बाप के रंग में रंग गई बेटी complete

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Kamini
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Re: बाप के रंग में रंग गई बेटी

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जयसिंह अब घर कम ही आता था। उसने अपने ऑफिस में ही ज्यादा वक्त बिताना शुरू कर दिया था। रात रात भर वही रुकता. इसका एक फायदा तो ये हुआ कि उसका बिज़नेस दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ रहा था। पर नुकसान ये कि अब वो पहले जैसा हसमुंख इंसान नही रहा था।

जयसिंह की पत्नी मधु भी उसकी उदासी का कारण नही जान पायी।जब वो कभी उससे उदासी की वजह पूछती तो जयसिंह बस बिज़नेस का बहाना बना देता। दिल्ली वाली घटना के बाद से ही जयसिंह ने मधु के साथ कभी भी शारीरिक संम्बंध नहीं बनाए थे। हालांकि वो लोग पहले भी महीने में एक या दो बार ही सेक्स करते थे पर अब तो वो भी बिल्कुल बन्द हो चुका था। मधु अपनी तरफ से भी कभी कोशिश करती तो भी जयसिंह का ठंडा रेस्पांस देखकर वो भी ठंडी हो जाती। वो सोचती की शायद बिज़नेस की वजह से जयसिंह की रुचि सेक्स में कम हो गयी है पर उसे क्या पता था कि जयसिंह कौनसी चोट खाये बैठा है।

उधर लाख कोशिशों के बाद भी मनिका के मन मे जयसिंह के प्रति प्रेम दिनोदिन बढ़ता ही गया। उसकी वासना ने उसके दिमाग को पूरी तरह से वश में कर लिया था।

परन्तु उसके मन मे डर था कि

"" उसने इतने महीने तक अपने पिता के साथ जैसा सलूक किया, उसके लिए वो उसे माफ करेंगे ? कहीं इतने महीनों में पापा सब कुछ भूल तो नही गए? कहीं वो बिल्कुल बदल तो नही गए?
क्योंकि अगर वो बदल चुके हैं, और मुझे अब एक बेटी के रूप में देखते है तो मैं किस तरह उनका सामना कर पाऊंगी जबकि मेरा मन उन्हें अपना मानने लगा है ... मैं कैसे उनके सामने जा पाऊंगी, कैसे उनसे बात कर पाऊंगी, कहीं उन्होंने मुझे ठुकरा दिया तो, नहीं नहीं मैं बर्दास्त नही कर पाऊंगी.....मैं किसी भी हाल में अपने पापा को दोबारा पाकर रहूंगी" मनिका यही सब सोचती रहती।

दिनों दिन मनिका की वासना बढ़ती जा रही थी। मनिका 1 साल से अपने घर नही गयी थी ताकि उसे अपने पापा का सामना न करना पड़े। पर अब वो जल्द से जल्द घर जाना चाहती थी। लेकिन उसे मौका ही नही मिल पा रहा था।
दिन ऐसे ही कटते गए,पर न तो मनिका को घर जाने का मौका मिला और ना ही इस दौरान उसकी जयसिंह से बात हो पाई। उसने एक दो बार कोशिश भी की जयसिंह से बात करने की पर मोबाइल में नम्बर डायल करने के बाद भी कभी वो कॉल न कर पाती और तुरन्त काट देती।

दिसम्बर के महीने में उसके सेमेस्टर एग्जाम थे। इस बार उसका ध्यान पढ़ाई पे कम ही था, इसलिए उसके एग्जाम भी ज्यादा अच्छे नहीं हुए पर उसे इस बात की ज़रा सी भी परवाह नही थी। वो तो ये सोचकर खुश थी अब उसकी 1 महीने की छुट्टियाँ पड़ने वाली थी।

उसने लास्ट पेपर खत्म होते ही होस्टल जाकर सीधा मोबाइल निकाला और अपनी मम्मी को फ़ोन किया-

मनिका - हेलो, मम्मी ,मैं मनिका बोल रही हूं

मधु - हां मणि , कैसी है बेटा, आज तेरा लास्ट पेपर था ना, कैसा हुआ पेपर ?

मनिका - पेपर तो ठीक ही हुआ है मोम

मधु - अच्छा तो अब दोबारा कब शुरू होगी तेरी क्लासेस

मनिका - क्या मम्मी ,अभी तो पेपर खत्म हुए है और आप अभी से मुझे दोबारा क्लासेज के बारे मे पूछ रहे हो।

मधु - तो क्या करूं, तुम तो घर आती नही जो मैं तुमसे छुट्टियों के बारे में पूछुं। तुम तो दिल्ली जाकर ऐसी रम गई हो कि घर आना ही नही चाहती

मनिका - सॉरी मम्मी, पर इस बार मैं आपको शिकायत का मौका नहीं दूंगी


मधु(खुश होते हुए) - मतलब तू घर आ रही है

मनिका - हाँ मम्मी , और इस बार मैं एक महीना रुकने वाली हूं.

मधु ने जब ये सुना तो वो तो खुशी के मारे फुले ना समाई।

मनिका - मम्मी आप मेरी कल की ही ट्रेन की टिकट करा दो,

मधु - हाँ बेटा, मैं अभी तुम्हारे पापा से कहकर टिकट करवाती हूँ
और तू कल आराम से आना, मैं तुझे लेने तेरे पापा को भेज दूंगी।

मनिका - ok मम्मी, bye


जब मनिका ने अपने पापा का नाम सुना तो उसके बदन ने एक जोर की अंगड़ाई ली और उसका शरीर गरम होने लगा।
इसे अपनी पेंटी थोड़ी गीली सी महसूस हुई।
वो मन ही मन सोचने लगी कि वो अपने पापा का नाम सुनकर ही गीली हो गई तो जब कल वो उसे लेने स्टेशन पर आएंगे तो क्या होगा।
वो अपनी ही सोच से शर्मा उठी। अब बस उसे कल का इंतज़ार था।

रात को जब जयसिंह घर आया तो डिनर की टेबल पर मधु उससे बोली

मधु - सुनिए, आज मणि के सारे पेपर खत्म हो गए है, उसकी 1 महीने की छुट्टियां हैं, इसलिए वो घर आ रही है , मैन आपको दिन में फ़ोन किया था ,पर आपका फ़ोन बन्द आ रहा था, इसलिए मैंने खुद ही उसकी ट्रैन की टिकर कर कर उसे मेसेज कर दिया है।

जयसिंह ने जब ये सुना कि मनिका 1 साल बाद कल घर आ रही है, तो उसके मुंह का निवाला गले मे ही अटक गया, और वो जोर जोर से खांसने लगा।

मधु ने उसे पानी दिया और बोली

मधु - मुझे लगता है कि मणि के आने की बात सुनकर खुशि से आपका निवाला गले मे ही अटक गया है,

और ये बोलकर वो हसने लगी। उसके साथ साथ उसकी छोटी बेटी कनिका ओर बेटा भी हसने लगे।

उनको यूँ हसता देख जयसिंह भी बेमन से मुस्कुरा दिया पर उसके मन मे एक अजीब सा डर बैठ गया था।


वो सोचने लगा " मैं मणि का सामना कैसे कर पाऊंगा, कैसे मैं उससे अपनी नज़रे मिला पाऊंगा, अब तक तो मैं मधु को झूठ बोलता था कि मैं मणि से बातें करता रहता हूँ पर उसके सामने मैं कैसे उससे बातें कर पाऊंगा, मेरी पुरानी गलती की सज़ा मैं अब तक भुगत रहा हूँ, मैं अपनी ही बेटी की नज़रों में गिर गया हूँ, अगर अब कुछ गलत हो गया तो कहीं मैं सबकी नजरों में न गिर जाऊं, नहीं नहीं मैं ऐसा नहीं होने दूंगा, मैं मणि से जितना दूर हो सके रहूंगा ताकि मुझसे कहीं दोबारा कोई गलती न हो जाये "

जयसिंह यही सोचते सोचते पहले ही परेशान था कि मधु ने उस पर एक और बम फोड़ा

मधु - आप कल मणि को रिसीव करने स्टेशन चले जाना, उसकी ट्रैन शाम 5 बजे यहां पहुंच जाएगी

अब जयसिंह को मारे डर के पसीना निकलने लगा, वो तो मणि के सामने आने से भी बचना चाहता था और अब मधु तो उसे स्टेशन भेज रही थी मणि को पिक अप करने

जयसिंह सकपका कर बोला - नही मधु, मैं नही जा सकता, कल मेरी बहुत ज़रूरी मीटिंग है, तुम खुद ही उसे रिसीव करने चली जाना

मधु - आप तो हमेशा ही बिज़ी रहते हो, कभी तो घर परिवार का ख्याल किया करो, पैसे बनाने के चक्कर मे आप तो हमे जैसे भूल ही गये हो

जयसिंह - plz मधु समझा करो ना ,ये सब मैं तुम लोगो के लिए ही तो कर रहा हूँ

मधु - पर ऐसा भी क्या बिज़नेस की घर परिवार को ही समय न दे सको, पहले भी तो अच्छा चलता था बिज़नेस, पर पहले आप कितने खुशमिज़ाज़ हुआ करते थे और अब तो बिल्कुल ही.....
मधु को सचमुच गुस्सा आने लगा था

बात आगे बढ़ती इससे पहले ही जयसिंह वहां से उठा और हाथ धोकर सोने के लिए चला गया।मधु भी बेचारी हारकर चुप हो गई।

इधर मनिका अपने होस्टल में कल के लिए पैकिंग कर रही थी । वो बड़ी खुश थी कि " कल उसके पापा उसे स्टेशन पर लेने आएंगे। वो उन्हें 1 साल के बाद देखेगी, पर उनसे कहेगी क्या ?"

"वो सब बाद में देखा जाएगा" मनिका खुद ही अपने सवाल का जवाब देते हुए सोचने लगी।

वो पैकिंग कर ही रही थी कि उसकी नज़र अपनी अलमारी में रखे उन ब्रा पेंटी पर पड़ी जो उसके पापा ने उसे दिलाये थे, नफरत ओर गुस्से की वजह से उसने आज तक इनको पहना ही नहीं था, पर आज इनको सामने देखकर उसका रोम रोम रोमांचित हो उठा,
वो उन ब्रा पैंटी को अपने हाथों में लेकर सहलाने लगी, धीरे धीरे उसका शरीर गरम होने लगा, उसने तुरंत अपनी स्कर्ट उठाकर अपनी प्यारी सी पुसी पर अपनी अंगुलियां घुमाना शुरू कर दी।
वो मन ही मन उस पल को सोचने लगी जब उसने जयसिंह के काले लम्बे डिक को पहली बार देखा था, ऐसे ही सोचते सोचते उसके शरीर मे एक सिहरन सी दौड़ गयी और वो " ओह्हहहहहह पापा , आई लव यू" कहते हुए भलभला कर झड़ गयी।

कुछ देर बाद उसके वासना का तूफान शांत होने के बाद उसने शरम के मारे अपने मुंह को अपने हाथों से छिपा लिया। उसने वो ब्रा पैंटी भी अपने बैग में डाल ली।

जब उसकी पैकिंग खत्म हो गयी तो वो कल जयसिंह से मिलने के सपने संजोते हुए नींद के आगोश में चली गई।
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Kamini
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अगले दिन सुबह जल्दी ही मनिका को ट्रैन पकड़नी थी। वो जल्दी से तैयार होकर स्टेशन के लिए रवाना हो गयी। ट्रैन में बैठकर उसने अपनी मम्मी को मैसेज कर दिया कि वो ट्रैन में सही सलामत बैठ गयी है।

उसकी मम्मी ने उसे अब तक नहीं बताया था कि उसके पापा उसे लेने नही आएंगे। मधु खुद ही उसे रिसीव करने जाने वाली थी।

इधर पूरे रस्ते मनिका अपने और जयसिंह के बीच दिल्ली में हुई घटनाओं के बारे में सोच सोच कर गरम होती रहती, "कैसे उसके पापा ने उसे पहली बार मनिका कहकर बुलाया था, कैसे वो उसे अपनी गर्लफ्रैंड की तरह ट्रीट करते थे, कैसे बहाने से उन्होंने अपना लंबा डिक उसे दिखाया था, "
मनिका के शरीर मे अकड़न सी हो जाती और वो बार बार अंगड़ाई लेती रहती।

" ये सफर भी कितना लंबा लग रहा है"मनिका मन ही मन उदास सी हो जाती।

" कब ये सफर खत्म होगा और कब मैं अपने प्यारे पापा से मिल पाऊंगी, जब वो मुझे स्टेशन पे देखेंगे तो क्या कहेंगे, कहीं वो मुझे मणि कहकर तो नही बुलाएंगे, नहीं नहीं " पल पल मनिका के चेहरे के भाव बदल रहे थे, कभी वो खुश होती तो कभी वो जयसिंह के बदलने की बात सोचकर खिन्न हो जाती।

यही सब सोचते सोचते उसका सफर लगभग खत्म होने वाला था। शाम के 4.30 हो चले थे। मनिका ने अपना सारा सामान सम्भाला।
अचानक उसको न जाने क्या सूझी की उसने बैग में से अपना मेकअप किट निकाला और उसमें से थोड़ा सा मेकअप का सामान लेकर बाथरूम में चली गयी, मनिका ऐसे सज रही थी जैसे वो घर नही अपने बॉयफ्रेंड से मिलने जा रही हो, उसने फटाफट अपना मेकअप फिनिश किया।
वो तो अब बला की खूबसूरत लग रही थी।

"पापा मुझे ऐसे देखेंगे तो उनके दिल पे तो छुरियाँ ही चल जाएगी " मनिका मन ही मन खुश होती हुई बोली।

आखिरकार लास्ट स्टेशन आ ही गया, उसका दिल अब जोर जोर से धड़कने लगा, उसने अपना बैग उठाया और ट्रैन से नीचे उतरी, उसने इधर उधर नज़र दौड़ाई , पर उसे जयसिंह नज़र नही आ रहा था, वो अपना सामान लेके मेन गेट की तरफ बढ़ने लगी, वहां पर काफी लोग अपने रिश्तेदारों को रिसीव करने आये हुए थे, मनिका उन चेहरों में अपने पापा का चेहरा तलाशने लगी, उसकी हार्टबीट बढ़ती ही जा रही थी,

"मणि, बेटा इधर देख, मैं इधर हूँ" अचानक मनिका को अपने कानों में आवाज़ सुनाई दी

उसने जब एक कोने में देखा तो वहाँ उसकी मम्मी उसकी ओर हाथ उठाकर इशारे कर रही थी, वो तुरंत अपनी मम्मी की ओर तेज़ गति से बढ़ने लगी, उसे लगा कि शायद उसे रिसीव करने उसके मम्मी पापा दोनों आये होंगे, पर अब भी उसे जयसिंह कहीं नजर नही आ रहा था, जैसे जैसे वो अपनी मम्मी के नज़दीक जा रही थी, उसका दिल बैठने लगा, जिसके लिए वो इतना सज धज कर आई वो तो उसे लेने ही नही आया, ये सोचकर ही मनिका को दुख सा होने लगा,पर उसने इसे अपनी मम्मी पर ज़ाहिर नहीं होने दिया।

"आ गई मेरी बेटी, कैसी है तू, सफर में कोई तकलीफ तो नही हुई" ये कहते हुए मधु ने उसे अपने गले लगा लिया।

"मैं बिल्कुल ठीक हूँ, और सफर भी बिल्कुल अच्छा रहा मम्मी" मनिका की आंखे अभी भी जयसिंह को ढूंढ रही थी।

"शायद वो कार में होंगे, पार्किंग की जगह नही मिली होगी, इसलिए बाहर गाड़ी में ही हमारा इंतेज़ार कर रहे होंगे" मनिका मन ही मन खुद को दिलासा देते हुए सोचने लगी।

"अरे कहाँ खो गयी बेटा, देख 1 साल में कितनी दुबली हो गयी है, वहाँ तुझे खाना नही देते क्या वो लोग" मधु बोली

"कहाँ दुबली हो गयी हूँ मम्मी, आप तो बस ऐसे ही मेरी टांग खींचते रहते हो" मनिका थोड़े मुस्कुराते हुए बोली

"तू घर चल, इस बार 1 महीने में तुझे खिला पिला कर तन्दरुस्त न कर दिया तो बोलना" ये बोलकर मधु और मनिका दोनों हसने लगी।


अब मनिका और मधु पार्किंग की तरफ बढ़ने लगे, जब वो लोग अपनी कार के पास पहुंचे, तो अब मनिका की आखरी आस भी टूट गयी, कार में कोई नही था, उसका दिल भर आया,

" शायद पापा मुझसे नाराज़ हैं , मैंने 1 साल तक उन्हें इतना परेशान किया, इसीलिए मुझे रिसिव करने नही आये, वरना पापा ही हमेशा सबको रिसिव करने आते है, अब मैं कैसे उन्हें अपने दिल की बात बता पाऊंगी, शायद वो बिल्कुल बदल गए है, नहीं नहीं मैं अपने पापा को अपने से दूर नहीं जाने दूंगी, नहीं जाने दूंगी " मनिका अपने अन्तर्मन को समझा ही रही थी कि मधु बोली
" अरे अब यहीं खड़े रहना है या फिर घर भी चलोगी "

मनिका - हां मम्मी, चलो
मधु - तो बैठो न गाड़ी में
फिर वो दोनों कार में बैठकर घर की तरफ रवाना हो गयी।

"मम्मी, आप तो बोल रही थी कि पापा मुझे रिसिब करने आएंगे" मनिका ने ये पूछने के लिए अपनी पूरी हिम्मत लगा दी थी

"बेटा, उनकी कोई जरूरी मीटिंग थी आज, इसलिए वो नही आ पाए, रात को शायद डिनर पे आ जाएं" मधु ने बड़े ही सामान्य तरीके से जवाब दिया।

उसके बाद मनीका और मधु ऐसे ही गप्पे लड़ाते हुए घर पहुंच गई।

घर पर मनिका की छोटे भाई बहन ( कनिका और हितेश) उसका बेसब्री से इंतेज़ार कर रहे थे, 1साल बाद अपनी बड़ी बहन से मिलकर वो दोनों बहुत खुश हुए, उन्होंने आते ही मनिका को बातो में लगा लिया, वो उससे दिल्ली के बारे में पूछने लगे, मनिका भी बड़े प्यार से उनको शहर की चमक धमक के बारे में बताती,

मनिका ने फ्रेश होकर दोबारा उनसे बातें करना शुरू कर दिया, मधु डिनर की तैयारियों में लग गई थी, मनिका अपने छोटे भाई बहन के लिए कुछ गिफ्ट्स लायी थी, गिफ्ट्स पाकर वो दोनों बड़े खुश हो गए, मनिका बाहर से तो बड़ी खुश थी पर उसकी आंखे अभी भी अपने पापा को देखने के लिए तरस रही थी,
( यहां मैं आप लोगो को उनके घर की बनावट बता देता हूँ।

उनका दो मंज़िल का शानदार घर था, दोनों मंज़िल पर तीन - तीन कमरे थे, हर कमरे में अटैच लेट-बाथ था, किचन नीचे ही था, एक बड़ा सा हॉल, जो सुख सुविधाओं की सभी चीज़ों से सम्पन्न था

ग्राउंड फ्लोर पर कोने के कमरे में जयसिंह और मधु रहते थे, दूसरे कमरे में कनिका और लास्ट वाले में हितेश रहता था,

मनिका पहले कनिका के साथ ही रहा करती थी पर बाद में उसने अपना सामान ऊपर वाली मंजिल पे शिफ्ट कर लिया था, ऊपर बीच वाला कमरा स्टोर रूम और सबसे लास्ट वाला गेस्ट रूम था )

मनिका अपने अपने भाई बहन से बातें कर तो रही थी पर उसका मन तो अपने पापा को देखने मे अटका था, जब उससे रहा न गया तो उठ कर किचन में अपनी मम्मी के पास चली गई,

" आज खाने में क्या बना रही हो ममा" मनिका बात शुरू करते हुए बोली

" बेटा, आज मैं तेरी मनपसन्द चीज़े बना रही हूं, मटर पनीर की सब्जी, राजमा ,पूड़ी और मीठे में खीर भी बना रही हूं" मधु ने जवाब देते हुए कहा

" वाव मम्मी, मुझे तो अरसा हो गया है अच्छा खाना खाएं, आज तो मैं जी भर के खाऊँगी" मनिका चहकते हुए बोली

" तू चिंता मत कर, तू जितने दिन यहां है मैं तुझे रोज़ अच्छी अच्छी चीज खाने को दूंगी, देखना एक महीने में तुझे बिल्कुल तन्दरूस्त न कर दिया तो बोलना" ये बोलकर दोनों हसने लगी।

"अच्छा मम्मी, पापा कब तक आएंगे" आखिर कार मनिका ने अपने दिल की बात पूछ ही ली

"शायद डिनर के टाइम तक आ जाएंगे, चल अब तू बाहर जा, मुझे बहुत से कम बाकी है" ये बोलते हुए मधु वापस खाना बनाने में बिजी हो गई।

मनिका सीधा अपने रूम में गई, उसने सोचा कि पापा के आने से पहले नहाकर रेडी हो जाती हूँ, मनिका ने अपना टॉवल लिया, और अलमारी में से अपनी ब्रा पैंटी ढूंढने लगी।

तभी उसके दिमाग मे एक आईडिया आया, उसने तुरंत अपने बैग में खोजना शुरू किया और थोड़ी ही देर में उसके हाथों में वो ब्रा पैंटी थी जो उसके पापा ने उसे दिलाई थी। वो तुरन्त उनको लेकर अपने बाथरूम में घुस गई।

उसने पलक झपकते ही अपनी टीशर्ट और नाइटी उतार दी, ब्रा पैंटी में समाए अपने गोरे बदन को देखकर वो शर्मा ही गई, धीरे धीरे उसका शरीर गरम होने लगा, अब उसने हल्के से अपनी काली ब्रा के हुक खोलना शुरू कर दिया, ब्रा की कैद से आज़ाद होते ही उसके छोटे छोटे दोनों उरोज स्पंज की भांति उछलकर बाहर आ गये, वो अपने हाथों से उनको पकडर सहलाने लगी, बीच बीच में वो अपने नाखूनों से अपने ब्राउन कलर के निप्पलों को कुरेद देती,

"ओह्हहहहहह पापाअअअअअ, मसलो इन्हें,,,, " मनिका मन ही मन कल्पना करने लगी कि उसके पापा ही उसके उरोज़ो को हाथों में लेकर मसल रहे हैं,

धीरे धीरे मनिका की उत्तेजना चरम पर पहुंचती जा रही थी, उसने अपनी पैंटी के इलास्टिक को पकड़ा और एक झटके में पैंटी को अपने पैरों के चंगुल से मुक्त कर दिया, अब उसका एक हाथ उसके उरोजों को मसल रहा था तो दूजा हाथ उसकी पुसी की क्लीट को,

"ओह यस्सससस, ओह्हहहहहह पापा
उन्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह… एक ज़ोरदार सिसकी के साथ मनिका जोर जोर से अपनी उंगलिया चलाने लगी

"उन्ह्ह्ह्ह…ह्म्प्फ़्फ़्फ़्फ़… ओहहहहहह यस ओहहहहहहह यस"
मनिका के शरीर ने एक जोर की अँगड़ाई ली, उसके बदन में एक आनन्द की एक लहर दौड़ गई और थोड़ी ही देर में उसकी टांगो के बीच एक सैलाब सा आ गया, उसके पैरों की हिम्मत जवाब दे गई और वो वही बाथरूम में ज़मीन पर बैठ गई,
थोड़ी देर बाद उसने अपनी बिखरी हुई सांसो को समेटा और अपने बाथ टब में जाके लेट गई, उसका चेहरे पर अब सन्तुष्टि के भाव झलक रहे थे

उसने जल्दी से बाथ लिया और फिर एक वही ब्रा पैंटी पहनी,उसने एक बहुत ही महीन सिल्की टीशर्ट पहनी ओर उसके नीचे एक कैपरी डाल ली, ध्यान से धन पर उसकी ब्रा की स्ट्रिप्स को उसकी टीशर्ट में से महसूस किया जा सकता था, उसने फिर हल्का सा मेकअप किया और फिर नीचे हॉल में आकर कनिका और हितेश से बाते करने में मशगूल हो गई।

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Re: बाप के रंग में रंग गई बेटी

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kunal wrote: 01 Sep 2017 14:44sexi update
thank you sooooooooooooooooo much
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Re: बाप के रंग में रंग गई बेटी

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मनिका के शरीर ने एक जोर की अँगड़ाई ली, उसके बदन में एक आनन्द की एक लहर दौड़ गई और थोड़ी ही देर में उसकी टांगो के बीच एक सैलाब सा आ गया, उसके पैरों की हिम्मत जवाब दे गई और वो वही बाथरूम में ज़मीन पर बैठ गई,
थोड़ी देर बाद उसने अपनी बिखरी हुई सांसो को समेटा और अपने बाथ टब में जाके लेट गई, उसका चेहरे पर अब सन्तुष्टि के भाव झलक रहे थे

उसने जल्दी से बाथ लिया और फिर एक वही ब्रा पैंटी पहनी,उसने एक बहुत ही महीन सिल्की टीशर्ट पहनी ओर उसके नीचे एक कैपरी डाल ली, ध्यान से धन पर उसकी ब्रा की स्ट्रिप्स को उसकी टीशर्ट में से महसूस किया जा सकता था, उसने फिर हल्का सा मेकअप किया और फिर नीचे हॉल में आकर कनिका और हितेश से बाते करने में मशगूल हो गई।

उधर जयसिंह सुबह से ही मनिका के आने की खबर से परेशान सा था, उसने मधु को किसी तरह बहाने से स्टेशन जाने से तो मना कर दिया पर अब उसे घर पर तो जाना ही पड़ेगा, और घर जाते ही उसे मनिका से सामना करना पड़ेगा,

" मैं घर जाकर मनिका से कैसे नज़रें मिला पाऊंगा, क्या उसने मुझे माफ़ किया होगा, नहीं नहीं वो बचपन से ही गुस्सा करने वाली लड़की रही है, और मैने जो किया उसके लिए तो वो मुझे कभी माफ कर ही नही सकती, अगर मैं उसके पास गया और उसने मेरे साथ कहीं अजीब व्यवहार किया तो मधु को पक्का शक हो जाएगा, वो जरूर मनिका से इसकी वजह पूछेगी, अगर मनिका ने उसे सब कुछ बता दिया तो, मेरा बसा बसाया घर बर्बाद न हो जाये, कहीं मधु बच्चो को लेकर मुझे छोड़ कर चली गयी तो, नहीं नहीं मैं ऐसा नही होने दूंगा, मैं मनिका के सामने ही नही जाऊंगा,, लेकिन घर भी तो जाना पड़ेगा ,, अब मैं क्या करूँ " - जयसिंह दिन भर इसी उधेड़बुन में लगा रहा, पर लाख कोशिशों के बावजूद भी वो किसी निष्कर्ष पर ना पहुंच सका,

अब शाम के 8:00 बजने को आये थे, जयसिंह के घर जाने का समय भी हो गया था, उधर मनिका पलकें बिछाए अपने पापा का इंतजार कर रही थी और इधर जयसिंह घर जाने या ना जाने की ऊहापोह स्तिथि में फंसा हुआ था।
आखिरकार हारकर जयसिंह अपनी कार में बैठा और घर की तरफ रवाना हो गया,

घर पर मधु ने खाना तैयार कर लिया था, उसने सोचा कि एक बार जयसिंह को फ़ोन करके पूछ लेती हूँ कि वो कब तक आएंगे, उसने अपना फोन निकाला और जयसिंह का नम्बर डायल करके कॉल लगा दिया,

इधर जयसिंह ने जब फोन की स्क्रीन पर मधु का नम्बर देखा तो उसका दिल जोरो से धड़कने लगा

" मैं मधु से क्या कहूँ, मुझे घर जाना चाहिए या नहीं, अगर मैं काम का बहाना बना दूँ तो, नहीं नहीं कल ही मधु ने मुझसे काम की वजह से झगड़ा किया था, और आज तो मनिका भी घर आ गई है, ऐसे में अगर मैंने घर जाने से मना किया तो मधु जरूर मुझसे गुस्सा हो जाएगी, पर अगर घर गया तो मनिका का सामना कैसे करूँगा " जयसिंह इसी असमंजस की स्तिथि में फंसा था, पर अब तक उसे कोई हल नही सूझ रहा था। आखिर उसने डरते डरते फ़ोन उठाया


जयसिंह - हेलो,
मधु - क्या हुआ, इतना टाइम क्यों लगाया फ़ोन उठाने में

जयसिंह - वो वो अम्म्म मैं ममम ड्राइव कर रहा था इसलिए जल्दी नही उठा पाया

मधु (खुश होते हुए)- अरे वाह, इसका मतलब आज आप टाइम पर घर आ जाओगे , कितना अच्छा लगेगा आज सब लोग साथ मे खाना खाएंगे

जयसिंह(घबराते हुए) -- अरे नहीं अम्म्म मधु , मैं कार में जरूर हूँ पर मैं घर नही आ रहा, जरासल मुझे एक क्लाइंट से मिलने जाना तो अभी उसी के घर जा रहा हूँ, मुझे घर आते आते देर हो जाएगी, तुम लोग खाना खा लो, मैं घर आकर बाद में खा लूंगा,

मधु (गुस्से में) - काम,काम,काम बस आपको तो काम ही सूझता है, हम लोगो के लिए तो आपके पास वक्त ही नहीं है, घर पे बेटी साल भर बाद आई है और आप है कि मिलने के बजाय बाहर बिज़ी रहते है,

" अब मधु को कैसे समझाऊं की मनिका की वजह से ही घर नही आ रहा " जयसिंह मन ही मन सोचता है

मधु - अब चुप क्यों हो गए जवाब दो
जयसिंह - plz मधु समझा करो ना, अगर ज़रूरी काम ना होता तो मैं जरूर आ जाता, पर क्या करूँ क्लाइंट से आज मिलना ज़रूरी है

मधु (गुस्से से)- ठीक है फिर, खाना भी बाहर ही खा लेना, यहां तो अगर खाना बचा भी तो मैं डस्टबिन में फेंक दूंगी,

जयसिंह - मधु सुनो तो सही, हेलो, hellllo......

मधु ने गुस्से से फ़ोन बीच मे ही काट दिया, मधु हमेशा उसे खाना फेंकने की धमकी देती थी, पर ये जयसिंह भी जानता था कि वो ऐसा कभी नही करती, क्योंकि गुस्सा शांत होने पर मधु को समझ आ जाता था कि ये सब वो उनके लिए ही कर रहा है, इसलिए जयसिंह थोड़ा निश्चिन्त हो गया और वापस गाड़ी को आफिस की तरफ मोड़ दिया,उसने सोचा था कि सबके सोने के बाद घर चला जायेगा और सुबह मनिका के उठने से पहले ही वापस आफिस आ जायेगा,

इधर मधु का मूड खराब हो चुका था, पर वो कर भी क्या सकती थी,

"मणि , हितेश, कनिका , आओ सब लोग खाना खाने का टाइम हो गया है " उसने बच्चों को आवाज़ लगाई

तीनो लोग मनिका के रूम में बैठकर बाटे कर रहे थे, मधु की आवाज़ सुनकर तीनों एक स्वर में बोले - "अभी आये मम्मी"


कनिका और हितेश तो तुरंत नीचे भाग गए पर मनिका अब भी अपने रूम में थी,

मनिका को लगा कि शायद पापा आ गए है, तभी मम्मी उन्हें खाना खाने बुला रही है, ये सोचकर ही मनिका के मन मे सिहरन सी उठ गई,

"आज साल भर बाद मैं पापा से मिलूंगी, हाय कितना मज़ा आएगा उनसे मिलकर, बहुत सताया है मैंने अपने पापा को, पर अब मैं उनकी सारी शिकायत दूर कर दूंगी" मनिका मन ही मन सोचने लगी,

वो जल्दी से उठी और आईने में खुद को निहारने लगी, उसने अपने गुलाबी होंठों पर हल्की सी ग्लास लिपिस्टिक लगाई और बालों को थोड़ा सा संवारा,
और एक हल्की सी मुस्कुराहट उसके चेहरे पर फैल गयी,

अब वो धीरे धीरे कमरे से बाहर निकलकर सीढ़ियों पर नीचे की ओर जाने लगी,उसका दिल जोरो से धड़कने लगा, उसकी नज़रें झुकी हुई थी और उसकी चाल ऐसी लग रही थी मानो कोई नई नवेली दुल्हन अपनी सुहागरात की सेज की तरफ बढ़ रही हो,

पर जैसे ही उसने अपनी नज़र उठाकर हॉल की ओर देखा , उसके सारे अरमान धरे के धरे रह गए, वहां डाइनिंग टेबल पर सिर्फ मनिका ओर हितेश बैठे थे और मधु वहां पर खाने की प्लेट्स लगा रही थी,


मनिका को जैसे जोर का झटका लगा हो, जयसिंह को वहां ना पाकर तो जैसे उसके पैर वहीं के वहीं जम गए हों, उसने न जाने कैसे कैसे सपने संजोये थे, पर उसके सारे सपने उसे मिट्टी में मिलते नज़र आ रहे थे,

अब वो भारी कदमों से नीचे की ओर बढ़ रही थी,

उसको नीचे आते देख मधु बोली- आजा मणि जल्दी आ, देख तेरी पसन्द की सारी चीज़ें बना दी है, ज़रा टेस्ट करके तो बता की कैसी बनी है?

अब मनिका उसको क्या जवाब देती, उसकी तो जैसे भूख ही मर गयी थी, वो भारी मन से टेबल पर आकर बैठ गयी।

मधु ने उसके लिए एक प्लेट लगाई और फिर उसमें सारी डिशेज़ सर्व कर दी।

कनिका और हितेश तो खाने का लुत्फ उठा रहे थे, पर मनिका बिल्कुल धीरे धीरे खा रही थी,

उसको ऐसे कहते देख मधु बोली - क्या हुआ मणि, खाना अच्छा नही बना क्या

मनिका - नहीं मम्मी, ऐसी कोई बात नहीं, खाना तो बहुत ही स्वादिष्ट बना है

मधु - तो फिर ऐसे धीरे धीरे क्यों कहा ल है, पहले तो कैसे फटाफट खाना खाती थी, और अब देखो कैसे स्लो मोशन में खाना खा रही है

उसकी बात सुनकर कनिका और हितेश भी हसने लगे,

मनिका - ऐसा तो कुछ नही है मम्मी

मधु - मुझे लगता है कि तेरा ध्यान कहीं और है, कहीं तू अपने पापा के बारे मव तो नहीं सोच रही हो

मधु की बात सुनकर तो मनिका को इस लगा जैसे मधु ने उसकी कोई चोरी पकड़ ली हो, वो घबरा सी गई।

मनिका (घबराते हुए) - नही म्म्म्मम्म मम्मी, ऐसी तो कोई बात नहीं

मधु - झूट मत बोल, मैं जानती हूँ कि मुझसे ज्यादा तू तेरे पापा को ही प्यार करती है, और वो अब तक तुझसे मिलने घर नही आये, इसलिये तू परेशान है

प्यार की बात सुनकर एक बार तो मनिका घबराई फिर उसे लगा कि मम्मी तो बाप बेटी वाले प्यार की बात कर रही है।

मनिका थोड़े शांत होते हुए बोली - पर मम्मी पापा अभी तक आये क्यों नहीं

मनिका ने ये सवाल पूछ तो लिया था पर शायद वो उसका जवाब पहले से जानती थी, उसे पता था कि उसके पापा शायद उसकी वजह से घर नहीं आ रहे है। अब उसे पक्का भरोसा हो गया था कि " पापा उसके सामने आने से कतरा रहे है, वो बदल चुके है और अपने किये पर सचमुच शर्मिंदा है, पर अब मैं उनके बिना नहीं रह सकती, मैं अपने पापा को वापस पाकर रहूंगी, चाहे इसके लिए मुझे कुछ भी करना पड़े" मनिका ने मन ही मन कुछ निश्चय कर लिया था।

जयसिंह वापस अपने ऑफिस की तरफ चल पड़ा, वो मन ही मन बड़ा खुश था कि अब उसे मनिका का सामना नहीं करना पड़ेगा, ऑफिस पहुंचकर वो वही थोड़ी देर टाइम पास करने लगा,

मनिका खाना खाकर वापस अपने रूम में आ चुकी थी, वो अंदर से बहुत दुखी थी।

" मैंने अपने पापा को बहुत दुःख दिए ,इसीलिए मुझे ये सज़ा मिल रही है, मुझे कुछ भी करके अपने पापा को वापस अपने करीब लाना होगा, पर कैसे, मैं ये कैसे करूंगी, दिल्ली में हम दोनों अकेले थे , पर यहां तो सब लोग हैं " मनिका अंदर ही अंदर बड़ी बैचैन सी होने लगी,

लेकिन कुछ भी हल ना निकलता देख वो थक हारकर लेट गई, सफर की थकान की वजह से वो जल्दी ही नींद के आगोश में चली गई,

रात के लगभग 11:00 बज चुके थे, जयसिंह को लगा की अब तक घर मे सब लोग सो चुके होंगे, उसने अपनी गाड़ी निकली और घर की तरफ चल पड़ा,

जल्दी ही वो घर पहुंच गया, चूंकि वो अक्सर लेट ही आता था, इसलिए उसके पास घर की डुप्लीकेट चाबी रहती थी, उसने हल्के से दरवाज़ा खोला ताकि उसकी आवाज़ सुनकर कोई जाग न जाये,

उसे बड़े जोरों की भूख लग रही थी, वो सीधा किचन में गया और वहीं सिंक में हाथ धोकर अपने लिए प्लेट में खाना डाल लिया, प्लेट लेकर वो डाइनिंग टेबल की ओर बढ़ ही रह था कि उसे लगा की इस वक्त हॉल की लाइट जलाना सही नही होगा,
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