दीदी तुम जीती मैं हारा complete

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007
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Re: दीदी तुम जीती मैं हारा

Post by 007 »

achhi kahani hai dost
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

(¨`·.·´¨) Always

`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &

(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !

`·.¸.·´
-- 007

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rangila
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Re: दीदी तुम जीती मैं हारा

Post by rangila »

ट्रेन आने में अभी वक्त था तो मैंने सोचा क्यों न स्नेहा दीदी को थोड़ा परेशान किया जाये । मैंने दीदी को मैसेज किया , “ दी ! आखिर कब तक अपने दिल के हाल को यूँ ही छुपाओगी ।”

थोड़ी देर बाद दीदी का रिप्लाई मिला , “ मेरे दिल का हाल ठीक है , तुम अपनी चिंता करो ।”

मैंने फिर टाइप किया , “ मेरे दिल का हाल तो तुम्हें पता है पर अपने दिल का हाल तुमने अभी तक नहीं बताया । शायद ज़माने से अभी भी डरती हो तुम ।”

दीदी : “ ज़माना जाये भाड़ में , मुझे किसी का कोई डर नहीं ।”

मैं : “ तो फिर कहती क्यों नहीं ।”

दीदी : “ क्या ? ”

मैं : “ वही जो तुम कहना चाहती हो पर कह नहीं पा रही हो ।”

दीदी : “ ऐसा कुछ भी नहीं है , सब तुम्हारा वहम है । ”

मैं : “ ओके ठीक है दी । फिर मैं भी माँ के साथ जा रहा हूँ , माँ के साथ ही वापस आऊंगा । बाई एंड टेक केयर ।”

दीदी : “ पागल हो क्या ! तुम कहीं नहीं जाओगे । चुपचाप ऑफिस जाओ और फिर घर आओ ।”

मैं : “ सॉरी दी ! पर माँ बहुत ज़िद कर रही है , इसलिए जाना ही पड़ेगा । टेक केयर ।”

दीदी : “ ठीक है जाओ , पर मुझसे बात नहीं करना ।”

मैंने मैसेज पढ़ा ही था कि दीदी की कॉल आ गयी , मैंने कॉल कट कर दी ।
तभी ट्रेन भी आ गयी और मैंने माँ को सीट पर बैठा दिया ।

मैं ऑफिस पहुंचा तो देखा मेरे मोबाइल में स्नेहा दीदी की 11 मिस कॉल्स थी ।
मैंने थोड़ा सा दीदी को और सताना शुरू किया और मैसेज किया , " दी क्या बात है । आप तो बोल रही थी की आप बात नहीं करोगी । फिर कॉल क्यों कर रही हो ? ”

दीदी का रिप्लाई आया , “ देख समू प्लीज ! माँ के साथ मत जाना । मैं घर में अकेली बोर हो जाऊँगी ।”

मैं : “ ठीक है नहीं जाऊँगा पर पहले आप खुल कर कहो जो आपके दिल में है ।”

दीदी : “ मुझे नहीं पता मेरे दिल में क्या है और जो है , तू सब समझता है ।”

मैं : “ दी जबतक आप कहोगी नहीं , मुझे कैसे पता चलेगा की आपके दिल में क्या है ।”

दीदी : “ क्या सुनना चाहता है तू । प्लीज साफ़ साफ़ बता ना ।”

मैं : “ कम ऑन दी । बहुत हुआ ये नाटक । अब खुल कर बोलो नहीं तो मैं जा रहा हूँ । ट्रेन आ गयी है और ये मेरा लास्ट मैसेज है । ”

स्नेहा दीदी का तुरंत रिप्लाई आया , “ ok…wait…I LOVE YOU…samu plz don’t go .”

वो तीन शब्द मेरी ज़िन्दगी के सबसे ख़ूबसूरत शब्द थे । मैं बार बार उन्हें पढ़ता रहा ।

तभी दीदी का एक और मैसेज आया , “ अब खुश ? अब तो नहीं जाओगे ना ? "

मैंने रिप्लाई किया , “ नहीं दी अब सारी ज़िन्दगी आपको छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगा …..। LOVE U TOO…शाम को घर पर मिलते हैं ।”

ऑफिस में टाइम कैसे कटा ये तो बस भगवान ही जानता है । मैं जल्द से जल्द घर पहुंचना चाहता था । शाम को 5 बजे जब मैं घर पहुंचा तो स्नेहा दीदी ने एक बड़ी ही प्यारी स्माइल के साथ दरवाज़ा खोला । दीदी अपने बैंक से मुझसे पहले घर आ जाती थी ।

मैंने गेट बंद किया और दीदी को अपनी बांहों में भर कर गोद में उठा लिया ।
दीदी हँसते हुए बोली , “ क्या कर रहा है मुझे नीचे उतार मैं गिर जाऊँगी ।”

मैं : "दी ! अब बस बहुत हो गया । अब तुम हमेशा ही इन बांहों की कैद में रहोगी ।"

दीदी बोली ," अच्छा इतना प्यार करता है तू मुझसे ।"

मैं : " हाँ दी ! अपनी जान से भी ज़्यादा ! "
दीदी ने ये सुनते ही अपनी बांहें मेरी गर्दन में डाल दीं ।

मैं स्नेहा दीदी को ऐसे ही गोद में उठाये ड्राइंग रूम में ले गया और दीदी को सोफे पर बैठा दिया । और दीदी की गोद में सर रख कर फर्श पर बैठ गया । दीदी मेरे बालों में अपनी उंगलियां फिराने लगी । मुझे बहुत ही सुखद अहसास हो रहा था ।ऐसा लग रहा था जैसे मेरी ज़िन्दगी मुझे वापस मिल गयी हो।

मैंने दीदी से कहा , ” दी बहुत सताया है तुमने मुझे । बहुत परीक्षा ली है मेरी ।”

स्नेहा दीदी बोली , “ मैं जानती हूँ समू । पर बड़े फैसले करने में वक्त तो लगता ही है , चल अब उठ । मैं तेरे लिए चाय बनाती हूँ । तू फ्रेश हो जा फिर बैठ कर बातें करेंगे ।”

हमने चाय नाश्ता किया और सोफे पर बैठे TV देख रहे थे , स्नेहा दीदी मेरी गोद में अपना सर रखे लेटी थी और मैं उनके बालों से खेल रहा था ।

मैंने दीदी से पूछा , “ दी ! माँ का क्या सोचा है ? ”

स्नेहा दीदी मेरी तरफ देखे बिना ही एक गहरी सांस लेकर बोली , “ पता नहीं यार , देखते हैं अभी तो कुछ समझ नहीं आ रहा ।”

मैं : " दी क्यों न हम माँ को कुछ बताये ही ना ?"

दीदी :" पर कभी न कभी तो माँ को पता चल ही जाएगा फिर क्या करेंगे ?"

मैं : "दी तब का तब देखेंगे । पर अगर अभी बता दिया तो अभी मुसीबत उठानी पड़ेगी सोच लो ।"

दीदी : " हम्म्म …कह तो तू ठीक रहा है । मुझे भी नहीं लगता कि माँ हमें समझेगी । "

मैं : " दीदी तुम खुश तो हो ना ?"

दीदी ने लेटे लेटे ही मेरी आँखों में देखा और मेरा सर नीचे झुका कर मेरे होंठों पर एक चुम्बन लेते हुए बोली , “ बहुत ! ”

मैंने भी दीदी के होंठों को किस किया और बोला , “ दीदी वैसे तो तुम बहुत खूबसूरत हो पर एक कमी है ।”

दीदी ने चौंकते हुए मुझसे पूछा , “ क्या कमी है ? ”

मैंने दीदी को अपनी गोद से अलग किया और सोफे से उठते हुए बोला , “ अभी बताता हूँ क्या कमी है ।”

और अपने कमरे में चला आया । मेरे पीछे पीछे दीदी भी आ गयी । कमरे में अपने बैग से एक डिबिया निकाली । उसमें से सिंदूर निकालकर स्नेहा दीदी की मांग में भर दिया ।

फिर कहा, " हाँ दी ! बस यही कमी थी , जो मैंने सिन्दूर भरकर पूरी कर दी और हमारे प्यार पर पक्की मुहर लगा दी ।"

स्नेहा दीदी की आँखों से आंसू निकल पड़े और वो मेरे सीने से आ लगी ।
मैंने भी दीदी को कस कर अपने आलिंगन में बाँध लिया और उनकी ठोड़ी के नीचे हाथ लगा कर उनके चेहरे को ऊपर किया तो देखा कि उनकी गालों पर आंसुओं की मोटी मोटी बूंदें जगमगा रही थीं ।
मैंने अपने होंठों से उनके आंसुओं को पीते हुए कहा , “ बस दी ! आज से तुम्हारे सारे दुःख मेरे और मेरी सारी खुशियां तुम्हारी ।”
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rangila
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Re: दीदी तुम जीती मैं हारा

Post by rangila »


दीदी ने अपना सर मेरे सीने में छुपा लिया और बोली , “ तू नहीं जानता तूने मुझे कितनी बड़ी ख़ुशी दी है …I LOVE YOU…समू ! ”

हम थोड़ी देर ऐसे ही आलिंगन में बंधे रहे । फिर स्नेहा दीदी मुझसे अलग हुई और कमरे से बाहर जाने लगी ।
मैंने पीछे से दीदी को टोका , “ दीदी !!”

दीदी ने पलट कर पूछा , “ क्या ? ”

मैंने बहुत ही मादक स्वर में कहा , “ दी …अब और सब्र नहीं होता ।”

स्नेहा दीदी कुछ पल के लिए मेरी आँखों में देखती रही और फिर दौड़ कर मेरे सीने से आ लगी । मैंने दीदी को कस कर अपनी बाँहों में भींच लिया और दीदी के चेहरे को बेतहाशा चूमने लगा । दीदी भी मेरी कमर पर अपने हाथों को रगड़ने लगी और मेरे हर एक किस का जवाब किस कर के देने लगी । मैंने दीदी को इतनी जोर से अपनी बाहों में कस रखा था कि उनकी चूचियां मेरे सीने में गड रही थीं । मैंने स्नेहा दीदी के होंठों को अपने होंठों से चूसना शुरू किया तो दीदी भी मेरा खुल कर साथ देने लगी । मैं पागलों को तरह दीदी के होठों को चूस रहा था और मेरे दोनों हाथ दीदी की पीठ और गांड को सहला रहे थे । तभी मैंने दीदी के मुंह के अंदर अपनी जीभ डाल दी और दीदी मेरी जीभ को चूसने लगी । मैंने दोनों हाथों से दीदी के नितम्बों को पकड़कर अंदर को ज़ोर से भींच लिया। दीदी के मुंह से एक सिसकारी निकली …आआह्ह्ह्ह......।

मैंने स्नेहा दीदी के होंठों को आज़ाद किया और उनकी गरदन पर चुम्बनों की बौछार कर दी । दीदी ने ज़ोर से मेरे बालों को अपनी मुट्ठी में भींच लिया । फिर मैंने अपने हाथ दीदी की दोनों चूचियों पर रख दिये और कुर्ती के ऊपर से ही ज़ोर ज़ोर से दबाने लगा और साथ ही साथ उन्हें किस भी करता रहा । दीदी के मुंह से सिसकारियों पे सिसकारियां फूट रही थी “aaaaaaa…aaah….aaaaahhhh…huuuuuu” । दीदी की सिसकारियां सुन कर मैंने दीदी की चूचियों को और ज़्यादा ज़ोर से दबा दिया ।, दीदी के मुंह से दर्द भरी कराह फूटी “aaaaiiii……….आराम से समू ……aaaahhh” ।

कुछ देर तक यूँ ही कपड़ों के ऊपर से स्नेहा दीदी के बदन को मसलने के बाद मैंने दीदी के कुर्ते को नीचे पकड़ा और थोड़ा ऊपर उठाया ही था कि दीदी ने अपने दोनों हाथ हवा में उठा दिये । और एक ही झटके में मैंने दीदी का कुर्ता निकाल कर फर्श पर फेंक दिया । दीदी की सफ़ेद रंग की ब्रा में कैद चूचियां उनकी साँसों के साथ बहुत ही मोहक अंदाज़ में ऊपर नीचे हो रही थीं । मैं दीदी की ब्रा के ऊपर से ही उनकी चूचियों को मसलने लगा और उनकी गरदन और नंगे कन्धों पर पागलों की तरह किस करने लगा । इसी बीच दीदी ने अपने हाथ पीछे ले जाकर ब्रा के हुक खोल दिये और कन्धों से ब्रा को अलग कर दिया ।

स्नेहा दीदी की नंगी चूचियां देखकर मेरी आँखों में चमक सी आयी और मैंने अपने दोनों हाथों को दोनों चूचियों पर रख कर पहले उनकी गोलाइयों का जायज़ा लिया और अपने हाथ के अंगूठे से उनके निप्पल को छेड़ने लगा । दीदी की चूचियां किसी पानी भरे गुब्बारे की तरह मुलायम थीं और उनके मटर के दाने के आकार के भूरे रंग के निप्पल्स ठीक मेरे तने हुए लंड की तरह से मुझे सलामी दे रहे थे । मैंने अपने हाथ से दीदी की बायीं चूची को दबाना शुरू किया और दायीं चूची के निप्पल को अपने होठों के बीच फंसा कर जैसे ही अपनी जीभ से निप्पल को छेड़ा , दीदी ने ज़ोर से मेरे बालों को अपनी मुट्ठी में भींचा और अपने सर को पीछे लुढ़का कर एक लम्बी सिसकारी भरी ,“aaaaaaaaaaaahhhhhhhhh…..”
फिर मैंने दीदी के निप्पल को चूसना शुरू किया तो दीदी ने सिसकारियों की झड़ी लगा दी “aaaaa….hhhhhmmmmm……..aaaaaaaaaaaaahhhhhhhhh….aaaahhhhaaaa” ।
मैं स्नेहा दीदी की चूची ज़ोर ज़ोर से चूस भी रहा था और दूसरी चूची को अपने हाथ से दबाता भी जा रहा था । कुछ देर तक यूँ ही दीदी की चूची को चूसने के बाद मैंने अपना मुंह दीदी की दूसरी चूची पर रख दिया और पहली चूची को हाथ से दबाने लगा । इसी बीच दीदी ने मेरी शर्ट के बटन खोल दिये और मैंने शर्ट उतार फेंकी ।

फिर मैं घुटनों के बल बैठ गया और स्नेहा दीदी के पेट को चूमने लगा और साथ ही साथ दीदी की सलवार का नाड़ा भी खोलने लगा । जैसे ही नाड़ा खुला दीदी की सलवार सरक कर खुद ब खुद नीचे गिर पड़ी और दीदी की चूत को अब सिर्फ भूरे रंग की की पैंटी ने ढक रखा था । मैंने पैंटी के ऊपर से ही स्नेहा दीदी की चूत को छुआ तो दीदी का सारा शरीर कांप उठा और उन्होंने मेरे सर को पकड़ लिया ।

मैंने देखा दीदी की पैंटी नीचे से काफी गीली हो चुकी थी । मैंने अपना हाथ दीदी की कमर पर रखा और पैंटी की इलास्टिक पकड़ के नीचे सरका दी । जैसे ही पैंटी चूत से नीचे आयी तो दीदी की चूत देखकर मैं पागल सा हो गया । स्नेहा दीदी की चूत पर हलके हलके काले बाल थे । जो बहुत ही सेक्सी सा त्रिकोण बना रहे थे ।

मैंने मंत्रमुग्ध सा होकर स्नेहा दीदी की चूत पर अपना मुंह भिड़ा दिया । दीदी की तो जैसे हालत ही ख़राब हो गयी । उनके मुंह से एक ज़ोरदार सिसकारी निकली “aaaaaaasssssssssshhhhhhhh……..ohh……..समू …”
दीदी अपने हाथों से मेरे बालों को पकड़ रखी थी और मैं स्नेहा दीदी की चूत को घुटनों के बल बैठा चूम रहा था , चाट रहा था । और अपने हाथों से दीदी के नितम्बों को भी मसल रहा था ।

तभी स्नेहा दीदी ने मेरे बालों को पकड़ कर मुझे अलग किया और मेरी आँखों में देखते हुए बोली , “ बस समू अब और नहीं ।"

मैंने हैरानी से उन्हें देखते हुए कहा , " क्यों ? क्या हुआ दीदी ? "

दीदी बोली, " मैं चाहती हूँ कि हमारा मिलन भी उसी तरीके से हो जैसे सुहागरात की सेज़ पर दूल्हा दुल्हन का होता है । “

मैंने कहा, " अगर आप ऐसा चाहती हैं तो ऐसा ही होगा ।“

फिर स्नेहा दीदी बोली, " मेरी मांग में सिन्दूर भरने के बाद अब तुम मुझे दीदी मत बोलो । मेरे नाम से बुलाओ मुझे । और “ आप “ से “ तुम “ पर आ जाओ ।
और मैं भी “ तू “ से “ तुम “ पर आ जाती हूँ । “

मैंने कहा, " ठीक है ! जैसा “ तुम “ चाहती हो "स्नेहा" , वैसा ही होगा ।"

और हम दोनों खिलखिलाकर हंस पड़े ।
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Re: दीदी तुम जीती मैं हारा

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दीदी बोली , " चलो मार्केट चलते हैं , मुझे कुछ शॉपिंग करनी है और खाना भी वहीँ खा लेंगे ।"

मैं : " ठीक है चलो ।"

दीदी बोली , “ मैं तैयार होकर आती हूँ ।”

मैं दीदी को एक शॉपिंग मॉल में ले गया और दीदी ने वो सब सामान खरीदा जो एक दुल्हन अपनी शादी के लिए खरीदती है । और कुछ सामान मुझसे भी खरीदवाया ।
रेस्टोरेंट में खाना खाकर जब हम घर वापस आये तो रात के 10 बज चुके थे ।

मैंने घर में घुसते ही दरवाज़ा बंद किया और दीदी का सामान उनके रूम में रखते हुए बोला , ” स्नेहा जल्दी से तैयार हो जाओ , तब तक मैं कुछ और काम निपटाता हूँ ।”

दीदी ने हँसते हुए मुझे देखा और बोली , “सुहागरात के लिये बड़े उतावले लग रहे हो । सब्र करो , सब्र का फल मीठा होता है । ”

मैं बोला , “ स्नेहा कब से सब्र ही तो कर रहा हूँ । कितनी मुद्दत के बाद तो ये दिन आया है । ”

दीदी बोली , “ ठीक है पर मुझे अभी कम से कम 1 घंटा लगेगा तैयार होने में । ”

मैं बोला . “ हम्म्म …ठीक है तैयार हो जाओ तो मुझे आवाज़ लगा लेना । ”
मैंने अपना रूम ठीक किया और बेड पर , मार्केट से लाये हुए ढेर सारे गुलाबों की पंखुड़ियों को बिछा दिया । फिर रूम फ्रेशनर छिड़का और नहाने चला गया । नहाते हुए ही मैंने रेजर से अपनी झाँटों को साफ़ किया । अपनी सुहागरात की कल्पना से ही मेरा लंड खड़ा हो गया था ।

मैं भी ठीक किसी दूल्हे की तरह ही तैयार हुआ । फिर मैं ड्राइंग रूम में गया और एक बड़ी सी परात में कुछ लकड़ियां और हवन सामग्री डाल दी ।

तभी दीदी की आवाज़ आयी , “ मैं तैयार हो गयी हूँ । बाहर आ जाऊं क्या ? ”

मैंने कहा , “ अभी एक मिनट रुको ।”
और भाग कर अपने रूम में गया और अपने सर पर सेहरा रख के दीदी के रूम की तरफ गया ।
मैंने रूम के दरवाज़े को खोला तो सामने दीदी बेड पर दुल्हन के लिबास में बैठी थी । दुल्हन के उस लिबास में कितनी सुन्दर लग रही थी वो । मैं सब कुछ भूलकर , मंत्रमुग्ध होकर उसे ही देखता रहा ।
फिर दीदी ने ही मेरा ध्यान भांग किया , “ अब वहीँ खड़े रहोगे क्या ? ”

मुझे जैसे होश आया , मैं दीदी के पास गया और बोला , “ wow…स्नेहा ! तुमसे खूबसूरत दुल्हन मैंने सपने में भी नहीं देखी ।”

दीदी हंसी और बोली , “ तुम भी कुछ कम स्मार्ट नहीं लग रहे हो ।”

मैंने अपनी जेब में हाथ डाल कर अंगूठी निकाली और दीदी के बराबर में बैठ गया । फिर दीदी का हाथ अपने हाथ में लिया और उनकी ऊँगली में अंगूठी पहना दी । दीदी ने भी अपना पर्स खोल कर अंगूठी निकाली और मेरी ऊँगली में पहना दी । मैंने उनके गाल पर चुम्बन लिया , दीदी ने भी मेरे गाल पर चुम्बन लिया ।

फिर मैंने दीदी का हाथ पकड़ा और ड्राइंग रूम में ले आया ।
मैंने उनके गले में फूलों की माला डाली और दीदी ने मेरे गले में वरमाला डाली ।
फिर मैंने लकड़ियों को जलाकर हवन की आग के ऊपर अपना हाथ रखा और दीदी की आँखों में देखते हुए कहा , “ स्नेहा !! मैं अग्नि को साक्षी मान कर तुम्हें अपनी पत्नी स्वीकार करता हूँ और ये वचन देता हूँ कि जीवन के हर सुख दुःख में तुम्हारे साथ रहूँगा ।”

दीदी ने भी ऐसे ही प्रण लिया , “ मैं अग्नि को साक्षी मान कर तुम्हें अपना पति स्वीकार करती हूँ और वचन देती हूँ कि तुम्हारी सेवा ही मेरा परम धर्म रहेगा ।”

उसके बाद हमने फेरे लिये । फिर मैं दीदी को अपनी गोद में उठा कर अपने कमरे में ले गया ।
दीदी के जिस्म से भीनी भीनी खुश्बू आ रही थी और उसका मखमली बदन मुझे उत्तेजित कर रहा था । मैंने उन्हें नीचे उतारा और कस कर आलिंगन में भर लिया । और उनके चेहरे को चूमने लगा , दीदी भी मुझे चूमने लगी । कुछ देर तक ऐसे ही चूमने के बाद दीदी मुझसे अलग हुई और बेड के बीचोंबीच जाकर घूँघट डालकर बैठ गयी ।

मैं दीदी के सामने जाकर घुटनों के बल बैठ गया । फिर मैंने दोनों हाथों से दीदी का घूँघट उठाया और बोला, “ हाय ! स्वीटी ! कहीं नज़र न लग जाए मेरी ।”

दीदी ने मुस्कुराते हुए कहा , “ लाओ मेरा गिफ्ट निकालो ।”

मेरी कुछ समझ नहीं आया कि मैं दीदी को क्या दूँ । तो मैंने अपने गले से सोने की चेन निकाल कर दीदी के गले में पहना दी और बोला, “ सॉरी डियर , अभी इस से काम चला लो । कल मैं तुम्हें मंगलसूत्र बनवा दूंगा । ”

दीदी ने हँसते हुए मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिये और अपनी आँखें बंद कर ली ।
मैंने होंठों को होंठों से छुआते हुए , बड़े हलके हलके से दीदी के होंठों की पंखुड़ियां को अपने होंठों के बीच फंसाया और बड़े ही प्यार से दीदी के नरम नरम नाजुक होंठ को चूम लिया । दीदी के शरीर में झुरझुरी सी महसूस होने लगी ।

फिर मैंने दीदी को बेड के पास खड़ा कर दिया । अब मैं दीदी के होंठों को चूस भी रहा था और अपने हाथों से दीदी की साड़ी भी खोलता जा रहा था । कुछ ही मिनटों में दीदी की साड़ी फर्श पर पड़ी थी और दीदी सिर्फ एक ब्लाउज और पेटीकोट में खड़ी थी ।

फिर मैंने अपने भी कपड़े उतार फेंके और मेरे शरीर पर मात्र एक अंडरवियर रह गया था । जिसमें मेरा लंड अपने पूरे शबाब पर था और झटके मार रहा था । दीदी की नज़र मेरे झटके मारते लंड पर पड़ी तो दीदी ने हाथ बढ़ा कर मेरे लंड को अंडरवियर से मुक्त करा दिया । लंड फनफनाता हुआ बाहर आया और झटके मारने लगा । फिर दीदी ने हाथ बढ़ा कर मेरे लंड को अपने हाथ की मुट्ठी में भर लिया और बड़े ही प्यार से आगे पीछे करने लगी ।

मैं आँखें बंद कर के दीदी के स्पर्श का आनंद लेने लगा । तभी दीदी ने लंड के सुपाड़े को अपने मुंह में भर लिया । दीदी के नाज़ुक होंठ और जीभ का स्पर्श जैसे ही सुपाड़े पर हुआ लंड ने एक ज़ोरदार झटका खाया।

और मेरे मुंह से आनंद भरी सिसकारी फूट पड़ी … “aaaaaaaahhhhhhhhhhhh …ooohhh …”.

दीदी ने लंड को अपने मुंह में आगे पीछे करना शुरू किया तो मैंने अपने हाथों में दीदी के बालों को पकड़ लिया । दीदी बड़े प्यार से मेरे लंड को चूस रही थी और मैं दीदी के ब्लाउज कट में से झांकती उनकी नंगी पीठ को सहलाने लग गया और सहलाते सहलाते मैंने ब्लाउज और ब्रा दोनों के हुक खोल दिये ।दीदी ने एक पल के लिए लंड को मुंह से बाहर निकला और अपना ब्लाउज और ब्रा को कंधे से अलग करने के बाद फिर से लंड को मुंह में भर लिया । दीदी मेरा आधे से ज़्यादा लंड अपने मुंह में ले चुकी थी और बड़ी तत्परता और मज़े लेकर चूस रही थी ।
कुछ देर लंड को और चूसने के बाद मैंने ही दीदी को खुद से अलग किया नहीं तो मैं शायद दीदी के मुंह में ही झड़ जाता जबकि मुझे तो अपना सारा पानी दीदी की चूत के लिए बचा के रखना था ।


फिर मैंने उनके पेटीकोट का नाड़ा खोल कर पेटीकोट उनकी टांगों से निकाल कर फर्श पर फेंक दिया । दीदी ने नीचे पैंटी नहीं पहनी थी तो जैसे ही मेरी नज़र दीदी की चूत पर पड़ी मेरे मुंह से जैसे लार सी टपक पड़ी । दीदी की चूत पर बालों का नामो निशान तक न था और कमरे की रोशनी में दीदी की चूत शाइन कर रही थी जैसे उसपर कोई चिकना पदार्थ लगाया गया हो ।
मैंने पहले अपनी नाक दीदी की चूत पर रगड़ कर उसकी महक का जायज़ा लिया । दीदी की चूत सी वैसलीन और चूत की मिली जुली महक आ रही थी जो मुझे और भी पागल कर रही थी ।

अब हम दोनों के शरीर पर कोई भी कपडा नहीं था । मैंने दीदी को बेड पर लिटाया और मैं दीदी की बगल में जाकर लेट गया । दीदी आँखें बंद किये पड़ी थी । मैंने दीदी का चेहरा अपनी और घुमाया और दीदी के होंठों पर अपने होंठ रख दिये । मैंने अपने हाथों को दीदी की चिकनी पीठ पर घूमना शुरू कर दिया । हमारी साँसें तेज होने लगी । एक दूसरे के होंठों का रसपान शुरू हो गया था । दीदी के चूचियां मेरे सीने में गड़ी हुई थी । हम दोनों की टाँगें एक दूसरे की टांगों में उलझी हुई थी और लंड चूत के आस पास पूरी तरह से अकड़ा हुआ झटके मार रहा था ।

हम दोनों होंठों की चुसाई करने के बाद अब एक दूसरे की जीभ चाटने लगे थे । बारी बारी एक दूसरे के मुँह के अंदर अपनी जीभ डाल कर मुँह के अंदर के हर भाग को चूम रहे थे । रह रह कर हम दोनों एक दूसरे को भींच रहे थे और कोशिश कर रहे थे कि जिस्म जो एक दूसरे से पूरी तरह से सटे हुए थे उनको और ज्यादा आपस में सटा दें ।

दीदी की पीठ का हल्का मखमली एहसास जो कभी कभी नितम्बों तक पहुँच जाता था वह मुझे मदहोशी की चरम सीमा तक ले जा रहा था । फिर मैंने दीदी के गले पर और कान के नीचे चूमना और चाटना चालू कर दिया । दीदी सिसकारियां भरने लगी और उसका शरीर एक नागिन की तरह अकड़ने और लोट पोट होने लगा जैसे ही कान का निचला हिस्सा मेरे मुँह में कैद हुआ तो दीदी के मुँह से एक हलकी सी आह्हः निकल गयी ।

फिर चूचियों को चूसते हुए और कुछ देर तक चूची की दोनों पहाड़ियों का रसपान करते हुए मैं नाभि तक पहुँच गया । नाभि पर पप्पियाँ ले कर मैंने जीभ को नाभि में घुमाना शुरू किया तो दीदी की सिसकारियों से कमरा गूंज उठा , ” aaaaaahhhh……..aaaaaaaaa…..aaaaaasssssssshhhh”।

फिर कमर के दोनों और जैसे ही चूमना चालू किया तो दीदी लेटे लेटे ही किसी नागिन की तरह रेंगने लगी । जैसे ही जीभ का स्पर्श नाभि के नीचे साइड में कमर के पास हुआ तो दीदी उसे बर्दाश्त नहीं कर पायी और मेरे सर के बालों को जोर से पकड़ कर भींच लिया जैसे मानों न चाहते हुए भी सर को हटाना चाहती हो ।

लेकिन दीदी को जो मजा मिल रहा था उसे महरूम होना उसके बस के बाहर था इसीलिए दीदी ने खुद ही फिर मेरे सर को वापस वही रख दिया । फिर मैंने नीचे सरक कर दीदी की चूत को अपने मुंह में भर लिया और दीदी ने अपनी दोनों टांगें उठा कर मेरी कमर के ऊपर एक फंदा बना दिया और अपने दोनों पावों को जोड़ लिया ।
अब दीदी की चूत इतनी गीली हो चुकी थी की रस की कुछ बूंदें बाहर चूत के लबों पर दिखाई देने लगी थी । मेरे होंठ जैसे ही फूली हुई दोनों गुलाबी पंखुड़ियों पर पड़े कि दीदी के मुँह से “aaaaaaouuuuuchhhhhh…” निकल गयी ।
दीदी की चूत के दाने पर जैसे ही जीभ टकरायी , ” aaahhh……..मैं मर जाऊँगी …..ishhhhhhhhhhhhhh….ahhhhhhhhhhh…प्लीज ….”.
मैंने जैसे ही दाने को दांतों के बीच भींचते हुए बड़े प्रेम से हल्का सा काटा तो दीदी के सब्र का बांध टूट गया ।

उसने बड़े कामुक अंदाज़ में कहा , " समू ! अब और सहन नहीं होता ।"


अब मैं दीदी के बदन के ऊपर आ गया । दीदी ने हाथ बढ़ा कर मेरे लंड को ऊपर से लेकर नीचे जड़ तक सहलाया और अपनी टांगें फैला कर अपनी आँखें बंद कर ली । मैंने बिना कोई देरी किये लंड को दीदी की पानी छोड़ती चूत के छेद पर भिड़ा दिया । दीदी ने आँखें बंद किये हुए ही अपने सीधे हाथ से मेरे लंड को पकड़ा और लंड के सुपाड़े को अपनी चूत के ऊपर 3-4 बार मसला । फिर खुद ही चूत के छेद पर टिका कर अपना हाथ मेरे हिप्स पर रखते हुए मुझे धक्का मारने का इशारा किया ।

और मैंने धीरे से लंड को अंदर पेल दिया । दीदी ने सिसकारी भरी , “ aaaaaaaaahh…..”
मैंने थोड़ा और लंड पर ज़ोर लगाया तो आधे से ज़्यादा लंड दीदी की चूत में समां गया ।
दीदी ने मेरे हिप्स को कस कर अपनी मुट्ठी में भींच लिया और आहें भरने लगी । “aaaaaaaaaaaa…….aaaaaaaaaaahhhhhhhhhh…aaassshh”

दीदी की चूत इतनी गीली थी कि लंड अपने आप ही अंदर फिसलता चला जा रहा था । थोड़ी ही देर में पूरा लंड दीदी की चूत में समां गया । दीदी मदहोशी में सीत्कार रही थी ।
फिर मैंने धीरे धीरे लंड को आगे पीछे करना शुरू किया और दीदी ने अपने पैर मेरे हिप्स के इर्द गिर्द लपेट दिए । मैंने धक्के लगाने की स्पीड बढ़ाई तो दीदी ने अपने दोनों हाथों के नाख़ून मेरी पीठ में गाड़ दिये , मेरी उत्तेजना और बढ़ गयी ।

दीदी भी मेरे हर धक्के पर अपने नितम्बों को उछाल कर मेरा साथ देने लगी और कामुकता भरी आवाज़ें मुंह से निकालने लगी , “ आआआह्ह्ह्ह
aaaaasssssssshhhh…..aaaaayysssshhh….aaaa……..aaaa…aaaaahhh”
मैंने लंड को अपने सुपाड़े तक बाहर खींचा और एक ज़ोरदार धक्का लगाया तो दीदी के मुंह से चीख सी निकल गयी , “ aaaaiiiiiiii……”
और दीदी मेरे कान में बुदबुदाई , “क क क्या …करताआआ ….है …स्स्स्समूउऊउउउउ ….आराम से ”
मैंने धक्के लगते हुए दीदी के कान में पूछा , “कक्कैसा …लगगगग रहा है आआ ….….”
दीदी ने सिसकारते हुए जवाब दिया , “आह हहहहह ..बब बहहुत … अच्छाआ आ …स्वीटू …”
फिर मैं जोश में आ गया और धक्के पर धक्के लगाने लगा और हर धक्के पर दीदी की चूत से फच फच की आवाज़ें आने लगी ।

मैंने एक नज़र अपने लंड पर डाली तो देखा कि लंड दीदी के चूतरस से पूरी तरह से सना हुआ था । मैंने अपनी स्पीड बढ़ा दी और लंड दीदी की चूत में किसी पिस्टन की तरह अंदर बाहर होने लगा । कुछ देर तक धक्के लगाने के बाद मुझे लगा कि अब मैं झड़ने वाला हूँ तो मैंने ज़ोर ज़ोर से धक्के लगाने शुरू कर दिये । दीदी ने भी मुझे कस के अपनी बाँहों में जकड़ लिया और अपने पैरों की ग्रिप को मेरे हिप्स पर और टाइट कर दिया । मैं समझ गया कि दीदी झड़ने के कगार पर हैं । तभी मेरे लंड ने ढेर सारा पानी दीदी की चूत में छोड़ा तो दीदी की साँसें और सिसकारियाँ एक साथ मिल कर कमरे में गूंजने लगी .. “aaaaaahhhhhh….huuuuuuun…..aaaaassssssssshhhhh…huuuuuunnnn…….aaaaaaa….huuuu”

दीदी भी मेरे साथ ही झड़ चुकी थी और मैं दीदी के ऊपर ही निढाल होकर गिर पड़ा और तेज़ तेज़ साँसें लेने लगा । दीदी भी आँखें बंद किये पड़ी थी और अपनी साँसों को नियंत्रित करने का प्रयास कर रही थी ।

कुछ पल बाद मैं उठ कर दीदी के बगल में लेट गया । फिर मैंने दीदी को अपनी तरफ घुमाकर दीदी के होंठों और गालों पर चुम्बन लिया और धीरे से कहा , " स्नेहा , शादी की बहुत बहुत बधाई ।"

दीदी ने मेरे होंठों पर अपने नाजुक होंठ रखते हुए कहा , " तुम्हें भी शादी की बधाई , समीर ।"

THE END
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