अधूरी हसरतें

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Kamini
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Re: अधूरी हसरतें

Post by Kamini »

mast update
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Rohit Kapoor
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Re: अधूरी हसरतें

Post by Rohit Kapoor »

007 wrote: 20 Sep 2017 11:44Congratulations dost
Kamini wrote: 20 Sep 2017 13:15mast update
mastram wrote: 20 Sep 2017 13:55 bhai achhi shuruwat hai

Thanks dosto
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Rohit Kapoor
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Re: अधूरी हसरतें

Post by Rohit Kapoor »

( बारी-बारी से सभी लड़कियों ने मैडम की गांड की तारीफ में अपना मत व्यक्त करने लगे)
हां यार सच है, मैडम की गांड देख करके हम लड़कियों की हालत खराब हो जाती तो सोचो लड़कों का तो लंड ही खड़ा हो जाता होगा,,,,,,,

( इतना सुनते ही तो निर्मला की हालत खराब होने लगी उसने कभी सपने में भी नहीं सोची थी की लड़कियां इस हद तक इतनी गंदी बातें कर सकती हो इतने गंदे शब्दों का प्रयोग कर सकती है,,,,,, लड़कियों की गंदी बातों का असर निर्मला पर पूरी तरह से छा चुका था,,,,,, उसे अपनी जांघो के बीच बुर में से पानी जैसा रिसाव महसूस हो रहा था,,,, उनकी सांसे बड़ी तेजी से चल रही थी,,,, शर्म के मारे निर्मला का चेहरा सुर्ख लाल हो वह वहां से चली जाना चाहती थी लेकिन ना चाहते हुए भी उन लड़कियों की बातें सुनकर उनके कदम वही के वही ठीठक से गए थे।,,, लड़कियों की बातें खत्म ही नहीं हो रही थी,,,,

यार कसम से जब वह चलती है ना तो ऊनकी मटकती हुई गांड देखकर मुझे उनसे जलन होने लगती है,,,,,
( तभी फिर से एक लड़की बीच में चुटकी लेते हुए बोली)

तुझे किस बात की जलन होने लगी तेरी भी तो गांड बड़ी-बड़ी है।

हां वह तो है लेकिन मैडम की बात कुछ और ही है ऊनकि गांड का घेराव कितना गोल है,,, जब चलती है तो उनकी बड़ी-बड़ी गोल गांड कितनी थिरकती है,,, उस तरह की थिरकन अपनी गांड में कहां देखने को मिलती है,,,

हां यार यह भी सच है कुछ भी हो निर्मला मैडम की खूबसूरती और उनके बदन की बनावट खास करके उनकी चूचियां और बड़ी-बड़ी गांड उनकी उम्र की तो ठीक हम लड़कियों को भी पानी भरने पर मजबूर कर दे,,,,
( निर्मला तो लड़कियों के मुंह से अपनी तारीफ इस उम्र में भी इस हद तक सुन करके गर्वित हुए जा रही थी उसकी प्रसन्नता का कोई ठिकाना ना था,,,,, लेकिन अपनी तारीफ सुनकर भी उसे अंदर ही अंदर शर्म सी महसूस हो रही थी,,,,, समय हो चुका था वह शर्म के मारे कमरे में अंदर जाने से हिचकीचा रही थी इसलिए कुछ देर के लिए आगे बढ़ गई,,,,,,, जब सारे विद्यार्थी कमरे में जाने लगे उसके बाद ही वह कमरे में दाखिल हुई,,,, लेकिन तब भी उसके चेहरे पर शर्म की लालिमा छाई हुई थी,,,,,,,, निर्मला की खूबसूरती की तारीफ का सिलसिला उस दिन से लेकर के आज तक चलता ही जा रहा था,,,


निर्मला अपनी कुर्सी पर खड़ी होकर के रोज की ही तरह ब्लैक बोर्ड पर मैथ्स के सवाल हल करने लगी, वह अपने कदम बड़े ही सहज भाव से बढ़ाती थी,,, ताकि उसकी गांड मे कम थिरकन ,कम हो,,,, लेकिन जैसे चढ़ती जवानी अपना असर दिखाने से बाज नहीं आती ठीक उसी तरह से मटकती गांड भी अपनी थिरकन दिखाने से बाज नहीं आती,,,,,,,
निर्मला के लिए रोज का हो गया था लेकिन फिर भी अपने आप को संभालने की वह पूरी कोशिश करती ही रहती थी। निर्मला इतनी शर्मीली थी कि वह जब भी ब्लैक बोर्ड पर लिखती थी तो शर्म के मारे वह पीछे मुड़कर कभी नहीं देख पाती थी कि कौन-कौन उसकी कांड की तरफ नजर गड़ाए हुए हैं,,,, ब्लैक बोर्ड पर लिखते समय उसके दिल की धड़कन हमेशा बढ़ जाती थी।
फिर जैसे तैसे करके वह स्कूल में अपना समय बिताती थी और स्कूल से छूटने के बाद तुरंत शुभम को लेकर घर के लिए निकल जाती थी। यही उसकी रोज की दिनचर्या थी,,,, एक यही स्कूल ही तो था जहां पर वह हंस बोल लेती थी उसकी सह अध्यापिका उससे मजाक कर लेती थी। उसके उदास चेहरे पर थोड़ी बहुत हंसी के फुहारे फुटने लगते थे और वह कुछ समय के लिए अपना दर्द भूल जाती थी। लेकिन घर पर पहुंचने के बाद फिर से एक अजीब सी बेचैनी उसके अंदर घर कर जाती थी। और वह फिर उदास हो जाती थी,,,,
घर पर लौटते-लौटते शाम हो जाती थी,,।

कोई सोच भी नहीं सकता कि निर्मला जैसी खूबसूरत और हसीन औरत भी प्यार के लिए तरस सकती है।
उसकी खूबसूरती देखकर हर इंसान यही सोचता होगा कि यह औरत इस दुनिया में सबसे ज्यादा खुश नसीब व होगी जो भगवान ने इसे इतनी ज्यादा सुंदरता तोहफे में दी है,,, बातें खुशनसीब है यही और वह लोग भी खुशनसीब होंगे जो इसके इर्द गिर्द और इससे रिश्ते में जुड़े होंगे,,,,, और सबसे ज्यादा नसीब वाला होगा ईसका पति,,,, जो इसके खूबसूरत बदन का दिन रात रसपान करता होगा इसको भोगता होगा,,,, उसके मखमली नाजुक रस से भरे अंगों को, अपने हाथों से छुता होगा,मसलता और रगड़ता होगा,, और अपने प्यासे होठों से उसके अंगों को चूमता होगा। निर्मला और उसके परिवार को बाहर से देखने वाले सभी यही सोचते होंगे लेकिन उन्हें इस बात का जरा भी आभास नहीं होगा कि बाहर से खुश दिखने वाली निर्मला अंदर ही अंदर ना जाने कितनी वेदनाए लेकर कितनी पीड़ा सहन करके जिंदगी गुजार रही है।
इस पीड़ा इस दर्द को निर्मला अकेले ही बरसों से सहन करती आ रही थी,,, अशोक तो अपनी दुनिया में ही मस्त था। अपनी पत्नी की तड़प उसके दर्द की बिल्कुल भी उसी परवाह नहीं थी,,,,, लोग तरसते थे पत्नी के रूप में निर्मला जैसी जीवनसाथी पाने के लिए उसके लिए पूजा पाठ व्रत करते थे,,, लेकिन यहां तो अशोक की झोली में बिन मांगे ही इतना अनमोल हीरा भगवान ने दे दिया था।
लेकिन उसकी रत्ती भर भी उसे क़दर नहीं थी।

रात के 10:30 बज रहे थे निर्मला डाइनिंग टेबल पर खाना लगा कर पत्नी धर्म निभाते हुए अशोक का इंतजार कर रही थी,,, शुभम खाना खाकर अपने रुम में जा चुका था। यह निर्मला की रोज की आदत थी वहां अशोक के घर आने से पहले कभी भी खाना नहीं खाती थी और अशोक के बाद ही खाना खाती थी लेकिन,,, ज्यादातर निर्मला को अकेले ही खाना खाना पड़ता था क्योंकि अशोक बाहर से ही खाकर आता था उसे इस बात की भी परवाह नहीं होती थी कि उसकी पत्नी देर रात तक उसका खाने की टेबल पर इसलिए इंतजार करती रहती थी की अभी वह खाना नहीं खाया होगा,,,,,
लेकिन अशोक निर्मला की भूख प्यास की बिल्कुल भी परवाह किए बिना ही अपना पेट भर लेता था।
निर्मला को अशोक का इंतजार करते करते 11:00 बज गए उसे नींद की झपकी भी आ रही थी कि तभी दरवाजे की घंटी बजी,,,,,, निर्मला उठकर दरवाजा खोली तो अशोक ही था,,,,, अशोक के घर में प्रवेश किया और निर्मला दरवाजे को बंद करते हुए बोली,,,,,,,

आप हाथ मुंह धो लीजिए मैं खाना लगा चुकी हूं जल्दी से खाना खा लीजीए,,,,,,
( लेकिन अशोक निर्मला का कहा अनसुना कर के बिना कुछ बोले जाने लगा तो एक बार फिर से निर्मला उसे रोकते हुए बोली,,,,,)

खाना लग गया है मैं आपका कब से इंतजार कर रही हूं और आप हैं कीे बिना कुछ बोले चले जा रहे हैं।।

देखो मैं थक चुका हूं और वैसे भी मैं बाहर से खाना खाकर ही आया हूं मुझे भूख नहीं है तुम खा लो,,,,,, ( इतना कहकर वह बिना निर्मला की तरफ नजर घुमाएं वह अपने कमरे की तरफ जाने लगा,,,, निर्मला की आंख भर आई अपने पति के द्वारा इस तरह के व्यवहार और लापरवाही की उसे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी,,, लेकिन शायद उसकी किस्मत में यही लिखा था अपने पति का बर्ताव देखकर उसकी आंखों में आंसू आ गए और वह अपने पति को कमरे की तरफ जाते हुए देखती रह गई,,,,,, अशोक केे व्यवहार से उसकी भूख मर चुकी थी,,,, वह भी बिना कुछ खाए थोड़ी देर डाइनिंग टेबल की कुर्सी पर बैठी रहीं और बैठे-बैठे अपनी किस्मत को कोसते रहि। वह भगवान से मन ही मन यही प्रार्थना करती रहती थी की हे भगवान कौन से जन्म का बदला मुझसे ले रहा है,,,,, मुझसे याद यह बिल्कुल भी सहा नहीं जाता मैं तंग आ गई हूं अपनी जिंदगी से जल्द से जल्द इसका कोई उपाय दिखाओ भगवान् या तो मुझे अपने पास बुला लो,,,,,, इतना कहकर वह मन ही मन रोने लगी,,,,
थोड़ी देर बाद अपने आप को शांत करके वह अपने कमरे की तरफ जाने लगी,,,, इतना कुछ होने के बावजूद भी मन में ढ़ेर सारी आशाएं लेकर के वह अपने कमरे में दाखिल हुई,,, अशोक अपने लैपटॉप पर कुछ कर रहा था। दरवाजा बंद करते हुए निर्मला एक नजर अशोक पर रखी हुई थी कि वह भी उसे देखे लेकिन यह आशा भी उसकी निराशा में बदल गई, वह लेपटॉप से अपनी नजरें हटा ही नहीं रहा था।
पेट की भूख तो ठंडा पानी पीने से कुछ हद तक मिट ही जाती है लेकिन बदन की भूख कैसे मिटे,,, बदन की आग बुझाने के लिए तो प्रेम रूपी बारिश की जरूरत होती है,,,,,, लेकिन निर्मला की जिंदगी का सावन तो हमेशा सुखा ही रहता था। निर्मला का पति आनंद वर्षों से बादल बनकर बरसा ही नहीं, निर्मला की समतल जमीन पानी बिना सुख रही थी। बरसों से सुख रही जमीन को एक जबरदस्त सावन भादों का इंतजार था जो जी भर के उस पर बरसे,,,,,, और यही उम्मीद निर्मला के मन में हमेशा जागरुक रहती थी,,, आखिरकार वह भी एक औरत थी । दूसरी औरतों की तरह उसे भी बदन की भूख महसूस होती थी बिना खाए तो पेट की भूख शांत हो जाती है लेकिन बदन की भूख तो हमेशा बढ़ती ही रहती है । इसी भूख से वह भी तड़प रही थी । अशोक को आकर्षित करने का वह पूरा प्रयास करती थी लेकिन अशोक ना जाने किस मिट्टी का बना हुआ था कि निर्मला के कामुक हरकतों का विवाह बिल्कुल भी जवाब नहीं देता था । निर्मला भी कभी अपनी हद से ज्यादा आगे नहीं बढ़ी थी लेकिन फिर भी एक पतिव्रता पत्नी अपने पति को रिझाने के लिए जो कुछ कर सकती थी वह सब कुछ निर्मला करती थी। लेकिन अशोक के आगे सारे प्रयास में निष्फल ही जाते थे। निर्मला बदन की आग में जिस तरह से झुलूस रही थी उसे एक जबरदस्त संभोग की जरूरत थी। अपनी सीमित मर्यादा को लांघना होता तो वह कब से लांघ चुकी होती,,,,, लेकिन ऐसा करने से उसके मां-बाप के दिए हुए संस्कार ईजाजत नही देते थे। और वहां कोई ऐसा काम करना भी नहीं चाहती थी कि उसकी बेइज्जती हो, उसके खानदान की बेइज्जती हो । बरसों से बनाई हुई इज्जत मान सम्मान सब मिट्टी में मिल जाए।
निर्मला खुद अपनी किस्मत से हैरान देती थी की आज तक उसे ऐसा कोई भी इंसान नहीं मिला था जो उसकी सुंदरता उसकी खूबसूरती की तारीफ करते हुए दो शब्द ना बोले हो। यहां तक कि औरतें उसकी सहेली और स्कूल की लड़कियां तक उसकी सुंदरता उसकी खूबसूरती की तारीफ करते थकती नहीं थी,,,,, लेकिन अशोक को ना जाने कौन से जन्म की दुश्मनी थी कि वह उसकी तारीफ में दो शब्द तो ठीक प्यार से उसकी तरफ देखना भी गंवारा नहीं समझता था।
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Rohit Kapoor
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निर्मला खुद अपनी किस्मत से हैरान देती थी की आज तक उसे ऐसा कोई भी इंसान नहीं मिला था जो उसकी सुंदरता उसकी खूबसूरती की तारीफ करते हुए दो शब्द ना बोले हो। यहां तक कि औरतें उसकी सहेली और स्कूल की लड़कियां तक उसकी सुंदरता उसकी खूबसूरती की तारीफ करते थकती नहीं थी,,,,, लेकिन अशोक को ना जाने कौन से जन्म की दुश्मनी थी कि वह उसकी तारीफ में दो शब्द तो ठीक प्यार से उसकी तरफ देखना भी गंवारा नहीं समझता था।
निर्मला कमरे का दरवाजा बंद करके धीरे धीरे चलते हुए आदमकद़ आईने के सामने जाकर खड़ी हो गई,,,, सोने से पहले वह कपड़े बदल कर सकती थी इसलिए वह आदमकद आईने के सामने खड़ी होकर के कुछ पल के लिए अपने रुप को निहारने लगी,,,,, और फिर वह अपने साड़ी के पल्लू को नीचे गिरा दी,,,,,, साड़ी के पल्लू के नीचे गिरते ही विशालकाय चुचियों की रंगत ब्लाउज में से बाहर साफ साफ नजर आ रही थी। आईना ऐसी जगह पे लगा हुआ था कि जहां से बिस्तर पर बैठा हुआ इंसान आईने में नजर आता था और बिस्तर पर बैठ कर भी आईने में सब कुछ देख सकता था और निर्मला भी अच्छी तरह से जानती थी की कपड़े बदलते वक़्त वहां आईने में से अशोक को नजर आ रही होगी,,,,, वह जानबूझकर अशोक को रिझाने की कोशिश कर रही थी लेकिन करो कि नजर अभी आईने पर नहीं घूमीें थी। लेकिन निर्मला की कोशिश जारी थी,,, वह धीरे-धीरे अपने ब्लाउज के बटन को खोलने के लगी,, जैसे जैसे वह ब्लाउज के बटन को खोले जा रही थी,,, वैसे वैसे उसकी बड़ी बड़ी चूचियां ब्लाउज के बाहर आने को छटपटा रही थी। धीरे धीरे करके उसने ब्लाउज के सारे बटन खोल दी और उसकी नजर लगातार आईने में नजर आ रही है उसके ऊपर टिकी हुई थी। जो कि अभी भी लैपटॉप में ही व्यस्त था। ब्लाउज के बटन खोलने के बाद वह आहिस्ते आहिस्ते अपने ब्लाउज को अपनी बाहों से निकालकर वहीं पास में पड़ी टेबल पर रख दी।
चूचियां काफी बड़ी होने के कारण और ब्रा का साइज कुछ छोटा होने की वजह से चुचियों के बीच की लकीर कुछ ज्यादा ही गहरी नजर आती थी। यह नजारा देखकर तो खुद निर्मला कि जाँघों के बीच भी सुरसुराहट होने लगती थी तो सोचो मर्दों का क्या हालत होता होगा। निर्मला जानबूझकर अपनी कलाइयों में पहनी हुई रंग बिरंगी चूड़ियां खनका रही थी कि शायद चूड़ियों की खनखनाहट से अशोक का ध्यान इधर हो,,, और सच में ऐसा हुआ अभी अशोक का ध्यान लैपटॉप से हटकर एक पल के लिए आईने पर चला गया,,,, अशोक की नजर आईने पर देखते ही निर्मला एक पल भी गंवाएं बिना अपने दोनों हाथों को पीछे ले जाकर अपनी ब्रा की हुक को खोलने लगी,,,, अगले ही पल उसने ब्रा के हुक को खोलकर धीरे धीरे अपनी ब्रा को बाहों में से निकालने लगी,,,, और अगले ही पल उसकी ब्रा भी उसकी दोनों चुचियों को आजाद करते हुए टेबल पर पड़ी थी। निर्मला की दोनों चुचीया एकदम आजाद हो चुकी थी। एकदम कसी हुई और तनी हुई जिसे के आकर्षण में अशोक अभी तक अपनी नजरें आईने में गड़ाए हुए था। निर्मला अशोक को उसकी तरफ से देखते हुए मन ही मन मुस्कुराने लगी और यह जाहिर नहीं होने दी कि वह अशोक को उस को निहारते हुए देख रही है। अशोक को रिझाने के लिए वह अपने दोनों हाथों से एक बार अपनी बड़ी बड़ी छातियों को हथेली में भरकर हल्के से दबाई और फिर छोड़ दी। सीधी सादी संस्कारी निर्मला की यह हरकत बड़ी ही कामुक थी और इसका असर अशोक पर भी हुआ वह एकटक अपनी नजरें आईने पर गड़ाए हुए था। यह देख कर निर्मला की भी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी उसके बदन में उत्तेजना का संचार हो रहा था। अपनी हरकत की वजह से निर्मला को अपनी बुर से हल्का हल्का रिसाव सा महसूस हो रहा था, जोकि निर्मला के उन्माद को बढ़ा रहा था। अशोक की आंखे आईने पर टीकी हुई देखकर निर्मला एक पल भी करवाना उचित नहीं समझती थी इसलिए उसने तुरंत अपनी कमर में बनी हुई साड़ी को खोलने लगी और अगले पल उसके बदन से साड़ी भी उतर कर टेबल पर पड़ी हुई थी। निर्मला के बदन पर केवल पेटीकोट ही रह गई थी।

जिसमें से उसकी भरावदार बड़ी-बड़ी गांड और भी ज्यादा उभरी हुई नजर आ रही थी जिस पर अब अशोक की नजर बराबर टिकी हुई थी।,,, अशोक की नजरें उसकी गांड पर टिकी हुई है यह जानकर निर्मला की उत्तेजना बढ़ने लगी उसकी धड़कन तेज चलने लगी। और उसके हाथ धीरे से पेटीकोट की डोरी पर चली गई और हल्के से अपनी उंगलियों को हरकत देते हुए पेटीकोट की डोरी को एक झटके से खींच दी,,
एक झटके से डोरी को खींचते ही पेटीकोट का कसाव कमर के ऊपर से ढीला पड़ गया,,, और पेटीकोट ढीली पड़ते ही,,,, निर्मला ने हाथ में पकड़ी हुई डोरी पेटीकोट सहित छोड़ दी,,, निर्मला ने यह हरकत जिंदगी में पहली बार करी थी न जाने कहां से उसमें यह करने की हिम्मत आ गई थी। निर्मला तो अशोक को रिझाने की कोशिश तो हमेशा से करती ही आ रही थी लेकिन आज इस कोशिश में यह हरकत पहली बार शामिल हुई थी,,, पेटीकोट के छोड़ते ही पेटीकोट सीधी कमर से फीसलती हुई,,, भरावदार नितंबों को उजागर करते हुए नीचे कदमों में आ गिरी,,,, जिससे निर्मला पूरी की पूरी आईने के सामने नंगी हो गई उसके बदन पर मात्र एक पेंटी ही बची थी,,, लेकिन पेंटी भी ऊसकी बड़ी बड़ी भरावदार गांड को ढंक पाने मे असमर्थ साबित हो रही थी। अशोक को आज अपनी बीवी को रिझाने का यह रवैया बहुत ही कामुक लगा वह इसलिए तो एकटक आंख फाड़े अपनी बीवी की खूबसूरती को देखे जा रहा था। और यह बात निर्मला को भी अच्छी लग रही थी।
और अगले ही पल निर्मला ने अपने हाथों की दोनों अंगुलियों को पैंटी के इर्द-गिर्द ऊलझाकर धीरे धीरे पेंटिं को नीचे सरकानै लगी। निर्मला की यह कामुक अदा और हरकत अशोक को इस समय बेहद अचंभे में डाल रही थी,,,, क्योंकि जिस तरह की हरकत निर्मला आज कर रही थी इस तरह की हरकत ऊसनें पहले कभी नहीं
की थी । वह पेंटिं उतारते समय जिस तरह से अपनी भरावदार बड़ी-बड़ी उभरी हुई गांड को दांए बांए कर के मटका रही थी,,,, कसम से अगर कोई इस नजारे को देख ले तो उसका तो खड़े खड़े ही पानी निकल जाए।
निर्मला जिस तरह से अपनी गांड मटकाते हुए पेंटी को उतार रही थी उससे एक अजीब प्रकार की थिरकन
हो रही थी,, और ऊस थिरकन को देखकर अशोक का मन एक पल के लिए ललच सा गया। इसमें अशोक का दोस्त बिल्कुल भी नहीं था निर्मला के बदन की बनावट ही भगवान ने कुछ इस तरह की बनाई थी की उसे अगर
दुनिया का कोई भी इंसान किस अवस्था में देख ले तो उसका मन उसे पाने को ललच जाएं। स्वर्ग की अप्सरा भी निर्मला की खूबसूरती देखकर शर्मा जाए इस तरह से भगवान ने उसे बनाया था। निर्मला अपनी खूबसूरती और अपनी कामुक अदाओं के जलवे बिखेरते हुए धीरे-धीरे अपनी पैंटी को नीचे सरकाते हुए अपने भारी भारी गोल नितंबों के नीचे तक ला दी,,, नितंबों के ठीक नीचे
पैंटी की इलास्टिक रबर कसी हुई थी, और इस तरह से इलास्टिक की डोरी कसी होने की वजह से निर्मला की गोल गांड और भी ज्यादा कामुक और उभरी हुई लग रही थी। जिसे देख कर अशोक की सांसे थम गई निर्मला भी लगातार आईने में अशोक को निहारते हुए मन ही मन प्रसन्न हो रही थी। आज जो उसने हिम्मत दिखाई थी उसे खुद पर यकीन नहीं हो रहा था अपनी कामुक हरकतों की वजह से आज मन ही मन उसकी उत्तेजना और भी ज्यादा बढ़ रहीे थी,,, जिसकी वजह से उसकी बुर से नमकीन पानी का रिसाव बड़ी तेजी से हो रहा था। निर्मला का दिल बड़े जोरों से धड़क रहा था।
उत्तेजना और उन्माद के मारे उसका गला सूख रहा था।
अगले ही पल निर्मला ने धीरे-धीरे पैंटी को घुटनों से नीचे सरका दी,,,, पेंटी को घुटनो से नीचे पहुंचते ही निर्मला सीधी खड़ी हो गई और केवल पैरों के सहारे से ही वहां अपनी पैंटी को नीचे कर के पेऱ से बाहर निकाल दी। अब निर्मला के बदन पर कपड़े का एक रेशा भी नहीं था वह पूरी तरह से निर्वस्त्र हो चुकी थी। पूरी तरह से नंगी,, ट्यूबलाइट की दुधीया प्रकाश में उसका गोरा बदन और भी ज्यादा निखरकर सामने आ रहा था जिसकी चकाचौंध में अशोक की आंखें चौंधिया जा रही थी।
निर्मला मन ही मन प्रसन्न हो रही थी उसे लगने लगा था कि आज अशोक जी भर के ऊसे प्यार करेगा। क्योंकि आज उसने अशोक को रिझाने की अपनी तरफ से पूरी कोशिश की थी। इस समय निर्मला बहुत ही पसंद नजर आ रही थी उसने कभी अपने मुंह से इस बात को जाहिर नहीं होने दी थी लेकिन मन ही मन यह जरूर चाहती थी कि उसका पति,,,,, संभोग करते समय से बेहद प्यार करे अपने लंड को उसकी बुर की गहराई तक जोर-जोर से डालते हुए उसे चोदे,,,,, लेकिन आज शोक ज्यादा देर तक टिक भी नहीं पाता था,,,, इसका एक कारण यह भी था कि अशोक उसे पहले की तरह प्यार नहीं करता था बल्कि उसकी खूबसूरती को उसके बदन को खुद निर्मला को नजरअंदाज करता था और दूसरा सबसे बड़ा कारण यह था कि निर्मला अंदर ही अंदर बहुत ही प्यासी थी,,,,, हां यह बात अलग है कि उस के संस्कार नहीं इस बात को कभी जाहिर होने नहीं दिया लेकिन अंदर ही अंदर वहां जबरजस्त चुदाई को तड़प रही थी और इस कदर संभोग की प्यासी होने की वजह से उसकी बुर की अंदरूनी दीवारें इतनी ज्यादा गर्म होती थी कि,,,, अशोक अपना लंड डालते ही बुर की गर्मी बर्दाश्त नहीं कर पाता था और कुछ ही मिनटों में,,,,, बिस्तर के मैदान पर हथियार नीचे रखते हुए हार मान लेता था। इस वजह से निर्मला हमेशा प्यासी ही रहती थी लेकिन आज उसे लगने लगा था कि परसों की दबी हुई प्यार आज भी जरूर बुझेगी,,,,, इसलिए वह मदमस्त अंगड़ाई लेते हुए बालों के जुड़े को खोल दी जिससे उसके रेशमी काले घने बाल खुलकर हवा में लहराने लगे। खुले बालों की वजह से उसकी खूबसूरती में चार चांद लग रहे थे जो कि उसके लंबे घने बाल उसकी कमर तक आते थे।
आईने में अपने रूप और नंगे बदन की खूबसूरती को देखकर खुद निर्मला शर्मा करो और ज्यादा देर तक इस अवस्था में खड़ी ना रह सकी,,,, और तुरंत अलमारी में से अपना गांऊन निकाल कर पहन ली। गाऊन के पहनते ही एक बड़े ही उत्तेजक उन्माद से भरे हुए कामुक दृश्य पर पर्दा पड़ चुका था। उत्साहजनक और बेहद कामुकता से भरे हुए वातावरण को निर्मला की इस हरकत में निराशाजनक बना दिया। अशोक भी जोंकी उत्तेजित हुए जा रहा था निर्मला की इस हरकत से उस पर भी ठंडा पानी पड़ गया था। निर्मला की हरकत देखते हुए अशोक को आज निर्मला से कुछ ज्यादा ही उम्मीद थी उसे लगने लगा था कि निर्मला शायद आज और भी ज्यादा अपने बदन के जलवे बिखेरेगी,,,,लेकीन एेसा बिल्कुल भी नहीं हुआ इसलिए निराश होकर के वह वापस लैपटॉप में व्यस्त हो गया,,,,,,, और निर्मला मन में ढेर सारे उम्मीदे लिए अपने ऊपर खुशबूदार स्प्रे का छिड़काव कर रही थी ताकी कमरे का वातावरण और ज्यादा रोमांटिक हो जाए। निर्मला अपने आप को बिस्तर पर जाने से पहले पूरी तरह से तैयार कर ली थी और वह बिस्तर पर जाने के लिए कल भी तो अशोक को लैपटॉप में व्यस्त पाकर थोड़ा सा उदास हुई लेकिन शायद अशोक अपने पिछले व्यवहार के कारण इस तरह से कर रहा है यह सोचकर वह बिस्तर पर जाकर करवट लेकर के लेट गई। निर्मला की पीठ अशोक की तरफ थी। और वह इंतजार कर रही थी कि अशोक कब ऊसके बदन को स्पर्श करता है। और इसी उम्मीद की वजह से उसके बदन में अजीब प्रकार की गुदगुदी हो रही थी,,,,। अशोक के ऊपर उसके तन-बदन में निर्मला काम भावना जगाने में पूरी तरह से कामयाब हो चुकी थी लेकिन अंतिम क्षण में उसने गाउन पहन कर जो गलती कर दी थी उससे अशोक का मन बदल गया था।
इसलिए वह अब निर्मला पर ध्यान दिए बिना ही लैपटॉप में व्यस्त हो चुका था और दूसरी तरफ निर्मला अशोक का इंतजार करते-करते पेड़ से प्यार करते हुए थक हारकर नींद की आगोश में चली गई एक बार फिर से निर्मला को निराशा ही हाथ लगी थी।
निर्मला सो चुकी थी और अभी भी अशोक लैपटॉप पर ऑफिस का काम करने में व्यस्त था निर्मला के सोने के एकाध घंटे बाद ही अशोक की नजर फिर से निर्मला की भरावदार गांड पर गई जो कि गांऊन के अंदर थी लेकिन सोने की वजह से निर्मला का गांव अस्त व्यस्त हो चुका था और चढ़कर जांघो तक आ चुका था। निर्मला की आधी नंगी जांघ को देख कर अशोक से रहा नहीं गया और वह पहले कि ही तरह एक बार फिर से निर्मला के ऊपर चढ़कर झुकने लगा और उसकी जांघों को फैला कर बिना प्यार कीए ही अपने खड़े लंड को सीधे निर्मला की बुर पर रखकर अंदर ही डाल दिया। निर्मला के अरमान की स्याही जो की बुर से बह रही थी वह सुख चुकी थी,,, इसलिए अशोक की इस हरकत की वजह से उसे दर्द होने लगा और उसकी आंख खुल गई लेकिन इस बार बिना कुछ बोले आंखों से आंसू बहाते हुए और अपने किस्मत को कोसते हुए अशोक के हर धक्के के साथ दर्द को झेलती रही,,, और अशोक जी निर्मला की प्यासी और दहकती हुई गरम बुर की दीवारों की रगड़ को ज्यादा देर तक सहन नहीं कर पाया और एक बार फिर से अपना हथियार नीचे रख दिया।
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