अधूरी हसरतें

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Rohit Kapoor
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Re: अधूरी हसरतें

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( शीतल की बातों से निर्मला की जांघो के बीच रसीली बुर में सुरसुराहट बढ़ने लगी। ओर निर्मला को बुर मे से रिसाव सा महसूस होने लगा। वह तो बस मंत्रमुग्ध सी शीतल की बातें सुने जा रही थी। इससे पहले भी इसी तरह निर्मला के सामने खुलकर बहुत सी बातें शेयर की है लेकिन आज की बात निर्मला के अंदर एक अजीब सी कामना का एहसास करा रही थी। बेगन को लेकर निर्मला की उत्सुकता कुछ ज्यादा ही बढ़ती जा रही थी।
लेकिन शाम ढलने लगी थी और अभी भी निर्मला को सब्जी खरीदनी थी वह शीतल से कुछ और पूछ पाती इससे पहले ही शीतल बोली।)

अच्छा निर्मला मुझे देर हो रही है मुझे घर जाना है और भी बहुत काम है मैं चलती हूं कल स्कूल में मिलूंगी,,,,,,
( निर्मला उससे कुछ और पूछ पाती इससे पहले ही वह चली गई । उसके जाने के बाद निर्मला ठेले पर से जरूरी की सब्जियां खरीदने लगी। तभी उसकी नजर एक दम ताज़े मोटे और लंबे बेगन पर पड़ी,,,,,और ऊसपर नज़र पड़ते ही निर्मला को जांगो के बीच सुरसुराहट और तेज होती महसूस होने लगी। उसे शीतल की बात याद आने लगी कि बैगन को सिर्फ खाना ही नहीं जाता बल्कि उसे अपने लिए सही उपयोग में भी लाया जाता है।
बैगन निर्मला को भी कतई पसंद नहीं था ना ही उसके परिवार में कोई खाता था लेकिन ना चाहते हुए भी शीतल के बताए हुए तरीका की वजह से और उसकी बातों का असर उस पर ऐसा छाया की,,,,, ना चाहते हुए भी निर्मला ठेले पर से लंबे लंबे बेगन को उठाकर सब्जीवाले के तराजू में डालने लगी,,,,,,, बेगन को हाथ में लेते ही उसके बदन में झनझनाहट सी महसूस होने लगी,,,, तराजू में डालते समय वह शर्म के मारे ठेलेवाले से नजर नहीं मिला पा रही थी । ना जाने आज उसे डेगन को हाथ में लेने भर से ही उसे शर्म महसूस हो रही थी उसे ऐसा लग रहा था कि वह बैगन को नहीं बल्कि किसी के लंड को हाथ से पकड़ी हुई है। इस वजह से शर्मीली और संस्कारी निर्मला का चेहरा शर्म के मारे लाल लाल हो गया जो कि उसकी खूबसूरती को और ज्यादा निखार रहा था। उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि वह बेगन नहीं बल्कि किसी गंदी चीज को चुपके से खरीद रही हो। खैर जैसे तैसे करके वह सब्जियां खरीद कर अपने घर की तरफ जाने लगी।


दूसरी तरफ शुभम अपने कमरे में कसरत कर रहा था।
ऊसके बदन पर मात्र एक अंडर वियर ही था, बाकि के कपड़े उसने उतार फेंके थे । वह हमेशा अंडर वियर में ही कसरत किया करता था। कसरत तो वह कर रहा था लेकिन आज कसरत करने में उसका मन बिल्कुल भी नहीं लग रहा था,,, बार-बार उसे खेल के मैदान में दोस्तों की गंदी बात याद आ रही थी ना चाहते हुए भी उसका दिमाग उन बातों को याद कर रहा था। बार-बार उसका ध्यान कसरत पर से हट जा रहा था।
उसे बिल्कुल भी यकीन नहीं हो पा रहा था कि वह लड़की उसकी मां के बारे में इतने गंदे ख्यालात रखते हैं। शुभम को लड़कों की बात से गुस्सा तो बहुत आ रहा था लेकिन ना जाने उसके बदन में एक अजीब सी हलचल मच जा रही थी जब वह उन लड़कों की गंदी बाते याद कर रहा था। ना चाहते हुए भी उसका ध्यान उसकी मां के बड़े बड़े चुचियों और उसकी भरावदार गांड पर चले जा रहा था। शुभम ने कभी अपनी मां को गलत निगाह से नहीं देखा था हां लेकिन इतना जरुर जानता था कि उसकी मां बहुत खूबसूरत है। उसकी दोस्तों की बातें उसके जेहन में बार-बार उसकी मां का ख्याल और उसके भरावदार नितंब और बड़ी-बड़ी चूचियों दृश्य को चलित कर रहे थे। जिसकी कल्पना मन में होते ही उसकी जांघों के बीच अजीब सी हलचल होने लग रही थी। उस लड़के की बात जिस ने यह कहा था कि तेरी मां के खूबसूरत बदन और उसकी बड़ी बड़ी चूचियां और बड़ी बड़ी गांड के बारे में सोच कर बहुत बार मुठ मारा हूं,,,, उस बात को याद करके आज पहली बार उसे अपने लंड में तनाव महसूस हो रहा था। वैसे तो सुबह सुबह जब उसकी नींद खुलती थी तो उसका लंड हमेशा खड़ा ही रहता था लेकिन उस और उसका ध्यान कभी भी नहीं जाता था।

बार बार उन लड़कों के द्वारा एक दूसरे के मां के प्रति कहीं कोई गंदी बातें उसके कानों में गूंज रही थी उसे समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे वह लोग अपनी मां की गंदी बातें मुस्कुराकर और हंस कर सुन रहे थे और एक साथ सभी मजे से ठहाके ले रहे थे। वह मन में ही सोचने लगा कि कैसे वह लड़का उस की मां को मौका मिलते ही चोदने की बात कर रहा था और वह जिसकी मां के बारे में वह बात कर रहा था वह कितना खुश हो रहा था। हम लोगों को एक दूसरे की मां की गंदी बातें करने में बहुत आनंद आ रहा था तभी तो वह लोग बिना एतराज जताया बेझिझक एक दूसरे की मां के बारे में गंदी बातें कर भी रहे थे ओर सुन भी रहे थे।
शुभम को यह सब बातें बहुत ही अजीब लग रही थी और खराब भी लेकिन ना जाने उसका मन के कोने में यह सब बातें ऊसे आनंद भी दे रही थी। शुभम कभी भी नहीं सोचा था कि वह लड़के उसकी मां के बारे में भी ऐसी ही ख्याल रखते हैं और गंदी बातें सोचते हैं। और ना ही कभी शुभम अपनी मां के बारे में गंदी बातें सुनना पसंद करता था इसलिए तो वह उस लड़के के मुंह से अपनी मां के बारे में गंदी बात सुनते ही वह उससे भिड़ गया और हाथापाई पर उतर आया।
बार-बार शुभम का मन विचलित हुआ जा रहा था बार-बार उसका ध्यान उसकी मां के भरावदार अंगो पर चले जा रहे थे ।बार बार उसकी कल्पना मैं उसे उसकी मां के बदन का ही ख्याल आ रहा था। जिससे उसके बदन में का जीवन प्रकार की सुख की अनुभूति हो रही थी रह-रहकर उसकी सांसे भारी हो जा रही थी। कसरत करने में उसका मन जरा भी नहीं लग रहा था। शुभम का कसरती बदन बहुत ही गठीला था अगर इस अवस्था में कोई लड़की या औरत उसे देख ले तो सच में उसकी दीवानी हो जाये। लेकिन बिना कपड़ों के शुभम को आज तक किसी लड़की या किसी औरत में नहीं देख पाई थी। यहां तक कि उसकी मां भी नहीं देख पाई थी।
क्योंकि जब से वह अपने हाथों से ही अपना सारा काम करने लगा था तब से बिना कपड़ों के उसे निर्मला भी नहीं देखी थी हां कभी-कभार उसे इस का मौका जरूर मिल गया था जब वह दरवाजा खोल कर कसरत करता था और उसे बुलाने निर्मला अचानक पहुंच जाती थी लेकिन कभी भी निर्मल आपके मन में भी शुभम के बदन को लेकर के कोई हलचल नहीं हुई थी।
लेकिन आज शुभम को निर्मला के बदन को लेकर के एक अजीब प्रकार की हलचल मची हुई थी। इस हलचल का सार शुभम को ठीक तरह से समझ में नहीं आ रहा था कि आखिरकार उसके बदन में इस तरह की गुदगुदी क्यों हो रही है। वह बार-बार अपनी मां पर से अपना ध्यान हटाने की कोशिश करता और कसरत करने में मरना चाहता लेकिन बार-बार उसका मन भटक जा रहा था। और भटकता भी क्यों नहीं आखिर अच्छे-अच्छो का मन निर्मला को देखकर भटक जा रहा था और यह शुभम तो अभी जवानी की दहलीज पर कदम लग रहा था।
इस तरह के कामुक ख्याल उसके बदन में अजीब सी हलचल पैदा करते हुए उसके लंड के तनाव को पूरी तरह से बढ़ा चुका था। उसके अंडर वियर में तंबू सा बन चुका था। उसकी नजर अपनी ही चड्ढी में इस तरह के बने तंबू को देख कर चौधिया गई उसे समझ में नहीं आ रहा था कि आखिरकार यह सब हो क्या रहा है। इससे पहले उसने कभी भी अपने अंडर वियर में इस तरह के तूफान को आता नहीं देखा था। शुभम भी इतना ज्यादा शर्मिला था कि उसने आज तक खुद के खड़े लंड को नहीं देखा था। उसे इस बात का ज्ञान बिल्कुल भी नहीं था कि अगर एक लंड पूरी तरह से खड़ा होता है तो कैसा दिखता है और बदन में कैसी हलचल होती है। अपने अंडरवियर में बने तंबू को देखकर उसका बदन अजीब सी कपकपी महसूस कर रहा था। उसकी दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी उसकी सांसे भारी हो चली थी। उसे इतनी भी हिम्मत नहीं थी कि वह अपनी चड्डी को नीचे सरका कर अपने टनटनाए हुए लंड का दीदार कर सके उसे जी भर कर देख सके और उसे अपने हाथ में अपनी मुट्ठी में लेकर के सहला सके।
क्योंकि निर्मला के संस्कार शुभम में उतर आए थे इसलिए शुभम के संस्कार इस बात की गवाही नहीं दे रहे थे कि वह अपनी चड्डी को नीचे सरका कर अपने खड़े लंड का दीदार कर सकें। कमरे में वह कसरत करने के लिए रूका था लेकिन उसके सामने अजीबोगरीब समस्या आन पड़ी थी। उसे ऐसी हालत में, इस तरह की व्यवस्था में क्या करना है कैसे करना है इसका बिल्कुल भी ज्ञान नहीं था। उन लड़कों की उम्र का हो करके भी शुभम उन लड़कों के सेक्स ज्ञान के मुकाबले बिल्कुल ही अज्ञान था। शुभम अपने कमरे में खड़े होकर के एकटक अपने अंडरवीयर में बने तंबू को देखे जा रहा था। उसका मन हड़बड़ा भी रहा था कि कैसे वह अपने अंडर वियर की स्थिति को पहले की तरह सामान्य कर दे। लेकिन उस तूफान को थामने का शांत करने का शुभम के पास कोई भी हुनर नहीं था इसलिए वह उत्सुकता वश बस अपनी चड्डी में बने तंबू को ही देखे जा रहा था।
और दूसरी तरफ निर्मला सब्जी लेकर अपने घर पर पहुंच चुकी थी वह चाबी से मुख्य दरवाजे को खोलकर कमरे में प्रवेश कर चुकी थी वह जानती थी कि इस समय से तुम अपने कमरे में कसरत कर रहा होगा वह दरवाजे की घंटी बजा कर वह उसे परेशान नहीं करना चाहती थी।
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Rohit Kapoor
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निर्मला घर में प्रवेश कर चुकी थी। उसके हाथ में सब्जियों से भरा थैला था वह जिसमें था बैंगन जो कि वह किसी का भी पसंदीदा ना होने के बावजूद और निर्मला के ना चाहते हुए भी शीतल की वजह से उसके मन में एक अजीब सी कामना जाग गई थी, और इसी कामना के चलते ना चाहते हुए भी निर्मला को भी बड़े-बड़े और लंबे बेगन को खरीदना पड़ा। बैगन को लेकर के निर्मला के मन में अजीब सी हलचल मची हुई थी। उसने आज तक बेगन कि इस तरह की उपयोगिता के बारे में कभी न सुनी थी और ना देखी थी। शीतल के मुंह से बेगन की औरतों के लिए ऐसी फायदेमंद उपयोगिता को सुनकर निर्मला पूरी तरह से दंग हो गई थी, और ना चाहते हुए भी उसने बेगन को खरीद ली थी वह सब्जी के ठेले को लेकर के सीधे रसोई घर में गई और उसे फ्रिज खोल कर जल्दी-जल्दी अंदर रखने लगी और बेगन को उसने सब्जियों से सबसे नीचे ढंककर रखी ताकि कोई देख ना ले। क्योंकि सबको पता था कि घर में बैगन कोई भी पसंद नहीं करता था। निर्मला जल्दी-जल्दी हड़बड़ाहट में एक बैगन नीचे ही छोड़ दी जोकि फ्रीज के नीचे की तरफ पड़ा हुआ था, ओर वह जल्दी से रसोई घर से बाहर आ गई। बाहर आते ही उसने दीवार पर टंगी घड़ी की तरफ देखी तो समय कुछ ज्यादा हो चुका था क्योंकि इतने समय से पहले सुबह कसरत कर कर अपने कमरे से बाहर आ जाया करता था और थोड़ी बहुत काम में निर्मला का हाथ बटाया करता था। इसलिए उसे नीचे नापा करके निर्मला शुभम के कमरे की तरफ आगे बढ़ने लगी वह अपने कदम शुभम के कमरे की तरफ बढ़ा तो जरूर रही थी लेकिन बेगन को लेकर के उसके मन में अजीब सी हलचल मची हुई थी,,, जिसकी वजह से उसकी बुर से बार बार रीसाव हो रहा था और उसके चलते उसकी पैंटी गीली हो चुकी थी जो कि उसे साफ-साफ महसूस हो रही थी। निर्मला काफी अरसे से बहुत प्यासी थी इसलिए जरा सा भी ऊन्मादक माहौल होते ही या ख्यालों में उन्माद जगते ही उसकी पेंटी गीली होने लगती थी।
पैंटी में फैल रही गीलेपन की वजह से निर्मला का हाथ बार-बार जांगो के बीच पैंटी को एडजस्ट करने के लिए पहुंच जा रहा था। जो कि निर्मला की यह अदा बड़े ही कामोत्तेजक लग रही थी। अगर कोई इस नजारे को देख कर ले तो उसकी हालत अपने आप खराब हो जाए वह तो सोच-सोच कर ही अपने लंड से पानी छोड़ दे की निर्मला अपनी नाजुक उंगलियों से अपने कौन से नाजुक अंग को बार बार साड़ी के उपर से छु रही है। वैसे भी निर्मला की हर एक अदा बड़ी ही कामोत्तेजक नजर आती थी यहां तक कि उसका सांस लेना भी लोगों के सांस ऊपर नीचे कर देता था। धीरे-धीरे निर्मला शुभम के कमरे की तरफ बढ़ रही थी और शुभम कमरे के अंदर अपने टनटनाए हुए लंड को लेकर के बड़ा ही उत्सुक और चिंतित भी लग रहा था। उसका लंड उसकी चड्डी के अंदर अभी भी पूरी तरह से टनटना कर खड़ा था जो की चड्डी के आगे वाले भाग को किसी तंबू की तरह नुकीला करके अपनी मजबूत ताकत का प्रदर्शन कर रहा था। शुभम के हाथों में वजनदार डंबल था जिसे वह बड़े आराम से ऊपर नीचे करते हुए कसरत कर रहा था लेकिन कसरत करते हुए भी बार बार उसकी नजर चड्डी में तो नहीं तंबू पर ही टिकी हुई थी जिससे उसका मन बार बार भटक जा रहा था। उसका बदन पूरी तरह से पसीने से तरबतर हो चुका था। चड्डी में बने तंबू को देखते हुए बार-बार उसे उसकी मां के भरावदार बदन का ख्याल आ रहा था,,,, बार-बार उसकी आंखों के सामने निर्मला की बड़ी बड़ी चूचियां और उसकी बड़ी बड़ी गांड और उसका गोरा बदन तैर जा रहा था। जिसकी वजह से उसके पूरे बदन में उत्तेजना का प्रसार बड़ी तेजी से हो रहा था उसकी सांसे गहरी गहरी और लंबी चल रही थी। आज पहली बार उसे इस तरह की अजीब हालात का सामना करना पड़ रहा था ।कमरे में अकेला होने के बावजूद भी शुभम की इतनी भी हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह खुद की चलती को नीचे सरका कर अपने खड़े लंड को देख सके या युं कह लो इस हालात में उसे चड्डी सरका के खुद के खड़े लंड को देखने मे उसकी तहजीब और संस्कार रोक रहे थे।
शुभम काम उत्तेजना के मारे बुरा हाल था लेकिन वह इस उत्तेजना के सार को समझ नहीं पा रहा था। आकर्षण और उत्तेजना की प्रति वह बिल्कुल ही अज्ञान था। आकर्षण और आकर्षण के चलते बदन में फेल रहे कामोत्तेजना का अनुभव वह अपने बदन में पहली बार महसूस कर रहा था।
ऐसी ही कामोतेजना का अनुभव अगर कोई दूसरा लड़का करता है तो वह कब का ही मुठ मारकर अपने आप को और अपने खड़े लंड को शांत कर चुका होता। लेकिन शुभम दूसरे लड़को से बिल्कुल अलग था उसे ना तो उत्तेजना का मतलब पता था ना ही आकर्षण से अभी तक पाला ही पड़ा था इसलिए उत्तेजना के उन्माद में बहकर मुठ मारने की कला से अभी वह कोसों दूर था। इसलिए तो वह आज इस अवस्था में बुरी तरह से तड़प रहा था उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें कि उसकी चड्ढी में आया तुफान शांत हो जाए। वह उसी तरह से बेईमान डंबल को हाथों में लिए ऊपर नीचे करते हुए कसरत करने की कोशिश कर रहा था। और दूसरी तरफ अपने बदन में भी कामोतेजना कि हम चल दिए हुए निर्मला देवगन के बारे में सोचते हुए शुभम के कमरे के बिल्कुल करीब पहुंच चुकी थी । वह दरवाजे की तरफ कदम बढ़ा ही रही थी कि तभी हल्की सी खुली खिड़की में से कमरे के अंदर खड़ा शुभम नजर आ गया। निर्मला उत्सुकतावश खिड़की के पास खड़ी होकर की हल्कि सी खुली खिड़की में से अंदर की तरफ झांकने लगी,, निर्मला की नजर उसके गठीले बदन पर फीर रही थी। एकदम गठीला और कसरती बदन शुभम की खूबसूरती को और ज्यादा निखारता था। निर्मला की नजर शुभम के गठीले बदन के दर्शन करके चौंधिया सी गई थी। निर्मला को तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि उसका बेटा इतने आकर्षक और गठीले बदन का मालिक है। निर्मला अपने बेटे के बदन को देखकर आकर्षीत हुए जा रही थी। उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आज वह अपनी बेटे के ही तरफ इतना ज्यादा क्यों आकर्षित हुए जा रही है। निर्मला खिड़की के बाहर खड़ी अंदर के दृश्य को निहार रही थी। शुभम के हाथों में वजनदार डंबल को देखकर और जिस तरह से वह बड़े ही आराम से डंबल को ऊपर नीचे करते हुए कसरत कर रहा था। ऊसे देखकर निर्मला का मुंह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया। निर्मला की नजरें शुभम के बदन पर फिसलते हुए धीरे धीरे नीचे की तरफ जा रही थी। जैसे ही निर्मला की नजर कमर के नीचे पहुंची तो वहां का नजारा देखकर निर्मला सन्न रह गई।

अब तक निर्मला की नजर शुभम के गठीले बदन के ऊपरी हिस्से पर ही फिर रही थी। अपने बेटे के मजबूत और कसरती बदन को देखकर निर्मला रोमांचित हुए जा रही थीे । आज पहली बार उसे अपने बेटे का बदन देखकर एक अजीब सा रोमांच महसूस हो रहा था जिसके बारे में सोच कर वह खुद हैरान थी। ऐसा उसके साथ पहले कभी नहीं हुआ था।
खिड़की के बाहर खड़ी होकर के निर्मला अंदर के दृश्य को बड़े ही रोमांच के साथ निहार रही थी अंदर का एक एक दृश्य उसे कामुकता का एहसास करा रहा था। लेकिन जैसे ही उसकी नजर शुभम के कमर के नीचे वाले हिस्से पर गई तो वहां का नजारा देखकर वह दंग रह गई उसके बदन में एकाएक उत्तेजना का संचार बड़ी तेजी से होने लगा। उसके मुंह से दबी आवाज में सिसकारी के साथ बस इतना ही निकल पाया।

बाप रे बाप,,,,,,,,,

( निर्मला के मुंह से यह अचानक निकला था उसे खुद समझ में नहीं आया कि उसके मुंह से आखिर ऐसा क्यों निकल गया यह सब असर उस बैगन का था जिसके बारे में पूरी तरह से विस्तार में शीतल में निर्मला को समझाई थी और उसे लंबे बेगन के ही चलते उसके बदन में एक नई कामुकता का एहसास जगा था।
अपने बेटे के चड्डी में बने लंबे तंबू को देखकर उसकी जांघों के बीच अजीब सी सुरसुराहट होने लगी। शुभम का अंडरवियर अच्छा खासा तनकर तंबू बन चुका था।
जिस तरह से शुभम की चड्डी खड़े लंड की वजह से तन कर सामने की ओर तंबू बनाए हुए था उस लंबे तंबू को देखकर निर्मला के लिए यह अंदाजा लगा पाना बड़ा मुश्किल हो रहा था कि आखिरकार शुभम का लंड कितना बड़ा है। निर्मला की नजर पूरी तरह से उसके बेटे की चड्डी के ऊपर मानो जम सी गई थी। शुभम था कि बस आश्चर्य के साथ अपनी चड्डी में बने तंबू को देखते हुए बेमन से उसे डंबल को ऊठाए जा रहा था।
अपने बेटे की वर्तमान स्थिति को देखकर निर्मला इतना तो समझ ही गई थी कि उसका बेटा अपने बदन में उत्तेजना का अनुभव कर रहा है तभी तो उसका लंड भी इस कदर टंनटनाकर खड़ा था।
शुभम की स्थिति से वह अपने पति की स्थिति का अनुमान लगाते हुए एक अजीब सी उलझन महसूस कर रही थी क्योंकि उसे इतना जरूर मालूम था कि,,, शुरू के दिनों में जब भी कभी उत्तेजित अवस्था में अशोक उससे प्यार करता था तब,,,,, निर्मला को अच्छी तरह से याद है कि उस समय उत्तेजना की वजह से जब भी अशोक के लंड में तनाव आता था तो उसका अंडर वियर इस हद तक तंबू नहीं बना पाता था। बल्कि लंड वाले स्थान पर बस हल्का सा उभरा हुआ नजर आता था लेकिन निर्मला इस समय अपने बेटे की चड्डी के अंदर जिस नजारे को देख रही है वह काफी हैरान करने वाला था। शुभम के अंडरवीयर में लंड वाले स्थान पर हल्का सा ऊभरा हुआ नहीं बल्की ऐसा मालूम पड़ रहा था कि उसने अंडर वियर में किसी मोटे लकड़े को ठुंश रखा है, तभी तो निर्मला की भी हालत सिर्फ देखकर खराब हुए जा रही थी कि अगर हल्के से उभरे हुए अंडरवियर के अंदर तगड़ा हथियार हो सकता है तो यहां तो पूरी की पूरी अंडरवियर तनकर तंबू हो चुकी है तो इसके अंदर कितना तगड़ा और मजबूत हथियार होगा। यह सोचकर ही निर्मला की बुर में गुदगुदी सी लगने लगी और उसकी पैंटी कुछ ज्यादा ही गीली होने लगी।
निर्मला आकर्षण के चलते यह भी भूल गई कि वह शुभम को रसोई में मदद करने के लिए बुलाने आई थी लेकिन यहां आकर के शुभम की हालत को देखकर वह सब कुछ भूल गई। शुभम की गठीले पतन और चड्डी में बने तंबू का आकर्षण का खुमार पूरी तरह से निर्मला की आंखों में उतर आया था। निर्मला ललचाई आंखों से अपने बेटे को ही निहार रही थी। निर्मला जीस तरह से ऊन्माद और कामोतेजना का अनुभव करते हुए अपने बेटे को ललचाई आंखों से देख रही थी यह उसकी प्रकृति के बिल्कुल विरुद्ध था। लेकिन इस समय वह सब कुछ भूल चुकी थी खिड़की के बाहर खड़ी होकर के वह अपने बदन में चुदास पन का बेहद तीव्र गति से अनुभव कर रही थी।
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Re: अधूरी हसरतें

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Ankit wrote: 24 Sep 2017 13:10superb update
Thanks mitr
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Re: अधूरी हसरतें

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निर्मला आकर्षण के चलते यह भी भूल गई कि वह शुभम को रसोई में मदद करने के लिए बुलाने आई थी लेकिन यहां आकर के शुभम की हालत को देखकर वह सब कुछ भूल गई। शुभम की गठीले पतन और चड्डी में बने तंबू का आकर्षण का खुमार पूरी तरह से निर्मला की आंखों में उतर आया था। निर्मला ललचाई आंखों से अपने बेटे को ही निहार रही थी। निर्मला जीस तरह से ऊन्माद और कामोतेजना का अनुभव करते हुए अपने बेटे को ललचाई आंखों से देख रही थी यह उसकी प्रकृति के बिल्कुल विरुद्ध था। लेकिन इस समय वह सब कुछ भूल चुकी थी खिड़की के बाहर खड़ी होकर के वह अपने बदन में चुदास पन का बेहद तीव्र गति से अनुभव कर रही थी।
उसकी नस-नस में लहू की जगह उन्माद और कामोत्तेजना का संचार हो रहा था। निर्मला आज बिल्कुल अलग और अजीब किस्म के सुखद अहसास का अनुभव कर रही थी। जिसके बारे में उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था।
शुभम बार-बार अपनी चड्डी में तने हुए तंबू को देख रहा था और डंबल को ऊपर नीचे करते हुए कसरत भी किए जा रहा था उसका पूरा बदन पसीने से तरबतर हो चुका था सांसो की गति तेज चल रही थी। जिसकी वजह से उसका चौड़ा सीना बड़े ही उन मादक तरीके से सांसो के साथ साथ ऊपर नीचे हो रहा था जिसे देखकर निर्मला की बुर गिली हुई जा रही थी।
शुभम कसरत करते हुए एकदम डंबल को नीचे रख दिया,,,, और बड़ी ही प्यारी नजर से अपनी चड्डी की तरफ देखने लगा यह देख कर निर्मला की भी उत्सुकता बढ़ने लगी उसके मन में एक अजीब सी चाहत ने जन्म लेना शुरु कर दिया था। निर्मला अपने बेटे के तने हुए लंड को देखना चाहती थी। वह देखना चाहती थी कि उसके बेटे का खड़ा लंड कैसा दिखता है कितना लंबा है कितना मोटा है उसका सुपाड़ा किस आकार का है यह सब बातें जानने और देखने की उत्सुकता ने निर्मला को एकदम से चुदवासी बना दिया था। उसकी बुर से काम रस की बूंदे धीरे-धीरे टपक रही थी जिसकी वजह से उसकी पैंटी पूरी तरह से गीली हो चुकी थी वह बार-बार उसी स्थान पर हाथ लगाकर अपनी बुर की स्थिति का जायजा लें ले रही थी। काम रस की बूंदों ने जिस तरह से निर्मला की पैंटी को गीली कर दी थी अगर किसी और की नजर उसकी पैंटी वाले हिस्से पर पड़े तो वह यही समझेगा कि निर्मला पेशाब कर दि है।

निर्मला की कामोत्तेजना बढ़ती ही जा रही थी और कमरे के अंदर एक हाथ में डंबल लिए शुभम कसरत करते हुए अजीबो किस्म की कशमकश में लगा हुआ था। बार-बार उसका हाथ तंबू के करीब आ कर के फिर पीछे हट जा रहा था उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें। और शुभम की यही कश्मकश को देखकर निर्मला की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी उसे लगने लगा था कि शुभम जरूर कुछ करेगा। निर्मला की दिली ख्वाहिश यही थी कि शुभम अपने हाथों से अपनी अंडरवियर को नीचे सरका कर अपने खड़े लंड को नंगा कर दे ताकि वह अपने बेटे के लंड को जी भर कर देख सके। निर्मला के साथ-साथ शुभम की भी उत्सुकता अपने लंड को लेकर के बढ़ती जा रही थी क्योंकि उसने भी आज तक अपने खड़े लंड का दीदार नहीं किया था।
सिर्फ पेशाब करते समय उसे अपने हाथों में ले करके उसकी गर्मी को महसूस किया था लेकिन बस औपचारिकतावश इससे आगे शुभम को कुछ भी महसूस हुआ और ना ही कुछ अनुभव ही मिला। जिस तरह की कशमकश कमरे के अंदर थी उससे भी ज्यादा खत्म कर कमरे के बाहर खिड़की पर थी क्योंकि शुभम तो नादान था नासमझ था। कामावेश के अध्याय से बिल्कुल भी अनजान वह अपने अंदर मच रही खलबली को कैसे शांत करें इसमें लगा हुआ था लेकिन बाहर खड़ी निर्मला तो अनुभवी थी। वह अच्छी तरह से जानती थी कि कमरे के अंदर जिस तरह की प्रकृति से उसका बेटा गुजर रहा है वह कामातुर हो चुका है उत्तेजना की पराकाष्ठा उसके बदन में गुदगुदी मचा रही है। वह पुरी तरह से चुदवासा हो चुका है ।
शुभम बार बार अपना हाथ अंडर वियर पर लाकर हटा दे रहा था उसकी स्थिति को निर्मला अच्छी तरह से भांप चुकी थी। वह अच्छी तरह से समझ चुकी थी कि काम के ज्ञान में जिस तरह से वहां इस उम्र में आकर भी अज्ञानी है उसी तरह शुभम भी जवानी की दहलीज पर कदम रखते हुए इस अध्याय में अभी बिल्कुल अनजान है। दोनों की स्थिति को देखकर साफ-साफ लग रहा था कि दोनों एक ही नाव में सवार है। काम नाव की पतवार दोनों में से किसी के भी हाथ में नहीं थी । यह नाव अपने आप ही उत्तेजना के समंदर में गोते लगाते हुए किस छोर पर ले जाएगी दोनों इस बात से बिल्कुल भी अनजान थे।
बाहर प्यासी निर्मला उत्सुक थी अपने बेटे के खड़े लंड का दीदार करने के लिए और कमरे के अंदर शुभम को आगे क्या करना है इस बात से बिल्कुल भी बेखबर था लेकिन फिर भी उसकी भी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी बार-बार उसका हाथ अंडरवियर तक आ करके वापिस चला जा रहा था। लंड के सुपाड़े वाला स्थान पूरी तरह से भीग चुका था। वह भी अपने अंडर वियर पर चिपचिपा सा महसूस कर रहा था। निर्मला की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी उसका भी हाथ बार-बार जांघो के बीच पहुंचा रहा था। वह अपनी हथेली से बुर वाले स्थान को दबा दे रही थी जिससे उसकी कामाग्नि और ज्यादा बढ़ जा रही थी। निर्मला आज खुद अपने स्थिति को ले करके बहुत ज्यादा परेशान हो चुकी थी क्योंकि उसे आज तक ऐसी स्थिति का सामना कभी नहीं करना पड़ा था। इस समय जिस प्रकार की उत्तेजना और चुदासपन का अनुभव अपने बदन में कर रही थी ऐसा अनुभव ऊसे पहले कभी नहीं हुआ था ।वह पूरी तरह से चुदवासी हो चुकी थी उसकी गीली और प्यासी बुर में खलबली सी मची हुई थी।
शुभम के मन में ना जाने क्या हुआ कि उसने दूसरे डंबल को भी नीचे रख दिया। उसका बदन पूरी तरह से पसीने से तरबतर हो चुका था सांसो की गति बड़ी तेज चल रही थी। उसकी मां को लेकर उसके मन में द्वंद युद्ध चल रहा था। उसके लंड के खड़े होने का एक ही कारण था कि बार-बार उसकी आंखों के सामने उसकी मां के गोरे बदन और उसकी बड़ी बड़ी चूचियां और भरावदार गांड नजर आ जा रही थी जिसकी वजह से ना चाहते हुए भी उसका लंट टनटना कर खड़ा हो चुका था । ऐसे हालात की वजह से उसकी हालत खराब होते जा रहे थे उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि वह अपनी मां के बारे में इस तरह की गंदे ख्याल अपने दिमाग में जाएगा लेकिन उसके दोस्तों की बातों ने उसका मन पूरी तरह से बदल दिया था वह ना चाहते हुए भी अपनी मां के अंगों के बारे में सोचने लगा था। यह निर्मला के खूबसूरत बदन और उसके उभार दार और कामुकता से भरे हुए कटावदार अंगों का ही कमाल था कि शुभम का लंड ढीला पड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था ।
बाहर निर्मला जो रह रहकर अपनी जांघो के बीच हाथ लगा ले रही थी अब वह कामोत्तेजना के असर में पूरी तरह से बहकर हल्के हल्के से अपने बुर को साड़ी के ऊपर से ही लना शुरु कर दी थी,, जिसकी वजह से उसकी उत्तेजना बढ़ती ही जा रही थी।

निर्मला का दिल जोरो से धड़क रहा था उसकी सांसे भारी हो चली थी। सांसों के बहाव में उसकी बड़ी बड़ी चूचियां भी बड़े ही उत्तेजक तरीके से ऊपर नीचे हो रही थी। निर्मला को इंतजार था सुभम के लंड के देखने के लिए जो कि उसकी तरसीे निगाहें शुभम पर ही टिकी हुई थी वह चाहती थी कि शुभम जल्द से जल्द अपने लंड का दीदार कराएं लेकिन सुबह में था कि अपने अंदर बीयर को नीचे उतारने में भी घबरा रहा था उसके अंदर अजीब सी घबराहट हो रही थी। वह बार-बार अपनी मां का ख्याल करके उत्तेजित हुए जा रहा था। यही उत्तेजना के चलते उससे रहा नहीं गया और वह अपने दोनों हाथ को अपने अंडर वियर के अगल-बगल रखकर
अंडरवियर को सरका कर अंदर का नजारा देखने के लिए तैयार हो चुका था। शुभम की इस हरकत ने निर्मला के अंदर गुदगुदी सी फैलाने लगा। उसके बदन में उत्तेजना से कम चार बड़ी तेजी से हो रहा था वह सबसे ज्यादा जांघों के बीच बुर के अंदर चुनचुनाहट मची हुई थी जिसे वह अपनी हथेली से मसल रही थी।
शुभम का गला उत्तेजना के मारे सुख रहा था। और वह धीरे-धीरे अपने अंडर वियर को नीचे करने लगा,,,, यह देखकर निर्मला के मुंह से गरम आहे निकलने लगी।
तभी शुभम ने अपनी अंडरवियर को एक झटके से जांगो तक सरका दिया। चड्डी के नीचे सरकते ही जो नजारा सामने आया उसे देखकर शुभम आश्चर्यचकित हो गया उसके मन में घबराहट सी होने लगी,,,,,, उसे कुछ समझ में नहीं आया कि यह क्या हो रहा है लेकिन खिड़की के बाहर खड़ी निर्मला सब कुछ समझ गई थी कि क्या हो रहा है। उसका मुंह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया था। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि वह हकीकत देख रही है या सपना। इतना मोटा तगड़ा और लंबा लंड भी हो सकता है वह कभी कल्पना भी नहीं कर पाई थी क्योंकि उसने आज तक अशोक के ही लंड को देखी थी और उसी से काम चला रही थी जोकि शुभम के लंड से आधा ही था और पूरी तरह से टनटना कर खड़ा था। उसके लंड में जरा सा भी लचक नहीं था जरा सा भी ढीला पन नजर नहीं आ रहा था। उसका सुपाड़ा ऊपर छत की तरफ मुंह उठाए खड़ा था।
यह नजारा देखकर उत्तेजना के मारे निर्मला भी पसीने से तरबतर हो चुकी थी। उसकी हथेली जोर-जोर से बुर ं पर चल रही थी,,,, उसकी पैंटी लगातार काम रस के रिसाव की वजह से गीली होती जा रही थी।
शुभम को कुछ समझ में नहीं आ रहा था वह कांपती उंगलियों को खड़े लंड की तरफ बढ़ाया और उस पर हल्कैसे रखा ही था कि उसका कड़कपन और गर्माहट महसूस करके वह एक दम से चौंक गया और झट से अपना हाथ हटाकर के अंडरवीयर को फिर से पहन लिया,,,,, और दो कदम पीछे जाकर के बिस्तर पर बैठकर हांफनें लगा,,,,,
बाहरी निर्मला जी भरकर इस नजारे को देखने से पहले ही परदा पड़ चुका था उसके लिए अब खिड़की पर ज्यादा देर तक खड़े रहना उचित नहीं था इसलिए वह अपनी प्यास और ज्यादा बढ़ा कर वापस लौट गई।

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