औरत का सबसे मंहगा गहना
यह मेरी कहानी लंबी है पर हर शब्द कहानी में आवश्यक है। आप कहानी को अच्छे से समझने के लिए सभी पात्रों और उनकी भूमिका को भी समझियेगा, कड़ी दर कड़ी आपका रोमांच बढ़ता जायेगा। या यूं कहें कि आप एक उपन्यास पढ़ रहे हैं, जिसमें खुले शब्द और समाज की बेड़ियों से परे विचार नजर आयेंगे।
आप तो मेरे बारे में जानते ही होंगे, मेरा नाम संदीप है, मैं 5’7″ का हैंडसम सा लड़का हूँ.. ऐसा मैं नहीं कह रहा… बल्कि मुझे चाहने वाले कहते हैं।
मेरा रंग गोरा है, आँखें भूरी और सीना चौड़ा है। जो मेरे पुरुषार्थ की निशानी है वह 7 इंच का मोटा, हल्के भूरे रंग का है और थोड़ा सा मुड़ा हुआ भी है जो सहवास के वक्त मजा बढ़ा देता है।
यह कहानी तब की है जब मैं 25 साल का था।
एक दिन जब मैं बिलासपुर जाने के लिए बस में चढ़ा तो मुझे चढ़ते ही मेरा एक बचपन का मित्र रवि दिखाई दिया, वह बस में खिड़की की तरफ उदास बैठा था और खिड़की से बाहर टकटकी लगाये देख रहा था, शायद वो किसी सोच में डूबा था।
‘हाय रवि, कैसे हो?’ इतना सुनकर ही वह चौंक गया और हकलाते हुए ‘हाँ हह-हाँ हह मैं ठीक हूँ!’ बहुत लड़खड़ाती सी आवाज में जवाब दिया।
अब मैं बिना कुछ कहे उसके बगल वाली सीट पर बैठ गया, मुझे लगा कि शायद वह मुझे पहचान नहीं पा रहा है, इसलिए मैंने फिर से कहा- शायद तुमने मुझे पहचाना नहीं?
तो उसने कहा- तुम मेरे बचपन के यार संदीप हो, मैं तुम्हें कैसे भूल सकता हूँ?
इतना कह कर उसने फिर अपना मुंह खिड़की की तरफ कर लिया।
मैंने कहा- क्या हुआ यार, कुछ सोच रहे हो क्या?
तो उसने मेरी ओर नजर घुमाई, मेरी आँखों में आँखें डाल कर देखा और रोने लगा, फिर उसने खिड़की की तरफ मुंह कर लिया।
मैंने उसे और कुछ कहना उचित नहीं समझा और अपनी सीट पर सर टिका कर आँखें बंद कर ली और अपनी पुरानी यादों में खो गया।
असल में रवि और उसके परिवार को गांव छोड़े दस साल बीत चुके थे। इन दस सालों में बहुत कुछ बदल गया था।
रवि के पिता बिजली विभाग के अधिकारी थे, उनका तबादला हो गया और वो कंवर्धा आ गये थे, रवि जब गांव में था तो वह मेरा बहुत करीबी दोस्त हुआ करता था, हम दोनों साथ में बहुत बदमाशी करते थे, पढ़ाई करते थे और एक दूसरे के घर आना जाना लगा ही रहता था।
रवि के माता पिता भी मुझे अपने बेटे की तरह ही समझते थे, रवि की बहनें भी मुझे बहुत इज्जत देतीं थी, रवि की एक बहन उससे पांच साल छोटी थी और एक बहन चार साल बड़ी थी। रवि के माता पिता ने बच्चा पैदा करते वक्त बच्चों के बीच अंतर का बिल्कुल ख्याल रखा था।
रवि की बड़ी बहन कुसुम का शरीर बहुत भारी था, 5’3″ की हाईट, रंग काला, रुखी त्वचा थी शायद वह बहुत आलसी भी थी।
वहीं उसकी छोटी बहन स्वाति गोरी और सांवली के बीच के रंग में थी, छरहरी सी चंचल लड़की पढ़ाई में बहुत तेज थी, हम सब साथ में कैरम, लूडो, लुका छुपी का खेल खेला करते थे, कोई भी चीज बांट कर खाया करते थे, बड़े अच्छे दिन थे।
मैं ये सब सोच ही रहा था कि हमारी बस सिमगा पहुँच गई, बस के रुकते ही मेरी आँखें खुल गई।
मैंने अपनी बाजू वाली सीट को देखा, वहाँ मैंने रवि को नहीं पाया, मैंने उसे ढूंढने नजर दौड़ाई तो मुझे रवि चना फल्ली लेते नजर आया, वो चना फल्ली का पैकेट लेकर मेरे पास आया, मुझे एक पैकेट पकड़ाया और अपनी सीट में बैठते हुए कहा- यार, बेरुखी के लिए माफी चाहता हूँ, पर मैं अभी बहुत ज्यादा परेशान हूँ।
मैंने कहा- कोई बात नहीं यार, मैं समझ सकता हूँ, पर तुम परेशान क्यूं हो?
तो उसने गहरी सांस लेते हुए बोलना शुरु किया- यार, मेरी बड़ी दीदी कुसुम की शादी हो गई थी, और अब तलाक भी हो गया और दीदी ने दो बार आत्महत्या की कोशिश भी की है, अब तू ही बता मुझे परेशान होना चाहिए या नहीं?
मैंने कहा- हाँ यार, बात तो परेशानी की ही है, पर तू मुझे जरा विस्तार से बतायेगा तभी तो मैं कुछ समझ सकूँगा।
रवि ने कहा- यार, तू तो जानता ही है कि मेरी दीदी शुरु से ही सांवली और भद्दी है। इसलिए उसके रिश्ते के वक्त बहुत परेशानी हुई, हमने बहुत ज्यादा दहेज दिया तब जाकर एक लड़का मिला था। फिर पता नहीं शादी के दो साल बाद ही तलाक हो गया।
मुझे पूरा मामला समझ नहीं आया, मैंने कहा- और आत्महत्या की कोशिश कब की थी?
तो उसने कहा- एक बार पहले और कर चुकी थी, और अभी हाल ही में फिर से कोशिश की है, मैं अभी वहीं जा रहा हूँ।
मैं अभी भी अधूरी बात ही समझ पाया था लेकिन ज्यादा कुरेदना ठीक नहीं समझा, मैंने कुछ सोच कर कहा- चल मैं भी तेरे साथ चलता हूँ।
और हम बस से उतर कर एक कालोनी की तरफ चल पड़े जहाँ उसकी बहन रहती थी।
रास्ते में रवि ने मुझे बताया कि कुसुम तलाक के बाद एक टेलीकॉम कम्पनी में काल अटेंडर का काम कर रही है, और साथ ही पी. एस. सी. की तैयारी भी कर रही है, वैसे तो उनके घर इतना पैसा है कि उसे काम करने की जरूरत नहीं है पर वो अपना मन बहलाने के लिए जॉब कर रही थी, घर वाले उसे बार बार दूसरी शादी के लिए कहते थे, इसीलिए वो बिलासपुर आ कर अकेली रह रही थी, उसने पहली बार जहर खा लिया था, और सही समय पर हास्पिटल ले जाने से जान बच गई थी। और इस बार उसने अपनी नस काट ली थी इस बार भी उसे समय पर हास्पिटल ले जाया गया, आज ही हास्पिटल से घर लाये हैं। उसने कोशिश तीन दिन पहले की थी, उसके मम्मी पापा तुरंत ही कुसुम के पास आ गये थे, पर रवि बाहर गया हुआ था इसलिए आज जा रहा था।
हम दोनों कुसुम के घर पहुँचे, उसका घर अकेले रहने के लिए बहुत बड़ा था, दो बेडरुम एक बड़ा सा हाल एक गेस्टरुम और एक किचन था। रवि ने बाद में बताया कि यह घर उनका खुद का है। जिसे उन लोगों ने किश्त स्कीम में खरीदा था।
सभी हाल में ही बैठे थे, कुसुम वहाँ नहीं थी, सभी बहुत उदास लग रहे थे, मैंने सबके पैर छुये, दस साल बाद भी आंटी अंकल ने मुझे पहचान लिया।
एक दूसरे से खैरियत जानने के बाद मैं और रवि कुसुम के रूम में गये, वहाँ रवि की छोटी बहन स्वाति भी बैठी थी।
हमारे अंदर आते ही वो जाने लगी तो रवि ने उसे रोका और अपनी दोनों बहनों का परिचय कराया, कुसुम ने कहा- हाँ, मैं इसे पहचानती हूँ… और मुझसे कहा ‘पट्ठा पूरा जवान हो गया है रे तू तो?’
मैंने मुस्कुरा कर कहा- हाँ दीदी!
और फिर स्वाति की तरफ इशारा करके ‘ये भी तो पट्ठी जवान हो गई है।’इससे पहले स्वाति मुझे आश्चर्य से घूर रही थी पर अब मेरी बातों पर शरमा गई।
यहाँ पर आपको स्वाति का हुलिया बताना जरूरी है, स्वाति को मैंने दस साल पहले देखा था, तब वह केवल दस साल की मरियल सी पतली दुबली लड़की थी, अब वह बीस साल की हो चुकी है, मतलब जवानी का रंग उस पे चढ़ चुका है, 5’5″ हाईट, बेमिसाल खूबसूरती और रंग पहले से भी गोरा एकदम साफ हो गया है। बिना बाजू वाली टाप में उसके हाथ का एक छोटा सा तिल भी बहुत तेज चमक रहा था, चेहरा लंबा, बाल कुछ कुछ चेहरे पर आ रहे थे, होंठ गुलाबी रंगत के लिये हुए, पतले मगर थोड़े निकले हुए, लगता था किसी ने खींच कर लंबे किये हों। मम्मे बहुत भरे हुए पर सुडौल थे, टॉप के ऊपर से भी बिल्कुल तने हुए थे, मम्मे नीचे की ओर न होकर ऊपर की ओर मुंह किये हुए थे, पिछाड़ी बता रही थी कि कोई भी गाड़ी चल सकती है। मगर पेट बिल्कुल अंदर था, कुल मिला कर कहूँ तो कयामत की सुंदरी लग रही थी, श्रुति हसन की छोटी बहन कह दूं या देवलोक की अप्सरा तो कुछ गलत नहीं होगा मेरा मन तो उसे देखते ही हिलौर मारने लगा था।
लेकिन अभी हालात कुछ अलग थे, अभी कुसुम कैसे दिखती है, मैं नहीं बता पाऊंगा, क्योंकि उसने चादर ओढ़ रखी थी, चेहरे में उदासी थी झूठी हंसी की परतों में उसने अपने बेइंतहा दर्द को छुपा रखा था।
अचानक ही मेरे दिमाग में एक बात आई और मैंने रवि और स्वाति को कमरे से बाहर जाने को कहा और उनके जाते ही मैंने दीदी से कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि दीदी ने कहा- अब तुम भी लेक्चर मत देना।
मैंने कहा- नहीं दीदी, मैं तो उस मैटर पर बात भी नहीं करुंगा, जो आपके जख्मों को कुरेदने का काम करे। बल्कि मैं तो बस यह कह रहा हूँ कि जो हुआ सो हुआ, अब उठो, मम्मी पापा से बातें करो मुझसे बातें करो। अपने हाथों से सबको चाय बना कर पिलाओ, सबको अच्छा लगेगा, ऐसे बैठे रहने से क्या होने वाला है।
उसके आँखों से आंसू की धारा बह निकली। उसने अपने ही हाथों से आंसू पोंछे और कहा- तुम ठीक कह रहे हो।
और बिस्तर से उठते हुए कहा- सबकी चिंता छोड़ो, यह बताओ तुम क्या पियोगे चाय या कॉफी?
तो मैंने कहा- जो आप पिला दो!
और जैसे ही वह कमरे से बाहर आई, सब चौंक गये और उसे आराम करने को कहने लगे।
कुसुम ने कहा- मैं ठीक हूँ!
तभी मैंने पीछे से सबको शांत रहने का इशारा कर दिया।
फिर कुसुम ने सबको चाय पिलाई और सबके सामने ही आकर कुर्सी पर बैठ गई। कुसुम को बातें करता देख सब बहुत खुश हुये और सबके साथ मुझे भी खुश देख कुसुम की उदासी थोड़ी कम हुई।
मैं बिलासपुर अपने काम से गया था, इसलिए मैंने कहा.. अब मैं चलता हूँ, मुझे बहुत काम है। आप सब भी हमारे घर जरूर आइयेगा, कहते हुए कुर्सी से उठ गया।
फिर सबने कहा- तुम भी आते रहना, और अगर बिलासपुर में ठहरना हुआ तो यहीं आ जाना, कहीं और ठहरा तो तेरी खैर नहीं!
मैंने ‘जी बिल्कुल!’ कहा और निकल गया।
तभी कुसुम दीदी की आवाज आई- जरा रुक तो!
मैं रुका।
वो मेरे पास आई.. और हाथ आगे बढ़ा के हेंडशेक करते हुये धन्यवाद दिया। इस समय उसकी आँखों में खुशी, आभार मानने के भाव और मेरे लिये स्नेह भी झलक रहा था। मैं जिस काम से गया था, मैंने अपना वह काम पूरा किया और समय पर घर वापसी के लिए निकल गया।
जब मैं बस पर बैठा आधा रास्ता तय कर चुका था.. तब कुसुम दीदी का फोन आया- संदीप तुम आज रुक रहे हो क्या? यहीं आ जाओ। मैंने कहा- नहीं दीदी, मैं तो निकल चुका हूँ।
दीदी ने कहा- यहीं रुक जाना था ना..! अब कभी आओगे तो मेरे पास जरूर आना और रुक कर ही जाना।
मैंने हाँ कहा और ऐसे ही कुछ और बातें हुई, फिर हमने फोन रख दिया।
कुछ दिन बितने के बाद मेरे पास एक चिट्ठी आई। दरअसल मैं बिलासपुर में एक प्राईवेट टेलीकॉम कंपनी की नौकरी के लिए इंटरव्यू देने गया था और उस चिठ्ठी में मुझे आफिस ज्वाइन करने के लिए बुलाया गया था।
मैं एक हफ्ते बाद वहाँ रहने की तैयारी करके पहुँच गया और सबसे पहले मैं कुसुम दीदी के पास गया क्योंकि इत्तेफाकन वो भी उसी लाईन के जॉब में थी।
जैसे ही दीदी ने मुझे देखा वो खुशी से उछल पड़ी, मुझे अजीब लगा पर मैंने सोचा कि अकेली रहती है तो अपने जान पहचान वालों को देख कर खुश होती होगी।
खैर मैं अंदर बैठा, फिर फ्रेश होकर हम दोनों ने चाय पी, तभी दीदी को मैंने नौकरी की बात बताई।
दीदी फिर से बहुत खुश हो गई, दीदी ने मुझसे कहा- ज्वाइन कब कर रहे हो?
मैंने कहा- आज ही करना है दीदी!
तो उसने ‘हम्म्म…’ कहते हुए कुछ सोचने की मुद्रा में अपना सर हिलाया और कहा- तू दो मिनट रुक, मैं अभी आती हूँ।
और वो अपने रूम में चली गई।
औरत का सबसे मंहगा गहना complete
- rangila
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औरत का सबसे मंहगा गहना complete
मकसद running.....जिंदगी के रंग अपनों के संग running..... मैं अपने परिवार का दीवाना running.....
( Marathi Sex Stories )... ( Hindi Sexi Novels ) ....( हिंदी सेक्स कहानियाँ )...( Urdu Sex Stories )....( Thriller Stories )
- rangila
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Re: औरत का सबसे मंहगा गहना
जब बाहर आई तो मैं उसे देखते ही रह गया क्योंकि उसने बड़ी ही सैक्सी ड्रेस पहन रखी थी, लाईट ब्लू कलर की डीप नेक टॉप और ब्लैक कलर की जींस, बाल खुले हुए थे।
हालांकि बेचारी सांवली और मोटी होने की वजह से ज्यादा खूबसूरत नहीं लग रही थी फिर भी जितना मैं सोचता था, उतनी बुरी भी नहीं थी।
दरअसल शहर में रहने वाली लड़कियाँ अपने कपड़ों और फैशन से अपनी कमजोरियाँ छुपा लेती है।
उसके हाथ में स्कूटी की चाबी और स्कार्फ थी, उसने स्कार्फ बांधते हुए ही कहा- अब चल!
मैंने पूछा- कहाँ दीदी?
तो उसने कहा- पहली बात तो तू मुझे दीदी कह के मत पुकारा कर! और अब मैं तुझे तेरे आफिस ले जा रही हूँ, वहाँ बहुत से लोग मेरी पहचान के हैं।
मैंने कहा- हाँ, यह तो ठीक है, आप भी चलो मेरे साथ, पर मैं आपको दीदी न कहूं तो और क्या कहूं?
तो उसने कहा- देख, मुझे सब किमी कहते हैं.. तू भी मुझे किमी कहा कर!
मैंने हाँ में सर हिलाया और दोनों स्कूटी से ऑफिस की ओर निकल गये।
रास्ते में बहुत सी बातें हुई, गाड़ी किमी चला रही थी, बातों के दौरान मैंने दीदी को किमी कहना शुरु कर दिया, दो चार बार अटपटा लगा फिर आदत हो गई।
आफिस पहुँचते ही वो सबको ऐसे हाय हलो कर रही थी जैसे वो रोज ही यहाँ आती हो। मैं उसके पीछे-पीछे चला जा रहा था, उसने कैबिन के सामने पहुँच कर नॉक किया और ‘मे आई कम इन सर!’ कहते हुए अंदर घुस गई।
सर ने ‘अरे आओ किमी, बैठो! कहो कैसे आना हुआ?’ कहकर हमारा स्वागत किया।
वो कंपनी के मैनेजर थे।
किमी ने खुद बैठते हुए मुझे भी बैठने का इशारा किया और उसने मेरी तरफ इशारा करते हुए सर से कहा- यह मेरे शहर से आया है। मेरे भाई का दोस्त है, आप लोगों ने इसे अपनी कंपनी में जॉब के लिए सलेक्ट कर लिया है, आज ज्वाइन करने आया है।
मैंने सर को हैलो कहा और अपना बायोडाटा और वो लैटर दिया। सर ने उसे जल्दी से देखा और साईड में रखते हुए कहा- शुरुआत में 10000/- मिलेगा, बाद में तुम्हारे काम के हिसाब से बढ़ जायेगा। और रहने के लिए…
किमी ने सर को इतने में ही रोक दिया- नहीं सर, यह तो मेरे साथ ही मेरे घर पर रहेगा।
मैंने कुछ कहने की कोशिश की.. लेकिन उसने फिर रोक दिया- तू चुप कर, तू कुछ नहीं जानता।
सर ने एक गहरी सांस ली और ओके कहते हुए मुझसे हाथ मिला कर बधाई दी।
किमी ने भी हाथ मिलाया और ‘ठीक है सर… तो आप इसे काम समझा दो, मैं चलती हूँ। मैं इसे छुट्टी के टाइम वापस ले जाऊंगी।
मैंने स्माइल दी, तो किमी ने कहा- एक मिनट बाहर आना!
मैं किमी के साथ बाहर तक गया, किमी ने बाहर निकल कर आफिस की दाईं ओर इशारा करके दिखाया- वो देख मेरा आफिस! हम दोनों के आफिस का टाइम लगभग सेम है, मेरी शिफ्ट टाइम 09.45 से 04.30 है और तुम्हारे ऑफिस का 10 से 5 लेकिन अगर अभी तुम्हें नाइट सिफ्ट भी कहें तो मना मत करना, हम बाद में सैटिंग कर लेंगे।
फिर वो चली गई, मैं अंदर आ गया।
अमित नाम के एक लड़के ने मुझे काम समझाया, वो सेम पोस्ट में था।
शाम को किमी मेरे आफिस में आ गई और हम वापसी के लिए स्कूटी में निकल गये। किमी ने रास्ते में एक चौपाटी में गाड़ी रोक दी और फिर हम चौपाटी से गपशप करते हुए एक घंटे लेट घर पहुँचे।
अब हम बहुत अच्छे दोस्त की तरह रहने लगे थे, तो मैंने एक दिन चाय पीते-पीते किमी से उसके आत्महत्या के प्रयासों का कारण पूछ लिया। किमी ने चाय का कप टेबल पर रख कर एक लंबी गहरी सांस भरी, उसके आँखों में आंसू भर आए… और उसने मुझसे कहा कि अगर मैं उसका सच्चा दोस्त हूँ तो ये सवाल फिर कभी ना करूँ।
मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाकर तुरंत दूसरी बात छेड़ दी ताकि किमी का मन हल्का हो सके।
अब ऐसे ही कुछ दिन बीत गए.. सब कुछ अच्छा ही चल रहा था, मेरे मन में किमी के लिए कोई गलत बात नहीं थी, फिर भी था तो मैं जवान लड़का ही।
ऐसे ही एक दिन रात को किमी अपने कमरे में जल्दी सोने चली गई और मैंने अपने मोबाइल पर राजशर्मास्टॉरीज की कहानी पढ़नी शुरू कर दी। कहानी पढ़ते-पढ़ते मेरा हथियार फुंफकारने लगा, मैं इस वक्त हॉल में ही बैठा था, मैं अपने निक्कर के ऊपर से ही उसे सहलाने लगा।
मेरी उत्तेजना बढ़ती गई और मैं लंड को निक्कर से बाहर निकाल कर मसलने लगा और जोर-जोर से हिलाने लगा, मैं झड़ने ही वाला था कि किमी अचानक हॉल में आ गई, मैं कुछ ना कर सका। किमी ने नजरें चौड़ी करके सलामी देते और हाँफते हुए मेरे नन्हे शहजादे को देखा।
आप सभी को झड़ने के वक्त क्या बेचैनी रहती है.. इसका पता ही होगा, शायद मैं भी उस सुखद एहसास के चक्कर में सब कुछ भूल गया था और मैंने उसके सामने ही चार-पांच झटके और लगा दिए। फिर मेरा सैलाब फूट पड़ा.. कुछ बूँदें छिटक कर किमी के चेहरे पर तक चली गईं। ये सब महज चंद सेकंड में हुआ।
फिर किमी ने ‘सॉरी..’ कहा और कमरे में वापस चली गई।
मुझे रात भर नींद नहीं आई, मेरी गलती पर भी किमी ने खुद ‘सॉरी’ कहा, यह सोचकर मुझे खुद पर बहुत शर्म आ रही थी, सुबह उठ कर मैं किमी से नजर नहीं मिला पा रहा था।
किमी मेरे से बड़ी थी इसलिए वो मेरी हालत समझ गई, उसने मेरा हाथ पकड़ा और कहा- संदीप.. रात की बात मैं भूल चुकी हूँ, तुम भी भूल जाओ, जवानी में ऐसी हरकतें अपने आप ही हो जाती हैं। मेरे लिए तुम कल जितने अच्छे थे.. आज भी उतने ही अच्छे हो।
उसके मुंह से इतनी बातें सुनकर मेरे मन का बोझ हल्का हुआ, फिर मैंने मौका अच्छा जानकर किमी से कह दिया- बूढ़ी तो तुम भी नहीं हुई हो.. तो क्या तुम्हारे लिए भी ये आम बात है?
किमी मेरे सवाल से चौंक गई और उसने मुझे घूर कर देखा, मैं डरने लगा कि मैंने फिर गलत तार तो नहीं छेड़ दिया।
उसने सोफे पर बैठते हुए मुझसे पूछा- आज कौन सा दिन है?
मैंने कहा- आज तो सन्डे है, पर पूछ क्यूं रही हो?
तो उसने कहा- क्योंकि आज मैं तुम्हें अपनी सारी कहानी बताती हूँ, कहानी लंबी है इसलिए छुट्टी की पूछ रही थी। उस दिन भी तुमने मेरे आत्महत्या के प्रयासों के बारे में पूछा था ना? असल में यही सबसे बड़ा कारण है।
मैंने कहा- मैं समझा नहीं!
उसने कहा- तुम ऐसे समझोगे भी नहीं.. पूरी कहानी सुनोगे, तब ही समझ पाओगे।
उसने बोलना शुरू किया.. उसने जो कुछ भी बोला, वो एकदम साफ़ शब्दों में कहा था.. हालांकि ये कुछ ज्यादा ही खुल कर कहा था, पर जैसा उसने बताया मैं वैसा ही आपके सामने रख रहा हूँ।
किमी ने कहना शुरू किया- तुम तो जानते ही हो कि मैं शुरू से ही मोटी, सांवली सी दिखने वाली लड़की हूँ। इसलिए कालेज लाइफ में किसी ने मुझ पर चांस नहीं मारा और मेरा मन भी खुद से भी इन चीजों में नहीं गया, बस पढ़ाई करने में ही मैंने जिन्दगी गुजार दी। फिर घर में मेरी शादी की बातें होने लगीं, लेकिन हर बार मेरे भद्देपन के कारण लड़के मुझे रिजेक्ट कर देते थे।
दोस्तों.. मेरे दोस्त की बहन किमी ने मुझे अपनी जिन्दगी के पहलुओं से परिचित कराना शुरू कर दिया था।
उसका ये खुलासा उसकी ही जुबानी काफी दुःखद था इसको पूरे विस्तार से समझने के बाद ही आपको इस कहानी का अर्थ समझ आ सकेगा।
किमी ने आगे बोलना शुरू किया- मेरे रिश्ते को लेकर घर वालों का तनाव भी बढ़ने लगा और नतीजा ये हुआ कि वो सब मुझे भी भला बुरा सुनाने लगे। मुझे खुद से घिन आने लगी, मेरा आत्मविश्वास भी गिरने लगा। ऐसे में पापा ने कहीं से एक लड़का ढूंढ निकाला.. मैं बहुत खुश हो गई, लड़का सामान्य था.. पर मेरी तुलना में बहुत अच्छा था।
बड़े धूमधाम से हमारी शादी हुई, सुहागरात के बारे में मैंने सुना तो था कि पति-पत्नी के शारीरिक सम्बन्ध बनते हैं पर मुझे इसका कोई अनुभव नहीं था। मैं बिस्तर में बैठी डर रही थी कि आज रात क्या होगा, मन में भय था पर खुशी भी थी… क्योंकि आज मेरे जीवन की शुरूआत होनी थी।
कहते हैं न.. किसी भी लड़की का दो बार जन्म होता है, एक जब वो पैदा होती है और दूसरी बार जब शादी होकर अपने पति के पास आती है और पति उसे स्वीकार लेता है। सुहागरात बड़ी ही अनोखी रस्म होती है, इसके मायने मैं अब समझ पाई हूँ।
खैर.. अब रात गहराती गई और वो अब तक कमरे में नहीं आए थे, मुझे नींद सताने लगी थी.. तभी मुझे अपने कंधे पर किसी के छूने का अहसास हुआ, मैं चौंक कर पलटी तो देखा कि कोई और नहीं.. वो मेरे पति सुधीर थे, मैं बिस्तर पर बैठ गई और सर पर पल्लू डाल लिया।
वो मेरे पास आकर बैठ गए और अपना कान पकड़ते हुए मुझसे कहा कि सुहागरात के दिन आपको इस तरह इंतजार कराने के लिए माफी चाहता हूँ, आप जो सजा देना चाहो, मुझे कुबूल है!
उस वक्त मैं नजरें झुकाए बैठी थी, मैंने पलकों को थोड़ा उठाया और मुस्कुरा कर कहा- अब आगे से आप हमें कभी इंतजार ना करवाइएगा.. आपके लिए इतनी ही सजा काफी है।
उन्होंने ‘सजा मंजूर है..’ कहते हुए मुझे बांहों में भर लिया और मेरे गहने बड़ी नजाकत से उतारने लगे।
पहले तो मैं शर्म से दोहरी हो गई, किसी पुरुष का ऐसा आलिंगन पहली बार था, हालांकि मैं पापा या भाई से कई बार लिपटी थी, पर मन के भाव से लिपटने का एहसास भी बदल जाता है और ऐसा ही हुआ। मेरे शरीर में कंपकपी सी हुई.. पर मैं जल्द ही संयत होकर उनका साथ देने लगी।
गहनों के बाद उन्होंने मेरी दुल्हन चुनरी भी उतार दी, मेरे दिल की धड़कनें और तेज होने लगीं, वो मेरे और करीब आ गए और मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए.. हाय राम.. ये तो मैंने अभी सोचा भी नहीं था। मेरे ‘वो’ तो बहुत तेज निकले, मैं घबराहट, शर्म और खुशी से लबरेज होने लगी।
मैंने तुरंत ही अपना चेहरा घुमा लिया.. पर उन्होंने अपने हाथों से मेरा चेहरा थाम लिया और अपनी ओर करते हुए कहा कि जानेमन शर्म औरत का सबसे मंहगा गहना होता है, लेकिन सुहागरात में ये गहना भी उतारना पड़ता है.. तभी तो पूर्ण मिलन संभव हो पाएगा।
मैं मुस्कुरा कर रह गई, मैं और कहती भी क्या.. लेकिन मेरी शर्म अब और बढ़ गई, तभी उन्होंने मेरे कंधे पर चुम्बन अंकित कर दिया और मैंने अपना चेहरा दोनों हाथों से ढक लिया। उन्होंने अपने एक हाथ से मेरी पीठ सहलाई और दूसरे हाथ को मेरे लंहगे के अन्दर डाल कर मेरी जांघों को सहलाने लगे।
उहहहह मईया रे.. इतना उतावला पन.. हाय.. मैं खुश होऊं कि भयभीत.. मेरी समझ से परे था।
उन्होंने मेरे जननांग को छूना चाहा और उनके छूने के पहले ही उसमें सरसराहट होने लगी, मेरे सीने के पर्वत कठोरतम होने लगे, मैं शर्म से लाल होकर चौंकने की मुद्रा में लंहगे में घुसे हाथ को पकड़ कर निकालने लगी।
उन्होंने हाथ वहाँ से निकाल तो दिया, पर तुरंत ही दूसरा पैंतरा आजमाते हुए, मेरे उरोजों को थाम लिया।
मैं अब समझ चुकी थी कि आज मेरी जिन्दगी की सबसे हसीन रात की शुरूआत हो चुकी है, पर मुझ पर शर्म हावी थी, तो उन्होंने कहा- जान अब शरमाना छोड़ कर थोड़ा साथ दो ना..!
तो मैंने आँखें खोल कर उनकी आँखों में देखा और झिझक से थोड़ा बाहर आते हुए मस्ती से उनकी गर्दन में अपनी बांहों का हार डालकर उन्हें अपनी ओर खींचा और उनके कानों में कहा कि जनाब सल्तनत तो आपको जीतनी है, हम तो मैदान में डटे रहकर अपनी सल्तनत का बचाव करेंगें। अब आप ये कैसे करते हैं आप ही जानिए।
इतना सुनते ही उनके अन्दर अलग ही जोश आ गया.. उन्होंने मेरे ब्लाउज का हुक खोला नहीं.. बल्कि सीधे खींच कर तोड़ दिया और मिनटों में ही अपने कपड़ों को भी निकाल फेंका।
अब वो केवल अंतर्वस्त्र में रह गए थे। उन्होंने अगले ही पल मेरा लंहगा भी खींच दिया, मैंने हल्का प्रतिरोध जताया, लेकिन मैं खुद भी इस कामक्रीड़ा में डूब जाना चाहती थी। अब वो मेरे ऊपर छा गए और मेरे सीने पर उभरी दोनों पर्वत चोटियों को एक करने की चेष्टा करने लगे। अनायास ही मेरे मुंह से सिसकारी निकलने लगी, तभी उन्होंने मेरे सीने की घाटी पर जीभ फिरा दी।
हायय… अब तो मेरा खुद पर संयम रखना नामुमकिन था। उधर नीचे उनका सख्त हो चुका वो बेलन.. मुझे चुभ रहा था, मैं अनुमान लगा सकती थी कि मेरे नन्हे जनाब की कद काठी कम से कम आठ इंच तो होगी ही!
मुझे खून खराबे का डर तो था, लेकिन यह भी पता था कि आज नहीं तो कल ये तो होना ही है, इसलिए मैं आँखें मूँदे ही आने वाले पलों का आनन्द लेने लगी, मेरा प्रतिरोध भी अब सहयोग में बदलने लगा था।
वो अब मेरे अंतर्वस्त्रों को भी फाड़ने की कोशिश करने लगे, उनके इस प्रयास से मुझे तकलीफ होने लगी.. तो मैंने खुद ही उन्हें निकालने में उनकी मदद कर दी। तभी उन्होंने एक झटके में अपने बचे कपड़े भी निकाल फेंके।
अब हम दोनों मादरजात नग्न अवस्था में पड़े थे। उन्होंने पहली बार मेरी योनि में हाथ फिराया और खुश होकर बोले- क्या कयामत की बनावट है यार, इतनी मखमली, रोयें तक नहीं हैं..! अय हय.. मेरी तो किस्मत खुल गई!
ऐसा कहते हुए उन्होंने मेरी पहले से गीली हो चुकी योनि में अपनी एक उंगली डाल दी।
मैं इस हमले के लिए तैयार नहीं थी, मैं चिहुंक उठी, लेकिन फिर अगले हमले का इंतजार करने लगी। कुछ देर पहले सल्तनत की रक्षा करने वाली.. अब खुद ही पूरी सल्तनत लुटाने को तैयार बैठी थी।
मकसद running.....जिंदगी के रंग अपनों के संग running..... मैं अपने परिवार का दीवाना running.....
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- rangila
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Re: औरत का सबसे मंहगा गहना
अब तो मेरा भी हाथ उनके सख्त मूसल से लिंग को सहलाने लगा था, साथ ही मेरे जिस्म का हर अंग उनके चुम्बन से सराबोर हो रहा था। मेरी योनि तो कब से उसके लिंग के लिए मरी जा रही थी और अब अपनी सल्तनत लुटाने का वक्त भी आ ही गया।
सुधीर मेरे पैरों की तरफ घुटनों के बल बैठ गए और उन्होंने मेरे दोनों पैरों को फैला कर मेरी योनि को बड़े प्यार से सहलाया.. मैं तड़प उठी।
फिर उन्होंने मेरी योनि पर एक चुम्बन अंकित किया, मेरे शरीर के रोयें खड़े हो गए और फिर वे अपने लिंग महाराज को मेरी योनि के मुहाने पर टिका कर मुझ पर झुक गए।
उन्होंने थोड़ी ताकत लगाई और अपना लगभग आधा लिंग मेरी योनि की दीवारों से रगड़ते हुए, मेरी झिल्ली को फाड़ते हुए अन्दर पेवस्त करा दिया।
मैं दर्द के मारे बिलबिला उठी और छूटने की नाकाम कोशिश करने लगी। पर वो तो मुझ पर किसी शेर की तरह झपट्टा मारने लगे, उन्होंने मेरे उरोजों को दबाते हुए एक और जोर का झटका दिया और अपने लिंग को जड़ तक मेरी योनि में बिठा दिया।
मैं रो पड़ी पर उसे कहाँ कोई फर्क पड़ना था, उन्होंने हंसते हुए कहा- क्यों जानेमन.. अब हुई ना सल्तनत फतह?
मैंने मरी सी आवाज में कहा- हाँ हो तो गई.. पर जंग में तो मेरा ही खून बहा है ना, आपको क्या फर्क पड़ना है।
उनका जवाब था कि जंग में तो खून-खराबा आम बात है.. अब सिर्फ लड़ाई का मजा लो!
यह कहते हुए उन्होंने फिर एक बार अपना पूरा लिंग ‘पक्क.. की आवाज के साथ बाहर खींच लिया। किसी बड़े मशरूम की तरह दिखने वाला लिंग का अग्र भाग मेरी योनि से बाहर आ गया.. मुझे बड़ा मजा आया।
फिर उन्होंने मेरी योनि को अपने लिंग के अग्र भाग से सहलाया और एक ही बार में अपना तना हुआ लिंग मेरी योनि की जड़ तक बिठा दिया। इस अप्रत्याशित प्रहार से मैं लगभग बेहोश सी हो गई, पर कमरा ‘आहह ऊहह..’ की आवाजों से गूंज उठा।
जब मैं थोड़ी संयत हुई.. तब एक लम्बे दौर की घमासान पलंगतोड़ कामक्रीड़ा के बाद हम दोनों एक साथ झड़ गए और एक दूसरे से चिपक कर यूं ही लेटे-लेटे कब नींद आ गई.. पता नहीं चला।
किमी ने आगे बताना शुरू किया- मैं रात भर की कामक्रीड़ा के बाद ऐसे ही सो गई थी और जब सुबह ‘खट’ की आवाज के साथ दरवाजा खुला, उसी के साथ ही मेरी नींद भी खुल गई।
मैंने देखा सामने सुधीर खड़े थे, मैं चौंक गई क्योंकि सुधीर तो मेरे साथ थे, पर वो दरवाजे से कैसे आ रहे हैं।
उहहह.. मुझे अब होश आया कि बीती रात मेरे साथ कुछ भी नहीं हुआ, असल में मैंने रात भर अपने सुहागरात के सपने देखे हैं। वास्तव में मेरी सुहागरात तो कोरी ही रह गई।
मैंने अकचका कर सुधीर से पूछा- आप रात भर नहीं आए..! और मैं भी आपका इंतजार करते करते सो गई थी।
उनका मुंह खुलते ही दारू की बदबू आई, उन्होंने कहा- वो दोस्तों के साथ कब रात बीत गई.. पता ही नहीं चला!
मैंने ‘कोई बात नहीं..’ कहते हुए उन्हें बिस्तर में लिटाया और सुला कर घर के काम-काज में लग गई।
इसी तरह की दिनचर्या चलने लगी थी, मैंने समझदारी से कुछ दिनों में अपने पति को छोड़कर घर के सभी सदस्यों को खुश कर लिया, सुधीर कभी रात को घर आते थे और कभी नहीं भी आते थे और तीन महीने बाद भी मेरी असली सुहागरात का वक्त नहीं आया था।
एक दिन काम करते करते जेठानी ने मजाक किया- क्यों देवरानी, फूल कब खिला रही हो?
मैंने भी गुस्से में कह दिया- गमले में आज तक पानी की बूंद नहीं पड़ी और आप फूल की बात करती हो?
जेठानी मेरी बात को झट से समझ गई, उसने कहा- फिर तो गमला प्यासा होगा, तू कहे तो मैं कुछ मदद करूं?
मैंने कहा- आप मेरी मदद कैसे करोगी?
उसने कहा- गाजर, मूली, बेलन ये सब कब काम आएंगे, तू कहे तो हम दोनों मजे ले सकते हैं।
मैं पढ़ी-लिखी लड़की थी.. मुझे ये सब बातें बकवास लगीं.. मैं भड़क उठी, तो जेठानी ने झेंप कर कहा- मैंने कोई जबरदस्ती तो नहीं की है, जब तुम्हारा मन हो मुझे बता देना!
मैं वहाँ से उठ गई और आगे इस बारे में हमारी बात भी नहीं हुई।
अब रोज रात मुझे रतिक्रिया के सपने आने लगे, मैं भले ही पढ़ी-लिखी लड़की थी, पर तन की जरूरतों के आगे किसका बस चलता है!
मेरी भी हालत ऐसी ही होने लगी।
एक रात को सपने देखते-देखते मैं अपनी योनि को सहलाने लगी और थोड़ी ही देर में मेरी योनि भट्टी की तरह गर्म हो गई। मैंने क्रमशः एक, फिर दूसरी उंगली योनि में डाल ली, पर मेरी वासना शांत होने के बजाए और भड़क उठी। अब मुझे जेठानी की बातें याद आने लगीं, फिर मैं चुपके से रसोई में जाकर एक गाजर उठा आई, पहले तो गाजर को थूक से गीला किया और योनि के ऊपर रगड़ने लगी। इसी के साथ मैं अपने दूसरे हाथ से अपने उरोज को सहला रही थी।
अब मेरी योनि लिंग मांग रही थी, तो मैंने गाजर के मोटे भाग को योनि के अन्दर प्रवेश कराना चाहा, जो तीन इंच मोटा होगा, उसकी लंबाई भी बहुत थी.. पर पतली होने के क्रम में थी।
गाजर को योनि में डालते हुए दर्द के मारे मेरी जान निकल रही थी.. उम्म्ह… अहह… हय… याह… पर गाजर अन्दर नहीं गई, तो मैंने दर्द को सहने के लिए अपने दांतों को जकड़ लिया और एक जोर का धक्का दे दिया। इससे गाजर मेरी योनि में तीन इंच अन्दर तक घुस गई और योनि से खून की धार बह निकली।
मेरी आँखों में आँसू आ गए, मैं डर गई.. मैंने अपनी सील खुद ही तोड़ी थी, पर अभी मेरा इम्तिहान बाकी था।
अब मेरे सर से सेक्स का भूत उतर गया था, मैंने गाजर को निकालने के लिए उसे वापस खींची.. लेकिन गाजर टस से मस नहीं हुई।
फिर मैंने सोचा थोड़ा हिला डुला कर खींचती हूँ। मैंने इतनी तकलीफ के बावजूद गाजर को हिलाने के लिए उसे और अन्दर धकेली और फिर बाहर खींचने लगी, मेरी तो जान ही निकल गई, फिर भी गाजर को निकालना तो जरूरी था।
मेरे जोर लगाने से गाजर बीच से टूट गई… हाय राम.. ये क्या हो गया.. अब मैं क्या करूँ! गाजर का बहुत छोटा सा भाग लगभग डेढ़ इंच ही बाहर दिख रहा था। अब मुझसे गाजर निकालते भी नहीं बन रही थी और दर्द के मारे मेरी हालत और खराब हो रही थी।
अब मुझे बदनामी से लेकर दर्द खून और सभी चीजों की चिन्ता सताने लगी।
ऐसी हालत में अब मेरे पास जेठानी के पास जाने के अलावा कोई चारा नहीं था। ऐसे भी मैंने पूरे कपड़े तो उतारे नहीं थे सिर्फ पेंटी उतारी थी और साड़ी ऊपर करके मजे लेने में लगी थी, सो मैंने तुरंत साड़ी को नीचे किया और लंगड़ा कर चलती हुई जेठानी के कमरे के बाहर जाकर उसे आवाज लगाई।
फिर उसे बुला कर अपने कमरे में लाई और झिझकते हुए उसे अपनी साड़ी उठा कर अपनी योनि दिखाई और पूरी कहानी बताई।
सुधीर मेरे पैरों की तरफ घुटनों के बल बैठ गए और उन्होंने मेरे दोनों पैरों को फैला कर मेरी योनि को बड़े प्यार से सहलाया.. मैं तड़प उठी।
फिर उन्होंने मेरी योनि पर एक चुम्बन अंकित किया, मेरे शरीर के रोयें खड़े हो गए और फिर वे अपने लिंग महाराज को मेरी योनि के मुहाने पर टिका कर मुझ पर झुक गए।
उन्होंने थोड़ी ताकत लगाई और अपना लगभग आधा लिंग मेरी योनि की दीवारों से रगड़ते हुए, मेरी झिल्ली को फाड़ते हुए अन्दर पेवस्त करा दिया।
मैं दर्द के मारे बिलबिला उठी और छूटने की नाकाम कोशिश करने लगी। पर वो तो मुझ पर किसी शेर की तरह झपट्टा मारने लगे, उन्होंने मेरे उरोजों को दबाते हुए एक और जोर का झटका दिया और अपने लिंग को जड़ तक मेरी योनि में बिठा दिया।
मैं रो पड़ी पर उसे कहाँ कोई फर्क पड़ना था, उन्होंने हंसते हुए कहा- क्यों जानेमन.. अब हुई ना सल्तनत फतह?
मैंने मरी सी आवाज में कहा- हाँ हो तो गई.. पर जंग में तो मेरा ही खून बहा है ना, आपको क्या फर्क पड़ना है।
उनका जवाब था कि जंग में तो खून-खराबा आम बात है.. अब सिर्फ लड़ाई का मजा लो!
यह कहते हुए उन्होंने फिर एक बार अपना पूरा लिंग ‘पक्क.. की आवाज के साथ बाहर खींच लिया। किसी बड़े मशरूम की तरह दिखने वाला लिंग का अग्र भाग मेरी योनि से बाहर आ गया.. मुझे बड़ा मजा आया।
फिर उन्होंने मेरी योनि को अपने लिंग के अग्र भाग से सहलाया और एक ही बार में अपना तना हुआ लिंग मेरी योनि की जड़ तक बिठा दिया। इस अप्रत्याशित प्रहार से मैं लगभग बेहोश सी हो गई, पर कमरा ‘आहह ऊहह..’ की आवाजों से गूंज उठा।
जब मैं थोड़ी संयत हुई.. तब एक लम्बे दौर की घमासान पलंगतोड़ कामक्रीड़ा के बाद हम दोनों एक साथ झड़ गए और एक दूसरे से चिपक कर यूं ही लेटे-लेटे कब नींद आ गई.. पता नहीं चला।
किमी ने आगे बताना शुरू किया- मैं रात भर की कामक्रीड़ा के बाद ऐसे ही सो गई थी और जब सुबह ‘खट’ की आवाज के साथ दरवाजा खुला, उसी के साथ ही मेरी नींद भी खुल गई।
मैंने देखा सामने सुधीर खड़े थे, मैं चौंक गई क्योंकि सुधीर तो मेरे साथ थे, पर वो दरवाजे से कैसे आ रहे हैं।
उहहह.. मुझे अब होश आया कि बीती रात मेरे साथ कुछ भी नहीं हुआ, असल में मैंने रात भर अपने सुहागरात के सपने देखे हैं। वास्तव में मेरी सुहागरात तो कोरी ही रह गई।
मैंने अकचका कर सुधीर से पूछा- आप रात भर नहीं आए..! और मैं भी आपका इंतजार करते करते सो गई थी।
उनका मुंह खुलते ही दारू की बदबू आई, उन्होंने कहा- वो दोस्तों के साथ कब रात बीत गई.. पता ही नहीं चला!
मैंने ‘कोई बात नहीं..’ कहते हुए उन्हें बिस्तर में लिटाया और सुला कर घर के काम-काज में लग गई।
इसी तरह की दिनचर्या चलने लगी थी, मैंने समझदारी से कुछ दिनों में अपने पति को छोड़कर घर के सभी सदस्यों को खुश कर लिया, सुधीर कभी रात को घर आते थे और कभी नहीं भी आते थे और तीन महीने बाद भी मेरी असली सुहागरात का वक्त नहीं आया था।
एक दिन काम करते करते जेठानी ने मजाक किया- क्यों देवरानी, फूल कब खिला रही हो?
मैंने भी गुस्से में कह दिया- गमले में आज तक पानी की बूंद नहीं पड़ी और आप फूल की बात करती हो?
जेठानी मेरी बात को झट से समझ गई, उसने कहा- फिर तो गमला प्यासा होगा, तू कहे तो मैं कुछ मदद करूं?
मैंने कहा- आप मेरी मदद कैसे करोगी?
उसने कहा- गाजर, मूली, बेलन ये सब कब काम आएंगे, तू कहे तो हम दोनों मजे ले सकते हैं।
मैं पढ़ी-लिखी लड़की थी.. मुझे ये सब बातें बकवास लगीं.. मैं भड़क उठी, तो जेठानी ने झेंप कर कहा- मैंने कोई जबरदस्ती तो नहीं की है, जब तुम्हारा मन हो मुझे बता देना!
मैं वहाँ से उठ गई और आगे इस बारे में हमारी बात भी नहीं हुई।
अब रोज रात मुझे रतिक्रिया के सपने आने लगे, मैं भले ही पढ़ी-लिखी लड़की थी, पर तन की जरूरतों के आगे किसका बस चलता है!
मेरी भी हालत ऐसी ही होने लगी।
एक रात को सपने देखते-देखते मैं अपनी योनि को सहलाने लगी और थोड़ी ही देर में मेरी योनि भट्टी की तरह गर्म हो गई। मैंने क्रमशः एक, फिर दूसरी उंगली योनि में डाल ली, पर मेरी वासना शांत होने के बजाए और भड़क उठी। अब मुझे जेठानी की बातें याद आने लगीं, फिर मैं चुपके से रसोई में जाकर एक गाजर उठा आई, पहले तो गाजर को थूक से गीला किया और योनि के ऊपर रगड़ने लगी। इसी के साथ मैं अपने दूसरे हाथ से अपने उरोज को सहला रही थी।
अब मेरी योनि लिंग मांग रही थी, तो मैंने गाजर के मोटे भाग को योनि के अन्दर प्रवेश कराना चाहा, जो तीन इंच मोटा होगा, उसकी लंबाई भी बहुत थी.. पर पतली होने के क्रम में थी।
गाजर को योनि में डालते हुए दर्द के मारे मेरी जान निकल रही थी.. उम्म्ह… अहह… हय… याह… पर गाजर अन्दर नहीं गई, तो मैंने दर्द को सहने के लिए अपने दांतों को जकड़ लिया और एक जोर का धक्का दे दिया। इससे गाजर मेरी योनि में तीन इंच अन्दर तक घुस गई और योनि से खून की धार बह निकली।
मेरी आँखों में आँसू आ गए, मैं डर गई.. मैंने अपनी सील खुद ही तोड़ी थी, पर अभी मेरा इम्तिहान बाकी था।
अब मेरे सर से सेक्स का भूत उतर गया था, मैंने गाजर को निकालने के लिए उसे वापस खींची.. लेकिन गाजर टस से मस नहीं हुई।
फिर मैंने सोचा थोड़ा हिला डुला कर खींचती हूँ। मैंने इतनी तकलीफ के बावजूद गाजर को हिलाने के लिए उसे और अन्दर धकेली और फिर बाहर खींचने लगी, मेरी तो जान ही निकल गई, फिर भी गाजर को निकालना तो जरूरी था।
मेरे जोर लगाने से गाजर बीच से टूट गई… हाय राम.. ये क्या हो गया.. अब मैं क्या करूँ! गाजर का बहुत छोटा सा भाग लगभग डेढ़ इंच ही बाहर दिख रहा था। अब मुझसे गाजर निकालते भी नहीं बन रही थी और दर्द के मारे मेरी हालत और खराब हो रही थी।
अब मुझे बदनामी से लेकर दर्द खून और सभी चीजों की चिन्ता सताने लगी।
ऐसी हालत में अब मेरे पास जेठानी के पास जाने के अलावा कोई चारा नहीं था। ऐसे भी मैंने पूरे कपड़े तो उतारे नहीं थे सिर्फ पेंटी उतारी थी और साड़ी ऊपर करके मजे लेने में लगी थी, सो मैंने तुरंत साड़ी को नीचे किया और लंगड़ा कर चलती हुई जेठानी के कमरे के बाहर जाकर उसे आवाज लगाई।
फिर उसे बुला कर अपने कमरे में लाई और झिझकते हुए उसे अपनी साड़ी उठा कर अपनी योनि दिखाई और पूरी कहानी बताई।
मकसद running.....जिंदगी के रंग अपनों के संग running..... मैं अपने परिवार का दीवाना running.....
( Marathi Sex Stories )... ( Hindi Sexi Novels ) ....( हिंदी सेक्स कहानियाँ )...( Urdu Sex Stories )....( Thriller Stories )
- rangila
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- Posts: 5698
- Joined: 17 Aug 2015 16:50
Re: औरत का सबसे मंहगा गहना
मेरी जेठानी बहुत कमीनी थी, उसने सबसे पहले मेरे उस दिन के व्यवहार के लिए खरी खोटी सुनाई और कहा- तू तो बहुत अकड़ती थी ना, ले अब कुत्ते के लंड जैसा अटक गया ना तेरी चुत में.. और चुत फट गई.. सो अलग, देख तो तेरी चुत की कैसे धज्जियाँ उड़ गई हैं!
वो मुझे और ज्यादा डरा रही थी।
मैं उसके पैरों में गिर गई- दीदी मुझे बचा लो.. एक बार ये गाजर निकाल दो फिर आप जो कहोगी मैं करूँगी।
उसने कहा- सोच ले.. जो कहूँगी, वो करना पड़ेगा!
मैंने कहा- सोच लिया दीदी.. आप जो कहोगी, मैं वो करने को तैयार हूँ।
तो वो बोली- फिर ठीक है अब तू फिकर मत कर.. जा बिस्तर में लेट जा, मैं अभी गाजर निकालने का सामान लेकर आती हूँ।
मैं बिस्तर में लेट कर इंतजार करने लगी, जेठानी करीब दस मिनट बाद आई। उसके हाथ में नारियल तेल का डिब्बा और गाड़ी में रहने वाला पेंचकस आदि टूल थे। उसने उसे मेरे पैरों के पास रखा और थोड़ा ऊपर आकर मेरे दोनों कंधों को जकड़ लिया, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि जेठानी क्या कर रही है।
उसने मुझे जकड़ने के बाद आवाज लगाई- आ जाओ जी.. मछली जाल में कैद है..!
सामने से जेठ जी अन्दर आ गए।
‘हाय राम.. दीदी आपने जेठ जी को क्यों बताया? अब वो क्या सोचेंगे.. मैं तो कहीं की नहीं रही!’
मैं योनि खोले टांगें फैलाए लेटी थी, मैंने हड़बड़ाने की कोशिश की, पर जेठानी ने मुझे जकड़ रखा था।
जेठ जी सामने आकर बोले- साली गाजर योनि में डालते समय लाज नहीं आई.. और अब नखरे दिखा रही है, शांति से पड़ी रह, इसी में सबकी भलाई है। देख.. केवल आधा इंच गाजर ही बाहर दिख रही है, ज्यादा हिलोगी तो वो भी अन्दर घुस जाएगी, फिर आपरेशन के अलावा कोई चारा नहीं रहेगा।
मुझे उनकी बात सही लगी.. मैंने जेठानी से कहा- हाँ, अब मैं नहीं हिलूँगी, मुझे छोड़ दो।
जेठानी के छोड़ते ही मैंने नजर योनि में डाली.. सही में डेढ़ इंच गाजर में से एक इंच और अन्दर घुस गई थी और योनि तो ऐसी लाल दिख रही थी मानो पान खाकर 50-100 लोगों ने एक साथ थूक दिया हो।
मैंने जेठ जी से कहा- अब आप ही कुछ कीजिए जेठ जी?
उन्होंने कहा- करूँगा तो मैं बहुत कुछ.. पर अभी सिर्फ ये गाजर निकाल देता हूँ।
मैं उनका इशारा समझ चुकी थी, पर अभी मेरे लिए गाजर निकलवाना ही सबसे ज्यादा जरूरी था।
जेठ जी ने तेल के डिब्बे को खोलकर मेरी योनि में तेल की धार पिचकाई और बहुत सारा तेल अन्दर तक डालने की कोशिश की, फिर जेठानी से कहा- तुम इसके दोनों पैर फैला के रखो, ध्यान रहे गाजर खींचते वक्त कहीं ये पैर सिकोड़े ना, क्योंकि दर्द बहुत ज्यादा होगा।
जेठानी ने मेरे दोनों पैर फैलाए और कहा- चुप रहना कुतिया.. अपनी ही करनी भोग रही है, ज्यादा चिल्लाना मत और अपना वादा याद रखना।
अब जेठ जी ने बड़ी सफाई से पेंचकस में गाजर को फंसाया और जोर लगा कर बाहर खींचने लगे।
दर्द के कारण मैं बेहोशी की स्थित में आ गई, अगर तेल ना डाला होता तो मैं सच में मर ही जाती।
उई माँ.. मैं तो मर गई रे.. कहते हुए मैं अचेत हो गई।
जब मुझे होश आया तो जेठानी मेरे सर के पास बैठी थी और सुबह होने वाली थी।
जेठानी ने कहा- चल अब तू आराम कर, रात की बात भूल जाना, ज्यादा सोचना मत.. हाँ लेकिन वादा याद रखना, मैं उसे जब चाहूं मांग सकती हूँ।
मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया और अनमने मन से ‘धन्यवाद दीदी’ कहा।
सुबह उठ कर मुझे चलने में तकलीफ हो रही थी, मैं जब अपने कमरे से बाहर निकली तो मैं जेठ जेठानी से नजरें नहीं मिला पा रही थी।
जेठानी ने पास आकर कहा- जो हुआ उसके लिए ज्यादा मत सोच और आज रात अपना वादा पूरा करने के लिए तैयार रहना।
मैंने तुरंत ही जेठानी से गिड़गिड़ाते हुए कहा- दीदी आप क्या चाहती हो, पहले वो खुल कर बताओ!
तो उसने कहा- अरे तुम इतनी भी तो भोली नहीं हो.. तेरे जेठ तेरे तुझे चखना चाहते हैं।
मैंने कहा- इसमें आपको क्या मिलेगा दीदी?
उसने कहा- हमारी शादी को हुए आठ साल हो गए और अभी तक बच्चा नहीं हुआ है.. इसलिए मैंने इक्कीस गुरुवार का व्रत रखा है, ताकि मैं ठाकुर जी को प्रसन्न कर सकूँ और इस बीच मैं अपने पति से संबंध नहीं बना सकती हूँ। लेकिन तेरे जेठ पर ये बंदिश लागू नहीं है, वो किसी दूसरे से संबंध बना सकते हैं। अगर मैं उन्हें ऐसा करने से रोकूँगी तो वो मेरा व्रत पूरा नहीं होने देंगे। वो तो रोज ही सेक्स करने वाले व्यक्ति हैं, वो इतने दिन नहीं रुक पायेंगे और फिर उनकी हालत मैं समझ सकती हूँ।
मैंने कहा- पर दीदी, आज तक मैंने किसी के साथ संबंध ही नहीं बनाए हैं और इसी कारण से सबसे पहले मैं अपने पति से संबंध बनाना चाहती हूँ, बस मुझे पति के साथ सेक्स संबंध बनाने तक की मोहलत दे दो.. प्लीज दीदी… फिर मैं अपना वादा पूरा करने के लिए तैयार हूँ।
जेठानी भी एक स्त्री ही थी, सो उसने मेरी व्यथा समझ कर ‘हाँ कह दी.. और कहा- अब तेरे खसम को जल्दी ही तेरे ऊपर चढ़वाती हूँ।
जेठानी ने मेरी मजबूरी समझी, इसलिए अब वो मुझे थोड़ी अच्छी लगने लगी।
जेठानी की कही हुई बात सच निकली, एक हफ्ते के भीतर ही मेरे पति ने एक रात मुझसे संभोग करने की इच्छा जताई, अनायास ही मेरी आँखों में आंसू आ गए। हालांकि वह नशे की हालत में सेक्स करना चाहते थे, मैं फिर भी तैयार थी, मेरे मन में बस यही तसल्ली थी कि कम से कम मैं शादीशुदा होने का अर्थ पूर्ण कर पाऊंगी।
लेकिन जैसा मैंने सोचा था, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, सुधीर नशे की हालत में आए और उन्होंने मुझे बिस्तर पर लेटने और कपड़े उतारने को कहा, मैंने वैसा ही किया और हब्शी की तरह मुझे नोंचने लगे।
उनका लिंग भी मेरे सपने के जैसा नहीं था.. मैंने तो सपने में लगभग आठ इंच के लिंग की कल्पना की थी, पर वास्तविकता में वह महज छ: इंच का लग रहा था। मेरे पति का लिंग बहुत सख्त भी नहीं था, वह कभी मेरे उरोजों को दबाते, कभी होंठों को चूसते।
मुझे उनकी ये हरकत कामोत्तेजित करने के बजाए घृणित काम करने जैसी लग रही थी क्योंकि दारू की तेज गंध मैं बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी।
वो मुझे और ज्यादा डरा रही थी।
मैं उसके पैरों में गिर गई- दीदी मुझे बचा लो.. एक बार ये गाजर निकाल दो फिर आप जो कहोगी मैं करूँगी।
उसने कहा- सोच ले.. जो कहूँगी, वो करना पड़ेगा!
मैंने कहा- सोच लिया दीदी.. आप जो कहोगी, मैं वो करने को तैयार हूँ।
तो वो बोली- फिर ठीक है अब तू फिकर मत कर.. जा बिस्तर में लेट जा, मैं अभी गाजर निकालने का सामान लेकर आती हूँ।
मैं बिस्तर में लेट कर इंतजार करने लगी, जेठानी करीब दस मिनट बाद आई। उसके हाथ में नारियल तेल का डिब्बा और गाड़ी में रहने वाला पेंचकस आदि टूल थे। उसने उसे मेरे पैरों के पास रखा और थोड़ा ऊपर आकर मेरे दोनों कंधों को जकड़ लिया, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि जेठानी क्या कर रही है।
उसने मुझे जकड़ने के बाद आवाज लगाई- आ जाओ जी.. मछली जाल में कैद है..!
सामने से जेठ जी अन्दर आ गए।
‘हाय राम.. दीदी आपने जेठ जी को क्यों बताया? अब वो क्या सोचेंगे.. मैं तो कहीं की नहीं रही!’
मैं योनि खोले टांगें फैलाए लेटी थी, मैंने हड़बड़ाने की कोशिश की, पर जेठानी ने मुझे जकड़ रखा था।
जेठ जी सामने आकर बोले- साली गाजर योनि में डालते समय लाज नहीं आई.. और अब नखरे दिखा रही है, शांति से पड़ी रह, इसी में सबकी भलाई है। देख.. केवल आधा इंच गाजर ही बाहर दिख रही है, ज्यादा हिलोगी तो वो भी अन्दर घुस जाएगी, फिर आपरेशन के अलावा कोई चारा नहीं रहेगा।
मुझे उनकी बात सही लगी.. मैंने जेठानी से कहा- हाँ, अब मैं नहीं हिलूँगी, मुझे छोड़ दो।
जेठानी के छोड़ते ही मैंने नजर योनि में डाली.. सही में डेढ़ इंच गाजर में से एक इंच और अन्दर घुस गई थी और योनि तो ऐसी लाल दिख रही थी मानो पान खाकर 50-100 लोगों ने एक साथ थूक दिया हो।
मैंने जेठ जी से कहा- अब आप ही कुछ कीजिए जेठ जी?
उन्होंने कहा- करूँगा तो मैं बहुत कुछ.. पर अभी सिर्फ ये गाजर निकाल देता हूँ।
मैं उनका इशारा समझ चुकी थी, पर अभी मेरे लिए गाजर निकलवाना ही सबसे ज्यादा जरूरी था।
जेठ जी ने तेल के डिब्बे को खोलकर मेरी योनि में तेल की धार पिचकाई और बहुत सारा तेल अन्दर तक डालने की कोशिश की, फिर जेठानी से कहा- तुम इसके दोनों पैर फैला के रखो, ध्यान रहे गाजर खींचते वक्त कहीं ये पैर सिकोड़े ना, क्योंकि दर्द बहुत ज्यादा होगा।
जेठानी ने मेरे दोनों पैर फैलाए और कहा- चुप रहना कुतिया.. अपनी ही करनी भोग रही है, ज्यादा चिल्लाना मत और अपना वादा याद रखना।
अब जेठ जी ने बड़ी सफाई से पेंचकस में गाजर को फंसाया और जोर लगा कर बाहर खींचने लगे।
दर्द के कारण मैं बेहोशी की स्थित में आ गई, अगर तेल ना डाला होता तो मैं सच में मर ही जाती।
उई माँ.. मैं तो मर गई रे.. कहते हुए मैं अचेत हो गई।
जब मुझे होश आया तो जेठानी मेरे सर के पास बैठी थी और सुबह होने वाली थी।
जेठानी ने कहा- चल अब तू आराम कर, रात की बात भूल जाना, ज्यादा सोचना मत.. हाँ लेकिन वादा याद रखना, मैं उसे जब चाहूं मांग सकती हूँ।
मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया और अनमने मन से ‘धन्यवाद दीदी’ कहा।
सुबह उठ कर मुझे चलने में तकलीफ हो रही थी, मैं जब अपने कमरे से बाहर निकली तो मैं जेठ जेठानी से नजरें नहीं मिला पा रही थी।
जेठानी ने पास आकर कहा- जो हुआ उसके लिए ज्यादा मत सोच और आज रात अपना वादा पूरा करने के लिए तैयार रहना।
मैंने तुरंत ही जेठानी से गिड़गिड़ाते हुए कहा- दीदी आप क्या चाहती हो, पहले वो खुल कर बताओ!
तो उसने कहा- अरे तुम इतनी भी तो भोली नहीं हो.. तेरे जेठ तेरे तुझे चखना चाहते हैं।
मैंने कहा- इसमें आपको क्या मिलेगा दीदी?
उसने कहा- हमारी शादी को हुए आठ साल हो गए और अभी तक बच्चा नहीं हुआ है.. इसलिए मैंने इक्कीस गुरुवार का व्रत रखा है, ताकि मैं ठाकुर जी को प्रसन्न कर सकूँ और इस बीच मैं अपने पति से संबंध नहीं बना सकती हूँ। लेकिन तेरे जेठ पर ये बंदिश लागू नहीं है, वो किसी दूसरे से संबंध बना सकते हैं। अगर मैं उन्हें ऐसा करने से रोकूँगी तो वो मेरा व्रत पूरा नहीं होने देंगे। वो तो रोज ही सेक्स करने वाले व्यक्ति हैं, वो इतने दिन नहीं रुक पायेंगे और फिर उनकी हालत मैं समझ सकती हूँ।
मैंने कहा- पर दीदी, आज तक मैंने किसी के साथ संबंध ही नहीं बनाए हैं और इसी कारण से सबसे पहले मैं अपने पति से संबंध बनाना चाहती हूँ, बस मुझे पति के साथ सेक्स संबंध बनाने तक की मोहलत दे दो.. प्लीज दीदी… फिर मैं अपना वादा पूरा करने के लिए तैयार हूँ।
जेठानी भी एक स्त्री ही थी, सो उसने मेरी व्यथा समझ कर ‘हाँ कह दी.. और कहा- अब तेरे खसम को जल्दी ही तेरे ऊपर चढ़वाती हूँ।
जेठानी ने मेरी मजबूरी समझी, इसलिए अब वो मुझे थोड़ी अच्छी लगने लगी।
जेठानी की कही हुई बात सच निकली, एक हफ्ते के भीतर ही मेरे पति ने एक रात मुझसे संभोग करने की इच्छा जताई, अनायास ही मेरी आँखों में आंसू आ गए। हालांकि वह नशे की हालत में सेक्स करना चाहते थे, मैं फिर भी तैयार थी, मेरे मन में बस यही तसल्ली थी कि कम से कम मैं शादीशुदा होने का अर्थ पूर्ण कर पाऊंगी।
लेकिन जैसा मैंने सोचा था, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, सुधीर नशे की हालत में आए और उन्होंने मुझे बिस्तर पर लेटने और कपड़े उतारने को कहा, मैंने वैसा ही किया और हब्शी की तरह मुझे नोंचने लगे।
उनका लिंग भी मेरे सपने के जैसा नहीं था.. मैंने तो सपने में लगभग आठ इंच के लिंग की कल्पना की थी, पर वास्तविकता में वह महज छ: इंच का लग रहा था। मेरे पति का लिंग बहुत सख्त भी नहीं था, वह कभी मेरे उरोजों को दबाते, कभी होंठों को चूसते।
मुझे उनकी ये हरकत कामोत्तेजित करने के बजाए घृणित काम करने जैसी लग रही थी क्योंकि दारू की तेज गंध मैं बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी।
मकसद running.....जिंदगी के रंग अपनों के संग running..... मैं अपने परिवार का दीवाना running.....
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- rangila
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Re: औरत का सबसे मंहगा गहना
फिर भी प्रथम सहवास की खुशी से ही मेरी योनि गीली हो चुकी थी। सम्भोग की स्थिति बनने की ख़ुशी को अभी मैं महसूस ही कर रही थी कि तभी अचानक उन्होंने मेरे पैर फैलाए और अपना लिंग मेरी योनि में बेदर्दी से ठूंस दिया, मुझे बहुत दर्द हुआ.. पर झिल्ली फटने का दर्द जितना नहीं हुआ क्योंकि मैंने तो अपनी झिल्ली गाजर से ही फाड़ ली थी।
फिर भी मैंने दर्द का और रोने का नाटक किया, उन्हें तो किसी बात से मतलब तो था नहीं.. और वो लिंग को लगातार अन्दर बाहर करने लगे।
अब मैंने भी उसका साथ देना शुरू कर दिया था.. तीन से चार मिनट के अन्दर मैं स्खलित हो गई और पांच मिनट के अन्दर वो भी झड़ गए और उठ कर एक किनारे सो गए।
क्या सेक्स ऐसे ही होता है, फिर लोग जो सेक्स के बारे में इतनी इंस्ट्रेस्टिंग बातें कहते हैं.. वो क्या है? मैं इसी सोच में रात भर जागती रही।
अब ना ही मेरे अन्दर सेक्स की कोई ललक बची थी और ना ही उसके अन्दर ऐसी कोई बात थी कि उसके साथ सेक्स करने की चाहत मेरे अन्दर कोई भाव पैदा कर सके। मैं तो पहली बार में ही सेक्स से विमुख होने लगी थी। फिर सोचा पहली बार के कारण ऐसा हुआ हो। मुझे सेक्स का कोई अनुभव भी नहीं था, इसलिए मैं इस मामले में कुछ नहीं कर सकती थी। मैंने सोचा हो सकता है कि आगे कोई बात बने।
उस महीने पांच-छह बार पति के साथ संबंध बने, पर सभी अनुभव ऐसे ही नीरस ही रहे। सेक्स के दौरान हम दोनों ही उत्तेजित नहीं हो पाते थे।
फिर एक दिन जेठानी ने कहा- चल अब तुझे अपने पति से रगड़वाते एक महीना हो गया.. अब अपना वादा पूरा कर, तेरे जेठ को मैंने कब से रोक रखा है, अब और नहीं रोक सकती।
मैं चाहती तो जेठानी को सीधे मना कर सकती थी और वो मेरा कुछ भी नहीं कर सकती थी। पर मैं खुद सेक्स को जानना चाहती थी, एहसास करना चाहती थी। इसलिए मैंने ‘हाँ’ कह दिया। हालांकि मेरे अन्दर सेक्स उत्तेजना धीरे-धीरे घट रही थी, फिर भी मुझे सारी बातों का हल जेठानी की बातों को मान लेने में ही दिखा।
जेठानी ने कहा कि आज देवर जी बाहर जा रहे हैं.. वो रात को नहीं आएंगे, उनके भैया ने उसे दूसरे शहर भेजा है, आज रात को तुम तैयार रहना।
मैंने मजबूरी और मर्जी के मिले-जुले भाव में ‘हाँ’ में सर हिला दिया।
रात को खाना खाकर मैं जेठ-जेठानी का इंतजार करने लगी, मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था, बहुत डर भी लग रहा था। मैं भगवान को कोस रही थी कि ये गलत काम वो मुझसे क्यों करा रहा है। फिर सोचने लगी कि जो होता है, अच्छा ही होता है।
मेरा अनुमान था कि जेठानी आज मुझे जेठ के सामने परोस कर ही रहेगी, पर क्या वो खुद भी सामने रहेगी? अकेले में तो मैं एक बार जेठ के साथ कर भी लेती पर जेठानी के सामने ये सब!
तभी दरवाजे के खुलने की आवाज आई.. सामने जेठ-जेठानी आ खड़े हुए, जेठानी ने पास आकर सीधे मेरे भारी उरोजों को मसल दिया और कहा- क्यों अभी भी तैयार नहीं है?
मैंने कहा- और कैसे तैयार होते हैं?
उसने कहा- ना लिपिस्टिक, ना सेक्सी गाऊन, ना बेड में नया चादर, ना चेहरे पे खुशी.. ऐसे भी कोई सेक्स के लिए तैयार होता है क्या? पुरानी सी साड़ी ब्लाउज पहन कर मुंह लटकाए बैठी हो..! ऐसे में तो खड़ा लिंग भी सो जाएगा!
मैं प्रतिक्रिया में बिस्तर से उतर कर उनके सामने खड़ी हो गई और उसने ‘जरा देखूँ तो.. कुतिया ने अन्दर क्या तैयारी की है..’ कहते हुए एक झटके में साड़ी खींच दी और ब्लाउज भी फाड़ दिया।
अन्दर मैंने पिंक कलर की ब्रा-पेंटी का सैट पहना था, तो उसने हँस कर कहा- अय.. हय.. अन्दर से तो सेक्स के पूरे इंतजाम किए बैठी है।
अब जेठ जी ने बिना कुछ कहे मुस्कान बिखेरी और वे अपने कपड़े उतारने लगे। मैंने अनजान बनते हुए कहा- दीदी आप मेरे साथ क्या करने वाली हो?
तो जेठानी ने कहा- दिखता नहीं, तेरे ऊपर अपने खसम को चढ़वाने आई हूँ, तुझे अपनी योनि पर बहुत घमंड था ना? आज देख तेरी योनि की कैसे चटनी बनवाती हूँ।
मैं डर गई, या कहिए कि डरने का नाटक करने लगी।
तब तक जेठ जी अपने कपड़े उतार चुके थे.. उन्होंने पास आकर प्यार से मेरे बालों पर हाथ फेरा और कहा- डरो मत बहू रानी, तुम्हारी योनि में मैं बहुत आराम से लिंग डालूंगा, मैं बहुत दिनों से किसी मोटी औरत से संभोग करने के सपने देखता था, मैंने बहुतों से सेक्स किया.. पर किसी मोटी औरत की योनि में लिंग प्रवेश नहीं करा पाया। ऐसे भी तुम या मैं बाहर मुंह मारेंगे तो बदनामी तो घर की ही होगी, इसलिए जो हो रहा है, घर पर ही हो जाए तो अच्छा रहेगा। इसलिए अब तुम बिना कुछ सोचे इस संभोग का आनन्द लो।
फिर मैंने कहा- लेकिन दीदी के सामने..!
तो जेठ ने जेठानी को जाने का इशारा किया, तो जेठानी ‘ठीक है कुतिया जाती हूँ..’ कहते हुए जाने लगी.. और जाते-जाते कह गई- सुनो जी.. जल्दी आकर मेरे खेत में भी जल छिड़कना है, पूरा हैंडपंप यहीं सुखा के मत आ जाना!
उसके जाते ही जेठ जी ने मुझे आगोश में ले लिया और चुम्मा-चाटी करने लगे, वो पिये हुए थे, लेकिन तब भी मुझे उनका छूना बहुत बुरा तो नहीं लग रहा था, पर अच्छा भी नहीं लग रहा था। वो जैसा कहते रहे.. मैं करती रही, मैंने अपने मन से कुछ भी अतिरिक्त करने का प्रयास ही नहीं किया।
फिर उन्होंने अपने अंतर्वस्त्र भी निकाल फेंके, उनका लिंग 7 इंच का सीधा लंबा काला और मोटा था। लिंग में तनाव भी साफ नजर आ रहा था।
वो मुझे बिस्तर में लेट कर पैर को फैलाने बोले, मैं यंत्रवत उनकी आज्ञा का पालन करती रही। फिर वो मेरे ऊपर चढ़ कर मेरे पर्वतों को दबाने लगे, घाटियों को टटोलने लगे और अपने लिंग को मेरी योनि में लगा दिया। उसके बाद उन्होंने झटका जोर से लगा कर एक ही बार में अपना लिंग मेरी योनि की जड़ तक पहुँचा दिया। उम्म्ह… अहह… हय… याह… मुझे थोड़ा दर्द हुआ, पर मैं आराम से सह गई।
मैं कुछ देर में ही झड़ गई और वो मेरे ऊपर कूदते रहे। फिर करीब बीस मिनट बाद वो भी झड़ गए और अपने कपड़े पहन कर चले गए। मैं ऐसी ही लेटी रही, कुछ सोचते हुए.. थोड़ा रोते हुए, नींद भी आ गई।
अब दिन ऐसे ही कटते रहे.. कभी पति रौंद जाते, तो कभी जेठ बिस्तर पर पटक जाते थे, पर मैंने एक बात पर गौर किया कि पहले वो लोग मुझे हफ्ते में एक-दो बार रगड़ ही देते थे और फिर महीने में एक बार हुआ.. फिर अब तो तीन-चार महीनों में कभी-कभी भगवान की कृपा से मेरे सूखे खेत को पानी की बूंद नसीब हो जाती थी। सबसे खास बात ये थी कि मुझे खुद भी इस बीच सेक्स के लिए बहुत ज्यादा ललक नहीं रहती या और शारीरिक क्रियाओं का मन नहीं करता।
अब शादी के डेढ़ साल बीत गए और बच्चे का कोई पता नहीं था.. लोगों के कटीले ताने शुरू हो गए और साथ ही पति और घर वाले दहेज के लिए सुनाने लगे। पति तो बीच-बीच में मायके से पैसे लाने को कहने लगे, मैं पढ़ी-लिखी होकर भी सब चुप-चाप झेल रही थी क्योंकि मेरे मायके वाले हमेशा मुझे चुप रहकर समझौता करने की ही बात करते थे।
इसी बीच मैंने अपनी उदासी दूर करने के लिए अपनी बहन स्वाति को कुछ दिनों के लिए बुला लिया। उसकी छुट्टियाँ चल रही थीं, तो वह मेरे एक बुलावे पर आ गई। उसके आने से अब मुझे अच्छा लगने लगा।
स्वाति ने अभी-अभी जवानी में कदम रखा था, वो खूबसूरत चंचल लड़की जल्दी ही मेरे ससुराल वालों के साथ घुल-मिल गई।
पर स्वाति के आने से शायद मेरे पति को अच्छा नहीं लग रहा था, इसलिए उनके कहने पर मैंने स्वाति को अलग कमरे में सोने को कहा।
हमेशा की तरह एक रात मेरे पति घर नहीं आए थे, मैं अकेले ही सोई हुई थी और रात को अचानक किसी सपने या आवाज की वजह से मेरी नींद खुली और उठकर इधर-उधर देखने पर भी कुछ समझ ना आया तो फिर मैं बाथरूम चली गई।
फिर मैं जैसे ही वापस आने के लिए मुड़ी तो मुझे स्वाति के कमरे से कुछ आवाजें सुनाई दीं। मेरे कदम ठिठके और उस ओर बढ़ गए। मैं उसके कमरे के सामने पहुँच गई और जैसे ही मैंने दरवाजा खोला… मेरे पांव तले जमीन ही खिसक गई, जिसे मैं बच्ची समझ रही थी मेरी वही बहन, जिसने जवानी की दहलीज पर ठीक से कदम भी नहीं रखा था.. अपने ही जीजा जी के साथ निर्वस्त्र होकर रंगरेलियाँ मना रही है।
मेरी आँखों से आंसुओं की धार बह निकली, मैं पहले के गमों से ही पीछा नहीं छुड़ा पाई थी और अब स्वाति की इस हरकत ने मुझे अन्दर तक हिला दिया।
मुझे सामने पाते ही स्वाति ने खुद को ढकना चाहा, वहाँ से हटना चाहा.. पर मेरे पति को कोई फर्क ही नहीं पड़ा। जिनका लिंग मेरे लिए हमेशा मुरझाया हुआ रहता था.. आज उसमें जान आ गई थी।
मैं समझ गई थी कि ये सब मेरे भद्देपन के कारण ही हुआ है।
मैं बिना कुछ बोले अपने कमरे में वापस आ गई।
फिर भी मैंने दर्द का और रोने का नाटक किया, उन्हें तो किसी बात से मतलब तो था नहीं.. और वो लिंग को लगातार अन्दर बाहर करने लगे।
अब मैंने भी उसका साथ देना शुरू कर दिया था.. तीन से चार मिनट के अन्दर मैं स्खलित हो गई और पांच मिनट के अन्दर वो भी झड़ गए और उठ कर एक किनारे सो गए।
क्या सेक्स ऐसे ही होता है, फिर लोग जो सेक्स के बारे में इतनी इंस्ट्रेस्टिंग बातें कहते हैं.. वो क्या है? मैं इसी सोच में रात भर जागती रही।
अब ना ही मेरे अन्दर सेक्स की कोई ललक बची थी और ना ही उसके अन्दर ऐसी कोई बात थी कि उसके साथ सेक्स करने की चाहत मेरे अन्दर कोई भाव पैदा कर सके। मैं तो पहली बार में ही सेक्स से विमुख होने लगी थी। फिर सोचा पहली बार के कारण ऐसा हुआ हो। मुझे सेक्स का कोई अनुभव भी नहीं था, इसलिए मैं इस मामले में कुछ नहीं कर सकती थी। मैंने सोचा हो सकता है कि आगे कोई बात बने।
उस महीने पांच-छह बार पति के साथ संबंध बने, पर सभी अनुभव ऐसे ही नीरस ही रहे। सेक्स के दौरान हम दोनों ही उत्तेजित नहीं हो पाते थे।
फिर एक दिन जेठानी ने कहा- चल अब तुझे अपने पति से रगड़वाते एक महीना हो गया.. अब अपना वादा पूरा कर, तेरे जेठ को मैंने कब से रोक रखा है, अब और नहीं रोक सकती।
मैं चाहती तो जेठानी को सीधे मना कर सकती थी और वो मेरा कुछ भी नहीं कर सकती थी। पर मैं खुद सेक्स को जानना चाहती थी, एहसास करना चाहती थी। इसलिए मैंने ‘हाँ’ कह दिया। हालांकि मेरे अन्दर सेक्स उत्तेजना धीरे-धीरे घट रही थी, फिर भी मुझे सारी बातों का हल जेठानी की बातों को मान लेने में ही दिखा।
जेठानी ने कहा कि आज देवर जी बाहर जा रहे हैं.. वो रात को नहीं आएंगे, उनके भैया ने उसे दूसरे शहर भेजा है, आज रात को तुम तैयार रहना।
मैंने मजबूरी और मर्जी के मिले-जुले भाव में ‘हाँ’ में सर हिला दिया।
रात को खाना खाकर मैं जेठ-जेठानी का इंतजार करने लगी, मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था, बहुत डर भी लग रहा था। मैं भगवान को कोस रही थी कि ये गलत काम वो मुझसे क्यों करा रहा है। फिर सोचने लगी कि जो होता है, अच्छा ही होता है।
मेरा अनुमान था कि जेठानी आज मुझे जेठ के सामने परोस कर ही रहेगी, पर क्या वो खुद भी सामने रहेगी? अकेले में तो मैं एक बार जेठ के साथ कर भी लेती पर जेठानी के सामने ये सब!
तभी दरवाजे के खुलने की आवाज आई.. सामने जेठ-जेठानी आ खड़े हुए, जेठानी ने पास आकर सीधे मेरे भारी उरोजों को मसल दिया और कहा- क्यों अभी भी तैयार नहीं है?
मैंने कहा- और कैसे तैयार होते हैं?
उसने कहा- ना लिपिस्टिक, ना सेक्सी गाऊन, ना बेड में नया चादर, ना चेहरे पे खुशी.. ऐसे भी कोई सेक्स के लिए तैयार होता है क्या? पुरानी सी साड़ी ब्लाउज पहन कर मुंह लटकाए बैठी हो..! ऐसे में तो खड़ा लिंग भी सो जाएगा!
मैं प्रतिक्रिया में बिस्तर से उतर कर उनके सामने खड़ी हो गई और उसने ‘जरा देखूँ तो.. कुतिया ने अन्दर क्या तैयारी की है..’ कहते हुए एक झटके में साड़ी खींच दी और ब्लाउज भी फाड़ दिया।
अन्दर मैंने पिंक कलर की ब्रा-पेंटी का सैट पहना था, तो उसने हँस कर कहा- अय.. हय.. अन्दर से तो सेक्स के पूरे इंतजाम किए बैठी है।
अब जेठ जी ने बिना कुछ कहे मुस्कान बिखेरी और वे अपने कपड़े उतारने लगे। मैंने अनजान बनते हुए कहा- दीदी आप मेरे साथ क्या करने वाली हो?
तो जेठानी ने कहा- दिखता नहीं, तेरे ऊपर अपने खसम को चढ़वाने आई हूँ, तुझे अपनी योनि पर बहुत घमंड था ना? आज देख तेरी योनि की कैसे चटनी बनवाती हूँ।
मैं डर गई, या कहिए कि डरने का नाटक करने लगी।
तब तक जेठ जी अपने कपड़े उतार चुके थे.. उन्होंने पास आकर प्यार से मेरे बालों पर हाथ फेरा और कहा- डरो मत बहू रानी, तुम्हारी योनि में मैं बहुत आराम से लिंग डालूंगा, मैं बहुत दिनों से किसी मोटी औरत से संभोग करने के सपने देखता था, मैंने बहुतों से सेक्स किया.. पर किसी मोटी औरत की योनि में लिंग प्रवेश नहीं करा पाया। ऐसे भी तुम या मैं बाहर मुंह मारेंगे तो बदनामी तो घर की ही होगी, इसलिए जो हो रहा है, घर पर ही हो जाए तो अच्छा रहेगा। इसलिए अब तुम बिना कुछ सोचे इस संभोग का आनन्द लो।
फिर मैंने कहा- लेकिन दीदी के सामने..!
तो जेठ ने जेठानी को जाने का इशारा किया, तो जेठानी ‘ठीक है कुतिया जाती हूँ..’ कहते हुए जाने लगी.. और जाते-जाते कह गई- सुनो जी.. जल्दी आकर मेरे खेत में भी जल छिड़कना है, पूरा हैंडपंप यहीं सुखा के मत आ जाना!
उसके जाते ही जेठ जी ने मुझे आगोश में ले लिया और चुम्मा-चाटी करने लगे, वो पिये हुए थे, लेकिन तब भी मुझे उनका छूना बहुत बुरा तो नहीं लग रहा था, पर अच्छा भी नहीं लग रहा था। वो जैसा कहते रहे.. मैं करती रही, मैंने अपने मन से कुछ भी अतिरिक्त करने का प्रयास ही नहीं किया।
फिर उन्होंने अपने अंतर्वस्त्र भी निकाल फेंके, उनका लिंग 7 इंच का सीधा लंबा काला और मोटा था। लिंग में तनाव भी साफ नजर आ रहा था।
वो मुझे बिस्तर में लेट कर पैर को फैलाने बोले, मैं यंत्रवत उनकी आज्ञा का पालन करती रही। फिर वो मेरे ऊपर चढ़ कर मेरे पर्वतों को दबाने लगे, घाटियों को टटोलने लगे और अपने लिंग को मेरी योनि में लगा दिया। उसके बाद उन्होंने झटका जोर से लगा कर एक ही बार में अपना लिंग मेरी योनि की जड़ तक पहुँचा दिया। उम्म्ह… अहह… हय… याह… मुझे थोड़ा दर्द हुआ, पर मैं आराम से सह गई।
मैं कुछ देर में ही झड़ गई और वो मेरे ऊपर कूदते रहे। फिर करीब बीस मिनट बाद वो भी झड़ गए और अपने कपड़े पहन कर चले गए। मैं ऐसी ही लेटी रही, कुछ सोचते हुए.. थोड़ा रोते हुए, नींद भी आ गई।
अब दिन ऐसे ही कटते रहे.. कभी पति रौंद जाते, तो कभी जेठ बिस्तर पर पटक जाते थे, पर मैंने एक बात पर गौर किया कि पहले वो लोग मुझे हफ्ते में एक-दो बार रगड़ ही देते थे और फिर महीने में एक बार हुआ.. फिर अब तो तीन-चार महीनों में कभी-कभी भगवान की कृपा से मेरे सूखे खेत को पानी की बूंद नसीब हो जाती थी। सबसे खास बात ये थी कि मुझे खुद भी इस बीच सेक्स के लिए बहुत ज्यादा ललक नहीं रहती या और शारीरिक क्रियाओं का मन नहीं करता।
अब शादी के डेढ़ साल बीत गए और बच्चे का कोई पता नहीं था.. लोगों के कटीले ताने शुरू हो गए और साथ ही पति और घर वाले दहेज के लिए सुनाने लगे। पति तो बीच-बीच में मायके से पैसे लाने को कहने लगे, मैं पढ़ी-लिखी होकर भी सब चुप-चाप झेल रही थी क्योंकि मेरे मायके वाले हमेशा मुझे चुप रहकर समझौता करने की ही बात करते थे।
इसी बीच मैंने अपनी उदासी दूर करने के लिए अपनी बहन स्वाति को कुछ दिनों के लिए बुला लिया। उसकी छुट्टियाँ चल रही थीं, तो वह मेरे एक बुलावे पर आ गई। उसके आने से अब मुझे अच्छा लगने लगा।
स्वाति ने अभी-अभी जवानी में कदम रखा था, वो खूबसूरत चंचल लड़की जल्दी ही मेरे ससुराल वालों के साथ घुल-मिल गई।
पर स्वाति के आने से शायद मेरे पति को अच्छा नहीं लग रहा था, इसलिए उनके कहने पर मैंने स्वाति को अलग कमरे में सोने को कहा।
हमेशा की तरह एक रात मेरे पति घर नहीं आए थे, मैं अकेले ही सोई हुई थी और रात को अचानक किसी सपने या आवाज की वजह से मेरी नींद खुली और उठकर इधर-उधर देखने पर भी कुछ समझ ना आया तो फिर मैं बाथरूम चली गई।
फिर मैं जैसे ही वापस आने के लिए मुड़ी तो मुझे स्वाति के कमरे से कुछ आवाजें सुनाई दीं। मेरे कदम ठिठके और उस ओर बढ़ गए। मैं उसके कमरे के सामने पहुँच गई और जैसे ही मैंने दरवाजा खोला… मेरे पांव तले जमीन ही खिसक गई, जिसे मैं बच्ची समझ रही थी मेरी वही बहन, जिसने जवानी की दहलीज पर ठीक से कदम भी नहीं रखा था.. अपने ही जीजा जी के साथ निर्वस्त्र होकर रंगरेलियाँ मना रही है।
मेरी आँखों से आंसुओं की धार बह निकली, मैं पहले के गमों से ही पीछा नहीं छुड़ा पाई थी और अब स्वाति की इस हरकत ने मुझे अन्दर तक हिला दिया।
मुझे सामने पाते ही स्वाति ने खुद को ढकना चाहा, वहाँ से हटना चाहा.. पर मेरे पति को कोई फर्क ही नहीं पड़ा। जिनका लिंग मेरे लिए हमेशा मुरझाया हुआ रहता था.. आज उसमें जान आ गई थी।
मैं समझ गई थी कि ये सब मेरे भद्देपन के कारण ही हुआ है।
मैं बिना कुछ बोले अपने कमरे में वापस आ गई।
मकसद running.....जिंदगी के रंग अपनों के संग running..... मैं अपने परिवार का दीवाना running.....
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