अधूरी हसरतें

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raja
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Re: अधूरी हसरतें

Post by raja »

Bahut hi mast story h. Nirmla ko jaldi_2 10-12 logo se chudvavo tab maza aayega. Keval subam se hi nhi oro se bi
:o :o
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Rohit Kapoor
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Re: अधूरी हसरतें

Post by Rohit Kapoor »

Smoothdad wrote: 11 Oct 2017 12:46 अगली कड़ी के लिए उत्सुकता से प्रतीक्षा में . . .
Kamini wrote: 11 Oct 2017 13:35mast update
kunal wrote: 12 Oct 2017 22:12Hot updates
raja wrote: 13 Oct 2017 12:54 Bahut hi mast story h. Nirmla ko jaldi_2 10-12 logo se chudvavo tab maza aayega. Keval subam se hi nhi oro se bi
sexi munda wrote: 14 Oct 2017 09:51 मित्र इंतिहाई मस्त कहानी है
Thnx for supporting me
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Rohit Kapoor
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Re: अधूरी हसरतें

Post by Rohit Kapoor »


घर पर पहुंचकर शुभम तो अपने कमरे में चला गया लेकिन निर्मला के लिए तो कहीं भी चैन नहीं था। शीतल की बातों ने उसके बदन में कामाग्नि को पूरी तरह से भड़का चुकी थी।
अपने ही काम रस में वह अपनी पैंटी को गीली कर ली थी।
बार बार उसे शीतल की कही हुई वह बहुत याद आ रहे थेी जब वह उसके बेटे की तरफ देख कर उसे जवान लंड की तरफ इशारा कर रही थी। निर्मला अच्छी तरह से समझ रही थी कि वह इशारे इशारे में क्या कहना चाह रहीे थीे उसका सारा बिल्कुल साफ था। एक तरह से वह निर्मला को अपने ही बेटे के साथ संबंध बनाने के लिए उकसा रहीे थी। जोकि निर्मला के लिए बिल्कुल भी संभव नहीं था। निर्मला के मन में ढेर सारे सवाल उठ रहे थे यह सवाल भी बार-बार उसके मन में आ रहा था कि शीतल अच्छी तरह से जानती थी कि शुभम उसका बेटा है तो वह कैसे कह दी की निर्मला को बैगन की जरूरत नहीं है उसके तो घर में ही जवान लंड है। तो क्या शीतल को इस बात से कभी एतराज नहीं होता कि एक मां और बेटे के बीच शारीरिक संबंध के साथ नाजायज संबंध है।
जाओ उसे इस तरह के पारिवारिक रिश्ते पर कोई भी एतराज नहीं है। यही सब सोच-सोच कर वहां शीतल के ख्यालात के प्रति हैरान हुए जा रही थी। इन सभी ख्यालों ने उसके बदन में चुदासपन की गजब की लहर चला दी थी। निर्मला की बुर में आग लगी हुई थी। उसे अपनी बुर में लंड लेने की प्यास बड़ी तेजी से लगी हुई थी। वह मन ही मन अपनी किस्मत को इस बात से कोसने लगी,,,,, की औरतें भी अपनी प्यास बुझा लेती है जो की खूबसूरत नहीं होती,,,, लेकिन फिर भी वह अपनी बुर की प्यास किसी भी लंड से बुझा लेती हैं और लोग तैयार भी रहते हैं उन्हें चोदने के लिए,,,,,, लेकिन इतनी खूबसूरत होने के बावजूद भी वह प्यासी रह जा रही थी। उस की रसीली बुर एक लंड के लिए तरस जा रहीे थी। लेकिन वह यह भी जानती थी कि अपने बदन की प्यास वह खुद भी बुझा सकती है। पति न सही कोई और ही सही,,,, लेकिन इसके लिए उसे थोड़ी हिम्मत दिखानी पड़ती। उसके एक इशारे की देरी थी इशारा मिलते ही ना जाने कीतने लोग थे जो कि उसकी प्यास बुझाने के लिए तैयार खड़े थे। लेकिन ऐसे कामों के लिए उस के संस्कार और उसकी परवरिश गवाही नहीं दे रही थी। और इसी बात के लिए अपने संस्कार की वजह से वह अपने आप को कोसे जा रही थी।
निर्मला से अपने बदन की आग बिल्कुल भी सही नहीं जा रही थी। उसे तुरंत फ्रिज में रखे हुए बैगन याद आ गए।
वह जाकर तुरंत फ्रिज खोली और उसमें रखे हुए बेगन को
अपने हाथ से टटोलने लगी,,, बैगन को टटोलते समय उसके बदन में अजीब सा उन्माद जग रहा था। उसने मार्केट से बड़े बड़े लंबे और मोटे बैगन ही पसंद करके लाई थी,,, जिसे वह अपनी हथेली में पकड़ते समय ऐसा महसूस कर रही थी कि वह बेगन नहीं बल्कि किसी का लंड अपने हाथ में पकड़े हुए हैं। वह फ्रिज में से एक बैंगन बाहर निकाल ली,, और ऊस बैगन को अपनी हथेली में कस के पकड़ ली जैसे कि किसी लंड को पकड़ा जाता है। निर्मला के बदन में तुरंत उत्तेजना का संचार बड़ी तेजी से होने लगा,,,,, रसोई घर में थी लेकिन बार-बार दरवाजे पर देख ले रहीे थीे कि कहीं शुभम ना आ जाए। निर्मला दरवाजे पर नजर गड़ाए हुए ही,, उस बैगन पर अपनी हथेली को इस तरह से आगे पीछे करने लगी कि जैसे किसी लंड को मुठीया रही हो,,,, निर्मला की उत्तेजना परम शिखर पर पहुंच चुकी थी बार-बार उसका एक हाथ गीली बुर पर चली जा रही थी,, जो ती ऊसके कामरस से उसकी पैंटी पूरी तरह से गीली हो चुकी थी।
उसके हाथ में पकड़ा हुआ बेगन उसे लंड की तरह लग रहा था। जिसे देख कर और महसूस करके उसकी बुर में और भी ज्यादा खुजली होने लगी थी। काम ने उसके दिमाग और उसके बदन पर पूरी तरह से अपना कब्जा जमा लिया था।
मौका और जरूरत दोनों निर्मला के पक्ष में थे । बार बार उसे शीतल की वह बात याद आ रही थी जो कि उसे एक बार बैगन को ट्राई करने के लिए कहीे थी।
कामांध हो करके वह एक हाथ से साड़ी के ऊपर से ही अपनी बुर को सहला रही थी जिससे उसके बदन में वासना की लहर दौड़ने लगी,,,,, क्योंकि ऐसा करने पर उसे उसके बेटे का टनटनाया हुआ लंड याद आ रहा था। और ऊसके हांथ मे पकड़ा हुआ बैगन ऊसे ऊसके बेटे का तगड़ा लंड ही लग रहा था। शीतल ने उसे बताई थी कि मोटे लंड से चुदवाने में बहुत मजा आता है लेकिन उसका अनुभव निर्मला को बिल्कुल भी नहीं था। क्योंकि वह तो आज तक सिर्फ अपने पति से ही चुदते आई थी। इसलिए उसके मन में लंबे लंड के प्रति उत्सुकता बढ़ती जा रही थी। उसके लिए यह अगन अब ज्यादा देर तक सहन कर पाना मुश्किल हुए जा रहा था वैसे तो वह काम की पीड़ा में ना जाने कितने वर्षों से तड़पती आ रही थी । लेकिन जिस प्रकार की प्यास आज उसके बदन में उठी थी ऐसी प्यास ईससे पहले कभी भी नहीं ऊठी। रसोई घर का दरवाजा खुला हुआ था जिस पर उसकी नजर बार बार चली जा रही थी और उसका एक हांथ बुर को साड़ी के ऊपर से सहलाने मे लगा हुआ था और दूसरे हाथ में बैगन था जिस पर उसकी नाजुक उंगलियां इस प्रकार से चल रही थी जैसे कि उसके हाथ में बैगन ना हो एक तगड़ा मोटा लंड हो। काम की प्यास अक्सर इंसान की सोचने समझने की शक्ति को क्षीण कर देती है वैसा ही कुछ निर्मला के साथ भी हो रहा था। निर्मला बेहद पढ़ी-लिखी और संस्कारी थी लेकिन काम की प्यासी थी जो कि एक टीचर होने के बावजूद भी उसे काम की प्यास इस तरह की हरकत करने पर मजबूर कर दे रही थी। हाथ में बैगन लिए हुए उसके मन में शीतल की कही बातें घूम रही थी जिससे उसने भी उसकी बात रखते हुए मन में ही सोची की एक बार बेगन को ट्राई कर लेने में क्या हर्ज है ऐसा सोच कर वह तुरंत रसोई घर का दरवाजा बंद कर दी,,, वहं उस बैगन को थोड़ा चिकना करना चाहती थी इसलिए रसोईघर मैं ही उसे सरसों का तेल मिल गया जिसकी दो चार बूंदे लेकर के वह बैगन पर लगाने लगी ताकि वह एकदम चिकना हो जाए,,,, क्योंकि वह इस बात को अच्छी तरह से जानती थी कि बैगन के आगे वाला भाग की मोटाई लंड के सुपारे से दुगुना था,,, जोकि आसानी से ऊसकी बुर में घुसने वाला नहीं था।
वह सरसों का तेल लगाकर बैगन को एकदम चिकना कर ली थी। उत्सुकता और उत्तेजना की वजह से उसकी हालत खराब हुए जा रही थी। वह सोच-सोच कर कामोत्तेजित हुए जा रही थी कि बैगन से उसे किस तरह का आनंद प्राप्त. होगा,,,, घर में केवल सुभम ही ं था जो कि अपने कमरे में बैठा हुआ था,,,, कमरे में ज्यादा देर बैठने की वजह से उसे प्यास लग रही थी ।

रसोईघर में निर्मला शीतल की ट्राई करने वाली बात को साक्षात्कार करने के लिए अपने प्यार के वशीभूत होकर के बेगन को ट्राई करने जा रही थी। निर्मला के दिल की धड़कन तेज चल रही थी पंखा चालू होने के बावजूद भी उसके माथे से पसीना टपक रहा था। वह दीवार का सहारा ले कर के खड़े खड़े ही अपनी साड़ी को धीरे धीरे कर के ऊपर की तरफ उठाने लगी,,, उसकी दूधिया गोरी टांगे ट्यूबलाइट के उजाले में और भी ज्यादा चमक रही थी। धीरे धीरे करके उसने अपनी साड़ी को कमर तक उठा दी,,, कमर तक साड़ी के उठते ही उसकी गीली पैंटी नजर आने लगी जिसे वह थोड़ा सा झुक कर देख रही थी इस तरह से देखने पर ही उसे पता चला कि उसकी पैंटी किस कदर गीली हो चुकी है। अपनी पैंटी का गीलापन देख कर उसे अपनी हालत का अंदाजा लग गया और वह अपनी हालत पर हल्के से मुस्कुरा दी। आने वाले पल के बारे में सोच सोच कर उसके दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी उसने धीरे से अपनी पैंटी को एक ही हाथ से नीचे की तरफ सरकाने लगी,,,,,, अगले ही पल उसकी पैंटी उसकी जांघों के नीचे घुटनो में जा फसी थी।
ऊफ्फ्फ्फ,,,,,, पेंटी को नीचे आते ही एक गजब का नजारा आंखों के सामने नजर आने लगा,,,, निर्मला की चिकनी बुर जिस पर बाल का एक रेशा तक नहीं था वह सिर्फ एक पतली सी लकीर के आकार में नजर आ रही थी। सोचने वाली और दंग कर देने वाली बात यह थी कि निर्मला की बुर जिस तरह से एक पतली लकीर के रूप में ही नजर आती थी,, ऐसी बुर स्वाभाविक और प्राकृतिक रूप से इस उम्र में जबकि वह एक बच्चे की मां भी थी,,,नही नजर आती। इसलिए तो निर्मला की बुर ओर ज्यादा रसीली हो जाती थी। इस बात से निर्मला बिल्कुल भी अनजान थे कि इस उम्र में जिस तरह कि उसकी बपर बस एक पतली लकीर के रूप में थी उसकी उम्र में किसी दूसरी औरतों कि इस तरह की चिकनी और रसीली बुर शायद ही होती हो बल्कि नहीं होती,,,,, वह तो बस झुककर और एक हाथ में बैगन को पकड़े हुए अपनीे बुर को देखे जा रही थी। अपनी ब** की हालत देखकर उसका हाथ कांप रहा था क्योंकि उसमें से अभी भी मदन रस का रीसाव बराबर हो रहा था,,,,,

दूसरी तरफ कमरे में बैठे बैठे शुभम का गला जब सूखने लगे तो उससे प्यास बर्दाश्त नहीं हुई और वह अपने कमरे से बाहर आ गया पानी पीने के लिए,,,, जो कि उसे पानी पीने के लिए रसोई घर में ही आना था।
दूसरी तरफ निर्मला के बदन की प्यास बढ़ती जा रही थी और इसलिए वह बेगन को हाथ में पकड़े हुए उसके चिकने वाली भाग को अपनी बुर की दरार में हल्के से स्पर्श कराई ही थी की उसके मुंह से गर्म कुछ कारी निकल पड़ी है क्योंकि उसकी कल्पना में वह बैगन उसके बेटे का तगड़ा लंड ही लग रहा था। उत्तेजना का अनुभव करते हुए उसकी आंखें मस्ती में मुद गई,,,, वह बैंगन के आगे वाले भाग को अपनी बूर पर रगड़ रही थी जिससे उसे बेहद आनंद की प्राप्ति हो रही थी। वह अपनी बुर की दरार में बैगन को रगड़ते हुए सिसकारी ले रही थी।


सससससहहहहहह,,,,, आहहहहहह,,,,,, ऊईईईईई,,,,,, मांअ्अ्अ,,,,,,,,

निर्मला के बदन मे चुदास की लहर पूरी तरह से फैलने लगी थी। अपनी इस हरकत की वजह से उसके बदन की प्यास और ज्यादा बढ़ रही थी। अब सिर्फ बुर की गुलाबी पत्तियों पर बैगन रगड़ने से ऊसकी प्यास बुझने वाली नहीं थी वह भी चाहती थी कि वह बेगन को अपनी बुर में प्रवेश कराएं,,,,
बैगन की मोटाई कुछ ज्यादा थी लेकिन जिस तरह से उसकी बुर मे चिकनाहट भर चुकी थी उसे देखते हुए थोडी सी मेहनत की जरूरत थी।

निर्मला अपनी प्यास बुझाने के लिए अगला कदम उठाते हुए
बैगन को धीरे धीरे करके वह अपनी गुलाबी बुर के छेद पर रख दी,,, गुलाबी छेद पर बैगन का स्पर्श होते ही निर्मला का पूरा बदन उत्तेजना में झनझना गया।

दूसरी तरफ शुभम पानी पीने के लिए रसोई घर की तरफ बढ़ता चला आ रहा था,,,, और निर्मला भी अपनी प्यास बुझाने के लिए पहली बार ऐसा कदम उठा रही थी। अगले ही पल निर्मला ने बैगन को गुलाबी छेद पर रखते हुए,,, ऊस छेद पर बैगन का दबाव बढ़ाने लगी,,,, बुर मे से रिसाव हो रहे मदन रस की चिकनाहट और बैगन पर लगाए हुए सरसों के तेल की चिकनाहट की वजह से बैगन की आगे वाला भाग हल्का सा बुर में प्रवेश करने लगा,,,, बैगन हल्का सा उसकी बुर में प्रवेश कर गया है ऐसा महसूस होते ही उसके चेहरे पर उत्तेजना और खुशी के भाव साफ साफ नजर आने लगे,,,,
उसे अजीब से लेकिन बेहद अत्यंत कामुकता का एहसास और आनंद आ रहा था जिसको वह शब्दों में बयान नहीं कर सकती थी। उसका बदन अजीब से सुख की अनुभूति करते हुए कसमसा रहा था। हल्के से बैगन के प्रवेश कराने मात्र से ही उसे शीतल की कही गई बात शत प्रतिशत सच. लगने लगी,,, इतने से ही उसे यकीन हो चला था कि मोटे और लंबे लंड से औरतों को बेहद मजा आता है।
रसोईघर का नजारा पूरी तरह से कामुकता से भरा हुआ था अगर यह नजारा कोई देख ले तो सच में देखने मात्र से ही उसका लंड पानी छोड़ दें। सच में यह नजारा बेहद चुदास से भरा हुआ था। रसोईघर में निर्मला अपने ही हाथों से अपने बदन की प्यास बुझाने में लगी हुई थी।
और दूसरी तरफ शुभम इन बातों से बिल्कुल अंजान अपनी प्यास बुझाने के लिए रसोई घर की तरफ बढ़ रहा था। इस समय दोनों प्यासे थे फर्क सिर्फ इतना था कि शुभम की प्यास पानी से बचने वाली थी और उसकी मां की प्यास एक मोटे तगड़े लंड से बुझने वाली थी।

निर्मला बैगन पर और ज्यादा दबाव बढ़ा रही थी ताकि बैगन उसकी बुर में ज्यादा प्रवेश कर जाए। वह बैगन को बुर में और ज्यादा प्रवेश कराने के लिए जेसे ही बैगन पर दबाव बढ़ाई वैसे ही रसोई घर के बाहर टेबल पर रखा हुआ बर्तन शुभम के पैर की ठोकर की वजह से टेबल पर से नीचे गिर गया,,,, बर्तन गिरने की आवाज सुनते ही निर्मला की तो हालत खराब हो गई,,,, और उसके हाथ से हड़बड़ाहट में बैगन छूट कर नीचे गिर गया,,,, वह समझ गई थी कि शुभम रसोई घर की तरफ आ रहा है और उसने जल्दी-जल्दी अपने कपड़ों को दुरुस्त की। कपड़ों को दुरुस्त करते ही उसने सबसे पहले उस लंबे तगड़े बैगन को छुपा दी,,, और जाकर तुरंत दरवाजे की कड़ी खोल कर खुद इधर उधर का काम करने लगी तब तक शुभम नीचे गिरे बर्तन को उठाकर टेबल पर रख चुका था और रसोई घर की तरफ आगे बढ़ रहा था वह रसोई घर में प्रवेश करके खोल कर उसमें से पानी की बोतल निकाल कर पानी पिया और उसे वापस फ्रिज में रख कर वापस चला गया। रसोई घर के बाहर जाते ही निर्मला की जान में जान आई,,,, वह एकदम से घबरा चुकी थी उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें। लेकिन शुभम के जाते ही उस ने राहत की सांस ली थी शुभम को बिल्कुल भी शक ही नहीं हुआ कि कुछ ही मिनट पहले रसोई घर में उसकी मां अपने बदन की प्यास बुझाने में लगी हुई थी।
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