अधूरी हसरतें
- rajsharma
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- Joined: 10 Oct 2014 07:07
Re: अधूरी हसरतें
दीपावली की आप सभी दोस्तो को बहुत बहुत हार्दिक बधाई
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
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Re: अधूरी हसरतें
Mitr ya to kahani suru mat kiya karo ya fer puri kiya kro. Har kahani ko adura chod dete ho.
:o :o
- Rohit Kapoor
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Re: अधूरी हसरतें
mitr kitni kahani adhuri hain meri
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(संयोग का सुहाग)....(भाई की जवानी Complete)........(खाला जमीला running)......(याराना complete)....
(संयोग का सुहाग)....(भाई की जवानी Complete)........(खाला जमीला running)......(याराना complete)....
- Rohit Kapoor
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Re: अधूरी हसरतें
निर्मला के बदन में चुदास से भरी मस्ती चढ़ी हुई थी,,,, कि इस तरह से शुभम के आ जाने की वजह से वह एकदम से डर गई थी। हड़बड़ाहट ही हड़बड़ाहट में तो वह शुभम के सामने अपनी स्थिति को संभाल ले गई,,,,,, लेकिन उसके मन में इस बात को लेकर एक डर सा बैठ गया। उसे यह लगने लगा कि अगर कहीं उसकी यह हरकत उसका बेटा देख लिया होता तो क्या होता,,,,, क्या होता अगर उस की नजर उस समय उसके ऊपर पड़ती जब वह बैगन को अपनी बुर में डालने की कोशिश कर रही थी,,,, उसका मन यही सोच सोच कर हैरान था,,,, उसके अंदर जो अपनी काम प्यास को तृप्त करने की आस थी वह पानी में मिल चुकी थी। आज बड़ी मुश्किल से अपने अंदर निर्मला ने इतनी हिम्मत जुटा ली थी कि आज पहली बार वह अपने संस्कारों के विरुद्ध कोई काम करने जा रही थी,,,,, लंड से ना सही बेगन से ही वह उन मादक चरम सुख की अनुभूति करना चाह रही थी लेकिन बनता काम बिगड़ गया था,,, उसके मन में इस बात का मलाल जरूर रह गया कि काश शुभम 10:15 मिनट बाद में आता ताकि वह अपनी प्यास को कुछ हद तक बुझा कर एक नया अनुभव प्राप्त कर सकती लेकिन इस बात से राहत भी थी की अच्छा ही हुआ कि शुभम के रसोई घर में आने से पहले ही उसे आने की आहट सुनाई दे दी,,,, वरना वह उसे साड़ी उठाकर अपनी बुर में बैगन डालते हुए जरुर देख लेता और अगर इस हाल में वह उसे देख लेता तो उसके मन मस्तिष्क पर कैसा प्रभाव पड़ता वह उसे एक गिरी हुई औरत के रूप में देखने लगता,,, और वह खुद भी अपने बेटे से नजरें नहीं मिला पाती,,,,,
रसोई घर वाले घटना की बात से निर्मला अपना ध्यान इन सभी बातों से हटाने लगी वह नहीं चाहती थी कि ऐसी कोई हरकत वह करते हुए शुभम के हाथों पकड़ी जाए और जिंदगी भर वह अपने ही बेटे की नजरों से गिर जाए।
निर्मला तो अपने आप को संभाल ले गई थी लेकिन शुभम के मन मस्तिष्क में उसके दोस्तों के ही द्वारा उसकी मां की जो ऊन्मादक छवि बनाई गई थी उस छवि को शुभम अपने दिमाग से निकाल नहीं पाया और हर वक्त जब भी उसे मौका मिलता था तो वह अपनी मां के अंग उपांगो को नजर भर कर देखता जरूर था और उन अंगों की नग्न कल्पना करके अपने आप को उत्तेजना के सागर में सराबोर कर लेता था।
शुभम तो अपनी मां के नंगे बदन की कल्पना करके ही मस्त हो जाया करता था क्योंकि उसने आज तक अपनी मां को नंगी नहीं देखा था और ना ही उसके कामुक रूप को नग्नावस्था में देख कर उस के नंगे बदन का नजरों से ही रसपान किया था। उसे यह सब करने में बेहद आनंद की प्राप्ति हो रही थी धीरे-धीरे उसे अब इस बात का पता चलने लगा था कि जब भी वह अपनी मां के बारे में गंदे विचार अपने मन में लाता था तभी उसका लंड उत्तेजित होकर खड़ा हो जाता था,,,, इस ताक-झांक के खेल में उसे मजा आने लगा था लेकिन उसे इस बात का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि वह जवानी के जिस चिंगारी से खेल रहा था वह चिंगारी कभी भी शोला का रूप धारण कर सकती थी।
शुभम के मन में औरतों के बदन का आकर्षण बढ़ता ही जा रहा था वह दूसरी औरतों के अंग को भी गौर से देखने लगा था। रही-सही कसर उसके दोस्त पूरा कर दिया करते थे। अपने दोस्त से झगड़ने के बाद वह फिर भी बार बार समय मिलने पर खेल के मैदान में पहुंच जाया करता था लेकिन उसका खेल में मन नहीं लगता था बल्कि उन लोगों की बातें सुनने में मजा आता था। ऐसे ही एक दिन खेल के मैदान में उसके मन में एक नया अरमान जन्म लेने लगा जब उसने उस दिन मैदान पर विकेट कीपिंग करते हुए अपने साथी खिलाड़ी की बात सुनी,,,, जिसमें से एक अपने ही दोस्त को कह रहा था कि,,, यार मैंने कल अपनी चाची को एकदम नंगी बाथरूम में नहाते हुए देख लिया,,,,,,
( इतना सुनते ही शुभम के तो कान के साथ-साथ उसका लंड भी खड़ा हो गया,,,, वह अपने काम बराबर अपने दोस्त की बात सुनने मैंने लगा दिया,,,,, उसकी बातें सुनकर उसका दूसरा साथी बोला।)
सच,,,,,, अच्छा यह तो बता क्या क्या देखा तूने?
अरे यार अब क्या बताऊं कि मैंने क्या-क्या देखा यह पूछ कि क्या नहीं देखा साली बाथरुम में एकदम नंगी होकर के नहा रही थी। मैंने उसका सब कुछ देख लिया उसकी बड़ी बड़ी चूचियां की बड़ी बड़ी गांड और तो और उसकी बालों वाली बुर भी देखा,,,,,,,
यार तब तो मजा आया होगा तुझे,,,,,
यार इतना मजा आया कि पूछ मत मुझे अपने आप को शांत करने के लिए दो बार लंड को हिला कर मुठ मारना पड़ा।
यार इससे अच्छा तो तू जा कर के अपनी चाची को चोद दिया होता। ( वह अपना लंड पैंट के ऊपर से सहलाते हुए बोला।)
नहीं यार ऐसा नहीं कर सकता था ऐसा करने पर कहीं चाची मेरी मां को बता देती तो,,,,,,
अरे यार ऐसा कुछ नहीं होता एक बार ट्राई तो किया होता ऐसे भी तेरी चाची को लगता है कि मोटे लंड की जरूरत है,,,, तभी तो नंगी होकर के नहा रही थी।
( शुभम तो उन लोगों की बातें सुनकर हैरान हुए जा रहा था लेकिन उसे मजा भी बहुत आ रहा था। तभी वह ं उसकी बात सुनकर बोला। )
यार तू सच कह रहा है मुझे एक बार जरूर ट्राई करना चाहिए था वैसे भी मेरी चाची का खूबसूरत बदन देख कर मेरी तो हालत खराब हो गई थी। जी मैं तो यही आ रहा था कि मैं अभी बाथरुम में हो जाऊं और चाची को अपनी बाहों में भरकर ऊनकी बुर में पूरा लंड पेल दुं।,,,,, ( उन लोगों की बातें शुभम के बदन में हलचल मचा रही थी,,,,, वह भले ही क्रिकेट खेल रहा था लेकिन उसका पूरा ध्यान उन दोनों की बातें सुनने में ही था,,,,,, तभी वह अपनी चाची को चोदने की बात करते-करते बोला,,,,,,
प्यार तूने कभी ट्राई किया है क्या,,,, ?
नहीं यार अपनी किस्मत में कहा चाची और कहां भाभी है।
तेरी मम्मी तो है ना,,,,,,
( उसकी बात सुनकर वह मुस्कुराने लगा लेकिन मम्मी वाली बात कान में पड़ते ही शुभम के लंड में सुरसुराहट होने लगी।)
तूने अपनी मां को तो कभी ना कभी नंगी देखा ही होगा,,,,,,
( शुभम अपने दोस्त के द्वारा ऐसा सवाल पूछता देखकर एकदम दंग रह गया उसका दिमाग तब और ज्यादा झटका खा गया जब ऐसे सवाल पर,,,,,भी,,, उसका दूसरा दोस्त गुस्सा होने की जगह मुस्कुरा रहा था ,,,,,, और मुस्कुराते हुए बोला;।)
हां यार देखा तो हूं,,,,, बहुत बार देखा हूं ज्यादातर मैंने अपनी मां को बाथरूम में ही कपड़े धोते हुए एकदम नंगी या तो नहाते हुए एकदम नंगी देखा हुँ।
( इसका जवाब सुनकर शुभम तो एक दम सन्न रह गया। और उसका दूसरा दोस्त अपने पैंट पर से ही अपने लंड को सहलाते हुए बोला। )
यार मेरा तो सोचकर ही बुरा हाल हुए जा रहा है कि तेरी मां कैसे बाथरूम में नंगी नहाती होगी किस तरह से कपड़े धोती होगी ऊसकी बड़ी-बड़ी गांड,,,,ऊफ्फ्फ्फ,,,,, जी में तो आ रहा है कि अभी जाकर के तेरी मां को चोद दुं,,,
मेरी भी कुछ ऐसे ही इच्छा कर रही है मुझे भी लगता है तेरे घर आना पड़ेगा,,,,,,
हा हा हा आ जाना मेरी मां भी अपने कमरे में नंगी ही रहती है मैं भी बहुत बार देख चुका हूं,,,,,
( उन लोगों की बातें सुनकर शुभम एकदम हैरान हुए जा रहा था इतना तो उसे पता चल ही गया था कि लगभग सभी लोग अपनी मम्मी को किसी न किसी रूप में नंगी दे चुके हैं बस वही रह गया था कि जिस ने अभी तक अपनी मां को नंगी नहीं देख पाया था उन लोगों की बातें सुनकर अब उसके मन में भी यह अरमान जगने लगे कि वह भी अपनी मां को नंगी देखें। अभी उसके मन में यह सब ख्याल चल रहे थे कि तभी शुभम के दोस्त ने उसी से ही पूछ लिया,,,,,,, )
यार शुभम तेरी मां तो बहुत ज्यादा चिकनी और मस्त है तूने भी तो कभी ना कभी अपनी मां को नंगी देखा ही होगा,,,,,
( अपने दोस्त के द्वारा यह सवाल पूछे जाने पर इस बार उसे आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि वह अब तो समझ ही गया था कि आपस में यह लोग इसी तरह से बात करते हैं लेकिन इस बार पहले की तरह सुबह में अपने दोस्त की इस बात पर नाराजगी ना दर्शाते हुए बस मुस्कुरा कर ना में सिर हिला दिया।
अब शुभम के मन में अजीब सी हलचल मची हुई थी अब तो उसके कल्पनाओ के परिंदे मन चाहे वहां पर अपने पर फैलाकर उड़ रहे थे। अब से शुभम ज्यादातर समय इस ताक झांक में लगाकर व्यतीत करता था कि कब ऊसे उसकी मां का नंगा बदन देखने को मिल जाए। क्योंकि मन ही मन हुआ है इस बात पर भी जरूर गौर करता था कि जब उसकी मां कपड़ों के अंदर इतनी ज्यादा मस्त और सेक्सी लगती है तो बिना कपड़ों के तो वह तन बदन में आग लगा देगी। इसलिए वह अब अपनी मां के कमरे में बिना दरवाजे पर दस्तक दिए ही कमरे में घुस जाता था । और बाथरूम के दरवाजे को भी हल्के से धक्के देकर के यह जानने की कोशिश करता था कि दरवाजा अंदर से बंद है या नहीं लेकिन उसकी किस्मत खराब रहती थी इसलिए दरवाजा उसे हमेशा बंद ही मिलता था। शुभम बहुत कोशिश कर लिया लेकिन उसे कुछ भी हासिल नहीं हुआ।
जिस तरह से शुभम अपनी मां के प्रति आकर्षित होकर के उसके बदन को एकदम नंगा देखना चाहता था उसी तरह से निर्मला भी अपने बेटे के प्रति आकर्षित होकर के अपने बेटे के मोटे ताजे लंड को लेकर ढेर सारी कल्पनाएं कर कर के अपने आप को शांत करने की कोशिश करती रहती थी। उसके द्वारा खरीद के लाए गए बैगन तो ना जाने कब से खराब हो चुके थे जिसे वह कूड़ेदान में फेंक चुकी थी। मौका मिलने पर बस वह अपनी हथेली से अपनी बुर की गुलाबी फांकों को रगड़ लेती थी। क्योंकि पति से तो प्यार मिलने से रहा,,,,,।
आखिरकार एक दिन शुभम की मेहनत रंग. लाई हुआ यूं कि कपड़े धोने की वाशिंग मशीन बिगड़ी हुई थी और रविवार का दिन था। रविवार को ही निर्मला ढेर सारे कपड़े धोतीे थी। करीब-करीब दोपहर में शुभम क्रिकेट खेल कर घर लौटा तो देखा कि घर में उसकी मां मौजूद नहीं थी उसने जहां तहां सब जगहो पर देख लिया लेकिन कहीं भी उसे निर्मला नजर नहीं आई यहां तक कि बाथरुम में भी मन में एक आस ले करके नजर दौड़ा लिया लेकिन वहां भी निर्मला नहीं थी। शुभम घर में अपनी मां को ना पाकर एकदम परेशान हो गया,,,, इतना तो तय था कि वह कहीं बाहर नहीं गई हुई थी क्योंकि अगर ऐसा होता तो दरवाजे पर ताला लटक रहा होता,,,,,
रसोई घर वाले घटना की बात से निर्मला अपना ध्यान इन सभी बातों से हटाने लगी वह नहीं चाहती थी कि ऐसी कोई हरकत वह करते हुए शुभम के हाथों पकड़ी जाए और जिंदगी भर वह अपने ही बेटे की नजरों से गिर जाए।
निर्मला तो अपने आप को संभाल ले गई थी लेकिन शुभम के मन मस्तिष्क में उसके दोस्तों के ही द्वारा उसकी मां की जो ऊन्मादक छवि बनाई गई थी उस छवि को शुभम अपने दिमाग से निकाल नहीं पाया और हर वक्त जब भी उसे मौका मिलता था तो वह अपनी मां के अंग उपांगो को नजर भर कर देखता जरूर था और उन अंगों की नग्न कल्पना करके अपने आप को उत्तेजना के सागर में सराबोर कर लेता था।
शुभम तो अपनी मां के नंगे बदन की कल्पना करके ही मस्त हो जाया करता था क्योंकि उसने आज तक अपनी मां को नंगी नहीं देखा था और ना ही उसके कामुक रूप को नग्नावस्था में देख कर उस के नंगे बदन का नजरों से ही रसपान किया था। उसे यह सब करने में बेहद आनंद की प्राप्ति हो रही थी धीरे-धीरे उसे अब इस बात का पता चलने लगा था कि जब भी वह अपनी मां के बारे में गंदे विचार अपने मन में लाता था तभी उसका लंड उत्तेजित होकर खड़ा हो जाता था,,,, इस ताक-झांक के खेल में उसे मजा आने लगा था लेकिन उसे इस बात का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि वह जवानी के जिस चिंगारी से खेल रहा था वह चिंगारी कभी भी शोला का रूप धारण कर सकती थी।
शुभम के मन में औरतों के बदन का आकर्षण बढ़ता ही जा रहा था वह दूसरी औरतों के अंग को भी गौर से देखने लगा था। रही-सही कसर उसके दोस्त पूरा कर दिया करते थे। अपने दोस्त से झगड़ने के बाद वह फिर भी बार बार समय मिलने पर खेल के मैदान में पहुंच जाया करता था लेकिन उसका खेल में मन नहीं लगता था बल्कि उन लोगों की बातें सुनने में मजा आता था। ऐसे ही एक दिन खेल के मैदान में उसके मन में एक नया अरमान जन्म लेने लगा जब उसने उस दिन मैदान पर विकेट कीपिंग करते हुए अपने साथी खिलाड़ी की बात सुनी,,,, जिसमें से एक अपने ही दोस्त को कह रहा था कि,,, यार मैंने कल अपनी चाची को एकदम नंगी बाथरूम में नहाते हुए देख लिया,,,,,,
( इतना सुनते ही शुभम के तो कान के साथ-साथ उसका लंड भी खड़ा हो गया,,,, वह अपने काम बराबर अपने दोस्त की बात सुनने मैंने लगा दिया,,,,, उसकी बातें सुनकर उसका दूसरा साथी बोला।)
सच,,,,,, अच्छा यह तो बता क्या क्या देखा तूने?
अरे यार अब क्या बताऊं कि मैंने क्या-क्या देखा यह पूछ कि क्या नहीं देखा साली बाथरुम में एकदम नंगी होकर के नहा रही थी। मैंने उसका सब कुछ देख लिया उसकी बड़ी बड़ी चूचियां की बड़ी बड़ी गांड और तो और उसकी बालों वाली बुर भी देखा,,,,,,,
यार तब तो मजा आया होगा तुझे,,,,,
यार इतना मजा आया कि पूछ मत मुझे अपने आप को शांत करने के लिए दो बार लंड को हिला कर मुठ मारना पड़ा।
यार इससे अच्छा तो तू जा कर के अपनी चाची को चोद दिया होता। ( वह अपना लंड पैंट के ऊपर से सहलाते हुए बोला।)
नहीं यार ऐसा नहीं कर सकता था ऐसा करने पर कहीं चाची मेरी मां को बता देती तो,,,,,,
अरे यार ऐसा कुछ नहीं होता एक बार ट्राई तो किया होता ऐसे भी तेरी चाची को लगता है कि मोटे लंड की जरूरत है,,,, तभी तो नंगी होकर के नहा रही थी।
( शुभम तो उन लोगों की बातें सुनकर हैरान हुए जा रहा था लेकिन उसे मजा भी बहुत आ रहा था। तभी वह ं उसकी बात सुनकर बोला। )
यार तू सच कह रहा है मुझे एक बार जरूर ट्राई करना चाहिए था वैसे भी मेरी चाची का खूबसूरत बदन देख कर मेरी तो हालत खराब हो गई थी। जी मैं तो यही आ रहा था कि मैं अभी बाथरुम में हो जाऊं और चाची को अपनी बाहों में भरकर ऊनकी बुर में पूरा लंड पेल दुं।,,,,, ( उन लोगों की बातें शुभम के बदन में हलचल मचा रही थी,,,,, वह भले ही क्रिकेट खेल रहा था लेकिन उसका पूरा ध्यान उन दोनों की बातें सुनने में ही था,,,,,, तभी वह अपनी चाची को चोदने की बात करते-करते बोला,,,,,,
प्यार तूने कभी ट्राई किया है क्या,,,, ?
नहीं यार अपनी किस्मत में कहा चाची और कहां भाभी है।
तेरी मम्मी तो है ना,,,,,,
( उसकी बात सुनकर वह मुस्कुराने लगा लेकिन मम्मी वाली बात कान में पड़ते ही शुभम के लंड में सुरसुराहट होने लगी।)
तूने अपनी मां को तो कभी ना कभी नंगी देखा ही होगा,,,,,,
( शुभम अपने दोस्त के द्वारा ऐसा सवाल पूछता देखकर एकदम दंग रह गया उसका दिमाग तब और ज्यादा झटका खा गया जब ऐसे सवाल पर,,,,,भी,,, उसका दूसरा दोस्त गुस्सा होने की जगह मुस्कुरा रहा था ,,,,,, और मुस्कुराते हुए बोला;।)
हां यार देखा तो हूं,,,,, बहुत बार देखा हूं ज्यादातर मैंने अपनी मां को बाथरूम में ही कपड़े धोते हुए एकदम नंगी या तो नहाते हुए एकदम नंगी देखा हुँ।
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मेरी भी कुछ ऐसे ही इच्छा कर रही है मुझे भी लगता है तेरे घर आना पड़ेगा,,,,,,
हा हा हा आ जाना मेरी मां भी अपने कमरे में नंगी ही रहती है मैं भी बहुत बार देख चुका हूं,,,,,
( उन लोगों की बातें सुनकर शुभम एकदम हैरान हुए जा रहा था इतना तो उसे पता चल ही गया था कि लगभग सभी लोग अपनी मम्मी को किसी न किसी रूप में नंगी दे चुके हैं बस वही रह गया था कि जिस ने अभी तक अपनी मां को नंगी नहीं देख पाया था उन लोगों की बातें सुनकर अब उसके मन में भी यह अरमान जगने लगे कि वह भी अपनी मां को नंगी देखें। अभी उसके मन में यह सब ख्याल चल रहे थे कि तभी शुभम के दोस्त ने उसी से ही पूछ लिया,,,,,,, )
यार शुभम तेरी मां तो बहुत ज्यादा चिकनी और मस्त है तूने भी तो कभी ना कभी अपनी मां को नंगी देखा ही होगा,,,,,
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अब शुभम के मन में अजीब सी हलचल मची हुई थी अब तो उसके कल्पनाओ के परिंदे मन चाहे वहां पर अपने पर फैलाकर उड़ रहे थे। अब से शुभम ज्यादातर समय इस ताक झांक में लगाकर व्यतीत करता था कि कब ऊसे उसकी मां का नंगा बदन देखने को मिल जाए। क्योंकि मन ही मन हुआ है इस बात पर भी जरूर गौर करता था कि जब उसकी मां कपड़ों के अंदर इतनी ज्यादा मस्त और सेक्सी लगती है तो बिना कपड़ों के तो वह तन बदन में आग लगा देगी। इसलिए वह अब अपनी मां के कमरे में बिना दरवाजे पर दस्तक दिए ही कमरे में घुस जाता था । और बाथरूम के दरवाजे को भी हल्के से धक्के देकर के यह जानने की कोशिश करता था कि दरवाजा अंदर से बंद है या नहीं लेकिन उसकी किस्मत खराब रहती थी इसलिए दरवाजा उसे हमेशा बंद ही मिलता था। शुभम बहुत कोशिश कर लिया लेकिन उसे कुछ भी हासिल नहीं हुआ।
जिस तरह से शुभम अपनी मां के प्रति आकर्षित होकर के उसके बदन को एकदम नंगा देखना चाहता था उसी तरह से निर्मला भी अपने बेटे के प्रति आकर्षित होकर के अपने बेटे के मोटे ताजे लंड को लेकर ढेर सारी कल्पनाएं कर कर के अपने आप को शांत करने की कोशिश करती रहती थी। उसके द्वारा खरीद के लाए गए बैगन तो ना जाने कब से खराब हो चुके थे जिसे वह कूड़ेदान में फेंक चुकी थी। मौका मिलने पर बस वह अपनी हथेली से अपनी बुर की गुलाबी फांकों को रगड़ लेती थी। क्योंकि पति से तो प्यार मिलने से रहा,,,,,।
आखिरकार एक दिन शुभम की मेहनत रंग. लाई हुआ यूं कि कपड़े धोने की वाशिंग मशीन बिगड़ी हुई थी और रविवार का दिन था। रविवार को ही निर्मला ढेर सारे कपड़े धोतीे थी। करीब-करीब दोपहर में शुभम क्रिकेट खेल कर घर लौटा तो देखा कि घर में उसकी मां मौजूद नहीं थी उसने जहां तहां सब जगहो पर देख लिया लेकिन कहीं भी उसे निर्मला नजर नहीं आई यहां तक कि बाथरुम में भी मन में एक आस ले करके नजर दौड़ा लिया लेकिन वहां भी निर्मला नहीं थी। शुभम घर में अपनी मां को ना पाकर एकदम परेशान हो गया,,,, इतना तो तय था कि वह कहीं बाहर नहीं गई हुई थी क्योंकि अगर ऐसा होता तो दरवाजे पर ताला लटक रहा होता,,,,,
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(संयोग का सुहाग)....(भाई की जवानी Complete)........(खाला जमीला running)......(याराना complete)....
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