अधूरी हसरतें
- rajaarkey
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Re: अधूरी हसरतें
बहुत अच्छा अपडेट है दोस्त अगले अपडेट के इंतज़ार में ?
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- rangila
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Re: अधूरी हसरतें
nice one..................
मकसद running.....जिंदगी के रंग अपनों के संग running..... मैं अपने परिवार का दीवाना running.....
( Marathi Sex Stories )... ( Hindi Sexi Novels ) ....( हिंदी सेक्स कहानियाँ )...( Urdu Sex Stories )....( Thriller Stories )
- Rohit Kapoor
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Re: अधूरी हसरतें
Thanks to all dosto
Read my all stories
(संयोग का सुहाग)....(भाई की जवानी Complete)........(खाला जमीला running)......(याराना complete)....
(संयोग का सुहाग)....(भाई की जवानी Complete)........(खाला जमीला running)......(याराना complete)....
- Rohit Kapoor
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Re: अधूरी हसरतें
( निर्मला शुभम की तरफ से अपनी नजरें हटाकर वापस बर्तनों को इधर उधर करने में लग गई क्योंकि मुझे शर्म सी महसूस हो रही थी ।शर्म और उत्तेजना के मारे उसका चेहरा सुर्ख लाल हो चुका था,,,, वाह अपने बेटे को उसकी हरकत के लिए डांट भी नहीं सकती थी क्योंकि शुभम जो हरकत किया था,,,,,, इस हरकत के बारे में उसे एहसास दिलाने में भी निर्मला को शर्म सी महसूस हो रही थी वह अपने बेटे को डांटे भी तो किस बात के लिए जाते या उसके मुंह से निकल पाना बड़ा असंभव सा लग रहा था। इसलिए तो वह अपनी नजरें दूसरी तरफ फेरकर शुभम को आटा जल्दी लाने के लिए बोली थी और शुभम भी जैसे मेरे से ज्यादा हो अपनी मां की बात सुनकर,,,,,, डीब्बे मै से जल्दी-जल्दी आटा निकालने लगा,,,,,, और जल्दी से वह घबराते हुए अाटा ला करके अपनी मम्मी को थमा दिया,,,,,, आटा थामते समय जैसे ही निर्मला की नजर शुभम की टांगों के बीच गई तो एक बार फिर से उसका बदन गनंगना गया। शुभम के पजामे मे फिर से लंबा सा तंबू बना हुआ था। जिसका एहसास होते ही शुभम शर्मा के रसोई घर से बाहर चला गया।
next............
शुभम रसोई घर से बाहर जा चुका था,,,, लेकिन एक बार फिर से अपनी मां के बदन में कामुकता का एहसास करा गया था।
निर्मला ज्योति बड़ी मुश्किल से अपनी भावनाओं पर काबू कर पा रही थी शुभम की हरकतों ने उसकी भावनाओं को एक बार फिर से कामोद्दीप्त कर दिया था निर्मला शुभम को रसोई घर से बाहर जाते हुए आश्चर्य से देखते ही रह गई। उसे बिल्कुल भी यकीन नहीं हो पा रहा था कि यह शुभम उसके अंगों को इस तरह से प्यासी नजरों से देख रहा था । निर्मला पूरी तरह से दंग रह गई थी आटा थमाते वक्त उसकी नजरों ने शुभम के पजामे में उसके लंड के उभार को अच्छी तरह से देख ली थी। तो ऊभाार को देखकर फिर से उसकी बुर कुलबुलाने लगी थी। और यह भी अच्छी तरह से देख ली थी कि सुभम आटा निकालते समय उसके भरावदार नितंबो को ही घुर रहा था। उसे अपनी बड़ी-बड़ी नितंबों को घूरता हुआ पाकर निर्मला की उत्तेजना बढ़ने लगी थी उसकी सांसे ऊपर नीचे हो रही थी और चेहरा शर्म के मारे सुर्ख लाल हो गया था।
निर्मला को यकीन नहीं हो पा रहा था क्या वाकई में उसका बेटा उसके बदन को घूरता है। या यह उसका बहन ही था बार-बार अपने मन को बहाने से बहला रही थी लेकिन इस बात को वह भी इनकार नहीं कर पा रही थी कि जिस तरह से शुभम उसकी बड़ी बड़ी गांड को देख कर एकदम से खो गया था वह कोई अनजाने में नहीं हो रहा था। अगर अनजाने में ही होता तो पजामे में उसका लंड पूरी तरह से खड़ा नहीं होता लेकिन वह उसके नितंबों को ही देखकर उत्तेजित हो गया था तभी तो उसके पजामे में उसका लंड टनटना कर खड़ा हो गया था।
लेकिन कुछ भी हो निर्मला की हालत वह पूरी तरह से खराब कर गया था निर्मला का मन बिल्कुल भी नहीं लग रहा था बार-बार उसकी आंखों के सामने शुभम का खडा लंड तैर जा रहा था। निर्मला बार-बार मन में ही अपने बेटे के ल** के साइड को लेकर की ढेर सारी कल्पनाएं करने लग गई थी वह जानती थी कि जिस तरह से शुभम का लंड टनटना के खड़ा होता है तो उसकी साइज मार्केट से लाए बैगन जैसी ही हो जाती है। और तो और वह अपने बेटे के लंड को देखने के बाद अपने पति अशोक के लंड से उसकी तुलना करने लगी थी और वह अच्छी तरह से समझ गई थी कि ऊसके पति अशोक के लंड का साईज शुभम के लंड से आधा भी नहीं था। जिससे चुदाने के लिए वह दिन रात सपने देखा करती थी एक आस बांधे रखती थी की रात को उसका पति उसे चोदेगा और उसे शारीरिक सुख देगा,,,,,, लेकिन अब यह आस टूट कर बिखरने लगा था। शुभम ने उसके ख्यालात को बिल्कुल बदल के रख दिया था लेकिन यह शुभम ने इस तरह का बदलाव कब आया यह सोचकर वह हैरान हुए जा रही थी क्योंकि आज से पहले वह शुभम को ऐसी हरकत करते कभी नहीं देखी थी और ना ही कभी उसे इस बात पर विश्वास ही हो सकता है कि शुभम ऐसी हरकत भी कर सकता है।
उसके मन में बार बार ढेर सारे सवाल उठ रहे थे जिसका जवाब शायद उसके पास नहीं था । बार-बार वह शुभम के कमरे के दृश्य के बारे में सोच रही थी की क्या बात है मैं उसका बेटा उसे देखकर उत्तेजित होता है लेकिन उसके कमरे में जब वह उत्तेजित अवस्था में था तब तो वह घर पर नहीं थी तो क्या कहीं ऐसा तो नहीं कि शुभम उसके अंगों के बारे में कल्पना करके उत्तेजित हो रहा था। अगर ऐसा है तो उसके दिमाग में ऐसी सोच कहां से उत्पन्न हुई।
निर्मला यही सब सोचते हुए गरम तवे पर रोटियां सेंक रही थी तवे से भी ज्यादा गरम तो उसकी बुर हो चुकी थी जिस पर बार-बार ना चाहते हुए भी उसका हाथ पहुंच जा रहा था । उसे इस बात का भी पूरी तरह से एहसास हो चुका था कि उसकी पैंटी पूरी तरह से उसके मदन रस मे भीगकर गीली हो चुकी थी। निर्मला पूरी तरह से कामाग्नि में सुलग रही थी आज पहली बार उसे चुदवासी होने का एहसास हो रहा था। ऐसे तो वह पहले भी न जाने कितनी बार इस आग में तड़प चुकी है लेकिन जिस तरह की कामाग्नि आज उसके बदन में भड़क रही थी अगर वह अपनी भावनाओं पर काबू ना कर पाए तो आज वह सारे रिश्ते अपने हाथों से तार तार कर ले ।
लेकिन एक मां और शिक्षका होने के नाते उसे अपनी मर्यादा का ध्यान था वह उस मर्यादा को तोड़ना नहीं चाहती थी। वह एक जिम्मेदार मां होने के साथ-साथ समाज को शिक्षा प्रदान करने वाली शिक्षिका भी थी। जो इस तरह की बर्बादी के रास्ते पर ना खुद जाति और ना किसी को जाने देती बहुत ही जल्दी से मैं अपनी भावनाओं पर काबू प्राप्त कर ली। वह मन में यह भी ठान ली थी मौका देखकर वह अपने बच्चे को जरुर समझाएगी। लेकिन शायद वह ऐसा भी ना कर पाए क्योंकि उसने आज तक कभी भी अपनी सहेलियों के साथ इस तरह की बातें नहीं कर पाए थे तो वह इस तरह की बातें अपने ही बेटे के साथ कैसे कर पाएगी यह सोचकर वह परेशान हो जा रही थी लेकिन समझाना भी जरुरी था। क्योंकि उसे इस बात का भी डर था कि कहीं इस बात से उसकी नजर अंदाजी उसके बेटे के पतन का कारण न बन जाए,,, और उसके साथ-साथ इस सैलाब में वह भी बह ना जाए।
खेर जैसे-तैसे करके वह खाना बना ली,,, अभी तक अशोक घर पर नहीं आया था। शुभम को वह खाना खिला चुकी थी लेकिन दोनों एक दूसरे से आंख मिलाने से भी कतरा रहे थे।
शुभम जानता था कि वह अपनी मां को जिस नजर से घूर रहा था उसकी मां ने उसे अपने बदन को घूरते हुए देख ली थी,,, और यह भी देख ली थी कि उसके बदन को देखने के बाद उसका लंड पूरी तरह से टनटनाकर पजामे में खड़ा हो चुका था और ईसी बात को लेकर कहीं उसकी मां उसे डांटे नहीं इस बात का डर उसके मन में बराबर लगा हुआ था ।
लेकिन खाना खिलाते समय निर्मला ने उस बारे में एक बार भी शुभम से कोई बात नहीं की और ना ही शुभम ही कुछ बोल सका वह चुपचाप खाना खा रहा था निर्मला के मन में बार-बार यह ख्याल आया कि वह अपने बेटे से इस बारे में बात करें और उसे समझाए लेकिन मन की बात जुबान तक नहीं आ पा रही थी और कैसे आती वह तो खुद शर्म से गड़ी जा रही थी तो अपने बेटे से ऊस हरकत को लेकर के किस मुंह से बात करें,,,,,, वह तों खाना परोसते समय शुभम की तरफ शर्म के मारे देख तक नहीं रही थी।
शुभम खाना खाकर जा चुका था लेकिन वह अभी तक नहीं खाई थी क्योंकि अशोक ऑफिस से नहीं आया था वह उसके इंतजार में वही पर ही रहे उसे क्या मालूम था कि अशोक काम का बहाना बनाकर ऑफिस में अपनी सेक्रेटरी के साथ गुलछर्रे उड़ा रहा था। जिस प्यार के लिए वह अपनी पत्नी को तड़पा रहा था वह इस प्यार को किसी और पर लुटा रहा था और साथ ही धन भी।
तकरीबन 11:30 बजे अशोक घर लौटा,,,,,, निर्मला की नींद तो पहले से ही खराब हो चुकी थी ना चाहते हुए भी अपने आपको लाख समझाने के बावजूद भी बार बार उसकी आंखों के सामने आज दिन भर का नजारा तैर जा रहा था।
उस उन्मादक पल को याद कर करके उसकी बुर ने आज इतनी बार पानी छोड़ी थी कि अभी तक उसकी पैंटी गीली की गिली ही थी। दरवाजे पर दस्तक होते ही वह जल्दी से दरवाजा खोलने के लिए आगे बढ़ी वह दरवाजा खोलकर मुस्कुराते हुए अशोक का अभिवादन की लेकिन अशोक था कि,,, उसकी तरफ एक नजर देखे बिना ही अंदर आ गया और आते ही बोला।
तुम खाना खा लो आज ऑफिस में मीटिंग थी तो सभी स्टाफ के लिए खाना बाहर से आया था मैं भी खा लिया मुझे नींद आ रही है।
( इतना कहकर वह अपने कमरे की तरफ चला गया निर्मला उसे जाते हुए देखती रह गई उसे अशोक से ऐसी ही उम्मीद थी लेकिन उसके मन मे अभी भी आस वैसी की वैसी ही थी की शायद अशोक का मन बदल जाए। लेकीन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ निर्मला को बदन की भूख के साथ साथ पेट की भूख भी थी इसलिए वह बेलन से वहीं बैठ कर खाना खाए और खाना खाकर अपने कमरे में आ गई। कमरे में आते ही वह देखी थी अशोक खर्राटे भरते हुए चैन की नींद सो रहा था उसके सोने के साथ ही निर्मला की रही-सही उम्मीद भी सो गई। उसे लगा था कि शायद अशोक नगर सोया नहीं होगा तो वह उससे प्यार की बातें करेगी क्योंकि आज तक ना कर पाई और शायद अशोक बेमन से ही-सही अपनी ही प्यास बुझाने के लिए ही सही उसके साथ संभोग तो करेगा,,,, शायद इससे ही उसके बदन में उठी कामाग्नि कुछ हद तक शांत हो जाए लेकिन अशोक की तरफ से उसे ऐसी कोई भी उम्मीद नजर नहीं आई तो वह भी मन मार कर सो गई।
next............
शुभम रसोई घर से बाहर जा चुका था,,,, लेकिन एक बार फिर से अपनी मां के बदन में कामुकता का एहसास करा गया था।
निर्मला ज्योति बड़ी मुश्किल से अपनी भावनाओं पर काबू कर पा रही थी शुभम की हरकतों ने उसकी भावनाओं को एक बार फिर से कामोद्दीप्त कर दिया था निर्मला शुभम को रसोई घर से बाहर जाते हुए आश्चर्य से देखते ही रह गई। उसे बिल्कुल भी यकीन नहीं हो पा रहा था कि यह शुभम उसके अंगों को इस तरह से प्यासी नजरों से देख रहा था । निर्मला पूरी तरह से दंग रह गई थी आटा थमाते वक्त उसकी नजरों ने शुभम के पजामे में उसके लंड के उभार को अच्छी तरह से देख ली थी। तो ऊभाार को देखकर फिर से उसकी बुर कुलबुलाने लगी थी। और यह भी अच्छी तरह से देख ली थी कि सुभम आटा निकालते समय उसके भरावदार नितंबो को ही घुर रहा था। उसे अपनी बड़ी-बड़ी नितंबों को घूरता हुआ पाकर निर्मला की उत्तेजना बढ़ने लगी थी उसकी सांसे ऊपर नीचे हो रही थी और चेहरा शर्म के मारे सुर्ख लाल हो गया था।
निर्मला को यकीन नहीं हो पा रहा था क्या वाकई में उसका बेटा उसके बदन को घूरता है। या यह उसका बहन ही था बार-बार अपने मन को बहाने से बहला रही थी लेकिन इस बात को वह भी इनकार नहीं कर पा रही थी कि जिस तरह से शुभम उसकी बड़ी बड़ी गांड को देख कर एकदम से खो गया था वह कोई अनजाने में नहीं हो रहा था। अगर अनजाने में ही होता तो पजामे में उसका लंड पूरी तरह से खड़ा नहीं होता लेकिन वह उसके नितंबों को ही देखकर उत्तेजित हो गया था तभी तो उसके पजामे में उसका लंड टनटना कर खड़ा हो गया था।
लेकिन कुछ भी हो निर्मला की हालत वह पूरी तरह से खराब कर गया था निर्मला का मन बिल्कुल भी नहीं लग रहा था बार-बार उसकी आंखों के सामने शुभम का खडा लंड तैर जा रहा था। निर्मला बार-बार मन में ही अपने बेटे के ल** के साइड को लेकर की ढेर सारी कल्पनाएं करने लग गई थी वह जानती थी कि जिस तरह से शुभम का लंड टनटना के खड़ा होता है तो उसकी साइज मार्केट से लाए बैगन जैसी ही हो जाती है। और तो और वह अपने बेटे के लंड को देखने के बाद अपने पति अशोक के लंड से उसकी तुलना करने लगी थी और वह अच्छी तरह से समझ गई थी कि ऊसके पति अशोक के लंड का साईज शुभम के लंड से आधा भी नहीं था। जिससे चुदाने के लिए वह दिन रात सपने देखा करती थी एक आस बांधे रखती थी की रात को उसका पति उसे चोदेगा और उसे शारीरिक सुख देगा,,,,,, लेकिन अब यह आस टूट कर बिखरने लगा था। शुभम ने उसके ख्यालात को बिल्कुल बदल के रख दिया था लेकिन यह शुभम ने इस तरह का बदलाव कब आया यह सोचकर वह हैरान हुए जा रही थी क्योंकि आज से पहले वह शुभम को ऐसी हरकत करते कभी नहीं देखी थी और ना ही कभी उसे इस बात पर विश्वास ही हो सकता है कि शुभम ऐसी हरकत भी कर सकता है।
उसके मन में बार बार ढेर सारे सवाल उठ रहे थे जिसका जवाब शायद उसके पास नहीं था । बार-बार वह शुभम के कमरे के दृश्य के बारे में सोच रही थी की क्या बात है मैं उसका बेटा उसे देखकर उत्तेजित होता है लेकिन उसके कमरे में जब वह उत्तेजित अवस्था में था तब तो वह घर पर नहीं थी तो क्या कहीं ऐसा तो नहीं कि शुभम उसके अंगों के बारे में कल्पना करके उत्तेजित हो रहा था। अगर ऐसा है तो उसके दिमाग में ऐसी सोच कहां से उत्पन्न हुई।
निर्मला यही सब सोचते हुए गरम तवे पर रोटियां सेंक रही थी तवे से भी ज्यादा गरम तो उसकी बुर हो चुकी थी जिस पर बार-बार ना चाहते हुए भी उसका हाथ पहुंच जा रहा था । उसे इस बात का भी पूरी तरह से एहसास हो चुका था कि उसकी पैंटी पूरी तरह से उसके मदन रस मे भीगकर गीली हो चुकी थी। निर्मला पूरी तरह से कामाग्नि में सुलग रही थी आज पहली बार उसे चुदवासी होने का एहसास हो रहा था। ऐसे तो वह पहले भी न जाने कितनी बार इस आग में तड़प चुकी है लेकिन जिस तरह की कामाग्नि आज उसके बदन में भड़क रही थी अगर वह अपनी भावनाओं पर काबू ना कर पाए तो आज वह सारे रिश्ते अपने हाथों से तार तार कर ले ।
लेकिन एक मां और शिक्षका होने के नाते उसे अपनी मर्यादा का ध्यान था वह उस मर्यादा को तोड़ना नहीं चाहती थी। वह एक जिम्मेदार मां होने के साथ-साथ समाज को शिक्षा प्रदान करने वाली शिक्षिका भी थी। जो इस तरह की बर्बादी के रास्ते पर ना खुद जाति और ना किसी को जाने देती बहुत ही जल्दी से मैं अपनी भावनाओं पर काबू प्राप्त कर ली। वह मन में यह भी ठान ली थी मौका देखकर वह अपने बच्चे को जरुर समझाएगी। लेकिन शायद वह ऐसा भी ना कर पाए क्योंकि उसने आज तक कभी भी अपनी सहेलियों के साथ इस तरह की बातें नहीं कर पाए थे तो वह इस तरह की बातें अपने ही बेटे के साथ कैसे कर पाएगी यह सोचकर वह परेशान हो जा रही थी लेकिन समझाना भी जरुरी था। क्योंकि उसे इस बात का भी डर था कि कहीं इस बात से उसकी नजर अंदाजी उसके बेटे के पतन का कारण न बन जाए,,, और उसके साथ-साथ इस सैलाब में वह भी बह ना जाए।
खेर जैसे-तैसे करके वह खाना बना ली,,, अभी तक अशोक घर पर नहीं आया था। शुभम को वह खाना खिला चुकी थी लेकिन दोनों एक दूसरे से आंख मिलाने से भी कतरा रहे थे।
शुभम जानता था कि वह अपनी मां को जिस नजर से घूर रहा था उसकी मां ने उसे अपने बदन को घूरते हुए देख ली थी,,, और यह भी देख ली थी कि उसके बदन को देखने के बाद उसका लंड पूरी तरह से टनटनाकर पजामे में खड़ा हो चुका था और ईसी बात को लेकर कहीं उसकी मां उसे डांटे नहीं इस बात का डर उसके मन में बराबर लगा हुआ था ।
लेकिन खाना खिलाते समय निर्मला ने उस बारे में एक बार भी शुभम से कोई बात नहीं की और ना ही शुभम ही कुछ बोल सका वह चुपचाप खाना खा रहा था निर्मला के मन में बार-बार यह ख्याल आया कि वह अपने बेटे से इस बारे में बात करें और उसे समझाए लेकिन मन की बात जुबान तक नहीं आ पा रही थी और कैसे आती वह तो खुद शर्म से गड़ी जा रही थी तो अपने बेटे से ऊस हरकत को लेकर के किस मुंह से बात करें,,,,,, वह तों खाना परोसते समय शुभम की तरफ शर्म के मारे देख तक नहीं रही थी।
शुभम खाना खाकर जा चुका था लेकिन वह अभी तक नहीं खाई थी क्योंकि अशोक ऑफिस से नहीं आया था वह उसके इंतजार में वही पर ही रहे उसे क्या मालूम था कि अशोक काम का बहाना बनाकर ऑफिस में अपनी सेक्रेटरी के साथ गुलछर्रे उड़ा रहा था। जिस प्यार के लिए वह अपनी पत्नी को तड़पा रहा था वह इस प्यार को किसी और पर लुटा रहा था और साथ ही धन भी।
तकरीबन 11:30 बजे अशोक घर लौटा,,,,,, निर्मला की नींद तो पहले से ही खराब हो चुकी थी ना चाहते हुए भी अपने आपको लाख समझाने के बावजूद भी बार बार उसकी आंखों के सामने आज दिन भर का नजारा तैर जा रहा था।
उस उन्मादक पल को याद कर करके उसकी बुर ने आज इतनी बार पानी छोड़ी थी कि अभी तक उसकी पैंटी गीली की गिली ही थी। दरवाजे पर दस्तक होते ही वह जल्दी से दरवाजा खोलने के लिए आगे बढ़ी वह दरवाजा खोलकर मुस्कुराते हुए अशोक का अभिवादन की लेकिन अशोक था कि,,, उसकी तरफ एक नजर देखे बिना ही अंदर आ गया और आते ही बोला।
तुम खाना खा लो आज ऑफिस में मीटिंग थी तो सभी स्टाफ के लिए खाना बाहर से आया था मैं भी खा लिया मुझे नींद आ रही है।
( इतना कहकर वह अपने कमरे की तरफ चला गया निर्मला उसे जाते हुए देखती रह गई उसे अशोक से ऐसी ही उम्मीद थी लेकिन उसके मन मे अभी भी आस वैसी की वैसी ही थी की शायद अशोक का मन बदल जाए। लेकीन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ निर्मला को बदन की भूख के साथ साथ पेट की भूख भी थी इसलिए वह बेलन से वहीं बैठ कर खाना खाए और खाना खाकर अपने कमरे में आ गई। कमरे में आते ही वह देखी थी अशोक खर्राटे भरते हुए चैन की नींद सो रहा था उसके सोने के साथ ही निर्मला की रही-सही उम्मीद भी सो गई। उसे लगा था कि शायद अशोक नगर सोया नहीं होगा तो वह उससे प्यार की बातें करेगी क्योंकि आज तक ना कर पाई और शायद अशोक बेमन से ही-सही अपनी ही प्यास बुझाने के लिए ही सही उसके साथ संभोग तो करेगा,,,, शायद इससे ही उसके बदन में उठी कामाग्नि कुछ हद तक शांत हो जाए लेकिन अशोक की तरफ से उसे ऐसी कोई भी उम्मीद नजर नहीं आई तो वह भी मन मार कर सो गई।
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(संयोग का सुहाग)....(भाई की जवानी Complete)........(खाला जमीला running)......(याराना complete)....
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