अधूरी हसरतें

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Rohit Kapoor
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Re: अधूरी हसरतें

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निर्मला बाथरूम में अपना मुंह धो रही थी। उसने अपने बेटे के माल के एक बूंद को भी अपने मुंह में जाने नहीं दी थी अपने चेहरे पर इस तरह से अपने बेटे का माल गिरने की वजह से उसे बड़ा अजीब सा लग रहा था। रह रह कर उसे उबकाई आ रही थी। बाथरूम में उसने अपना मुंह अच्छे से साफ की,,,,, अपने बेटे के लंड से निकली जबरदस्त पिचकारी को देखकर वह आश्चर्यचकित उसे इस बात पर बिल्कुल भी यकीन नहीं हो रहा था और शायद अगर किसी के मुंह से सुनती तो उसे यकीन भी नहीं होता लेकिन उसने तो कुछ पल पहले ही अपनी आंखों से और अपने हाथ में लेकर देखी थी। लंड से पानी कितनी तेज पिचकारी निकलता देख कर उसकी बुर पानी-पानी हो गई थी। क्योंकि उसके पति का जब भी पानी निकलता था तो बस बूंद बूंद करके निकलता था।
निर्मला हाथ मुंह धो कर आईने में अपने चेहरे को देख रही थी जो कि शर्म से बिल्कुल लाल लाल हो चुका था। आज उसने अपनी जिंदगी में कुछ ज्यादा ही हिम्मत दिखा दी थी जिसके एवज में उसे आनंद भी बेशुमार मिला था बस इतना गिला उसके मन में रह गया था कि काश वह थोड़ी और हिम्मत दिखा पाती तो जिस लंड को वह अपनी मुट्ठी में भर कर हिला रही थी वही लंड उसकी बुर के परखच्चे उड़ा देता और उसकी बरसों से उभरी हुई प्यास को शांत करने में मदद कर देता। निर्मला की हथेली में जिस तरह से शुभम का मोटा लंड अपनी रंगत भी खेल रहा था उसे अपनी आंखो से देख कर और उसे अपने अंदर महसूस करके निर्मला इस समय भी पानी पानी हुए जा रही थी। जब भी वह अपने बेटे के लंड के बारे में सोचती तो उसकी बुर से दो चार बूंदे नमकीन पानी की टपक ही पड़ रही थी। निर्मला को वह बाथरुम से बाहर जाने में शर्म आ रही थी क्योंकि वासना का असर धीरे-धीरे शांत होने लगा था और वासना के शांत होते ही वासना की जगह फिर से रिश्तो की मर्यादाओं ने जगह बना ली। और दोस्तों के बीच मर्यादाओं के होते यह सब संभव नहीं था,,,,, तूफान शांत होने लगा था लेकिन जब भी कोई बड़ा तूफान आकर गुजर जाता है तो अपने पीछे निशान छोड़ जाता है। उसी तरह से निर्मला भी अब इस तरह की गलती दोबारा ना करने की कसमें खाकर अपने मन को समझाने लगी लेकिन एक प्यासी औरत कर भी क्या सकते थे। जिस तरह से एक प्यासी इंसान को पानी पीने के बाद ही शांति मिलती है उसी तरह से एक प्यासी औरत को भी जब तक उसकी प्यास बुझ ना जाए तब तक वह तड़पती और बहकती रहती है। ऐसा ही कुछ निर्मला के साथ भी हो रहा था बार-बार वह गलती ना दौहराने की कसम खाती और बार बार उसका मन बहकने लगता था।
जिस तरह से उसका बेटा उसकी बड़ी बड़ी चूची को देख रहा था यह सब जानते हुए भी निर्मला को उत्पन्न ना जाने क्यों अपनी चूची अपने बेटे को दिखाने में इतनी आनंद की अनुभूति हो रही थी कि पूछो मत,,, एक अजीब और अद्भुत प्रकार का रोमांच निर्मला को प्राप्त हो रहा था और किसी भी तरह से अपनी चूचियों को ढकने की दरकार नहीं की। बल्की उसका बेटा और अच्छे से चूचियों का नजारा देख पाए इस तरह से वह बैठ गई थी। दवा लगाने की अद्भुत और अदम्य साहस की प्रक्रिया में जिस तरह का आनंद निर्मला को मिला था उस आनंद को प्राप्त करके निर्मला खुश थी।
दूसरी तरफ शुभम भी हैरान और दंग था। दवा लगाने वाली युक्ति इस तरह से और इतनी अद्भुत तरीके से काम कर जाएगी इस बारे में वह भी पूरी तरह से दृढ़ निश्चयी नहीं था। लेकिन सब कुछ बहुत अच्छे से पार हो गया था इसीलिए उसके चेहरे पर विजयी मुस्कान तैर रही थी। यह दीजिए अकेले सिर्फ शुभम का नहीं था बल्कि निर्मला का भी था बल्कि जो कह दो कि अपनी मंजिल को पाने की यह पहली सीढी थी जिसे दोनों ने बहुत बखूबी पार कर ली थी।
उस दिन के बाद से दोनों एक दूसरे से कतराने लगे,,, दोनों के मन में शर्म महसूस हो रही थी इसलिए दोनों एक दूसरे को मुंह दिखाने से शर्मा रहे थे। निर्मला अपने बेटे को संपूर्ण निर्वस्त्र अवस्था में देखकर और वह भी उसके दमदार हथियार के साथ,,,,, यह नजारा ही उसके प्यासे मन को तड़पाने के लिए काफी था। सोते जागते उठते बैठते निर्मला की आंखों के सामने उसके बेटे का गठीला बदन और उसका हथियार नजर आ रहा था,, जिसके बारे में सोच कर ही दिन भर में न जाने कितनी बार उसकी पैंटी गीली हो जाती थी। अब हाल यह था कि बैगन से भी उसकी प्यास नहीं बुझती थी। अब तो वह अपने बेटे के लंड की प्यासी हो चुकी थी।
वह आगे बढ़ना चाहती थी शुभम भी आगे बढ़ना चाहता था लेकिन दोनों शर्म की वजह से अब आगे बढ़ने से कतरा रहे थे जबकि दोनों के बदन में आग बराबर की लगी हुई थी। शुभम तो अपनी मां को अपने ही हाथों से अपनी बुर को मसलते हुए देख कर जिस तरह से वो गरम सिसकारी ले रही थी उस पल को याद करके वह ना जाने कितनी बार मुट्ठ मार चुका था। एक बात की कसक उसके मन में भी रह गई थी की अपनी मां को अपने हाथों से अपनी रसीली बुर मसलती हुए देखा जरूर था लेकिन उसने इतना कुछ होने के बावजूद भी अपनी मां की नंगी बुर के दर्शन नहीं कर पाए थे। उस दिन भी निर्मला अपने बेटे के सामने अपनी बुर मसाले जरूर रही थी लेकिन पैंटी में हाथ डालकर इस वजह से शुभम को अपनी मां की रसीली बुर के दर्शन करना दुर्लभ हो चुका था।
उसने अपनी मां के बदन के लगभग हर अंग को देख चुका था,,,, लेकिन अभी तक उस द्वार को नहीं देख पाया था जिस द्वार मे से गुजरने का हर एक मर्द का सपना होता है। शुभम अभी तक उसी द्वार के भूगोल और आकार से बिल्कुल अंजान और अज्ञान था। इसलिए तो उसकी तड़प और ज्यादा बढ़ जाती थी।

खैर जैसे तैसे दिन गुजरने लगे दोनों अपनी प्यासी नजरों को हमेशा एक दूसरे के अंगों को देखने के लिए इधर उधर ताड़ में ही रखते थे। लेकिन अब दोनों को कुछ खास सफलता प्राप्त नहीं हो पा रही थी। दोनों अंदर ही अंदर एक दूसरे से डरे हुए थे। धीरे-धीरे सब कुछ सामान्य होने लगा दोनों एक दूसरे से बातें भी करने लगे लेकिन उस दिन वाली बात को याद करके दोनों के चेहरे पर शर्म के भाव साफ नजर आ जाते थे। हालांकि उस पल को याद करके आज निर्मला के मन में जरा भी ग्लानि महसूस नहीं होती थी बल्कि उस पल को याद करके उसके मन में तन-बदन में एक रोमांच सा फैल जाता था।

स्कूल में शीतल से रोज ही मुलाकात होती थी,,,, फैशन के मामले में वह एक कदम आगे ही थी,,,,, आज निर्मला स्कूल पहुंची तो शीतल को देखकर दंग रह गई,,,,, आज शीतल कुछ ज्यादा ही खूबसूरत लग रही थी। उसने आसमानी रंग की साड़ी और साथ में मेचींग. के रंग की ब्लाउज भी पहनी हुई थी। जो कि उसका ब्लाउज आगे से एकदम डीप था जिसमें से उसकी बड़ी-बड़ी चूचीयो की गहरी लकीर एक दम साफ नजर आ रही थी जिसे उसने अपनी एक ट्रांसपेरेंट साड़ी से ढक रखी थी ढंक क्या रखी थी,,,,, ट्रांसपेरेंट साड़ी की वजह से उसकी चूचियों का आकार और भी ज्यादा मादक लग रहा था। जिस पर लगभग सभी की नजर जा रही थी,,, और उसका ब्लाउज पीछे से एकदम खुला हुआ था जिसमें से उसकी नंगी चिकनी पीठ साफ साफ नजर आ रही थी जोकि ब्लाउज को बांधने के लिए मात्र एक पतली सी डोरी ही थी बाकी सब कुछ खुला हुआ था। यह देखकर निर्मला बोली।

वाह शीतल आज तो तुम पूरे स्कुल पर कहर ढा रही हो,,,,( निर्मला मुस्कुराते हुए बोली,,,, जवाब में शीतल भी मुस्कुरा कर बोली।)

थैंक यू निर्मला,,,,, रोज तुम कहरं ढाती हो सोची कि चलो आज मैं भी थोड़ा बहुत कहर ढा दूं,,,,,


नही शीतल मैं सच कह रही हूं तुम आज बहुत खूबसूरत लग रही हो,,,,, तुम आज बहुत ही स्टाइलिश कपड़े के साथ साथ बहुत ही खूबसूरत ब्लाउज पहन कर आई हो जो कि तुम्हारे बदन पर बहुत अच्छी लग रही है। ( निर्मला की बातें सुनकर शीतल मुस्कुराने लगी।) लेकिन शीतल तुमने जिस तरह का ब्लाउज पहने हो उसी से तुम्हारे बदन का बहुत कुछ हिस्सा नजर आ रहा है और देख रही हो सारे स्कूल के विद्यार्थी तुम पर एक नजर डाल कर ही आगे बढ़ रहे हैं।


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Rohit Kapoor
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Re: अधूरी हसरतें

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( निर्मला की इस बात पर शीतल ठहाके मार कर हंसने लगी,,, और हंसते हुए ही बोली।)

मेरी प्यारी निर्मला रानी यहीं तो मैं चाहती हूं और ईसलिए तो आज इस तरह के कपड़े पहनीे हुं ताकि मुझे भी तो पता चले कि इस उम्र में भी मेरे बदन में अभी भी बहुत कुछ बाकी है जो कि नौजवानों और सभी उम्र के मर्दों को अपनी तरफ खींच सकती हुं। ( शीतल की यह बात सुनकर निर्मला एकदम से दंग रह गई क्या शीतल क्या कह रही है तभी वह बात को आगे बढ़ाते हुए बोली।) देखो निर्मला अपना बदन दिखा कर किसी भी मर्द को बहकाया जा सकता है उनसे जो चाहो वह काम लिया जा सकता है। अब देखो ना यह सारे लड़के और शिक्षक भी मेरी तरफ कैसे लार टपकाते हुए देखे जा रहे हैं। सच बताऊं तो निर्मला मुझे इन मर्दों को अपने हुस्न का जलवा दिखा कर तड़पाने में बेहद आनंद मिलता है। सच में अपनी खूबसूरत बदन का जलवा दिखा कर जब यह मर्द लोग तड़पकर तुम्हारी तरफ देखते हैं तो अंदर ही अंदर इतना सुकून मिलता है कि पूछो मत । ( निर्मला शीतल की बात को बड़े ध्यान से सुन रही थी उस की कही बातें वास्तव में सच ही थी जो की निर्मला भी मान रही थी। क्योंकि उसे भी इस बात का एहसास अच्छे से था उसे भी बेहद आनंद की प्राप्ति हुई थी जब उसने अपनी बड़ी बड़ी चूचीयो को उसके बेटे को दिखाई थी और शुभम खुद अपनी मां की बड़ी बड़ी चूची और को देखकर जिस तरह से पागल हो कर तड़प रहा था उन्हें हाथों में पकड़ कर दबाने के लिए,,,यह देख के निर्मला को बेहद आनंद की प्राप्ति हुई थी। शीतल हंस हंस के निर्मला को बदन दिखाने के फायदे समझा रहे थे जो कि निर्मला को भी काफी पसंद आ रही थी तभी शुभम वहां आया और शीतल को अपनी मां से बातें करता हुआ देखकर बोला।)

नमस्ते शीतल मेंम,,,,( इतना कहने के साथ ही शुभम की नजर शीतल की ट्रांसपेरेंट साड़ी में से झांक रही शीतल की बड़ी बड़ी चूचीयो की गहरी लाइन पर पड़ी,,,, जिसे देखकर शुभम मस्त हो गया अनुभवी शीतल नें शुभम की नजरों के निशाने को भांप ली और मुस्कुराते हुए बोली। )
नमस्ते बेटा और पढ़ाई कैसी चल रही है तुम्हारी,,,,,

एकदम ठीक चल रही है मैंम,,,,,(इतना कहने के साथ ही शुभम ने एक बार फिर से शीतल के बदन पर ऊपर से नीचे तक नजर फेर लिया,,,, जवाब में शीतल मुस्कुरा भर दी।)
,,,,
अच्छा मम्मी ने क्लास में जाता हूं,,,,,, ( इतना कहने के साथ ही वह क्लास की तरफ जाने लगा लेकिन जाते जाते एक बार फिर से पीछे मुड़कर शीतल पर नजर फेर लिया। उसको जाते हुए देखकर शीतल मुस्कुरा कर बोली,,,,,)

देख रही हो निर्मला मेरे हुश्न के जादु से तुम्हारा बेटा भी नहीं बच पाया देखी नहीं किस तरह से वह मेरी चूचियों को घूर रहा था।
( शीतल की बात सुनकर निर्मला हैरान रह गई,,,,, क्योंकि निर्मला ने इस बात पर गौर नहीं की थी लेकिन उसे विश्वास था कि जिस तरह के कपड़े सीतल ने पहन रखे हैं उस हिसाब से शुभम जरूर शीतल के कहे अनुसार उसके चुचियों को देख रहा होगा,,,, लेकिन फिर भी वह अपने बच्चे का बीच बचाव करते हुए बोली,,,,।)

नहीं शीतल तुम्हें गलतफहमी हो रही है।


नहीं निर्मला मैं सच कह रही हूं तुम्हारा बेटा मेरी चूचियों कोई घूर रहा था और गैरंटी से उसका लंड भी खड़ा हो गया होगा।
( शीतल की यह बात सुनकर निर्मला की हालत खराब होने लगी,,,, डर के मारे नहीं बल्कि इस बात से कि क्या सच में शीतल की चूची को देख कर उसकी बेटे का लंड खड़ा हो गया होगा। शीतल की बात सुनकर निर्मला बोली)


तुम्हें सिर्फ नजर का धोखा हुआ है वैसे भी मेरा शुभम ऐसा नहीं है।

अरे निर्मला (मुस्कुराते हुए )तुम बहुत भोली हो तुम इन लड़को की नजरों से वाकिफ नहीं हो इसलिए ऐसा कह रही हो अगर इन लड़कों को मौका मिले तो यह अपनी मां पर भी चढ़ जाएं।( शीतल की यह बात सुनकर निर्मला झट से बोली )

लड़का तो चढ़ जाए पर क्या मां करने देगी,,,,,


क्यों नहीं करने देगी किस औरत को जवान लंड पसंद नहीं है। मेरी और तुम्हारी उम्र में निर्मला जवान लंड हीे हम लोगों की प्यास बुझा सकते हैं।
( निर्मला सीतल की बात सुनकर एकदम हैरान हो गई थी उसके पास शब्द नहीं थे जो कि शीतल की बात का जवाब दे सके क्योंकि अपने बेटे की हरकत वह देख चुकी थी। कभी बात को आगे बढ़ाते हुए शीतल बोली।)

सच कहूं तो निर्मला अगर तुम भी अपने बेटे को मौका दो तो वह भी तुम्हारे ऊपर चढ़ने के लिए तैयार हो जाए (इतना कहकर वह ठहाके लगा कर हंसने लगी)

क्या शीतल तुझे जरा भी शर्म नहीं आती है सब कहते हुए वह मेरा बेटा है।


तो क्या हुआ निर्मला मेरा भी होता तो मैं भी अगर मौका देती तो मेरा बेटा भी मेरे ऊपर चढ़ जाता,,,,
( इतना कहना था कि क्लास की घंटी बज गई और शीतल उसे बाय बोलकर क्लास की ओर चल दी। निर्मला भी अपने क्लास में चली गई।)
क्लास में पहुंचकर निर्मला का मन पढ़ाने में नहीं लग रहा था। क्लास में पहुंच कर उसे शीतल की ही बातें याद आ रही थी। उसके मन में बार-बार यही ख्याल आ रहा था कि क्या सच में उसका एक इशारा पाने मात्र से ही उसका लड़का उसे चोदने के लिए तैयार हो जाएगा,,,,, अपने से ही सवाल पूछ कर अपने से ही जवाब भी देती थी,,,,, अपने ही सवाल का जवाब ढूंढते हुए वह मन में सोचती थी कि,,,, हां सच में उसका एक इशारा मिलने पर ही उसका बेटा उसे चोदने के लिए तैयार हो जाएगा क्योंकि,,, जब वह दवा लगाते हुए
अपने बेटे के लंड को जोर-जोर से मुठिया रही थी तो वह केसे उत्तेजित हो करके अपने कमर को ऐसे हिला रहा था जैसे कि मानो सच में चुदाई कर रहा हो,,,,, तभी तो वहां उसकी चूचियों को देखकर एकदम उत्तेजित हो गया था।
यही सब सोचते हुए निर्मला की पेंटिं पूरी तरह से गीली होने लगी थी। वह कुर्सी पर बैठे-बैठे ऐसा लग रहा था कि जेसे किसी गहरी सोच में डूब गई हो रिशेश की घंटी की आवाज से उसकी तंद्रा भंग हुई। सभी बच्चे क्लास से बाहर जाने लगे तभी उसे अपनी जांघों के बीच चिपचिपा सा महसूस होने लगा,,,, उसे एहसास हो गया कि उसकी पैंटी पूरी तरह से गीली हो चुकी है और उसे पेशाब भी लगी हुई थी इसलिए वह क्लास से निकल कर बाथरूम की तरफ जाने लगी। लेडीस और जेंट्स दोनों बाथरुम आपस में सटे हुए थे वह दोनों के बीच में एक लकड़े का पार्टीशन भर था।
निर्मला गांड मटकाते हुए बाथरूम तक पहुंच गई। और बाथरूम का दरवाजा खोलकर बाथरूम में घुस गई। बाथरूम का दरवाजा जैसे ही उसने बंद कि उसे पार्टीशन की दूसरी तरफ से कुछ चहल पहल की आहट सुनाई दी। उसने यह सोचा कि बाजू वाले बाथरूम में भी कोई पेशाब करने आया होगा उसी की ही चहल पहल की आवाज़ आ रही थी लेकिन तभी उसे धीरे-धीरे खुसर फुसर की आवाज भी सुनाई देने लगी। ऊसने पार्टीशन से उत्सुकतावश कान लगाकर सुनने की कोशिश की तो कुछ सुनाई नहीं दे पा रहा था आवाज इतनी हल्की थी कि सुन पाना भी बड़ा मुश्किल था। ऊसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था और उसे जोरो से पेशाब भी लगी थी,,,, तभी उसकी नजर पार्टीशन के लकड़े में पड़ी दो चार जगहो की दरारों पर गई तो तुरंत उसे इस बात की आशंका हुई कि कोई उस दरार में से झांक रहा है। अब यह शका उसके मन में होते हैं उसका दिल जोर जोर से धड़कने लगा। उसके मन में ढेर सारे सवाल आने लगे पर सोचने लगी कि क्या सच में दूसरी तरफ से इस तरफ पेसाब कर रही औरतों को देखता है अगर देखता होगा तब तो वह मुझे भी देखा होगा,,,,,, इस बात को सोचते ही उसका बदन एक अजीब से डर की कल्पना कर के सिहर उठा,,,
वह पक्के तौर पर अपनी शंका को कंफर्म करना चाहती थी इसलिए ऊसने यह सोची कि अगर वास्तव में कोई पेशाब करते हुए उस तरफ से देखता होगा तो उसकी आंख जरूर लकड़ी की दरार में सटी होगी जिसकी वजह से दूसरी तरफ जल रही ट्यूबलाइट का उजाला नजर नहीं आएगा,,,, और अगर ऐसा नहीं है तो दूसरी तरफ का उजाला दरार मै से जरूर नजर आएगा,,, इस बात को कंफर्म करने के लिए वह पार्टीशन से थोड़ा दूर जाकर खड़ी हो गयी और पार्टीशन की तरफ एक बहाने से देखने लगी,,,, तो वह यह देखकर एकदम हैरान हो गई की,,, पार्टीशन में पड़ी दरार में से जरा सा भी उजाला नजर नहीं आ रहा है और हल्का हल्का उसे दरार के अंदर से चहल-पहल का एहसास भी हो रहा था अब निर्मला का साथ एकदम यकीन में बदल गया था। और कोई एक नहीं था बल्कि पैरों की आवाज से एकदम साफ प्रतीत हो रहा था कि दो या तीन लड़के थे जो कि दूसरी तरफ से इधर झांक रहे थे। निर्मला की हालत और खराब होने लगी एक तो उसे जोरोंकी पेशाब भी लगी हुई थी और अगर यहां नहीं करती तो दूसरी कोई जगह भी नहीं थी की वहं वहां जाकर पेशाब कर सकें। बाथरूम में लगे आईने की तरह को देखकर वह सोच ही रहे थे कि आप करें तो करें क्या उसकी हालत खराब हुए जा रही थी पेशाब की तीव्रता के कारण वह अपने पैर इधर-उधर पटक रही थी। वह इसी कशमकश में थी की पेशाब करें तो कैसे करें अगर पेशाब करती है तो उसे कुछ शरारती लड़की पेशाब करते हुए देख लेंगे और उसकी नंगी गांड को भी देख कर गलत हरकतें कर सकते हैं। इतना तो तय हो चुका था कि शरारती लड़के जरूर वहां से पेशाब करते हुए देख रहे हैं। लड़के शरारती नहीं थे इसमे शायद उनकी गलती भी नहीं थी,,, निर्मला की इस उमर में भी दहकती जवानी को देख कर अच्छे लड़के भी शरारती बन गई थी यह तो उन लड़कों की रोज की बात थी पता तो निर्मला को आज ही चला था। वह लोग इसी पल का इंतजार करते थे कि कब निर्मला पेशाब करने के लिए बाथरूम जाती है और जब वह बाथरुम के लिए जाती तो वह लड़के धीरे धीरे से छिपते छिपाते निर्मला के पीछे पीछे चले आते थे,,, और जैसे ही निर्मला बाथरूम में घुसती वह लोग भी दुसरी तरफ से बाथरुम में घुस जाते थे और पार्टीशन की दरार में से निर्मला की मदमस्त गांड और उसकी रसभरी बुर में से पेशाब निकलता हुआ देख कर मस्त हो जाते थे। आज भी वह लड़की यही देखने के लिए बाथरूम में घुसे थे लेकिन आज निर्मला को इस बात का पता चल गया था वह कुछ और सोचपाती तभी उसे शीतल की कही बातें याद आ गई,,, और शीतल की बात याद आते ही जैसे उसे हिम्मत आ गई उसके बदन में रोमांच सा फैल गया। और वह भी शीतल की कही बातो पर गौर करते हुए आगे बढ़ी और जानबूझकर यह जानते हुए भी कि कुछ शरारती लड़के उसे देख रहे हैं वह धीरे धीरे अपनी साड़ी को ऊपर की तरफ उठाना शुरु कर दी और अगले ही पल उसने अपनी साड़ी को कमर तक उठा दी,,, साड़ी को कमर तक उठते ही उसकी भरावदार गांड जो की गुलाबी पैंटी में कैद थी े वह नजर आने लगी,,,जिसे देखकर वह लड़के भी मस्त होने लगी और अगले ही पल निर्मला ने अपनी गुलाबी पेंटी को भी नीचे सरका दी और बैठ कर पेशाब करने लगी,,, उसकी रोज की यह अदा देखकर शरारती लड़के वही खड़े खड़े मुठ्ट भी मारा करते थे।
स्कूल छूटना के बाद शीतल ने निर्मला को परिवार सहित उसके शादी की सालगिरह पर आने का निमंत्रण भी दे गई।
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Re: अधूरी हसरतें

Post by jay »

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Re: अधूरी हसरतें

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Mast update
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