अधूरी हसरतें

Post Reply
User avatar
jay
Super member
Posts: 9108
Joined: 15 Oct 2014 22:49
Contact:

Re: अधूरी हसरतें

Post by jay »

Nice update
Read my other stories

(^^d^-1$s7)
(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


Read my fev stories
(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
User avatar
Rohit Kapoor
Pro Member
Posts: 2821
Joined: 16 Mar 2015 19:16

Re: अधूरी हसरतें

Post by Rohit Kapoor »

jay wrote: 24 Sep 2017 15:50Nice update
kunal wrote: 25 Sep 2017 14:51nice update bhai
Thanks mitro
User avatar
Rohit Kapoor
Pro Member
Posts: 2821
Joined: 16 Mar 2015 19:16

Re: अधूरी हसरतें

Post by Rohit Kapoor »

निर्मला के लिए अब खिड़की पर ज्यादा देर तक खड़े रहना उचित नहीं था। क्योंकि ऐसे में शुभम की नजर उस पर पड़ सकती थी और वह नहीं चाहती थी कि शुभम उसे उसको इस हालत में उसे देखते हुए देखे इसलिए धीरे से रसोई घर में आ गई । रसोईघर में आते ही वह राहत की सांस ली,,,,, लेकिन अभी भी उसकी सांसे भारी चल रही थी। वह किचन प्योर को पकड़कर जोर-जोर से सांसे लेते हुए अभी अभी जो उसने अपने बेटे के कमरे में देखकर आई उस बारे में सोचने लगी।
उसने जो देखी थी उसे देखते हुए भी,,, उसे अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हो रहा था। भरोसा होता भी तो कैसे उसने आज तक ऐसा नजारा ना देखी थी ना देखने की उसे उम्मीद थी वह तो अनजाने में ही वह अपने बेटे को उसके कमरे में बुलाने गई और वह अंदर का गरम नजारा देख कर गर्म हो गई। कमरे के नजारे में उसके बदन में हलचल सी मचा रखी थी बार-बार उसकी आंखों के सामने उसके बेटे का गठीला कसरती बदन और उस के अंडरवीयर में बना हुआ तंबू तैर जा रहा था।
कसम की हालत उस बारे में सोच-सोच कर ही खराब हुए जा रही थी उसे अपनी जांघों के बीच रिसाव सा बड़ा साफ साफ महसुस हो रहा था । निर्मला को समझ में नहीं आ रहा था कि आखिरकार उसे ऐसा क्यों हो रहा है ।आज से पहले उसने कभी भी ऐसी स्थिति का सामना नहीं की थी। उत्तेजना के मारे उसके खुद का चेहरा सुर्ख लाल हो गया था।
बार बार निर्मला को उसके बेटे का बड़ा तंबू ही याद आ रहा था। वह अंडरवियर में बने तंबू की तुलना बाजार से लाए हुए बेगन से मन ही मन कर रही थी। उसे यह भी अच्छी तरह से मालूम था की बेगन का आकार और उसका साईज ज्यादा बड़ा था लगभग वह अपने पति के लंड से डबल साइज़ का और डबल मोटाई का ली थी। लेकिन जब उसने अपने बेटे के अंडरवीयर में तना हुआ वह हथियार देखी तो मन ही मन उसके आकार के बारे में कल्पना करके ही वह पूरी तरह से कांप गई,,,,, उसकी कल्पना उस क्षण हकीकत में बदल गई जब शुभम ने अपनी अंडर वियर को नीचे तक सरकाया,,,,, और जैसे ही उसने अपनी अंडर वियर को नीचे तक लाया उसका तो बड़ा मोटा और लंबा एकदम टनटना कर खड़ा लंड नजर आने लगा जो की निर्मला के वजूद को अंदर तक हिला दिया था। निर्मला तो बस देखती ही रह गई उसे तो कुछ समझ में नहीं आया कि आखिरकार यह हो क्या रहा है। वह मंत्रमुग्ध सी बस एक टक अपने बेटे के खड़े लंड को देखते ही रह गई। सुभम भीे आश्चर्यचकित हो करके अपने खड़े लंड को देख रहा था,,,,, जिस तरह से शुभम आश्चर्यचकित और उत्सुक हो करके अपने खड़े लंड को देख रहा था,,,, ऊसै देखकर निर्मला को भी आश्चर्य हुआ था। लेकिन जिस हालात से वह उस समय गुजर रही थी उस बारे में उसे सोचने का बिल्कुल भी मौका ही नहीं मिला था। कुछ ही सेकंड तक उसे अपने बेटे का लंट देखने का मौका मिला था। वह तो अभी जी भर के अपने बेटे के लंड का दीदार भी नहीं कर पाई थी कि शुभम ने तुरंत अपने अंदर वियर को वापस पहन लिया।
निर्मला को यह देखकर बहुत हैरानी हो रही थी कि उसके बेटे के लंड के साइज के बराबर ही उसने बड़े बड़े बेगन लेकर आई थी। इसलिए तो वह क्षण उसके दिमाग से निकल नहीं पा रहा था । बार-बार निर्मला का हाथ उसकी जांघों के बीच उसकी बुर को टटोलने के लिए चले जा रहा था,,,,, जो की पूरी तरह से गीली हो चुकी थी। निर्मला की हालत पूरी तरह से खराब थी उसकी उत्तेजना का कोई ठिकाना ना था और उसने आज तक इस तरह की उत्तेजना अपने बदन में कभी महसूस नहीं की थी हां एसी उत्तेजना उसे तभी महसूस होती थी जब वह अपने पति के साथ बिस्तर पर होती थी लेकिन जिस तरह से,,,, वह अपने बिस्तर पर पति के होने के बावजूद भी प्यासी रह जाती थी इस समय भी उसका हाल ऐसा ही था उसकी उत्तेजना का कोई भी तोड़ नहीं था। शुभम का टनटनाया हुआ लंड निर्मला को बुरी तरह से परेशान किए हुए था। अपने हाथों से ही अपनी प्यास बुझाने का अद्भुत
हुनर निर्मला के हाथों में नहीं था या यूं कह सकते थे कि उसके संस्कार उसे हुनर को सीखने में अवरोध पैदा करते थे।
रसोई घर में होने के बावजूद भी खिड़की के पास से पैदा हुई उसकी उत्तेजना अभी तक शात नहीं हुई थी जिसकी वजह से उसका पूरा बदन पसीना पसीना हो गया था ।उसका गला सूख रहा था उससे जब बर्दाश्त नहीं हुआ तो वह पंखा चालू कर दी,,,,, पंखे की ठंडी हवा जब उसके बदन को स्पर्श करने लगी तो उसे थोड़ी राहत महसूस हुई,,,,,, और वह फ्रिज खोल कर उसमें से ठंडे बोतल की पानी निकाल कर पीने लगी।
थोड़ी देर बाद निर्मला की स्थिति कुछ हद तक सामान्य होने लगी।,,,,,,

वह सब कुछ भूलकर रसोई में व्यस्त होने की पूरी कोशिश करने लगी लेकिन कुछ देर के लिए वह भूल भी जाती थी लेकिन फिर से उसका मन उसी घटना को याद करके फिर से बह़कने लगता था। वह सब कुछ भूल जाना चाहती थी इसलिए मन को थोड़ा कठोर करके वह रसोई का काम करने लगी।

दूसरी तरफ शुभम काफी परेशान था उसे भी मालूम था कि अब समय हो गया है रसोई घर में जाने का क्योंकि वह इस समय रसोई घर में जाकर अपनी मां की मदद किया करता था। लेकिन उसकी अवस्था इस समय घर से बाहर निकलने की बिल्कुल भी नहीं थी क्योंकि ऐसे जाने पर उसे इस बात का डर था कि उसकी मां की नजर उसके पजामे में बने तंबू पर जरूर जाएगी और अगर ऐसा हुआ तो वह क्या सोचेगी,,,,
यही सब सोचकर उसका मन और ज्यादा घबरा रहा था वह रसोईघर में जाना चाहता था अपनी मां की मदद करना चाहता था लेकिन ऐसे हाल में वह घर से बाहर भी नहीं निकल सकता था। दीवार पर टंगी घड़ी पर नजर जाते ही वह और घबराने लगा क्योंकि समय काफी हो चुका था और फिर डर था कि ऐसे में कहीं उसकी मां कमरे में ही ना आ जाए।
रसोई घर में जाने की जल्दी और घबराहट की वजह से उसके लंड में आया हुआ तनाव धीरे-धीरे शांत होने लगा।
वह मन ही मन भगवान को धन्यवाद देने लगा और जल्दी से अपने कपड़े पहन कर के रसोई घर में आ गया। आते ही वह अपनी मां से बोला जोंकि सब्जियां काट रही थी।

सॉरी मम्मी मुझे आज कसरत करने में देर हो गई,,,,,,
( शुभम की बातें सुनकर निर्मला कुछ बोली नहीं लेकिन उसे यह जरूर पता था कि कसरत करने में नहीं शायद कुछ और करने में ऊसे देरी हो गई थी। कसरत की बात से एक बार फिर से निर्मला को कमरे के अंदर का दृश्य याद आने लगा उसकी आंखों के सामने फिर से उसके अंडर वीयर में बना तंबू नजर आने लगा। उस अलौकिक और उन्मादक छण को याद करके एक बार फिर से उसकी बुर उसकी पैंटी को गीली करने लगी । उससे कुछ भी बोला नहीं जा रहा था।
( अपनी मां को शांत देखकर शुभम रसोई घर में प्रवेश करते हुए सीधे फ्रिज के करीब गया और वह भी उसमें से पानी की बोतल निकाल कर पीने लगा लेकिन तभी उसके हाथ से बोतल का ढ़क्कन नीचे गिर गया,,,,, वह ढक्कन को उठाने के लिए नीचे झुका तो उसकी नजर नीचे गिरे बेगन पर पड़ी और वह उसे उठा लिया जो कि एकदम ताजा मोटा और तगड़ा था बिल्कुल उसके लंड की तरह,,,,,,, बेगन को देख कर उसे आश्चर्य हुआ क्योंकि वह जानता था कि घर में बैगन कोई भी नहीं खाता था। वह पानी के बोतल को वापस फ्रिज में रखकर फ्रिज को बंद कर दिया,,,, लेकिन वह अपने हाथ में अभी भी उस मोटे तगड़े बेगन को लिया हुआ था इस बारे में निर्मला को कुछ भी मालूम नहीं था वह तो उत्तेजित अवस्था में सब्जी काटने में ही व्यस्त थी। वह उस कामुक क्षणों को याद करते हुए सब्जियां काटे जा रही थी कि तभी उसकी आंखों के सामने शुभम ने उस मोटे तगड़े लंबे बैंगन को लाकर दिखाने लगा,,,,,,,, निर्मला तो एक बैगन को देख कर एक दम से चौंक गई बैगन को सुभम ने अपने हाथों में पकड़ा हुआ था। निर्मला की आंखों के सामने बार बार वही दृश्य नजर आ रहा था इस वजह से एक पल को तो उसे ऐसा लगने लगा कि शुभम खुद अपने मोटे लंड को अपने हाथ से पकड़ कर हिलाते हुए उसे दिखा रहा है।यह पल उसे इतना ज्यादा उत्तेजित कर देने वाला लगा कि कुछ सेकंड के लिए उसकी बुर उत्तेजित अवस्था में फुलने पिचकने लगी और उसमें से दो चार बूंद मदन रस की नीचे टपक पड़ी ।
शुभम तो उस बैगन को अपनी मां को सिर्फ औपचारिक रुप से ही दिखा रहा था क्योंकि वह जानता था कि मैं कल घर में कोई खाता नहीं है तो बैगन किसने खरीद कर लाया। इसलिए वह अपनी मां को बेतन दिखाते हुए बोल रहा था कि,,,,,


मम्मी यह बेगन घर में कैसे आया अपने घर में तो बेगन किसी को पसंद ही नहीं है।,,,,,,
( निर्मला को अपने बेटे का यह सवाल का जवाब देना बड़ा ही मुश्किल लग रहा था ऐसा लग रहा है कि जैसे वह घर में बेगन लाकर कोई बहुत बड़ा गुनाह कर दि हो,,,, उसे कोई भी जवाब सूझ नहीं रहा था आखिर वह अपने बेटे को क्या जवाब दें ईसी उधेड़बुन में लगी हुई थी। तभी वह हकलाते हुए बोली।)

कककककक,,,, कुछ,,,,, नही,,,,,,, बेटा मार्केट में सब्जियां खरीद रही तो,,,,,,तो,,,, बेगन मुझे बहुत,,,,,, बहोत,,,,,, अच्छे और ताजे लगे,,,,, तो मैंने उसे भी खरीद ली,,,,,,,,,,


लेकिन मम्मी बेगम तो कोई खाता ही नहीं,,,,,,( शुभम कहते हुए बेगन को ऊपर नीचे करते हुए हीला रहा था। यह देख निर्मला का गला सूखने लगा था क्योंकि जिस तरह से वह हिला रहा था,,,, ना जाने क्यों ऊसे ऐसा लग रहा था कि शुभम बेगन नहीं बल्कि अपना लंड उसे दिखाते हुए हिला रहा है ।
निर्मला की बुर में अजीब सी हलचल मचने लगी थी । वह अपने बेटे से आंख मिलाने से कतरा रही थी। अपने बेटे के सवाल का जवाब वह फिर से हकलाकर देते हुए बोली।

अरे,,,, तू तो सवाल पर सवाल किए जा रहा है मेरी सहेली थी जो मार्केट में मिल गई उसने मुझे बैगन बनाने का नया तरीका बताइ और यह भी बताई कि बड़ा ही स्वादिष्ट बनता है,,,,,, इसलिए बस ऐसे ही ट्राई करने के लिए ले ली,,,, अगर तुझे ऐतराज है तो रहने देती हूं,,,,,,,,


नहीं मम्मी मुझे कोई एतराज नहीं है मैं तो बस ऐसे ही पूछ रहा था,,,,,,, ( इतना कहने के साथ वह फिर से फ्रिज के करीब गया और फ्रीज में उस बैगन को रख दिया,,,,,मम्मी आज मुझे देर हो गया ना इसलिए आपको सब्जी काटनीं पड़ रही है आप मुझे कोई और काम बताइए मैं कर दूंगा,,

शुभम अपनी मां के करीब आकर बोला निर्मला सब्जी काट रही थी लगभग वह सारी सब्जियां काट चुकी थी। वह कटी हुई सब्जी को एक तरफ रखते हुए बोली,,,,,



कोई बात नहीं बेटा मैं काम कर लूंगी,,,,, तुम जाओ जाकर पढ़ाई करो,,,,,,,


नहीं मम्मी मुझे कुछ तो काम बोलो करने के लिए मैं आपका हाथ बटाना चाहता हूं।।। मुझे भी अच्छा लगता है जब मैं आपका हाथ बटाता हूं तो,,,,,, वैसे भी आप अकेले काम कर कर के थक भी जाती हैं और बोर भी हो जाती होंगी,,,,,

( शुभम की बात सुनकर निर्मला मुस्कुराने लगीे और बोली,,,)

अच्छा ठीक है तू मेरा हाथ बट़ाना चाहता है तो,,,, एक काम कर जाकर उस डीब्बे में से आटा निकाल कर ले आ,,,,,,
( निर्मला उंगली से निर्देश करते हुए शुभम से बोली लेकिन बोलते समय उसकी नजर शुभम की जांघों के बीच चली गई जहां पर उसने उत्तेजित कर देने वाला लंबा सा तंबू देखी थी।
जिसे देखते ही उसके बदन में कामोतेजना की लहर फैल गई थी जिसका असर उसे अब भी अपने बदन में देखने को मिल रहा था। हालांकि इस समय तो शुभम की जांघों के बीच का वह उभार शांत था।लेकिन फिर भी ऊस जगह पर निर्मला की नजर जैसे गई उसके बदन में एक बार फिर से उन्माद से भरी हुई हलचल होने लगी,,,,,,,, निर्मला झट से अपनी नजरें घुमा ली,, शुभम अपनी मां की बात सुनकर डीब्बे मै से आटा लेने के लिए गया। वह किचन के नीचे बड़े ड्रोवर में रखे हुए डिब्बे को बाहर निकाल कर ऊसमे से आटा निकालने लगा,,,,, और निर्मला आटा गूथने के लिए बर्तन किचन पर रखने लगी,,,,
बर्तन को किचन पर रखने की वजह से बार-बार निर्मला की हाथों की चूड़ियां खनक रही थी जिस पर शुभम का ध्यान जाते ही वह हटा निकालते हुए हैं नजरें घुमा कर अपनी मां को देखने लगा,,,,,, जैसे ही वह अपनी मां की तरफ देखा उसकी नजर सीधे निर्मला की बड़ी-बड़ी और भरावदार गांड पर गई,,,,, जो कि काम करने की वजह से बदन की हलन चलन उसके नितंबों में एक बड़े ही कामुक तरीके की थिरकन पैदा कर रही थी। जिससे उसकी बड़ी-बड़ी और नरम नरम लचीली गांड स्प्रींग की तरह हल्के हल्के ऊपर-नीचे हो करके एक अद्भुत उभार और थिरकन पैदा करते हुए माहौल को गर्म कर रही थी।
शुभम को तुरंत उसके दोस्तों की कही गई बात याद आने लगी जो कि उसकी मां की बड़ी बड़ी गांड के बारे में ही कह रहे थे। निर्मला अपनी साड़ी के किनारे को एक्साइट करके कमर में डाली हुई थी जिसकी वजह से वहां और भी ज्यादा खूबसूरत और कामुक लग रही थी। शुभम जो देखा तो देखता ही रह गया। वह ऐसा बिल्कुल भी नहीं करता लेकिन उसके दोस्तों की कही गई बात याद आते ही उसकी नजर उसकी मां की खूबसूरत नितंबों से हट ही नहीं रही थी।
वह मंत्रमुग्ध सा अपनी मां की खूबसूरत बदन और उसकी बड़ी बड़ी गांड को ही निहारने लगा,,,,,,, डिब्बे से आटा निकालना तो वह भूल ही चुका था। शुभम की जांघों के बीच उसके हथियार में जो की कुछ देर पहले ही शांत हुआ था एक बार फिर से सुरसुराहट होने लगी।
दूसरी तरफ निर्मला अपने बेटे के लंबे तगड़े लंड को याद करके फिर से उत्तेजित होने लगी थी,,,, वह जानती थी कि उसका बेटा उसके ही पीछे बने बड़े ड्रोवर में से आटे का डिब्बा निकालकर उसमें से आटा निकाल रहा है ।लेकिन वह फिर भी उससे नजरें मिलाने में शर्मा रही थी अजीब सी उत्तेजना का अनुभव करते हुए निर्मला का बदन कसमसा रहा था। फिर से उसकी बुर से नमकीन पानी का रिसाव होना शुरू हो गया था।
शुभम को आटा निकालने मे कुछ ज्यादा ही समय लग रहा था। इसलिए वह नजरें घुमा कर पीछे की तरफ देखीे तो वह शुभम को अपनी ही तरफ देखता हुआ पाई,,,,,, लेकिन जैसे ही निर्मला ने शुभम की नजरों के सिधान पर गौर की तो उसके बदन में हलचल सी मच गई क्योंकि उसके नजरों का सीधान सीधे ही उसकी बड़ी बड़ी गांड पर ही जा रहा था। निर्मला के बदन में हलचल सी मच गई उसे समझ में नहीं आ रहा था कि आखिरकार शुभम वाकई में उसके नितंबों को ही देख रहा है या कुछ और,,,,,,, फिर से गौर करने पर वह अच्छी तरह से समझ गई कि शुभम उसके बड़े बड़े नितंबो को ही घूम रहा था। एक पल के लिए तो इस तरह से अपने बेटे को अपनी नितंबों को घूरता पाकर उसके बदन में प्रचंड उत्तेजना का वेग दौड़ने लगा,,,,, उत्तेजना के मारे उसकी बुर फूलने पिचकने ं लगी उसकी आंखों के सामने एक बार फिर से उसके बेटे का टनटनाया हुआ लंड तैरने लगा। उत्तेजना पल पल उसके बदन को अपने कब्जे में ले रही थी और यही हाल
शुभम का भी था ।वह भी अपनी मां के नितंबों को देखकर एकदम से कामुक हो गया था ।बार-बार उसके दोस्तों की कही गई गंदी बातें जो कि उसकी मां के बारे में ही थी,,, वह याद आ रही थी और ऊन बातों का असर उसके बदन पर पूरी तरह से छाने लगा था। वह अपनी मां के आकर्षक नितंबों को देखने में ऐसा मत भूल हुआ कि उसे इस बात का जरा भी एहसास ही नहीं हुआ कि उसकी मां उसे देख रही है।
इसमें कोई शक नहीं था कि निर्मला बेहद खूबसूरत और बेहद ही गठीले और आकर्षक बदन की मालकिन थी। जिसे कोई भी देख ले तो बस देखता ही रह जाए। शुभम के साथ ऐसा कभी नहीं हुआ था,,, लेकिन आज मैदान में दोस्तों की बातों ने उसके मन को भी पूरी तरह से बहका दिया था।
यह पल बड़ा ही नाजुक पल था । दोनों ही एक-दूसरे के बदन के प्रति आकर्षित हो रहे थे। दोनो पूरी तरह से गर्म हो चुके थे एक हल्की सी भी चिंगारी उनके पवित्र रिश्ते को तार तार कर देने में सक्षम हो सकती थी। शुभम तो जैसे किसी ख्यालों में खो सा गया था वह आटे के डिब्बे में खाली अपना हाथ डाले अपनी मां के भरावदार बदन और उसके नितंबों को घुरे जा रहा था।
निर्मला के लिए भी यह पल बर्दाश्त के बाहर था उसके बदन में भी कामोत्तेजना पूरी तरह से अपना कब्जा जमा चुकीे थी।
लेकिन तभी वह अपने आप को संभाल ली और बोली,,,,

शुभम कितनी देर लगा रहे हो जल्दी लाओ रोटियां बनानी है।
( निर्मला शुभम की तरफ से अपनी नजरें हटाकर वापस बर्तनों को इधर उधर करने में लग गई क्योंकि मुझे शर्म सी महसूस हो रही थी ।शर्म और उत्तेजना के मारे उसका चेहरा सुर्ख लाल हो चुका था,,,, वाह अपने बेटे को उसकी हरकत के लिए डांट भी नहीं सकती थी क्योंकि शुभम जो हरकत किया था,,,,,, इस हरकत के बारे में उसे एहसास दिलाने में भी निर्मला को शर्म सी महसूस हो रही थी वह अपने बेटे को डांटे भी तो किस बात के लिए जाते या उसके मुंह से निकल पाना बड़ा असंभव सा लग रहा था। इसलिए तो वह अपनी नजरें दूसरी तरफ फेरकर शुभम को आटा जल्दी लाने के लिए बोली थी और शुभम भी जैसे मेरे से ज्यादा हो अपनी मां की बात सुनकर,,,,,, डीब्बे मै से जल्दी-जल्दी आटा निकालने लगा,,,,,, और जल्दी से वह घबराते हुए अाटा ला करके अपनी मम्मी को थमा दिया,,,,,, आटा थामते समय जैसे ही निर्मला की नजर शुभम की टांगों के बीच गई तो एक बार फिर से उसका बदन गनंगना गया। शुभम के पजामे मे फिर से लंबा सा तंबू बना हुआ था। जिसका एहसास होते ही शुभम शर्मा के रसोई घर से बाहर चला गया।
User avatar
007
Platinum Member
Posts: 5355
Joined: 14 Oct 2014 17:28

Re: अधूरी हसरतें

Post by 007 »

nice update
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

(¨`·.·´¨) Always

`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &

(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !

`·.¸.·´
-- 007

>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>
Post Reply