बाप के रंग में रंग गई बेटी complete

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Kamini
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Re: बाप के रंग में रंग गई बेटी

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"हां पापा, हम एक ही कम्बल में सो जाएंगे, वैसे भी देखो न ये कम्बल कितनी बड़ी है" कनिका ने कम्बल खोलते हुए कहा

"ठीक है बेटी, जैसी तुम्हारी मर्ज़ी" जयसिंह बोला

अब जयसिंह और कनिका बेड पर आ गए, जयसिंह ने कम्बल को अच्छे से खोलकर अपने और कनिका के ऊपर ले लिया, पर कनिका ने तो जैसे जयसिंह पर कहर ढाने का पूरा प्लान बना रखा था, वो कम्बल के अंदर से सिमटकर जयसिंह के बिल्कुल करीब आ गयी और जयसिंह को अपनी बाहों में समेट लिया, कनिका के बदन से आती खुशबू जयसिंह के नथूनों में घुस रही थी, जयसिंह अजीब उहापोह की स्थिति में फंसा था, एक तो पहले ही उसकी बड़ी बेटी मनिका की चित ने उसके लंड में गदर मचा रखा था और ऊपर से अब छोटी बेटी की नवयौवन चुत भी उसे अपने पास आने का निमंत्रण सी दे रही थी,

पर कनिका तो जयसिंह के लंड में भूचाल लेन का काम करे जा रही थी, उसने जयसिंह से टेबल लैंप की लाइट बन्द करने को कहा और फिर वो कसकर उससे चिपक गयी, इतनी की अब उन दोनों के बीच हवा भी बड़ी मुश्किल से पास हो रही थी
कमरे में अब हल्का अंधेरा हो चुका था, बस पड़ोस के घर से आती हल्की रोशनी उनकी खिड़की में से होकर कमरे को हल्का सा उजागर कर रही थी, पर सिर्फ इतना कि वो दोनों बस एक दूसरे का चेहरा थोड़ा थोड़ा देख सके,

कनिका ने जयसिंह से चिपककर अपनी आंखें बंद कर रखी थी, लगभग 1 घण्टे तक दोनों ने कोई हलचल नही की , जयसिंह को लगा कि शायद कनिका सो गई है, पर जयसिंह की आंखों से नींद कोसो दूर थी, जयसिंह कनिका के मासूम से चेहरे को देखकर सोच में पड़ गया

जयसिंह के हाथ में कनिका के रूप में ऐसा लड्डू आया हुआ था जिसको ना खाते बन रहा था ना छोड़ते , उसने कनिका के चेहरे की ओर दोबारा देखा, दुनिया जहाँ की मासूमियत उसके चेहरे से झलक रही थी, कितने प्यारे गुलाबी होंट थे उसके , दूध जैसी रंगत उसके बदन को चार चाँद लगा रही थी , वो बैठ गया और कनिका की तरफ प्यार से देखने लगा,

उसकी नज़र कनिका की चुचियों पर पड़ी, जैसे मनिका की चुचियों का छोटा वर्षन हो , बंद गले का टॉप होने की वजह से वो उनको देख तो नही पाया, पर उनके आकर और कसावट को तो महसूस कर ही सकता था, केले के तने जैसी चिकनी टाँगे उसके सामने नंगी
थी, कितनी प्यारी है कनिका.... उफफ... जयसिंह के अंदर और बाहर हलचल होने लगी ,उसने लाख कोशिश की कि कनिका से अपना दिमाग़ हटा ले पर आगे पड़ी कयामत से उसका ईमान डोल रहा था, लाख कोशिश करने के बाद भी जब उससे रहा ना गया तो उसने धीरे से कनिका को पुकार कर देखा,"कनिका!" पर वो तो सपनों की दुनिया में थी ,

जयसिंह ने दिल मजबूत करके उसकी छातियो पर हाथ रख दिया , क्या मस्त चुचियाँ पाई हैं इसने, जो भी इस फल को पकने पर खाएगा, कितना किस्मतवाला होगा वो , जयसिंह ने चुचियों पर से हाथ हटा लिया और धीरे-धीरे करके उसके स्कर्ट को उपर उठा दिया, जयसिंह का दिमाग़ भन्ना सा गया, पतली सी सफेद कच्छि में क़ैद कनिका की चिड़िया मानो जन्नत का द्वार थी , जयसिंह से इंतज़ार नही हुआ और उसने लेट कर उसकी प्यारी सी चूत पर कच्छी के ऊपर से ही अपना हाथ रख दिया , ऐसा करते हुए उसके हाथ काँप रहे थे ,जैसे ही उसने कनिका की चूत पर कच्छि के उपर से हाथ रखा वो नींद में ही कसमसा उठि, जयसिंह ने तुरंत अपना हाथ वापस खीच लिया, कनिका ने एक अंगड़ाई ली और जयसिंह के मर्दाने जिस्म पर नाज़ुक बेल की तरह लिपट गयी उसने अपना एक पैर जयसिंह की टाँगों के उपर चढ़ा लिया, इस पोज़िशन में जयसिंह का हाथ उसकी चूत से सटा रह गया ,


बढ़ती ठंड के कारण कनिका उससे और ज़्यादा चिपकती जा रही थी, जयसिंह के मन में खुरापात घर करने लगी, वो पलटा और अपना मुँह कनिका की तरफ कर लिया,
कनिका गहरी नींद में थी, कनिका की छाति उसके हाथ से सटी हुई थी, उसने कनिका पर अपने शरीर का हल्का सा दबाव डालकर उसको सीधा कर दिया, अब जयसिंह ने कनिका की छाति के उपर दोबारा हाथ रख दिया, उसकी चुचियाँ उसके सांसो के साथ ताल मिला कर उपर नीचे हो रही थी ,उसके होंट और गाल कितने प्यारे थे! और एक दम पवित्र, जयसिंह ने कनिका के होंटो को छुआ. मक्खन जैसे मुलायम थे

जयसिंह ने आहिस्ता-आहिस्ता उसके टॉप में हाथ डाल कर उसके पेट पर रख लिया , इतना चिकना और सेक्सी पेट आज तक जयसिंह ने नही छुआ था, जयसिंह ने हाथ थोड़ा और उपर किया और उसकी अनछुई गोलाइयों की जड़ तक पहुँच गया ,उसने उसी पोज़िशन में हाथ इधर उधर हिलाया; कोई हरकत नही हुई, उसने हाथ को उसकी बाई चूची पर इस तरह से रख दिया जिससे वो पूरी तरह ढक गयी उसने उन्हे महसूस किया, एक बड़े अमरूद के आकार में उनका अहसास असीम सुखदायी था,

जयसिंह का तो जी चाहा कि उन मस्तियों को अभी अपने हाथों से निचोड़ कर उनका सारा रस निकाल ले और पीकर अमर हो जाए, पर कनिका के जागने का भी डर था ,उसने कनिका के निप्पल को छुआ, छोटे से अनार के दाने जितना था , हाए; काश! वो नंगी होती


अचानक उसने नीचे की और देखा, कनिका का स्कर्ट उसके घुटनों तक था, जयसिंह ने उसको उपर उठा दिया पर नीचे से दबा होने की वजह से वो उसकी जांघों तक ही आ पाया , जयसिंह ने कनिका को वापस अपनी तरफ पलट लिया, कनिका ने नींद में ही उसके गले में हाथ डाल लिया ,कनिका के होंट उसके गालों को छू रहे थे,


जयसिंह ने कनिका के स्कर्ट को पिछे से भी उठा दिया, कनिका की चिकनी सफेद जाँघ और गोल कसे हुए चूतड़ देख कर जयसिंह धन्य हो गया ,उसके चूतड़ो के बीच की दरार इतनी सफाई से तराशि गयी थी कि उसमें कमी ढूंढना नामुमकिन सा था, जयसिंह कुछ पल के लिए तो सबकुछ भूल सा गया, वो एकटक उसके चूतड़ो की बनावट और रंगत को देखता रहा ,फिर उसने होले से उन पर हाथ रख दिया, एकदम ठंडे और लाजवाब! वो धीरे-धीरे उन पर हाथ फिराने लगा ,जयसिंह ने उसके चूतड़ो की दरार में उंगली फिराई; कही कोई रुकावट नही, बिल्कुल कोमल सी

जयसिंह का लंड अब तक अपना फन उठा चुका था डसने के लिए, उसने कनिका के चेहरे की और देखा, वो अपनी ही मस्ती में सो रही थी, जयसिंह ने उसको फिर से पहले वाले तरीके से सीधा लिटा दिया, उसकी टाँगें फैली हुई थी, स्कर्ट जांघों तक थी, मोक्षद्वार से थोड़ा नीचे तक, स्कर्ट उपर करते वक़्त जयसिंह के हाथ काँप रहे थे ,आज से पहले ऐसा शानदार अनुभव उसका कभी नही रहा, शायद किसी का भी ना रहा हो, स्कर्ट उपर करते ही जयसिंह के लंड को जैसे 440 वॉल्ट का झटका लगा ,जयसिंह का दिमाग़ ठनक गया, ऐसी लाजवाब चूत की लकीरें जो फूलकर कच्छी के ऊपर से ही लाजवाब शेप बना रही थी,
नही! उसको चूत कहना ग़लत होगा. वो तो एक बंद कमल की पंखुड़ीया थी; नही नही! वो तो एक बंद सीप थी, जिसका मोती उसके अंदर ही सोया हुआ है, जयसिंह का दिल उसकी छाति से बाहर आने ही वाला था ,क्या वो मोती मेरे लिए है! जयसिंह ने सिर्फ़ उसका जिस्म देखने भर की सोची थी, लेकिन देखने के बाद वा उस मोती को पाने के लिए तड़प उठा, उस सीप की बनावट इस तरह की थी कि शेक्स्पियर को भी शायद शब्द ना मिले , उस अमूल्य खजाने को तो सिर्फ़ महसूस ही किया जा सकता है

जयसिंह ने उसकी जांघों के बीच भंवर को देखते ही उसको चोदने की ठान ली.... और वो भी आज ही....आज नही; अभी. उसने कनिका की सीप पर हाथ रख दिया पूरा! जैसे उस खजाने को दुनिया से छुपाना चाहता हो ,उसको खुद की किस्मत और इस किस्मत से मिलने वाली अमानत पर यकीन नही हो रहा था , आ। उसने हल्के से कनिका की कच्ची को उसकी चुत के ऊपर से ही साइड कर दिया, वाह क्या पल था वो उसके लिए, उससे सब्र करना अब नामुमकिन हो रहा था

अब उसने बड़े प्यार से बड़ी नजाकत से कनिका की सीप की दरार में उंगली चलाई, अचानक कनिका कसमसा उठी! अचेतन मन भी उस खास स्थान के लिए चौकस था; कही कोई लूट ना ले! जयसिंह ने अपना हाथ तुरंत हटा लिया ,कनिका के चेहरे की और देखा, वह तो सोई हुई थी, फिर से उसकी नज़र अपनी किस्मत पर टिक गयी, जयसिंह ने अपने शरीर से कनिका को इस कदर ढक लिया की उस पर बोझ भी ना पड़े और अगर वो जाग भी जाए तो उसको लगे कि पापा का हाथ नींद में ही चला गया होगा, इस तरह तैयार होकर उसने फिर कोशिश की कनिका का मोती ढूँढने की, उसकी दरार में उंगली चलाते हुए उसको वो स्थान मिल गया जहाँ उसको अपना खूटा गाढ़ना था ,ये तो बिल्कुल टाइट था, इसमें तो पेन्सिल भी शायद ना आ सके!



जयसिंह को पता था टाइम आने पर तो इसमें से बच्चा भी निकल जाता है... पर वो उसको दर्द नही दे सकता था, बदहवास हो चुके जयसिंह ने अपनी छोटी उंगली का दबाव उसके छेद पर हल्का सा बढ़ाया; पर उस हल्के से दबाव ने ही कनिका को सचेत सा कर दिया ,कनिका का हाथ एकदम उसी स्थान पर आकर रुका और वो वहाँ खुजलाने लगी ,फिर अचानक वो पलटी और जयसिंह के साथ चिपक गयी जयसिंह समझ गया 'असंभव है' ऐसे तो बिल्कुल कुछ नही हो सकता मायूस होकर उसने कनिका का स्कर्ट नीचे कर दिया और उसके साथ उपर से नीचे तक चिपक कर सो गया


पर जयसिंह अभी तक इस बात से अनभिज्ञ था कि जिस कनिका को वो अब तक सोई समझकर ये सब हरकते कर रहा था दरअसल ये सब खजरफत उसी के शैतानी दिमाग की थी, उसे पता था कि इस तरह अपने पापा से चिपट कर सोने से उसके पापा खुद को कंट्रोल नही कर पाएंगे और जरूर कुछ न कुछ करेंगे, वो बस आंखे मुंदे इंतेज़ार कर रही थी, और जब जयसिंह का हाथ उसके कच्चे बदन पर गिरने लगा तो उसे अपने मकसद में कामयाबी हासिल होती नजर आने लगी थी

लर ये क्या जयसिंह तो सब हथियार डालकर दोबारा सो गया, अब वो क्या करे, कनिका को कुछ समझते नही बन रहा था, वो बड़ी असमंजस में थी, मन तो करता कि जिस तरह उसके पापा ने उसके बदन पर हाथ फिराकर उसकी चुत को गर्म कर दिया और उसकी चुत से टसुए बहा दिए, वो भी उसका बदला ले, उनके पंत को खोलकर उस फ़ंनफ़नाते लंड को अपने मुंह मे गुप्प से ले ले, इसे जी भरकर चूसे चाटे, और उसे अपने चुत के छोटे से तंग छेद में लेकर आज की रात लड़की से औरत बन जाये, पर शर्म और डर का एक पहरा भी तो था, जो हिम्मत उसके पापा ने दिखाई वो कैसे दिखाए, वो भी जब कि उसके पापा अभी सोये नही, उसे कुछ समझ नही आ रहा था, मन मे उथल पुथल और चुत में घमासान मचा था

आखिर में उसने जयसिंह वाली तरकीब ही इस्तेमाल करने की सोची, यानी वो भी जयसिंह के सोने के बाद उनके लंड को अपने मुंह मे लेगी , उसे प्यार करेगी, जी भर के

ये सब सोचकर ही उसकी चुत से पानी की हल्की सी बून्द बहकर उसकी गोरी चिकनी जांघो पर लकीर सी खींचने लगी, उसे बस अब इंतेज़ार करना था, पर ये इंतेज़ार तो बड़ा मुश्किल था, हर पल एक एक बरस के समान गुज़र रहा था, कनिका से समय कटे नही कट रहा था

रात के तकरीबन 1 बजने वाले थे, चारो तरफ घनघोर अंधेरा छाया था, रह रहकर कुत्तों के भोंकने की आवाज़े सुनाई पड़ती थी, मालूम होता जैसे यहां सदियों से कोई रहता ना हो, ऐसे में कनिका को अपने धड़कते दिल की आवाज़ बड़ी साफ साफ सुनाई दे रही थी, उसे लगने लगा था कि शायद अब समय आ गया है, उसके हाथ पांव फूलने लगे थे, उसे समझ आ गया था कि जितना उसने सोचा उता आसान काम नही होने वाला

फिर भी उसने हिम्मत ना हारी, पूरी ताकत लगाकर अपने गले से हल्की सी आवाज़ निकली " पापाआआआ...... सो गए क्या"
पर जयसिंह तो सचमुच सो चुका था, इसलिए उसकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नही आई, कनिका ने दोबारा एक बार आवाज़ दी पर इस बार भी कोई प्रतिक्रिया नही
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Kamini
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Re: बाप के रंग में रंग गई बेटी

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कनिका को विश्वास हो चला था कि उसके पापा अब सचमुच सो गए है, अब उसे अपने मैन मिशन को पूरा करना था,

उसके कांपते हाथ धीरे धीरे जयसिंह के लोअर की तरफ बढ़ने लगे, उसे लग रहा था जैसे वो जयसिंह से कोसो दूर है तभी उसके हाथों को वहां तक पहुंचने में इतना समय लग रहा है, पर आखिर कर उसके हाथ जयसिंह के लोअर के ठीक ऊपर आ पहुंचे थे, मनिका ने लोअर के ऊपर से ही जयसिंह के लंड वाली जगह को टटोला तो उसे जयसिंह का अर्धसोया लंड अपनी हथेलियों में महसूस होने लगा, उसकी उत्तेजना अब पल पल बढ़ती जा रही थी, उसे लगने लगा था कि अगर उसने जल्दी नही की तो कही उसका इरादा बदल न जाये, ओर ये सोचते ही ना जाने उसमे कहा से इतनी हिम्मत आ गयी कज उसमे पलक झपकते ही जयसिंग के लोअर के इलास्टिक को पकड़ा और झटपट नीचे कर दिया, जयसिंग की एक आदत थी, वो सोते समय अंडर वियर कम ही पहनता था, और आज भी उसने अंडर वियर नही पहनी थी, कनिका को लगा था कि अभी उसे दूसरी बाधा यानी जयसिंग की अंडर वियर को पर करना है पर उसे क्या पता था कि उसकी किस्मत आज उस पर बड़ी मेहरबान है,
जैसे ही उसने लोअर को खींचकर थोड़ा नीचे किया, जयसिंग का लंड पूरी तरह से नंगा उसकी आँखों के सामने आ गया, हालांकि वो उसे देख नही पा रही थी पर उसकी कल्पना मात्र से ही कनिका के बदन में सिहरन सी दौड़ने लगी


अब कनिका के हाथ धीरे धीरे अपनी अंतिम मंजिल की ओर बढ़ने लगे और जल्द ही उसने अपनई नरम हथेलियों को जयसिंग के अर्धसोये लंड से मिलाप करवा दिया, कनिका जयसिंग के लंड को अपने हाथों में महसूस कर गनगना उठी, उसे भरोसा ही नही हो रहा था की आखिर उसने अपने पापा के लंड को छू लिया था,

वो धीरे धीरे अपनी कोमल हथेलियों से लंड के चारो ओर फंदा से बनाकर उसे होले होले ऊपर नीचे करने लगी, थोड़ी देर में ही उसकी मेहनत का असर नज़र आने लगा, जयसिंग के लंड ने अपना आकार बढ़ाना शुरू कर दिया था, पर कनिका इतने में खुश नही थी, उसे तो पुरा टाने हुआ लंड चाहिए था , इसलिए वो हल्के से उठी और पल भर के ही उसने अपने होठों को जयसिह के लन्द के सुपडे से छुआ दिया,

कनिका का बदन बुरी तरह से गरमा चुका था, उसके होठों की तपन से जयसिह के लंड में हलचल होनी शुरू हो गयी, कनिका ने अब आने वाले वक्त को किस्मत के भरोसे छोड़ दिया और उसने लपककर जयसिंह के लंड को जितना हो सके अपने मुंह मे ले लिया, अब तो जैसे अपने होश खो चुकी थी, उसे परिणाम की परवाह न थी, वो तो अब मज़े से जयसिंह के लंड को जोर जोर से चूस रही थी
इस तरह लंड पर गर्म अहसास से जयसिंह नींद में ही कसमसाने लगा, उसकी नींद अब हल्की हल्की टूटने लगी थी, उसका लंड अब लोहे की रॉड की तरह सख्त हो चुका था, इधर कनिका बेपरवाह होकर लंड चुसाई में तल्लीनता से लगी थी, पर तभी अचानक उसे अपने बालों पर किसी के हाथों का अहसास हुआ, वो घबरा गई, उसने अपना चेहरा ऊपर उठाना चाहा पर उन हाथों ने अपना ज़ोर लगाकर दोबारा कनिका को लंड चूसने पर मजबूर कर दिया

अब कनिका समझ चुकी थी कि उसके पापा जग चुके है और अब वो भी इस सब का मज़ा ले रहे है, कनिका को अपने प्लान की कामयाबी पर बड़ी खुश हुई, वो और ज़ोर लगाकर जयसिंग का लंड चूसने लगी, इधर जयसिंह भी कनिका के चेहरे को संचालित कर रहा था

लगभग 5 मिनट तक कनिका ने जमकर जयसिंह का लंड चूसा, जयसिंह को अपने आप पर बड़ा गर्व महसूस हो रहा था, अब जयसिंह ने कनिका के चेहरे को ऊपर उठाया और फिर कनिका की अपनी बाहों में भर लिया


जयसिंह - कनिका मैं कब से तुम्हारी प्यारी सी फुद्दि के लिए तरस रहा था बेटी

कनिका: (अपने होंठो को जयसिंह के होंठो के तरफ बढ़ाते हुए) सच….पापा.... .कनिका ने जयसिंह की आँखो में झाँकते हुए कहा, और फिर अपने होंठो को जयसिंह के होंठो से लगा दिया

कनिका की ये बात सुनते ही, जयसिंह ने टीशर्ट के ऊपर से ही कनिका की चुचि को मसल दिया…कनिका तो जैसे पागल हो गई….उसने पागलो की तरह जयसिंह के होंठो को चूसना शुरू कर दिया…जयसिंह भी उसके होंठो पर टूट पड़ा….दोनो के होंठो में मानो जैसे कोई जंग छिड़ गई हो…

दोनो पागलो की तरह एक दूसरे के होंठो को चूस रहे थे…कनिका के मुँह से उंह उंह की आवाज़ें आ रही थी…जब दोनो का साँस लेना मुस्किल हो गया था, तो कनिका ने अपने होंठो को जयसिंह के होंठो से अलग किया…और फिर अपनी अधखुली नशीली आँखों से जयसिंह की आँखो में झाँकते हुए बोली..

कनिका - वाह पापाआआआ.... आप तो एक्सपर्ट हो पूरे

जयसिंह - वो तो मैं हूँ

कनिका अब कोई बात करके समय नही गवाना चाहती थी….वो फिर से जयसिंह के होंठो को चूसने लगी. इस बार उसने कुछ देर जयसिंह होंठो को चूसने के बाद, अपने होंठो को अलग कर दिया….और जयसिंह के सर को अपनी गर्दन पर झुकाते हुए बोली.

कनिका: पापा मुझे प्यार करो ना…मुझे किस करो. मेरे बदन के हर हिस्से को चुमो, चाटो….खा जाओ मुझे….

जयसिंह जैसे ही कनिका के ऊपर आया…कनिका ने अपनी टाँगे खोल ली, जिससे जयसिंह की टाँगें उसकी जाँघो के दरमियाँ आ गई…और उसका तना हुआ लंड उसके लोअर में से कनिका की स्कर्ट के ऊपर से उसकी चूत से जा टकराया..

"आह पापाआआआ उंह “ कनिका अपनी स्कर्ट के ऊपर से ही जयसिंह के लंड को अपनी चूत पर महसूस करते हुए सिसक उठी….

उसने अपनी टाँगो को कैंची की तरह जयसिंह की कमर पर लपेट लिया…जयसिंग ने भी उसके मम्मो को मसलते हुए अपने होंठो को उसकी सुरहीदार गर्दन पर लगा दिया….और उसके गर्दन को चाटने लगा…..कनिका मस्ती में फिर से सिसक उठी, उसने जयसिंह के सर के इर्द गिर्द घेरा बना कर उससे अपने से और चिपका लिया….

कनिका- ओह्ह्ह पापा हां खा जा मुझे आज पूरा का पूरा आहह…सीईइ पापा आज मेरी आग को बुझा दो पापाआआआ प्लीज़….

जयसिंह भी अब पूरी तरह मस्त होकर उसकी चुचियों को मसलते हुए, उसके गर्दन को चूम रहा था….और कनिका उसके सर को सहला रही थी…और बार बार अपनी कमर को ऊपर की तरफ उठा कर अपनी चूत को स्कर्ट के ऊपर से ही, जयसिंह के लंड पर दबा रही थी….

"ओह्ह्ह पापा आहह और ज़ोर से दबाओ ना मेरे मम्मे अह्ह्ह अह्ह्ह्ह…" मनिका सिसकी

फिर जयसिंह उसकी गर्दन को चूमता हुआ नीचे की ओर आने लगा….और उसके टीशर्ट से बाहर झाँक रहे मम्मो के ऊपरी हिस्से को अपने होंठो में भर कर चूसने के कोशिश करने लगा…

"आह हां चुस्ससो अह्ह्ह्ह पापा आह” ये कहते हुए, कनिका ने अपने हाथो को जयसिंह के सर से हटाया, और फिर अपने दोनो हाथों को नीचे ले जाकार अपनी टीशर्ट को पकड़ कर ऊपर करने लगी….ये देख जयसिंह जो कि अपना सारा वजन कनिका के ऊपर डाले लेटा हुआ था, वो अपने घुटनो के बल कनिका के जाँघो के बीच में बैठ गया….


कनिका ने अपनी टीशर्ट को पकड़ कर ऊपर करते हुए उतार दिया….और फिर बेड पर बैठते हुए अपनी ब्रा के हुक्स खोल कर उसे भी जिस्म से अलग कर दिया….ब्रा को अपने बदन से अलग करने के बाद, उसने जयसिंह की ओर देखा, जो उसकी छोटी छतों अधपकी चुचियों को खा जाने वाली नज़रो से देख रहा था.

" ये आपको बहुत पसन्द है ना ?" कनिका ने मुस्कुराते हुए जयसिंह की ओर देखकर कहा, जयसिंह ने भी हां में सर हिला दिया

जयसिंह का लंड अब पूरी तरह तन गया था…जो अब सीधा कनिका की चूत की फांको के ठीक ऊपर था…..

कनिका ने फिर से उन्हे बाहों में भरते हुए, उनके सर को अपनी चुचियों पर दबा दिया…

"आह पापा चूसो ईससी अहह” जयसिंह भी पागलो की तरह कनिका की चुचियों पर टूट पड़ा….और उसकी एक चुचि को मुँह में भर कर उसके अंगूर के दाने के साइज़ के निप्पल को अपनी ज़ुबान से दबा -2 कर चूसने लगा…. कनिका ने उसके सर को फिर से सहलाना शुरू कर दिया…..

कनिका: आह चुस्स्स्स लो आह पापा खा जा मेरे मम्मो को अहह उंह सीईईईई आह हाईए मा ओह हां चुस्स्स्स्स पापा और ज़ोर ज़ोर सी से चूसो

कनिका की आवाज़ में अब मदहोशी साफ झलक रही थी….उसका पूरा बदन उतेजना के कारण काँप रहा था…उसके गाल लाल होकर दिखने लगे…फिर कनिका को अपनी चूत की फांको पर जयसिंह के लंड का गरम सुपडा रगड़ ख़ाता हुआ महसूस हुआ. कनिका एक दम से सिसक उठी, उसने जयसिंह के सर को दोनो हाथों से पकड़ कर ऊपर उठाया, उसका निपल खींचता हुआ जयसिंह के मुँह से पक की आवाज़ से बाहर आ गया….

कनिका: (मस्ती में सिसकते हुए) हाय कितने जालिम हो आप….

कनिका की आँखें अब वासना के नशे में डूबती हुई बंद हुई जा रही थी, उसने अपनी नशीली अध खुली आँखों से एक बार जयसिंह की तरफ देखा, फिर उसके होंठो से अपने होंठ सटा दिए, जयसिंह ने भी कनिका के नीचे वाले होंठ को अपने होंठो में दबा-2 कर चूसना शुरू कर दिया….

"उंह अहह उंघह" कनिका घुटि आवाज़ में सिसक रही थी….

उसने अपना एक हाथ नीचे लेजाकार जयसिंह के लंड पर रखा, और उसे अपनी मुट्ठी में भर लिया, जयसिंह के बदन में तेज सरसराहट दौड़ गई, कनिका ने अपने होंठो को जयसिंह के होंठो से अलग किया और अपनी टाँगो को फेला कर घुटनो से मोड़ कर ऊपर उठा लिया, जयसिंह तो जैसे इस पल का इंतजार में था….वो अपने घुटनो के बल कनिका की जाँघो के बीच में आ गया, जैसे ही उसकी नज़र कनिका की फूली हुई चूत पर पड़ी, उसका लंड फिर से झटके खाने लगा, जो उस वक़्त कनिका के हाथ में था, कनिका जयसिंह के लंड की फुलति नसों को अपने हाथ में सॉफ महसूस कर रही थी…..

उसने जयसिंह के लंड को पकड़ कर अपनी चूत के छेद पर दबाया, तो जयसिंह के लंड का सुपडा उसकी चूत की फांको को फेलाता हुआ, छेद पर जा लगा, कनिका की कुँवारी चूत की फाँकें जयसिंह के लंड के सुपाडे के चारो तरफ फैेलाते हुए कस गई, अपनी चूत के छेद पर जयसिंह के लंड का गरम सुपडा महसूस करते ही उसके बदन में मानो हज़ारो वॉट की बिजली कोंध गई हो, उसका पूरा बदन थरथरा गया….

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shubhs
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Re: बाप के रंग में रंग गई बेटी

Post by shubhs »

दूसरे लड्डू की प्राप्ति
सबका साथ सबका विकास।
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, और इसका सम्मान हमारा कर्तव्य है।
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Re: बाप के रंग में रंग गई बेटी

Post by Kamini »

Ankit wrote: 19 Sep 2017 13:08superb update
shubhs wrote: 19 Sep 2017 21:14 दूसरे लड्डू की प्राप्ति
thanks soooooooooo much
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