लाड़ला देवर ( देवर भाभी का रोमांस) complete

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pongapandit
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Re: लाड़ला देवर ( देवर भाभी का रोमांस)

Post by pongapandit »

मस्ती भरा अपडेट है बंधु
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Kamini
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Re: लाड़ला देवर ( देवर भाभी का रोमांस)

Post by Kamini »

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Ankit
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Re: लाड़ला देवर ( देवर भाभी का रोमांस)

Post by Ankit »


मे उसके पीछे पीछे दौड़ा, थोड़ा सा ही आगे जाकर वो झटके से रुक गयी, और एकदम से मेरे सामने आकर उसने मेरे गीले अंडरवेर के ऊपर से ही मेरे लंड को पकड़ लिया…

मेने उसकी गान्ड मसल्ते हुए कहा – कल रात से मन नही भरा तुम्हारा..?

वो मेरी आँखों में झाँकते हुए बोली – इसे देखकर फिर से मन करने लगा है..

प्लीज़ अंकुश एक बार और कर्दे ना यार.., ना जाने फिर मौका मिले या ना मिले…
मेरा भी रात के ड्रग का असर अभी वाकी था, सो मेने वही उसे घोड़ी बनाकर पीछे से उसकी मस्त गान्ड को मसल्ते हुए अपना लंड उसकी गान्ड में ठोक दिया…

वो बुरी तरह से कसमसाने लगी, लंड अभी आधा भी अंदर नही गया था, और वो हाए-तौबा करने लगी, और लंड बाहर निकालने के लिए गुहार करने लगी…

मेने भी उसे ज़्यादा परेशान करना ठीक नही समझा, वरना एक और लंगड़ी घोड़ी ग्रूप में शामिल हो जाती,

मेने उसकी गान्ड से अपना लंड खींचकर उसकी चूत में पेल दिया, उसकी एक बार और अच्छे से खुजली मिटाकर हम दोनो वापस आ गये…

अपने टेंट में जाने से पहले रीना ने मेरे होंठों को चूम लिया और बोली –

थॅंक यू अंकुश… तुम्हारे साथ बिताए लम्हों को जीवन भर नही भूल पाउन्गि.

मेने अपने टेंट में जाकर कपड़े चेंज किए, और फिर डरते-डरते रागिनी के पास गया, मुझे देखते ही रागिनी सुबकते हुए बोली –

मुझे तुमसे ये उम्मीद नही थी, मेने जो तुम्हारे साथ किया वो मेरी ज़िद थी तुम्हें पाने की, लेकिन तुमने तो….

अपनी बात अधूरी छोड़कर वो फिरसे सुबकने लगी…

मे उसके पास जाकर बैठ गया, और उसके कंधे को सहलाते हुए कहा - मुझे माफ़ कर दे रागिनी, सच्चाई जानने के बाद में अपने आपे में नही रहा.. सो तुम्हें सबक सिखाने के लिए ये सब कर बैठा…

सच कहूँ तो सुबह से ही मेरा मन आत्मगीलानी से भरा हुआ था, इसीलिए में नदी की तरफ चला गया था…

रागिनी ने अपने को शांत करते हुए कहा – इट्स ओके, ग़लती हम दोनो से ही हुई है..अब बेहतर होगा, कि बीती बातें भूलकर हम फिर से दोस्त रहें..

रागिनी के मुँह से ऐसी समझदारी भरी बातें सुनकर मेने उसे अपने बाजुओं में भरते हुए कहा…

ओह… थॅंक यू रागिनी, तुमने मुझे माफ़ कर दिया, अब हम पक्के वाले दोस्त हैं..

तभी रीना बीच में बोल पड़ी – मुझे भूल गये क्या…?

हँसते हुए हमने उसे भी अपने पास खींच लिया, और हम तीनों ही एक दूसरे से लिपट गये…

जीवन के किसी मोड़ पर फिरसे मिलने का वादा कर के मे अपने टेंट में चला गया, और अपना समान पॅक करने लगा…

दिन ढले हमारा टूर वापसी के लिए चल पड़ा, और दूसरे दिन सुबह हम अपने कस्बे में थे…

कुछ दिनो बाद ही हमारे फाइनल एग्ज़ॅम हो गये, मेने अच्छे ग्रेड से ग्रॅजुयेशन कंप्लीट कर लिया….!

रिज़ल्ट के बाद घर में बड़ों के बीच डिस्कशन का दौर शुरू हुआ, वीकेंड में दोनो भाई घर में मौजूद थे…

बड़े भैया का सुझाव था, कि मे उनकी तरह हाइयर स्टडी करूँ और किसी कॉलेज में लग जाउ…

लेकिन कृष्णा भैया चाहते थे, की मे उनकी तरह किसी प्रशासनिक पद के लिए तैयारी करूँ….

किसी को मुझे पूच्छने की तो जैसे कोई ज़रूरत ही महसूस नही हो रही थी, कि मे क्या चाहता हूँ…

तभी बाबूजी ने अपनी अलग ही राई रख दी और बोले – वैसे तो तुम सब लोग समझदार हो, जो भी कहोगे छोटू के भले के लिए ही कहोगे,

लेकिन मे चाहता हूँ, कि घर में कोई एक ऐसा भी हो जो क़ानून और अदालती कार्यों की जानकारी रखता हो.. तभी हमारा परिवार पूर्ण होगा…

भाभी ने मेरी तरफ देखा और बोली – तुम क्या चाहते हो लल्ला…?

मेने भाभी की तरफ धन्यवाद वाली नज़रों से देखा, कि चलो कम से कम भाभी को तो मेरी इच्छाओं का भान है…

उनकी बात सुनकर सब मेरी तरफ देखने लगे…

मेने कहा – मेरे विचार से हम सभी को बाबूजी की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए, रही बात मेरी अपनी इच्छा की तो वो भी उनके सम्मान से ही जुड़ी हुई हैं…

मेरी बात से बाबूजी की आँखें भर आईं, उन्होने मुझे अपने सीने से लगा लिया..और भरे कंठ से बोले –

जीता रह मेरे बच्चे…, पर बेटा मेने तो बस अपना विचार रखा था, ये तेरे ऊपर निर्भर करता है, कि तू क्या चाहता है…?

मेने उनसे अलग होते हुए कहा – मे बस ये चाहता हूँ, कि आप मुझसे क्या चाहते हैं…

हर माँ बाप अपनी आधी अधूरी हसरतों को अपने बच्चों के रूप में पूरा करना चाहते हैं, और यही सोच लेकर वो अपने बच्चों की परवरिश अपनी ख्वाहिशों को दफ़न कर के करते रहते हैं…
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Ankit
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Re: लाड़ला देवर ( देवर भाभी का रोमांस)

Post by Ankit »


तो बच्चों का फ़र्ज़ भी है, कि वो उनकी भावनाओं का सम्मान करें…

फिर मेने दोनो भाइयों से मुखातिब होकर कहा – आप लोगों ने भी तो वही राह चुनी जो बाबूजी ने सुझाई थी, तो मे कैसे अलग राह चुन सकता हूँ…

मेरी बातें सुनकर सबकी आँखें नम हो गयी, और बारी-बारी से सबने मुझे सीने से लगाकर आशीर्वाद दिया.

बाबूजी ने मेरे सर पर हाथ रखकर कहा - अब मुझे पूरा विश्वास है, कि तू जो भी करेगा उसमें अवश्य सफल होगा…!

आज मे ईश्वर का बहुत अभारी हूँ, जिसने मुझे इतने लायक बेटे दिए… मेरा जीवन धन्य हो गया…!

आज अगर तुम्हारी माँ जिंदा होती, तो अपने बच्चों को देख कर कितनी खुश होती..ये बोलते - बोलते माँ की याद में उनकी आँखें भर आईं.

भाभी ने बाबूजी से कहा – वो अब भी हमारे बीच ही हैं बाबूजी… आज इस घर में जो खुशियाँ दिख रही हैं, वो उनके त्याग और आशीर्वाद का ही तो फल है…!

बाबूजी ने भाभी के सर पर आशीर्वाद स्वरूप अपना हाथ रख कर कहा – तुम सच कहती हो बेटी,

लेकिन इन सबके अलावा विमला के जाने के बाद जिस तरह से तुमने अपनी छोटी उमर में इस घर को संभाला है, वो भी कोई मामूली बात नही है…

ये घर तुम्हारा हमेशा एहसानमंद रहेगा बेटी….

भाभी – भला अपनों पर भी कोई एहसान करता है बाबूजी…! मेने तो बस वही किया जो माजी मुझसे बोलकर गयी थी…

माहौल थोड़ा एमोशनल सा हो गया था, सभी की आँखें नम हो चुकी थी, इससे पहले की मामला कुछ और सीरीयस रूप लेता, कि तभी रूचि बीच में कूद पड़ी…

मम्मी ! आप लोग बात ही करते रहोगे, मुझे भूख लगी है..., सभी को उसके अचानक इस तरह बोलने से हँसी आ गयी, भाभी ने उठ कर उसे दूध दिया, तो माहौल थोड़ा नॉर्मल हुआ…

कुछ देर के वार्तालाप के बाद डिसाइड हुआ कि मुझे लॉ करना चाहिए, वो भी किसी अच्छे कॉलेज से, सो दूसरे दिन ही बड़े भैया, देल्ही के एक अच्छे से कॉलेज का फॉर्म ले आए…

मेरे ग्रॅजुयेशन के अच्छे नंबरों की वजह से देल्ही के कॉलेज में मुझे अड्मिशन मिल गया…, मे अपनी आगे की पढ़ाई के लिए देल्ही जाने की तैयारियों में जुट गया….!

देल्ही जाने से एक दिन पहले शाम को मे अपने सभी परिवार वालों से मिलने के लिए घर से निकला…

पहले बड़े चाचा के यहाँ, फिर मनझले चाचा-चाची से आशीर्वाद लेकर मे छोटी चाची के यहाँ पहुँचा…

चाचा कहीं बाहर गये थे.. चाची ने मुझे देखते ही, चारपाई पर बिठाया और अंश को रूचि के साथ खेलने को भेजकर वो मेरे पास आकर बैठ गयी…

सी. चाची – लल्ला ! सुना है, तुम दिल्ली जा रहे हो पढ़ने के लिए, इसमें तो सालों निकल जाएँगे…

मे – हां चाची लगभग 4 साल तो लग ही जाएँगे…!

वो – हाए राम ! 4 साल..? चाची दुखी सी दिखाई देने लगी ये सुनकर, फिर मेरे हाथों को अपने हाथों में लेकर बोली…

बहुत याद आओगे तुम, वैसे हम सबके बिना कैसे काटोगे इतने दिन अकेले…?

मे – क्या करूँ चाची काटने तो पड़ेंगे ही… अब बाबूजी की आग्या का पालन तो करना ही पड़ेगा… वैसे आप मुझे बहुत याद आओगी चाची…

मेरी बात सुनकर उनकी आँखें डॅब्डबॉ गयी, और मुझे अपने सीने से लगाकर बोली – सच बेटा…! तुम्हें अपनी चाची की याद आएगी..?

ना जाने क्यों , चाची के मुँह से पहली बार बेटा सुनकर मेरा भी मन भर आया, मेरी आँखों से आँसू छलक पड़े, और मे कसकर उनके सीने से लिपट गया…!

फिर मेने उन्हें अलग करते हुए, उनके आँसू पोंच्छ कर कहा – चाची , एक बार फिरसे बेटा कहो ना… ये शब्द सुनने के लिए कान तरस गये थे मेरे…

चाची – सच बेटा…! मेरा बेटा कहना अच्छा लगा तुम्हें.. ?

मे उनके सीने से एक बार फिर लिपट गया, और हिचकी लेते हुए कहा – हां चाची… मुझे बेटा कहने वाला कोई नही है… आप मेरी माँ बन कर मुझे अपने गले से लगा लो..!

चाची की रुलाई फुट पड़ी, और रोते हुए उन्होने मुझे अपने कंठ से लगा लिया… फिर मेरी पीठ सहलाते हुए बोली – माँ की याद आ रही है मेरे बेटे को… मुझे अपनी माँ ही समझ मेरे बेटे…

मेने रोते हुए कहा – हां ! आप मेरी माँ ही तो हो, जिसने अपने बेटे की हर ख्वाहिश का ख़याल रखा है अबतक…

कुछ देर एमोशनल होने के बाद मेने थोड़ा माहौल चेंज करने की गरज से चाची के होंठों को चूम लिया..और उनकी आँखों में देखते हुए कहा…

वैसे मेरे तो आपसे और भी नाते हैं.. हैं ना चाची…?

वो भी मुस्करा पड़ी, और मेरे होंठों पर प्यारा सा चुंबन लेकर बोली – तुम तो मेरे सब कुछ हो, बेटा, जेठौत (भतीजा)…और..और…

मेने शरारत से उनके आमों को सहलाते हुए कहा- और क्या चाची.. बोलो..

चाची – और मेरे बच्चे के बाप भी…फिर वो मेरी जांघों को सहला कर बोली –

वैसे सच में बहुत याद आएगी तुम्हारी… ख़ासकर इसकी.. ये कहकर उन्होने मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में ले लिया…

मेने उनके आमों को ज़ोर से मसल दिया – सीधे-सीधे कहो ना कि एक बार और चाहिए ये आपको….

वो उसे ज़ोर से दबाते हुए बोली – अभी समय हो तो दे दो ना.. एक बार..

मे – यहीं…?,

ये सुनते ही वो झट से खड़ी हो गयी, और मेरा हाथ पकड़ कर अपने बेडरूम की तरफ चल दी…
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