बाप के रंग में रंग गई बेटी complete

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Kamini
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Re: बाप के रंग में रंग गई बेटी

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ये सोचकर वो सीधा अपने रूम की ओर ही बढ़ गया, अपने रूम में जाकर उसने खाना खाना शुरू किया ही था कि मधु की नींद खुल गयी, जयसिंह को अपने सामने देखकर उसने नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए कहा - " आ गए आप, थोड़ा और लेट आ जाते, या फिर आते ही नही, घर मे बेटी साल भर बाद आई है और इनका कोई अता पता नहीं, बेचारी खाना भी ढंग से ना खा पाई "

" पहले तो तुम धीरे बोलो, इतनी जोर से चिल्लाओगी तो बच्चे जग जाएंगे, और मैने पहले ही कहा था ना कि मीटिंग ज़रूरी है वरना मैं ज़रूर आ जाता, और हाँ सुबह भी मुझे जल्दी ही जाना होगा, कल बहुत इम्पोर्टेन्ट मीटिंग है" जयसिंह बड़े ही शांत तरीके से बोला

"अरे तो क्या कल भी मणि से नही मिलोगे" मधु थोड़ी नाराज़ होकर बोली

"शाम को मिल लूंगा ना, तुम चिंता क्यों करती हो, वैसे भी उसकी 1 महीने की छुट्टी है " जयसिंह बोला

"आप इतना भी काम मे बिज़ी मत हो कि बच्चों से मिलने का भी समय ना निकाल सको" मधु बोली

"मधु तुम जानती हो कि ये सब मैं तुम लोगो के लिए ही तो कर रहा हूँ , अब तुम ज्यादा चिंता मत करो और सो जाओ" जयसिंह ने उसे समझाते हुए कहा

"ठीक है जो मन मे आये करो" अब हारकर मधु ने कहा और चुपचाप सो गई

जयसिंह ने भी जल्दी से खाना खाया और फिर आकर मधु के बगल में लेट गया, उसने पहले ही डिसाइड कर लिया था कि कल मनिका के उठने से पहले ही ऑफिस चला जायेगा, इसलिए उसने मोबाइल में 5 बजे की अलार्म लगाई और फिर आराम से सो गया।
सुबह अलार्म की पहली घण्टी के साथ ही जयसिंह की आँखे खुल गयी, उसने बगल में देखा तो मधु अभी तक सो रही थी, अक्सर वो 6 बजे ही उठा करती थी , इसलिए जयसिंह ने उसको अभी उठाना ठीक नही समझा और फ्रेश होने के लिए बाथरूम में चला गया, लगभग 45 मिनट में वो नहा धोकर बिल्कुल तैयार हो गया, मधु अभी भी सो रही थी, इसलिए जयसिंह खुद ही किचन में अपने लिए चाय बनाने चल पड़ा,

किचन में खटपट की आवाज़ से मधु की नींद टूट गई, उसने साइड में देखा तो उसे जयसिंह वहां नज़र नही आया, वो समझ गई कि शायद वो अपने लिए चाय बनाने किचन में गया है,

मधु तुरन्त उठी और किचन की तरफ चल दी, जयसिंह ने चाय बना ली थी

मधु - अरे आपने चाय क्यों बनाई, मुझे उठा दिया होता मैं बना देती


जयसिंह - कोई बात नही मधु, वैसे भी तुम्हे 6 बजे जगने की आदत है, इसलिए सोचा कि थोड़ी देर और सोने देता हूँ, वैसे भी मैं ठीक ठाक चाय बना लेता हूँ,

मधु - अच्छा सुनो, आज घर पक्का जल्दी आ जाना, आप अभी तक मनिका से मिले भी नही है, उसको बुरा लगेगा

{जयसिंह (मन मे) - अब इसको क्या बताऊँ कि मनिका से सामना न हो इसीलिए तो सुबह सुबह भागदौड़ करनी पड़ रही है}

मधु - अरे क्या सोचने लगे, आज पक्का जल्दी घर आओगे ना?

जयसिंह - हाँ, कोशिश करूंगा, पर वादा नही कर सकता , अगर कोई काम निकल आया तो शायद दोबारा लेट आना हो

मधु (थोड़े गुस्से से) - मुझे अब कोई बहाना नहीं चाहिए, आज शाम को तो आपको जल्दी घर आना ही पड़ेगा, वरना इस बार सच्ची में खाना फेंक दूंगी

जयसिंह - गुस्सा क्यों होती हो, सुबह सुबह मूड खराब नही करना चाहिए किसी का

मधु - आपको तो अपनी ही पड़ी रहती है , हम लोगो की तो ..........

जयसिंह - अच्छा ठीक है बाय

(जयसिंह ने मधु को बीच मे ही टोका, और इससे पहले की खिटपिट और बढ़े वो अपना सूटकेस लेकर आफिस के लिए रवाना हो गया)

इधर मधु ने घर के बाकी काम करने शुरू कर दिए,

[ चूंकि दिसम्बर का महीना था इसलिए कनिका और हितेश की स्कूल 10:00 बजे लगती थी ]

मधु ने 8:00 बजे के आस पास दोनों को उठाया और उन्हें स्कूल के लिए तैयार करने लगी, कल थकान की वजह से मनिका अभी भी सोई हुई थी, मधु ने भी उसे उठाना ठीक नही समझा।

दोनों बच्चे ब्रेकफास्ट कर स्कूल जा चुके थे, मधु अब मनिका को उठाने के लिए उसके रूम की तरफ जाने लगी,

इधर मनिका अपने पापा के मधुर सपनों में खोई थी,

"मणि, बेटा उठ जा, देख सूरज भी सर पर चढ़ आया है, चल जल्दी खड़ी हो और हाथ मुंह धोकर नाश्ता कर ले" मधु ने मनिका की कम्बल को हटाते हुए कहा

"बस 5 मिनट और मम्मी" मनिका नींद में कसमसाते हुए बोली

"क्या 5 मिनट, देख कनिका और हितेश तो स्कूल भी जा चुके और तेरे पापा तो सुबह 6 बजे ही ऑफिस के लिए निकल गए और तू है कि अब तक मजे से सो रही है" मधु ने थोड़ा डांटते हुए कहा

जयसिंह के जाने की बात सुनकर जैसे मनिका आसमान से जमीन पर आ गई हो, वो तुरंत चौंककर बोली - पर पापा इतनी जल्दी कैसे जा सकते है, मेरा... मतलब है कि पहले तो वो 9 बजे जाते थे न आफिस तो फिर इतनी जल्दी कैसे


" आज उनको कोई जरूरी काम था इसलिए निकल गए, पता नही शाम को आएंगे या नहीं, उनकी छोड़ तू जल्दी से फ्रेश हो जा और नीचे आकर नाश्ता कर ले" मधु उसके कमरे से निकलती हुई बोली

"वो शायद मेरी वजह से ही इतनी सुबह निकल गए ताकि उन्हें मुझे फेस न करना पड़े, अब मुझे पक्का यकीन हो गया है कि पापा मुझसे दूर दूर रहने की कोशिश कर रहे है, पर पापा आप चाहे जितनी कोशिश कर लो, मैं आपको पाकर ही रहूंगी, जो काम आपने अधूरा छोड़ा था वो मैं पूरा करूंगी, जितना दुख मैंने आपको दिया हैं उससे कई गुना मज़ा मैं आपको दूंगी मेरे प्यारे पापा" मनिका मन ही मन फैसला करने लगी

अब वो खड़ी हुई और फ्रेश होने के बाद नीचे नाश्ता करने चली गई, उसके दिमाग ने अब अपने पापा को वापस अपने करीब लाने की योजना बनाना शुरू कर दिया था।

वो अभी नाश्ता करते हुए सोच ही रही थी कि उसकी मम्मी उसके पास आकर बैठ गयी,

"अच्छा बेटी, दिल्ली में तुम्हे कोई परेशानी तो नहीं है ना" मधु ने चाय पीते हुए पूछा

"नहीं मम्मी, मुझे वहां कोई परेशानी नही है, इन फैक्ट मैं तो वहां बहुत खुश हूं, पापा ने मेरा एडमिशन बहुत ही अच्छी कॉलेज में करवाया है, वहां मेरी काफी सहेलियां है, होस्टल में भी किसी बात की कमी नही है" मनिका चहकते हुए बोली

"हम्ममम्म तभी तो तू इतने महीने से घर नहीं आयी" मधु हल्का सा मुस्कुराते हुए बोली

"ऐसी कोई बात नही मम्मी ,वो बस पहला साल था इसलिए पूरा ध्यान पढ़ाई पर लगाना चाहती थी ताकि अच्छे मार्क्स आये" मनिका ने सफाई से झूठ बोल दिया था



"अच्छा तो फिर इस बार तो 1 महीने पूरा रुकेगी ना" मधु ने पूछा

" बताया तो था आपको, इस बार में 1 महीने से पहले कहीं नही जाने वाली, पूरा 1 महीना मैं आपके, कनिका, हितेश और अम्मममम पापा के साथ ही रहने वाली हूँ" मनिका बोली

मधु - बेटा हमारा तो ठीक है पर मुझे नही लगता कि तुझे तेरे पापा के साथ ज्यादा टाइम स्पेंड करने को मिलेगा

मनिका- ऐसा क्यों मम्मी

मधु - अब मैं क्या बताऊँ मणि, तेरे पापा को तो बस चौबीस घण्टे काम ही काम सूझता है, हमारे लिए तो वक्त ही नही है उनके पास, अब तेरी ही बात करले, तू 1 साल बाद आई है और वो अब तक तुझसे मिले तक नहीं है, सारा दिन बस काम काम काम

मनिका - पर मम्मी काम तो पहले भी अच्छा ही चलता था ना , पर पहले तो घर पर अच्छा खासा टाइम स्पेंड करते थे

मनिका की बात सुनकर मधु थोड़ी उदास सी हो गई।

मधु - अब तुझसे क्या छिपाना मणि, पिछले एक साल से तेरे पापा बिल्कुल ही बदल गए है, वो पहले जैसे इंसान नही रहे, ना ढंग से खाते है, ना ही ढंग से सोते है, उनके चेहरे पर अजीब सी उदासी छाई रहती है, मैंने कई बार इनसे कारण भी पूछा पर हर बार बस काम का बहाना बना कर मेरी बात को टाल देते है, काम का इतना बोझ अपने ऊपर ले लिया है कि घर परिवार को तो जैसे भूल ही गये है, पहले बच्चो से कितना हँसी मजाक किया करते थे, उनसे बातें करते थे, अब तो ना बच्चो से ज्यादा बातें करते है और न ही मुझसे, सच पूछो तो ये जीना ही भूल गए है, पहले कितने हसमुंख हुआ करते थे, पर अब तो मुझे भी याद नही कि उन्हें लास्ट टाइम हसते हुए कब देखा था, मणि कई बार तो मुझे ऐसा लगता है जैसे वो वो नहीं कोई और है, मैं भी पहले उनसे हमेशा झगड़ा किया करती थी कि अगर वो थोड़ी मेहनत और करें तो हमारे पास और ज्यादा पैसे आ जाएंगे पर मुझे क्या पता था कि पैसो के बदले मेरा असली सुख ही मुझसे छीन जाएगा

ये बोलते हुए मधु रुआंसी सी हो गई और उसकी आँखों मे आंसू आ गए,

"आप चिंता मत करो मम्मी , सब ठीक हो जाएगा" मनिका उसे सांत्वना देते हुए बोली

"क्या ठीक हो जाएगा बेटी, उनको देखकर लगता है जैसे उन्हें किसी चीज़ की चाहत ही नही है, बस सारा दिन काम ही काम" मधु सुबकती हुई बोली

मधु की बात सुनकर मनिका को समझ आ चुका था कि ये सब उसकी वजह से हो रहा है, उसकी वजह से उसके पापा को इतना सदमा पहुंचा है, पर अब उसने अपने पापा को इस दुख से बाहर निकालने का संकल्प ले लिया था

"आप बिलकुल भी फिक्र मत करो मम्मी, अब मैं आ गयी हूँ ना, सब पहले जैसा हो जाएगा, मैं पापा को बिल्कुल पहले जैसा हँसता खेलता इंसान बना दूंगी" मनीका बोली

" हां बेटी, एक तू ही है जो ये कर सकती है, उन्होंने तुझे हमेशा सबसे ज्यादा प्यार किया है वो तेरी बात कभी नही टालेंगे" मधु थोड़ी शांत होती हुई बोली

अब तो मनिका के मन मे अपने पापा को पाने की इच्छा और भी ज्यादा बढ़ गई थी, उसने खुद से ये प्रोमिस किया कि वो हर हाल में अपने पापा को पहले जैसा बना कर रहेगी,

नाश्ता करने के बाद मनिका अपने रूम में आ गई, उसे आखिर काफी प्लानिंग भी तो करनी थी, पर पहले उसने नहाने का सोचा, वो टॉवल लेकर बाथरूम की तरफ बढ़ने लगी कि तभी उसे याद आया कि उसने काफी टाइम से अपने बालों की सफाई नही की है,

उसने अपने बैग से वीट की क्रीम निकाली और बाथरूम में आ गई, उसने अपनी नाइटी को घुटनों तक उठाया और धीरे धीरे अपनी टांगों पर वीट क्रीम लगाने लगी, उसकी गोरी चिकनी टांगो पर हल्के रेशम जैसे छोटे छोटे बाल उग आए थे,

ऐसे तो वो हमेशा अपने शरीर का ख्याल रखती थी, रेगुलरली वेक्सीन भी करा लेती थी, पर इस बार एग्जाम की वजह से उसने अपने बालों की सफाई नही की थी,


थोड़ी देर वीट लगाए रखने के बाद उसने धीरे धीरे सारे बाल हटा दिए, ट्यूबलाइट की दुधिया रोशनी में उसकी गोरी सूंदर टांगे और भी ज्यादा खूबसूरत लग रही थी,

टांगो की सफाई के बाद अब बारी थी उसकी अनछुई गुलाबी चुत की, मनिका ने धीरे धीरे अपनी नाइटी को अपने पैरों की गिरफ्त से आज़ाद कर दिया, अब वो सिर्फ अपनी खूबसूरत छोटी सी गुलाबी पैंटी में थी, उसके सुडौल नितम्ब उस छोटी सी पैंटी में उभरकर सामने आ रहे थे, जिन्हें देखकर मनिका ने शर्म के मारे अपनी आंखें ही बन्द कर ली,
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Kamini
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Re: बाप के रंग में रंग गई बेटी

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टांगो की सफाई के बाद अब बारी थी उसकी अनछुई गुलाबी चुत की, मनिका ने धीरे धीरे अपनी नाइटी को अपने पैरों की गिरफ्त से आज़ाद कर दिया, अब वो सिर्फ अपनी खूबसूरत छोटी सी गुलाबी पैंटी में थी, उसके सुडौल नितम्ब उस छोटी सी पैंटी में उभरकर सामने आ रहे थे, जिन्हें देखकर मनिका ने शर्म के मारे अपनी आंखें ही बन्द कर ली,

धीरे धीरे उसकी उत्तेजना बढ़ने लगी, उसका शरीर गर्म होने लगा और उसकी अंगुलिया उसकी पैंटी में से रास्ता बनाते हुए उसकी चुत के दाने को मसलने लगी,

" उन्ह्ह्ह्ह…ह्म्प्फ़्फ़्फ़्फ़… ओहहहहहह यस ओहहहहहहह यस"
ओह्हहहहहह पा्ह्ह्ह्हपा फ़क मी पापाआआआ,, मैंने आपको बहुत रुलाया अब आप मेरी इस प्यारी सी चुत को मत रुलाओ पापाआआआ,
उन्ह्ह्ह्ह देखिए कैसे मेरी ये गुलाबी चुत आपके उस लम्बे लन्ड को याद करके टेसुए बहा रही है,ह्म्प्फ़्फ़्फ़्फ़ इसे और मत तड़पाओ ........ इस निगोड़ी चुत को अपने लंड से भर दीजिये पापाआआआ.......बुझा दीजिये इसकी प्यास, उन्ह्ह्ह्ह…ह्म्प्फ़्फ़्फ़्फ़… ओहहहहहह यस , मैं आपके उस काले लम्बे लंड को अपनी चुत में लेकर रहूंगी.....ओह्हहहहह ....पापाआआआ आपके लिए मैं कुछ भी करूंगी पापाआआआ..... लौट आइए अपनी मनिका के पास, बुझा दीजिये मेरी चुत की आग को पापाआआआ"

मनिका के हाथ अब तेज़ी से अपनी चुत के दाने को मसल रहे थे, वो पहली बार खुल कर चुत और लंड जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर रही थी, अब उसकी उत्तेजना चरम पर पहुंचने वाली थी, उसकी अंगुलिया सरपट उसकी चुत की सड़क पर दौड़ी जा रही थी

"उन्ह्ह्ह्ह…ह्म्प्फ़्फ़्फ़्फ़… ओहहहहहह यस ओहहहहहहह यस"
ओह्हहहहहह पा्ह्ह्ह्हपा मैं गईईईई आहहहहहहहह पापाआआआ"
कहते हुए मनिका के बदन ने एक जोर की अँगड़ाई ली और उसकी चुत से फवारा फुट पड़ा, उसका पानी उसकी चुत से निकलकर उसकी सुडौल जांघो को गीला कर रहा था, उसकी अंगुलिया अभी भी उसकी चुत में फंसी थी, उसने धीरे से अपनी चुत के पानी को अपनी अंगुलियो पर लपेटा और फिर स्लो मोशन में अपने मुंह के अंदर लेकर जीभ से चाटने लगी,

"उन्ह्ह्ह्ह…ह्म्प्फ़्फ़्फ़्फ़… ओहहहहहह पापाआआआ कब इन अंगुलियो की जगह आपका प्यार लंड होगा, मैं आपके प्यारे लन्ड को अपने मुंह मे लेकर खूब चुसुंगी, उसे खूब प्यार करूंगी, उसे जन्नत के दर्शन करवाउंगी, बस आप एक बार मेरे पास आ जाइए न पापाआआआ"
झड़ने के बाद मनिका की उत्तेजना थोड़ी शांत हुई, पर अपने पापा को पाने की हवस अब और भी ज्यादा उग्र हो चुकी थी,

अब उसे याद आया कि उसे तो अपनी प्यारी सी मुनिया को सजाना भी है, अपनी फुलकुंवारी के बालों की सफाई कर उसे बिल्कुल चिकनी चमेली बनाना है, उसने वीट क्रीम उठाई और अपनी मुनिया के बालों की सफाई करने में मशगूल हो गई,

सफाई करने के बाद उसने बाथ लिया,
कुछ देर बाद जब मनिका नहा चुकी थी, तो उसने पास रखे तौलिए की तरफ हाथ बढाया और अपना तरोताजा हुआ जिस्म पोंछने लगी. तौलिया बेहद नरम था और मनिका का बदन वैसे ही नहाने के बाद थोड़ा सेंसिटिव हो गया था सो तौलिये के नर्म रोंओं के स्पर्श से उसके बदन के रोंगटे खड़े हो गए व उसकी जवान छाती के गुलाबी निप्पल तन कर खड़े हो गए. मनिका को वो एहसास बहुत भा रहा था और वह कुछ देर तक वैसे ही उस नर्म तौलिए से अपने बदन को सहलाती खड़ी रही.
फिर उसने तौलिया एक ओर रखा और अपने अन्तवस्त्रों की तरफ हाथ बढ़ाया, आज उसने एक बिल्कुल महीन पारदर्शी कपड़े की ब्लू पैंटी पहनी और हल्के आसमानी कलर की सी ब्रा...
उसने आज नाइटी की बजाय ब्लैक लिंगरी पहन ली, उसकी लिंगरी उसकी सुडौल झांगो से ऐसे कसकर चिपकी हुई थी, कि मानो उसके झुकते ही लिंगरी का कपड़ा तार तार हो जाएगा, ध्यान से देखने पर उसकी लिंगरी के अंदर से उसकी ब्लू पेंटी की लाइन साफ देखी जा सकती थी, वो जानती थी कि अगर वो इस तरह अपनी मम्मी के सामने गई तो उसे पक्का डांट पड़ेगी इसलिए उसने लिंगरी के ऊपर एक कुर्ती पहन ली जो उसके घुटनो तक आती थी,

रेडी होने के बाद मनिका हॉल में आकर बैठ गयी,और टीवी ऑन कर लिया, उसकी मोम किचन में काम रही थी

इधर जयसिंह अब काफी परेशान से लग रहा था, उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो घर कैसे जाए

"मैं मधु को बोल देता हूँ कि आज बिज़ी हूँ, कोई मीटिंग है इसलिए लेट हो जाऊंगा.......नहीं नहीं वो सुबह सुबह ही मुझ पर गुस्सा हो गयी थी.... अब अगर मैने मीटिंग का बहाना किया तो वो पक्का मुझसे झगड़ा करेगी...... अब मैं क्या करूँ......लगता है आज तो मुझे घर जाना ही पड़ेगा.....हो सकता है मुझे देखकर मनिका अपने कमरे में रहे.....बाहर ही न आए....ना वो बाहर आएगी न ही मुझे उसका सामना करना पड़ेगा......पर मनिका 1 महीने रुकने वाली है... ऐसे में कभी न कभी तो उससे मिलना ही पड़ेगा..." जयसिंह इसी असमंजस में फंसे थे


"Sir, may i come in " जयसिंह की सेक्रेटरी ने उससे अंदर आने की इज़ाज़त मांगी

"यस सारिका , बोलो क्या काम है" जयसिंह बोला

"Sir, i have a good news" सारिका बोली

"अच्छा और वो क्या" जयसिंह ने पूछा

"सर, दो महीने पहले सिंगापुर की जिस कंपनी ने हमारे साथ बिज़नेस में हाथ मिलाया था, उसे हमारी वजह से काफी फायदा हुआ है, और इसीलिए उन्होंने आपको सम्मानित करने का फैसला किया है, 4 दिन बाद आपको सिंगापुर जाना है सर " सारिका खुश होते हुए बोली

जयसिंह पहले से ही मनिका की वजह से परेशान था इसलिए वो बिना किसी उत्साह के जवाब देते हुए बोला
"वेल , ये तो अच्छी बात है, पर मैं सिंगापुर नही जा सकता, मुझे यहां भी बहुत सारे काम है, तुम एक काम करो, हमारे मैनेजर माथुर साहब को हमारी तरफ से भेज देना"
"बट सर....अगर आप जाते तो.........ओके मैं माथुर साहब के जाने का ही इंतेज़ाम कर देती हूं " सारिका ने जवाब दिया

सारिका वापस बाहर जाने के लिए मुड़ी ही थी कि जयसिंह के दिमाग मे एक आईडिया बिजली की तरह कौंधा

जयसिंह - रुको सारिका

सारिका - क्या हुआ सर

जयसिंह - तुम माथुर साहब को रहने दो और मेरे ही जाने का प्रबंध कर दो

सारिका (चोंकती हुई) - पर सर अभी तो आपने कहा था कि आप नही जा पाएंगे, आपको यह कुछ काम है तो फिर अब........?????

जयसिंह - मैने अपना इरादा बदल दिया है, तुम मेरे जाने का इंतज़ाम करो, और ये बताओ कि प्रोग्राम कितने दिन का है

सारिका - सर वैसे तो पूरी इवेंट 3 दिन की है, बहुत सारी और भी कम्पनियां आ रही है वहां , पर आप चाहे तो हम उनसे बात करके आपको सम्मानित करने वाली इवेंट पहले दिन भी करवा सकते है

जयसिंह - नहीं नहीं उसकी कोई जरूरत नहीं,

सारिका - ओके सर, मैं अभी आपके जाने का इंतज़ाम करती हूं, आपको 4 दिन बाद निकलना होगा

सारिका के जाने के बाद जयसिंह मन ही मन मुस्कुराने लगा

" हम्ममम्म , कम से कम 3-4 दिन के लिए तो हमें एक दूसरे का सामना नहीं करना पड़ेगा, शायद वो भी यही चाहती होगी" जयसिंह मनिका के बारे में सोचने लगा


इधर घर में कनिका और हितेश स्कूल से आ चुके थे, आते ही वो मनिका के साथ बातों में बिजी हो गए, मनिका बेमन से उनका साथ दे रही थी जबकि उसका मन तो अपने पापा में अटका था, फिर वो उठकर अपनी मम्मी के पास किचन में चली गयी जहां मधु रात के खाने की तैयारी कर रही थी,

शाम के 7:00 बजने वाले थे, जयसिंह ने सोचा कि मधु को फ़ोन करके आज टाइम पर घर आने की बात देता हूँ, वरना वो यूँ ही गुस्सा होगी, ये सोचकर जयसिंह ने अपना मोबाइल निकाला और मधु को कॉल लगा दिया

मधु - हेलो


जयसिंह - हेलो, हाँ मधु क्या कर रही हो

मधु - कुछ नहीं बस खाना बना रही हूं

जयसिंह - अच्छा सुनो, मैने इसलिए फ़ोन किया था कि तुम्हे बता दूँ , आज मैं जल्दी घर आ जाऊंगा, इसलिए कहीं खाना फेंक मत देना ....हा हा हा

मधु - अरे वाह आज सूरज पश्चिम से उग आया क्या, जो टाइम पर घर आने की बात कर रहे हो

जयसिंह - अरे ऐसी बात नहीं, आज ऑफिस में काम कम था इसलिए सोचा जल्दी घर चला जाता हूँ वरना जाते ही तुम्हारी डांट सुननी पड़ेगी, अच्छा सुनो मैं 8:00 बजे तक आ जाऊंगा


मधु - चलो ठीक है, बाय
जयसिंह - बाय

"बेटी आज तो कमाल हो गया, तेरे पापा इतने दिनों बाद टाइम पर घर आ रहे है" मधु ने मुस्कुराते हुए पास खड़ी मनिका को कहा

जब मनिका को पता चला कि आज फाइनली उसकी और उसके पिता की मुलाक़ात होने वाली है, तो वो तो ख़ुशी के मारे फूलि ना समाई, उसकी आँखों के सामने उस रात का मंज़र आ गया जब उसके पापा और उसके बीच सब कुछ होने ही वाला था, उस रात को याद कर मनिका गर्म होने लगी
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Re: बाप के रंग में रंग गई बेटी

Post by shubhs »

आगे क्या होता है देखते है
सबका साथ सबका विकास।
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, और इसका सम्मान हमारा कर्तव्य है।
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Kamini
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Re: बाप के रंग में रंग गई बेटी

Post by Kamini »

Ankit wrote: 04 Sep 2017 18:55superb update
thank you soooooo much
shubhs wrote: 05 Sep 2017 08:26 आगे क्या होता है देखते है
dekhte hi rah jaaoge
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