बाबूजी थोड़े तल्ख़ लहजे में बोले – तो अब तुम मुझसे हिसाब-किताब माँग रही हो बहू..?
भाभी – नही बाबूजी ! आप ग़लत समझ रहे हैं… मे भला आपसे कैसे हिसाब माँग सकती हूँ..?
मे तो बस कह रही थी, कि कुच्छ समय पहले आप अकेले ही कमाने वाले थे, और खर्चे पहाड़ से उँचे थे, फिर भी आपने किसी बात की कोई कमी नही होने दी किसी को भी…,
पर अब तो इतने खर्चे भी नही रहे उपर से आमदनी भी बढ़ी है.. तो स्वाभाविक है कि बचत तो ज़्यादा होनी ही चाहिए….!
बाबूजी – मे ये सब तुम्हें बताना ज़रूरी नही समझता कि पैसों का क्या और कैसे खरच करता हूँ..?
भाभी – अगर मेरी जगह माजी होती, और यही बात उन्होने पुछि होती तो…, तो क्या उनके लिए भी आपका यही जबाब होता…?
भाभी की बात सुन कर बाबूजी विचलित से हो गये… जब कुच्छ देर वो नही बोले, तो भाभी ने फिर पुछा – बताइए बाबूजी… क्या माजी को भी यही जबाब देते आप..?
बाबूजी – उसको ये हक़ था पुछने का, वो इस घर की मालकिन थी…!
भाभी – क्यों ! उनके गुजर जाने के बाद मुझसे इस घर को संभालने में कोई कमी नज़र आई आपको…?
क्या उनके बाद इस घर की ज़िम्मेदारियाँ नही निभा पाई मे..? ये बोलते -2 भाभी की आँखों में आँसू आगये…!
फिर सुबकते हुए बोली - ठीक है बाबूजी.. जब मेरा कोई हक़ ही नही है कुच्छ सवाल करने का, तो मेरा इस घर में रहने का भी कोई मतलब नही है…,
इस बार जब रूचि के पापा यहाँ आएँगे, मे भी उनके साथ ही चली जाउन्गि.. !
बाबूजी भाभी की ओर देखते ही रह गये… अभी वो कुच्छ बोलते.., उससे पहले मे बोल पड़ा…
ठीक है भाभी, जहाँ आप रहेंगी वहीं मे रहूँगा… मे यहाँ किसके भरोसे रहूँगा… मे भी आपके साथ चलूँगा…!
अभी और भी अटॅक बाबूजी के उपर होने वाकी थे… सो मेरे चुप होते ही रामा दीदी भी बोल पड़ी –
मे भी आपके साथ ही चलूंगी भाभी, मे यहाँ अकेली क्या करूँगी..
बाबूजी की कराह निकल गयी, वो बोले – मुझे माफ़ कर्दे बहू.. मे भूल गया था, कि बिना औरत के घर, घर नही होता….
तुमने तो इस घर को विमला से भी अच्छी तरह से संभाला है.. इसलिए तुम्हें हर बात जानने का पूरा हक़ भी है….!
पर …! बोलते-2 वो कुच्छ रुक गये…! लेकिन अब जबाब तो देना ही था सो बोले –
अभी मेने वो पैसा कुच्छ इधर-उधर खर्च कर दिए है… लेकिन अब मे तुमसे वादा करता हूँ, आज के बाद इस घर के सारे पैसों का हिसाब किताब तुम रखोगी…!
बहू मे तुम्हारे आगे हाथ फैलाकर भीख माँगता हूँ, जिस तरह से तुमने अबतक इस घर को संभाला है, आगे भी सम्भालो… इस घर को बिखरने से बचा लो बेटा….!
बाबूजी की आँखें भर आईं, अपने आँसुओं को रोकने का प्रयास करते हुए वो उठकर बाहर चले गये..
भाभी के चेहरे पर एक विजयी मुस्कान तैर रही थी…
हमारी चौपाल पर ही एक बड़ा सा हॉल नुमा कमरा बैठक के लिए है, जो घर के बाहर मेन गेट के बराबर में है,
घर से उसका कोई डाइरेक्ट लिंक नही है, और ना ही उसका घर से कोई रास्ता….
बैठक की पीछे की दीवार से लगी सीडीयाँ हैं, जो उपर को जाती हैं, बैठक की दीवार में एक छोटा सा रोशनदान है जो जीने में खुलता है..
मे जल्दी से खाना ख़ाके सोने का बहाना करके अपने कमरे में चला गया…
भाभी ने भी काम जल्दी से निपटाया और सोने चली गयी, जिसकी वजह से अब दीदी को भी वहाँ बैठे रहने का कोई मतलब नही बनता था…
कोई दस बजे में जीने पर दबे पाँव चढ़ा, तब तक बैठक में पूर्ण शांति थी, वहाँ बाबूजी अकेले चारपाई पर लेटे हुए कमरे की छत को घूर रहे थे…
उनकी आखों में पश्चाताप के भाव साफ दिखाई दे रहे थे…
अभी आधा घंटा ही हुआ होगा कि दरवाजा खटखटाने की आवाज़ आई.. बाबूजी ने उठकर दरवाजा खोल दिया…
आशा के मुताबिक, सामने चंपा चाची हाथ में दूध का ग्लास लिए खड़ी थी…
बाबूजी, बिना कुच्छ कहे वापस अपने बिस्तर पर आकर बैठ गये..
चंपा रानी ने दूध का ग्लास पास में पड़ी एक टेबल पर रख दिया और वापस जाकर दरवाजा बंद करने चली गयी..
इतने में मुझे अपने कंधे पर किसी के हाथ का आभास हुआ, देखा तो भाभी मेरे बगल में खड़ी थी…
हम दोनो अब बेसब्री से अंदर होने वाले सीन के इंतेज़ार में थे…
चंपा रानी बाबूजी के बगल में आकर बैठ गयी… और बोली – आप लेट जाइए जेठ जी.. मे आपके पैर दबा देती हूँ..
बाबूजी – रहने दो चंपा, मे ऐसे ही ठीक हूँ.., फिर भी वो बैठे-2 ही उनकी जाँघ को दबाने लगी.. बाबूजी ने उसकी ओर मुड़कर भी नही देखा…
चंपा – आप कुच्छ जबाब देने वाले थे, नीलू की बाइक के लिए.. ?
बाबूजी ने झटके से कहा – क्यों ? नीलू तुम लोगों की ज़िम्मेदारी है.. मे क्यों बाइक दिलाऊ उसको..?
चंपा आश्चर्य से उनकी शक्ल देखने लगी… फिर कुच्छ देर बाद वो बोली – ये आप आज कैसी बहकी-बहकी बातें कर रहे हैं जेठ जी…
बाबूजी – क्यों ! इसमें क्या बहकी – 2 बातें लगी तुम्हें ? वो तुम्हारा बेटा है, उसकी ज़रूरतें तुम लोग पूरा करो…!
चंपा – दोपहर को आपने कहा था, कि रात को जबाब दूँगा… फिर अब क्या हुआ..?
बाबूजी – तो अब ना बोल दिया… बात ख़तम…
चंपा – ऐसे कैसे बात ख़तम…, भूल गये वो दिन.... जब जेठानी जी की मौत के बाद कैसे गुम-सूम से हो गये थे आप, मेने आपको वो सब सुख दिए जो आप पाना चाहते थे..
बाबूजी – तुमने भी तो मुझे दो साल में खूब लूट लिया.. अब और नही.. मेरे भी बच्चे हैं.. वो भी पुछ सकते हैं कि मे आमदनी का क्या कर रहा हूँ..
चंपा – ये आप ठीक नही कर रहे…! जानते हैं मे आपको बदनाम कर सकती हूँ, कहीं मूह दिखाने लायक नही रहेंगे…आप.
बाबूजी गुस्से में आते हुए बोले – अच्छा ! तू मुझे बदनाम करेगी हरामजादी, साली छिनाल, तू खुद अपनी चूत की खुजली मिटवाने आती है मेरे लौडे से..
तू क्या बदनाम करेगी मुझे… ठहर, मे ही खोलता हूँ दरवाजा और लोगों को इकट्ठा करके बताता हूँ.. कि ये यहाँ क्यों आई है…
इससे पहले कि मे तेरी गान्ड पे लात लगाऊ.. दफ़ा होज़ा यहाँ से…
ट्यूबवेल का पानी फ्री देता हूँ तुम लोगों को, बाग का अपना हिस्सा भी नही लेता, उससे तुम्हारा पेट नही भरा…
पता नही मेरे उपर क्या जादू टोना कर दिया तुमने, कि दो साल से मेरी सारी कमाई अपने भोसड़े में खा गयी..
लाड़ला देवर ( देवर भाभी का रोमांस) complete
- Ankit
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- Ankit
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Re: लाड़ला देवर ( देवर भाभी का रोमांस)
चंपा रानी ने ये सपने में भी नही सोचा था, वो तो यहाँ और खून चूसने के इरादे से आई थी, लेकिन यहाँ तो उल्टे बाँस बरेली लद गये… !
फिर भी उसने आखरी कोशिश की.. उठ कर दूध का ग्लास ले आई और बोली…
ठीक है जेठ जी.. मे आपसे अब आगे कुच्छ नही माँगूंगी… प्लीज़ आप नाराज़ मत होइए.. लीजिए दूध पी लीजिए, मे आपके लिए बादाम वाला दूध लाई थी…
बाबूजी – नही पीना तेरा ये जहर… क्या पता इसी से कोई टोना करती हो तू मेरे उपर..?
चंपा – कैसी बातें कर रहे हैं आप…? मे भला आपके उपर टोना-टोटका क्यों करूँगी… आप तो मेरे अपने हैं….!
बाबूजी – ऐसा है तो तू ही पी इसे मेरे सामने… और दफ़ा हो जा यहाँ से…
जब कुच्छ देर उसने कोई जबाब नही दिया तो उन्होने वो ग्लास उसके हाथ से छीन लिया और जबर्जस्ती उसे पिला दिया…!
खाली ग्लास उसके हाथ में थमा कर उसे गेट से बाहर धक्का दे दिया और दरवाजा बंद करके अपने बिस्तर पर बैठ गये…!
अपने सर को दोनो हाथों के बीच लेकर वो कुच्छ देर सोचते रहे.. फिर भर्राई आवाज़ में बोले –
मुझे माफ़ कर देना विमला… मे तेरे बच्चों के साथ न्याय नही कर पाया..
शायद भाभी की बातों ने उन्हें अपने कर्तव्य से भटकने से बचा लिया था..
पश्चाताप की आग में जलते हुए उन्होने अपने सर को दोनो हाथों में लेकर आँसू बहाते रहे..
हम दोनो की आँखें भी भीग गयी.. कुच्छ देर बाद वो बिस्तर पर लेट गये…
फिर उन्हें उसी अवस्था में छोड़ कर हम दोनो भी वहाँ से उठकर सोने चले गये….
मेने खेतों की देखभाल में बाबूजी का हाथ बटाना शुरू कर दिया था, उनकी हक़ीकत मेरे और भाभी के अलावा, हमने किसी और को पता नही चलने दी थी…
अब मे बाबूजी के लिए चिंतित रहने लगा…6 साल से विधुर का जीवन व्यतीत कर रहे आदमी के शरीर की ज़रूरतें उसे भटकने पर मजबूर कर ही सकती हैं…
जब मेने अपने आपको उनकी जगह रख कर देखा तो मुझे लगा कि बाबूजी ग़लत नही थे..
लेकिन जिस तरह से चंपा चाची ने उनकी भावनाओं को भड़का कर उनका फ़ायदा उठाया, वो ग़लत था…!
क्या मे बाबूजी के लिए कुच्छ कर सकता हूँ ? मेरे मन में ये विचार कोंधा…,
लेकिन क्या..?
ज़्यादा सोचने पर मुझे एक विचार सूझा… लेकिन उसे समय पर छोड़ कर अपने काम में लग गया..
इधर मेरे और छोटी चाची के बीच दिन में कम से कम एक बार खाट-कबड्डी ज़रूर ही हो जाती थी, वो दिनो-दिन खुलती ही जा रही थी मेरे साथ…
ऐसे ही एक दिन जब हम चुदाई कर रहे थे, चाची को मे एक बार टाँगें चौड़ा कर गान्ड के नीचे डबल तकिये रख कर जबरदस्त तरीके से चोद्कर झडा चुका था….
फिर कुच्छ देर बाद वो मेरे उपर आकर खुदसे गान्ड पटक पटक कर चुदने लगी…मेने उनकी मस्त गान्ड को मसलते हुए कहा…
मे – अच्छा चाची ! मान लो आप प्रेग्नेंट हो गयी तो मुझे क्या दोगि..?
चाची – अगर मगर की तो अब कोई गुंजाइश ही नही रही लल्ला…! मुझे तो पक्का यकीन है कि मे माँ बन ही गयी हूँ… अब तुम बताओ, तुम्हें क्या चाहिए…?
ये जान तो अपने बच्चे के लिए ज़ीनी है मुझे.. उसके अलावा जो मेरे बस में होगा वो सब तुम्हारा..
मे – ठीक है.. समय आने पर माँग लूँगा… और हां वो देना आपके बस में होगा.. ये मे अभी से कह सकता हूँ..
चाची – मे उस दिन का इंतेज़ार करूँगी…! अपने होनेवाले बच्चे के बाप को अगर मे खुच्छ खुशी दे पाई, तो वो मेरे लिए सबसे बड़ी खुशी होगी…….
अगले महीने रश्मि चाची को पीरियड नही आए, जब ये बात उन्होने मुझे बताई.. तो पता नही मुझे अंदर से एक अंजानी सी खुशी महसूस हुई…
दो दिन बाद उन्हें उल्टियाँ शुरू हो गयी, चाचा मेरे साथ उन्हें डॉक्टर के यहाँ दिखाने ले गये, तो ये बात कन्फर्म भी हो गयी की वो माँ बनने वाली हैं…
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Re: लाड़ला देवर ( देवर भाभी का रोमांस)
bhai masti ka khajana hai is kahani men
मस्त राम मस्ती में
आग लगे चाहे बस्ती मे.
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