कामलीला complete

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rangila
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Re: कामलीला

Post by rangila »

और फिर उसे ऐसा लगा जैसे कुछ निकलने वाला हो।
उसके दिमाग में सनसनाहट इतनी ज्यादा हो गई कि खुद पर कोई नियंत्रण ही न रहा… नसों में इतनी तेज़ खिंचाव पैदा हुआ कि वह एकदम कमान की तरह तन गई और होंठों से एक तेज़ ‘आह’ छूट गई।
उसे ऐसा लगा था जैसे उसकी योनि में मौजूद मांसपेशियों ने उसके अंतर में भरी ऊर्जा एकदम बाहर फेंक दी हो… वह बह चली हो… दिमाग सुन्न हो गया।
कुछ सेकेण्ड लगे संभलने में और दिमाग ठिकाने पर आया तो हड़बड़ा कर उठ बैठी।
चाचा को देखा जो अजीब सी नज़रों से उसकी बालों से ढकी योनि को देख रहा था… शायद समझने की कोशिश कर रहा था कि जैसे उस जगह पर उसके लिंग के रूप में एक अवयव निकला है, शीला के क्यों नहीं निकला।
उसने चाचा की तरफ पीठ करके अपनी टांगें फैलाई और नीचे देखने लगी… क्या निकला था… पेशाब था या कुछ और… उस वक़्त नाइटी का जो हिस्सा उसकी योनि के नीचे था वह थोड़ा सा भीगा हुआ था लेकिन वह उसे सूंघ कर भी यह तय न कर पाई कि वह क्या था?
बहरहाल आज पहली बार उसे जिस आनन्द की प्राप्ति हुई थी… उसे पहले कभी भी उसने नहीं महसूस किया था, स्वप्नदोष के समय सपने में जो भी मज़ा मिला हो, उसे चैतन्य अवस्था में याद करना सम्भव नहीं।
उसने एक भरपूर अंगड़ाई ली, उठी और सफाई में लग गई।
सफाई करके अपने कमरे में पहुंची तो उसे उस रोज़ ऐसी नींद आई कि सुबह भी जल्दी उठने को न हुआ।
सालों बाद उसने वह दिन ख़ुशी और संतुष्टि के साथ गुज़ारा…
शाम को चंदू की वजह से फिर मूड ख़राब हुआ… आज उसने आकृति को अकेले में पकड़ कर उसके वक्षों का ऐसा मर्दन किया था कि वह रोते हुए घर आई थी।
शर्म भी नहीं आती कमीने को… आकृति उससे आधी उम्र की थी, मगर उस कमीने की नियत का कोई ठिकाना नहीं था।
रात को बिस्तर के हवाले होते वक़्त उसके दिमाग से चंदू निकल गया और फिर शरीर की दबी कुचली इच्छाएं सर उठा कर उस पर हावी हो गईं।
वह बहुत देर चाचा की ‘ईया’ का इंतज़ार करती रही लेकिन चाचा ने पुकार न लगाई… वैसे भी उसे रोज़ यह हाजत नहीं होती थी तो उसने खुद ही यह करने का फैसला किया।
कमरे को बन्द करके और अंधेरा करके आज उसने अपने पूरे कपड़े उतार दिए।
तेल का प्रबंध उसने पहले ही कर रखा था… अपने दोनों हाथ तेल में नहला कर पहले वह अपने वक्षों को धीरे-धीरे सहलाने-दबाने लगी… चुचुकों को चुटकियों में पकड़ कर खींचने मसलने लगी।
धीरे-धीरे पारा चढ़ने लगा और वक्षों से पैदा होती उत्तेजना की लहरें योनि में उतरने लगीं।
जब उसे अपनी योनि में गीलापन महसूस हुआ तो उसने एक हाथ वहां पहुंचा लिया और उसे सहलाने रगड़ने लगी… कल के अनुभव से पता था कि मेन पॉइंट कहां था तो आज उसी पे ज्यादा फोकस कर रही थी।
कभी इस हाथ से कभी उस हाथ से और दूसरा हाथ वक्षों का मर्दन करता रहता।
करते-करते चरमोत्कर्ष की घड़ी आ पहुंची और हाथों में तेज़ी लाते हुए उसने खुद को उस बिंदु तक पहुंचा ही लिया जहां स्खलन का शिखर मौजूद था।
फिर सुकून के साथ बिना कपड़ों के ही सो गई।
अगले दो दिन यही सिलसिला चला।
और चौथे दिन रात को चाचा ने पुकार लगाई।
उसे ऐसा लगा जैसे उसके रोम-रोम में चिंगारियां छूट पड़ी हों… वह ऐसे खुश हो गई जैसे कोई मनमांगी मुराद मिल गई हो।
वह जितनी जल्द हो सकता था चाचा के कमरे में पहुंच गई और चाचा को भी उसे देख कर तसल्ली पड़ गई… उसका बाहर निकला लिंग जैसे उसी की प्रतीक्षा में था।
चाचे को किनारे सरकाते हुए वह उसके पास बैठ गई और हाथों में तेल लेकर एक हाथ से चाचा का लिंग मसलना शुरू किया और दूसरे हाथ से अपनी योनि।
जब आधा सफर तय हो चुका तो उसके ज़हन के किसी कोने ने सवाल किया कि ज़रूरी क्या था… चाचा का वीर्यपात या उसके लिंग को हाथ से रगड़ने की क्रिया?
उसके ज़हन ने ही इसका जवाब भी दिया कि ज़रूरी वीर्यपात था तो उसके लिए एक ही तरह की क्रिया की अनिवायर्ता क्यों? कोई दूसरा तरीका भी तो हो सकता था…
कोई दूसरा तरीका क्या?
वह सोचने लग गई… वीर्यपात का कारण घर्षण था जो उसके हाथ से मिलता था… अगर यह घर्षण किसी और तरीके से दिया जाये तो… किस तरीके से?
दिमाग ने ही एक तरीका सुझाया।
उसने चाचा को खींच के बीच में किया और अपने दोनों पैर उसके इधर-उधर रखते हुए उस पर ऐसे बैठी कि चाचा का लिंग उसके पेट पे लिटा दिया और उसकी जड़ की तरफ अपनी योनि टिका दी।
अपनी उंगलियों से योनि के दोनों होंठ ऐसे फैला दिये कि चाचा का लिंग अंदर की चिकनाहट और गर्माहट को महसूस कर सके और खुद उसकी योनि चाचा के गर्म और तेल से सने लिंग को महसूस कर सके।
फिर अपने नितंबों पर ज़ोर देते हुए आगे की तरफ वहां तक सरकी जहां तक चाचा के लिंग का बड़े आलू जैसा शिश्नमुंड था… और फिर वापस होते जड़ तक।
यहां इस बात का खास ध्यान उसने रखा था कि उसके बदन का बोझ उसके घुटनों पर ही रहे न कि चाचा के पेट पर जाए।
और चाचा आँखें खोले जिज्ञासा से देख रहा था कि वह क्या कर रही है… सामने से उसे शीला की योनि के ऊपर मौजूद काले घने बाल ही दिख रहे होंगे।
और योनि भी दिख जाती तो उसे क्या फर्क पड़ना था, उसे कोई समझ ही नहीं थी… पर वह अपने लिंग पर फिसलती खुली योनि के गर्माहट भरे घर्षण को साफ़ महसूस कर सकता था।
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Kamini
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Re: कामलीला

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rangila
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Re: कामलीला

Post by rangila »

शायद यह उसके लिए सख्त हाथों से ज्यादा बेहतर अनुभव था। उसने सर तकिये से टिका कर आँखें बंद कर ली थीं और उस घर्षण में खो गया था।
जबकि यह घर्षण शीला को योनि के निचले सिरे से लेकर ऊपर भगांकुर तक लगातार मिल रहा था और इस किस्म की लज़्ज़त दे रहा था जिसे वह शब्दों में बयां नहीं कर सकती थी।
अपनी नाइटी उसे अवरोध लग रही थी… उसने नाइटी को नीचे से उठा कर पेट पर बांध लिया था, अब उसका कमर से नीचे का पूरा निचला धड़ अनावृत था।
उसने अपने हाथ अपनी जांघों पे टिका लिये थे और सर पीछे की तरफ ढलका कर सिसकारते हुए अपने नितंबों के सहारे योनि को तेज़ी से ऊपर-नीचे करने लगी थी।
उसे ऐसा लगा था जैसे उसके निचले हिस्से में कोई ज्वालामुखी पैदा हो गया हो, जिसमे भरा लावा उबालें मार रहा हो, किनारों को तोड़ कर बाहर निकल आना चाहता हो।
इस यौन-उत्तेजना ने उसके ज़हन के सारे दरवाज़े बंद कर दिए थे और शरीर का सारा नियंत्रण उसकी योनि के हाथ में आ गया था… इच्छाएं बलवती होती जा रही थीं।
इस घर्षण के बीच एक वक़्त ऐसा भी आया जब उसकी योनि के अंदर मौजूद सुराख अपने हक़ की मांग करने लगा। उसकी योनि का बार-बार दबता रगड़ता वह छेद जैसे उससे कह रहा हो कि मुझे भर दो।
इस बेचैनी और तड़प ने उसकी एकाग्रता में खलल पैदा कर दिया।
सेक्स रिलेटेड ज्यादातर चीज़ों से वह अनजान थी लेकिन इस बेसिक चीज़ से नहीं, उसने जानवरों को अपना लिंग योनि में घुसाते देखा था, जब भी उसे स्वप्नदोष हुआ था उसने योनि-संसर्ग देखा था।
उसे पता था लिंग का अंतिम ठिकाना योनि की गहराइयों में ही होता है।
और आज वह इस बाधा को भी पार कर जाने पर अड़ गई।
वह चाचा के ऊपर से उठ गई और खुद उसके लिंग को पकड़ कर सीधा कर लिया।
अब उसके ऊपर इस तरह बैठने की कोशिश की, कि लिंग उसकी योनि के छेद में उतर जाये… लेकिन चिकनाहट और फिसलन इतनी ज्यादा थी कि लिंग फिसल कर पीछे की दरार में चढ़ता चला गया।
उसने फिर आगे की तरफ रखते हुए छेद पर टिकाया और उस पर बैठने की कोशिश की तो इस बार वह फिसल कर उसके बालों से रगड़ खाता पेट की तरफ चला गया।
उसे झुंझलाहट होने लगी…
उसने कई बार कोशिश की लेकिन कहीं वह पीछे चला जाता तो कहीं ऊपर… चाचा भी उलझन में पड़ कर उसे देखने लगा था।
‘दीदी…’ तभी एक तेज़ आवाज़ गूंजी।
उसके ऊपर जैसे ढेर सी बर्फ आ पड़ी हो… ऐसा लगा जैसे किसी ने उसे दसवीं मंज़िल से नीचे फेक दिया हो… दिल धक से रह गया… सांस गले में फंस गई, ठंड के बावजूद पसीना छूट पड़ा।
उसने आवाज़ की दिशा में देखा… बिना पल्लों की खिड़की पर पड़ा पर्दा एक कोने से उठा हुआ था और एक चेहरा उसकी तरफ झांक रहा था।
‘दीदी!’ चेहरे ने फिर पुकारा तो उसकी समझ में आया कि वह रानो थी।
उसे एकदम जैसे करेंट सा लगा और वह चाचा के ऊपर से हट गई… चाचा की समझ में कुछ भी नहीं आया था और वह उलझन में पड़ा इधर उधर देख रहा था।
शीला ने अपनी नाइटी नीचे की और आगे बढ़ के दरवाज़ा खोल दिया…
‘दीदी।’
उसके होंठों के कोर कांपे मगर शब्द हलक में ही घुंट कर रह गए और वह एकदम आगे बढ़ कर अपने कमरे में घुस गई। दरवाज़ा उसने पीछे ‘भड़ाक’ से बन्द कर लिया।
उधर शीला के हटते ही चाचा उठ बैठा था और एकदम मुट्ठियाँ बिस्तर पर पटकते ‘ईया-ईया’ करने लगा था। रानो उलझन में पड़ गई कि इधर जाए या उधर।
फिर उसकी समझ में यही आया कि शीला समझदार है खुद को संभाल सकती है लेकिन चाचा को कोई समझ नहीं थी और ऐसी हालत में उसे सिर्फ वीर्यपात ही शांत कर सकता था।
उसका यौन-ज्ञान शीला से बेहतर था… उसने देर नहीं लगाई और लपक कर चाचा के पास पहुंच कर उसके तेल और शीला के कामरस से सने और चिकने हुए पड़े लिंग पर हाथ चलाने लगी।
चाचा शांत पड़ते-पड़ते फिर लेट गया और रानो ने उसे अंत तक पहुंचा के ही छोड़ा। फिर गीले कपड़े से उसकी सफाई करके वहां से निकल आई।
शीला का दरवाज़ा अभी भी बंद था… उसने शीला को पुकारते हुए दरवाज़ा खटखटाया। दो तीन बार खटखटाने के बाद दरवाज़ा खुला।
सामने शीला लाल आँखें लिए खड़ी थी… देख कर ही अंदाज़ा होता था कि रो रही थी।
रानो उसे अंदर करते खुद भी अंदर आ गई और दरवाज़ा बंद कर दिया, फिर उसे अपने सहारे चला कर बिस्तर पर लाकर बिठाया और उसके हाथ अपने हाथ में लेकर मलने लगी।
‘दीदी… मैंने तुम्हें पुकार नैतिकता का ज्ञान देने, सामाजिक मूल्यों की याद दिलाने या ताने-उलाहने देने के लिए नहीं लगाई थी।’
‘फिर?’
‘बाज़ रखने के लिए लगाई थी कि जो कर रही थी वह सम्भव नहीं था।’
शीला ने अपनी सूजी हुई आँखें उठा कर सवालिया निगाहों से उसे देखा।
‘दीदी, मैं कौन होती हूँ तुम्हें दुनिया के नियम कायदे बताने वाली… शरीर की जो ज़रूरतें तुम्हें जला रही हैं, क्या उन्हें मैंने नहीं झेला? शरीर में पैदा होने वाली इच्छाओं का बोझ मैंने भी तो उठाया है।’
‘तू… तू समझ सकती है मेरी तकलीफ?’
‘क्यों नहीं दी… क्या मेरी तकलीफ उससे अलग है।’
‘तू नीचे आई कैसे?’
‘पेशाब करने आई थी तो तुम्हारी सिसकारियां सुनी… समझ न सकी तो आके देखा। शर्मिंदा मत हो दी, मुझे देख कर बुरा नहीं लगा, बल्कि इस समाज पे क्रोध आया था जिसने हम जैसी लड़कियों-औरतों के लिए कोई स्पेस नहीं छोड़ा।’
शीला के सब्र का बांध टूट पड़ा और वह रानो के सीने से लग कर फफकने लगी, रानो उसकी पीठ थपथपाते हुए उसे सांत्वना देने लगी।
‘दी, ये मर्यादाएं, नियम, नैतिकता के दायरे, समाज की बेहतरी के लिए खींचे गए थे वरना हर इंसान जानवर ही बना रह जाता…
मानती हूं कि इनकी ज़रूरत है हमें और समाज इन्हीं की वजह से टिका है लेकिन शिकायत बस इतनी है कि इसमें हम जैसी बड़ी उम्र तक कुंवारी बैठे रहने वाली लड़कियों औरतों के लिए घुट-घुट के जीने के सिवा कोई गुंजाईश नहीं छोड़ी गई…’
हमें समाज में स्वीकार्य यौन-संसर्ग उपलब्ध नहीं तो क्या हममें इतनी सामर्थ्य है कि हम अपनी यौन-इच्छाओं को ख़त्म कर सकें…
ये समाज के बनाये नियम क्या शरीर को बांध पाते हैं, जो बस अपनी ज़रूरत देखता है और ज़रूरत के हिसाब से रियेक्ट करता है।
सही-गलत, अच्छा-बुरा, स्वीकार्य-अस्वीकार्य और नैतिक-अनैतिक के मापदंड हम जैसी अभिशप्त जीवन जीने पर मजबूर स्त्रियों के लिए भला क्या मायने रखते हैं?’
‘हम कुछ भी बदल नहीं सकते… क्या करें फिर रानो? ऐसे ही सुलग-सुलग कर ख़त्म हो जायें?’
‘इसीलिए तो कहा कि जब नियम बनाने वालों ने हमारे लिए कोई गुंजाईश नहीं छोड़ी तो हम क्यों उनकी परवाह करें… क्यों न हम उन्हें ठुकरा दें।
क्यों न हम उन बेड़ियों को तोड़ दें… जो तुम कर रही थी वो उन नियमों की नज़र में गलत था जो उन मर्दों ने बनाये हैं जिनकी शादियां न हों तो भी उन्हें भोगने के लिए औरतों की कमी नहीं होती।’
रानो की बातों से उसे तसल्ली मिली… कुछ देर के लिए वह खुद की ही नज़र में गिर गई थी और लगता था कि अपनी बहन से भी कभी आँखें न मिला पायेगी मगर अब खुद में आत्मविश्वास पा रही थी।
रानो खुद भी लेट गई और उसे भी लिटा लिया।
‘पर जो मैं कर रही थी वह संभव क्यों नहीं हो पा रहा था… यौन-संसर्ग का अर्थ लिंग द्वारा योनिभेदन ही तो होता है।’
‘हां दी, पर प्रकृति ने हर कांटिनेंट के हिसाब से शरीरों के जोड़े बनाये हैं और उसी हिसाब से उनके अंग विकसित किये हैं… जैसे सबसे बड़े लिंग नीग्रोज़ के होते हैं, उसके बाद अंग्रेज़, योरोपियन के और फिर एशिया के लोगों के और सबसे छोटे पूर्वी एशिया के।
और उसी हिसाब से उनकी सहचरियों की सीमा और क्षमता भी होती है. भारतीय पुरुषों के साइज़ चार इंच से लेकर सात इंच तक ही होते हैं।’
‘तो चाचा का इतना बड़ा क्यों है… हब्शियों जैसा।’
‘शायद भगवन ने चाचा को दिमाग की जगह लिंग दे दिया है। चाचा जन्मजात कई विकृतियों का शिकार है, दिमाग, उल्टा हाथ, रीढ़ और शायद यह भी किसी किस्म की विकृति ही है।’
‘तो क्या कोई बड़े लिंग वाला नीग्रो किसी चीनी लड़की से सेक्स नहीं कर सकता?’ उसे हैरानी हुई।
‘सेक्स तो कोई भी किसी से कर सकता है… लंबाई मैटर करती है तो योनि की गहराई के हिसाब से ही आदमी अंदर बाहर करेगा और मोटाई ऐसी किसी भी लड़की या औरत के लिए मायने नहीं रखती जिसकी योनि अच्छे से खुली हुई हो।’
‘मतलब?’
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Re: कामलीला

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‘मतलब यह कि चाचा का लिंग किसी नीग्रो जैसा है और तुम्हारी योनि पूरी तरह बंद, अभी उसमे एक उंगली भी न गई होगी… चाचा का लिंग किसी भी ऐसी स्त्री की योनि में जा सकता है जो पहले अच्छे से सेक्स कर चुकी हो।
फिर चाहे वो इंग्लिश हो, भारतीय या चीनी, लंबाई वो अपनी गहराई के हिसाब से एडजस्ट कर लेगी लेकिन तुम्हारी योनि का रास्ता अभी नहीं खुला… चाचा का लिंग कैसे भी उसमे नहीं जायेगा।’
‘फिर?’
‘फिर यह कि पहले तुम्हें योनि ढीली करनी होगी, चाहे खुद से चाहे किसी और भारतीय साइज़ के लिंग से… जब रास्ता बनेगा तो तकलीफ होनी तय है, मगर ये तकलीफ किसी सात इंच वाले से भी मिले तो जैसे तैसे झेल लोगी लेकिन किसी नीग्रो या चाचा से मिले तो शायद बर्दाश्त भी नहीं कर पाओगी।’
‘तू आज बड़ी बड़ी बातें कर रही है…’
‘क्योंकि हमने एक कश्ती के सवार होते हुए भी आज तक इस ज़रूरी विषय पर कभी बात नही की लेकिन आज जो हालात हैं उनकी रूह में हमारा बात करना ज़रूरी है।’
‘तुझे इन चीज़ों के बारे में इतना कैसे पता?’
‘सोनू के स्मार्टफोन पे कई ऐसी पोर्न क्लिप्स देख के, ऐसा पोर्न कंटेंट पढ़ के और साइबर कैफ़े में भी कभी इन चीज़ों के बारे में जानकारी हासिल की है।’
‘सोनू के फोन पर? उसने तुझे क्यों दिया अपना फोन इस सब के लिए?’
‘दी, प्लीज अब तुम नैतिक-अनैतिक की ठेकेदारी लेके न बैठ जाना…’
‘नहीं… पर बता तो सही कि बात क्या है?’
‘तुमने अपनी शारीरिक ज़रूरतों के आगे बहुत देर में हार स्वीकार की लेकिन मैंने बहुत पहले कर ली… शायद तुम पुराने ज़माने की थी।
इसलिए अनदेखे भगवन पर यकीन किये, कुछ अच्छा होने के इंतज़ार में बैठी रही लेकिन मैं नई सोच की हूं… जो अपने आप मिलने की उम्मीद दूर-दूर तक न दिखे उसे आगे बढ़ के हासिल कर लेना ही ठीक।’
‘मतलब… तू सेक्स कर चुकी है?’ वह आश्चर्य से उठ कर बैठ गई।
‘कई बार…. बल्कि शायद पचास बार से ज्यादा।’
रानो ने उसकी आँखों में देखते हुए इत्मीनान से जवाब दिया था और वह उसे घूरने लगी थी… उसे रानो का ये नैतिक पतन बुरा लगा था।
क्यों लगा, जब खुद भी उसी राह चल चुकी थी तो…
शायद प्रतियोगिता का अनदेखा अहसास, शायद पांच साल छोटी बहन से हार जाने की चोट।
जो सबक वह तीस साल की उम्र में सीख पाई वह उसने पच्चीस साल में कैसे सीख लिया?

रानो ने उसकी बांह पे दबाव बनाते हुए उसे फिर लिटा लिया और उसका चेहरा अपनी तरफ कर लिया… उसकी आँखों में फिर आंसू आ गए थे।
‘क्यों बुरा लगा दी? कि मैंने तुम्हें नहीं बताया… एक सीख मुझे रंजना ने दी थी वही आज छोटी होने के बावजूद तुम्हें दे रही हूँ।
अपना नंगा तन तब तक छुपाओ जब तक सामने वाला नंगा न हो जाये, जब वह भी नंगा हो जायेगा तो छुपावे की ज़रूरत ही न रह जाएगी।’
‘कौन है वह?’ पूछते हुए उसने महसूस किया कि बचपन के संस्कारों ने ज़ोर मारा था और उसने अच्छे-बुरे के ठेकेदारों के अंदाज़ में पूछा था।
‘सोनू।’
‘क्या? रानो तू पागल हो गई है क्या…’ वह चौंक कर फिर उठने को हुई लेकिन रानों ने न उठने दिया, ‘सात साल छोटा है तुझसे, गोद खिलाया है तूने… दीदी कहता है तुझे!’
‘अब मुझे गोद में खिलाता है… चाचा भी उम्र में दस साल बड़ा है न तुमसे और सगा चाचा है, क्या फर्क रोक पाया तुम्हें?’
‘वह समझदार नहीं जो इन बातों को समझे… फिर मर्द बड़ा हो तो चलता है मगर…’
‘वह समझदार नहीं तुम तो समझदार थी, ताना नहीं दे रही, समझाने की कोशिश कर रही हूं कि हमें शादी नहीं करनी और जब मकसद सिर्फ तन की ज़रूरतों को पूरा करना हो तो उम्र क्या मायने रखती है?’
वह सोच में पड़ गई… रानो और सोनू के बीच का जो रिश्ता एकदम उसे हज़म न हुआ और वह ऐतराज़ और हैरानी जाता बैठी… उसे उसने अपने और चाचा के रिश्ते से कंपेयर किया।
क्या गलत था… पर सोनू के घर वाले, उसकी बहन रंजना… वह सब क्या सोचेंगे?
‘क्या सोचने लगी… बाकियों के बारे में… उन्हें क्या करना। लड़का जवान है, कहीं न कहीं तो मुंह मरेगा ही, घर में ही जुगाड़ हो रहा है तो क्या बुराई है?
और रह गई रंजना… तो वह भी उसी आग की झुलसी है जिसमे हम थे, वही तो थी जिसने मुझे रास्ता सुझाया था, जिसने मुझे अपना सुख खुद पा लेने का तरीका सिखाया था।’
‘कैसे… कैसे हुआ यह सब?’
‘पूरा सुनेगी… इंटरेस्टिंग कहानी है मेरी भी, इस बहाने मैं भी याद कर लूं कि कभी मैं भी कुंवारी थी और कैसे मेरा कौमार्य लुटा था।
वह भी अपने से सात साल छोटे उस लड़के के हाथों जो मुझे दीदी कहता था, जिसे मैंने गोद खिलाया था और छोटा भाई ही समझती थी।’
‘सुनाओ…’ अंततः उसने एक लंबी सांस खींचते हुए आँख बन्द कर ली जैसे रानो के शब्दों को अपनी कल्पना में जी लेना चाहती हो…
और रानो भी छत देखती जैसे सब कुछ वैसे ही याद करने लग गई जैसे गुज़रा था।
‘सोनू सात साल छोटा है मुझसे, कभी ध्यान ही नहीं दिया कि जिसे मैं बच्चा समझती हूँ, वो कभी तो बड़ा होगा। कब वह बड़ा हो गया एहसास ही नहीं हुआ।
और अहसास हुआ तो तब जब एक दिन उसके हाथों की छुअन में मर्दानी गर्माहट महसूस की… तब उसकी कई पिछली ऐसी बातें याद आईं जिन्हें मैंने इत्तेफ़ाक़ समझ कर इग्नोर कर दिया था।
ऐसा नहीं था कि उसका मेरे प्रति आकर्षण एकदम से हुआ था बल्कि शायद तब से ही उसमे इस तरह की भावनाएं पैदा होने लगी थीं जब वह आठवीं में था और जब बारहवीं तक पहुंचा तो मेरे प्रति उसकी भावनाएं पूरी तरह बदल चुकी थीं।
कभी जो लड़की उसके लिए ‘दीदी’ होती थी, कब ‘माल’ में बदल गई, उसके बताये ही मुझे मालूम है कि उसे इस बदलाव का अहसास भी नहीं हो सका था और वह कैसे धीरे-धीरे मुझे याद करते हस्तमैथुन करने लगा था।
उसने अपनी भावनाएं जताने के लिए कई बार मुझे इधर-उधर छुआ था, अपने हाथ लगाए थे लेकिन चूंकि मैंने उसे हमेशा अपने से सात साल छोटे ‘भाई जैसे’ की नज़र से ही देखा था इसलिए महसूस ही न कर सकी थी।
पर उस दिन मुझे कॉलेज से अपने कागज़ लेने जाना था, और रंजना ने ही उसे मेरे साथ भेज दिया था कि न सिर्फ मेरी मदद करेगा बल्कि खुद भी उसे वहां काम था कुछ।
हम बस से गये थे… जो बुरी तरह भरी हुई थी और सोनू भीड़ में मुझसे सट के ही खड़ा था। मैंने महसूस किया कि किसी का हाथ मेरे नितंबों पर फिर रहा है…
बचपन के संस्कार थे… महसूस करते ही तन-बदन सुलग उठा और मुड़ के देखा तो एकदम समझ में नहीं आया कि कौन हो सकता था क्योंकि पीछे तो सोनू ही था।
मुझे मुड़ते देख उसने हाथ भी फ़ौरन हटा लिया था इसलिए और न समझ सकी… पर थोड़ी देर बाद उस हाथ को जब फिर अपने नितम्बों पे महसूस किया तो इस बार उसी हाथ की ओर एकदम से गर्दन घुमाई।
उसने तेज़ी से हाथ हटाया था लेकिन फिर भी मैंने देख लिया था कि वह सोनू का हाथ था और मैं सन्न रह गई थी।
मुझे समझ में ही नहीं आया कि मैं कैसे रियेक्ट करूँ।
मेरी उलझन और ख़ामोशी देख कर उसे यही लगा कि शायद मैं उसे रोकने में सक्षम नहीं और उसने भीड़ का फायदा उठाते हुए फिर अपना हाथ वही रख दिया और इस बार जानते हुए रखा कि मैं उसके मन की भावना या दुर्भावना समझ चुकी हूं।
उसका हाथ मेरे नितंबों के बीच की दरार में फिरते हुए मुझमे अजीब सी फीलिंग पैदा करने लगा जिसमे क्रोध, झुंझलाहट, आश्चर्य, एक किस्म के वर्जित सेक्स जैसी रोमांच भरी अनुभूति और वितृष्णा सभी कुछ था।
पर यह भी सच था कि मैं उसे रोक नहीं पा रही थी… शायद मन में कहीं ये भावना भी थी कि मेरी ऐसी कोई प्रतिक्रिया उसका तमाशा बना देगी।
मैंने उन पलों में वो वाकये याद करने शुरू किये जो पहले उसके साथ होने पे हुए थे और मैंने इत्तेफ़ाक़ समझ कर जिन्हें इग्नोर कर गई थी।
उस दिन मेरी समझ में उसकी बदली हुई नियत आ पाई।
जब तक भीड़ रही उसके हाथों की सहलाहट मेरे नितंबों पर बनी रही और जब कॉलेज आने वाला हुआ तो उसने हाथ समेट लिया।
मेरे अंदर ढेरों विचार पैदा हो गये थे, आक्रोश से भरी कई बातें हो गई थीं जो मैं उससे कहना चाहती थी लेकिन जगह अनुकूल नहीं थी और वह कोई गैर तो था नहीं कि बीच सड़क पे ही ज़लील करुं।
हमने चुपचाप अपने काम निपटाये और वापसी की राह ली।
वापसी में भी भीड़ थी और इस बार भीड़ का फायदा उठाते हुए सोनू ने न सिर्फ हाथों से मेरे नितम्ब सहलाये बल्कि पीठ से चिपक कर इस तरह खड़ा हुआ कि उसके फूले तने लिंग की सख्ती और गर्माहट भी मुझे महसूस हुई।
उसकी जुर्रत पर मुझे जितना दुःख था उससे कहीं ज्यादा हैरानी थी… आज वह खुद को पूरी तरह ही ज़ाहिर कर देना चाहता था।
उसने नितंबों की दरार के बीच ही लिंग को रखा था और भीड़ के बहाने खुद को मुझ पर ऐसे दबा रहा था कि मैं ठीक से उसके लिंग को महसूस कर सकूं।
घर पहुंचने तक हममे कोई बात नहीं हुई और घर में घुसते ही वह सीधा ऊपर अपने कमरे की तरफ भाग गया ताकि मैं कुछ कह न पाऊं।
उनके यहां का तुम्हें तो पता ही है कि चाचा जी नौ बजे तक आ पाते हैं और चाची को बतियाने और दोस्ती निभाने की इतनी परवाह रहती है कि घर में पांव ही नहीं टिकते।
घर में रंजना ही अक्सर अकेली होती है या कभी कभी सोनू भी।
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