आंटी और उनकी दो खूबसूरत बेटियाँ complete
- shubhs
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Re: आंटी और उनकी दो खूबसूरत बेटियाँ
Nice
सबका साथ सबका विकास।
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, और इसका सम्मान हमारा कर्तव्य है।
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- rangila
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Re: आंटी और उनकी दो खूबसूरत बेटियाँ
Thanks
मकसद running.....जिंदगी के रंग अपनों के संग running..... मैं अपने परिवार का दीवाना running.....
( Marathi Sex Stories )... ( Hindi Sexi Novels ) ....( हिंदी सेक्स कहानियाँ )...( Urdu Sex Stories )....( Thriller Stories )
- rangila
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Re: आंटी और उनकी दो खूबसूरत बेटियाँ
करीब 5 मिनट ही हुए होंगे कि आंटी ने मेरा सर चूत से हटा दिया और मेरा कन्धा पकड़ कर मुझे उठा दिया और झट से नीचे बैठ गई। आंटी की तड़प देखते ही बनती थी। सच में जब औरत गरम हो जाती है तो उसे रोकना मुश्किल हो जाता है।
नीचे बैठते ही उन्होंने मेरा लोअर नीचे खींचा और मेरे लंड को आज़ाद करके अपने हाथों में भर कर ऊपर नीचे सब तरफ से देखने लगी मानो पहली बार देख रही हो। मुझे लगा कि वो अब मेरा लंड अपने नर्म होंठों के रास्ते अपने मुँह में भरेगी और मुझे लंड चुसाई का असीम सुख देगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। मैंने अपना लंड उनके होंठों से लगाया तो उन्होंने मेरी तरफ देखकर ऐसा किया मानो पूछ रही हो कि क्या करूँ।
मैंने लंड को उनके होंठों पे रगड़ा तो उन्होंने लंड के चमड़े को खोलकर सुपारे पे एक चुम्मी दे दी और उठ गई। मैं उदास हो गया लेकिन फिर यह सोचा कि शायद उन्होंने कभी लंड चूसा नहीं होगा इसलिए ऐसा किया। कोई बात नहीं, मैं उन्हें भी उनकी बेटियों की तरह लंड कि दीवानी बना दूँगा। फिर तो वो 24 घंटे लंड अपने मुँह में ही रखेंगी।
आंटी उठ कर सीधे बिस्तर पर लेट गई। उनका आधा शरीर बिस्तर पर था और आधा बाहर। यानि उनकी कमर तक बिस्तर पर और कमर से नीचे पैर तक बिस्तर के नीचे। मैंने समय न गंवाते हुए उनकी साड़ी को पैरों से ऊपर उनकी कमर तक उठा दिया और एक बार फिर से झुक कर चूत को चूम लिया, फिर उनके पैरों को अपने कन्धों पर रख कर अपने लंड को सीधे उनकी हसीं चूत के मुँह पर रख दिया। लंड का सुपारा उनकी चूत के मुँह पर रगड़ कर मैंने सुपारे को बिल्कुल सही जगह फिट कर दिया अब बस धक्का मारने की देरी थी और मेरा लंड उनकी चूत को चीरता हुआ अन्दर चला जाता।
आंटी ने बिस्तर की चादर को अपनी मुट्ठी में भर लिया और अपनी चूत को उठाकर पेलने का इशारा किया। उनकी आँखें बंद थी और दांतों को कस लिया था मानो वो आने वाले तूफ़ान के लिए पूरी तरह से तैयार हों।
उनकी यह दशा देखकर मैंने उन्हें तड़पाना सही नहीँ समझा और अपने सुपारे को हल्का हल्का रगड़ते हुए धीरे धीरे अन्दर की तरफ ठेलना शुरू किया। हल्के से दबाव के साथ लंड का अगला हिस्सा उनकी चूत के अन्दर आधा जा चुका था। अब मैंने उनकी जांघों को अपने अपने हाथों से मजबूती से पकड़ा और एक जोर का झटका दिया और आधा लंड अन्दर घुस गया।
“ग्गुऊंन… इस्स स्स्स… धीरे…. ह्म्म्म…” आंटी ने अपने दांत पीसते हुए लंड का प्रहार झेला और धीरे से बोलीं।
मैंने बिना रुके एक और झटका मारा और जड़ तक पूरे लंड को उनकी चूत में ठोक दिया।
“आआअह्ह्ह्ह… ज़ालिम… धीरे कर ना… आज ही सारे कर्म कर देगा क्या?” आंटी ने एक लम्बी चीख के साथ प्यार से गालियाँ देते हुए कहा।
ज़ालिम तो मुझे मेरी प्रिया कहती है… उसकी माँ के मुँह से अपने लिए वही शब्द सुनकर मैं खुश हो गया और धीरे धीरे धक्के मारने लगा। हर धक्के के साथ आंटी सिसकारियाँ भरती जा रही थीं और उनकी चूत गीली होती जा रही थी।
“हाँ… बस ऐसे ही करता जा… बहुत तड़पी हूँ तेरे लिए…” आंटी ने प्यार से मेरी तरफ देखते हुए कहा।
“जितनी तड़प आपने कल रात से मेरे अन्दर भरी है उतनी तड़प तो मैंने आज तक महसूस नहीं की थी… अब तो बस आप देखती जाओ मैं क्या क्या करता हूँ।” मैंने अपने धक्कों का आवेग बढ़ाते हुए कहा।
“तो कर ले ना, रोका किसने है… लेकिन अभी तो जल्दी जल्दी कर ले… आह्ह्हह्ह… कोई आ न जाये… उफफ्फ… कर… और कर…” आंटी मुझे जोश भी दिला रही थीं और जल्दी भी करने को कह रही थीं ताकि कोई देख न ले और गड़बड़ न हो जाए।
एक बात थी कि उनके मुँह से कोई अभद्र शब्द नहीं निकल रहे थे… या तो वो बोलती नहीं थीं या फिर मेरे साथ पहली बार चुदाई करने की वजह से खुल नहीं पा रही थीं।
खैर मैंने अब अपनी स्पीड को और भी बढ़ा दिया और ताबड़तोड़ धक्के लगाने लगा। पलंग के पाए चरमराने लगे थे और लंड और चूत के मिलन की मधुर ध्वनि पूरे कमरे में गूंजने लगी थी। मैं अपने मस्त गति से उन्हें चोदे जा रहा था और अब आंटी ने भी अपनी कमर को ऊपर उठाकर लंड को पूरी तरह से निगलना शुरू कर दिया था।
घप्प्प… घप्प्प्प… घप्प्प… घप्प्प… बस यही आवाजें निकल रही थीं हमारे हिलने से….
करीब 10 मिनट तक ऐसे ही लंड पेलते पेलते मैंने उनकी टाँगे छोड़ दिन और हाथों को आगे बढाकर उनकी चूचियों को थाम लिया।चूचियाँ मसलकर चुदाई का मज़ा ही कुछ और है और औरतों को भी इसमें चुदाई का दुगना मज़ा आता है।
लंड और चूत दोनों हो कल रात से तड़प रहे थे इसलिए अब चरम पे पहुँचने का वक़्त हो चला था। लगभग 20 मिनट के बाद मैंने एक बार फिर से उनके टांगों को अपने कंधे पे रख कर ताबड़तोड़ धक्कम पेल शुरू कर दी और उनके चूत की नसों को ढीला कर दिया।
“हाँ… हाँ… ऐसे ही कर… और जल्दी… और जल्दी… कर मेरे सोनू… और तेज़… आऐईईई…” आंटी मस्त होकर सिसकारियाँ भरने लगीं और मुझे और तेज़ चुदाई के लिए उकसाने लगीं।
“उफफ्फ… मैं आई… मैं आईई… ओह्ह्ह… ओह्ह्हह… आआऐ ईईइ।” आंटी के पैर अकड़ गए और वो एकदम से ढीली पड़ गईं।
अचानक हुई तेज़ चुदाई से आंटी अपने चरम पे पहुँच गईं और अकड़ कर अपने चूत से कामरस की बरसात करने लगी जो सीधा मेरे लंड के सुपारे को भिगो रही थी। चूत के अन्दर लंड पे हो रही गरम गरम रस के बरसात ने मेरे सब्र का बाँध भी तोड़ दिया और मैंने भी एक जोर के झटके के साथ अपने लंड की पिचकारी उनके चूत के अन्दर छोड़ दी…
“अआह्ह… आह्ह्ह्ह… अआह्ह… उम्म्मम्म।” मेरे मुँह से बस ये तीन चार शब्द निकले और मैंने ढेर सारी पिचकारियों से उनकी चूत को सराबोर कर दिया।
हम दोनों पसीने से लथपथ हो चुके थे और एक दूसरे से चिपक कर लम्बी लम्बी साँसें ले रहे थे।
एक घमासान चुदाई के बाद हम शिथिल पड़ गए और करीब 10 मिनट तक ऐसे लेटे रहे। फिर आंटी ने मेरे सर पे हाथ फेरा और मेरे कानों में धीरे से कहा, “अब उठ भी जा….बहुत देर हो गई है।”
मुझे भी होश आया, मैं उनके ऊपर से उठा और अपने लंड को उनकी चूत से बाहर खींचा।
‘पक्क !’ की आवाज़ के साथ मेरा लंड उनकी चूत से बाहर आ गया और उनकी चूत से हम दोनों का मिश्रित रस टपक कर नीचे फर्श पर बिखर गया। आंटी ने अपने साड़ी के नीचे के साए से अपनी चूत को पौंछा और मेरी तरफ देख कर मुस्कुरा दी।
आंटी ने जैसे ही अपनी चूत पोछ कर साफ़ की मैंने झुक कर एक पप्पी ले ली और उका हाथ पकड़ कर उठा दिया। आंटी उठ कर अपनी साड़ी और ब्लाउज ब्रा को ठीक करने लगी और सब ठीक करके मेरे सीने से लग कर मेरे चेहरे पे कई सारे चुम्बन दे कर मेरे लंड को अपने हाथों से पकड़ कर झुक कर उस पर एक चुम्बन ले लिया।
“आज से तुम मेरे हुए… मेरा शेर…” आंटी ने मेरे लंड को चूमते हुए कहा और फिर मुस्कुरा कर मुझे देखकर दरवाज़े की तरफ बढ़ गईं।
मैंने अपना लोअर ऊपर किया और उन्हें जाते हुए देखता रहा। उनके जाते ही मैं बाथरूम में गया उर अपने लंड को साफ़ कर लिया क्यूंकि प्रिया कभी भी आकर मेरे लंड को अपने हाथों में ले सकती थी और अगर लंड को इस हालत में देखती तो सवालों की झड़ी लग जाती और शायद मैं उसे कुछ भी समझा नहीं पाता।
कमरे में आकर बिस्तर पे गिर पड़ा और चुदाई की थकान की वजह से नींद के आगोश में समां गया।
शादी वाले घर से लौटने के बाद भी सिन्हा आंटी के साथ बड़े हसीं पल बिताने का मौका मिला था मुझे और मैं चाहता था कि आप सब को उसके बारे में बताऊँ।
सिन्हा आंटी के साथ साथ रिंकी और प्रिया के साथ भी यौवन के उस खेल का भरपूर आनन्द लिया मैंने और यह सिलसिला करीब तीन सालों तक चलता रहा।
पर फिर वही हुआ जो अक्सर होता आया है, सिन्हा जी का तबादला हो गया और हम बिछुड़ गए।
उन सब से बिछड़ने के इतने दिनों बाद मैंने देसीबीज़ पर यह कहानी लिखी और संयोगवश प्रिया ने इस कहानी को पढ़ा। यूँ तो वो कनाडा में है आजकल और उसने कहानी भी वहीं पढ़ी, लेकिन कहानी के जरिये सब कुछ जान कर वो बहुत दुःखी हुई।
ज़ाहिर है यारो… उसने मुझसे सच्ची मोहब्बत जो की थी…
प्यार तो मैंने भी सिर्फ और सिर्फ उसी से किया था लेकिन यह कमबख्त लण्ड नहीं माना और मैंने उसकी बहन और माँ के साथ भी चुदाई का खेल खेल लिया।
दोस्तो ये कहानी ख़तम फिर चलेंगे एक और नये सफ़र पर
समाप्त
नीचे बैठते ही उन्होंने मेरा लोअर नीचे खींचा और मेरे लंड को आज़ाद करके अपने हाथों में भर कर ऊपर नीचे सब तरफ से देखने लगी मानो पहली बार देख रही हो। मुझे लगा कि वो अब मेरा लंड अपने नर्म होंठों के रास्ते अपने मुँह में भरेगी और मुझे लंड चुसाई का असीम सुख देगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। मैंने अपना लंड उनके होंठों से लगाया तो उन्होंने मेरी तरफ देखकर ऐसा किया मानो पूछ रही हो कि क्या करूँ।
मैंने लंड को उनके होंठों पे रगड़ा तो उन्होंने लंड के चमड़े को खोलकर सुपारे पे एक चुम्मी दे दी और उठ गई। मैं उदास हो गया लेकिन फिर यह सोचा कि शायद उन्होंने कभी लंड चूसा नहीं होगा इसलिए ऐसा किया। कोई बात नहीं, मैं उन्हें भी उनकी बेटियों की तरह लंड कि दीवानी बना दूँगा। फिर तो वो 24 घंटे लंड अपने मुँह में ही रखेंगी।
आंटी उठ कर सीधे बिस्तर पर लेट गई। उनका आधा शरीर बिस्तर पर था और आधा बाहर। यानि उनकी कमर तक बिस्तर पर और कमर से नीचे पैर तक बिस्तर के नीचे। मैंने समय न गंवाते हुए उनकी साड़ी को पैरों से ऊपर उनकी कमर तक उठा दिया और एक बार फिर से झुक कर चूत को चूम लिया, फिर उनके पैरों को अपने कन्धों पर रख कर अपने लंड को सीधे उनकी हसीं चूत के मुँह पर रख दिया। लंड का सुपारा उनकी चूत के मुँह पर रगड़ कर मैंने सुपारे को बिल्कुल सही जगह फिट कर दिया अब बस धक्का मारने की देरी थी और मेरा लंड उनकी चूत को चीरता हुआ अन्दर चला जाता।
आंटी ने बिस्तर की चादर को अपनी मुट्ठी में भर लिया और अपनी चूत को उठाकर पेलने का इशारा किया। उनकी आँखें बंद थी और दांतों को कस लिया था मानो वो आने वाले तूफ़ान के लिए पूरी तरह से तैयार हों।
उनकी यह दशा देखकर मैंने उन्हें तड़पाना सही नहीँ समझा और अपने सुपारे को हल्का हल्का रगड़ते हुए धीरे धीरे अन्दर की तरफ ठेलना शुरू किया। हल्के से दबाव के साथ लंड का अगला हिस्सा उनकी चूत के अन्दर आधा जा चुका था। अब मैंने उनकी जांघों को अपने अपने हाथों से मजबूती से पकड़ा और एक जोर का झटका दिया और आधा लंड अन्दर घुस गया।
“ग्गुऊंन… इस्स स्स्स… धीरे…. ह्म्म्म…” आंटी ने अपने दांत पीसते हुए लंड का प्रहार झेला और धीरे से बोलीं।
मैंने बिना रुके एक और झटका मारा और जड़ तक पूरे लंड को उनकी चूत में ठोक दिया।
“आआअह्ह्ह्ह… ज़ालिम… धीरे कर ना… आज ही सारे कर्म कर देगा क्या?” आंटी ने एक लम्बी चीख के साथ प्यार से गालियाँ देते हुए कहा।
ज़ालिम तो मुझे मेरी प्रिया कहती है… उसकी माँ के मुँह से अपने लिए वही शब्द सुनकर मैं खुश हो गया और धीरे धीरे धक्के मारने लगा। हर धक्के के साथ आंटी सिसकारियाँ भरती जा रही थीं और उनकी चूत गीली होती जा रही थी।
“हाँ… बस ऐसे ही करता जा… बहुत तड़पी हूँ तेरे लिए…” आंटी ने प्यार से मेरी तरफ देखते हुए कहा।
“जितनी तड़प आपने कल रात से मेरे अन्दर भरी है उतनी तड़प तो मैंने आज तक महसूस नहीं की थी… अब तो बस आप देखती जाओ मैं क्या क्या करता हूँ।” मैंने अपने धक्कों का आवेग बढ़ाते हुए कहा।
“तो कर ले ना, रोका किसने है… लेकिन अभी तो जल्दी जल्दी कर ले… आह्ह्हह्ह… कोई आ न जाये… उफफ्फ… कर… और कर…” आंटी मुझे जोश भी दिला रही थीं और जल्दी भी करने को कह रही थीं ताकि कोई देख न ले और गड़बड़ न हो जाए।
एक बात थी कि उनके मुँह से कोई अभद्र शब्द नहीं निकल रहे थे… या तो वो बोलती नहीं थीं या फिर मेरे साथ पहली बार चुदाई करने की वजह से खुल नहीं पा रही थीं।
खैर मैंने अब अपनी स्पीड को और भी बढ़ा दिया और ताबड़तोड़ धक्के लगाने लगा। पलंग के पाए चरमराने लगे थे और लंड और चूत के मिलन की मधुर ध्वनि पूरे कमरे में गूंजने लगी थी। मैं अपने मस्त गति से उन्हें चोदे जा रहा था और अब आंटी ने भी अपनी कमर को ऊपर उठाकर लंड को पूरी तरह से निगलना शुरू कर दिया था।
घप्प्प… घप्प्प्प… घप्प्प… घप्प्प… बस यही आवाजें निकल रही थीं हमारे हिलने से….
करीब 10 मिनट तक ऐसे ही लंड पेलते पेलते मैंने उनकी टाँगे छोड़ दिन और हाथों को आगे बढाकर उनकी चूचियों को थाम लिया।चूचियाँ मसलकर चुदाई का मज़ा ही कुछ और है और औरतों को भी इसमें चुदाई का दुगना मज़ा आता है।
लंड और चूत दोनों हो कल रात से तड़प रहे थे इसलिए अब चरम पे पहुँचने का वक़्त हो चला था। लगभग 20 मिनट के बाद मैंने एक बार फिर से उनके टांगों को अपने कंधे पे रख कर ताबड़तोड़ धक्कम पेल शुरू कर दी और उनके चूत की नसों को ढीला कर दिया।
“हाँ… हाँ… ऐसे ही कर… और जल्दी… और जल्दी… कर मेरे सोनू… और तेज़… आऐईईई…” आंटी मस्त होकर सिसकारियाँ भरने लगीं और मुझे और तेज़ चुदाई के लिए उकसाने लगीं।
“उफफ्फ… मैं आई… मैं आईई… ओह्ह्ह… ओह्ह्हह… आआऐ ईईइ।” आंटी के पैर अकड़ गए और वो एकदम से ढीली पड़ गईं।
अचानक हुई तेज़ चुदाई से आंटी अपने चरम पे पहुँच गईं और अकड़ कर अपने चूत से कामरस की बरसात करने लगी जो सीधा मेरे लंड के सुपारे को भिगो रही थी। चूत के अन्दर लंड पे हो रही गरम गरम रस के बरसात ने मेरे सब्र का बाँध भी तोड़ दिया और मैंने भी एक जोर के झटके के साथ अपने लंड की पिचकारी उनके चूत के अन्दर छोड़ दी…
“अआह्ह… आह्ह्ह्ह… अआह्ह… उम्म्मम्म।” मेरे मुँह से बस ये तीन चार शब्द निकले और मैंने ढेर सारी पिचकारियों से उनकी चूत को सराबोर कर दिया।
हम दोनों पसीने से लथपथ हो चुके थे और एक दूसरे से चिपक कर लम्बी लम्बी साँसें ले रहे थे।
एक घमासान चुदाई के बाद हम शिथिल पड़ गए और करीब 10 मिनट तक ऐसे लेटे रहे। फिर आंटी ने मेरे सर पे हाथ फेरा और मेरे कानों में धीरे से कहा, “अब उठ भी जा….बहुत देर हो गई है।”
मुझे भी होश आया, मैं उनके ऊपर से उठा और अपने लंड को उनकी चूत से बाहर खींचा।
‘पक्क !’ की आवाज़ के साथ मेरा लंड उनकी चूत से बाहर आ गया और उनकी चूत से हम दोनों का मिश्रित रस टपक कर नीचे फर्श पर बिखर गया। आंटी ने अपने साड़ी के नीचे के साए से अपनी चूत को पौंछा और मेरी तरफ देख कर मुस्कुरा दी।
आंटी ने जैसे ही अपनी चूत पोछ कर साफ़ की मैंने झुक कर एक पप्पी ले ली और उका हाथ पकड़ कर उठा दिया। आंटी उठ कर अपनी साड़ी और ब्लाउज ब्रा को ठीक करने लगी और सब ठीक करके मेरे सीने से लग कर मेरे चेहरे पे कई सारे चुम्बन दे कर मेरे लंड को अपने हाथों से पकड़ कर झुक कर उस पर एक चुम्बन ले लिया।
“आज से तुम मेरे हुए… मेरा शेर…” आंटी ने मेरे लंड को चूमते हुए कहा और फिर मुस्कुरा कर मुझे देखकर दरवाज़े की तरफ बढ़ गईं।
मैंने अपना लोअर ऊपर किया और उन्हें जाते हुए देखता रहा। उनके जाते ही मैं बाथरूम में गया उर अपने लंड को साफ़ कर लिया क्यूंकि प्रिया कभी भी आकर मेरे लंड को अपने हाथों में ले सकती थी और अगर लंड को इस हालत में देखती तो सवालों की झड़ी लग जाती और शायद मैं उसे कुछ भी समझा नहीं पाता।
कमरे में आकर बिस्तर पे गिर पड़ा और चुदाई की थकान की वजह से नींद के आगोश में समां गया।
शादी वाले घर से लौटने के बाद भी सिन्हा आंटी के साथ बड़े हसीं पल बिताने का मौका मिला था मुझे और मैं चाहता था कि आप सब को उसके बारे में बताऊँ।
सिन्हा आंटी के साथ साथ रिंकी और प्रिया के साथ भी यौवन के उस खेल का भरपूर आनन्द लिया मैंने और यह सिलसिला करीब तीन सालों तक चलता रहा।
पर फिर वही हुआ जो अक्सर होता आया है, सिन्हा जी का तबादला हो गया और हम बिछुड़ गए।
उन सब से बिछड़ने के इतने दिनों बाद मैंने देसीबीज़ पर यह कहानी लिखी और संयोगवश प्रिया ने इस कहानी को पढ़ा। यूँ तो वो कनाडा में है आजकल और उसने कहानी भी वहीं पढ़ी, लेकिन कहानी के जरिये सब कुछ जान कर वो बहुत दुःखी हुई।
ज़ाहिर है यारो… उसने मुझसे सच्ची मोहब्बत जो की थी…
प्यार तो मैंने भी सिर्फ और सिर्फ उसी से किया था लेकिन यह कमबख्त लण्ड नहीं माना और मैंने उसकी बहन और माँ के साथ भी चुदाई का खेल खेल लिया।
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- shubhs
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Re: आंटी और उनकी दो खूबसूरत बेटियाँ complete
बेहतरीन
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Re: आंटी और उनकी दो खूबसूरत बेटियाँ complete
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