हुए कहा, "बहुत प्यासी है तेरी दीदी...चोद डाल उसे अपने लन्ड से! आह!! और दबा मेरी चूचियों को...मसल दे अपनी रंडी दीदी की चूचियों को! आह!! भाई, तु नही जानता तेरी दीदी की इन चूचियों को...कितने मर्दों मे पिया है और दबाया है! आह!! उम्म!! चूस मेरी चूचियों को!"

अमोल मेरी चूचियों को बेरहमी से दबाने और चूसने लगा. मैं अपने ही छोटे भाई के साथ संभोग मे डूबी, मस्ती के सातवें आसमान पर थी. उसके मोटे लन्ड को पकड़कर मैं हिलाने लगी और उसके बड़े बड़े गोटियों को उंगलियों से छेड़ने लगी. न जाने कितनी मलाई थी उसके गोटियों मे. मैं पहले से गर्भवती नही होती तो अमोल का वीर्य चूत मे लेकर ज़रूर गर्भवती हो जाती.

अमोल और मैं कुछ देर एक दूसरे के नंगे जिस्मों से खेलते रहे.

जब मुझसे और नही रहा गया मैने कहा, "भाई, अब चोद मुझे. मेरी चूत मे अपना लन्ड पेल दे!"

अमोल उठा और उसने मेरी कमर पर से पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया. फिर मेरी पेटीकोट को बलपूर्वक खींचकर मेरे पाँव से अलग कर दिया. अब मैं नीचे से नंगी हो गई. ऊपर मैने सिर्फ़ ब्लाउज़ पहन रखी थी जो सामने से खुली हुई थी.

अमोल बहुत जोश मे था. वह मेरे पैरों के बीच बैठ गया और उसने मेरे जांघों को चौड़ा कर दिया. फिर अपना खड़ा लन्ड मेरी फैली हुई चूत के बीच रखकर सुपाड़े को रगड़ने लगा.

वीणा, तब मैं सोचने लगी, यह मेरे सगे छोटे भाई का लन्ड है. अब तक जो हुआ सो हुआ. पर अब वह मेरी चूत मे अपना लन्ड पेलने वाला है. भाई बहन के बीच यह सब बहुत गलत है. ऐसा अनाचार करने पर हम दोनो को ही नरक मे जाना पड़ेगा! पर उस वक्त मुझे शराब का भी बहुत नशा चढ़ा हुआ था. और अमोल जैसे सुन्दर नौजवान के साथ चुम्मा-चाटी करके मैं बहुत चुदासी हो गयी थी. अपने ही भाई से चुदवाने की कल्पना करके मैं बहुत उत्तेजित भी हो रही थी.

जैसा कि हमेशा होता है, आखिर चुदास की ही जीत हुई. मैं अमोल से विनती करके बोली, "भाई, और मत सता अपने दीदी को! पेल दे मेरी चूत मे अपना लन्ड!"

अमोल भारी आवाज़ मे बोला, "दीदी!" और एक जोरदार धक्के से अपना लन्ड लगभग पूरा मेरी चूत मे पेल दिया.

वह मेरे ऊपर लेटकर मुझे चूमने लगा. मैं भी उसके नंगे बदन से लिपटकर उसे चूमने लगी. उसके पीठ पर और बालों मे अपने हाथ फेरने लगी.

मेरी चूत मे अपने ही भाई का लन्ड घुसा हुआ था. ऐसे कुकर्म की कल्पना मैने नही की थी. अपनी कमर उचका उचका कर मे उसका लन्ड अपने चूत के अन्दर बाहर करने लगी. अमोल भी कमर उठाकर मुझे चोदने लगा.

"कैसा लग रहा है अपनी दीदी को चोदकर, अमोल?" मैने पूछा.
"बहुत मज़ा आ रहा है, दीदी!" अमोल मुझे चूमकर बोला.
"मेरी चूत ज़्यादा मस्त है कि गुलाबी की?" मैने पूछा.
"सच कहूं?"
"हाँ. मैं बुरा नही मानुंगी."
"तेरी चूत गुलाबी से ढीली है. लगता है तु बहुत ज़्यादा चुदी हुई है."
"हाँ रे. तेरी दीदी बहुत चुदी हुई है." मैने उसका ठाप लेते हुए कहा, "एक तो तेरे जीजाजी बहुत चोदू हैं. ऊपर से तुने तो देखा, घर के सब मर्दों के लन्ड कितने मोटे है. सबके लन्ड ले लेकर मेरी यह हालत हुई है. गुलाबी तो अभी बच्ची है. ज़्यादा चुदी नही है."

अमोल सुनकर और उत्तेजित हो गया और जोर जोर से मुझे चोदने लगा.

कुछ देर चोदकर उसने पूछा, "दीदी, तु शादी के पहले से ही...चुदी हुई थी क्या?"
"नही रे, पर चुदवाने का बहुत मन करता था!" मैने कहा, "आनंद भैया के कमरे से...स्नेहा भाभी की मस्ती की आवाज़ें आती थी...तो मेरी चुदास से हालत खराब हो जाती थी...चूत मे उंगली कर कर के ठंडी होती थी."

अमोल चुप होकर कुछ देर मुझे चोदता रहा, तो मैने पूछा, "क्या रे अमोल, तु स्नेहा भाभी के बारे मे सोचने लगा क्या?"
"नहीं, दीदी." अमोल बोला और अपनी कमर हिलाता रहा.

"वैसे स्नेहा भाभी है बहुत सुन्दर. कैसी गदरायी हुई है. और कितनी सुन्दर, भरी भरी चूचियां है उसकी!" मैने उसे छेड़कर कहा, "आनन्द भैया को बहुत मज़ा देती होगी."
"दीदी, छोड़ यह सब." अमोल मुझे काटकर बोला, "तु घर के बाहर भी चुदवाई है क्या?"
"हाँ रे."
"बाहर किस किससे चुदवाती है तु?"
"अब नही चुदवाती...मौका नही मिलता." मैने अपनी कमर उचकाते हुए कहा, "पर सोनपुर मे चार-पांच लोगों से बहुत चुदवाई थी."
"क्या! चार पांच से?" अमोल चौंक कर बोला, "दीदी, तु तो बिलकुल ही गिरी हुई है!"

"अरे मेरा कसुर नही था." मैने सफ़ाई दी, "वीणा और मैं सोनपुर मे मेला देखने गये थे...मेले से चार बदमाशों ने हम दोनो को उठा लिया...और जंगल मे ले जाकर हमारा बलात्कार किया था."
"बलात्कार!"
"हाँ. पर हमें बहुत मज़ा आया था...जबरदस्ती की चुदाई मे." मैने कहा, "वहीं से यह सब शुरु हुआ."
"क्या सब?"
"यही...चुदाई की लत." मैने कहा. "अगले दिन उन बदमाशों ने घर पर आकर...हमारी फिर जम के चुदाई की...सासुमाँ भी उस रात चुदी थी. हमे इतना मज़ा आया कि अब बिना चुदवाये एक दिन भी नही रहा जाता."

अमोल कुछ देर मुझे चोदता रहा, फिर बोला, "दीदी, और किससे चुदाई है तु?"
"सोनपुर मे जिसके घर रुके थे...विश्वनाथजी...मै उनसे भी बहुत चुदवाती थी." मैने अमोल का ठाप लेते हुए कहा, "9-10 इंच का लौड़ा था उनका...उफ़्फ़! वीणा और मैं तो दिवाने थे उनके लन्ड के!"

"दीदी, यह वीणा कौन है?" अमोल ने पूछा.
"तु उसे नही जानता...रिश्ते मे मेरी ननद लगती है." मैने कहा, "तेरे जीजाजी की बुआ जो रतनपुर मे रहती है...उनकी बड़ी बेटी है."
"शादी-शुदा है?"
"नही, अभी शादी नही हुई है." मैने कहा, "क्यों, तुझे उससे शादी करनी है क्या?"
"नही तो." अमोल बोला, "मैने तो उसे देखा भी नही है."
"तुने वीणा को देखा होगा...मेरी शादी मे आयी थी." मैने अमोल का ठाप खाते हुए कहा, "लंबी, गोरी, दुबले बदन की लड़की है...बड़ी, बड़ी, काली आंखें हैं...उठी हुई कसी कसी चूचियां हैं...बहुत ही सुन्दर लड़की है...हर कोई मर्द नज़र भर भर के देखता है उसे."
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