कामलीला complete

Post Reply
User avatar
rangila
Super member
Posts: 5698
Joined: 17 Aug 2015 16:50

Re: कामलीला

Post by rangila »

फिर दोनों की ही पोजीशन चेंज हो गई… जहाँ चंदू ने रानो को पलट कर चित लिटा लिया था और सामने से धक्के लगा रहा था वहीं शीला को अब चौपाया बना लिया गया था।
और एक पीछे से लिंग घुसाये नितंबों को मसलता सम्भोग कर रहा था तो दूसरा उसके सामने मौजूद उसके मुंह में लिंग घुसाये उसके मुंह को ही भोग रहा था।
नये-नये जिस्म थे इसलिये स्खलन भी जल्दी ही हो गया।
पहले चंदू ही रानो के ऊपर पसर गया था और बाद में ये दोनों!
बाबर तो शीला की योनि में ही स्खलित हुआ मगर भुट्टू ने उसके मुंह में वीर्य उगल दिया था।
अंतिम क्षणों में उसने मुंह हटाना चाहा था लेकिन भुट्टू ने उसका सर ऐसे पकड़ लिया था कि वह मुंह हिला भी न सकी थी और मुंह में ही वीर्य भर गया था।
यह उसके लिये पहली बार था और उसे अजीब सा सड़े आटे जैसा स्वाद लगा था।
जैसे ही उसके मुंह से लिंग निकला था उसने मुंह में भरा वीर्य बिस्तर के किनारे उगल दिया था।
उसे बड़े ज़ोर की उबकाई आई थी और वह तड़प के दोनों की पकड़ से निकल गई थी और उठ कर नंगी ही कमरे से बाहर निकल कर गलियारे की नाली में उलटी करने लगी थी।
जो पेट में था वह सब निकल गया था और पीछे से उसने चंदू को सुना था जो अपने चेले पर बरस रहा था कि उसने मुंह में ही क्यों निकाल दिया, वह कोई अंग्रेज़ थोड़े थी।
बहरहाल पेट खाली करके वह अंदर घुसी और कमरे में रखे पानी से गला तर कर के अपनी तबियत को संभाला।
इतनी देर में कमरे में मौजूद चारों लोग अपनी सफाई कर चुके थे और अब उसे देख रहे थे.. तीनो मर्द स्खलित हो गये थे, रानो का पता नहीं मगर वह नहीं हुई थी।
हो गई होती तो शायद उसे खुद को सँभालने में वक़्त लगता मगर नहीं हुई थी तो जल्दी ही संभल गई और उम्मीद भरी नज़रों से चंदू को देखने लगी।
कोई और वक़्त होता तो यूँ एक बार स्खलन काफी था लेकिन आज उनके सामने नये जिस्म थे। वह थोड़ी देर तो सुस्त पड़े रहे मगर फिर उनमें जान पड़ने लगी।
‘अबे कमीनो, सालो, मैंने पहले ही कहा मुझे ये झल्ली जैसी लौंडिया नहीं पसंद… जो पसंद है उसे तो खुद चोद लिये और मुझे यह पकड़ा दी। सालों, खबरदार जो इस बार डिस्टर्ब किया। मुझे गुठली को चोदने दो और तुम लोग इसे ही पेलो। आगे ढीली लगती है तो गांड मारो। समझ में आया कि नही।’
रानो अचकचा कर उन्हें देखने लगी।
हालांकि ऐसा नहीं था कि वह पहले इस अनुभव से न गुज़री हो… साल भर में शायद तीन बार ऐसा मौका आया था जब सोनू ने एक नये प्रयोग के तौर पर उसके साथ गुदामैथुन किया था।
सोनू का तो पता नहीं मगर उसे खास मज़ा नहीं आया था और दर्द अलग से झेलनी पड़ी थी।
इतना तो था कि उसपे कोई क़यामत तो न टूटती मगर उसे पसंद नहीं था।
यह और बात थी कि यहाँ उसकी पसंद नापसंद की परवाह कौन करने वाला था। वो खुद को मानसिक रूप से गुदामैथुन के लिये तैयार करने लगी।
दोनों जमूरे फिर आकर उससे लिपट गये और उसे जहाँ-तहँ से मसलने, रगड़ने और उंगली करते फिर से लिंग चुसाने लगे जबकि चंदू शीला के पास गया।
‘एक इल्तेजा करूँ, मानोगे?’ शीला ने चंदू की आँखों में झांकते हुए कहा।
‘बोल… लेकिन यह मत कहना कि चला जाऊँ, अब जाना तो सुबह ही होगा।’ चंदू उसे पीठ की तरफ से अपने सीने से लगाते, अपनी गोद में बिठाता हुआ बोला।
‘नहीं… यह नहीं कहूंगी, मगर इन दोनों को तो भेज सकते हो। इनके होते मैं सहज नहीं हो सकती।’
‘ऐसा क्या… मेरे मर्डर का प्लान तो नहीं है। चल तू कहती है तो दफा कर देता हूँ। अबे ओये… चल जल्दी से गांड मारते माल निकालो और फूटो यहाँ से।’
दोनों चेले इशारा पाते ही रानो पर टूट से पड़े।
भुट्टू का लिंग पूरी तरह तैयार हो चुका था तो उसने रानो को तिरछा लिटाते हुए उसके पैर मोड़ कर इस तरह कर दिये कि रानो के नितम्ब उसके सामने आ गये।
उसने पहले थूक से गीली करके एक उंगली उसके गुदा के छेद में घुसाई और अंदर बाहर करने लगा। जबकि उधर बाबर अभी भी रानो के मुंह में लिंग घुसाये उसे चुसा रहा था।
जब एक उंगली सुगमता से अंदर बाहर होने लगी तो उसने दो उंगलियां करनी शुरू कीं… और थोड़ी देर में जब दो उंगलियां भी ठीक से चलने लगीं तो उसने थूक से गीला करके लिंग घुसा दिया।
हल्के दर्द का अहसास तो ज़रूर हुआ उसे मगर उसने बर्दाश्त कर लिया और पूरा अंदर तक धंसा कर भुट्टू धक्के लगाने लगा।
बेड की पुश्त से पीठ टिकाये अधलेटा सा बैठा चंदू शीला को अपनी गोद में किये उसके वक्ष सहला रहा था और बीच-बीच में उसके होंठ भी चूसने लगता था जबकि शीला एक हाथ पीछे किये उसके मुरझाये लिंग को सहला रही थी।
दोनों अपने सामने उपलब्ध नज़ारे के रूप में रानो के साथ होता गुदामैथुन को देख रहे थे, जो उनमे भी उत्तेजना का संचार कर रहा था।
‘अबे निकलने वाला है, कहाँ निकालूं?’ थोड़ी देर बाद भुट्टू बोला।
‘अंदर ही निकाल ताकि चिकनाई हो जाये वर्ना मेरा और टाइट चलेगा तो मज़ा भी नहीं आएगा।’ बाबर रानो के मुंह से लिंग निकालते हुए बोला।
फिर ‘आह-आह’ करते भुट्टू उसके अंदर ही स्खलित होने लगा।
अंतिम झटका लेके जब वह हटा तो उन्हें उसका थोड़ा खुल गया छेद और उसमे से बाहर आता भुट्टू का वीर्य दिखा।
वह किनारे पड़ कर हाँफने लगा और बाबर ने उसकी जगह ले ली। उसने रानो की पोजीशन चेंज कर ली थी। अब उसे तिरछा लिटाने के बजाय डॉगी स्टाइल में ले आया था।
और उसके नितंबों को गुदाद्वार के हिसाब से नीचे दबाते एडजस्ट कर लिया था और एकदम गीले और थोड़े ढीले पड़ गए छेद में अपना लिंग जड़ तक ठूंस दिया।
अब वह उसी पोजीशन में उसपे आघात लगाने लगा जैसे पहले चंदू कर रहा था। फर्क यह था कि चंदू आगे घुसाये था जबकि बाबर पीछे।
और वह दोनों उन्हें देखते एक दूसरे के अंग सहलाते उत्तेजित हो रहे थे। जहाँ अब चंदू का लिंग तनने लगा था वहीं शीला की योनि भी फिर से गीली हो गई थी।
भुट्टू के मुकाबले बाबर काफी देर चला और जब धक्के खाते रानो की हालत ख़राब होने लगी तब जा के वह स्खलित हुआ।
स्खलित होने के बाद वह दोनों पड़ कर हाँफने लगे।
‘चलते हैं भाई। कल मिलते हैं अड्डे पे।’ थोड़ी देर बाद बाबर ने उठते हुए कहा और अपने कपड़े पहनने लगा।
भुट्टू ने पहले ही कपड़े पहन लिये थे।
उन्हें देख रानो ने भी कपड़े पहन लिये।
वे दोनों दरवाज़ा खोल के बाहर निकले तो वह भी यह कहते निकल गई कि वह चाचा के कमरे में सो जायेगी।
उन्होंने बाहर का दरवाज़ा बंद होने की आवाज़ सुनी और फिर सन्नाटा छा गया। रानो भी शायद चाचा के कमरे में चली गई होगी।
शीला ने उठ कर न सिर्फ कमरे का दरवाज़ा ही बंद किया बल्कि लाइट भी बुझा दी और बिस्तर पर आ कर चंदू के ऊपर चढ़ गई।
‘क्यों, वैसे तो बड़ी नफरत थी मुझसे? अब क्या हुआ?’ चंदू जैसे उसे चिढ़ाता हुआ बोला।
‘हाँ थी। नहीं है अब… पता नहीं क्यों?’
वह भद्दे ढंग से हंसने लगा और शीला ने उसके मुंह में अपना एक चुचुक ठूंस दिया और उसके पेट पर बैठ कर अपनी गीली योनि से उसके अर्ध उत्तेजित लिंग को मसलने लगी।
‘तेरे करम ही ऐसे हैं। कौन नहीं नफरत करता मोहल्ले में तुझसे? मैं करती थी तो कौन सा गलत था। यह तो मेरी मज़बूरी है… क्या करूँ और? कोई रास्ता है हमारे पास जो हम यह सुख हासिल कर सकें?’
‘जो रास्ता नैतिक है, नियमानुसार है, उससे तो कुछ मिलना नहीं और जिन रास्तों से सुख मिलना है वह सब अनैतिक ही हैं, फिर क्या सोनू क्या चंदू… सब एक बराबर!’
‘मुझे उस लौंडे के साथ मत तौल… उसके साथ चुदाती पकड़ी गई तो दुनिया थूकेगी! मेरे साथ सब जान भी जायेंगे, तो भी किसी माई के लाल में इतनी हिम्मत नहीं कि कुछ बोल सके।’
‘यही सोच कर समर्पण कर दिया वर्ना बेजान लाश की तरह पड़ जाती। कर लेते अपने मन की… अच्छा एक बात बता… यह सुनयना वाला क्या किस्सा था?’
वह जवाब देने के बजाय हंसने लगा- छिनाल है साली। एक लौंडे के साथ पकड़ा था तो घर जा के बोल दिया कि मैंने उसके साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की और उसका बाप पांडे चला गया पुलिस के पास!
पुलिस अपुन का क्या बिगड़ेगी भला पर उन बहन के लौड़ों को सबक सीखना ज़रूरी था इसलिये उसके घर घुस के उसकी लौंडिया चोदी थी।
और लौंडिया भी कैसी— जब खींच के कमरे में ले जा रहा था तो गिड़गिड़ा के छोड़ देने को बोल रही थी और जब अंदर जाके नंगी किया तो आ गई औकात पे… खुल के चुदवाई… और जब जाने लगा तो ऐसे रोने धोने लगी जैसे मैंने बलात्कार किया हो।
साली नौटंकी… पता है, उसके बाद खुद बुरका पहन के आती थी चुदने।
यहाँ तक कि प्रेग्नेंट भी हो गई थी तो पांडे ने पैसे के दम पे कहीं गाँव में शादी करा दी उसकी।
जो बच्चा ले के आती है न, वह उसके खसम का नहीं मेरा है। अब भी आ जाती है चुदने।’
‘शायद उसकी गलती नहीं, तू है ही ऐसा। गुंडा, बदमाश, करम ऐसे कि सिर्फ नफरत ही की जा सके मगर एक वासना की भूखी, प्यासी औरत के लिये… कमाल है… तेरा जिस्म, तेरा यह, सब जादू है… एक बार तेरे साथ लेट के कोई औरत तुझसे नफरत नहीं कर सकती। बाकी दुनिया चाहे कुछ भी सोचे।’
वह हंसने लगा और शीला फिर नीचे हो कर उसके लिंग को मुंह में लेकर अच्छी तरह चूसने लगी।
जब अच्छे से उसके लिंग में तनाव आ गया तो उसने शीला को उठा के लिटा लिया और उसके पैरों को पीछे करके उसके हाथों में उसकी जांघें फंसा दीं।
User avatar
rangila
Super member
Posts: 5698
Joined: 17 Aug 2015 16:50

Re: कामलीला

Post by rangila »

अब वह सामने बैठ कर उसकी योनि के भगोष्ठ और भगांकुर को मसलने सहलाने लगा। उत्तेजना से उसकी योनि की मांसपेशियां फैलने सिकुड़ने लगीं।
थोड़ी देर की ऊपरी छेड़छाड़ के बाद उसने दो उंगलियां योनि में गहरे तक उतार दीं और पहले धीरे-धीरे, बाद में तेज़-तेज़ अंदर बाहर करने लगा।
शीला की सिसकारियां कमरे में गूंजने लगीं, जल्दी ही वह चरम की तरफ पहुंचने लगी।
‘डालो।’ सीत्कारों के बीच उसके मुंह से निकला।
और वह उसकी जाँघों के बीच में बैठ गया।
शिश्नमुंड को थूक से गीला किया और छेद पर रख कर दबाव डाला तो मांसपेशियों को खिसकाता वह अंदर धंस गया।
मस्ती और मादकता से भरी एक ज़ोर की ‘आह’ उसके मुख से निकली।
चंदू ने उसकी जांघों के निचले हिस्से पर पकड़ बनाईं और उकड़ूं बैठे बैठे लिंग को अंदर बाहर करने लगा। शीला को ऐसा लगा जैसे उसके दिल दिमाग में एक अजीब किस्म का नशा छा रहा हो।
जैसे वो आसमान में उड़ने लगी हो।
थोड़ी देर बाद वह ज़ोर ज़ोर से धक्के लगाने लगा। बेड हिलने लगा और कमरे में ‘फच-फच’ की कर्णप्रिय ध्वनि गूंजने लगी।
वह ‘आह-आह’ के रूप में सीत्कारें भरती माहौल को और उत्तेजक कर रही थी।
फिर वह इस मुद्रा में थक गया तो पहले की तरह उसके ऊपर लद गया और उसके होंठ चूसते तेज़ तेज़ धक्के लगाने लगा।
उसके भारी वज़न के नीचे दब के यूँ ज़बरदस्त ढंग से आघातों को सहने में उसे अकूत आनन्द आ रहा था। वह जल्दी ही चरमोत्कर्ष पर पहुँच गई।
और चरमानन्द की प्राप्ति के समय उसकी नसों में एकदम खिंचाव आ गया, उसने चंदू की पीठ में नाखून तक गड़ा दिये और उसे पूरी ताक़त से भींच लिया।
उसे स्खलित होते महसूस करके चंदू रुक तो गया था लेकिन वह अभी स्खलित नहीं हुआ था और जैसे ही शीला थोड़ी शिथिल पड़ी उसने फिर धक्के लगाने शुरू कर दिये।
योनि की दीवारों से जारी हुआ रस और संकुचन फिर जल्दी ही चंदू को भी चरम पर ले आया और वह भी कुछ अंतिम ज़ोरदार धक्कों के साथ स्खलित हो गया।
स्खलन के उपरान्त वह उससे अलग होकर हाँफने लगा।
फिर उसी अवस्था में दोनों बेसुध हो गये।
सुबह आस पास के पूजा घरों की आवाज से शीला की आँख खुली थी और उसने चंदू को उठा के रुखसत किया था।
फिर यह लगभग रोज़ का ही सिलसिला हो गया।
देर रात वह आ धमकता था, अक्सर उसके साथ कोई न कोई होता था जो रानो के साथ लग जाता था। जबकि खुद को उसने शीला के लिये जैसे रिज़र्व कर लिया था।
सोनू ने आना बंद कर दिया था। चंदू ने ही बताया था कि उसने जो पैसे कहे थे वह दे दिये थे और रानो से उसे पता चला था कि अब वह अपने घर पे भी रानो को नहीं छूता था।
शायद चंदू ने इस विषय में भी धमकाया हो या उसने कोई और जुगाड़ ढूंढ लिया हो और अब उन बहनों में उसकी दिलचस्पी इसलिये भी न रही हो कि अब चंदू उनके साथ जुड़ चुका था।
यूँ रात के अँधेरे में रोज़ रोज़ इस तरह के लोगों का उनके घर पे आना भला राज़ कब तक रहता, धीरे-धीरे सब को पता चल ही गया था।
और अघोषित रूप से उन्हें वेश्या जैसा मान लिया गया था।
बदनामी तो मिलनी ही थी, सोनू के बारे में पता चलता तो भी यही होता। चंदू था तो किसी में हिम्मत नहीं थी कि कोई कुछ कहे।
किसी ने नहीं देखा कि बड़ी उम्र तक कुंवारी बैठी रहने वाली उन बहनों की मज़बूरी क्या थी… देखा तो बस यही कि उन्होंने वर्जनाओं को तोड़ा था, मर्यादाओं का उल्लंघन किया था।
और मर्दाने समाज के ठेकेदार पाते तो उन्हें कब का मोहल्ले से रुखसत कर चुके होते लेकिन चंदू नाम की दहशत से मजबूर थे।
इस सिलसिले का पता जब पूरे मोहल्ले को हो गया तो भला आकृति और बबलू को क्यों न होता।
रानो ने जैसे तैसे आकृति को तो समझा लिया था।
मगर बबलू के लिये समझना आसान नहीं था… यह बदनामी उसे इतना ज्यादा शर्मिंदा कर रही थी कि वह डिप्रेशन में रहने लगा था।
चंदू गुंडा था और वहीं रहने वाला था, वह लोगों को डरा सकता था लेकिन न किसी का दिल जीत सकता था और न समझा सकता था।
फिर घर में उसका आना जाना दिन में भी किसी वक़्त हो जाता था तो आकृति से भी उसका सामना हो जाता था और वह उसे भी मसलने से चूकता नहीं था।
आकृति शीला की तरह तगड़ी नहीं थी और रानो की तरह दुबली पतली भी नहीं थी।
चंदू के लिये भले वह ऐन उसके टाइप की नहीं थी मगर फिर भी उसके लिये आकृति में आकर्षण तो था ही।
और एक दिन वह भी आया जब रात चंदू नशे में बुरी तरह टुन्न अपने दो चेलों के साथ उनके घर आया तो इत्तेफ़ाक़ से आकृति नीचे आई थी और उसके हत्थे चढ़ गई।
अब नशे में उसे कहाँ होश रहता, उसने पहली बार आकृति को पकड़ कर उसके साथ कुछ करने की कोशिश की।
पहले तो दोनों बहनों ने उसे रोका, मगर जब चंदू पर कोई असर पड़ते न पाया तो शीला की सोच एकदम बदल गई।
चंदू की इस हरकत पर शीला की आत्मा तक तड़प उठी थी, आकृति को उसने बड़ी बहन के रूप में ही नहीं माँ के रूप में पाला था। उसकी पूरी ज़िम्मेदारी शीला पर ही थी।
उसे इस बात की ग्लानि भी हो रही थी कि जो सब हो रहा था वह उसी की वजह से शुरू हुआ था।
उसके दिमाग में आग सी भरने लगी थी।
तगड़ी तो थी ही, ताक़त भी थी… उसने इतने ज़ोर से झटका दिया कि उसे पकड़ने वाले को सम्भलने का मौका न मिला और वह दरवाज़े से जा टकराया।
वह लपक कर कमरे से निकल गई।
वह सीधी किचन में पहुंची और वहां मौजूद सबसे बड़े साइज़ का छुरा निकाल लिया।
उसे पकड़ने वाला संभल के उसके पीछे दौड़ा था मगर अब शीला चंडी के रूप में उसके आगे छुरा लिये खड़ी थी।
शीला ने उसकी तरफ छुरा लहराया और वह उसकी भंगिमाएं देख कर सहम कर दीवार से सट गया।
शीला लपकते हुए कमरे में पहुंची तो रानो को पकड़ने वाला उसकी तरफ लपका।
मगर शीला के चलाये छुरे से बचने की वजह से संभलने के चक्कर में वहीं गिर पड़ा, जबकि शीला चंदू के सर पर पहुंच कर छुरा तान कर खड़ी हो गई थी।
‘छोड़ उसे चंदू… वरना मार दूंगी… छोड़ उसे।’
चंदू एकदम नये बने हालात में हड़बड़ा कर सीधा हो गया था और उसकी पकड़ से छूटते ही आकृति बिस्तर से उतर कर शीला के पास आ गई थी।
‘पागल हो गई है क्या… जान से मार दूंगा।’
‘मर तो पहले ही चुकी हूँ मैं… आत्मा से, शरीर से भी मर जाऊँगी तो क्या फर्क पड़ेगा मगर मरने से पहले मैं भी तुझे मार डालूंगी।’
उसके शब्द सच्चे थे।
और उसकी दृढ़ता को चंदू भी महसूस कर सकता था। उसका नशा टूट चुका था और अब वह कसमसाता हुआ आग्नेय नेत्रों से शीला को ही घूर रहा था।
‘रानो, तू आकृति को कमरे में ले जा और अगर कोई ऊपर आये तो इसी वक़्त पुलिस को फोन कर के बुला लेना, जा यहाँ से।’
रानो ने देर नहीं की और उसने आकृति की सलवार उठाते हुए आकृति को सम्भाला और कमरे से बाहर निकल गई।
‘तूने ठीक नहीं किया गुठली!’ चंदू गुर्राता हुआ बोला।
‘सही गलत तुझे नहीं दिखेगा चंदू… क्योंकि तेरी नज़र में औरत न बेटी है न बहन, बस चोदने लायक माल है। तुझे हम दो बहनें मिली तो हुई हैं, जो करना है कर, मगर उसे बख्श दे। अपने साथ मैं कोई भी अत्याचार सह लूंगी पर आकृति के साथ नहीं।’
चंदू ने उठ कर उसके हाथ से छुरा छीन लिया। उसका काम हो चुका था, इसलिये उसने भी विरोध नहीं किया, उसका लक्ष्य आकृति को बचाना भर था।
चंदू ने उसे इतने ज़ोर का थप्पड़ मारा कि वह फर्श पर फैल गई।
थप्पड़ की चोट उसके शरीर पर ही लगी थी मगर वह खुश थी कि आज उसकी आत्मा पर चोट लगने से बच गई थी।
‘आज तुझे सजा तो दूंगा मैं!’ चंदू एक-एक शब्द चबाता हुआ बोला- दिमाग ठीक हो जायेगा तेरा!
‘ध्यान रखना चंदू, बीवी नहीं हूँ जो सबकुछ सह जाऊं। उसी हद तक सह सकती हूँ जहां तक मेरा ज़मीर गवारा करे।’
यह उसकी तरफ से धमकी थी जिससे चंदू तिलमिला कर रह गया। उसने शीला के नितंबों पर एक ठोकर जड़ दी।
‘चलो बे… इसकी गांड मारो। आज अपन पूरी रात इसकी पीछे से बजायेंगे। यही इसकी सजा है।’
उसे पता था कि जो सिलसिला चल रहा था उसमे कभी न कभी यह नौबत तो आनी ही थी इसलिये उसने खुद को मानसिक रूप से तैयार रखा हुआ था।
इतनी सजा तो वह बर्दाश्त कर ही सकती थी।
उसे उठा कर बिस्तर पर पटक दिया गया और कपड़े फाड़ कर उसके जिस्म से अलग कर दिये गये।
चंदू और उसके साथियों ने भी अपने कपड़े उतार फेंके। एक के बाद एक तीनों ने उसके मुंह में लिंग डाल के चुसाया ताकि वे उत्तेजित अवस्था में आ सकें।
फिर उसे इस पोजीशन में लाया गया कि उसके गुदा के छेद को सामने लाया जा सके। तीनो में जिसका लिंग सबसे कम साइज़ का था उसे पहला मौका मिला।
उन्होंने कोई लुब्रीकेंट नहीं इस्तेमाल किया सिवा थूक लार के और इस वजह से उसे तेज़ दर्द का अहसास हुआ।
जितनी देर में लिंग ने उसके गुदाद्वार में अपना रास्ता बनाया वह दर्द से तड़पती रही और जब थोड़ा आराम से अंदर बाहर होने लगा तो उसे थोड़ी राहत मिली।
उसे लगा था जब एक स्खलित हो जायेगा तो दूसरा डालेगा जिससे वीर्य के रूप में स्वाभाविक लुब्रिकेंट मिल जायेगा और उसे कम तकलीफ होगी।
लेकिन ऐसा हुआ नहीं और उन्होंने स्खलित होने से पहले ही उसके साथ मैथुन किया और इसी तरह कम लुब्रिकेंट के बावजूद जबरन लिंग घुसाया जिससे उसे दर्द दिया जा सके।
बहरहाल वह रात उसके लिये क़यामत की तरह गुज़री और सुबह हुई तो उसे न सिर्फ शौच में बुरी तरह तकलीफ हुई बल्कि चलने में भी परेशानी हुई।
User avatar
Kamini
Novice User
Posts: 2112
Joined: 12 Jan 2017 13:15

Re: कामलीला

Post by Kamini »

mast update
User avatar
rangila
Super member
Posts: 5698
Joined: 17 Aug 2015 16:50

Re: कामलीला

Post by rangila »


काम पर जाने के बजाय वह घर ही पड़ी रही। रानो ने उसे दर्द की दवा ला दी थी जिससे उसे थोड़ी राहत हुई थी।
उस दिन पहली बार उन चारों बहन भाई ने एकसाथ बैठ कर इस समस्या पर बात की और पहली बार बबलू उनकी मनःस्थिति और उनकी विवशता समझने को राज़ी हुआ।
शीला की शादी के लिये जो पैसा जुटा कर रखा गया था वह बबलू की पढ़ाई पर लग रहा था… आगे का यह तय हुआ कि आकृति की पढ़ाई के लिये भी जो पैसा खर्च होगा वह रानो के लिये सुरक्षित पैसों से होगा।
जो माहौल बन चुका है उसे वे बदल नहीं सकते और ऐसे माहौल में उनका यहाँ रहना ठीक नहीं, बेहतर है कि वे होस्टल में रहें।
दोनों बहने खुद ही आ कर उनसे मिल लिया करेंगी, बाकी फोन पर तो बातें होती रहेंगी।
उनके लिये बेहतर भविष्य की उम्मीद सिर्फ इसी में है कि वे दोनों पढ़ लिख कर कुछ बन सकें।
फिर इसके बाद यही हुआ था।
उन दोनों भाई बहन को वहाँ से हटा दिया गया था और चंदू ने जैसे मुस्तक़िल ठिकाना उनके यहाँ ही बना लिया था। अब या तो वह अपने ‘काम’ पर होता था या जेल में या उनके यहाँ!
उसने दोनों बहनों को भी पीने की लत लगा दी थी और एक अच्छी बात ये भी की थी कि घर खर्च के लिये पैसे वही देता था जिससे उनकी गुज़र आराम से हो जाती थी।
आकृति फिर कभी उनके बीच झगड़े का मुद्दा न बनी।
‘फिर अब, भविष्य के लिये क्या सोचा है?’ उसका सबकुछ जान लेने के बाद मैंने उससे जानना चाहा था।
‘बड़ा सा पुश्तैनी घर है… कई बिल्डर खरीदने को भी तैयार हैं। दोनों भाई बहन किसी मुकाम पर पहुंच जायें तो मौका देख कर चुपके से बेच कर लखनऊ ही छोड़ दें। किसी और शहर में जा बसें।
नई ज़िन्दगी शुरू करें जहां कोई हमारा अतीत जान्ने वाला न हो। मुझे पता है कि उनके सम्मान के लिये हमे भी गरिमापूर्ण जीवन जीना होगा।
जिसके लिये हमे अपनी शारीरिक इच्छाओं की पहले की ही तरह बलि देनी होगी और हमने इसके लिये खुद को तैयार भी कर रखा है। शायद इसीलिये हम चंदू के साथ खुश हैं।
क्योंकि हमे पता है कि कैसे भी मिल रहा है पर उसके साथ हमे वह सुख तो मिल रहा है जो आगे शायद हमें कभी न मिले।’
‘और चाचा?’
‘दो साल में अब और कमज़ोर हो गया है। मैंने कभी उसके साथ सहवास नहीं किया, रानो ही करती है जब ज़रूरत महसूस होती है लेकिन उसके लिये भी हमारे पास कुछ अलग नहीं। जहां हम सब होंगे वहीं वह भी होगा। उसका हमारे सिवा है ही कौन।’
‘क्या मैं तुम्हारे किसी काम आ सकता हूँ।’
‘कैसे, तुम चंदू से हमारा पीछा छुड़ा सकते हो? शायद नहीं… और छुड़ा भी दो तो उससे क्या हमारी समस्या ख़त्म हो जायेगी।
हमारे शरीर में पैदा होने वाली वासनात्मक ऊर्जा को कोई जायज़ निकासी मिलेगी क्या?
चंदू गुंडा है, बदमाश है, एक सभ्य समाज के लिये कोढ़ है मगर हमारे लिये तो अपरिहार्य है। तुम्हें पता है हमारे पीछे पूरा मोहल्ला हमें रंडियां ही कहता है।
हमें दुनिया चंदू की रखैल के रूप में ही जानती है। किसी को हमारी मज़बूरी से कोई मतलब नहीं। कोई नहीं देखेगा कि हम क्यों उसके आगे समर्पण कर बैठी।
दुनिया बस यह देखेगी कि हमने वर्जनायें तोड़ी हैं, हमने सामाजिक मर्यादाओं का उल्लंघन किया है। हमने बड़े बूढ़ों के बनाये नियमों को ठोकर मारी है और एक स्त्री के सम्मान को चोट पहुंचाई है।
फिर किसे मतलब कि हमारे जैसी अभिशप्त जीवन जीने को मजबूर औरतों के लिये जब समाज ने सिवा सब्र करने के कोई नियम बनाया ही नहीं तो हम और क्या करें?
सम्भोग की इच्छा शरीर में पैदा होने वाली अतिरिक्त ऊर्जा है जो इंसानों को ही नहीं जानवरों तक को नहीं छोड़ती। कैसे हम उन स्त्री सुलभ मानवीय इच्छाओं का दमन कर लें।
मर्द को भूख सताती है तो कहीं भी चढ़ दौड़ता है। उसका चरित्र वर्जना तोड़ने को लेकर कभी कटघरे में खड़ा नहीं किया जाता लेकिन पुरुष वर्चस्व वादी समाज में औरत के लिये ही सारे नियम हैं।
लोगों को तकलीफ यह कम होती है कि हमने या हमारे जैसी औरतें मर्यादा वर्जना तोड़ती हैं बल्कि इससे ज्यादा यह होती है कि दूसरों को भोगने को मिल रहा है हमे क्यों नहीं।
आजकल चंदू जेल में है तो लोगों की ज़ुबाने खुलने लगी हैं। जो सामने निगाहें भी नहीं मिलाते थे अब ताने मारने लगे हैं। पड़ोस के शर्मा अंकल, जिन्हें हम हमेशा चाचा जी कहते थे।
कल आये थे हमे आइना दिखाने, हमे बताने कि हमारी वजह से मोहल्ले की बहु बेटियों पर बुरा असर पड़ रहा है और वे बिगड़ी जा रही हैं।
गालियां दीं, हमे वेश्या कहा और ढेरों लोगों को हमारे दरवाज़े पर इकठ्ठा करके हमे मोहल्ले से निकालने पर तुल गये। बड़ी मुश्किल से हमारी जान छूटी।
जानते हो एक रात नशे में यह हमारे दरवाज़े पर आये थे, हम पर अहसान जताने कि हम उनके सपोर्ट की वजह से ही यहां रह पा रहे हैं। इसकी कीमत चाहते थे कि हम उन्हें अपने ऊपर चढ़ाएं।
हमने मना कर दिया था और उन्हें भगा दिया था… यही थी इनकी सामाजिक ठेकेदारी। इसी नाकामी का दाग धोने आये थे हमें रुस्वा करके।
सुबह मैंने चंदू से बात की, उसके पास इतनी पावर है कि जेल से भी बात कर सकता है। फिर उसका मेसेज लेके शर्मा जी के यहां गई।
कि चंदू ने कहलाया है कि उसे आने दो वह शर्मा जी की इच्छा ज़रूर पूरी करेगा और हमे वहाँ से हटा देगा। तो लग गये माफियाँ मांगने।’
‘हम्म…’ मैं थोड़ी सोच में पड़ गया- तो मेरे लिये तुम्हारे पास इसलिये वक़्त निकल पाया कि चंदू जेल में है आजकल!
‘हाँ!’ वह खामोश हो कर मुझे देखने लगी।
‘और जब बाहर आ जायेगा तब?’
‘तब भी… तुम चाहोगे तो हम दोस्त बने रहेंगे। पता है इस बदनामी के बाद लोग हमसे कन्नी काटने लगे। हमारे पास बात करने वाला भी कोई नहीं, कोई सहेली नहीं, कोई दोस्त नहीं।
रानो जिन चाचा जी के यहाँ पढ़ाती थी, उन्होंने रानो का अपने घर आना बंद करा दिया और लोगों ने अपने बच्चे हमारे घर भेजने गवारा न किये।
उसकी इनकम बंद हो गई तो उसने भी मोहल्ले से दूर एक छोटी सी नौकरी कर ली। पच्चीस सौ पगार मिलती है… पांच सौ किराये में खर्च हो जाते हैं और सिर्फ दो हज़ार बचते हैं।
मैं भी आने जाने के किराये के सिवा बस तीन हज़ार पाती हूँ। सोचो, इस महंगाई के दौर में पांच हज़ार में होता क्या है। अगर चंदू हमारा खर्च न उठाये तो हमे मुसीबत हो जाये।
तुम ऐसे देखोगे तो तुम्हे लगेगा मेरे साथ बुरा हुआ… जैसे मैं किसी ज़ुल्म का शिकार हुई हूँ, जैसे मैं पीड़ित हूँ लेकिन इसी में मेरी मेरी भलाई भी है। इसी में मेरी गति भी है।
हमें अपनी वासना को तृप्त करने का कोई जायज़ स्रोत नहीं मिलने वाला तो हमारी शारीरिक इच्छाओं की पूर्ति के लिये इसके सिवा और कौन सा मार्ग हो सकता है?
चंदू लाख बुरा सही मगर उससे न सिर्फ हमे आर्थिक सुरक्षा हासिल है बल्कि हम इस नैतिकता के ठेकेदार समाज में बिना किसी अहित की आशंका के जी भी तो रहे हैं।
हाँ, मुझे तुममें दिलचस्पी थी, मैं तुमसे बात करना चाहती थी क्योंकि मैं चाहती थी कि कोई मुझे जाने, कोई मुझे समझे।
जैसी हमें ज़माना समझता है हम वैसी नहीं हैं। हम वेश्या नहीं हैं, हम बदचलन नहीं हैं। हमारी भी मजबूरियां हैं।
हम समाज की वह अभिशप्त नारियां हैं जो बड़ी उम्र तक कुवारी बैठी रहती हैं और जिन्हें एक दिन हार कर अपनी शारीरिक इच्छाओं के आगे समर्पण करना पड़ता है।
हम यह रास्ता इसलिये चुनते हैं क्योंकि समाज ने हमारे लिये विकल्प नहीं छोड़े। सब्र करना इसका इलाज नहीं है।
ये ढाई अक्षर किसी नारी को गहरी यौन कुंठा के गर्त में धकेल देते हैं जहाँ पल पल की घुटन के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं हासिल होता।
पर इसका मतलब यह नहीं कि वर्जनाओं को तोड़ कर अपने हिस्से का प्राकृतिक सुख हासिल कर लेने वाली नारी वेश्या हो जाती है।
हम रंडियां नहीं हैं।’
कहते कहते उसकी आँखें भीग गईं और आवाज़ रूंध गई तो मैं उसे अपने कंधे से लगा कर थपकने लगा।
फिर थोड़ी देर हमारे बीच ख़ामोशी पसरी रही और थोड़ी देर बाद मैं उसका चेहरा उठा कर उसकी आँखों में झांकता हुआ बोला- नहीं… तुम वेश्या नहीं बल्कि मेरी नज़र में वैसी ही गरिमापूर्ण नारी हो जिसने बगावत की और वह हासिल किया जिसे उसके हिस्से में नहीं लिखा गया था।
समाज का लगभग हर मर्द ऐसा ही करता है। अगर सिर्फ अधिकृत पार्टनर से ही सेक्स जायज़ है तो इस समाज का लगभग हर मर्द भी तुम्हारे साथ अपराधी के रूप में ही खड़ा है।
और अगर इस समाज की ज़ुबाने उन मर्दों को दोषी ठहराने में थरथराती हैं तो उन्हें तुम्हे भी दोषी कहने का अधिकार नही।’
फिर थोड़ी देर हमने और वहाँ गुज़ारी और फिर हम वापसी के लिये वहां से चल पड़े।
जिस घड़ी मैंने उसे उसके मोहल्ले के पास छोड़ा तो रुखसती के वक़्त उसकी आँखों में आभार था… कृतज्ञता थी।
और उसके शब्द थे ‘थैंक्स… आज मैं हल्की हो गई। मुझे इससे फर्क नहीं पड़ता कि तुमने मुझे कितना समझा, कितना नहीं। मुझे इस बात की तसल्ली है कि तुमने मेरी हर बात गौर से सुनी, मुझे समझने की कोशिश की।
मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मेरे अंतर में समाया, मुझे दिन रात ग्लानि का अहसास कराने वाला कोई बोझ मुझ पर से हट गया और मैं आज़ाद हो गई।
मुझे सुकून है कि दुनिया में कोई तो है जिसने मेरी बेगुनाही को जाना। जो मेरे न रहने पर भी किसी पूछने वाले को बता सकेगा कि मेरी क्या मजबूरियां थीं। थैंक्स।’
और वह चली गई— उसके शब्द मेरे ज़हन में बजते रहे और उस रात बड़ी देर तक मैं सो भी न सका। उसके ग़म से बेचैन होता रहा।
User avatar
rangila
Super member
Posts: 5698
Joined: 17 Aug 2015 16:50

Re: कामलीला

Post by rangila »

मकान मालिक की साली बेटी और बहु की चुदाई
मित्रो ये बात उस समय कि है जब में सर्विस करने के लिए एक नए सहर में गया जहा पर एक कम्पनी में इलेक्ट्रिकल इंजीनिएर कि जाब लग गई पर कही रहने के लिए रूम नहीं मिल रहा था कंपनी के गेस्ट रूम में १५ दिन से रुका हुआ था ,कंपनी के नोटिश बोर्ड में रोज देखता कि सायद कोई अच्छा सा रूम मिल जाए पर अभी तक निराशा ही हाथ लगी कई रूम देखने भी गया पर रूम अच्छे नहीं थे एक दिन फिर से नोटिश बोर्ड में सुचना लगी दिखाई दिया तो मैं उस ब्यक्ति से संपर्क किया जो कि हमारे कंपनी में ही वर्कर था उससे मिला तो उसने हां कहा तब मैं उसके साथ उसके घर गया काफी बड़ा दो मंजिला मकान था कई किरायेदार थे मुझे भी उसके माकान का रूम पसंद आ गया किराया भी ज्यादा नहीं था सुबिधा भी बहुत अच्छी थी बाइक रखने कि जगह थी पानी के लिए बोरिंग थी बढ़िया सा लेट्रीन बाथरूम था रूम पसंद आने पर मकान मालिक को एक माह का किराया अडवांस दे दिया अडवांस लेने के पहले माकन मालिक ने पूछा कि कौन सी जाती के तो बता दिया कि ब्राह्मण हु तो मकान मालिक खुस हो गए और बोले कि टीक है मैं नीची जाती के लोगो को कमरा नहीं देता अगले दिन मैं अपना कुछ सामान लेकर रहने पहुच गया सायद १९ ओक्टुबर १९९८ था मेरे पास उस समय सोने के लिए एक बेड़ और एक ब्रीफकेस में कुछ कपडे सोने केलिए जमीन में बिस्तर बस इत्तो सा सामन था मेरा | मेरी उम्र २६ साल कि थी उस समय पर खूबसूरत गोर रंग का मजबूत सरीर और करीब ५ फिट ८ इंच लंबा हु | अनमैरिड था उस समय कंपनी में माकन मालिक के दोस्तों से पता लगाया तो मालूम पड़ा कि ये राजस्थानी राजपूत है नाम राजवीर है ,इनकी पत्नी १९ साल पहले गुजर गई थी तीन बेटिया और एक बेटा -बहु है बेटे को लकवा मार दिया तो बहु को बेटे कि जगह सरकारी नौकरी लग गई है दो बेटियो का और बेटे का विबाह कर दिया है बस सबसे छोटी लड़की है विवाह करने को पर माकन मालिक छोटी लड़की से बहुत नफरत करते है क्योकि इसके पैदा होते ही माँ को खा गई एक वर्कर ने बताया कि इनकी बहु बहुत खूबसूरत है और कई बाते बताया ,मैं मकान मालिक के यहाँ रहने लगा पर मैं सिर्फ अपने काम से मतलब रखता किसी से भी कोई बात नहीं करता और ना ही किसी कि तरफ देखता और न ही कोई दोस्त मेरे कमरे में कभी आये क्योकि मैं बहुत कम लोगो से दोस्ती करता हु मेरे इस ब्यवहार से माकन मालिक बहुत खुस रहते इस तरह से करीब १० माह निकल गए मैं मकान मालिक के परिवार में किसी से कोई बात नहीं किया और उनकी बेटी और बहु ने भी कभी बाते करने कि कोसिस नहीं किया , पर मैं छिप छिप कर दरबाजे के गैप में से बहु और बेटी को जरुर देखता ,बेटी का नाम मन्नू और बहु का नाम रीमाहै बेटी हलकी से काली और गदराई हुई सरीर कि है ११ वी में है पर लगता है जैसे कालेज में पढ़ती हो बड़े बड़े बूब्स जब स्कूल जाती है ड्रेस पहन कर तो बहुत ही सेक्सी लगती है ,बहु तो बहुत ही सुन्दर है जब ओ बाथरूम से नहा कर बाल झटके हुए निकलती तो बहुत ही सेक्सी लगती ये सब मैं छिप छिप कर देखता और आहे भरता बहु को एक लड़का है ४ साल का जिसे मैं कभी कभी गोद में उठाकर कर खिला लेता था माकन मालिक के हाथ से लेकर | मकान मालिक का लड़का दूसरी मंजिल में सिर्फ मैं किरायेदार था बाकी सभी कमरे में माकन मालिक का परिवार रहता था नीचे एक कमरे में माकन मालिक का बेटा जिसे लकवा मार दिया है ओ रहता है क्योकि ओ सीढी नहीं चढ़ पाता कभी कभी बड़ी मुस्किल से उसे ऊपर लाते थे नहीं तो खाना भी वही नीचे खाता सुबह सुबह घूमने जाता बाए हाथ से एक डंडा पकड़ कर थोड़ा बहुत घूमता क्योकि दाया हाथ तो बिलकुल भी काम नहीं करता था पाँव भी बड़ी मुस्किल से उठा कर चलता था बाकी समय दिन भर कमरे में पड़े पड़े टीवी देखता | बेटे कि जगह पर बहु को सरकारी नौकरी लग गई है एग्रीकल्चर बिभाग में ओ कलर्क है जो रोज सुबह १० बजे ऑफिस जाती और साम को ६ बजे तक वापस आती है | आगे के दो कमरो और किचेन में माकन मालिक और उनकी बेटी रहती और सबसे पीछे उनकी बहु का कमरा था बाथरूम के पास और बीच में किचेन के बगल में एक छोटा सा १० बाई ९ फिट का मेरा कमरा था मेरे कमरे के अंदर से कुण्डी में ताले लगे रहते थे बहु के कमरे में रखा हुआ बेड़ मेरे कमरे केदरबाजे के टीक सामने रखा हुआ है दरवाजे के गैप से बहु के कमरे के अंददेखनेकि कोशिस किया तो देखा कि दरबाजे में पर्दे लगे हुए है | मकान कि ऊपर कि मंजिल में सिर्फ आगे कि तऱफ कुछ हिस्सा ओपन है बाकी पीछे के कमरे और कमरे के सामने कि जगह बाहर से बिलकुल भी दिखाई नहीं देता| मैं सुबह ८ बजे कंपनी निकल जाता तो साम को ६ बजे तक वापस आता नहा धो कर लाइब्रेरी चला जाता वह पर पेपर पढता और होटल्स साम को खाना खा कर वापस आता फिर फिर सो जाता सुबह उठता और फिर वही कंपनी चला जाता यही दिनचर्या थी बस सन्डे के दिन जरुर समय रहता तो कपडे धो कर उन्हें सुखाने चला जाता छत पर सन्डे को छत पर धुप लेता यदि उस समय पर माकन मालिक कि बेटी य बहु आ जाती तो मैं चुपचाप नीचे आ जाता क्योकि मैं शर्मीले स्वभाव का हु |

सायद सितम्बर १९९९ था मकान मालिक ने अपनी पत्नी कि श्राद्ध किया और मुझे भी ब्राह्मण होने के कारण खाने पर बुलाया पर मैं दिन कि डूटी होने कारन कंपनी चला गया उस समय पर माकन मालिक कि सेकण्ड पाली में डूटी थी ४ बजे से रात के १२ बजे तक माकन मालिक ने दिन में सभी को बुलाकर खाना खिला दिया और मुझे कंपनी में बोले कि तुम आज साम को मेरे यहाँ खाना खा लेना मैंने बोला टीक है काका साहब ,मेरे काका साहब कहते ही ओ मेरे ऊपर खुस होकर बोले कि इतना रिस्ता नहीं बनाओ पंडित जी तो मैं कुछ नहीं बोला और मैं कंपनी से घर आ गया ,नहा धो कर तैयार हो रहा था कि मन्नू आई और बोली कि पापा ने आपको खाना खाने के लिए बोला है आप कब तक खायेगे तो मैं हस्ते हुए बोला कि अभी तो भूख नहींलगी है साम को खा लुगा तो मन्नू बोली कि टीक है जब खाना होगा तो आ जाना साम के समय मैं हां के रूपमे सिर्फ सिर हिला दिया और मन्नू चली गई ,मैं घूमने चला गया और साम को ९ बजे आया ,जैसे ही मैं आया मन्नू फिर आ गई और बोली कि चलिए भाभी सा ने बुलाया है तो मैं बोला कि टीक है कपडे चेंज करके आता हु और मैं घर के कपडे पहन कर माकन मालिक के आगे के कमरे के सामने खड़ा हुआ तो अंदर से रीमा भाभी निकली और हल्का सा मुस्कुराते हुए बोली कि आ जाइये और मैं जाकर आगे के कमरे में बैठ गया कुछ देर में मन्नू खाना लाइ और बड़े प्यार से दोनों ननद भाभी ने जबर जस्ती कर कर के खाना खिलाया और ढेर सारी बाते किया मन्नू ने मैंने मन्नू से पूछा कि कौन सी क्लास में पढ़ती हो तो मन्नु ने बताया कि १२ वी में हु इस साल ,रीमा भाभी ने भी बड़े प्यार से बाते किया जब मैं खाना खा कर निकलने लगा तो रीमा भाभी ने बोला कि बैठिये इतनी जल्दी भी क्या है मैं बैठ गया तो मन्नु एक गणित का सवाल पूछने लगी जिसे मैं तुरंत ही बता दिया तो मन्नु खुस हो गई और रीमा कि तरफ देख कर बोलती है कि इन्हे तो मेरी गणित आती है मन्नू सवाल पूछते समय नीचे बैठी थी और मैं सोफे पर बैठा था जिस कारण मन्नू की चुचिया थोड़ी थोड़ी दिख रही थी क्योकि सर्ट कि ऊपर कि बटन खुली थी बार बार मेरी नज़ारे मन्नू कि चुचियो कि तरह चली जाती ,उस दिन मैं रात के ११ बजे तक दोनों के पास बैठा बाते करता रहा टीवी देखते हुए ,रीमा भाभी उस समय एक गाउन पहन रखा था उस गाउन में भाभी के अंग कि बनावट साफ़ साफ़ दिखाई दे रही थी ,मैंने रीमा भाभी की उम्र पूछा लिया तो पहले तो ओ सपकाई फिर कहती है कि किसी ओरत से उसकी उम्र नहीं पूछते और हसने लगी और बोली कि अभी ३० साल पूरी हुई हु तब मैंने उनकी तारीफ किया और कह दिया कि अभी तो आप २५ कि लगती है जब मन्नू किचेन कि तरफ गई तो मैंने धीरे से कहा कि भाभी जी आप बहुत सुन्दर है तो ओ खुस होकर बोली कि सुक्रिया जी फिर मैं अपने कमरे में आ गया अगले दिन उठा और फिर से डूटी चला गया जब साम को वापस आया तो माकन मालिक ने बुलाया [माकन मालिक कि उस दिन छुट्टी थी] और बोला कि पंडित जी आप मन्नू को पढ़ा दिया करो जो किसी दूसरे को दुगा ओ आपको दे दुगा आप घर के लड़को कि तरह बिस्वासपत्र हो गए अब तब मैं बोला टीक है मैं साम को ८ से ९ बजे पढ़ा दिया करुगा पर मैं फीस नहीं लुगा इस पर मकान मालिक राजी हो गए | और अगले दिन से मन्नू को अपने ही रूम में बुलाकर पढ़ाने लगा | मैं एक साल तक होटल का खाना खा खा कर बोर हो गया तो एक दिन किचेन का सारा सामान लाया और कमरे में ही खाना बनाने लगा | मन्नू जब पढ़कर चली जाती तो फिर खाना बनाता खाता और सो जाता सुबह डूटी जाने के पहले बर्तन धो लेता तो एक दिन मन्नू ने कहा कि मैं आपके बरतन धो दिया करुँगी मैंने मना नही किया , अब रोज रोज मन्नू मेरे पास एक घंटे पढने बैठने लगी तो ज्यादा घुल मिल गई मैं डुटी जाते समय रूम कि चाबी दे जाता जब साम को आता तो पूरा कमरा साफ़ सुथरा और ब्यवस्थित रहता यहाँ तक के मेरे गंदे कपडे भी धूल कर स्त्री हो जाते अक्टूबर-नवम्बर 1999 का महीना था नवरात्री में माता जी के बड़े बड़े पंडाल लगते जो है जिसे देखना चाहती थी मन्नू और रीमा एक दिन रीमा भाभी ने कहा कि हम दोनों को आज साम को माता जी के दर्शन करा दीजिये तब मैंने मना कर दिया और बोला कि पहले काका साहब [माकन मालिक] से पूछ लो तो काका सा ने बोला ले जाओ घुमा दो इन दोनों को ओ [लड़का] तो है नहीं इस लायक कि घुमा सके मेरे साथ कब तक घुंघट निकाल कर घूमेगी तो मैं तैयार हो गया और बोला टीक है चलिए तो मन्नू और रीमा दोनों तैयार हो गई और पैदल ही चलने लगा तो मन्नू बोली कि पैदल कब तक घूमेंगे थक जायेगे ,गाडी से चलिए ना तो मैंने बोला कि गाडी में तीन तीन बड़ी मुस्किल से आयेगे तो मैंने काका सा से पूछा कि ये दोनों गाडी से जाना चाहती है तो काका सा ने कहा कि ले जाओ कह रही है तो तब मन्नू और रीमा दोनों को बिठा लिया मन्नू सलवार सूट में थी और भाभी साड़ी में इस कारण मन्नू बीच में दोनों तरफ टाँगे फैला कर बैठ गई और उसके पीछे रीमा भाभी बैठ गई पूरे रास्ते में मन्नू कि चूचियाँ मेरे पीठ से टकराती रही जो मुझे बहुत अच्छा लग रहा था मेरा पहला अनुभव था किसी जवान लड़की जिस्म छू जाने का क्योकि मेरे शर्मीले स्वभाव केकारण मैं किसी लड़की को नहीं पटा पाया था ,रात के करीब ११ बजे तक मैं उन दोनों को मेरी बाइक पर घुमाता रहा मन्नू घुल मिल गई थी कि मेरे कंधे में हाथ रखकर बाइक में बैठ जाती मैंने दोनों को एक होटल में नास्ता भी कराया और फिर वापस आ गए , हम जैसे ही वापस आये तो माकन मालिक डूटी चले गए उन्हें ओवर टाइम में एक घंटे पहले जाना था कंपनी ,रात में खाना बनाया और हम तीनो ने एक साथ मिलकर खाना खाये और १ बजे तक अपने अपने कमरे में सो गए मैं सुबह उठा और डूटी पर चला गया |

अगले दिन कंपनी में मेरे डूटी का समय बदल दिया अब १५ दिन तक मुझे साम को ४ से रात के १२ कि डूटी में जाना होगा माकन मालिक कि डूटी सुबह ७.३० से साम को ४ बजे तक कि हो गई इस कारण मीना को सुबह ८ से ९ बजे तक पढ़ातां था सुबह सुबह जब मैं रहने लगा रूम में तो मैं रोज रीमा भाभी को कमरो के सामने गैलरी में झाड़ू लगाते देखता उस समय रीमा भाभी जब झुक कर झाड़ू लगाती तो उनके बूब्स के बीच कि घाटियाँ देखाई देती जब पल्लू नीचे गिर जाता ,एक दिन मैं भाभी की तरह देख रहा था तो मीना ने बोला कि क्या देख रहे हो महेंद्र सर तो मैं सर्मा गया तब मीना ने कहा कि मेरी भाभी बहुत सुन्दर है न तो मैं सर हिला दिया तो मीना कुछ नहीं बोली बस सास लिया तो मीना कि चुचिया ऊपर को उठी और मीना कुछ उदास हो गई तब मैंने मीना कि झूठी कि तारीफ किया और बोला कि तुम भी बहुत सुन्दर हो बस रंग दबा है तो क्या हुआ तुम दिल से बहुत सुन्दर हो तब मीना गदगद हो कर खुस हो गई फिर आया ३१ दिसंबर नए साल कि अगवानी पर खूब मस्ती किया मीना और रीमा भाभी ने साम के समय ,[माकन मालिक डूटी पर थे] टेप में बढ़िया बढ़िया गाने लगाकर खूब डांस किया रीमा भाभी और मीना ने मुझे भी जबरजस्ती डांस करवाया मैंने रीमा भाभी के हाथ पकड़ कर खूब डांस किया कई बार डांस करते समय रीमा भाभी कि चुचियो पर मेरा हाथ भी लगा पर रीमा भाभी ने बुरा नहीं माना , मीना तो डांस करते करते कई बार लिपट गई मेरे से कमरे के अंदर , तो रीमा भाभी ने मीना को हलकी सी डॉट भी लगाया जब मीना नाराज पड़ गई तो रीमा भाभी ने उसे बड़े प्यार से गले लगाकर समझाया भी ,मैं समझ गया कि ननद और भाभी में प्यार बहुत है रीमा और मीना बहुत घुल मिल गई मेरे साथ इस एक साल में |
Post Reply