अधूरी हसरतें

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Rohit Kapoor
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अधूरी हसरतें

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अधूरी हसरतें

फ्रेंड्स कैसे हैं आप सब काफ़ी दिन का ब्रेक लेने के बाद एक और कहानी आपकी खिदमत में पेश करने जा रहा हूँ और आपसे यही फेवर चाहता हूँ कि आप इस नये सफ़र के हमराही बन कर साथ साथ रहेंगे
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Rohit Kapoor
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Re: अधूरी हसरतें

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निर्मला ए,सी, की ठंडी हवा में अपने कमरे में अपने पति के साथ गहरी नींद में सोई हुई थी कि अचानक उसे ऐसा महसूस हुआ कि कोई उसे उसकी बांह पकड़ कर सीधे पीठ के बल कर दीया, और तभी ऊसे ऊसकी गाउन ऊपर की तरफ सरकती हुई महसूस होने लगी। एक पल तो ऊसे ऐसा लगा कि वह सपना देख रही है, क्योंकि वह बहुत ही गहरी नींद में सोई हुई थी वह चाहकर भी अपनी आंखों को खोल नहीं पा रही थी। गाउन पूरी तरह से उसके कमर तक चढ़ चुकी थी कमर से नीचे वह पूरी तरह से नंगी थी, केवल पेंटी ही ऊसके नंगेपन को छीपाए हुए थी की तभी एक झटके से उसकी पैंटी भी उसकी टांगों से होकर के बाहर निकल गई,, कमर से नीचे वह पूरी तरह से नंगी हो चुकी थी लेकिन कुछ भी उसके समझ में नहीं आ रहा था उसकी आंखें बंद थी। वह इतनी गहरी नींद में थी की आंखें खोलने भर की ताकत उसमें नहीं थी बस एक सपना सा ऊसे लग रहा था। तभी उसकी मोटी मोटी जांघो पर दो हथेलियां महसूस हुई जो कि उसकी जांघों को फैला रही थी, तबीयत पर था इसलिए उसे अपने ऊपर झुकती हुई महसूस हुई और वह कुछ समझ पाती इससे पहले ही उसे अपनी बुर पर कड़ेपन का अहसास हुआ, जैसे ही उसने आंख खोली उसके मुंह से दर्द भरी कराहने की आवाज निकल गई,,,,,

आहह,,,,,,,,
( उसके कराहने की आवाज के साथ ही उसकी बुर में पूरा लंड जड़ तक घुस गया,,,, )

आहहहहह,,,,,,, रुक जाइए प्लीज ऐसा मत करिए मुझे बहुत दर्द होता है,,,,,,, रहने दीजिए प्लीज मुझे बहुत दर्द हो रहा है,,,,,,,,,,,

आहहहहहहह,,,,,,,,, अाहहहहह,,,,,,, औहहहहह,,,, मा्ंआ,,,,,,,, ( निर्मला के दर्द कि उसकी पीड़ा की परवाह किए बिना ही वह उसकी बुर में बेरहमी से लंड पेलता हुआ बोला।)

शादी के 20 साल गुजर जाने के बाद भी तू चुदवाते समय ऐसे चिल्लाती है जैसे की पहली बार करवा रही हो। ( इतना कहते हुए वह फिर से जोर जोर से दो-चार धक्के और लगा दिया।)
आहहहहहहह,,,,,, आहहह,,,,,, आहहहहहहह,,,,,,
ओहहहहह,,,, म्मांआआ,,,,,,, तो यह भी कोई तरीका है कितना दर्द होता है मालूम है आपको,,,,,,

मेरा तो यही तरीका है तेरे कहने पर तुझे नहीं चोदुंगा जब मेरा मूड करेगा तभी तुझे चोद़ूंगा।

मैंने कब आपसे कभी कही कि मुझे यह सब करना है,,,,,, ( निर्मला आंखों में दर्द के आंसू छलकाते हुए रुंवासी होकर बोली।)

तो कुछ नहीं कहती यही तो तेरी गलती है,, तुझसे शादी करके मेरी जिंदगी खराब हो गई,, मुझे खुले बिचारो वाली बीबी चाहिए थी लेकिन मेरीे नसीब खराब थी कि मुझे तुम मिल गई।
( इतना कहते हुए जोर जोर से दो चार धक्के और लगाया ही था कि वह झड़ने लगा, वह अपना पानी निर्मला की बुर में उड़ेलने लगा और हाँफते हुए शोभा के ऊपर ही ढह गया। कुछ देर तक वह निर्मला के ऊपर ही लेटा रहा और फिर उठकर सीधे कमरे के बाहर चला गया,,, निर्मला अपनी किस्मत को कोसते हुए आंसू बहाते हुए लेटी रही,,,,, निर्मला अधूरी जिंदगी जी रही थी उसे वह दिन याद आ गया जब वह अशोक से शादी करके पहली बार इस घर में आई थी। लड़कियों के मन में शादी को लेकर जिस तरह के अरमान होते हैं, वही सब अरमान निर्मला के मन में भी था। वह भी अपने मन में सपना संजोए हुई थी कि उसका पति पढ़ा-लिखा और समझदार हो जो उस से बेहद प्यार करे, उस को सम्मान दे उसकी इज्जत करें उसकी जरूरतों का ख्याल रखें। जोकी निर्मला खुद ग्रेजुएट थी। समझदार चतुर और बेहद संस्कारी लड़की थी। संस्कार तो उसे विरासत में मिली थी क्योंकि उसके माता पिता दोनों सरकारी स्कूल में शिक्षक शिक्षिका के पद पर थे। उन्होंने निर्मला को भी अपनी ही तरह पढ़ा-लिखा कर ग्रेजुएट करके एकदम संस्कारी लड़की बनाए हुए थे। निर्मला भी अपने माता पिता के राहे कदम पर चलते हुए कभी भी समाज में ऐसा कोई काम नहीं कि जिसे उसके माता पिता की नजरें शर्म से नीचे झुक जाए। वह भी ससुराल में स्कूल में शिक्षिका की पदवी पर थी। देसी वह खुद ही दूसरे बच्चों को भी वैसा ही संस्कार दे दी थी और हमेशा शिक्षण को ही ज्यादा महत्व देती थी।
अशोक से शादी करने के बाद उसे लगने लगा था कि उसके सारे सपने पूरे हो गए हैं। और ठीक वैसा ही था अशोक भी उससे बेहद प्यार करता था उसकी जरूरतों का ख्याल रखता था उसको इज्जत देता था। निर्मला भी बेहद खुश थी वह अपने पति को बेहद प्यार करती थी। शादी के 1 साल बीतते ही निर्मला गर्भवती हो गई,, और उसने एक सुंदर से बच्चे को जन्म दि, जिससे दोनों की खुशी दुगनी हो गई। बच्चे के जन्म के बाद धीरे-धीरे अशोक अपने बिजनेस को बढ़ाने में लग गया। वह अपनी पत्नी निर्मला पर कम ध्यान देने लगा अधिकतर समय वह घर से बाहर ही रहने लगा लेकिन इसे भी निर्मला को कोई एतराज नहीं था वह अपने पति अशोक से बेहद खुश थी लेकिन धीरे-धीरे अशोक के रवैया में बदलाव आने लगा,,,,,, शादी के तीन साल बाद ही अशोक का व्यवहार निर्मला की तरफ बेहद रूखा हो गया। धीरे-धीरे वहां उसकी इज्जत करना बंद कर दिया और उसे बार-बार बेइज्जत कर देता था। निर्मला बार-बार अशोक को समझाने की कोशिश करती रहती कि आखिरकार वह ऐसा क्यों कर रहा है उसका स्वभाव इतना ज्यादा चिड़चिड़ा होने लगा। लेकिन अशोक को समझाना निर्मला के लिए बेकार सीधा धीरे धीरे निर्मला को भी समझ में आ गया कि आखिरकार अशोक का व्यवहार उसके साथ इस तरह से क्यों बदल गया।
अशोक जिस तरह से बिस्तर में एक औरत के साथ प्यार करना चाहता था उस तरह से खुलकर निर्मला कभी भी अशोक के साथ बिस्तर पर पेश ना हो सकी।
फिर भी एक जिम्मेदार पत्नी होने के नाते वह अपनी कमी को दूर करने की पूरी कोशिश करते हुए वह बिस्तर पर अशोक के साथ प्यार करने की पूरी कोशिश की लेकिन वह नाकाम रही,,,, लाख चाहने के बाद भी वह बिस्तर में दूसरी औरतों की तरह खुलकर अपने पति से प्यार न कर सकी क्योंकि ऐसा करने में उसके संस्कार उसकीे शर्म बाधा बन जाती थी। धीरे धीरे करके आज शादी के 20 साल गुजर जाने के बाद भी हालात वही के वही थे जबकि वह दोनों की दूरियां और ज्यादा बढ़ने लगी थी निर्मला तो हमेशा इसी प्रयास में लगी रहती थी कि वह अपने पति को पूरी तरह से संतुष्ट करके उसे खुश कर सके, लेकिन हर बार उसे नाकामी ही प्राप्त होती थी। अब हाल यह हो गया था कि दोनों का रिश्ता बस बिस्तर पर 5 मिनट के लिए ही होता था वह भी जब कभी अशोक का मन होता था तभी वह अपनी प्यास बुझाने के लिए इसी तरह से निर्मला के ऊपर चढ़कर उसको दर्द देता हुआ, बेदर्दी बनकर हवस मिटा लेता था। निर्मला इसी तरह से रोती बिलखती अपनी किस्मत को कोसते हुए अशोक का हर दर्द सह रही थी।
आधुनिक युग में जीते हुए भी वहां अपने रीति-रिवाज अपनी मर्यादा अपनी शर्मो-हया को कभी भी त्याग नहीं कर पाई थी। निर्मला के पास मौज शोख का हर सामान सुविधा मौजूद था, पैसे की कोई कमी नहीं थी। बस कमी थी तो प्यार की जिसके लिए वह 20 साल से तरस रही थी।

निर्मला को बिस्तर पर लेटे लेटे ही 7 बज गए । उसे ईस बात का एहसास तब हुआ जब 7:00 का अलार्म बजने लगा। वह झट से बिस्तर पर से उठते हुए अपने गांऊन को नीचे की तरफ सरकाई, तभी उसकी नजर नीचे फर्श पड़ी ऊसकी पैंटी पर पड़ी जिसे वह उठाकर अपनी गोरी गोरी टांगों में डालकर धीरे धीरे ऊपर की तरफ उठा कर कमर में अटका ली, । वह धीरे धीरे चलते हुए दरवाजे के पास आई और दरवाजा खोलकर कमरे से बाहर निकल गई। ऊसे पता था कि अशोक अभी जोगिंग के लिए गया होगा, अशोक को ऑफिस 10:00 बजे जाना होता था इसलिए नाश्ता तैयार करने की कोई जल्दबाजी नहीं थी । वह नहाने के लिए बाथरूम में चली गई । वैसे तो उसके रूम में ही अटैच बाथरूम था लेकिन वह उसका उपयोग बहुत ही कम ही करती थी। बाथरुम में घुसकर वह जल्दी जल्दी ब्रश करने लगी ब्रेस्ट करने के बाद वहां आईने के सामने खड़ी होकर अपने कपड़े उतारने को हुई ही थी कि वह अपने चेहरे को आईने में देखने लगी,, चेहरा क्या था ऐसा लगता था मानो कोई गुलाब का फूल खिल गया हो,,,, एकदम गोल चेहरा, बड़ी- बड़ी कजरारी आंखें, गहरी आंखों में इतना नशा कि ऊनमें डूबने को जी करें। ठीक है मैंने नाक और होंठ ईतने लाल लाल के लिपस्टिक लगाएं बिना ही ऐसा लगता है कि मानो लिपिस्टिक लगाई हो। रेशमी बालों की बिखरी हुई लटे हमेशा उसके गोरे गालों से अठखेलियां करती थी। बला की खूबसूरत लेकिन फिर भी उसके चेहरे पर संतुष्टि का आभाव था, प्यार की कमी थी जो कि उसके पति से बिल्कुल भी नहीं मिल पा रही थी। जिसके लिए वह बरसों से तरस रही थी। उसके मन में एक अजीब सी उदासी छाई थी । वह भी अब अपनी जिंदगी से खुशी की उम्मीद को छोड़ चुकी थी। वह शॉवर के नीचे आई और अपने गाऊन को दोनों हाथों से ऊपर की तरफ ऊठाते हुए अपनी बाहों से होते हुए बाहर निकाल दी, गाऊन निकालते ही उसका गोरा बदन और भी ज्यादा दमकने लगा जिस की चमक से पूरा बाथरूम रोशन हो गया। लंबे कद काठी की निर्मला बिना कपड़ों के और भी ज्यादा खूबसूरत लग रही थी।
उसके बदन पर केवल गुलाबी रंग की पैंटी और गुलाबी रंग की ब्रा थी। बदन के पोर पोर से ऐसा लग रहा था कि मानो मदन रस टपक रहा हो। गुलाबी रंग की कसी हुई ब्रा मे दूध से भरी हुई बड़ी बड़ी चूचियां बड़ी ही मादक लग रही थी, चुचियों का आकार एकदम गोल गोल ऐसा लग रहा था कि जैसे रस से भरा हुआ खरबूजा हो। कसी हुई ब्रा के अंदर कैद चूचियां आधे से भी ज्यादा बाहर नजर आ रही थी। और चुचियों के बीच की गहरी लंबी लकीर किसी भी मर्द को गर्म आहें भरने के लिए मजबूर कर दे। गुदाज बदन का हर एक अंग अलग आभा और कटाव लिए हुए था। बलखाती कमर पूरे बदन को एक अजीब ओर मादक तरीके से ठहराव दिए हुए था। पूरे बदन पर अत्यधिक चर्बी का कहीं भी नामोनिशान नहीं था पूरा शरीर सुगठित तरीके से ऐसा लग रहा था मानो कि भगवान ने अपने हाथों से बनाया हो। गुदाज बांहैं, जिनमें समाने के लिए हर एक मर्द तरसता रहता था। गुदाज बदन जिसे पाने का सपना हर एक मर्द अपने दिल के कोने में बसाए रखता था। मांसल जांघें ईतनी चिकनी की ऊंगली रखते ही उंगली फिसल जाए।

गोरा रंग तो इतना जैसे कि भगवान ने सुंदरता के सारे बीज को एक साथ पत्थर पर पीसकर उसका सारा रस निर्मला के बदन में डाल दिया हो । और कहीं भी हल्के से हाथ रख देने पर भी वहां का रंग एकदम लाल लाल हो जाता था। एक तरह से निर्मला को खूबसूरती की मिसाल भी कह सकते थे।
निर्मला शॉवर को चालू किए बिना ही उसके नीचे खड़ी होकर के अपने बदन को ऊपर से नीचे तक निहारने लगी। उसे खुद ही कुछ समझ में नहीं आ रहा था। इस तरह की अपनी किस्मत पर उसे बहुत ही ज्यादा क्रोध आता था। वह मन ही मन सोचती थी कि इतनी खूबसूरत होने के बावजूद उसका हर एक अंग इतना खूबसूरत होने के बावजूद भी वह अपने पति को अपनी तरफ कभी भी आकर्षित नहीं कर पाई। भगवान ने उसे खूबसूरती देने में कहीं कोई भी कसर बाकी नहीं रखा था । लेकिन शायद भगवान को भी इसकी खूबसूरती से जलन होने लगी और उसने उसकी किस्मत में पति से विमुख होना और प्यार के लिए तरसना लिख दिया।
निर्मला अपनी किस्मत और अपने जीवन से जरा सी भी खुश नहीं थी। वह मन में उदासी लिए अपने दोनों हाथ को पीछे ले जाकर के नरम नरम अंगुलियों के सहारे ब्रा के हुक को खोलने लगी । और अगले ही पल उसने ब्रा का हुक खोल कर अपनी ब्रा को एक एक करके अपनी बाहों से बाहर निकाल दि। जैसे ही निर्मला के बदन से ब्रा अलग हुई वैसे ही उसकी नंगी नंगी चूचियां एक बड़े ही मादक तरीके की गोलाई लिए हुए तनकर खड़ी हो गई। इस उम्र में भी निर्मला की बड़ी बड़ी चूचियां लटकने की वजाय तन कर खड़ी थी, जिसका कसाव ओर गोलाई देख कर लड़कियां भी आश्चर्य से दांतों तले उंगलियां दबा ले। निर्मला खुद ही दोनों चुचीयों को अपनी हथेली में भर कर हल्के से दबाई जोकी ऊसकी बड़ी बड़ी चूचियां उसकी हथेली में सिर्फ आधी ही आ रही थी। कुछ सेकंड तक वह अपनी हथेलियों को चूचियों पर रखी रही उसके बाद हटा ली। उसके बदन पर अब सिर्फ पेंटी ही रह गई थी जिसके दोनों की नारियों पर निर्मला की अंगुलियां ऊलझी हुई थी, और वह धीरे धीरे अपनी पैंटी को नीचे की तरफ सरकाने लगी,,,,, निर्मला तो औपचारिक रुप से ही अपनी पेंटिं को नीचे सरका रही थी लेकिन बाथरूम का नजारा बड़ा हि मादक और कामुक था। अगले ही पल निर्मला ने घुटनों के नीचे तक अपनी पेंटी को सरका दी, उसके बाद पैरों का सहारा लेकर के पेंटी को अपनी चिकनी लंबी टांगों से बाहर निकालकर संपूर्ण रुप से एकदम नंगी हो गई। इस समय बाथरुम की चारदीवारी के अंदर वह पूरी तरह से नंगी थी उसके बदन पर कपड़े का एक रेशा तक नहीं था। बाथरूम के अंदर नग्नावस्था मैं वह स्वर्ग से उतरी हुई कोई अप्सरा लग रही थी। जांघों के बीच पेंटी के अंदर छीपाए हुए बेशकीमती खजाने को वह आजाद कर दी थी, निर्मला ने अपनी बेशकीमती रसीली बुर को एकदम जतन से रखी हुई थी तभी तो इसे उम्र में भी उसकी बुर की गुलाबी पंखुड़ियां बाहर को नहीं निकली थी, बुर पर मात्र एक हल्की सी लकीर ही नजर आती थी जो कि ईस उम्र में नजर आना नामुमकिन था, निर्मला की बुर पर बस एक पतली सी गहरी लकीर ही नजर आती थी और उसके इर्द-गिर्द बाल के रेशे का नाम भी नहीं था वह पूरी तरह से अपनी बुर को हमेशा चिकनी ही रखती थी क्योंकि बुर पर बाल अशोक को बिल्कुल भी पसंद नहीं था ।निर्मला के नितंबों की तारीफ जितनी की जाए उतनी कम थी। नितंबों का उभार कुछ ज्यादा ही था । देखने वाले की नजर जब भी निर्मला की मदमस्त उभरी हुई गांड पर पड़ती थी तो वह देखता ही रह जाता था और मन में ना जाने उस के नितंबों को लेकर के कितने रंगीन सपने देख डालता था।
नितंबों पर अभी भी जवानी के दिनों वाला ही कसाव बरकरार था। गांड के दोनों फांखों के बीच की गहरी लकीर,,,,, ऊफ्फ्फ्फ,,,,,,,, किसी के भी लंड का पानी निकालने में पूरी तरह से सक्षम थी। इतना समझ लो कि निर्मला पूरी तरह से खूबसूरती से भरी हुई कयामत थी ।
उसने शॉवर चालू कर दि और सावर के नीचे खड़ी होकर नहाना शुरू कर दी । वह आहिस्ते आहिस्ते खुशबूदार साबुन को अपने पूरे बदन पर रगड़ रगड़ कर लगाई,,,,, वह साबुन लगाए जा रही थी और उसके बदन पर पानी का फव्वारा गिरता जा रहा था। थोड़ी देर में वह नहा चुकी थी और अपने नंगे बदन पर से पानी की बूंदों को साफ करके अपने बदन पर टॉवल लपेट ली।
अपने नंगे बदन पर टावल लपेटने के बाद वह बाथरुम से निकल कर सीधे अपने कमरे में चली गई। कमरे में जाते ही उसने अलमारी खोली जिसमें उसकी मैं ही महंगी रंग-बिरंगी साड़ियां भरी हुई थी। उसमें से उसने अपने मनपसंद की साड़ी निकाल कर के उसके मैचिंग का ब्लाउज पेटीकोट और उसी रंग की ब्रा पेंटी भी निकाल ली।
उसके बाद वह आईने के सामने खड़ी होकर के अपने बदन पर लपेटे हुए टॉवल को भी निकालकर बिस्तर पर फेंक दी और एक बार फिर से उसकी नंगे पन की खूबसूरती से पूरा कमरा जगमगा उठा। सबसे पहले वहं ब्रा उठा करके उसे पहनने लगी और अपनी बड़ी बड़ी चूचीयो को फिर से अपनी ब्रा में छुपा ली, फिर ऊसने पेंटी पहनकर अपने बेश कीमती खजाने को भी छीपा ली। धीरे धीरे करके उसने अपने बदन पर सारे वस्त्र धारण कर ली। इस वक्त अगर कोई निर्मला को देख ले तो उसके मुंह से वाह वाह निकल जाए। जितनी खूबसूरत और निरवस्र होने के बाद नजर आती है उससे भी कहीं ज्यादा खूबसूरत कपड़े पहनने के बाद दीखती थी।
अपने पसंदीदा गुलाबी रंग की साड़ी में वह बला की खूबसूरत लगती थी। लंबे काले घने रेशमी बाल भीगे होने की वजह से उसका ब्लाउज भीग गया था जिसकी वजह से उसके अंदर की गुलाबी रंग की ब्रा नजर आ रही थी। जो कि बड़ा ही मनमोहक लग रहा था। निर्मला कमर के नीचे साड़ी को कुछ हद तक टाइट ही लपेटती थी जिससे कि उसके कमर के नीचे का गांड का घेराव कुछ ज्यादा ही उभरा हुआ नजर आता था । ईस तरह से साड़ी पहनने की वजह से उसके अंगों का उभार और कटाव साड़ी के ऊपर भी उभर कर सामने आता था। जिसे देख कर हर मर्द ललचा जाता था ।निर्मला आपने के लिए बालों को सुखाकर उसे सवारने लगी।
थोड़ी ही देर में निर्मला पूरी तरह से तैयार हो चुकी थी वह तैयार होने के बाद बेहद खूबसूरत लग रही थी मगर ऐसे में दूसरा कोई भी इंसान देख ले तो उसके मन में निर्मला को पाने की लालसा जाग जाए। निर्मला खुद भी यही सोचती थी, लेकिन उसे यह नहीं समझ में आ रहा था कि उसके पति अशोक को आखिर क्या चाहिए था।
निर्मला तैयार होने के बाद जैसे ही कमरे का दरवाजा खोलने को हुई की घर में बने मंदिर में से घंटी की आवाज आने लगी।
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घर के मंदिर से आ रही घंटी की आवाज सुनकर वह समझ गई की शुभम तैयार हो चुका है। निर्मला के बेटे का नाम शुभम था। जोकि बड़ा ही संस्कारी लड़का था।
घर में सब से पहले वही उठता था और नित्य कर्म करके नहा धोकर के सबसे पहले वह भगवान की पूजा किया करता था। शुभम का व्यवहार दूसरे लड़कों की तरह बिल्कुल भी नहीं था वह बहुत ही सादगी में रहता था घर में किसी भी चीज की कमी नहीं थी। अशोक ने मौज शौख के सारे सामान घर में बसा रखे थे लेकिन इन सब से शुभम का दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं था वह बस अपने काम से काम रखता था। पढ़ाई लिखाई व्यायाम और कसरत बस इसी में हमेशा रचा पचा रहता था। सुबह 4:00 बजे ही उठ कर उसकी दिनचर्या शुरू हो जाती थी। कसरत और व्यायाम करना वह कभी नहीं भूलता था।
निर्मला कमरे का दरवाजा खोलकर बाहर की तरफ जाने लगी जैसे ही सीढ़ियों से उतर कर नीचे पहुंच ही रही थी कि सामने से पूजा कब से शुभम बाहर आ रहा था और वहां अपनी मां को देखकर सबसे पहले ऊन्हे नमस्ते किया।

प्रणाम मम्मी (अपनी मां के पैरों को छू कर के)

जीते रहो बेटे,,,,, तैयार हो गए,,,

हां मम्मी मैं तैयार हो गया।

जाओ कुछ फ्रूट खाकर के दूध पी लो।

जी मम्मी ( इतना कहकर वह रसोईघर में फ्रूट और दूध लेने चला गया,, कभी अशोक भी जोगिंग करके वापस आ गया । घर में घुसते ही वह निर्मला पर नजर डाले बिना ही बाथरूम की तरफ चला गया। इसी तरह से अशोक का निर्मला को नजर अंदाज करना कांटे की तरह चुभता था। अशोक की इस तरह की हरकत को बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं कर पाती थी लेकिन कर भी कुछ नहीं सकती थी इसलिए वह मन में दर्द की वेदना लिए अंदर ही अंदर घुटती रहती थी।

थोड़ी देर बाद वह नाश्ता तैयार करके, नाश्ते को टेबल पर लगाकर अशोक का इंतजार कर रही थी, निर्मला शुरू से ही अशोक के खाने के बाद ही या उसके साथ ही नाश्ता या भोजन करती थी लेकिन इस बात की अशोक को बिल्कुल भी परवाह नहीं होती थी। रोज की ही तरह वह तैयार होकर के आया और कुर्सी पर बैठकर निर्मला से बिना कुछ बोले ही नाश्ता करने लगा। ब्रेड पर मक्खन लगाकर वह खाते समय तिरछी नजर से निर्मला पर जरूर नजरें फेर ले रहा था लेकिन बोल कुछ भी नहीं रहा था। निर्मला अशोक के मुंह से अपनी खूबसूरती की तारीफ में दो शब्द सुनने को तरस गई थी।
अशोक से तो झूठ मूठ का भी तारीफ में दो शब्द नहीं निकलते थे। लेकिन राह चलते कभी भी लफंगो के मुंह से उसे अश्लील तारीफ सुनने को मिल ही जाती थी।
हाय क्या माल है,,,, हाय चिकनी कहां जा रही हो,,,,, कभी कभी तो ईससे भी ज्यादा गंदे कमेंटस सुनने को मिल जाते थे।

हाय मेरी रानी,,,, चुदवाओगी,,,,,,,, तुम्हारी गांड कीतनी बडी़ है,,,,,,, कभी हमे भी दुध पिला दीया करो,,,,,,,

इस तरह के कमेंट सुनकर के तो निर्मला अंदर ही अंदर डर के मारे थरथरा जाती थी। वह अपने बारे में इस तरह के कमेंट सुनने की बिल्कुल भी आदी नहीं थी वह तो अपने पति के मुंह से अपनी खूबसूरती में चंद शब्द सुनने को तरस रही थी। लेकिन उसकी यह तरस दिन-ब-दिन तड़प मे बदलती जा रही थी। अशोक चुपचाप नाश्ता करके निर्मला से बिना कुछ बोले ऑफिस के लिए निकल गया । निर्मला भी आखिरकार अपनी किस्मत से समझौता करते हुए चुपचाप नाश्ता कर ली।
शुभम भी नाश्ता करके स्कूल जाने के लिए बिल्कुल तैयार बैठा था शुभम एक दम गोरा चिट्टा गठीला बदन वाला लड़का था कसरत और व्यायाम करने की रोज की आदत की वजह से वह एकदम सुगठित बदन का मालिक बन चुका था उम्र कम होने के बावजूद भी वह अपनी उम्र से 2 साल बड़ा ही लगता था। लड़कियां शुभम के सुगठित बदन को देखकर मन ही मन सिसकारी भरा करती थी। लड़कियां हमेशा कोई ना कोई बहाना ढूंढती रहती थी शुभम के नजदीक जाने की लेकिन शुभम थाकी उन लोगों को जरा भी घास नहीं डालता था। वह बिना वजह के कुछ बोलता ही नहीं था।
निर्मला को शुभम का यह शांत स्वभाव बहुत अच्छा लग रहा था वह सुबह से हमेशा प्यार से ही बातें करती थी।
निर्मला ने आज तक शुभम को किसी भी बात के लिए ना डांटी ना फटकारी,,,, और शुभम भी कभी कोई ऐसी गलती करता ही नहीं था कि निर्मला को इस तरह के कदम उठाने पड़े।
शुभम शुरू शुरू में 10 साल तक गांव में अपने दादा दादी के पास ही रहता था जहां पर उन्होंने उसे सिश्त में रहना सिखाया,,,,, संस्कार का बीज बचपन से ही शुभम के अंदर बोना शुरु कर दिए थे। जिसका असर आज शुभम के व्यवहार में नजर आता था। शुभम के दादा दादी के निधन के बाद अशोक और निर्मला ने वापस उसे अपने पास लाकर पढ़ाने लगे,,,,,
निर्मला अभी नाश्ता करके तैयार हो चुकी थी वह अपने कमरे में जाकर कि अपना पर्स ले आई, शुभम घर के बाहर आकर के गेराज के बाहर खड़ा हो कर के अपनी मां का ही इंतजार कर रहा था। निर्मला जिस स्कूल में पढ़ाती थी उसी स्कूल में शुभम भी पढ़ता था। निर्मला गैराज में जाकर के कार्य का दरवाजा खोल करके ड्राइविंग सीट पर बैठ गई,,,,,, निर्मला अपनी कार को खुद ड्राइव करती थी। पहले वह बस ऐसे ही उस कुल आया जाया करती थी लेकिन अपने बारे में गंदे कमेंट को सुन सुनकर बहुत परेशान हो चुकी थी इसलिए वह
कार से ही आने जाने लगी। चाबी लगाकर कार स्टार्ट करके उसने अपने पांव का दबाव एक्सीलेटर पर बढ़ा कर कार को आगे बढ़ाई और शुभम के करीब लाकर के ब्रेक लगाई शुभम झट से कार का दरवाजा खोलकर आगे वाली सीट पर बैठ गया।
कुछ ही सेकंड में निर्मला कार को मुख्य सड़क पर दौड़ाने लगी।

बेटा तुम्हारी पढ़ाई तो ठीक चल रही है ना,,,( एक हाथ को दुलार से सुभम के सर पर रखते हुए)

हां मम्मी मेरी पढ़ाई ठीक चल रही है। ( शुभम शीसे में से बाहर झांकते हुए)

कभी कोई दिक्कत हो तो जरुर बोलना,,,,,,

हां मम्मी ने जरूर बोलूंगा पर आप ऐसा क्यों बोल रही है,,,,,,


तुम्हारे स्वभाव की वजह से तुम हमेशा शांत रहते हो और बहुत ही कम बोलते हो इसलिए कह रही हूं कि भी बेझिझक पढ़ाई में कोई भी तकलीफ हो तो मुझे जरुर बताना।

ठीक है मम्मी,,,,,, ( इतना कहकर वह फिर से शीशे से बाहर झांकने लगा। अपनी बेटे की बात और उसका व्यवहार देखकर वह मुस्कुरा दी और अपनी नजरें सड़क पर रखकर कार चलाने लगी,,,,,, 15 मिनट की ड्राइविंग के बाद वह अपने स्कूल के पार्क में कार पार्क करके स्कूल की तरफ जाने लगी। शुभम अपनी मां के आगे आगे चल रहा था और निर्मला उसके पीछे पीछे,,,,

तभी पीछे से शीतल ने निर्मला को आवाज़ लगाई जो की वह भी अपनी स्कूटी को पार्क करके निर्मला के पीछे पीछे आ रही थी और वह भी निर्मला कि सहअध्यापिका ही थी।,,,,,,,,,,

निर्मला,,,,, निर्मला,,,,,,, ( तभी जानी-पहचानी आवाज सुनकर निर्मला खड़ी होकर के पीछे की तरफ देखने लगी और शीतल को आती देख कर मुस्कुराने लगी,,,, शीतल जल्दी-जल्दी निर्मला की तरफ बढ़े चली आ रही थी।)

अरे इतनी जल्दी जल्दी,,,,, क्यों चली जा रही हो क्लास भाग नहीं जाएगी,,,,,,, क्लास शुरु होने में अभी 10 मिनट का समय है,,,,,, ( शीतल मैडम की आवाज सुनकर शुभम भी रुक गया था जिसे देखकर शीतल बोली।)
तुम जाओ बेटा हम दोनों अभी आते हैं।

जी मेडम,,,,,, ( इतना कहकर सुभम अपनी क्लास की तरफ चला गया उसे जाते हुए शीतल कुछ देर तक उसे देखती ही रही,,, जब भी वह शुभम से मिलती थी तो उसकी नजरें उसके गठीले बदन पर ऊपर से नीचे की तरफ घूमती रहती थी,,,, और शुभम इतना नादान था कि शीतल की कामुक नजरों को वह पहचान नहीं पाता था। शीतल भी लंबे कद काठी की गोरी औरत थी,,, उसके भी बदन का हर एक उभार और कटाव बड़ा ही कामुक लगता था। गोल गोल बड़ी चूचियां लेकिन निर्मला से थोड़ी छोटी,,,, उभार लिए हुए नितंब भी बड़े ही उन्मादक और कामुक थे लेकिन निर्मला से कम ही।
शीतल की ब्लाउज थोड़ी सी डीप ही रहती थी, जिससे कि उसके चुचियों के बीच की लकीर कुछ ज्यादा ही नजर आती थी। सुंदरता के मामले में शीतल भी कुछ कम नहीं थी लेकिन निर्मला उसे एक कदम आगे ही थी क्योंकि शीतल भी उसकी खूबसूरती के आगे पानी भर्ती थी जो कि यह बात वह खुद उसके सामने मान चुकी थी।
शीतल बड़े ही तेज कदमों से चलती हुई निर्मला के पास आई थी इसलिए थोड़ा सा हांफ रही थी और हांफते हुए बोली।

क्या यार इतनी जल्दी जल्दी कहां चली जा रही हो गांड मटकाते हुए।

शीतल,,,,, यह क्या कह रही हो तुम कोई सुन लेगा तो क्या सोचेगा तुम्हारे बारे में,,,,, आखिर तुम एक टीचर हो टीचर को ऐसी गंदी भाषा का प्रयोग करना बिल्कुल भी शोभा नहीं देता।,,,,

हां जानती हूं लेकिन अपनी भी तो कोई लाइफ है अपना भी मन करता है कुछ ऐसी बातें करने का जिससे अपने अंदर भी गनगनाहट आ जाए। ( इतना कहकर वह हंसने लगी और उसको हंसता हुआ देखकर निर्मला बोली।)
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Re: अधूरी हसरतें

Post by Rohit Kapoor »


तुम नहीं सुधरोगीे,,,,,, (इतना कहकर वह स्कूल की तरफ कदम बढ़ाने लगी और उसके पीछे पीछे चहकते हुए शीतल भी जाने लगी,, शीतल उससे बस एक कदम की दूरी पर चल रही थी कि उसका हाथ पकड़कर उसे रोकते हुए बोली। )

रुको तो सही निर्मला,,, तुम्हें तो ना जाने कौनसी जल्दी पड़ी रहती है,,,, क्लास में जाने के लिए,,,,,,

अरे शीतल समय हो गया है कुछ ही मिनटों में क्लास शुरु हो जाएगी।( हाथ में बंध़ी घड़ी की तरफ देखते हुए बोली।)

यार तुम्हे तो बस गांड मटकाने का बहाना चाहीए ।

क्या शीतल तुम भी ना शुरू हो जाती हो तो चुप रहने का नाम ही नहीं लेती।,,,,,

यार जो सच है वही कह रही हूं झूठ नहीं कह रही,,,, तुमको शायद इस बात का अंदाजा भी नहीं है कि जब चलती हो तो न जाने कितनों पर अपनी यह मदमस्त गांड का ( हाथ से निर्मला की गांड की तरफ इशारा करते हुए) कहर ढाते हुए चलती हो।

शीत,,,,,,ल,,,,,,,, चुप भी करो किसी ने अगर सुन लिया तो तुम्हारे साथ साथ मैं भी बदनाम हो जाऊंगी।

अरे छोड़ो भी यार कुछ नहीं होगा,,,,,,,,, सच में यार तुम्हारी मटकती हुई बड़ी-बड़ी गांड देखकर तो मेरे मुंह से सिसकारी निकल जाती है।,,,,, ( शीतल की बातें सुनकर निर्मला आंखें तरेर कर उसकी तरह बनावटी गुस्सा दिखाते हुए देखने लगी।)

सच यार निर्मला मुझे तो बिल्कुल भी यकीन नहीं होता कि इस उम्र में भी तुम्हारी गांड का कसाव जवानी के दिनों वाला है। तुम्हें जब भी चलते हुए देखती हूं तो सबसे पहले मेरी नजर तुम्हारी मटकती हुई गांड पर ही जाती है। तुम इतना टाइट साड़ी कमर के नीचे से बांधती हो कि तुम्हारी नितंबों का एक-एक उभार साफ-साफ नजर आता है।

अरे यार शीतल,,,,,,,,,,,


सुनो तो सही यार निर्मला तुम भी हो की,,,,,,,,, मैं सच कह रही हूं कोई मजाक नहीं कर रही,,,,, तुम्हारी बात ही कुछ अलग है। मेरी भी मस्त है लेकिन तुमसे थोड़ी कम ही है इसलिए तो तुम्हारे नितंबों को देख कर मुझे तुमसे जलन होती है।
( शीतल की बात सुनकर निर्मला हंसने लगी और हंसते हुए बोली।)

जलन,,,,,,,,,, किस बात की जलन!

अरे यार पूरी खूबसूरती का खजाना हो और कहती हो किस बात की जलन,,,,,, तुम्हारे रूप लावण्य ओर अंगों का उभार कटाव देखकर तो हर औरत तुमसे जलती होगी।( निर्मला उसकी बातें सुनकर मंद मंद मन में ही मुस्कुरा रही थी।)
यार निर्मला कसम से अगर मेरे पास तुम्हारी जैसी बड़ी बड़ी चूचियां और यह बडी़े-बडी़े गोल-गोल गांड होती तो मैं तो जिस पर जाहती उस पर कहार बरसाती।,,,,,

बस करो शीतल अब समय हो गया है हमें चलना चाहिए।( इतना कहकर निर्मला चलने लगी और उसके पीछे-पीछे सीतल भी चलने लगी लेकिन वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रही थी।)

निर्मला सच कह रही हो भाई साहब तुम्हारे रूप तुम्हारे खुबसुरत बदन को देख कर दो दीवाने ही हो जाते होंगे और तो और रोज तुम्हारी जमकर लेते होंगे।


बस यार शीतल कितना बकबक करती हो बस अब कुछ मतं बोलना क्लास शुरु हो रही है।

ठीक है कुछ नहीं बोलूंगी लेकिन बाद में मिलते हैं ठीक है ना,,,,,,( इतना कहकर सितम अपनी क्लास की तरफ जाने लगी और निर्मला अपने क्लाश की तरफ,,,, चलते-चलते निर्मला को शीतल के द्वारा कही गई सारी बातें याद आने लगी और मन ही मन वह खुश होकर मुस्कुराने लगी भले ही निर्मला उपर से एसी बातो को नापसंद करने का ढोंग करती हो लेकिन अंदर ही अंदर शीतल की कही गई एक एक बात से वह बेहद प्रसन्न होती थी। यही सब बातें वह अपने पति के मुंह से सुनने के लिए तरस जाती थी। जो बातें अशोक को कहनी चाहिए थी वह सारी बातें शीतल कहती थी। लेकिन निर्मला को भी यह बात बड़ी अजीब लगती थी कि यही सारे कमेंट अगर कोई मर्द करता था तो उसे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था और वह अंदर ही अंदर घबराहट महसूस करती थी, लेकिन यही सब बातें शीतल के मुंह से बड़ी अच्छी लगती थी। उसके बदन के एक-एक अंग का तारीफ जिस तरह से शीतल करती थी उसे सुनकर निर्मला के बदन में झनझनाहट सी होने लगती थी। निर्मला के लिए भी एक तरह से यह बड़ी फक्र वाली बात थी, क्योंकि अगर किसी औरत की तारीफ एक मर्द करता है तो वह अलग बात होती है,,,,, क्योंकि मर्द अपने फायदे के लिए ही औरत की तारीफ करता है,,,, उसी औरत से जब अपने मतलब की कोई चीज चाहिए रहती है तभी वह औरत की तारीफ करता है। लेकिन एक औरत जब किसी औरत की तारीफ करें तो जरुर उस औरत ने कोई न कोई बात जरुर होती है जो दूसरी औरतों को भी आकर्षित करती है। इसलिए वह शीतल की बातें सुनकर हमेशा प्रसन्नता से गदगद हो जाया करती थी। लेकिन इस बात को कभी भी वह शीतल पर जाहिर होने नहीं दी। शीतल के सामने वह हमेशा ऐसा ही बर्ताव करती थी की उसे उसकी बातें बिल्कुल भी पसंद नहीं होती हैं। तभी चलते चलते उसे गांड मटकाने वाली बात याद आ गई और वह ना चाहते हुए भी अपनी नजरें पीछे घुमाके अपनी गांड की तरफ देखने लगे कि क्या वाकई में चलते समय उसकी गांड ज्यादा मटकती है। नजरें घुमा कर भी वहां अपनी मटकती हुई गांड के उतार-चढ़ाव को देखकर फैसला नहीं कर पाई।
तब तक ऊसकी क्लासरुम आ गई।

निर्मला क्लास रूम के बाहर पहुंच चुकी थी क्लास रुम में सभी विद्यार्थी शोर शराबा कर रहे थे,,, विद्यार्थियों की नजर जैसे ही क्लास रूम के दरवाजे पर पड़ी तो सभी विद्यार्थी एक दम शांत हो गए और अपने-अपने बेंच पर बैठ गए,,,, क्योंकि सभी विद्यार्थी इस बात से अच्छी तरह से वाकिफ थे कि निर्मला मैडम शिष्त की बहुत कड़क थी सभी विद्यार्थियों को सिष्त में रखने की आग्रही थी,,,,, इसलिए कोई चाहकर भी उनकी मौजूदगी में शोर शराबा या किसी भी प्रकार का अभद्र व्यवहार नहीं कर पाता था। इसलिए तो क्लास के बाहर निर्मला को देखते ही सभी विद्यार्थी एक दम शांत हो गए और जैसे ही निर्मला क्लास के अंदर प्रवेश की वैसे ही सभी विद्यार्थी एक साथ अभिवादन करते हुए अपनी अपनी जगह पर खड़े हो गए।

गुड मॉर्निंग मैडम,,,,,,,, ( सभी विद्यार्थी एक साथ अभिवादन करते हुए बोले,,,,, निर्मला भी सभी विद्यार्थियों का अभिवादन स्वीकार करते हुए बोली)

मॉर्निंग डीयर स्टूडेंट,,,,,,,,,,

( सभी विद्यार्थी अपनी-अपनी जगह पर बैठ गए और निर्मला मैथ्स पढ़ाना शुरु कर दी,,,,, क्लास में बैठे सभी लड़के और लड़कियां शुभम के ही हमउम्र थे और उनके बीच सुभम भी बैठा हुआ था,,,, सभी को इस बात की अच्छी तरह से जानकारी थी कि शुभम निर्मला मैडम का ही लड़का है लेकिन निर्मला ने कभी भी क्लास के अंदर इस बात का फायदा अपने बेटे शुभम को नहीं लेने दि की वह उसका बेटा है बल्कि जिस तरह से वह दूसरे विद्यार्थियों के साथ बर्ताव करती थी ठीक उसी तरह से ही वह अपने बेटे शुभम के साथ भी एक विद्यार्थी के संबंध वाला ही बर्ताव करती थी। निर्मला पूरी स्कूल में सभी विद्यार्थी की फेवरेट मैडम थी क्योंकि वह बड़े ही प्यार से और बहुत ही अच्छे तरीके से पढ़ाती थी जिससे की सभी विद्यार्थियों को एक ही बार में समझ आ जाता था।
निर्मला जिस क्लास के विद्यार्थियों को पढ़ाती थी उनकी उम्र के हिसाब से उनके मन में नई नई उमंगे भी जागती रहती है सभी विद्यार्थी उम्र के उस दौर से गुजर रहे थे जहां पर,,,, लड़कों को लड़की के प्रति और लड़कियों को लड़के के प्रति आकर्षण जन्म लेता है। यही असर क्लास के विद्यार्थियों को भी जरूर होता था क्योंकि जब भी निर्मला ब्लैक बोर्ड पर चौक से मैथ के सवाल हल करती थी,,,,तो अधिकतर विद्यार्थियों की नजर निर्मला के भरावदार बदन के उस खास हिस्से पर फिर नहीं लगती थी जहां से मर्दों के लिए औरतों के प्रति आकर्षण शुरू होता था। क्लास के अधिकतर लड़के निर्मला के भराव दार गोरे बदन को निहारने में ही लगे रहते थे,,,, खास करके तब जब वह ब्लैक बोर्ड पर कुछ लिखती रहती थी क्योंकि जैसे जैसे ब्लैक बोर्ड पर निर्मला के हाथ चलते थे वैसे वैसे उसके बदन में एक अजीब प्रकार की मदद हरकत होने लगती थी जो कि वह हरकत खास करके उसके नितंबों पर गहरा असर डालती थी। बदन में हो रही हरकत के साथ साथ उसकी कमर के नीचे उसके भरावदार नितंबों में अजीब सी मादक थिरकन होने लगती थी,,, जिसकी वजह से क्लास में सभी लड़कों का ध्यान अपने आप ही ऊस खास स्थान पर चला जाता था। क्लास में उपस्थित सभी लड़कों का बस इसी पल का बेसब्री से इंतजार रहता था कि कब मैडम ब्लैक बोर्ड पर लिखना शुरु करें,,और उन लोगों को ऊस मादक पल को अपने जेहन में उतारने का पूरा भरपूर मौका मिल सके। ऐसा कोई भी लड़का क्लास में नहीं था जो कि यह नजारा देखने के बाद ऊसका लंड खड़ा ना हुआ हो,,,,, उन लोगों की पेंट में हमेशा तंबु बन जाता था। और वह तंबू तब तक बना रहता था जब तक निर्मला क्लास में उपस्थित रहती थी उसके जाने के बाद खुद ब खुद स्थिति सामान्य हो जाती थी। क्या रोज का हो चुका था शुरु शुरु में तो निर्मला का ध्यान इस बात पर बिलकुल नहीं किया लेकिन धीरे-धीरे उसे इस बात का एहसास होने लगा कि जब भी वह ब्लैकबोर्ड पर कुछ लिखती है तो क्लास के लड़कों की नजरें उसके कमर के नीचे वाले भाग पर ही टिकी रहती थी। इस बात का एहसास होते ही कि लड़कों की नजर उसकी बड़ी बड़ी गांड पर ही टिकी होती है तो वह शर्मिंदा हो गई। उसे यकीन ही नहीं हो पा रहा था कि इस उम्र के लड़के भी इस तरह की हरकत कर सकते हैं लेकिन वह कर भी क्या सकती थी। अब वह लड़कों से तो खुल कर बोल नहीं सकती थी कि तुम लोग मेरी गांड क्यों देखते हो,,, वह इस बारे में सोच-सोच कर बहुत परेशान हो रही थी,,, सारा सारा दिन इसी बात को सोचकर वह अपने आप को परेशान किए हुए थी,,,, कुछ दिन तक तो वहां ब्लैक बोर्ड पर लिखना ही बंद कर दी थी बस कुर्सी पर बैठे-बैठे ही समझाती रहती लेकिन ऐसे काम चलने वाला नहीं था क्योंकि इस तरह से समझाने में विद्यार्थियों को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था,,, दूसरी तरफ विद्यार्थियों का भी बुरा हाल था क्योंकि वह अभी निर्मला के प्रति आकर्षित हो चुके थे खास करके उसके बड़े बड़े नितंबो के प्रति जो की निर्मला के इस व्यवहार के कारण उंन्हें आंख सेंकने का मौका नहीं मिल पा रहा था। विद्यार्थियों का उतरा हुआ मुंह देख कर तो ऐसा लगता था कि उनके मुंह से कोई निवाला छीन लिया हो,,,,, लेकिन निर्मला भी क्या कर सकती थी टीचर की जॉब जो करनी थी इसलिए उसे एक स्थिति का सामना तो करना ही था इसलिए ना चाहते हुए भी वह मन कड़ा करके फिर से पहले की ही तरह ब्लैक बोर्ड पर सवालों को समझाने लगी,,
और निर्मला के इस व्यवहार की वजह से क्लास में ऐसा लग रहा था कि जैसे,,,, रेगिस्तान में बरसात हो गई हो सुखे खेतों में फिर से हरियाली छा गई हो,,,,,,
निर्मला के ही वजह से क्लास में विद्यार्थियों की उपस्थिति शत प्रतिशत होने लगी थी,,, जिससे स्कूल के प्रिंसिपल भी खुश थे,,,,,
लड़के तो लड़के लड़कियां भी निर्मला की खूबसूरती की दीवानी थी और जिस तरह से लड़के उस खास अंग पर ज्यादा नजर बनाए रखते थे उसी तरह से लड़कियां भी
निर्मला के उसी भरावदार नितंब पर अपनी नजर गड़ाए रहती थी। इस बात का एहसास निर्मला को तब हुआ जब एक बार रिशेष समाप्त होने के बाद वह क्लास के करीब पहुंची ही थी कि अंदर से फुसफुसाहट की आवाज सुनकर कोतूहल वश वह दरवाजे पर कान लगाकर अंदर से आ रही आवाज को सुनने लगी। अंदर से आ रही लड़कियों के बातचीत की आवाज को सुनकर निर्मला हैरान हो गई उसे बिल्कुल भी यकीन नहीं हो रहा था कि लड़कियां इस तरह की बातें कर सकती हैं। सभी लड़कियां निर्मला के बारे में ही अपनी अपनी राय दे रही थी।

यार निर्मला मैडम कितनी खूबसूरत है मैंने आज तक ऊन जैसी खूबसूरत औरत कभी भी नहीं देखी,,,,,


हां यार तू बिल्कुल सच कह रही है। भगवान ने उन्हें बड़ी फुर्सत से बनाया है । लगता है कि पानी से नहीं दूध से नहाती है तभी तो इतनी ज्यादा गोरी है,,,
( तभी तीसरी लड़की की आवाज आई,,,,)

तूने उनकी चूचियां देखी है,,,,,,,, चुचीयां,,,,,,,,, कितनी बड़ी-बड़ी है,,,,,
( तभी बीच में दूसरी लड़की बोली)

मुझे तो लगता है कि मैडम अपनी चुचियों के साइज से कम साइज की ब्रा और ब्लाउज पहनती है,,,,,, तभी तो देख उनकी चुचियों के बीच की लकीर कितनी लंबी नजर आती है,,,,,,
( तभी उनमें से एक लड़की बात को बीच में काटते हुए बोली,,,,,)

नहीं यार ऐसा नहीं है उनकी चूचियां है ही इतनी बड़ी-बड़ी के ब्लाउज में ही नहीं समा पाती,,, इसलिए तो उनकी छातीयां ऐसी लगती है जैसे कि कोई विशाल पर्वत हो,,,,,, उनकी चूचियां देख कर तो ऐसा ही लगता है कि उनके हस्बैंड रोज दबा दबा कर और घंटों मुंह में भर कर पीते होंगे तभी तो इतनी मस्त गोल-गोल और बड़ी है,,, और सबसे खास बात तो यह कि इस उम्र में भी उनकी चुचियो का कसाव बरकरार है,,, वर्ना ईस उम्र में तो ढीली पड़ जाती है और लटकने लगती है
( तभी उनमें से एक लड़की बोली,,,,)

काश भगवान ने मेरी भी चुचीयां इतनी बड़ी-बड़ी बनाई होती तो कितना मजा आ जाता है,,,,,,
( उसकी सहेली बीच में चुटकी लेते हुए बोली,,,,,)
चिंता मत कर तेरी चूचियां भी बड़ी बड़ी हो जाएंगी जब तेरा पति ईसे दबा दबा कर पिएगा,,,,,,

यार शादी होने में तो अभी काफी समय है तब तक इन छोटे-छोटे शंतरों से बिल्कुल भी मजा नहीं आ रहा है,,,,
( अब दूसरी लड़की उसके इस बात पर चुटकी लेते हुए बोली।)

मेरी जान तब तक अपने बॉयफ्रेंड को ही बोल दे वह खूब दबा दबा कर पीएगा तब शादी से पहले ही तेरे संतरे खरबूजे हो जाएंगे,,,,,
( उसकी बात पर सारी लड़कियां खिलखिलाकर हंस दी,, और दरवाजे के बाहर खड़ी निर्मला उन लड़कियों की बात सुनकर पूरी तरह से गर्म हो चुकी थी उसे तो कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें,,, लड़कियां भी इतनी गरम और गंदी बातें कर सकती है आज पहली बार वह अपने कानों से सुन कर ही उस बात पर भरोसा कर पाई थी,,,,, निर्मला उन लड़कियों की बात सुनकर गनंगना गई थी,,,, निर्मला को लड़कियों की बातें सुन कर रहा नहीं गया और उसने एक नजर अपनी छातियों पर फिरा दी,,,,, लेकिन इस पर भी निर्मला को कुछ समझ नहीं आ रहा था की वह उन लड़कियों की बात सुनकर हैरान हो या उन लड़कियों के द्वारा की गई तारीफ सुनकर प्रसन्न हो,,,,,, वह कुछ समझ पाती उससे पहले ही कुछ देर से खामोश बैठी लड़की बोली,,, जिसकी बातें सुनकर निर्मला पूरी तरह से दंग और स्तब्ध रह गई


यार तुम लोग तो मैडम की चुचियों के पीछे पड़े हो असली खूबसूरती की तरफ तो तुम लोगों का ध्यान ही नहीं जाता,,,,,

(सभी लड़कियां एक साथ बोली,,,)

कौन सी असली खूबसूरती,,,,,,,


मैडम जी की गांड,,,,,,, ( गर्म आहें भरते हुए बड़े ही कामुक अंदाज में वह लड़की बोली,,,,,)

गांड,,,,,,, ( एक साथ सभी लड़कियों के मुंह से निकला)

हां यार गांड,,,,,, कसम से यार उनकी बड़ी-बड़ी भरावदार गांड पर जब भी मेरी नजर जाती है तो ना जाने मुझे क्या होने लगता है,,,,, एक अजब सी ख़ुमारी मेरे अंदर अपना असर दिखाने लगती है और मैं मंत्रमुग्ध सी बस मैडम की भरावदार नितंबों को ही घुरती रहती हूं

( तभी दूसरी लड़की उसके सुर में सुर मिलाते हुए बोली,,,)

हां यार तू बिल्कुल सच कह रही है मैं भी जब भी मैडम की गांड देखती हूं तो मुझे भी अजीब सा नशा छाने लगता है जी करता है कि बस उनकी गांड को देखते ही जाऊं,,,,,,
( बारी-बारी से सभी लड़कियों ने मैडम की गांड की तारीफ में अपना मत व्यक्त करने लगे)
हां यार सच है, मैडम की गांड देख करके हम लड़कियों की हालत खराब हो जाती तो सोचो लड़कों का तो लंड ही खड़ा हो जाता होगा,,,,,,,
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007
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Re: अधूरी हसरतें

Post by 007 »

Congratulations dost
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

(¨`·.·´¨) Always

`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &

(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !

`·.¸.·´
-- 007

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