बदलते मौसम

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Rohit Kapoor
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बदलते मौसम

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बदलते मौसम

दोस्तो इस कहानी को देव ने लिखा है इसलिए इस कहानी का क्रेडिट इस कहानी के लेखक को ही मिलना चाहिए . मैं इस कहानी को इस फोरम पर पोस्ट कर रहा हूँ
मौसम, हम सब की ज़िंदगी में कितने ही मौसम आते है कभी सुख कभी दुःख ,कभी कोई ख़ुशी घनघोर बारिश की तरह मन को तर कर जाती है तो कभी कुछ गहरे दुःख जेठ की तपती दुपहरी सी जला जाती है पर ज़िन्दगी ऐसी ही होती है कभी नर्म तो कभी गर्म

चौपाल के इकलौते बरगद के पेड़ के नीचे बैठा मैं गहरी सोच में डूबा हुआ था ,मेरी जेब में कुछ दिन पहले आया खत था जिसमे लिखा था की ताऊजी आज पूरे दो महीने की छुट्टी आ रहे है और यही शायद मेरी परेशानियों का सबब था

ताऊजी, चौधरी तेज सिंह फौज में सूबेदार है गांव बस्ती में भी खूब सम्मान प्राप्त कोमल ह्रदय सबको साथ लेके चलने वाले इंसान, हसमुख और मिलनसार पर उस चेहरे की असलियत सिर्फ मैं और ताईजी ही जानते थे ,मैंने अपनी कलाई में बंधी घडी पर नजर डाली अभी ट्रैन आने में घंटे भर का समय था

मैंने अपनी साइकिल ली और धीमे धीमे पैडल मारते हुए स्टेशन की तरफ चल दिया जो करीब 5 कोस दूर था वैसे तो सांझ ढालने को ही थी पर गर्मी झुलसती दोपहरी की ही तरह थी पसीने और गर्म हवा से जूझते हुए मेरी मंजिल स्टेशन ही था

पर हाय रे फूटी किस्मत , आधे रस्ते से कुछ आगे साइकिल पंक्चर हो गयी ,सुनसान सड़क पर अब ये नयी मुसीबत पर समय से मेरा पहुचना जरुरी था क्योंकि ताऊजी को लेट लतीफी पसंद नहीं थी मैं पैदल ही साइकिल को घसीटते हुए जाने लगा

पहुचते ही मैंने रेल का पता किया तो मालूम हुआ आज रेल करीब पौन घंटे पहले ही आ गयी थी ,मैंने अपना माथा पीट लिया पर इन चीज़ों पर मेरा जोर कहा चलता था, साइकिल ठीक कार्रवाई और वापिस मुड़ लिया मन थोड़ा घबरा रहा था ताऊजी के गुस्से को मैं जानता था पर घर तो जाना ही था

जब मैं घर आया तो सांझ पूरी तरह ढल चुकी थी ताईजी रसोई में थी घर में जाना पहचाना सन्नाटा छाया हुआ था

ताई- सलाद रख आ बैठक में

मैं समझ गया ताऊजी आ चुके है और शायद आते ही पीने का कार्यक्रम चालू कर दिया है ,मैंने प्लेट ली और बैठक में गया तो देखा ताऊजी आधी बोतल ख़त्म कर चुके है मैंने प्लेट मेज पर रखी और ताऊजी के पैरों को हाथ लगाया ही था

की मेरी पीठ पर उनका हाथ पड़ा और फिर एक थप्पड़ गाल पर "हरामजादे, कहा मर गया था तू स्टेशन क्यों नहीं आया "

मैं- जी वो साइकिल ख़राब हो गयी थी इसलिए देर से पंहुचा और रेल भी पहले आ गयी थी

ताऊ- चल दिखा साइकिल

वो मुझे बाहर ले आया

ताऊ- सही तो है ये

मैं- जी पंक्चर लगवा लिया था

ताऊ- झूठ बोलता है कही आवारगी कर रहा होगा तू , वैसे भी तुझे क्या परवाह मेरी

मैं- जी ऐसी बात नहीं है वो सच में ही

आगे की बात मेरी अधूरी रह गयी नशे में चूर ताऊ ने पास पड़ा डंडा लिया और मारने लगा मुझे कुछ गालिया बकता रहा और मैं किसी बुत की तरह शांत मार खाता रहा इन लोगो के सिवा इस दुनिया में और कौन था मेरा बस यही सोच कर सब सह लेता था

अपने दर्द से जूझते हुए मैं आँगन में ही बैठ गया अब दो महीने तक इस घर में ये सब ही चलना था दिन में शरीफ ताऊजी रात होते ही शराब के नशे में हैवान बन जाते थे धीरे धीरे घर में बत्तियां बुझ गयी पर मैं वही बैठा सोचता रहा

अपने बारे में, इस ज़िन्दगी के बारे में ऐसा नहीं था की मैं इन लोगो पर कोई बोझ था बिलकुल नहीं पर माँ बाप की एक हादसे में मौत के बाद मैंने भी मान लिया और फिर इनके अलावा कौन था मेरा पर कभी कभी इन ज़ख्मो से दर्द चीख कर पूछता था की आखिर क्या खता है क्यों सहता है ये सब

और मेरे पास कोई जवाब नहीं होता था ,खैर रात थी कट गयी सुबह ही मैं खेतो पर आ गया था बारिश की आस थी ताकि बाजरे की बुवाई कर सकू खेती की ज्यादातर जमीन आधे हिस्से में दी हुई थी कुछ पर मैं कर लिया करता था

आज दोपहर से ज्यादा समय हो गया था भूख सी भी लग रही थी पर ताईजी आज खाना लेकर नहीं आयी थी बार बार मेरी आँखे रस्ते को निहारती की अब आये अब आये पर आज शायद देर हो गयी थी

"क्या हुआ देव, बार बार आज निगाहे सेर की तरफ हो रही है " बिंदिया ने मेरी तरफ आते हुए कहा

बिंदिया और उसका पति हमारे खेतो पर ही काम करते थे बिंदिया कोई 27-28 साल की होगी पर स्वभाव से मसखरी सी थी

मैं- कुछ नहीं वो ताईजी आज खाना लेकर न आयी बस बाट देख रहा था

बिंदिया- कुछ काम पड़ गया होगा वैसे तू चाहे तो मेरे साथ दो निवाले खा ले

मैं- ना ,ताईजी आती ही होंगी

बिंदिया- देव, रोटी में जात पात न होती वो पेट भरती है बस चाहे तेरी हो या मेरी

मैं- अब इसमें ये बात कहा से आ गयी ,चल ला दे रोटी पर मैं भरपेट खाऊंगा क्योंकि कल का भूखा हु

बिंदिया- खा ले,

बिंदिया ने अपनी पोटली खोली और खाना निकाला रोटी और चटनी थी लाल मिर्चो की पर भूख जोरो की लगी थी तो जायकेदार लगी मैं खाता गया कुछ बाते करता गया उससे और तभी ताईजी आ गयी ताईजी ने कुछ अजीब नजरो से बिंदिया को देखा

ताईजी-बिंदिया खेतो के दूसरी तरफ पानी छोड़ जाके
जैसे ही बिंदिया गयी ताईजी मेरी तरफ मुखातिब हुई और बोली- देव, कितनी बार मैंने कहा है बिंदिया से दूर रहा कर और मैं खाना ला तो रही थी आज थोड़ी देर हो गयी तो

मैं- ताईजी मैं उसे मना नहीं कर पाया

ताई- मैं सब समझती हूं उसका तो काम है बस लोगो को अपने झांसे में लेना ये तो मेरा बस नहीं चलता वरना कब का उसे निकाल चुकी होती यहाँ से खैर तू खाना खा ले

ताईजी पंप हाउस की तरफ चल गयी और मैं खाना खाते हुए ये सोच रहा था की ताईजी को बिंदिया से क्या दिक्कत है

मैंने अपना खाना खाया और फिर पंप हाउस की तरफ चल दिया ये सोचते हुए की कुछ देर सुस्ता लूंगा ताईजी वहाँ पर चाबी पाना लिए एक मोटर को खोलने की कोशिश कर रही थी

मैं- इसे क्या हुआ

ताई- जल गयी है , इसे ठीक करवाना होगा

मैं- आप रहने दो मैं थोड़ी देर में खोल दूंगा

ताई- तू बैठ मैं खोलती हु

मैं पास ही चारपाई पे बैठ गया और ताई मोटर से जोर आजमाइश करने लगी पर मोटर पुरानी थी बोल्ट जाम थे तो इसी कोशिश में ताई की कोहनी ऊपर रखे मोबिल के डिब्बे से टकराई और ढेर सारा मोबिल उनकी साडी पे आ गिरा

ताई- ओह्ह ये क्या हुआ ,क्या है ये

मै - ताईजी मोबिल गिर गया एक मिनट रुको

मैं एक पानी की बाल्टी लाया

मैं- जल्दी से इसे साफ़ कर लो

ताई- ये तो साबुन से ही साफ होगा कमबख्त एक से एक मुसीबत सर पर खड़ी रहती है

मैं- कोई बात नहीं साबुन लाता हु आप अभी साड़ी धो दो थोड़ी देर में सूख जायेगी

ताई- अब ये ही करना पड़ेगा वर्ना ऐसे में घर कैसे जाउंगी
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Rohit Kapoor
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मैंने साबुन लाके दिया ताई शायद साड़ी मेरे सामने उतारने में थोड़ा असहज महसूस कर रही थी ये बात थोड़ी देर में मुझे समझ आयी

मैं- आप आराम से इसे धो लो मैं तब तक खेत का चक्कर लगाके आता हूं

ताई-नहीं पूरा दिन हाड़ तोड़ मेहनत करता है तू थोड़ी देर आराम कर ले मैं धो लेती हु वैसे भी तू मेरा बेटा ही तो है

ताई ने मुस्कुराते हुए कहा ,मैं लेट गया ताई ने साड़ी उतारी,
आज पहली बार मैंने ताईजी को पेटीकोट और ब्लाउज़ में देखा था बस देखता ही रह गया गोरा रंग कसा हुआ ब्लाउज़ और थोड़ा सा फुला हुआ पेट पर मैंने तुरन्त ही नजरे हटा ली

मैंने आँखे बंद कर ली और सोने की कोशिश करने लगा कुछ देर बीती पर नींद न आयी तो मैं उठ बैठा देखा ताई की पीठ मेरी तरफ थी और वो अपने काम में लगी हुई थी पर एक बार फिर मेरी निगाह उनके नितंबो पर जा टिकी

मैंने अपने सर को झटका और सोचा की ये मैं क्या देख रहा हु ऐसे देखना शोभा नहीं देता और मैंने सोचा चलता हूं यहाँ से

मैं- ताईजी मैं जरा दूसरी तरफ होकर आता हूं

ताई ने सर हिलाया और मैं पंप हाउस से उस तरफ आ गया जहाँ बिंदिया काम कर रही थी

मैं- बिंदिया, दीनू ना दिख रहा

बिंदिया- चौधरी साहब के काम से शहर गया है कल तक लौटेगा

मैं- क्या काम

बिंदिया- पता नहीं

मैं- तो रात को अकेली रहेगी तू

बिंदिया- मुझे क्या डर है अकेले में ,सोना ही तो है बस आँख मींची और हुआ सवेरा

मैं- तू कहे तो मैं पंप हाउस पे रुक जाऊ

मैं खुद घर से दूर रहने का बहाना तलाश रहा था क्योंकि रात को ताऊजी फिर क्लेश करते और फिर जी दुखी होता

बिंदिया- देव, तुम्हे मेरी फ़िक्र हुई मैं शुक्रिया करती हूं पर तुम मेरे बारे में इतना मत सोचो मालकिन को मालूम हुआ तो मुझे फिर कड़वी बाते सुनना पड़ेगी

मैं- जब कभी पानी देना होता है रातो में तब भी तो यहाँ रुकता हु न और सच कहूं तो घर पे ताऊजी की वजह से मैं जाना नहीं चाहता

बिंदिया- देव, वैसे तो छोटा मुह बड़ी बात पर मैं नहीं चाहती की तुम यहाँ रुको

मैं- कोई बात नहीं बिंदिया मैं तो ऐसे ही बोल रहा था

फिर सांझ ढलने तक मैंने खेत में काम किया ताईजी घर जा चुकी थी मुझे भी अब घर ही जाना था पर मन नहीं था तो मैं ऐसे ही घूमने निकल गया ,घूमते घूमते मैं नहर के आगे जंगल की तरफ निकल गया

एक जगह बैठ कर मैं ऐसे ही सोच रहा था की मुझे पंप हाउस वाली बात याद आयी पेटीकोट और ब्लाउज़ में ताईजी को ऐसे देखना कुछ रोमांचक सा लग रहा था पर कुछ ग्लानि सी भी हो रही थी की जो मेरा पालन पोषण करती है उसके बारे में ऐसे सोचना

पर बार बार मेरे मन के दरवाजे पर वो द्रश्य ही दस्तक दे रहा था ,हल्का हल्का सा अँधेरा होने लगा था पर मुझे कहा कोई जल्दी थी जब भी अकेला होता तो मैं अपने बारे में सोचता, आगे मेरा क्या होगा जीवन में मुझे क्या करना है,सोचते हुए मैं घास पर लेट गया और कब आँख लग गयी कौन जाने

पर जब नींद टूटी तो चारो तरफ घुप्प अँधेरा था कुछ कुछ जानवरो की आवाजें आ रही थी कुछ देर तो समझ ही न आया की मैं कहा हु पर जल्दी ही दिमाग काबू में आया और मै थोड़ा सा डर भी गया की जंगल में अकेला हु ,अँधेरे की वजह से घडी में टाइम भी न देख सका

पर वापिस तो जाना था ही तो की हिम्मत और कुछ सोच के खेतों की तरफ हो लिया ,दूर से ही मुझे बिंदिया के कमरे में रौशनी दिख गयी इतनी रात तक जाग रही है ये सोचके कुछ कोतुहल सा हुआ मुझे

मैंने सोचा कही उसे डर तो नहीं लग रहा होगा ,एक काम करता हु उसके कमरे के पास से होकर निकलता हु तो तसल्ली हो जायेगी ,धीरे धीरे पगडण्डी पर चलते हुए मैं उसके कमरे की तरफ बढ़ने लगा ,पर फिर सोचा की इतनी रात को ठीक नहीं
मैं पंप हाउस की तरफ बढ़ गया पर तभी मुझे एक हँसी सुनाई दी तो कान खड़े हो गए यक़ीनन ये बिंदिया की ही आवाज थी पर इतनी रात को ,मैं धीमे कदमो से दरवाजे के पास गया और अपने कान लगा दिए

और जल्दी ही मैं समझ गया की अंदर बिंदिया अकेली तो बिलकुल नहीं है , पर कौन है उसके साथ क्योंकि दीनू तो शहर गया हुआ है, अब ये तो पता करना ही होगा, मैं पीछे की तरफ गया तो देखा खिड़की खुली पड़ी है

मैंने अंदर झाँक के देखा तो बिंदिया की पीठ मेरी तरफ थी और वो, और वो एक दम नंगी थी एक पल उसको ऐसे देख कर मैं चौंक गया पर अभी तो झटका लगना और बाकी था, जैसे ही वो साइड में हुई अंदर मौजूद इंसान को देख कर मेरे होश उड़ गए ,,

मैंने अंदर झाँक के देखा तो बिंदिया की पीठ मेरी तरफ थी और वो, और वो एक दम नंगी थी एक पल उसको ऐसे देख कर मैं चौंक गया पर अभी तो झटका लगना और बाकी था, जैसे ही वो साइड में हुई अंदर मौजूद इंसान को देख कर मेरे होश उड़ गए ,,,,,,,,

ताऊजी और बिंदिया दोनों नंगे थे ताऊ ने बिंदिया को खींच कर अपनी गोदी में बिठा लिया और उसके सुर्ख होंठो का रसपान करने लगे साथ ही अपने दोनों हाथों से उसके नितंबो को भी दबा रहे थे पल भर में ही मेरे दिमाग का चौंकना कम होकर बस अब आँखों के सामने जो हाहाकारी दृश्य चल रहा था उस पर केंद्रित हो गया

दोनों एक दूसरे के बदन को चूम रहे थे सहला रहे थे और फिर ताऊ ने बिंदिया को बिस्तर पर पटक दिया बिंदिया ने अपनी जांघो को फैलाया और ज़िन्दगीइ पहली बार मैंने चूत के दर्शन किये काले काले बालो से ढकी हुई गहरे लाल रंग की ,मेरी आँखे फ़टी की फटी रह गयी

ताऊ ने अपने मुह को उसकी टांगो के बीच घुसा लिया और उसकी चूत को चाटने लगा,मुझे बहुत अजीब लगा कैसे कोई मूतने की जगह पर जीभ चला सकता है पर मेरे भ्र्म को बिंदिया की मस्ती भरी आवाज ने पल भर में तोड़ दिया

ऐसा प्रतीत हो रहा था कि ताऊ की इस हरकत से उसे बहुत अच्छा लग रहा था और वो बार बार हस्ते मुस्कुराते हुए अपने कूल्हों को ऊपर नीचे कर रही थी, आँखों के सामने चल रहे इस दृश्य को देख कर मेरे कान भी गर्म होने लगे थे बदन तपने लगा था

और मैंने भी अपने लण्ड में सख्ती महसूस की मेरा हाथ अपने आप मेंरे औज़ार पे पहुच गया तभी ताऊ ने बिंदिया को खड़ी किया और खुद लेट गया बिंदिया ने अपनी चूत पर थूक लगाया और ताऊ के लण्ड पर बैठ कर कूदने लगी
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Re: बदलते मौसम

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मैं बड़े गौर से पूरे दृश्य को देख रहा था और तभी बिंदिया की नजर खिड़की पर पड़ी वो बुरी तरह चौंक गयी मुझे देखकर पर मैं तुरंत ही वहां से भाग लिया और सीधा पंप हाउस आकर रुका, मेरी चिंता ये नहीं थी की उसने मुझे देख लिया बल्कि ये थी की अगर ताऊ को मालूम हुआ तो मेरी पिटाई तय थी

पर साथ ही मेरे मन में हज़ारों सवाल खड़े हो गए थे जैसे बिंदिया ताऊ से क्यों चुद रही थी और ताऊ जिसकी खुद इतनी सुंदर पत्नी थी आँखों के आगे बार बार वो चुदाई के लम्हे आ रहे थे और मैं खुद भी उत्तेजित महसूस कर रहा था

तभी मेरे मन में ख्याल आया की कही इसी वजह से तो ताईजी बिंदिया को पसंद नहीं करती अवश्य ही उनको मालूम होंगा ताऊ के इस अवैध संबंध का , बस यही सब बातें सोचते सोचते कब मैं सो गया पता नहीं पर अगला दिन शायद कुछ अलग होने वाला था
खेत में ही नहा धोकर जैसे ही मैं घर पंहुचा ठीक तभी बाथरूम से नहा कर ताईजी बाहर निकली पूरा बदन बूंदो में लिपटा हुआ बदन पर ब्रा और बस एक हलकी सी साड़ी और मुझे पक्का यकीन था की नीचे पेटीकोट बिलकुल नहीं था

जैसे ही हम दोनों की नजर मिली ताई बुरी तरह से शर्मा गयी और लगभग भागते हुए अपने कमरे में चली गई मेरी निगाह उसकी अधनंगी पीठ और थिरक्ते नितंबो के बीच फंस कर रह गयी कुछ रात वाली घटना का असर कुछ ताई का ये रूप एक बार फिर से मेरा बदन तपने लगा

खैर कुछ देर बाद नाश्ता पानी हुआ फिर ताऊ मुझे कपड़ो की दूकान पे ले गया कुछ कपडे दिलवाये और दर्ज़ी के वहा से होते हुए हम घर आ रहे थे की उनको कोई मिल गया और मैं अकेला ही घर आ गया मैंने देखा ताई बरामदे में बैठी अपने पैरों में नेल पॉलिश लगा रही थी

साड़ी कुछ पिंडियों से ऊपर थी तो मेरी नजर उनके पैरों पर रुक सी गयी गोरे पैरो पर काले रेशमी बाल बहुत सुंदर लग रहे थे पर इससे पहले के ताई मेरी चोर नजरो को पकडे मैं अपने कमरे में आ गया और सुस्ताते हुए बस ताई के बारे में सोचने लगा

मेरी ताई का नाम गीता था उम्र होगी 38 के आस पास रंग गोरा और बदन तो पूछो ही मत ब्लाउज़ से आधी झांकती चूचिया थोड़ी सी मोटी कमर पेट कुछ फुला सा और कुछ चौड़े नितम्ब अक्सर घरेलु कामो में व्यस्त रहती थी तो शरीर पे रौनक थी

मैं खुद हैरान था कि मात्र दो दिन में कैसे पूजनीय ताई के प्रति मेरे विचार आदर भाव से हटकर कामुकता की और चले गए थे ,ताई को मैं सदा माँ सामान मानता था और अब मैं उसके बदन की एक नयी मूरत अपने मन में गढ़ रहा था

शाम तक मैं घर पर ही रहा पर जैसे ही देखा ताऊ ने बोतल खोल ली है मैं खेतो पर आ गया वहाँ आके देखा दीनू लौट आया था और मोटर चला के नाहा रहा था

मैं- आ गया भाई

दीनू- हां भाई बस थोड़ी देर पहले आया हु

मैं- बढ़िया ,

दीनू- चाय पिओगे

मैं- हां

तो दीनू के नहाने के बाद हमदोनो उसके कमरे में आ गए बिंदिया एक पल मुझे देख कर चौंक गयी पर अगले ही पल वो सम्भल गयी दीनू के कहे अनुसार उसने चाय बनाई और दीनू शहर की बाते बताने लगा

मैं बिंदिया के चेहरे पर आये भाव समझने की कोशिश कर रहा था पर कामयाबी न मिली चाय ख़तम करके मैं कुछ देर इधर उधर चक्कर लगाया और फिर आके सो गया वैसे तो दिन में भी एक दो घंटे सोया था पर नींद जल्दी ही आ गयी

रात के कितने बजे थे की कुछ हलचल से मेरी आँख खुल गयी तो मैंने देखा की एक साया मेरी तरफ आ रहा है मैंने टोर्च जलाई और दूसरे हाथ में लट्ठ लेके टोर्च उसकी तरफ की ही थी की ।।।।

रात के कितने बजे थे की कुछ हलचल से मेरी आँख खुल गयी तो मैंने देखा की एक साया मेरी तरफ आ रहा है मैंने टोर्च जलाई और दूसरे हाथ में लट्ठ लेके टोर्च उसकी तरफ की ही थी की ।।।।

की तभी टोर्च की रौशनी उस साये की आँखों में पड़ी और उसकी आँखे चुंधिया गयी ,उसके कदम लड़खड़ाये और वो मुझे लिए लिए ही जमींन पर गिर गया धम्म से गिरते ही मुझे तेज दर्द हुआ

मैं- कौन है रे आह मार दिया

मैंने गुस्से से उसे परे धकेला और खड़ा हो ही रहा था की उसकी चादर हट गयी और मैंने देखा ये तो एक लड़की थी, एक लड़की रात के इस वक़्त वो भी इस हाल में मेरे खेत में मेरे दिमाग की तो बत्ती ही बुझ गयी एक बार तो विस्वास ही न हुआ
पर हकीकत आँखों के सामने थी एक बीस बाइस साल की युवती के रूप में ,टोर्च की रौशनी में मैंने उसको देखा,अपने चेहरे पर आयी बालो की लट को सरकाते हुए वो अभी भी मेरी तरफ देख रही थी

वो- टोर्च बंद करो जल्दी

मैंने बंद की, और पूछा - कौन हो तुम

पर वो बस मुझे देखती रही कुछ बोली नहीं

मैंने फिर पूछा- कौन हो तुम

वो- पानी मिलेगा थोड़ा

मैंने एक नजर उसे देखा फिर अपनी चारपाई के पास रखी हांडी से एक गिलास भरके उसे दिया कुछ घूंट भरे उसने फिर बोली- मेरा नाम गौरी है

मैं- इतनी रात को यहाँ , और इतना हांफ क्यों रही हो तुम

गौरी- वो मेरे पीछे, मेरे पीछे जंगली कुत्ते पड़े थे

मैं- जंगली कुत्ते सरहदी इलाके में है वो इधर कभी नहीं आते और चलो आ भी गए तो भी मैंने बस तुम्हे देखा उन्हे नहीं ना कोई आवाज कही तुम कोई चोर तो नहीं

गौरी- तुम्हे मैं चोर नजर आती हु

मैं- साहूकार इतनी रात को नहीं मिला करते

गौरी- मैंने कहा न चोर नहीं हूं

मैं- तो इतनी रात को कैसे किसलिए भटक रही है ये तो बता दे

गौरी- मैं चौधरी अजीत सिंह की छोरी हु,

वो नाम सुनते ही मैं हिल गया मैं कभी खुद को तो कभी उसको देखता अजीत सिंह गांव के सरपंच थे और बड़े ही नीच किस्म के इंसान थे , मक्कारी में उनका कोई सानी न था शायद ही कोई काण्ड बचा हो जो उसने किया न हो

मैं- चौधरी साहब की छोरी इस वक़्त मेरे खेत में, एक काम कर तू अभी के अभी निकल

मेरी टेंशन अचानक बढ़ गयी ये भागती हुई आयी थी यहाँ मतलब कुछ गड़बड़ और ऊपर से रात का समय

मैं- सुना नहीं तू अभी जा मेरे खेत से

गौरी- मेरे पैर में लग गयी, चला न जा रहा मुझसे

उसने रोनी सी सूरत बना के कहा

मैं- क्या मुसीबत है चाहे कुछ भी हो तू जा बस

गौरी- जरा मुझे खड़ा तो कर

उसने अपना हाथ आगे किया मैंने उसे सहारा दिया वो जमींन से उठ के चारपाई पे बैठ गयी और बोली- घुटने में लग गयी है बड़ा दर्द हो रहा है

मैं- मरहम लगा लेना अपने घर जाके

गौरी- हमेशा ऐसा रुखा बोलता है क्या तू

मैं- ना, पर खैर जाने दे

गौरी- नाम क्या है तेरा

मैं- क्यों अपने बापू को बताएगी क्या तू रहने दे नाम को

गौरी- अच्छा अब समझी तू एकदम से मुझे यहाँ से जाने को क्यों बोल रहा खैर, मैं जा ही रही हु पर सुन मैं अपने बापू सी बिलकुल नहीं हूं और दूसरी बात मैं कोई चोर न हु वो तो किस्मत ख़राब थी जो कुत्ते लग गए और तुझसे पाला पड़ गया
गौरी उठी और लड़खड़ाते हुए दूसरी तरफ जाने लगी पर लग रहा था की उसको चोट ज्यादा लगी थी कुछ सोचकर मैंने आवाज दी


"रुक, मैं साथ चलता हूं आगे तक"

उसने कुछ भी नहीं कहा मैंने अपना लट्ठ उसे दिया सहारे के लिए और टोर्च लेके उसके साथ साथ चलने लगा

मैं- इतनी रात को बाहर घूम रही है डर न लगे

गौरी- जानता है किसकी बेटी हु,मुझे किसका डर

मैं- घमण्ड बहुत है तुझे,पर मान ले इस रात के अकेले में खुदा न खस्ता कोई मुसीबत आ जाये तो क्या हो सोचा तूने

गौरी- वो मेरी परेशानी तुझे क्या है

मैं- ना बस ऐसे ही पूछ रहा था

गौरी- इतनी कमजोर भी ना समझ लियो आत्म रक्षा के गुर सीखे है मैंने

मैं- तभी कुत्तो से डर के भाग रही थी

उसने कुछ गुस्से से देखा मुझे और बोली- आदमियो की बात कर रही थी मैं

मैं- गुस्सा क्यों होती है

वो- तू खेत में क्यों सो रहा था अब क्या फसल का मौसम है

मैं- बस यु ही

गौरी- चल बस गाँव आ गया है आगे मैं चली जाउंगी

मैं- तेरी मर्ज़ी

गौरी को वही से विदा किया और आके सो गया ये सोचते सोचते की रात को ये किसलिए भटक रही होगी जरूर कोई प्रेम प्रसंग का मामला होगा , तभी इतना रिस्क लिया जा सकता है अब बड़े घर की बेटी नखरे देख कर बिगड़ैल सी ही लगी मुझे
सुबह जब जागा तो बिंदिया चारपाई के पास ही खड़ी थी

मैं- तू सुबह सुबह

बिंदिया- चाय लाइ थी

मैं- ला

मैंने उसके हाथ से कप लिया पर वो वही खड़ी रही तो थोड़ी मुश्किल सी हो गयी उस रात उसने मुझे देख लिया था तो हम दोनों ही कुछ बोल न पा रहे थे

पर अचानक वो बोली- देव उस रात

मैं- वो तेरा मामला है बिंदिया ,तेरी निजी जिंदगी है तू जैसे चाहे जी पर गलती मेरी है मुझे ऐसे टांक झाँक नहीं करनी थी

बिंदिया- मेरी बात सुन तो सही

मैं- उस रात के अलावा कुछ कहना है तुझे
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बिंदिया कुछ कहना चाहती थी पर तभी हमने ताऊ को आते देखा मैं चारपाई से उठ गया

ताऊ- देव, तेरी ताईजी को आज बड़े मंदिर जाना है तो तू साथ चले जाना और खेत पर आने की जरूरत नहीं आज मैं यहाँ हु मैं संभाल लूंगा यहाँ

मैंने गर्दन हिलायी और चल दिया कुछ दूर जाके मैंने मुड़के देखा तो ताऊ का हाथ बिंदिया की कमर पे था ,मैं समझ गया आज फिर इनका कार्यक्रम होगा पर कैसे आज तो दीनू भी यही है सोचते सोचते मैं घर पर आ गया

ताईजी- नाश्ता करले

मैं- वो ताऊजी ने कहा है की आपके साथ बड़े मंदिर जाना है

ताई- पर मैंने तो उनको साथ चलने को कहा था पर कोई बात नहीं नाश्ता करके तैयार होजा फिर चलते है

करीब एक घंटे बाद हम दोनों मंदिर के लिए निकल पड़े बड़ा मंदिर गांव से कोई दो कोस दूर पहाड़ी के ऊपर था आज न जाने ताईजी का क्या मन हुआ अब चढ़ने उतरने में ही हाथ पाँव फूल जाने थे

करीब एक घंटे बाद हम दोनों मंदिर के लिए निकल पड़े बड़ा मंदिर गांव से कोई दो कोस दूर पहाड़ी के ऊपर था आज न जाने ताईजी का क्या मन हुआ अब चढ़ने उतरने में ही हाथ पाँव फूल जाने थे

ताई ने सफ़ेद ब्लाउज़ और नीला घाघरा पहना हुआ था जिसमे वो कुछ ज्यादा ही सुंदर लग रही थी गर्मी से बगलों में जो पसीना आया था ऊपर से कसा हुआ ब्लाउज़ जो बिलकुल चिपक गया था अंदर पहनी काली ब्रा साफ़ दिख रही थी

वो मुझसे कुछ आगे चल रही थी तो न चाहते हुए भी मेरे मन के चोर की नजरें उनके इठलाते हुए नितंबो पर ठहर ही गयी थी, उस लचक ने मेरे मन में सुलगते वासना के शोलो को कुछ हवा सी दे दी थी

माँ से भी बढ़कर ताई के बारे में अब मेरे मन में एक तंदूर दहकने लगा था और जिसे अब बस वासना से सुलगना था ,रस्ते भर बस कुछ हलकी फुलकी बाते हुई हमारे बीच ,तो मालूम हुआ आज के दिन किसी बाबा ने मंदिर में समाधी ली थी तो उसकी ही पूजा थी
ऊपर चढ़ने में ताई की साँस फूल गयी तो उन्होंने एक हाथ मेरे कंधे पर रख दिया और मेरे साथ चलने लगी,उस परिस्तिथि में मेरी कोहनी हलके हलके से उनके वक्षो से रगड़ खाने लगी तो मेरे बदन में अजीब सा होने लगा ऊपर से उनकी वो पसीने की महक,

एक ऐसा अहसास जो मुझे उत्तेजना की तरफ ले जा रहा था मेरा मन अब सब कुछ भूल कर ताई की वो महक लेना चाहता था कभी कभी मेरी कोहनी कुछ तेजी से उनके वक्षो पर रगड़ी जाती पर ताई के लिए ये सब सामान्य सा प्रतीत हो रहा था,प्रांगण में काफी भीड़ थी तो हम भी लाइन में लग गए

ताई- भीड़ बहुत है ,दर्शन में देर होगी

मैं- जी, घंटा भर तो लग ही जायेगा

ताई- आज गर्मी भी ज्यादा ही पड़ रही है एक मेह पड़ जाए तो कुछ चैन मिले

ताई ने मेरे हाथ से थाली ली और लाइन में लग गयी ,मैं भी उनके पीछे खड़ा हो गया पर क्या जानता था कि बस इसी लम्हे से मेरे पतन के अध्याय की पहली कलम चलेगी ,लाइन किसी चींटी सी रेंग रही थी और धीरे धीरे भीड़ बढ़ रही थी

हम कुछ आगे हुए थे की पीछे से कुछ धक्का सा आया और मैं बिलकुल ताई के पिछले हिस्से से रगड़ खा गया और बदहवासी में मेरा हाथ ताई के पेट से थोड़ा ऊपर कसा गया ,ताई हल्का सा कसमसाई और बोली-" आराम से बेटा, ऐसे धक्के तो लगते ही रहेंगे थोड़ा आराम से गिर न जाना किसी का पाँव लगा तो चोट लगेगी"

मैं- जी,

कुछ समय औऱ गुजरा भीड़ बढ़ी और साथ ही मेरे और ताई के बीच जो भी गैप था वो भरता गया एक बार फिर से ताई के नर्म कूल्हों का स्पर्श मेरे अगले हिस्से पर होने लगा और इस बार चाह कर भी मैं अपने उत्तेजित होते लण्ड पर काबू ना रख सका

चूँकि मैंने पायजामा पहना हुआ था तो अब समस्या विकट हो चली थी मैं चाहकर भी इसको रोक नहीं पा रहा था और तभी पीछे से लगे झटके ने बाकि काम कर दिया मेरा तना हुआ लण्ड सीधा ताई के कूल्हों की दरार पर जाके लगा

और शायद ताई ने भी उस तूफान को महसूस कर लिया एक बार पलट कर देखा उन्होंने और फिर थोड़ा सा आगे को सरकी पर शायद आज ये सब ही होना था उस लंबी लाइन में ये बार बार दोहराया गया जैसे जैसे हम आगे बढ़ रहे थे शरीर और संकुचित हो रहे थे मैं ताई की गांड को खूब अच्छे से महसूस कर रहा था

उनके पसीने की महक मेरे तन में मादकता भर रही थी मेरे लण्ड का दवाब अपनी गांड पर लगातार महसूस करते हुए ताई की आँखे बस आस पास के लोगो पर ही घूम रही थी

ताई- देव , अपना नंबर आने वाला है भीड़ ज्यादा है मैं थाली ऊँची कर रही हु तू अपने हाथ नीचे कर ले ताकि कुछ गिरे तो पकड़ ले
मैं- जी


ताईजी ने अपने दोनों हाथ ऊपर किये और मैंने अपने हाथ उनकी बगलों के नीचे से आगे को कर दिए अब हुआ यु की इस तरह मैं पूरी तरह से उनके पीछे चिपक सा गया और मेरे लण्ड का दवाब एक बार फिर से ताई के चूतड़ पर बढ़ गया

पर साथ ही अब मेरी दोनों कोहनियां ताई की चूचियो से रगड़ खा रही थी उत्तेजना अपने चरम पर थी ऊपर से ताई की बार बार हिलती गांड जो मुझे वही छूट जाने पर मजबूर कर रही थी पर कुछ देर बाद ही ये अवसर ख़तम हो गया

हमने पूजा ख़त्म की और बाहर निकल आये ताई एक पेड़ के नीचे बने चबूतरे पर बैठ गयी और मुझे थोड़ा पानी लाने को कहा
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Rohit Kapoor
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Re: बदलते मौसम

Post by Rohit Kapoor »

मैं पानी लेने गया तो देखा की गौरी कुछ बाबा लोगो के पास बैठी कुछ इकतारे जैसा बजा रही थी हमारी नजरे मिली तो वो मेरे पास आई

गौरी- तू यहाँ

मैं- ताईजी को पूजा करनी थी साथ आया हु ,तू क्या कर रही बाबाओ के बीच

गौरी- बस ऐसे ही ,मै तो सुबह से ही आयी हुई हु ऐसे ही टाइम पास कर रही थी

मैं- चल मिलते है फिर, ताईजी के लिए पानी ले जाना है

गौरी- ठीक है

जाते जाते उसने मेरी तरफ ऐसे देखा जैसे कुछ कहना चाहती हो पर चुप रह गयी मैंने ताई को पानी दिया, जब वो पानी पी रही थी तो मेरी निगाह उन बूंदो पर थी जो छलक कर उनकी छातियों को गीला कर रही थी इस अवस्था में सफ़ेद ब्लाउज़ गजब ही था खैर कुछ देर रुकने के बाद हम वापिस घर की तरफ चल पड़े

घर आते ही मैंने अपना कमरा बंद किया और अपने लण्ड को बाहर निकाल लिया आज ये बुरी तरह से उत्तेजित था मैं धीरे धीरे हस्तमैथुन करने लगा और अपने आप ताई के बारे में मैं सोचने लगा तो लण्ड की अकडन बढ़ गयी साथ ही मजा भी अलग
जितना ताई के बारे में सोचता उत्तेजना उतना ही ज्यादा होने लगी और जब पानी गिरा तो जैसे मेरा सारा दम ही निकल गया हो , थकान सी लगने लगी और फिर मैं बस सो गया

जितना ताई के बारे में सोचता उत्तेजना उतना ही ज्यादा होने लगी और जब पानी गिरा तो जैसे मेरा सारा दम ही निकल गया हो , थकान सी लगने लगी और फिर मैं बस सो गया
पर जब उठा तो ताऊ ताई से झगड़ा कर रहा था सच कहूं तो अब मुझे कोफ़्त सी होने लगती थी मैंने देखा ताऊ ने ताईजी की चोटी पकड़ रखी थी और गन्दी गंदी गालिया दे रहे थे, मेरा दिल बहुत दुखता था घर में ऐसा क्लेश देख कर

मैं ताई को छुड़ाने के लिए आगे बढ़ा ही था कि ताईजी ने इशारे से जता दिया की मैं बीच में न पड़ू , पर मैं ये सब देख भी तो नहीं सकता था तो घर से बाहर निकल गया ,कुछ गुस्सा सा उबलने लगा था कुछ बेबसी सी थी अक्सर मैं सोचता था की ताऊजी ऐसा क्यों करते है

कुछ देर चौपाल पे बैठा पर दिल को सकून नहीं मिला कभी कभी लगता था यहाँ से कही दूर भाग जाऊ जहा बस मैं अकेला ही रहूं, जब दिल की तल्खी कुछ बढ़ सी गयी तो मैं बेखुदी में घूमते घूमते जंगल की तरफ बढ़ गया

जब थकने लगा तो एक नीम के पेड़ के नीचे बैठ गया और सोचने लगा जबसे कुछ समझने लगा था तब से बस यही ज़िन्दगी थी घर में दो लोग मैं और ताईजी , साल में दो बार ताऊजी महीने महीने की छुट्टी आते और हमारी ज़िंदगी नर्क हो जाती कभी मुझे पीटते, कभी ताईजी को

पर क्यों ये कोई नहीं जानता था , मैंने पेड़ से टेक लगायी और आँखे मूँद ली , ज़िन्दगी में कोई ऐसा चाहिए था जिससे अपनी सब बातें कर सकूँ कोई साथी होता मेरा भी तो ये जो अपने आप से अजनबी सा था ये ना रहता

खाली बैठे दिल कुछ कुछ सोचने लगा था मैंने आँखे खोली तो देखा ऊपर डाली पर शहद का छत्ता लगा था मैंने सोचा की शहद ही खाया जाए तो मैं पेड़ पर चढ़ा पर मधुमखिया ज्यादा थी और मेरे पास उन्हें भागने के लिए धुंआ नहीं था

तो मैंने कपडे उतारे और गीली मिट्टी बदन पर लपेट ली ताकि अगर ये काटे तो बचाव हो मैंने जुगाड़ तो सही किया था अपने तरीक़े से ,तो गया छत्ते के पास और तोड़ने लगा पर मधुमक्खियां गुस्सा हो गयी और एक के बाद एक काटने लगी मुझे

बड़ी मधुमक्खियां जहा जहा काटे वहाँ तेज दर्द हो और लाल लाल निशान से हो जाए ,पर आँखों को सामने शहद दिख रहा था मैंने अपना हाथ छत्ते में दिया ही था कि तभी उन्होंने मेरे दूसरे हाथ पर काट लिया और मेरा संतुलन बिगड़ गया

धम्म से मैं पेड़ से नीचे गिर गया सर बड़ी जोर से टकराया लगा हड्डिया गयी काम से और मैं जैसे होश ही खो बैठा , पता नहीं कितनी देर बाद मेरी चेतना लौटी तो रात हो रही थी सर दर्द से फटा जा रहा था और बदन भी

कुछ पल लगे मुझे याद आने में मैंने अपने कपडे लिए और नहर पर आके नहाया और लंगड़ाते हुए पंप हाउस आया भूख भी लगी थी तो मैं बिंदिया के पास गया उससे कह ही रहा था की चक्कर सा आया तो मैं दिवार का सहारा लेके बैठ गया

बिंदिया- क्या हुआ देव

मैं- कुछ नहीं चक्कर सा आया

बिंदिया- लेट जाओ थोड़ी देर मैं पानी लाती हु

मैं चारपाई पे लेट गया अचानक कमजोरी सी लगने लगी बदन कांपने लगा तभी बिंदिया पानी ले आयी मैंने जैसे तैसे पानी पिया

मैं- बिंदिया सो जाऊ कुछ देर तबियत ठीक ना लग रही

वो- हाँ सो जाओ

दर्द बढ़ता जा रहा था पसीना आने लगा कुछ नीम बेहोशी जैसा हाल होने लगा था पर जब होश आया तो कुछ बेहतर महसूस हुआ दिन निकला हुआ था मैंने देखा शरीर सूजा हुआ है मैं मूतने गया तो देखा मेरा लण्ड भी कुछ सूजा सा लग रहा था

तो सोचा की मधुमखी की वजह से हुआ होगा मैं सीधा वैद्य जी के घर गया तो उनकी लुगाई ने दरवाजा खोला

मैं- वैद्य जी है

वो- बैठो मैं बुलाती हु


मैं इंतज़ार करने लगा कुछ देर बाद वो आये तो मैंने पूरी बात बताई ,उन्होंने कुछ पुड़िया दी और बोले सूजन उतर जायेगी , तीन दिन बाद फिर आना

मैं वापिस आया घर तो ताई जी अपने कमरे में थी मैं उनके पास गया उन्होंने भी मेरी सूजन के बारे में पूछा और बताने पर डांट भी लगाई , तभी मैंने उनके हाथों पे कुछ नीले निशान देखे

मैं- ये क्या है ताईजी

ताई- कुछ नहीं

पर मैंने उनके हाथों को अपने हाथों में लिया और सहलाते हुए बोला- ये क्या है

वो- कुछ नहीं देव ,ठीक हो जायेंगे

मैं-दवाई लगा दू

वो- जरूरत नहीं तू नहा धो ले खाना खाके आराम कर

मैं बाथरूम में गया तो देखा की खूँटी पे ताई के कपडे थे मैंने ताई के ब्लाउज़ को सुंघा तो एक जानी पहचानी महक मेरे नथुनों से टकराई ,ऐसा लगा की ताई की छातियों को सूंघ रहा हु पास ही ताई की काली कच्छी टँगी थी

मैंने उसे अपने हाथ में लिया और देखने लगा सोचने लगा ऐसा लगा जैसे ताई की मोटी जांघो पर ये कसी हुई हो मैं एक बार फिर से उत्तेजित होने लगा था वो कच्छी सूखी थी शायद ताईजी बाद में धोने वाली थी जैसे ही मैंने उसे अपने नाक पे लगाया पेशाब की सी महक आयी

शायद जब वो मूतती होंगी तो कुछ बूंदे यहाँ गिर जाती होंगी पता नहीं मुझे क्या हुआ मैंने अपनी जीभ उस हिस्से पर फेरी ऐसा लगा की ताई की चूत पर ही जीभ फेर दी हो जैसे मैंने अपने लण्ड को बाहर निकाल लिया और वो कच्छी उसपे लपेट के मुट्ठी मारने लगा
ऐसा लग रहा था की जैसे ताई की चूत में लण्ड डाल दिया हो पर तभी मेरे लण्ड में जोर से दर्द होने लगा तो सारी उत्तेजना गायब हो गयी, मेरी समझ में ये नहीं आ रहा था कि हो क्या रहा है

मैं जैसे तैसे नहाया और एक पुड़िया गटक ली तो कुछ आराम आया एक तो शहद के चक्कर में ये मुसीबत मोल ले ली ऊपर से ताई को जब भी देखता दिल में ये गलत ख्याल आने लगते खैर इन सब बातों के बीच तीन दिन बीत गए बदन की सूजन गायब हो गयी थी पर एक बात बहुत परेशां किये हुए थी
मैं जैसे तैसे नहाया और एक पुड़िया गटक ली तो कुछ आराम आया एक तो शहद के चक्कर में ये मुसीबत मोल ले ली ऊपर से ताई को जब भी देखता दिल में ये गलत ख्याल आने लगते खैर इन सब बातों के बीच तीन दिन बीत गए बदन की सूजन गायब हो गयी थी पर एक बात बहुत परेशां किये हुए थी

मेरे लण्ड की सूजन जरा भी कम नहीं हुई थी हर समय वो किसी बेलन की तरह रहने लगा था और जब भी मैं उत्तेजना महसूस करता उसमे दर्द होता और साथ ही वो और फूल जाता किसी बैंगन की तरह ,यहाँ तक की जब मैं कच्छे में होता तो वो उभार साफ़ दीखता था

अजब सी समस्या खड़ी हो गयी थी ,खैर तीसरे दिन मैं वैद्य जी के घर गया तो उनकी लुगाई ने ही दरवाजा खोला, इस बार मैंने जो उसे देखा बस देखता ही रह गया ,उसने अपनी साड़ी घुटनो तक बाँधी हुई थी और पल्लू कमर में खोंसा हुआ था

जिससे उसका ब्लाउज़ वाला हिस्सा खुला हुआ था और सर पे भी कुछ नहीं था एक पल तो मैं उसे देखता ही रह गया

वो- दरवाजे पे ही रहेगा या अंदर आएगा

मैं-जी

मैं उसके पीछे पीछे अंदर आया उसकी बलखाती कमर और लचकते कूल्हे मेरे मन में सुरसुराहट सी होने लगी उसने मुझे बैठने को कहा और अंदर चली गयी थोड़ी देर में कुछ पुड़िया लेके आयी और बोली- बैद्य जी ये दे गए है तुम्हारे लिए

मैं- ये तो ठीक है पर दे गए है मतलब

वो- मतलब ये की अभी वो घर पे है नहीं

मैं- कब तक आएंगे

वो- अपने मित्रो के साथ देशाटन पे गए है अब कौन जाने कब आये दस दिन पंद्रह दिन या महीना दो महीना

मैं- पर मेरे लिए उनसे मिलना बहुत जरुरी है

वो- ऐसी क्या बात है ,मुझे बता दे वैसे भी उनकी अनुपस्तिथि में मैं ही मरीज़ों को देखती हूं,तुझे भी देख लुंगी

मैं- मुझे उनसे ही परामर्श करना है

वो- अब वो तो है नहीं ,तो तू सोच ले जो भी तकलीफ है या तो मुझे बता दे नहीं तो फिर इंतज़ार कर पर जब तक दुखी तू ही पायेगा

उसकी बात तो खरी थी पर मैं एक नारी को कैसे अपने अंग की समस्या बता सकता था कुछ का कुछ मतलब निकाल लेगी तो, हिचक सी हो रही थी मुझे पर वैद्य जी अब कब के निकले कब आये तब तक सूजन और बढ़ गयी तो

वो- क्या विचार करने लगा

मैं- आप मेरी समस्या का समाधान कर देंगी क्या

वो- न हम तो यहाँ मोमबत्तिया बनाने को बैठे है ,है ना

मैं- वो बात ही कुछ ऐसी है की आप पहले वादा कीजिये मुझे गलत नहीं समझेंगी

उसने लगभग घूर कर ही मुझे देखा और बोली- चल वादा

मैंने घबराते हुए उसे पूरी बात बता दी ,उसने पुरे ध्यान से मेरी बात सुनी और बोली- हम्म। पर अब शारीर पे सूजन तो न दिख रही

मैं- सूजन है

वो- कहा है मुझे तो दिख न रही

मैं- अब आपको कैसे दिखाऊ मैं दरअसल वो यहाँ है

मैंने अपने पेन्ट पर बने उभार की ओर इशारा किया

उसने अजीब सी नजरो से देखा और बोली- मसखरी करने को मैं ही मिली क्या

मैं- इसलिए तो ना बता रहा था मैं तो परेशां हु और आप को मसखरी लग रही

वो- एक काम कर चल दिखा तभी कुछ पता लगेगा

मैं- पर मैं कैसे दिखा सकता हु

वो- दिखाना तो पड़ेगा तभी तो कुछ मालूम होगा
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