बाप के रंग में रंग गई बेटी complete

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Kamini
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Re: बाप के रंग में रंग गई बेटी

Post by Kamini »

shubhs wrote: 17 Sep 2017 20:33 बढिया
Ankit wrote: 18 Sep 2017 12:50Superb update
thanks sooooooooooooooo much
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Kamini
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Re: बाप के रंग में रंग गई बेटी

Post by Kamini »

इधर जयसिंह पर तो जैसे जैसे भूत ही सवार था , वो मनिका के मुंह मे दे दना दन धक्के लगाए जा रहा था

तकरीबन 10 मिनट तक मनिका के मुंह को चोदन के बाद जयसिंग के लंड में उबाल आने शुरू हो चुका था ,उसे पता लग गया कि उसका पानी निकलने वाला है, पर उसने मनिका को नही बताया और एक जोर का झटका देकर अपना लंड मनिका के गले तक उतार दिया और साथ ही साथ उसके लंड ने जोरदार ढंग से पिचकारी मार दी, जयसिंह के लंड से निकली आखिरी बून्द तक मनिका के गले से नीचे उतर गई, मनिका ने अपनी तरफ से जोर लगाया पर जयसिंह के बलिष्ठ शरीर के आगे उसकी थोड़ी सी ताक़त कहाँ टिकनी थी, हार मानकर उसे जयसिंह का सारा वीर्य गटकना पड़ा,

थोड़ी देर बाद जयसिंह ने अपना लंड मनिका के मुंह से बाहर निकाल लिया,अब उसे होश भी आ चुका था, उसने देखा कि मनिका की हालत थोड़ी खराब है वो लम्बी लम्बी सांसे लेने की कोशिश कर रही थी

उसे इस हालत में देखकर जयसिंह को थोड़ा बुरा फील होने लगा था
,
"मनिका, ई एम सॉरी, वो पता नही मुझे क्या हो गया था, मैं खुद पर कंट्रोल ही नही कर पाया" जयसिंह ने मनिका की तरफ देखकर कहा

"क्या पापाआआआ,, आपने तो मेरी जान ही निकाल दी, ऐसा भी कोई करता है क्या अपनी बेटी के साथ" मनिका ने थोड़ा तन कर कहा

"प्लीज़ सॉरी" जयसिंह घबरा कर बोला

"ओके, बट अगली बार आप अपना पानी सीधा नही गिराएंगे, क्योंकि मैं खुद उसे प्यार से पीना चाहती हूं" मनिका ने हंसकर कहा

"क्यआआ....??" जयसिंह हैरान होकर बोला


"हाँ पापाआआआ..... सच पूछो तो मुझे आपका पानी बहुत अच्छा लगा, शुरू में थोड़ा अजीब लगा पर बाद में मुझे भी अच्छा लगने लगा" मनिका मुस्काते हुई बोली

मनिका की बात सुनकर जयसिंह भी खुश हो गया

अब जयसिंह दोनों अच्छे से नहाने लगे और फिर तैयार होकर गांव जाने की पैकिंग करने लगे

दोपहर तक दोनों बिल्कुल तैयार हो चुके थे, लंच करने के बाद दोनों ने अपने बैग्स उठाये और अपनी कार में सवार होकर गांव की तरफ निकल पड़े

5 घन्टे के लंबे और थकाऊ सफर के बाद उन्हें गाँव की कच्ची सड़कें दिखाई देने लगी, जिसका साफ मतलब था कि अब उन दोनो की मंज़िल बिल्कुल करीब थी, मनिका को गांव में आना बिल्कुल पसंद नही था, उसे तो शहर की चकाचोंध ही भाती थी, ऊपर से वो अब दिल्ली में रहती थी सो उसके नाज नखरे और भी ज्यादा बढ़ गए थे, उसने शिकायत भरी नज़रो से अपने पापा की ओर देखा, जयसिंह उन आंखों को देखकर समझ गया था कि मनिका शायद यहां आकर खुश नही है इसलिए मनिका के बोलने से पहले ही जयसिंह बोल पड़ा

"मुझे पता है मनिका, तुम गांव में आना पसन्द नही करती हो, पर क्या करें, मजबूरी है, आज की रात किसी तरह एडजस्ट कर लेना, कल शाम तक तो हम दोबारा अपने घर होंगे" जयसिंह ने मनिका को समझाने की कोशिश की

"मुझे पता है पापा, पर क्या करूँ, मुझे तो गांव के नाम से भी परेशानी होती है, ऊपर से अब मुझे आप से दूर भी रहना पड़ेगा, इसलिए मुझे तकलीफ हो रही है" मनिका हल्की रुआंसी होकर बोली

"अरे पर एक ही दिन की तो बात है, कल हम वापस अपने घर होंगे और फिर वापस मैं और तुम जन्नत की सैर करेंगे" जयसिंह मुस्कुराता हुआ बोला


"ठीक है पापा, सिर्फ एक दिन, अगर आप एक दिन में वापस नही आये तो मैं आपका गांव में ही रेप कर दूंगी" ये कहकर मनिका हंसने लगी

"अरे बेटी मैं तो चाहता हूं कि तुम हमेशा मेरा रेप करती रहो, मेरा पप्पू तो तुम्हारी चिड़िया के दर्शन के लिए हरदम बेकरार रहता है" कहकर जयसिंह ने मनिका की चुत पर जीन्स के ऊपर से हाथ फेर दिया

"उफ़्फ़फ़फ़ ......हटाइये न पापा, अब तो गांव भी आ गया, अगर किसी ने देख लिया तो....." मनीका ने जयसिंह का हाथ अपनी चुत पर से हटाते हुए कहा

"कोई नही देखेगा मणि...." जयसिंह बोला

"क्या पापाआआआ.... मैंने आपको मुझे मणि बुलाने से मना किया है ना तो फिर आप मुझे मणि क्यों बुला रहे है, जाइए मुझे आपसे बात नही करनी" ये कहकर मनिका झुटमुट गुस्सा होकर दूसरी तरफ देखने लगी

"अरे बेटी, पर गांव में सबके सामने तो मुझे तुम्हे मणि ही बुलाना होगा ना, इसलिए थोड़ी प्रैक्टिस कर रहा था, क्या है ना कि 2 दिन में ही तुमने मेरी आदत बिगाड़ दी है, इसलिए सोचा अभी से आदत सुधार लूं" जयसिंह बोला

"पर पापा मुझे आपसे मनिका सुनना ही पसन्द है" मनिका बोली

"बेटी मुझे भी तुम्हे मनिका पुकारना ही अच्छा लगता है पर सबके सामने अगर मैं तुम्हे मनिका बोलूंगा तो कही कुछ गड़बड़ न हो जाये" जयसिंह समझते हुए बोला

"ठीक है पापा, आप बोलते है तो मैं मान लेती हूं, पर अकेले में आप मुझे मनिका ही बुलाएंगे, ठीक है? " मनिका बोली

"अच्छा बाबा ठीक है, अब खुश" जयसिंह मुस्कुराते हुए बोला

"बिल्कुल खुश" ये कहकर मनिका जयसिंह की बाहों में सिमट गई

बातो ही बातो में वो लोग जल्द ही मधु के घर के सामने खड़े थे,

यहां मैं आपको थोड़ा उस घर के बारे में बता देता हूं, मधु के माता पिता अपने पुश्तेनी मकान में ही रहना पसंद करते थे, इसलिए जयसिंह के कई बार नए घर बनवाकर देने के प्रस्ताव को भी ठुकरा चुके थे, उन्हें तो उसी पुराने हवेली नुमा घर मे रहना पसंद था, घर मे आने के लिए बड़ा सा मैन गेट था, मैन गेट से घुसते ही एक पुराने ज़माने की विशालकाय बैठक थी, बैठक से निकलते ही एक तरफ किचन था और दूसरी तरफ 3 कमरे थे, पहले कमरे में मधु के माता पिता रहते थे, दूजे में मधु और एक नर्स रुकी हुई थी जो मधु के पिता की देखभाल के लिए 24 घण्टे वही रहती थी, तीसरे कमरे में कनिका और हितेश थे, इन सब कमरों के अलावा छत पर भी एक चौबारा (कमरा) बना हुआ था, जो अक्सर मेहमानों के आने पर ही खोला जाता था,


अब जयसिंह और मनिका घर के बिल्कुल सामने आकर खड़े हो चुके थे, जयसिंह ने कार से अपना और मनिका का सामान निकाला और फिर कार एक तरफ पार्क करके घर के दरवाजे की तरफ बढ़ दिए

शाम के तकरीबन 7 बजे थे, चूंकि सर्दियो का मौसम था, इसलिए अंधेरा काफी घिर चुका था, मधु अपने पिता के रूम में उनकी देखभाल के लिये बैठी थी, उसकी मां बजी वही पास मव थी, कनिका और हितेश अपने कमरे में बैठे गप्पे लड़ा रहे थे

तभी उन्हें बेल की आवाज़ सुनाई दी, मधु को समझते देर न लगी कि शायद जयसिंह और मनिका ही गेट पर है इसलिए तुरन्त उठकर बाहर आई और दरवाज़े की खोला

सामने जयसिंह ओर मनिका हाथों में छोटा सा बैग उठाये खड़े थे, मधु तो उन दोनों को देखकर बड़ी खुश हुई, उसने तुरंत उन्हें अंदर आने के लिए कहा

बाहर होती हलचल की आवाज़ सुनकर कनिका और हितेश बि अपने कमरे से बाहर आ गए, और जब उन्होंने अपने पापा और दीदी को वहां खड़ा पाया तो उनकी खुशि का ठिकाना ही ना था, खनिज तो भागकर मनीका से गले जा लगी, फिर उछलकर अपने पापा की बाहों में आ गयी, जयसिंह ने प्यार से उसके माथे को चूम लिया

हालांकि ये बाप बेटी वाला ही प्यार था पर मनिका को न जाने क्यों थोड़ा अजीब सा लगा, पर उसने ज्यादा ध्यान नही दिया, फिर वो लोग मधु के माता पिता से मिलने उनके रूम में गए,
वहां जयसिंह ने देखा कि मधु के पिता महेश सिंह अपने बीएड पर लेटे है और उनके पास मधु की मां सरोज और एक नर्स खड़ी थी


महेश(मधु के पिता) - अरे जय बेटा, आ गए तुम, रास्ते मे कोई तकलीफ तो नही हुई

जयसिंह - जी कोई तकलीफ नही हुई, आपकी तबियत कैसी हैं अब

महेश - अब तो ठीक ही है, बाकी अब उम्र भी काफी हो गयी, ऐसी छोटी मोटी बीमारी तो होती ही रहती है

जयसिंह - फिर भी आपको थोड़ा ध्यान रखना चाहिए, मैं अब भी कहता हूं कि आपको शहर के किसी अच्छे अस्पताल में दिखा देता हूँ आप हमारे साथ चलिए

महेश - नही बेटा, अब इस उमर में घर को छोड़कर जाना मुनासिब नही, वैसे भी अब तो ये नर्स है ही देखभाल के लिए, कुछ दिन मधु भी रह जायेगी तो तबियत अच्छी हो जाएगी, तुम ज्यादा चिंता मत करो

जयसिंह - परन्तु.......
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Kamini
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Re: बाप के रंग में रंग गई बेटी

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जयसिंह ने उन्हें काफी समझाने की कोशिश की पर वो नही माने, आखिर में हारकर जयसिंह ने उनकी बात मान ली, कुछ देर तक ऐसे ही उनमे बाटे चलती रही, फिर जयसिंह और मनिका
थोड़े फ्रेश होने चले गए

कुछ देर बाद सभी ने खाना खाया और कुछ देर बातचीत में व्यस्त रहे

जयसिंह - मधु, अब मुझे नींद आ रही है, वैसे भी सफर की थोड़ी थकान है, मुझे अपना कमरा बताओ

मधु - देखिए, कमर तो ऊपर छत पर है, मैंने पहले से सारा इंतेज़ाम वह कर दिया था, आप वहां सो जाइये, मैं यहां पिताजी की देखभाल के लिए नर्स के साथ ही रुकी हूँ, मणि तो कनिका ओर हितेश वाले कमरे में एडजस्ट हो जाएगी, या फिर मैं उसे ऊपर भेज देती हूँ ,

जयसिंह और मनिका को तो अपने कानो पर भरोसा ही नही हो रहा था कि मधु खुद उन्हें एक कमरे में रुकने के लिए बोल रही थी, उन्हें तो लग रहा था कि आज की रात तो ऐसे ही सुखी ही कट जाएगी पर मधु की इस बात ने तो जैसे उनके प्यासे मन पर सावन की बौछार कर दी हो, मनिका की चुत में तो अभी से ही टिस उठने लगी थी,पर जयसिंह या मनिका अति उत्तेजित होकर काम बिगड़ना नही चाहते थे, इसलिए जयसिंह बड़े ही शांत तरीके से बोला

जयसिंह - जैसा तुम्हे ठीक लगे मधु, वैसे एक बार मणि से भी पूछ लो

मनिका - मुझे तो कोई प्रॉब्लम नही है मम्मी, आप जहाँ कहोगे मै वहां ही सो जाऊंगी

दोनों आज की रात के हसीन सपनो में गुम थे कि तभी अचानक जैसे उन पर गाज गिर पड़ी, उनके सपने चूर चूर हो गए, कनिका जो पास ही खड़ी थी वो उछलकर बोल पड़ी

"नही मम्मी, पापा के साथ मैं सोऊंगी, दीदी नीचे सो जाएंगी" कनिका चहकते हुए बोली

कनिका की बात सुनकर जैसे जयसिंह ओर मनिका के अरमानों पर पानी फिर गया, पर मनिका ऐसे शानदार मोके को हाथ से नही जाने देना चाहती थी, इसलिए वो कनिका को लगभग डांटते हुए बोली

" पर तु तो नीचे सोती है ना हितेश के पास, तो फिर आजुपर क्यों सोना चाहती है, नही तू यही नीचे सो जा, मैं ऊपर सोऊंगी, वैसे भी मुझे यहां नीचे घुटन सी हो रही है" मनिका ने कहा

"ठीक है मणि, तुम ऊपर सो जाना, कनिका नीचे सो जाएगी" मधु ने बीच बचाव करते हुए कहा

"नही मम्मी मुझे तो पापा के साथ ही सोना है, मैं नीचे नही सोऊंगी" कनिका अब अपनी जिद पर अड़ गयीं

"चुप चाप नीचे सोजा कनिका, वरना थप्पड़ मारूंगी" मनिका ने उसे डांटते हुए कहा

अब दोनों बहनें ऊपर सोने के लिए लड़ ज़िद करने लगी पर कोई हल निकलता नही दिख रहा था, मधु भी उनकी बकबक से परेशान हो रही थी, आखिर में जयसिंह उन दोनों को चुप कराता है बोला



"एक काम करो मणि , आज आज तुम कनिका को ही ऊपर सोने दो, घर चलकर मैं तुम्हे अपने पास सुलाऊंगा, कनिका को नही" जयसिंह मनिका की आंखों में झांकता हुआ बोला, मनिका जयसिंह का मतलब अच्छे से समझ गयी, उसकी आँखे भी हल्की नशीली हो गयी थी, उसने सोचा कि आने वाली हज़ारो रातो के लिए आज की एक एक रात कुर्बान भी करनी पड़े तो कोई गम नही, ये सोचकर उसने आखिर भारी मन से हामी भर दी

इधर कनिका तो खुश होकर दोबारा जयसिंह की बाहों में लिपट गयी, पर इस बार जयसिंह को कनिका के छोटे छोटे मुलायम मम्मे अपनी छाती में धंसते हुए महसूस होने लगे, इस तरह अनायास उन छोटे छोटे अमरूदों के अहसास से जयसिंह के लंड में हल्की सी हलचल होने लगी, उसे ये अहसास बहुत भा रहा था, उसे महसूस होने लगा था कि कनिका अब बच्ची नही रही, उसकी जवानी के बीज अब फूटने लगे हैं, जयसिंह मजे से कनिका से साजिप्त हुआ था, पर मनिका को कनिका का पापा से इस तरह चिपटना बिल्कुल अच्छा नही लग रहा था, वो तो कनिका से गुस्सा हो रही थी, क्योंकि उसकी वजह से आज उसकी हसीन रात काली होने वाली थी

"आज आज सोजा कनिका की बच्ची, घर पर तो मैं ही पापा के साथ सोऊंगी देखना" मनिका ने कनिका की तरफ जीभ निकालते हुए कहा


उनकी इस तरह की खटपट से बाकी लोग भी हस रहे थे,कुछ देर इसी तरह हँसी मजाक करने के बाद मधु ने सब को अपने कमरों में जाकर सोने के लिए कहा

सभी ने एक दूसरे से गुडनाइट कहा, मनिका ने आखिरी बार जयसिंह की तरफ हवस भारी नज़रो से देखा और फिर भारी सांसो से गुडनाइट कह कर अपने कमरे में सोने चली गयी

अब बस जयसिंह और कनिका ही बचे थे सो वो भी अब सीढ़ियों से ऊपर जाने लगे, ऊपर जाकर जयसिंह ने कमरे का दरवाजा खोला और लाइट जला ली, कमरा दिखने में ठीक ठाक था पर ज्यादा बड़ा नही था, पर बीएड अच्छा खासा बड़ा था जिस पर 2 क्या 3 आदमी भी साथ सो सकते थे, जयसिंह और कनिका कमरे के अंदर आये और फिर जयसिंह ने दरवाज़ा बन्द कर लिया,

कनिका तो अपने पापा के साथ सोने को लेकर बड़ी खुश थी, क्योंकि जाने अनजाने उसके पापा की वजह से उसे पानी निकलने का असीम सुख उस दिन मिला था जब वो अनायास ही अपने पापा की गोद मे बैठ गयी थी और जयसिंह का लंड अपनी बेटी की चुत का सामिप्य पाकर कड़ा हो गया था, कनिका को वो अहसास बहुत भाया था, और आज भी उसके खुराफाती दिमाग ने कुछ योजना पहले से ही तैयार कर रखी थी,



जयसिंह इन सब से बेखबर सीधा बेड पर आकर बैठ गया, पर तभी अचानक कनिका सीधा आकर जयसिंह की गोद मे बैठ गयी, जयसिंह तो इस अचानक हमले से बिल्कुल डर गया , उसे समझ ही नही आ रहा था कि वो क्या करे

"अरे कनिका..... बेटी..थोड़ा.....साइड में बैठो न, मेरी गोद मे क्यों बैठ गयी" जयसिंह लगभग हकलाते हुए बोला

"क्या पापा मैं इतनी भी भारी नही हूँ" कनिका खिलखिलाते हुए बोली

"बेटी पर....." जयसिंघ को अब कनिका के जिस्म से निकलती गर्मी महसूस होने लगी थी

"ठीक है पापा, अगर मैं आपको इतनी भारी लगती हु तो ये लो मैं खड़ी हो गई, अब खुश" कनिका कहते हुए जयसिंह की गोद से खड़ी हो गयी

"बेटी वो बात नही, जरासल लम्बे सफर की थकान की वजह से बिल रहा हूँ वरना तुम बोलो तो मै तो तुम्हे हमेशा गोद में लेकर घूमता रहूं" जयसिंह ने कहा

"सच पापा, कहीं फिर मन मत कर देना गॉड में चढ़ाने के लिए" कनिका के चेहरे पर एक शातिर मुस्कान आ गयी थी


"अरे नही नही, तुम देखना मैं तुम्हे कभी मन नही करूँगा" जयसिंह बोला

"चलो ठीक है पापा वो भी देख लेंगे, पर फिलहाल तो हम सोते है, वैसे ये बेड कितना बड़ा है ना पापा, लगता है किसी राजा महाराजा का हो" कनिका ने खुश होते हुए कहा

" हां बेटी, ये पुराने ज़माने के बेड है ना , इसलिए इतना बड़ा है" जयसिंह बोला

"पर पापा बेड पर कम्बल तो एक ही है" कनिका ने कम्बल की ओर इशारा करते हुए कहा

"अरे ये कैसे हो गया, मधु ने कहा था कि उसने कम्बल रख दी है ,फिर दूसरी कम्बल कहाँ गयी" जयसिंह सोच में पड़ गया

दरअसल मधु ने सोचा था कि जयसिंह अकेला ही ऊपर सोएगा, इसलिए उसमे एक ही कम्बल लेकर रखी थी

"मैं एक काम करता हूँ बेटी, मैं नीचे जाकर दूसरी कम्बल ले आता हूं" जयसिंह बोलते हुए दरवाज़े की तरफ जाने लगा

"रुको पापा, रहने दो, मुझे दूसरे कम्बल की कोई जरूरत नही, मैं आपकी कम्बल में ही एडजस्ट कर लुंगी" कनिका ने बेबाकी से कहा

"ककककक्याआ......." जयसिंह के कान गर्म हो गए कनिका की बात सुनकर,,, उसे तो अपनी किस्मत पर विश्वास ही नही हो रहा था


"हां पापा, हम एक ही कम्बल में सो जाएंगे, वैसे भी देखो न ये कम्बल कितनी बड़ी है" कनिका ने कम्बल खोलते हुए कहा

"ठीक है बेटी, जैसी तुम्हारी मर्ज़ी" जयसिंह बोला
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Re: बाप के रंग में रंग गई बेटी

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दोनो हाथों में लड्डू है
सबका साथ सबका विकास।
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Re: बाप के रंग में रंग गई बेटी

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shubhs wrote: 18 Sep 2017 21:07 दोनो हाथों में लड्डू है
ha ha ha :lol: :lol: :lol: :lol: :lol: :lol: :lol:
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