लाड़ला देवर ( देवर भाभी का रोमांस) complete

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Ankit
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Re: लाड़ला देवर ( देवर भाभी का रोमांस)

Post by Ankit »

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निशा की आप बीती –

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मेरी सहेली मालती… उसकी शादी एक साल पहले ठाकुर सुर्य प्रताप के बेटे भानु प्रताप से हुई थी.. अब ये क्यों हुई कैसे हुई.. इस बारे में हमें ज़्यादा कुछ मालूम नही पड़ा..

हां ! इतना पता है कि भानु के पिता खुद मालती के दादा के पास आकर उसका हाथ माँगने आए थे…

शादी बड़ी धूम धाम से हुई, मालती के दादा के पास भी ज़्यादा तो नही पर अच्छी-ख़ासी ज़मीन जयदाद है.. सो उन्होने अपनी पोती की शादी में कोई कसर नही रखी…

भानु कभी –2 मालती के साथ हमारे गाँव आता था, जैसे और वाकी के रिस्तेदार भी आते हैं…

6 महीने पहले.. एक दिन मालती हमारे घर आई.. और मुझे अपने साथ अपने घर ले गयी… उसके साथ घर पर उसका पति भी मौजूद था…

उसके दादा – दादी कहीं बाहर किसी रिस्तेदार के यहाँ गये हुए थे.. घर पर वो दोनो ही थे…

मालती ने मुझे चाय बना कर दी… उस चाय के पीने के कुछ देर बाद ही मेरा सर चकराने लगा… मेने मालती को ये बात बताई तो उसने कहा – वैसे ही सर चकरा रहा होगा.. तू बैठ मे अभी आती हूँ..

मे उसके रूम में बैठी थी… मेरी आँखें बार-2 बंद खुल रही थी… तो मे कुछ देर बाद उसी पलंग के सिरहाने से टेक लेकर बैठ गयी…

मेरी आँखें बंद थी… कि तभी किसी के हाथों का स्पर्श मेने अपने शरीर पर किया… मेने जैसे तैसे कर के अपनी आँखें खोली – देखा तो मालती का पति मेरे बदन को सहला रहा था..

मे झट से उठ खड़ी हुई… और मेने उससे कहा – जीजा जी ये आप क्या कर रहे हैं..? मालती कहाँ है…?

वो मक्कारी भरी हसी के साथ बोला – वो तो किसी पड़ोसी के यहाँ गयी है… और मेरा हाथ पकड़ कर बोला – मे अपनी साली साहिबा को प्यार कर रहा हूँ…

आओ रानी मेरे पास आओ.. और ये कह कर उसने मुझे अपनी बाहों में भरना चाहा…

मे किसी तरह उससे छूट कर वहाँ से बाहर जाने के लिए भागी.. लेकिन देखा तो गेट अंदर से बंद था…

इससे पहले कि मे दरवाजे को खोल पाती, कि उसने मुझे फिरसे पकड़ लिया.. और मेरे साथ ज़ोर जबर्जस्ती करने लगा… छीना झपटी में मेरे कपड़े भी फट गये..
जिन्हें वो और तार-तार करने लगा…

मे बेबस और लाचार, नशे से बोझिल हो रही आँखों को किसी तरह खोले हुए रखकर उसके बंधन से छूटने की जी तोड़ कोशिश करती रही…

निशा अपनी आप-बीती सुनाते हुए सुबक्ती जा रही थी…. वो हिचकी सी लेकर फिर आगे बोली –

उसी दिन मेरे निकलते ही भैया घर आए थे, उन्हें ऑफीस में बहुत अच्छा प्रमोशन मिला था, वो बड़े खुश थे और सबके लिए कुछ ना कुछ गिफ्ट लेकर आए थे…

घर आकर जब उन्होने मेरे बारे में पूछा तो माँ बाबूजी ने बताया कि मे मालती के यहाँ गयी हूँ…

जब काफ़ी देर हो गयी.. और मे घर नही लौटी.. अंधेरा घिरने लगा था,.. तो घर पर सब लोग चिंता करने लगे…

कुछ देर और इंतेज़ार करने के बाद भैया मुझे लेने उसके घर पहुँच गये…
घर में सन्नाटा पसरा हुआ था… वो उसके चौक में जाकर आवाज़ लगाने लगे…

उनकी आवाज़ सुन कर मे अपनी पूरी ताक़त जुटाकर चिल्लाते हुए मेने भैया को मदद के लिए पुकारा..

भानु ने मेरे गाल पर एक जोरदार चान्टा जड़ दिया… और गाली देते हुए बोला.. साली चिल्लाकर अपने भाई को बुलाना चाहती है… और फिर उसने मेरा मुँह दबा दिया…

भैया ने मेरी आवाज़ सुन ली थी… वो गेट खटखटने लगे… और साथ ही साथ मुझे आवाज़ भी देते जा रहे थे…

भानु का थोड़ा ध्यान गेट की तरफ भटका… मेने मौके का फ़ायदा उठा कर उसके हाथ को बुरी तरह काट लिया… वो चीखते हुए दर्द के मारे ज़मीन पर बैठ गया…

इतने में मेने भाग कर गेट खोल दिया… और मे भैया से लिपट कर रोने लगी…

मेरे कपड़े फट चुके थे.. होंठों से खून रिस रहा था..मेरी हालत देख कर भैया की आँखें गुस्से से लाल हो उठी..

उन्होने मेरी पीठ सहलाते हुए.. मुझे अपने पीछे खड़ा किया और गुर्राते हुए भानु तरफ बढ़े….

तूने ये अच्छा नही किया हरम्जादे…, मेरी बहन की इज़्ज़त पर हाथ डालकर अपनी आफ़त मोल ले ली है तूने…

इससे पहले की वो उस तक पहुँच पाते… भानु के हाथों में ना जाने कहाँ से एक लंबा सा चाकू लहराने लगा…

उसने चाकू का बार भैया के ऊपर करना चाहा…,लेकिन उन्होने अपने आप को बचाते हुए उसकी चाकू वाले हाथ की कलाई थाम ली…

अब वो दोनो एक दूसरे से गुत्थम-गुत्था हो चुके थे… कभी लगता की चाकू भैया की तरफ मूड गया, तो कुछ देर बाद उसका रुख़ भानु की ओर हो जाता…

मे खड़ी – 2 डर से थर-थर काँप रही थी…, मे किकरतव्यविमूढ़ सी कभी उसकी तरफ देखती, तो कभी भैया की तरफ…

उन दोनो में बहुत देर तक जद्दो जहद चलती रही, भानु की कोशिश थी कि वो चाकू का वार भैया पर कर सके, लेकिन उनकी मजबूत पकड़ उसकी कलाई पर बनी हुई थी…

फिर कुछ ऐसा हुआ कि चाकू वाला हाथ दोनो के बीच आ गया… और एक भयंकर चीख कमरे में गूँज उठी..

भानु का चाकू उसकी अंतड़ियाँ फाड़ते हुए उसकी पसलियों में जा घुसा था…

वो धडाम से फर्श पर गिर पड़ा.. चाकू उसके पेट में घुसा पड़ा था… भैया के कपड़े उसके खून से सन गये थे…
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Ankit
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Re: लाड़ला देवर ( देवर भाभी का रोमांस)

Post by Ankit »

मे दौड़ कर भैया से जा लिपटी और ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी… उन्होने मुझे चुप करते हुए वहाँ से निकल चलने को कहा…

अभी हम वहाँ से निकलने ही वाले थे कि तभी वहाँ मालती आ गयी.. वहाँ का मंज़र देखकर वो चीखने चिल्लाने लगी…

उसकी चीखें सुन कर मोहल्ले के लोग इकट्ठा हो गये…

उन्होने मेरी हालत देखी और फिर उनकी नज़र ज़मीन पर पड़े भानु के घायल शरीर पर पड़ी, जो दर्द से तड़प रहा था…

इतने में किसी ने पोलीस को इत्तला कर दी.. पोलीस ने आव ना देखा ताव… भैया को हथकड़ी लगा दी और अपने साथ थाने ले जाकर हवालात में बंद कर दिया…

इतना कहते-2 निशा बुरी तरह रोने लगी… भाभी उसे अपने से लिपटकर शांत करने की कोशिश करने लगी…
निशा की कहानी सुनकर मेरी हालत किसी लकवे के मरीज़ जैसी हो गयी, मे समझ नही पा रहा था, कि मुझे किस तरह से रिएक्ट करना चाहिए…

एक तरफ भानु और मल्टी के प्रति गुस्से का भाव भी था, तो दूसरी तरफ राजेश को बाहर निकालने की बैचैनि…

कुछ देर सबके बीच चुप्पी छाइ रही, फिर उसको तोड़ते हुए भैया ने आगे कहना शुरू किया…

हमने पोलीस को बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन शायद वो शुर्य प्रताप के रुआब के कारण हमारी बात अनसुनी करते रहे… और उन्होने राजेश के ऊपर इरादतन हत्या की कोशिश करने का चार्ज लगा कर दफ़ा 307 के तहत जैल भेज दिया…

मेने किसी तरह अपने मनोभावों पर काबू करते हुए पूछा – आपने कृष्णा भैया को ये बात नही बताई…? उन्होने कुछ नही किया..

भैया – कहा था… उसने शुरुआत में तहकीकात भी की… लेकिन फिर पता नही क्यों वो भी पीछे हट गया…

और ये कह कर पल्ला झाड़ लिया कि एक बार चार्ज शीट फाइल हो गयी.. और अपराधी को जैल भेज दिया तो फिर कोर्ट से ही अब कुछ हो पाएगा…

तबसे लेकर आज तक मेने और मोहिनी के पिताजी ने खूब जी तोड़ कोशिश की… लेकिन हम राजेश की जमानत तक नही करवा पाए हैं…

मे – आपने किसी वकील से बात की…? कोई हाइयर किया है…?

भैया – हां बात की थी एक वकील से लेकिन थोड़ी बहुत खाना पूर्ति कर के वो भी पीछे हट गया…

इस डर से की भानु या उसका बाप निशा को और कोई नुकसान ना पहुँचा दे हम उसे यहाँ ले आए…

इसके लिए भी कृष्णा ने बाबूजी पर दबाब डाला कि, एक मुजरिम की बेहन को यहाँ क्यों रखा है…,

तब तेरी भाभी ने बाबूजी को बताया कि निशा इस घर की धरोहर है… इसे तेरे सुपुर्द करने की हमारी ज़िम्मेदारी है…

अब तक हमने ये ज़िम्मेदारी जैसे-तैसे निभाई है मेरे भाई… अब तू इसे संभाल आज से ये तेरी ज़िम्मेदारी है…

मेने हैरत से भैया की तरफ देखा, तो वो बोले… हमें तेरी भाभी ने सब कुछ बता दिया है.. इसी वजह से इसके माँ-पिताजी ने इसकी शादी नही की थी.. वरना ये नौबत ही नही आती…

मेने भभक्ते लहजे मे कहा – भैया ! अब मे निशा से शादी तभी करूँगा… जब इसका भाई खुद इसे अपने हाथों से विदा करेगा… तब तक ये आपकी ही ज़िम्मेदारी रहेगी…

भैया – ये तू क्या कह रहा है मेरे भाई… हम अपनी पूरी कोशिश कर के थक चुके हैं, अब तो एक तरह से आस ही छोड़ दी हैं हमने…

मेने उनसे ठहरे हुए लहजे में कहा – ठीक एक हफ्ते में राजेश भाई हमारे पास होंगे, ये मेरा वादा है आप सबसे.. उसके बाद ही मे और निशा एक होंगे…

मेरी बात सुन कर सभी मुँह बाए मेरी तरफ देखने लगे…, मेने उनसे कहा – इसमें इतना चकित होने की क्या बात है.. ?

क्या आप भूल गये, बाबूजी ने ऐसे ही कुछ मौकों के लिए मुझे लॉ करने के लिए कहा था.... अब आगे कैसे और क्या करना है वो आप सब मुझ पर छोड़ दीजिए….

अब मे भानु को ही नही, पोलीस को भी क़ानून का वो सबक सिखाउन्गा कि कुछ समय तक याद रखेंगे..

मेरे इतना कहने से सबके चेहरों पर आशा की एक किरण दिखाई देने लगी….!

निशा की रुलाई अब थम चुकी थी, और अब वो अपने मन में एक शांति सी अनुभव कर रही थी.

भाभी ने अपने आँसू पोन्छ्ते हुए मेरे माथे को चूम लिया…., उनके चेहरे से अब चिंता की सारी लकीरें मिट चुकी थी…

जैसे उन्हें अब पूर्ण विश्वास हो गया हो, कि उनका लाड़ला देवर अब सब कुछ ठीक कर देगा..….!

कस्बे में कॉलेज के समय के मेरे बहुत सारे ऐसे दोस्त थे जो किसी के बिना दबाब में आए मेरा साथ देते रहे थे.…

मेने अपनी उन्हीं सोर्स से पता किया कि इस समय मालती और भानु कहाँ हैं…? और क्या कर रहे हैं…?

दो घंटे में ही मुझे उनके बारे मे पता चल गया.

ठीक होने के बावजूद भी भानु ड्रामा कर के शहर के हॉस्पिटल में ही पड़ा हुआ है…

उसकी पत्नी मालती भी शहर में उसके शहर वाले घर पर ही रहती है..

दिखावे के लिए कि वो उसकी सेवा कर रही है.. लेकिन वो दोनो वहाँ ऐश कर रहे हैं…

जब मर्ज़ी होती है, घर आ जाते हैं, जब मर्ज़ी होती है.. हॉस्पिटल में भरती हो जाता है, पैसे और पवर का इस्तेमाल कर के डॉक्टर भी मन मर्ज़ी रिपोर्ट बनाकर दे देता है.

ये इन्फर्मेशन मेरे लिए किसी रामबाण से कम नही थी, बस फिर क्या था, अपनी बुलेट रानी उठाई, जो बेचारी सालों से धूल में पड़ी अपने असली राजा के इंतजार में बस खड़ी थी…,

उसकी सॉफ सफाई की, और निकल लिया शहर की तरफ………………….

शहर का नामी गिरामी सहयोग हॉस्पिटल, जहाँ की डॉक्टर. वीना जैन, निहायत ही सुंदर और परफेक्ट फिगर की मालिकिन, जिसकी शादी को कुछेक ही साल हुए थे…

पति पत्नी दोनो ही इसी हॉस्पिटल में डॉक्टर हैं.., वो इस समय अपने कॅबिन में बैठी मरीजों को चेक कर रही थी…

नंबर बाइ नंबर मरीज आते वो उन्हें चेक करती…और मर्ज़ के मुतविक उन्हें प्रिस्क्रिप्षन लिख देती..

मे आइ कम इन डॉक्टर…! अगले मरीज़ ने जब अंदर आने की पर्मिशन माँगी.. तो डॉक्टर वीना ने अपनी शरवती आँहें उठाकर आवाज़ की दिशा में देखा…

आगंतुक को देखते ही वो उसकी पर्सनॅलिटी मे जैसे खो ही गयी… 6’2” की हाइट… गोरा रंग.. उँचे कंधे… चौड़ा विशाल सीना. वेल शेप्ड सीने के नीचे का बदन..

लाल रंग की फिटिंग वाली एक टीशर्ट और जीन्स में वो किसी कामदेव की तरह उसके गेट से धीरे-2 उसकी टेबल की तरफ बढ़ रहा था… वो मंत्रमुग्ध होकेर उसकी मर्दानी चाल में खो सी गयी…

एक्सक्यूस मी डॉक्टर ! युवक ने जब उसके सामने खड़े होकर कहा – तो जैसे वो नींद से जागी हो… और झेन्प्ते हुए बोली – यस प्लीज़…,

एर अपने सामने पड़ी चेयर पर बैठने का इशारा करते हुए बोली – व्हाट कॅन आइ डू फॉर यू…मिस्टर्र्र्र्र्र्र्र्ररर…

माइ नेम ईज़ अंकुश शर्मा ! कुछ दिनो से मे एक अजीब से दर्द से परेशान हूँ..

वीना – कहाँ पर है ये पेन…?

अंकुश (मे) – डॉक्टर, वो मेरी नबल के नीचे होता है.. और कभी – 2 इतना तेज होता है जैसे ये मेरी जान ही निकाल देगा…

वीना – चलिए वहाँ चेक-अप टेबल पर लेट जाइए.. और हां अपनी टीशर्ट उतार देना..

मेने अपनी टीशर्ट उतार कर वहीं चेक-अप टेबल के पास पड़े स्टूल पर रख दी…
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Re: लाड़ला देवर ( देवर भाभी का रोमांस)

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bahut badhiya
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &;
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- Raj sharma
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Re: लाड़ला देवर ( देवर भाभी का रोमांस)

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