अधूरी हसरतें
- xyz
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Re: अधूरी हसरतें
nice update bhai
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(मैं और मेरा परिवार Running )........
(रेशमा - मेरी पड़ोसन complete).....(मेरी मस्तानी समधन complete)......
(भूत प्रेतों की कहानियाँ complete)....... (इंसाफ कुदरत का complete).... (हरामी बेटा compleet )-.....(माया ने लगाया चस्का complete). (Incest-मेरे पति और मेरी ननद complete ).
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- Rohit Kapoor
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Re: अधूरी हसरतें
Thanks dosto
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(संयोग का सुहाग)....(भाई की जवानी Complete)........(खाला जमीला running)......(याराना complete)....
(संयोग का सुहाग)....(भाई की जवानी Complete)........(खाला जमीला running)......(याराना complete)....
- Rohit Kapoor
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Re: अधूरी हसरतें
दूसरे दिन स्कूल में वह काफी परेशान नजर आ रही थी,, रविवार की घटना उसे झकझोर कर रख दी थी। बच्चों को पढ़ाने में भी उसका मन बिल्कुल नहीं लग रहा था। क्लास में बैठे-बैठे ही वह रविवार की घटना को याद करके उत्तेजित हो जा रही थी। जब भी वह किताब खोलकर उसे पढ़ने में अपना ध्यान लगाते तो किताब में बने चित्रों में भी उसे अपने ही बेटे का खड़ा मोटा लंबा लंड नजर आ रहा था,, जिसकी वजह से उसकी बुर फिर से रिसने लगी थी। उन अति उत्तेजक पलों को याद करके वह परेशान भी हो रही थी,,, और उसके मन के कीसी कोने में उन पलों को लेकर उसके बदन में एक उमंग सी भी जाग जा रही थी। इस परिस्थिति से निकलने का उसे कोई भी रास्ता सूझ नहीं रहा था ऐसा लग रहा था कि वह अपनी मंजिल से कहीं,,दुर ,, इस भूलभुलैया भरे रास्ते में कहीं खो गई है। जब भी वहं उन बातों से अपना पीछा छुड़ाती तो उसे शीतल के द्वारा कही गई बेगन की उपयोगिता के बारे में बात याद आ जाती तो उसकी आंखों के सामने मार्केट से खरीदी हुई लंबी चोड़ी और मोटी बैगन नजर आने लगती।
निर्मला अजीबो किस्म की कशमकश में डूबी हुई थी। इसी कशमकश में कब छुट्टी की घंटी बज गई उसे पता ही नहीं चला।
अपनी गाड़ी की तरफ जाते समय उसे रास्ते में शीतल मिल गई जो उसे देखते ही दौड़ती हुई उसके पास आए और बोली।
क्या यार निर्मला आज कहां रह गई थी रिशेश में भी मिलने नहीं आई। कुछ परेशान सीे लग रही हो क्या हुआ? ( निर्मला के चेहरे की तरफ देखते हुए बोली।)
कुछ नहीं शीतल बस सिर में थोड़ा सा दर्द है इसलिए किसी काम में मन नहीं लग रहा।
( निर्मला की बात का गलत मतलब निकालते हुए शीतल अपनी आंखों को गोल-गोल ना नचाते हुए मजाकिया अंदाज में बोली।)
ओहहह,,,, हो,,,,,,,, लगता है कि हमारे भाई साहब ने रात भर आपको सोने नहीं दिया है । खूब जमकर सेवा हुई है तुम्हारी।
( शीतल की बात सुनते ही निर्मला को ऐसा लगने लगा कि जैसे किसी ने उसके घाव पर नमक छिड़क दिया हो,,,, और अपने घाव को वह किसी से दिखा भी नहीं सकती थी। हाल ऐसा हो गया था निर्मला का कि जैसे सांप किसी छछूंदर को निगल जाता है और ना उसे अंदर ही निगल पाता है और ना ही बाहर ऊगल पाता है। फिर भी बड़े मायूस लफ्जों से शीतल को जवाब देते हुए बोली।),,,,,,,,,
नहीं यार शीतल तुम हर बात का गलत मतलब,,,,,,,, निकालती हो,,,,,, ऐसा कुछ भी नहीं है जैसा तुम सोच रही हो।
( निर्मला का जवाब सुनकर शीतल मुस्कुराते हुए बोली।)
बोल लो जितना झूठ बोलना है,,,,,, आखिर सच तो तुम कभी बताओगीे नहीं,,,,,,
नहीं शीतल कल से मेरे सर में दर्द हो रहा है इसलिए मेरा मन किसी काम नहीं लग रहा,,,,,, हां तुम्हें देखकर ऐसा जरूर लग रहा है कि शायद तुम रात भर सोई नहीं हो,,,,,,
( निर्मला ऐसा कहने के साथ ही उसे वैगन वाली बात याद आ गई। उसका मन कह रहा था कि वह उससे बैगन के बारे में पूछे लेकिन बोलने से हीचकींचा रही थी वह भी जानना चाहती थी कि शीतल में उस बैगन का उपयोग कि या नहीं लेकिन बोले कैसे औरतों की बात औरत से ही कहने में उसे शर्म सीे महसूस हो रही थी। शर्म के मारे उसने देवगन वाली बात को ना पूछने में ही भलाई समझी,,,, लेकिन तभी मुस्कुराते हुए शीतल बोली।)
हां यार सारी रात जागकर ही गुजारी हूं,,,,,,( थोड़ा शांत होकर) लेकिन अकेले ही,,,,,,
अकेले ही,,,,,,,,,,,, क्यों,,,,,, भाई साहब कहां चले गए?
यार वह किसी काम से बाहर गए हुए हैं,,,,,
जब वह बाहर गए थे तो फिर क्यों जग रही थी,,,, सो जाना चाहिए था ना।
यार सोतो जाती लेकिन क्या करूं मार्केट से जो बड़े-बड़े बेगम लेकर गई थी उसका क्या करती,,,,,,
मतलब,,, (निर्मला आश्चर्य के साथ बोली)
यार अभी कल ही तो मार्केट में मैंने तुम्हें बताई थी की बेगन सिर्फ खाने के लिए ही नहीं,,,,,, औरते अपनी प्यास बुझाने के लिए भी इसका उपयोग करती हैं।
( शीतल की बात सुनकर निर्मला एकदम दंग रह गई वह इतना तो जानती ही थी कि शीतल बेगम ले जा करके क्या करेगी क्योंकि उसी ने कल अपने मुंह से ही निर्मला को बताई थी। निर्मला और ज्यादा जानना चाहती थी लेकिन उसे पूछने में शर्म आ रही थी। जानने के बावजूद भी अनजान बनते हुए वह बोली,,,,,,
तुमने कैसे बैगन का उपयोग किया? ( निर्मला शीतल से और भी बातें जानने के लिए बड़ी उत्सुकता से पूछ रही थी। लेकिन यह सब पूछते हुए उसके बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ रही थी,, जो कि सीधे जाकर के उसकी जांघों के बीच असर कर रही थी। निर्मला के सवाल पर शीतल बोली।)
अच्छा अभी तो तुम्हें सर दर्द हो रहा था और सर दर्द की वजह से कुछ बोल नहीं रही थी और अब बेगन के बारे में जानने की लिए ईतनी ज्यादा उत्सुक हुए जा रही हो। ( शीतल आंथे नचाते हुए बोली।)
नहीं शीतल ऐसी कोई बात नहीं है लेकिन मुझे बड़ा आश्चर्य हो रहा है कि बेगन जैसी सब्जी को खाने के साथ-साथ कोई इस तरह के उपयोग में भी ले सकता है,, इस बात से मैं काफी हैरान हूं।
इसमें हैरानी किस बात की है। अच्छा कोई बात नहीं मैं तुम्हें सब कुछ बताऊंगी क्योंकि तुम मेरी सबसे अच्छी सहेली हो,,,,( शीतल का इतना कहना था की निर्मला की नजर सामने से आ रहे शुभम पर पड़ी तो एक बार फीर से ऊसे देखते ही उसकी बर कुल बुला गई। और जब वह कदम बढ़ाते हुए निर्मला की तरफ बढ़ रहा था तो निर्मला की नजर बार बार उसकी जगह पर भी पता करें उसके हथियार पर चली जा रही थी लेकिन इस समय उसका हथियार बिल्कुल शांत था फिर भी वह कल्पना मैं उसे लटकते हुए देख रही थी ।,,,, निर्मला की तो हालत खराब हो जा रही थी जैसे ही शुभम बिल्कुल करीब आया शीतल भी उसे गौर से देखने लगी। शुभम कुछ कहता इससे पहले ही निर्मला उसे जाकर गाड़ी में बैठने के लिए बोली वह बिना कुछ बोले गाड़ी की तरफ चला गया शीतल उसे तब तक देखती रही जब तक की वह गाड़ी में बैठ नहीं गया।,,,,, गाड़ी का दरवाजा बंद होते ही शीतल बोली,,,,)
वाह निर्मला तुम्हारा बेटा तो एक दम जवान हो गया,,,,,,,
( शीतल तुम हमको बड़े ही कामुक नजरों से देख रही थी लेकिन इस बात पर निर्मला बिल्कुल भी ध्यान नहीं दी,,, उसे तो बस बैगन के बारे में ही जानने की उत्सुकता थी इसलिए वह शीतल की बात को काटते हुए बोली। )
अरे तुम क्या कह रही थी बेगन के बारे में,,,,,,,,,
( निर्मल आपकी बात से जैसे शीतल का ध्यान टूटा हो इस तरह से वह बोली,,,,)
हां तो मैं कह रही थी,,,, अच्छा निर्मला एक बात बताओ,,,,
हां पूछो,,,,,,,
देखो सब ठीक से बताना बिल्कुल भी शर्माना मत तभी मैं तुम्हें बैगन के उपयोग के बारे में बताऊंगी।
बोलो,,,, ( निर्मला कुछ देर सोचने के बाद बोली)
अच्छा निर्मला यह बताओ कि उसका आकार कैसा होता है?
किसका ? ( निर्मला आश्चार्य के साथ बोली)
अरे उसी का जिसके बदले में बैगन का उपयोग किया जाता है।
( अब इतना सुनते ही निर्मला सकपका गई वह समझ गई थी। शीतल किसके बारे में बोल रही है और ऊससे क्या बुलवाना चाहती है। निर्मला अब बुरी तरह फंस चुकी थी वह चाहती तो बिना कुछ बोले वहां से जा सकती थी,,,, लेकिन उसकी तो उत्सुकता इतनी ज्यादा बढ़ गई थी बेगन की उपयोगिता के बारे में जानने की,,,, कि वह इधर उधर नजर दौड़ाते हुए वहीं खड़ी रही,,,,,, और शीतल उसे इधर उधर नजरें घुमाते हुए देखकर बोली।)
क्या यार निर्मला,,,,,, एक औरत हो करके औरत से औरत वाली बात करने पर तुम्हें शर्म महसूस हो रही है जाओ तो मैं भी तुम्हें कुछ नहीं बताती,,,,,,
यार शीतल ऐसी बात नहीं है,,, लेकिन मैंने कभी भी ऐसी बातें नहीं की और ना ही किसी के सामने ऐसे शब्दों का प्रयोग की हूं। इसलिए मुझे शर्म सी आ रही है।
यार सच में कमाल हो,,,, यह जरूरी तो नहीं कि तुम हमेशा ऐसी बातें करने से कतराती रहो,,,, एक न एक दिन तो सबको पहली बार ही करना होता है। अब मैं भी तुम्हारी तरह शर्माती तो क्या तुम्हें यह सब बातें बताती,,,, तुम मेरी सबसे अच्छी सहेली हो इसलिए मैं तुमसे ऐसी बातें करती हूं वरना मैंने आज तक किसी से भी अपने बारे में या ऐसी बातें कभी नहीं की।,,,,,,,,,, ( शीतल बातें जरूर निर्मला से कर रही थी लेकिन उसकी नजर बार बार गाड़ी में बैठे शुभम पर चली जा रही थी। शीतल बात को आगे बढ़ाते हुए बोली,,,,,)
अच्छा चलो बताओ किसके बदले मे बैगन का उपयोग करने के लिए मैं बता रही हूं।
( शीतल की बात सुनकर फिर से निर्मला शर्मा कर इधर-उधर नजरें दौड़ाने लगी और फिर से ऊसे नजरें चुराते हुए देखकर शीतल जोर से बोली,,,,,)
बोलो जल्दी,,,,,,,,
( शीतल की आवाज सुनकर एकाएक निर्मला के मुंह से निकल गया।)
ललल,,,, लंड,,,,,
( निर्मला के मुंह से इतना निकलना था कि शीतल मुस्कुराने लगी लेकिन निर्मला का हाल बुरा हो रहा था वह एकदम से शर्मा गई बल्कि शर्म के मारे वह शीतल के सामने गड़ी जा रही थी। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उसके मुंह से आखिर यह शब्द कैसे निकल गया लेकिन उसके बदन में डर के साथ साथ उन्माद की तरंगे भी लहराने लगी। "लंड" शब्द बोलकर उसे अजीब के सुख की अनुभूति हो रही थी जिसको वह शब्दों में बयान नहीं कर सकती थी। वहीं दूसरी तरफ से चल बड़ी खुश नजर आ रही थी और खुश होते हुए वह बोली।)
हां अब आए ना लाइन पे,,,,,,,, शर्माओगी तो जिंदगी का मजा नहीं ले पाओगी,,,,,,,, चलो यह तो बता दीे की किस के बदले बैगन का उपयोग किया जाता है। ऊसके आकार और ऊसकी लंबाई चौड़ाई और उसकी मोटाई से तो तुम अच्छी तरह से वाकिफ हो,,,,, बैगन देखने में एकदम किस की तरह लगता है यह भी बता दो,,,,,, देखो शर्माना मत।
लंड की तरह,,,,,( इस बार भी वह झट से बोल दी,,, शीतल मुस्कुरा रही थी। क्योंकि वह भी पहली बार ही निर्मला के मुंह से इतने अश्लील शब्द सुन रही थी। निर्मला की बात सुनकर शीतल बोली।)
लंड की तरह तो होता ही है लेकिन उससे भी ज्यादा भयंकर होता है।,,, अगर एक अच्छा खासा बैगन मिल जाए तो उसके आगे आदमी का लंड उसकी अपेक्षा आधा और पतला ही होता है ।
निर्मला तुम तो अच्छी तरह से जानती हो और तुम सच-सच बताना बैगन के आगे तुम्हारे पति का लंड छोटा ओर पतला नहीं लगता,,,,,,,
( शीतल इतना कहकर निर्मला की तरफ सवालिया नजरों से देखने लगी और शीतल की बात सुनकर निर्मला सोच में पड़ गई उसे यह समझ में नहीं आ रहा था कि वह इस सवाल का जवाब दे या ना दे लेकिन जो बात शीतल कह रही थी वह बिल्कुल सच ही थी। वास्तव में जिस बैगन को वह अपने घर पर लेकर गई थी उस बैगन की अपेक्षा उसके पति का लंड छोटा ही था। यह सब उसके दिमाग में चल ही रहा था कि तभी उसे याद आया कि वह अपने बेटे के लंड को भी देख चुकी है जिसकी लंबाई चौड़ाई मोटाई बिल्कुल बैगन जैसी ही थी। अपने बेटे के हथियार के बारे में सोच कर उसकी आंखों में चमक आ गई,,,,, वहां शीतल से बताने के लिए अपना मुंह खोल ही थी कि उसके शब्द गले में ही अटक कर रहे गए। उसे जैसे कुछ याद आ गया हो,,, वह कुछ बोल ना सकी और उसे इस तरह से खामोश देखकर शीतल ने अपने सवाल दुबारा दोहराई तो वह बोली कुछ नहीं बल्कि हां में सिर हिला दी। )
मैं जानती थी तुम्हारा जवाब यही होगा निर्मला क्योंकि बेगन के आगे तो मेरे पति का भी लंड छोटा ही है। और यह बात सभी औरतों को अच्छी तरह से मालूम है।
अच्छा यह बताओ निर्मला,,, कि अपने पति के लंड,,, जो की बेगन से आधा और पतला ही होता है उस से चुदने में तुम्हें मजा आता है ना,,,,,, बोलो,,,,,
(शीतल के ईस बात पर निर्मला फिर से सक पका गई,,,, उसके लिए फिर से इस सवाल का जवाब देना मुश्किल हो रहा था लेकिन फिर भी बताना तो था ही,,,, इसलिए वह बोली।)
हां मजा तो आता ही है,,,,,,,
तो सोचो निर्मला जब बैगन से भी आधे और पतले लंड से चुदने मे ईतना मजा मिलता है,,,, तो जब एक मोटा ताजा लंबा बैगन बुर मे घुसेगा तो औरत को कीतना मजा मिलेगा,,,,,
( शीतल की यह कामुक बात सुनते ही ऊत्तेजना के मारे निर्मला की सांस ऊपर नीचे हो गई ऊसकी बुर से तुरंत मदन रस की बुंद टपक गई।
निर्मला अजीबो किस्म की कशमकश में डूबी हुई थी। इसी कशमकश में कब छुट्टी की घंटी बज गई उसे पता ही नहीं चला।
अपनी गाड़ी की तरफ जाते समय उसे रास्ते में शीतल मिल गई जो उसे देखते ही दौड़ती हुई उसके पास आए और बोली।
क्या यार निर्मला आज कहां रह गई थी रिशेश में भी मिलने नहीं आई। कुछ परेशान सीे लग रही हो क्या हुआ? ( निर्मला के चेहरे की तरफ देखते हुए बोली।)
कुछ नहीं शीतल बस सिर में थोड़ा सा दर्द है इसलिए किसी काम में मन नहीं लग रहा।
( निर्मला की बात का गलत मतलब निकालते हुए शीतल अपनी आंखों को गोल-गोल ना नचाते हुए मजाकिया अंदाज में बोली।)
ओहहह,,,, हो,,,,,,,, लगता है कि हमारे भाई साहब ने रात भर आपको सोने नहीं दिया है । खूब जमकर सेवा हुई है तुम्हारी।
( शीतल की बात सुनते ही निर्मला को ऐसा लगने लगा कि जैसे किसी ने उसके घाव पर नमक छिड़क दिया हो,,,, और अपने घाव को वह किसी से दिखा भी नहीं सकती थी। हाल ऐसा हो गया था निर्मला का कि जैसे सांप किसी छछूंदर को निगल जाता है और ना उसे अंदर ही निगल पाता है और ना ही बाहर ऊगल पाता है। फिर भी बड़े मायूस लफ्जों से शीतल को जवाब देते हुए बोली।),,,,,,,,,
नहीं यार शीतल तुम हर बात का गलत मतलब,,,,,,,, निकालती हो,,,,,, ऐसा कुछ भी नहीं है जैसा तुम सोच रही हो।
( निर्मला का जवाब सुनकर शीतल मुस्कुराते हुए बोली।)
बोल लो जितना झूठ बोलना है,,,,,, आखिर सच तो तुम कभी बताओगीे नहीं,,,,,,
नहीं शीतल कल से मेरे सर में दर्द हो रहा है इसलिए मेरा मन किसी काम नहीं लग रहा,,,,,, हां तुम्हें देखकर ऐसा जरूर लग रहा है कि शायद तुम रात भर सोई नहीं हो,,,,,,
( निर्मला ऐसा कहने के साथ ही उसे वैगन वाली बात याद आ गई। उसका मन कह रहा था कि वह उससे बैगन के बारे में पूछे लेकिन बोलने से हीचकींचा रही थी वह भी जानना चाहती थी कि शीतल में उस बैगन का उपयोग कि या नहीं लेकिन बोले कैसे औरतों की बात औरत से ही कहने में उसे शर्म सीे महसूस हो रही थी। शर्म के मारे उसने देवगन वाली बात को ना पूछने में ही भलाई समझी,,,, लेकिन तभी मुस्कुराते हुए शीतल बोली।)
हां यार सारी रात जागकर ही गुजारी हूं,,,,,,( थोड़ा शांत होकर) लेकिन अकेले ही,,,,,,
अकेले ही,,,,,,,,,,,, क्यों,,,,,, भाई साहब कहां चले गए?
यार वह किसी काम से बाहर गए हुए हैं,,,,,
जब वह बाहर गए थे तो फिर क्यों जग रही थी,,,, सो जाना चाहिए था ना।
यार सोतो जाती लेकिन क्या करूं मार्केट से जो बड़े-बड़े बेगम लेकर गई थी उसका क्या करती,,,,,,
मतलब,,, (निर्मला आश्चर्य के साथ बोली)
यार अभी कल ही तो मार्केट में मैंने तुम्हें बताई थी की बेगन सिर्फ खाने के लिए ही नहीं,,,,,, औरते अपनी प्यास बुझाने के लिए भी इसका उपयोग करती हैं।
( शीतल की बात सुनकर निर्मला एकदम दंग रह गई वह इतना तो जानती ही थी कि शीतल बेगम ले जा करके क्या करेगी क्योंकि उसी ने कल अपने मुंह से ही निर्मला को बताई थी। निर्मला और ज्यादा जानना चाहती थी लेकिन उसे पूछने में शर्म आ रही थी। जानने के बावजूद भी अनजान बनते हुए वह बोली,,,,,,
तुमने कैसे बैगन का उपयोग किया? ( निर्मला शीतल से और भी बातें जानने के लिए बड़ी उत्सुकता से पूछ रही थी। लेकिन यह सब पूछते हुए उसके बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ रही थी,, जो कि सीधे जाकर के उसकी जांघों के बीच असर कर रही थी। निर्मला के सवाल पर शीतल बोली।)
अच्छा अभी तो तुम्हें सर दर्द हो रहा था और सर दर्द की वजह से कुछ बोल नहीं रही थी और अब बेगन के बारे में जानने की लिए ईतनी ज्यादा उत्सुक हुए जा रही हो। ( शीतल आंथे नचाते हुए बोली।)
नहीं शीतल ऐसी कोई बात नहीं है लेकिन मुझे बड़ा आश्चर्य हो रहा है कि बेगन जैसी सब्जी को खाने के साथ-साथ कोई इस तरह के उपयोग में भी ले सकता है,, इस बात से मैं काफी हैरान हूं।
इसमें हैरानी किस बात की है। अच्छा कोई बात नहीं मैं तुम्हें सब कुछ बताऊंगी क्योंकि तुम मेरी सबसे अच्छी सहेली हो,,,,( शीतल का इतना कहना था की निर्मला की नजर सामने से आ रहे शुभम पर पड़ी तो एक बार फीर से ऊसे देखते ही उसकी बर कुल बुला गई। और जब वह कदम बढ़ाते हुए निर्मला की तरफ बढ़ रहा था तो निर्मला की नजर बार बार उसकी जगह पर भी पता करें उसके हथियार पर चली जा रही थी लेकिन इस समय उसका हथियार बिल्कुल शांत था फिर भी वह कल्पना मैं उसे लटकते हुए देख रही थी ।,,,, निर्मला की तो हालत खराब हो जा रही थी जैसे ही शुभम बिल्कुल करीब आया शीतल भी उसे गौर से देखने लगी। शुभम कुछ कहता इससे पहले ही निर्मला उसे जाकर गाड़ी में बैठने के लिए बोली वह बिना कुछ बोले गाड़ी की तरफ चला गया शीतल उसे तब तक देखती रही जब तक की वह गाड़ी में बैठ नहीं गया।,,,,, गाड़ी का दरवाजा बंद होते ही शीतल बोली,,,,)
वाह निर्मला तुम्हारा बेटा तो एक दम जवान हो गया,,,,,,,
( शीतल तुम हमको बड़े ही कामुक नजरों से देख रही थी लेकिन इस बात पर निर्मला बिल्कुल भी ध्यान नहीं दी,,, उसे तो बस बैगन के बारे में ही जानने की उत्सुकता थी इसलिए वह शीतल की बात को काटते हुए बोली। )
अरे तुम क्या कह रही थी बेगन के बारे में,,,,,,,,,
( निर्मल आपकी बात से जैसे शीतल का ध्यान टूटा हो इस तरह से वह बोली,,,,)
हां तो मैं कह रही थी,,,, अच्छा निर्मला एक बात बताओ,,,,
हां पूछो,,,,,,,
देखो सब ठीक से बताना बिल्कुल भी शर्माना मत तभी मैं तुम्हें बैगन के उपयोग के बारे में बताऊंगी।
बोलो,,,, ( निर्मला कुछ देर सोचने के बाद बोली)
अच्छा निर्मला यह बताओ कि उसका आकार कैसा होता है?
किसका ? ( निर्मला आश्चार्य के साथ बोली)
अरे उसी का जिसके बदले में बैगन का उपयोग किया जाता है।
( अब इतना सुनते ही निर्मला सकपका गई वह समझ गई थी। शीतल किसके बारे में बोल रही है और ऊससे क्या बुलवाना चाहती है। निर्मला अब बुरी तरह फंस चुकी थी वह चाहती तो बिना कुछ बोले वहां से जा सकती थी,,,, लेकिन उसकी तो उत्सुकता इतनी ज्यादा बढ़ गई थी बेगन की उपयोगिता के बारे में जानने की,,,, कि वह इधर उधर नजर दौड़ाते हुए वहीं खड़ी रही,,,,,, और शीतल उसे इधर उधर नजरें घुमाते हुए देखकर बोली।)
क्या यार निर्मला,,,,,, एक औरत हो करके औरत से औरत वाली बात करने पर तुम्हें शर्म महसूस हो रही है जाओ तो मैं भी तुम्हें कुछ नहीं बताती,,,,,,
यार शीतल ऐसी बात नहीं है,,, लेकिन मैंने कभी भी ऐसी बातें नहीं की और ना ही किसी के सामने ऐसे शब्दों का प्रयोग की हूं। इसलिए मुझे शर्म सी आ रही है।
यार सच में कमाल हो,,,, यह जरूरी तो नहीं कि तुम हमेशा ऐसी बातें करने से कतराती रहो,,,, एक न एक दिन तो सबको पहली बार ही करना होता है। अब मैं भी तुम्हारी तरह शर्माती तो क्या तुम्हें यह सब बातें बताती,,,, तुम मेरी सबसे अच्छी सहेली हो इसलिए मैं तुमसे ऐसी बातें करती हूं वरना मैंने आज तक किसी से भी अपने बारे में या ऐसी बातें कभी नहीं की।,,,,,,,,,, ( शीतल बातें जरूर निर्मला से कर रही थी लेकिन उसकी नजर बार बार गाड़ी में बैठे शुभम पर चली जा रही थी। शीतल बात को आगे बढ़ाते हुए बोली,,,,,)
अच्छा चलो बताओ किसके बदले मे बैगन का उपयोग करने के लिए मैं बता रही हूं।
( शीतल की बात सुनकर फिर से निर्मला शर्मा कर इधर-उधर नजरें दौड़ाने लगी और फिर से ऊसे नजरें चुराते हुए देखकर शीतल जोर से बोली,,,,,)
बोलो जल्दी,,,,,,,,
( शीतल की आवाज सुनकर एकाएक निर्मला के मुंह से निकल गया।)
ललल,,,, लंड,,,,,
( निर्मला के मुंह से इतना निकलना था कि शीतल मुस्कुराने लगी लेकिन निर्मला का हाल बुरा हो रहा था वह एकदम से शर्मा गई बल्कि शर्म के मारे वह शीतल के सामने गड़ी जा रही थी। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उसके मुंह से आखिर यह शब्द कैसे निकल गया लेकिन उसके बदन में डर के साथ साथ उन्माद की तरंगे भी लहराने लगी। "लंड" शब्द बोलकर उसे अजीब के सुख की अनुभूति हो रही थी जिसको वह शब्दों में बयान नहीं कर सकती थी। वहीं दूसरी तरफ से चल बड़ी खुश नजर आ रही थी और खुश होते हुए वह बोली।)
हां अब आए ना लाइन पे,,,,,,,, शर्माओगी तो जिंदगी का मजा नहीं ले पाओगी,,,,,,,, चलो यह तो बता दीे की किस के बदले बैगन का उपयोग किया जाता है। ऊसके आकार और ऊसकी लंबाई चौड़ाई और उसकी मोटाई से तो तुम अच्छी तरह से वाकिफ हो,,,,, बैगन देखने में एकदम किस की तरह लगता है यह भी बता दो,,,,,, देखो शर्माना मत।
लंड की तरह,,,,,( इस बार भी वह झट से बोल दी,,, शीतल मुस्कुरा रही थी। क्योंकि वह भी पहली बार ही निर्मला के मुंह से इतने अश्लील शब्द सुन रही थी। निर्मला की बात सुनकर शीतल बोली।)
लंड की तरह तो होता ही है लेकिन उससे भी ज्यादा भयंकर होता है।,,, अगर एक अच्छा खासा बैगन मिल जाए तो उसके आगे आदमी का लंड उसकी अपेक्षा आधा और पतला ही होता है ।
निर्मला तुम तो अच्छी तरह से जानती हो और तुम सच-सच बताना बैगन के आगे तुम्हारे पति का लंड छोटा ओर पतला नहीं लगता,,,,,,,
( शीतल इतना कहकर निर्मला की तरफ सवालिया नजरों से देखने लगी और शीतल की बात सुनकर निर्मला सोच में पड़ गई उसे यह समझ में नहीं आ रहा था कि वह इस सवाल का जवाब दे या ना दे लेकिन जो बात शीतल कह रही थी वह बिल्कुल सच ही थी। वास्तव में जिस बैगन को वह अपने घर पर लेकर गई थी उस बैगन की अपेक्षा उसके पति का लंड छोटा ही था। यह सब उसके दिमाग में चल ही रहा था कि तभी उसे याद आया कि वह अपने बेटे के लंड को भी देख चुकी है जिसकी लंबाई चौड़ाई मोटाई बिल्कुल बैगन जैसी ही थी। अपने बेटे के हथियार के बारे में सोच कर उसकी आंखों में चमक आ गई,,,,, वहां शीतल से बताने के लिए अपना मुंह खोल ही थी कि उसके शब्द गले में ही अटक कर रहे गए। उसे जैसे कुछ याद आ गया हो,,, वह कुछ बोल ना सकी और उसे इस तरह से खामोश देखकर शीतल ने अपने सवाल दुबारा दोहराई तो वह बोली कुछ नहीं बल्कि हां में सिर हिला दी। )
मैं जानती थी तुम्हारा जवाब यही होगा निर्मला क्योंकि बेगन के आगे तो मेरे पति का भी लंड छोटा ही है। और यह बात सभी औरतों को अच्छी तरह से मालूम है।
अच्छा यह बताओ निर्मला,,, कि अपने पति के लंड,,, जो की बेगन से आधा और पतला ही होता है उस से चुदने में तुम्हें मजा आता है ना,,,,,, बोलो,,,,,
(शीतल के ईस बात पर निर्मला फिर से सक पका गई,,,, उसके लिए फिर से इस सवाल का जवाब देना मुश्किल हो रहा था लेकिन फिर भी बताना तो था ही,,,, इसलिए वह बोली।)
हां मजा तो आता ही है,,,,,,,
तो सोचो निर्मला जब बैगन से भी आधे और पतले लंड से चुदने मे ईतना मजा मिलता है,,,, तो जब एक मोटा ताजा लंबा बैगन बुर मे घुसेगा तो औरत को कीतना मजा मिलेगा,,,,,
( शीतल की यह कामुक बात सुनते ही ऊत्तेजना के मारे निर्मला की सांस ऊपर नीचे हो गई ऊसकी बुर से तुरंत मदन रस की बुंद टपक गई।
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- kunal
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Re: अधूरी हसरतें
बहुत मस्त कहानी है अगले अपडेट का इंतज़ार रहेगा ?
फूफी और उसकी बेटी से शादी.......Thriller वासना का भंवर .......Thriller हिसक.......मुझे लगी लगन लंड की.......बीबी की चाहत.......ऋतू दीदी.......साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन!