ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete

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jay
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Re: ज़िद (जो चाहा वो पाया)

Post by jay »

xyz wrote: 23 Sep 2017 14:15nice update bhai
Ankit wrote: 24 Sep 2017 13:11superb update
thanks mitro
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(^^d^-1$s7)
(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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jay
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Re: ज़िद (जो चाहा वो पाया)

Post by jay »

मैने बर्तनो को दीवार पर रखा और वो दीवार फाँद कर उसके छत पर आया…फिर बर्तन उठाए और तेज़ी से सीडीयों की तरफ बढ़ने लगा….ये सब करते हुए मेरा दिल बहुत जोरो से धड़क रहा था….जब तक मे उसके घर की सीडीयों से कुछ नीचे नही उतरा…..मेरी साँस मेरे हलक मे अटकी रही…..जब मे सीडीयाँ उतार कर नीचे आया तो मेरी जान मे जान आई…..मे इस तरह किसी के घर मे चोरों की तरह पहली बार घुस रहा था….

जब मे नीचे आया तो, मुझे किचन से स्टोव के जलने की आवाज़ सुनाई दी तो मे सीधा किचन की तरफ चला गया…कदमो की आहट सुन कर वीना ने पीछे की तरफ मूड कर देखा और मुस्कराते हुए मेरे पास आई, और मेरे हाथों से झूठे बर्तन लेकर पलट कर सेल्फ़ पर रखते हुए बोली…”बैठिए ना थोड़ी देर मे खीर बन जाएगी.”

अब भला कोई उसको बताए कि मे वो खीर खाने नही आया था….”जो उसने अभी स्टोव पर चढ़ा रखी थी…..मे तो उसकी चूत से निकलने वाली खीर खाने आया था.. और उसे अपने लंड से निकलने वाली रस मलाई खिलाने…..

मे बैठा नही…..बल्कि सीधा अंदर चला गया….और स्टोव पर रखे बर्तन के अंदर उबाल रही खीर को देखने लगा…वो मुझे अपने साथ इस तरह किचन मे पाकर थोड़ा नर्वस फील कर रही थी…

.”खुसबू तो बहुत अच्छी आ रही है….” मैने उसकी तरफ देखते हुए कहा….

.”जी शुक्रिया…बस थोड़ी देर और….”

मैने अपनी जेब से 5000 रुपये निकाले और वीना की तरफ बढ़ा दिए…वीना ने मेरी तरफ हैरत भरी नज़रो से देखा…..”ये क्या है…..?”

मे: पैसे है….मैने कहा तो था कि, मे खाने के बदले पैसे दिया करूँगा…

वीना: (मेरे हाथ मे पकड़े हुए पैसो की तरफ देखते हुए….) पर ये तो ज़यादा लग रहे है……

मे: 5000 रुपये है…

वीना: ज़्यादा है….

मे: तो फिर कितने पैसे दूं….

वीना: जी आप को जो ठीक लगे….

मे: तो फिर आप ये पैसे रख लो….

वीना: पर…(मैने वीना का हाथ पकड़ लिया….और वो बोलते-2 चुप हो गयी…मैने उसकी हथेली पर पैसे रखे और दूसरे हाथ को उन रुपयों के ऊपर रख दिया….अब मैने अपने दोनो हाथों से उसके एक हाथ को पकड़ा हुआ था…..)

मे: तुम बहुत अच्छी हो….ये पैसे रख लो…..

वीना: (काँपती हुई आवाज़ मे) आप इतने ज़्यादा पैसे देकर मुझसे क्या चाहते हो…

मे: (वीना की आँखो मे देखते हुए) मे तुम्हे चाहता हूँ…जब से तुम्हे पहली बार देखा है….तब से मुझे हर जगह सिर्फ़ तुम ही तुम नज़र आती हो….

वीना: (अपना हाथ छुड़ाने की कॉसिश करते हुए….) देखिए तुषार जी….आप जैसे सोच रहे है…मे वैसे औरत नही हूँ….प्लीज़ मेरा हाथ छोड़ दीजिए….मे आपकी बहुत इज़्ज़त करती हूँ….

मे: मे भी तुम्हारी इज़्ज़त करता हूँ…देखो मे बहुत अकेला महसूस करता हूँ…मुझे तुम्हारे साथ और प्यार दोनो की ज़रूरत है…..

वीना: ये मुमकिन नही है….आप ग़लत दरवाजा खटखटा रहे है…प्लीज़ मेरा हाथ छोड़ दीजिए…..(उसने अपनी नज़रे झुकाते हुए कहा….)

मे: देखो मेने बड़ी हिम्मत करने के बाद तुमसे अपने दिल की बात कही है…अगर तुम ऐसे बिना सोचे समझे ना कर दोगी तो मेरा दिल टूट जाएगा….

वीना: देखिए मेरे दिल मे आपके लिए इज़्ज़त के अलावा और कुछ नही है…मेरा घर परिवार है…मे अपने परिवार के साथ धोखा नही कर सकती…

मे: (वीना के गाल पर अपना हाथ रख कर उसके चेहरे को ऊपर उठाते हुए) देखो तुम मेरा दिल ना तोडो…नही तो दिल के साथ-2 मे भी टूट जाउन्गा…

अभी तक वीना ने पैसे पकड़े नही थे….वो उसकी हथेली के ऊपर रखे हुए थे. मैने उन पैसो को पकड़ कर सेल्फ़ पर रख दिया…”देखो मेरी आँखो मे देखो… क्या इनमे तुम्हे अपने लिए प्यार नज़र नही आता…..”

मेरा हाथ इस तरह अपने गाल पर महसूस करके उसका बदन थरथराने लगा था…”जिसे आप प्यार कह रहे है…वो प्यार नही….वो तो सिर्फ़ वासना की भूक है और कुछ नही….”

मे: नही ये सच नही है….

वीना: यही सच है…और जो आप मुझसे चाहते है…वो मे आपको कभी नही दे पाउन्गी….मे अपने पति को धोखा नही दे सकती…वो मुझे प्यार करते है…..

मे: हूँ जानता हूँ मे और तुम भी जानती हो….तुम्हारे अंदर आग है…जो तुम्हे अंदर ही अंदर जलाए जा रही है…और मे ऐसा होने नही दूँगा….(मैने उसकी ओर देखते हुए अब अपना दूसरा हाथ भी उसके गाल पर रख दिया था….)
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jay
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Re: ज़िद (जो चाहा वो पाया)

Post by jay »


मैने उसके चेहरे को फिर से दोनो हाथो से पकड़ कर ऊपर उठाया तो उसकी आँखो मे अजीब से सवाल तैर रहे थे…जो मेरी समझ से परे थे…उसने अपने दोनो हाथों से मेरी कलाईयों को पकड़ लिया और मेरे हाथों को अपने गालो से दूर हटाने की कॉसिश करते हुए पीछे होने लगी….मैने भी ज़ोर लगाया….और उसके गालो पर अपने हाथ जमाए रखे….वो पीछे होते दीवार से सट गयी…अब मे उसके बेहद करीब खड़ा था….हम दोनो एक दूसरे की आँखो मे देख रहे थे….

ना वो कुछ बोल रही थी….और ना मे…बस वो अपने हाथो से मेरी कलाईयों को पकड़े हुए अपने चेहरे से अलग करने की कॉसिश कर रही थी…जो कॉसिश अब कम होने लगी थी….मैने उसकी आँखो मे देखते हुए उसके होंठो की तरफ अपने होंठो को बढ़ाया…तो उसने मेरी आँखो मे देखते हुए ना मे सर हिला कर मना किया.. पर मे ना रुका और उसके लरज़ते हुए होंठो के ऊपर अपने होंठ रख दिए….

जैसे ही मेरे होंठो का स्पर्श उसके होंठो से हुआ…..उसका पूरा बदन थरथरा गया….वो अपने आप मे सिमटने से लगी…..उसने पूरे ज़ोर के साथ अपनी आँखे बंद कर ली…इतने ज़ोर से कि उसकी भवों पर बल पड़ गये…फिर उसने एक बार अपनी पूरी ताक़त से मेरी कलाईयों को पकड़ कर दूर करने की कॉसिश की….अपनी ताक़त लगाते हुए उसने अपने पेट को अंदर की तरफ खींच लिया…जैसे उसने नाक से एक लंबी साँस खींची हो…6-7 सेकेंड ज़ोर लगाने के बाद उसकी बाहें ढीली पड़ गयी…

मे अभी भी उसके होंठो को चूस रहा था….फिर 2-3 सेकेंड रुकने के बाद उसने फिर से नाक से साँस लेते हुए अपने पेट को अंदर की तरफ खींचा…और फिर से पूरी ताक़त के साथ मेरे हाथो को हटाने की कॉसिश की….पर इस बार भी वो नही कर पायी….कहाँ मे जो बिना किसी काम के खा-2 कर सांड़ की तरह फैल गया था….और कहाँ वो नाज़ुक सी कली….मेरे सामने उसका ज़ोर बेकार था…इश्स बार उसने अपना बदन ढीला छोड़ दिया था…उसका विरोध ख़तम हो चुका था….जैसे ही उसका विरोध ख़तम हुआ मैने उसके नीचे वाले होंठ को अपने होंठो मे भर कर चूसना शुरू कर दिया….

और उसके चेहरे से अपने हाथो को हटा कर उसके कमर पर कस लिया था…मेने कुछ देर उसके होंठो को चूसा और फिर उसके होंठो से अपने होंठो को हटाते हुए उसकी गर्दन पर अपने होंठो को रगड़ने लगा…अगले ही पल वीना एक दम से कसमसा गयी….मुझे ऐसा लगाने लगा था कि, ये चिड़िया अब मेरे जाल मे बुरी तरह फँस चुकी है…

.”अह्ह्ह्ह सीईईईई” वो एक दम से सिसक उठी….उसको गरम होता देख मे भी कुछ निश्चिंत सा हो गया था…और मैने अपनी पकड़ ढीली कर दी थी…

पर अगले ही पल उसने अपने हाथो को मेरे कंधो पर रखते हुए पूरी ताक़त के साथ दूर धकेल दिया….अगले ही पल उसे अलग हो चुका था…वो उखड़ी हुई साँसे लेते हुए मेरे तरफ देख रही थी….मे फिर से उसकी तरफ बढ़ा तो उसने अपना फेस सेल्फ़ की तरफ कर लिया…..”चले जाइए यहाँ से….” उसने थोड़ा उँची आवाज़ मे कहा….”चले जाइए…” इस बार उसकी आवाज़ मे गुस्सा भी ज़्यादा था और उँची मे ज़्यादा थी….

अब मुझे लगने लगा था कि, शायद मेने बहुत ज़्यादा जल्द बाज़ी कर दी है…”अब मेरे पास कोई और चारा नही था….मे चुप चाप किचन से बाहर निकला और ऊपर आ गया. और फिर अपने घर की छत पर चला आया….मुझे अपने जल्दबाज़ी मे उठाए हुए कदम पर अब पछतावा होने लगा था….मुझे इतनी जल्दबाज़ी नही करनी चाहिए थी….और अब मे ऊपर से डरा हुआ भी था….मैने किसी की पत्नी को सेक्शुल्ली परेशान किया था.. अगर वो ये बात कमलेश को बता देगी तो लेने के देने पड़ जाएँगे…

मे बेहद डरा हुआ था….कुछ और तो कर नही सकता था…तो सोचा जो होगा देखा जाएगा….फिर मे जो विक्रांत ने वर्क मेल मे भेजा था…उसमे बिज़ी हो गया…3 घंटे तक टाइपिंग करने के बाद मे उकता सा गया…और अपनी आँखो और उंगलियों को थोड़ी देर रेस्ट देने के लिए आराम करने के सोचने लगा….मे चेयर से उठा और बाथरूम की तरफ चला गया….जब मे बाहर पहुँचा तो मेरे नज़र बाउंड्री पर पड़ी हुई कटोरी पर पड़ी…जो एक छोटी प्लेट से ढँकी हुई थी…

और उस प्लेट के ऊपर पैसे रखे हुए थे…..मेने पैसे उठाए और पॉकेट मे डाल लिए…फिर उस प्लेट को उठा कर देखा तो, उस कटोरी मे खीर थी….यार इन औरतों की फितरत बड़ी अजीब होती है….इनको समझना सच मे बहुत मुस्किल काम है…खैर मेने उसको फिर से ढँक दिया….और वही पर छोड़ कर चला गया….बाथरूम मे हल्का होने के बाद मे अपने रूम मे आ गया…..और डोर लॉक करके बेड पर लेट गया…..शाम के 5 बजे तक सोता रहा और फिर उठ कर काम करने लगा…..



रात को मे 8 बजे घर से खाना खाने के लिए ढाबे पर चला गया….और खाना खाने के बाद मे 9 बजे वापिस आया….मे ऊपर आया और फिर से कंप्यूटर ऑन करके काम मे लग गया…दोपहर को खूब सोया था….इससलिए काम मे लग गया…अभी कुछ ही देर काम किया था कि, मुझे बाहर वीना के घर की छत से कमलेश की आवाज़ आई. मे जब उठ कर बाहर आया तो देखा कमलेश हाथ मे खाने की थाली लिए खड़ा था….

कमलेश: लीजिए भाई साहब खाना खा लीजिए…..

मे: नही कमलेश भाई मे खाना अपने दोस्त के घर से खा कर आया हूँ….

कमेल्श: क्या हो गया भाई…आज आप अहाते मे भी नही आए….

मे: वो बता तो रहा हूँ….दोस्त के यहाँ चला गया था….वही पर टाइम लग गया था…..इससलिए मैने खाना वही खा लिया…..

कमलेश: चलिए कोई बात नही….

कमलेश नीचे वापिस जाने लगा तो भी अपने रूम मे जाने लगा तभी मुझे वीना की आवाज़ आई…वो शायद सीडीयों पर ही खड़ी थी….”क्या हुआ खाना नही खाया उन्होने….” वीना की आवाज़ सुन कर मे वही रुक गया…क्योंकि मे बरामदे मे खड़ा था…इसलिए बरामदे की दीवार के कारण वो मुझे नही देख सकती थी….

कमलेश: नही वो अपने दोस्त के घर चले गये थे….वही से खा कर आए है….चल नीचे ये खाना मे ही खा लेता हूँ…और लगाने के ज़रूरत नही है…

उसके बाद दोनो नीचे चले गये….और मे अपने रूम मे आकर कंप्यूटर पर बैठ गया…..रात के 1 बजे तक मैने सारा काम निपटा कर विक्रांत को मेल कर दी थी…अगली सुबह मे 8 बजे उठा….ब्रश आज ऊपर ही कर लिया और फ्रेश होकर नहाया धोया और अपने रूम मे आकर बैठ गया....रूम के विंडोस के आगे से पर्दे हटा दिए… और मे बैठ कर वेट करने लगा….कि क्या वीना आज खाना देने ऊपर आएगी कि नही…

और मुझे ज़्यादा देर इंतजार नही करना पड़ा…वीना दीवार के पास आकर खड़ी हो गयी….उसने खाने की थाली वहाँ दीवार पर रखी और अंदर रूम की तरफ देखने लगी….क्योंकि विंडो के ग्लास से बाहर से अंदर कुछ नज़र नही आता था..इसीलिए वो मुझे नही देख पा रही थी….हां डोर खुला था….पर मे डोर के सामने नही बैठा हुआ था…वो वही खड़ी अंदर झाँक रही थी…..शायद इस कशमकश मे थी कि, वो मुझे बुलाए तो कैसे…

वो वहाँ 5 मिनिट से खड़ी थी…वो इस तरह खड़े हुए घबरा रही थी…ताकि उसको कोई देख ना ले…क्योंकि अगर देखने वाला देखता तो वो समझता कि वीना मेरे घर मे चोरी चुपके तान्क झाँक कर रही है….इसलिए मे उठ कर खुद ही बाहर आ गया…मुझे देख कर उसने अपनी नज़रे झुका ली….पर मे उसकी तरफ ना जाकर बाथरूम की तरफ बढ़ने लगा….”नाश्ता कर लीजिए….” उसने सर को झुकाए हुए कहा… मे उसकी तरफ बढ़ा….

मे: क्यों अब तुम खाना मुझे देकर क्या जतलाना चाहती हो….

वीना: जी कुछ भी नही….आप नाश्ता कर लीजिए…..

मे: मुझे नही करना नाश्ता मे बाहर से कर लूँगा….

वीना: आप अभी भी नाराज़ है….?

मे: मे क्यों नाराज़ होने लगा….नाराज़ तो अपनों से हुआ जाता है….आप तो सिर्फ़ पड़ोसी हो…और कुछ नही…

वीना: देखिए तुषार बाबू जी….हम बहुत ग़रीब लोग है…और हम ग़रीब लोगो के पास अपनी इज़्ज़त और मान मर्यादा के अलावा कुछ नही होता….मुझे पता है कि, आप को मेरा इस तरह आप पे चिल्लाना बुरा लगा होगा….पर उस समय जो मुझे सही लगा वही मैने किया….
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Re: ज़िद (जो चाहा वो पाया)

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mast hai Jay pazi
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Re: ज़िद (जो चाहा वो पाया)

Post by jay »

वीना: देखिए तुषार बाबू जी….हम बहुत ग़रीब लोग है…और हम ग़रीब लोगो के पास अपनी इज़्ज़त और मान मर्यादा के अलावा कुछ नही होता….मुझे पता है कि, आप को मेरा इस तरह आप पे चिल्लाना बुरा लगा होगा….पर उस समय जो मुझे सही लगा वही मैने किया….

मे: तो मैने कॉन सा तुम्हारी इज़्ज़त को गली मे उछाल दिया था….मेरा कसूर यही है ना कि मे तुमसे प्यार करता हूँ….

वीना: देखिए तुषार बाबू जी….मे इतनी बड़ी-2 बातें नही समझ सकती…यहाँ बड़े-2 सहरो मे ऐसा होता होगा…पर हम तो छोटे से गाओं के लोग है…और हम उसी पर यकीन करते है….जो हमे बचपन मे सिखाया गया हो….

मे: तभी तुम लोग कभी आगे नही बढ़ पाते….जो तुम लोगो को बचपन मे सिखा दिया जाता है…उसी राह पर अंधी भैंसो की तरह चलना कोई अकल मंदी की बात है ? भले ही इसमे तुम्हारा नुकसान हो….

वीना: आप खाना खा लीजिए….मेरा जो नुकसान होगा…आप को उससे क्या लेना देना…

मे: अब खाना तो दूर मे तुम्हारे हाथ से पानी भी नही पीना चाहता….

वीना: ह्म्म बस इतना ही प्यार था….इतनी जल्दी हार गया आपका प्यार….

मे: तो आख़िर तुम चाहती क्या हो….

वीना: आप मेरी हालत के बारे मे क्यों नही सोचते…मे नही धोखा दे सकती अपनी परिवार को….मे अपने पति……(वीना बोलते बोलते चुप हो गयी….)

मे: ठीक है एक शरत पर खाउन्गा….

वीना ने मेरी तरफ देखा….

मे: तुम्हे वो पैसे लेने होंगे…

उसने हां मे सर हिला दिया…मैने पॉकेट से पैसे निकाले तो उसने कुछ पैसे वापिस रख दिए….और बाकी के पैसे लेकर नीचे जाने लगी….”सुनो….” वीना ने पलट कर मेरी तरफ देखा…..आज के बाद तुम यहाँ दीवार पर खाना रख जाया करो…जब मेरे नज़र पड़ेंगे तो उठा कर खा लिया करूँगा…..”

वीना ने हां मे सर हीलिया और नीचे चली गयी….मेने नाश्ते की प्लेट उठाई और रूम मे आकर नाश्ता करने लगा….नाश्ता करने के बाद मैने उसकी प्लेट को वही दीवार पर रख दिया…और रूम मे वापिस आ गया…तभी विक्रांत की कॉल आई….

विक्रांत: हेलो तुषार जी कैसे हो….?

मे: जी अच्छा हूँ आप कैसे है….

विक्रांत: मे भी ठीक हूँ….अच्छा आपकी मेल मिल गयी थी….

मे: आपने चेक किया…कोई प्राब्लम तो नही उसमे….

विक्रांत: नही-2 दरअसल मैने आपको ये पूछने के लिए फोन किया था कि, अगले 5-6 दिन आपको कोई और काम तो नही है…..

मे: नही कहिए ना….

विक्रांत: वो आक्च्युयली वर्क लोड थोड़ा ज़यादा हो गया…..इसलिए आपको अगले 5-6 दिन मे मुझे 5 बुक्स ट्रांसलेट करके देने है…..आप कर लोगे कि नही…..

मे: कितने पेजस की बुक्स है….

विक्रांत: यही कोई 150 पेज होंगे हर बुक मे…

मे: ओके नो प्राब्लम….

विकांत: ओके तो मे मेल कर रहा हूँ….अगर कोई प्राब्लम हो तो फोन कर देना…

मे: ओके

मैने फोन कट कर दिया…. थोड़ी देर बाद ही मुझे विक्रांत की मेल भी आ गयी…मैने वो बुक्स डाउनलोड की….फिर काम शुरू कर दिया….अगले 5 दिनो तक मे इतना बिज़ी रहा कि, मे रूम से भी कम ही बाहर निकल पाता था…मुझे वीना को देखे हुए भी 5 दिन हो गये थी….हां रात को अहाते मे दो बार कमलेश से मिला था…मुझे विक्रांत का दिया हुआ काम ख़तम करने मे 6 दिन लग गये….6 दिन ही मेने रात के 12 बजे तक उसको मेल भी कर दी थी….

अगली सुबह मे 9 बजे उठा…इन 6 दिनो मे बहुत थक गया था…नींद भी कम ही पूरी हो पाती थी….पर जब मे उठा तो मे बहुत फ्रेश महसूस कर रहा था…मे उठा फ्रेश हुआ….और शवर लिया….दिसंबर 15 का दिन था…यहाँ पंजाब मे ठंड इस समय पूरे यौवन पर होती है….चारो तरफ ढूंड चाहिए हुए थी….गरम पानी से नहाने के बाद जैसे ही मे बाहर आया…तो ठंड के कारण दाँत बज रहे थे…

मे अभी रूम मे जाने ही वाला था कि, वीना ऊपर आ गयी…उसके हाथ मे नाश्ते की थाली थी….वो जैसे ही दीवार के पास आई….मैने उसकी तरफ देखे बिना ही उसके हाथ से नाश्ते की प्लेट ली और रूम की तरफ जाने लगी….वो शायद कुछ कहना चाहती थी…”सुनिए……” उसके शब्द जैसे आगे दब गये थे….मे रूम मे आ गया और नाश्ता करने लगा…नाश्ता करने के बाद मेने प्लेट वही दीवार पर रख दी. और फिर से रूम मे आ गया….सुबह के 11 बज चुके थे…और बाहर धुन्ध अब छांट चुकी थी….और सुनहरी धूप खिली हुई थी… मे रूम से बाहर आया और गली वाली दीवार पर हाथ टिका कर खड़ा हो गया…..

तभी नीचे वीना के घर का गेट खुला और वीना घर से बाहर आई….वो अंदर की तरफ देख रही थी….जैसे किसी के आने का इंतजार कर रही हो….”अनु जल्दी आ…” तभी उसने ऊपर की तरफ देखा तो हम दोनो के नज़रें आपस मे टकराई…थोड़ी देर बाद उसकी बेटी अनु भी बाहर आ गयी…उसने गेट को लॉक किया…वीना ने फिर से एक बार मेरी तरफ ऊपर देखा और फिर अपनी बेटी की तरफ देखते हुए बोली….”अनु जल्दी कर तुझे छोड़ कर वापिस आकर मुझे बहुत काम करना है….”

नज़ाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा था कि, वीना ये सब मुझे सुनने के लिए कह रही हो… उसने फिर से एक बार ऊपर देखा तो मैने दूसरी तरफ मुँह घुमा लिया…फिर वो अपनी बेटी को लेकर चली गयी…मे वापिस आकर चेयर पर बैठ गया…आज काम से काफ़ी दिनो बाद फ्री हुआ था….इसलिए धूप मे बैठ कर सुसताना बहुत अच्छा लग रहा था… अभी 15 मिनिट ही बीते होंगे कि, मुझे वीना के घर का गेट खुलने की आवाज़ आई. और फिर बंद होने की…पर मे अपनी जगह बैठा रहा….

नज़ाने क्यों मेरे दिमाग़ मे आ रहा था कि, अब वीना ऊपर आएगी….दरअसल मे भी उसके योवन को देखना चाहता था….पर एक बार उसके द्वारा नकारे जाने से मे उसे खफा था…इसलिए मे उसकी ओर देख कर उसको ये नही दिखाना चाहता था कि, मे अभी भी उसके लिए तड़प रहा हूँ….इसलिए मे उसको इग्नोर कर रहा था….और हुआ भी वैसे ही जैसे मीना सोचा था….

वीना ऊपर आई….उसके हाथ मे एक थाली थी…ऊपर आने के बाद उसने चटाई बिछाई और चटाई पर बैठ कर दाल को सॉफ करने लगी….जो वो थाली मे लेकर आई थी….मे उसकी तरफ तिरछी नज़रों से देख रहा था….तबकि उसको पता ना चले कि, मे उसकी तरफ देख रहा हूँ….मे उसको दिखाना चाहता था कि, अब मुझे उसकी कोई परवाह नही है.. अब मे उसके पाने के लिए पहले की तरह उसका दीवाना नही हूँ…वो बार-2 डाल सॉफ करते हुए मेरी तरफ देख रही थी….

और मे इधर उधर देखते हुए बीच-2 मे उसके तरफ देख लेता…तो हमारी नज़रें आपस मे टकरा जाती और वो नीचे सर झुका कर मुस्कुराने लग जाती...ये खेल करीब 20 मिनिट तक चला…अब दाल सॉफ करने मे घंटा तो लगता नही है…वो खड़ी हुई और एक बार उसने मेरी तरफ देखा और फिर सीडीयों की तरफ जाने लगी…अब उसकी पीठ मेरी तरफ थी…मुझे ऐसा लगा कि, जैसे मे उस मोके को खो रहा हूँ..जो वो बार-2 मुझे दे रही है….

मे उसको सीडीयों की तरफ जाते हुए देख रहा था……आज उसके बाल खुले हुए थे… और हवा के साथ साथ लहरा रहे थे….वो चलती हुई सीडीयों के पास पहुँच गये. काश ये योवन से नहाई हुई अप्सरा मेरे हाथ आ जाती….पर शायद मेरी किस्मत मुझसे रूठी हुई है…..ये सोच कर मैने अपने दिल को तसल्ली दी…..

वो धीरे-2 सीडीयों की तरफ बढ़ रही थी….और सीडीयों के डोर के पास जाकर रुक गयी…और उसने मूड कर मेरी तरफ देखा….और एक हाथ से अपने फेस पर आई हुई लटो को हटाते हुए मुस्कराते हुए मुझे इशारा किया…क्या उसने मुझे इशारा किया है. कहीं मेरा वेहम तो नही…नही-2 उसने इशारा किया है…उसने फिर से इशारा किया. नीचे आने का….मैने गर्दन हिला कर उसे पूछा जैसे मे कन्फर्म कर लेना चाहता था….उसने फिर से होंठो पर मुस्कान लाते हुए इशारा किया….

ये सॉफ-2 संकेत था….वो घर मे अकेली थी..एक दम अकेली….वो जानती थी कि मे जानता हूँ कि वो घर मे अकेली है…..फिर इस तरह मुझे अपने घर मे बुलाने का मतलब…..दोस्तो आप सोचो कि उस समय मे जिस उम्र मे था…और मुझे एक बला की खूबसूरत औरत इशारे से अपने घर के अंदर बुला रही थी…वो औरत जिसके लिए मे पिछले एक महीने से जी जान से उसको पाने की कॉसिश कर रहा था….उस वक़्त मेरी क्या हालत होगी….

मेरे गला सूखने लगा था….लंड मे अजीब से सरसराहट होने लगी थी….उत्सुकता के कारण हाथ पैर कांप रहे थे…वो मूडी और धीरे-2 नीचे उतरने लगी…मुझे ऐसा लग रहा था….जैसे आसपास के घरो के चॉबारो से सब मुझे देख रहे है… सब की नज़र मुझ पर टिकी हुई है…मैने चारो तरफ देखा….और जब तक मन को तसल्ली ना हो गयी कि, मुझे कोई नही देख रहा….तब तक मे अपनी जगह से नही हिला…..

मेने जल्दी से दीवार फांदी और सीडीयों की तरफ तेज कदमो से बढ़ा….ये सब करते हुए मेरा दिल जोरो से धड़क रहा था…मे सीडीयों से नीचे उतरा तो नीचे एक दम सन्नाटा पसरा हुआ था….वो मुझे बाहर कही दिखाई नही दे रही थी….मेरे घर की तरह ही उस घर मे भी नीचे दो रूम थे….एक गेट के पास और एक पीछे. पीछे वाले रूम से बाहर निकल कर साइड मे किचन फिर बाथरूम उसके आगे टाय्लेट और उससे आगे सीडीयाँ थी….जो गेट वाले रूम की दीवार के साथ से होकर ऊपर जाती थी…..

पीछे वाले रूम का डोर खुला था….पर अंदर लाइट नही जल रही थी….क्योंकि बाहर का गेट बंद था….और सीडीयों वाला गेट मे बंद करके आया था…इसलिए नीचे रोशनी कम थी….मे रूम की तरफ बढ़ने लगा…मेरा दिल जोरो से धड़क रहा था.. मेरे कदम थरथरा रहे थे….जब मे रूम मे पहुँचा तो मुझे एक कोने की दीवार के साथ लगी हुई चारपाई पर वो लेटी हुई नज़र आई….उसकी पीठ मेरी तरफ थी…

जैसे ही मे आगे बढ़ा तो मुझे और सॉफ दिखाई देने लगा…मैने विंडो के आगे लगे हुए पर्दे को हटा दिया….जिससे अब रूम मे इतनी रोशनी हो गयी थी…कि मे अच्छे से देख सकूँ…जैसे ही विंडो से रोशनी रूम मे आई तो उसने एक दम फेस घुमा कर मेरी तरफ देखा….उसकी आँखे वासना के नशे मे लाल हो रखी थी…एक पल देखने के बाद उसने अपना फेस घुमा लिया…अगले ही पल मेरा लंड मेरे शॉर्ट्स मे एक दम से अकड़ गया…..

ये देख कर कि, उसने पहले से ही अपनी साड़ी उतार रखी थी…उसके बदन पर क्रीम कलर का पेटिकॉट और डार्क कलर का ब्लाउस था…कॉन सा कलर था….वो मुझे याद नही. मे धीरे-2 उसकी तरफ बढ़ा…और चारपाई के किनारे पर बैठते हुए उसकी नंगी कमर पर हाथ रखते हुए उसे उसके नाम से पुकारा……”वीना भाभी….” जैसे ही मैने अपना हाथ उसकी नंगी कमर पर रखा तो उसका पूरा बदन एक दम से काँप गया….

उसने चद्दर को अपने दोनो हाथों से कस्के पकड़ लिया….उसकी साँसे तेज होने लगी थी….मैने धीरे-2 अपने हाथ को उसकी कमर से सरकाते हुए, उसके पेट की तरफ लेजाना शुरू कर दिया…मेरे हाथ की हर हरक़त के साथ उसका बदन बुरी तरह काँप जाता… उसकी नाक से निकलने वाली हर साँस मुझे सॉफ सुनाई डी रही थी…..मेरा हाथ अब उसकी नाभि तक पहुँच चुका था….मैने अपने दूसरा हाथ उसके कंधे पर रखा और उसको अपनी तरफ पलटने के लिए हलका सा ज़ोर लगाया तो वो खुद सीधी हो गयी…

उसके आँखे बंद थी….और होंठ काँप रहे थे…अब मेरे सबर का पेमाना छलकने लगा था….उसकी चुचियाँ उसके ब्लाउस मे कसी हुई थी…उसके दोनो कबूतर उस पिंजरे से बाहर आने को फडफडा रहे थे….मैने अपने हाथ को उसके पेट से सरकाते हुए, उसके ब्लाउस मे कसे हुए मम्मों की तरफ बढ़ाना शुरू कर दिया…उसकी कमर और उसका पेट थरथरा कर रह गया…..और जैसे ही मैने उसके राइट मम्मे पर अपने हाथ को रख कर उसको दबाया तो, उसने सिसकते हुए अपना हाथ उठा कर मेरे हाथ के ऊपर रख दिया……
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