अधूरी हसरतें

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Rohit Kapoor
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Re: अधूरी हसरतें

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अद्भुत संभोग के ऐहसास से निर्मला और शुभम दोनों भर चुके थे। शुभम अपनी मां की एक बार और जबरदस्त चुदाई करने के बाद वहां रुका ही नहीं अपने कपड़े ठीक कर के वह सीधा रसोई घर के बाहर आ गया। निर्मला तो कुछ देर तक उसी स्थिति में खड़ी रही उसके दोनों हाथ किचन फ्लोर पर थे और वो थोड़ा सा झुकी हुई हांफ रही थी। उसका पूरा बदन आनंदित होकर फुदकने लगा था। और उसका मन पुलकित क्यों ना होता बरसों से किस प्यार के लिए जिस गरमा गरम रगड़ के लिए तरस रही थी उसे एक ही दिन में तीन बार उसके ही बेटे ने अपने दमदार मूसल से उसकी बुर को रगड़ चुका था। सब्र का फल मीठा होता है यह कथन निर्मला के लिए बराबर बैठ रहा था। उसने आधी जिंदगी सब्र कर के ही बीता दी थी लेकिन अब लग रहा था कि उसके सब्र का फल उसे मिलने लगा था। निर्मला रसोईघर में उसी स्थिति में हाथ रही थी उसके माथे से पसीने की बूंदें मोतियों की बूंदें बन कर नीचे फर्श पर गिर रही थी। उसे मन ही मन बेहद खुशी हो रही थी कि उसे कर्म का फल मिला था पसीना बहाने का प्रतिफल मिला था इसलिए निर्मला को आया पसीना बहाना बेकार नहीं गया था। उसके चेहरे पर उत्तेजना की लालिमा पूरी तरह से छाई हुई थी। ब्लाउज के बटन कुछ हद तक टाइट हो चुके थे उत्तेजना के मारे उसके चुचियों का आकार अपने आकार से कुछ हद तक बढ़ चुके थे। निर्मला की बुर से शुभम के साथ साथ खुद उसका भी मदन रस नीचे टपक कर उसकी जांघों को भीगो रहा था। कुछ ही मिनटों में निर्मला की सांसें पूर्वरत हुई तो वह अपनी साड़ी जो कि अभी भी उसकी कमर तक चढ़ी हुई थी,,, और उसकी गोलाकार नितंबं ट्यूबलाइट की रोशनी में चमक रही थी,,, मखमली पेंटी का जो घुटनों में अभी तक सिमट कर रहना निर्मला की स्थिति का बयान कर रही थी।
निर्मला के बदन में आया वासना का तूफान गुजर चुका था,,,
वह अपनी पेंट को ऊपर सरका कर साड़ी को नीचे कर ली और खाना बनाने लगी।
अपने कमरे में शुभम भी बहुत खुश नजर आ रहा था। तीन तीन बार अपनी मां से संभोग करने के बाद भी उसे यकीन ही नहीं हो पा रहा था कि उसने अपनी मां के साथ संभोग किया है। खुशी के मारे उसके पैर जमीन पर नहीं पढ़ रहे थे उसके हाथों में खूबसूरती का पूरा खजाना लग चुका था। जब से वह औरतों की ताक झांक में लगा था तब से अपनी मां के खूबसूरत बदन का दीवाना हो चुका था। दिन रात अपनी मां की खूबसूरत बदन की कल्पना करके अपने आप को संतुष्ट करता रहता था लेकिन वह यह नहीं जानता था कि उसकी कल्पना हकीकत में बदल जाएगी। जो भी हो रहा था उसे रोक पाना अब दोनों के बस में नहीं था।
रात का खाना तैयार हो चुका था खाना तैयार करके निर्मला नीचे से ही शुभम को आवाज लगाई और शुभम भी अपनी मां की आवाज सुनकर हाथ मुंह धो कर फ्रेश हो कर के खाना खाने नीचे आ गया।
दोनों खाना खा रहे थे लेकिन फिर से सुबह की ही तरह दोनों के बीच किसी भी प्रकार की वार्तालाप नहीं हो रही थी बस एक दूसरे को कनखियों में देखे जा रहे थे। दोनों के बीच सब कुछ हो जाने के बावजूद भी वार्तालाप की त्रुटि दोनों के बीच एक तरह की दूरी बनाए हुए थी। निर्मला एक परीपकव महिला थी,,,, भले ही वह खुलकर शारीरिक सुख का मजा भोग नहीं पाई थी लेकिन इतना तो जरूर जानती थी कि औरत और मर्द के बीच का रिश्ता किस तरह से एकदम खुलकर सामने आता है। तीन बार अपने बेटे से संभोग सुख का आनंद उठा चुकी थी,,, लेकिन तीनों बार खुद निर्मला ने ही पहल की थी। उसकी दिली ख्वाहिश यह थी कि शुभम पहल करें वह खुद उसे अपनी बाहों में लेकर उसे प्यार करे के चुमे चाटे उसके गुलाबी होठों को अपने होठों में भरकर चुसे,,,, उसकी बुर में खुद ही उसकी जांघों को फैला कर अपना लंड डाल कर चोदे,,,,, लेकिन वह अच्छी तरह से देख चुकी थी कि सुबह पहल नहीं कर पा रहा था अगर शुभम की जगह कोई और लड़का होता तो निर्मला को इतनी जहेमत उठाने की जरूरत ही नहीं पड़ती। लड़के तो इसी ताक में रहते हैं कि कब औरत का इशारा मिले और वह कब शुरु पड़ जाए,,,,,
निर्मला खाना खाते समय यही सब सोच रही थी और शुभम पर अपनी नजर गड़ाए हुए थी। फिर वह खाना खाते समय यह सोचे कि शुभम को अगर पूरी तरह से खोलना है तो उससे बात करनी होगी वरना वह अपनी तरफ से कुछ भी नहीं कर पाएगा हो सकता है कि वह अपनी मां के साथ खुलकर कुछ नहीं कर पा रहा है अगर उसकी जगह कोई और औरत होती तो,,, वह भी सिर्फ उसका इशारा मिलने का इंतजार करता और इशारा मिल जाने पर खुद ही उसके ऊपर चढ़ बैठता । यह बात निर्मला के मन में एक दम पर बैठ गई कि सच में वह रिश्तो की कदर करते हुए खुल नहीं पा रहा है क्योंकि जिस तरह का उसके पास हथियार था वहां किसी भी औरत को अपना दीवाना बना सकने में पूरी तरह से सक्षम था। शुभम उसके साथ रिश्तो की व्याख्या को देखते हुए अभी भी शर्मा रहा था। निर्मला उससे बातचीत करना चाहती थी उसकी सहानुभूति हासिल करना चाहती थी क्योंकि जिस उम्र के दौर से वह गुजर रहा था,,, ऐसे में तो ही वहां अपनी मां के प्रति मन में गलत धारणा बांध लिया तो दोनों का रिश्ता उलझ कर रह जाएगा। इसलिए वह मन में सोच ली कि शुभम से बातचीत करना बेहद जरूरी है खास करके उनके बीच इस नए रिश्ते के बारे में उसकी सहानुभूति भी हासिल करना बेहद जरुरी है लेकिन शुरुआत कहां से करें यह उसे समझ में नहीं आ रहा था घर में दोनों अकेले थे। अशोक घर पर लोटेगा भी या नहीं लौटेगा या नक्ती नहीं था। निर्मला यही मन में सोचते सोचते खाना खा ली शुभम भी खाना खा चुका था। जैसे ही खाना खा कर शुभम कुर्सी पर से उठने वाला था वैसे ही निर्मला बोली,,,,,

बेटा थोड़ा पानी देना तो,,,,( निर्मला शुभम से कुछ और बोलना चाहती थी लेकिन हड़बड़ाहट में उसके मुंह से कुछ और निकल गया,,, ऊसे समझ में नहीं आया कि क्या बोले कहां से शुरुआत करें। तब तक शुभम पानी का जग उठा कर जग से निर्मला की गिलास को पानी से भरने लगा। शुभम भी बेहद शर्म महसूस कर रहा था इसलिए अपनी मां से ठीक से नजर भी नहीं मिला पा रहा था वह जल्दी से गिलास में पानी भरकर अपने कमरे की तरफ चला गया,,,,, निर्मला भी उसे रोक नहीं पाई और शुभम को अपने कमरे की तरफ जाते हुए बेबस होकर देखती रही लेकिन यह बात उसके लिए बड़ी ही संतोष कारक थी की,, शुभम को इस नए रिश्ते से बिल्कुल भी एतराज नहीं था। उसने अभी तक उससे इस तरह के रिश्ते के बारे में जरा भी बात नहीं किया था और ना ही उसके चेहरे से कुछ ऐसा प्रतीत होता था कि निर्मला की हरकत की वजह से वह दुखी है या उसे यह सब अच्छा नहीं लगा तुम कि वह तो चेहरे से बेहद खुश नजर आ रहा था बस उसके अंदर अभी भी शर्म थी जिसकी वजह से वो खुलकर सामने नहीं आ पा रहा था। और कुछ होता भी क्यों नहीं आखिरकार लड़कों को चाहिए भी क्या वह तो दिन रात लड़कियों और औरतों के बारे में ही सोच कर मुठ मारते रहते हैं। ऊनको तो बस लड़कियों और औरतों की बुर से ही मतलब रहता है कि कब मौका मिले और अपना लंड उसमें डाल कर ठंडा हो जाए,,,,,
और शुभम जी तो मन में यही चाहता था तभी तो जब उसे मौका मिला तो कैसी पागलों की तरह बुर में लंड डालकर बिना रूके एक वहीं रफ्तार से उसे चोद डाला,,,, और तीनों बार ऐसा नहीं लगा कि वह अपनी मां को चोदने में जरा भी ऐतराज कर रहा हो,,,, बल्कि वह तो जैसे पहले से ही तैयार रहता था तभी तो उसके पैंट के अंदर ही उसका लंड पूरी तरह से तना हुआ होता था। वह यही सब सोचकर एकदम मस्त हुए जा रही थी,,,, वो फिर सोचने लगी कि तभी तो रसोई घर में वह प्यार की नजरों से उसे घूर रहा था। और उसे देख देख कर उसके पजामे में तंबू बन गया था। निर्मला यह सोच कर मन ही मन बहुत खुश होने लगी वह समझ गई थी कि उसे शुभम की तरफ से किसी भी प्रकार का खतरा नहीं है।
वह शुभम को पूरी तरह से अपने हुस्न का दीवाना बना देगी,, वह उसे इतना सुख देगी कि वह कभी भी मां-बेटे के रिश्ते के बारे में किसी को कुछ भी नहीं कहेगा क्योंकि इसमें भी तो उसका ही फायदा है रोज उसे चोदने को मदमस्त बुर मिलेगी,,, दबा दबा कर पीने को बड़े बड़े दो खरबूजे मिलेंगे,,,
एक बेहद खूबसूरत मदमस्त बदन वाली और अपने प्यार में मस्त कर देने वाली उसे औरत मिलेगी और क्या चाहिए उसे उसकीे तो दसो की दश उंगलियां घी में ही रहेंगी। यह सब बातें सोच कर तो निर्मला का खुद का बदन उत्तेजना से गनगना गया। निर्मला कुछ देर तक वहीं बैठ कर आगे के प्लान के बारे में सोचती रही और यह सोच कर उठी कि जब वह अपने कमरे में जाएगी तो किसी न किसी बहाने से शुभम को अपने कमरे में बुला लेगी क्योंकि फिर से एक बार निर्मला उत्तेजित हो चुकी थी एक बार फिर से ऊसकी बुर में चीटियां रेंगने लगी थी। वह खुशी खुशी टेबल पर से उठी और जल्दी जल्दी साफ सफाई का काम निपटाकर अपने कमरे में पहुंच गई। और जल्दी जल्दी अपने कपड़े बदल कर एक खूबसूरत गाउन पहन कर तैयार हो गई। वह अपने बिस्तर पर बैठ कर कुछ समय बीतने का इंतजार करने लगी।

निर्मला आज पहली बार अशोक का इंतजार किए बिना अपने कमरे में आ गई थी। वह शुभम के साथ इतने अंतरंग पल बिता चुकी थी कि उसे अशोक का ख्याल ही नहीं रहा।
वह तो अशोक को बिल्कुल भी भूल चुकी थी उसे याद ही नहीं आ रहा कि उसका पति अशोक भी है उसे तो चारों तरफ बस शुभम ही शुभम नजर आता था। अशोक का ख्याल मन में आते ही उसके चेहरे का रंग फीका पड़ गया उसके रंग में भंग पड़ता नजर आने लगा,,,, वह अपने बिस्तर पर ही बैठी रही। वहां बैठे बैठे निर्मला को काफी समय हो गया और जैसे-जैसे समय बीत रहा था उसके चेहरे की रंगत वापस आ रही थी। क्योंकि उसे अब लगने लगा था कि अशोक आज घर नहीं आएगा,,,,,, दूसरी तरफ शुभम का भी यही हाल था उसकी आंखों से भी नींद कोसों दूर थीे वह भी अपनी मां के ख्यालों में खोया हुआ था।
निर्मला से रहा नहीं गया और वहां बैठकर अपने कमरे से बाहर आ गई वह कुछ देर तक वहीं खड़े होकर सोचने लगी कि वह अपने बेटे के कमरे में जाए या ना जाए,,कहीं वह सो ना गया हो। फीर भी वह कमरे की तरफ चल दी।
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Rohit Kapoor
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निर्मला की बुर में गुदगुदी हो रही थी। उसके मन में गुब्बारे फूट रहे थे क्योंकि शुभम का कमरा कुछ ही दूरी पर था और वहां पहुंचते ही वह उसकी बाहों में सिमट जाना चाहती थी उसकी लंबी चौड़ी छातीयों में सो जाना चाहती थी उसके मर्दाना हथियार से अपनी बुर की अंदरूनी दीवारों को पसीज देना चाहती थी। वह बड़े ही उत्सुकता से अपने बेटे की कमरे की तरफ चले जा रही थी। वह चलते हुए अपने बेटे से चुदने के ख्याल से ही मस्त हुए जा रही थी। उसकी बुर की गुलाबी फांके उत्तेजना के मारे कंपकपा रही थी। तकरीबन 11:30 का समय हो रहा था वह पूरी तरह से निश्चिंत हो गई थी कि अब शायद अशोक नहीं आएगा इसलिए वह चुदवासी होकर अपने बेटे के कमरे की तरफ आगे बढ़ रही थी। जब एक औरत काम वीह्लल हो जाती है तो वह कुछ भी करने पर उतारू हो जाती है । वासना की चिंगारी सोला का रूप धारण कर चुकी थी। जिसके तपन में निर्मला और शुभम दोनों ही तप रहे थे। जो हाल निर्मला का था वही हाल शुभम का भी था वह भी अपने कमरे में करवटें बदल रहा था उसके जेहन में बस उसकी मा ही बसी हुई थी जिसके खूबसूरत बदन की कल्पना करके पूरी तरह से उत्तेजित हो चुका था और अपने हाथ से ही अपने लंड को हिला रहा था उसके मन में भी ढेर सारे सवाल और जवाब खुद-ब-खुद उमड़ रहे थे। वह इतना तो समझ गया था कि उसकी मां पूरी तरह से चुदवाती हो चुकी हे तभी तो एक ही दिन में तीन तीन बार अपने ही बेटे के लंड से चुद चुकी थी। वह यह भी जान चुका था कि उसकी मां बेहद प्यासी औरत है,,, लेकिन यह उसे समझ में नहीं आ रहा था कि पहले वह इस तरह की नहीं थी कुछ दिन में ऐसा क्या हुआ कि वह बदल गई,,,, पहले वह अपने बदन का एक भी अंग खुला नहीं रखती थी बड़े सलीके से कपड़े पहना करती थी लेकिन कुछ दिनों से उसके पहरावे और रहन सहन में भी बदलाव आ चुका था। और यह बदलाव कुछ हद तक सीमित ना रहकर अपना विस्तार फैला चुका था। और यही मर्यादा भंग करने में कारण रूप भी था।
यह सब सोचते हुए शुभम हैरान भी बहुत था और जो उन दोनों के बीच तीन तीन बार घटित चुका था उस बात को लेकर जब उसके सिर से वासना का भुत ऊतरता तो बहुत पछतावा महसूस करता था। उस बात को लेकर उसके अंदर का मर्द दूर-दूर तक नजर नहीं आता था और एक उसके अंदर का बेटा जाग जाता था। यह ख्याल उसके मन में कई बार आया कि वह अपनी मां को इस बात को लेकर जरुर समझाएगा,,,, क्योंकि जिसके साथ वह इस तरह के शारीरिक संबंध बना चुका था वह उसकी खुद की मां थी और अपनी मां के साथ इस तरह के संबंध बनाना पाप की श्रेणी में आता है इस बात का ज्ञात होते ही वह बहुत परेशान हो जाता था और उसके मन में ढेर सारे सवाल पैदा होने लगते थे कि आखिरकार वह उसका बेटा होने के बावजूद भी क्यों अपनी ही मां के साथ संबंध बनाया यह ख्याल मन में आते ही वह बेहद परेशान और अंदर से टूटने लगता था लेकिन जब उसके जेहन में उसकी मां की खूबसूरत बदन उसकी मखमली काया का एहसास होता,,,, उसके खूबसूरत बदन के उभार और कटाव की रेखा कृति उसकी आंखों के सामने आती और वह मखमली एहसास जब उसका हथियार उसकी मां की खूबसूरत और बेहद नरम अंग के अंदर प्रवेश करता और उसके खूबसूरत गोल गोल बड़ी-बड़ी मखमली गद्देदार नितंब जब ऊसकी जांघों से रगड़ खाती तो उसके अंदर का बेटा मरकर एक मर्द जाग जाता था जो कि अपनी मां को बेटे की नजर से नहीं बल्कि एक मर्द की नजर से उसके अंदर एक औरत को ही ढूंढता रहता था। यह सब ख्याल उसके अंदर से सारे वाद-विवादों को एक तरफ करके जो एक मर्द और औरत के ही रिश्ते को कायम करने की सोचने लगता और यही सब सोचते हुए अपने कमरे में वह अपने लंड को हिला रहा था।
दूसरी तरफ निर्मला पूरी तरह से कामातुर होकर अपने पति की गैरहाजिरी में अपने बेटे से चुदने की आतुरता लिए उसके कमरे की तरफ बढ़ रही थी और अगले ही पल वह शुभम के कमरे के बाहर खड़ी थी। उसका दिल जोरो से धड़क रहा था वह अपने बेटे के साथ पूरी तरह से निश्चिंत होकर के अपनी रात रंगीन करना चाहती थी। बुर का इस तरह से कामोत्तेजित हो कर फुदकना उसे अच्छे संकेत लग रहे थे वह पूरी तरह से आश्वस्त थी कि कमरे के अंदर उसका बेटा आज उसको जी भर के रगड़ेगा। जैसा वह चाहती है उसका बेटा वैसा ही उसके साथ करेगा। यही सोचकर धड़कते दिल के साथ वह अपने बेटे के दरवाजे पर दस्तक देने के लिए हाथ उठा रही थी कि तभी दरवाजे की बेल बज गई। दरवाजे पर बेल बजते ही वह पूरी तरह से चौंक गई,,,,,,, उसका हाथ जोकि अपने बेटे के दरवाजे पर दस्तक देने के लिए उठा था वह उठा का उठा ही रह गया,,,,, उसके सारे अरमान बूर के नमकीन पानी में बह गए,,,,,, उसके अंदर ही अंदर बेहद क्रोध की प्रतीति होने लगी। वह समझ गई कि उसका नाश पीटा पति अशोक वापस आ गया है। आज निर्मला के मन में ऐसी इच्छा हो रही थी कि वह अपने पति को आज जी भर के गालियां दे लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकती थी बस मन में ही दो चार गाली देकर अपना मन मार कर अपने बेटे के कमरे के बाहर से दरवाजे की तरफ दरवाजा खोलने के लिए जाने लगी जब तक वह दरवाजे पर पहुंचती अशोक बार-बार बेल बजाए जा रहा था।

हां हां दरवाजा खोल रहीे हुं इतना बजाने की जरूरत नहीं है। ( वह मन ही मन में बड़बड़ाते हुए दरवाजा खोली,,,, और दरवाजा के खुलते ही अशोक घर में प्रवेश करते हुए बोला।)

इतनी देर लगती है दरवाजा खोलते हुए,,,, कब से मैं घंटी बजा रहा हूं।

मुझे क्या पता था बस जरा सी आंख लग गई थी। ( निर्मला अपने व्यवहार में नरमी लाते हुए बोली।)
आप हाथ मुंह धो कर फ्रेश हो जाइए मैं आपके लिए खाना लगा देती हुं।

कोई जरूरत नहीं है मैं खाना खा चुका हूं और वैसे भी मैं थका हुआ हूं मुझे सोना है। ( इतना कहते हुए वह सीढ़ियां चढ़ने लगा और निर्मला वहीं खड़ी होकर अपने पति को जाते हुए देखती रही हो मन ही मन में सोचने लगी कि जो इंसान उसके साथ ठीक से बात भी नहीं कर रहा है वह उसे प्यार क्या खाक करेगा। लेकिन अब उसके लिए अशोक का प्यार कुछ मायने नहीं रखता था एक ही दिन में वह अपने बेटे की दीवानी हो गई थी। क्योंकि आज भले ही यह मौका उसके हाथ से ज्यादा रहा लेकिन अब तो ईस तरह के मौके उसे बार-बार मिलने वाले थे। और उन मौकों का बड़े ही गरम जोशी के साथ स्वागत करने के लिए वह पूरी तरह से तैयार थी।
लेकिन इस समय उसके बदन की गर्मी पूरी तरह से ठंडी हो चुकी थी उसके चुदास पन में तप रहा ऊसका बदन अब उसके पति के ठंडे प्रतिभावं के कारण और इस तरह से आ जाने के कारण,,, ठंडा हो गया था उसका मूड पूरी तरह से ऑफ हो गया था। वह गर्म आहें भरते हुए एक नजर अपने बेटे के कमरे की तरफ घूम आई और सीढ़ियां चढ़ने लगी।
बिस्तर पर पहुंचते ही वह करवट लेकर एक हाथ गाउन के ऊपर से ही अपने बुर पर रखकर उसे रगड़ते हुए सो गई।

दूसरे दिन स्कूल में शीतल से मुलाकात होते ही शीतल इस तरह से उससे लिपट गई जैसे कि बहुत दिन बाद मिली हो,,,
अपने शादी की सालगिरह पर ना आने की वजह से वह निर्मला से नाराज थी जबकि निर्मला ने उसे पूरी बात बता भी दी थी।

निर्मला तू मेरी शादी की सालगिरह पर मैं यही मुझे बहुत बुरा लगा।

क्या शीतल तुझे मैं फोन पर बाताई तो थी कि किस तरह से हम लोग बारिश में फंस गए थे।

हां मैं जानती हूं तभी तो मैं बस नाराजगी जाहिर कर रही हूं। वरना मैं तुझ से बात ही नहीं करती।

यार क्या करुं शीतल बरसात ही इतनी तूफानी थी कि मैं ना तो घर वापस लौट सकी और ना ही तेरे घर आ सकी,,,

चल कोई बात नहीं निर्मला लेकिन जिस तरह से क्यों तूफानी बारिश में कार के अंदर फसी हुई थी मुझे तो बड़ा रोमांटिक लग रहा था। सोच एक औरत के लिए कितना मदहोश कर देने वाला मौका होता है जब इस तरह की बारिश हो और वह भी सुनसान जगह पर और कार में केवल एक खूबसूरत औरत (निर्मला की तरफ इशारा करते हुए) और एक जवान हो रहा लड़का जिसका हथियार न जाने कितना तगड़ा होगा (हथियार का जिक्र आते ही निर्मला की आंखों के आगे शुभम का लंबा लंड झुलतें हुए नजर आने लगा।) यार निर्मला तू पूरा का पूरा फायदा उठा सकती थी तु जरा सोच अगर ऐसे हालात में तेरे और तेरे बेटे के बीच में शारीरिक संबंध बन जाता तोभी दुनिया को कहां पता चलने वाला था कि तुम दोनों के बीच क्या है।
( शीतल की ईस तरह की बाते सुनकर निर्मला बड़े असमंजस मे थी। वह समझ में नहीं पा रही थी कि शीतल को क्या जवाब दें क्योंकि जिस तरह की शीतल आशंका जताते हुए उस मौके का फायदा उठाने के लिए उसे बोल रही थी ठीक उसी तरह का भरपूर फायदा उसने उठा चुकी थी और तूफानी बारिश में ही नहीं बल्कि घर पर भी दो बार अपने बेटे से शारीरिक संबंध बना चुकी थी। शर्म के मारे निर्मला शीतल से ठीक से नजरें भी नहीं मिला पा रही थी। वह अपनी आंख चुराते हुए अपनी क्लाश की तरफ बढ़ने लगी,, और आगे बढ़ते हुए बोली।)

धत्त,,,,, तू एकदम पागल हो गई है।

क्या पागल हो गई हुं, सच तो कह रही हुं ( शीतल भी उसके पीछे पीछे जाते हुए बोली।)

शीतल तू चीज मौके का फायदा उठाने के लिए बोल रही है और किसके साथ बोल रही है तो अच्छी तरह से जानती है कि वह मेरे खुद का बेटा है। यह सब जानते हुए भी तो एकदम बेशर्मों की तरह बातें कर रही है।( निर्मला अपनी आंखें चुराते हुए बोली।)

अरे क्या बेशर्मों की तरह बातें कर रहीे हुं जो कह रही हूं सच तो कह रही हूं।


तुझे इतना सब कुछ अच्छा लग रहा है तू जो मुझे कह रही है वह तू ही कर ले।( निर्मला शीतल की तरफ देखते हुए बोली उसे लगा कि ऐसा कहने पर शीतल शांत हो जाएगी लेकिन ऊसका जवाब सुनकर वहां एक दम से दंग रह गई,,, शीतल मुस्कुराते हुए बोली।)

तो भेज दे अपने बेटे को मेरे पास पूरा मर्द बना दूंगी ( इतना कहने के साथ ही वह मुस्कुराते हुए अपनी क्लाश की तरफ चली गई,,, निर्मला तो उसे आश्चर्य के साथ जाते हुए वहीं खड़ी देखती रह गई वह उसकी बात सुनकर पूरी तरह से दंग रह गई थी उसे यकीन नहीं हो रहा था कि यह एक शिक्षिका की सोच है। शीतल एक टीचर होने के बावजूद इतनी गंदी बात कैसे बोल गई उसे समझ में नहीं आ रहा था।

हालांकि वह इतना जरूर जानती थी कि,,, शीतल थोड़ा खुले विचारों वाली औरत है लेकिन इस स्तर से वह बात करेगी यह निर्मला को यकीन नहीं हो रहा था। कुछ पल वह क्लास के बाहर खड़ी रही और फिर अंदर चली गई आज उसका मन बिल्कुल भी क्लास में नहीं लग रहा था बार बार उसकी आंखों के सामने अपने बेटे के साथ बिताए वह कामुक पल याद आ रहे थे। रह रह कर वह अपने बेटे के मोटे लंड की रगड़ को अपनी बुर के अंदर महसूस करके उत्तेजित हो जा रही थी। शीतल की बातें उसे अंदर तक हिलाकर रख दी थी।
लेकिन शीतल जो भी कह रही थी वह ठीक ही कह रही थी क्योंकि निर्मला भी अच्छी तरह से जानती थी कि इस तरह के संबंध में किसी को पता चले ईस बात की जरा भी गुंजाईस नही होती। निर्मला भी अपने रिश्ते को लेकर के थोड़ी बहुत निश्चिंत थी लेकिन फिर भी उसे अपने बेटे को पूरी तरह से विश्वास में लेने के लिए उससे बात करना बहुत जरूरी था।
वह क्लास में बैठे-बैठे यही सोच रही थी कि घर पर पहुंचेगी तो इस बारे में वह शुभम से वह पूरी बात करेगी और उसे विश्वास मे लेगी।

यही सोचकर वहां घर पहुंचते ही जल्दी-जल्दी घर का सारा काम काज कर के,,, और सुबह के साथ मिलकर खाना खाकर,,,, सारे काम निपटा दी,,,,, वह खाना खाते समय ही शुभम से बात करना चाहती थी लेकिन शर्म के मारे एक शब्द भी नहीं बोल पाई। उससे बोला भी नहीं जा रहा था और बात करना भी बेहद जरूरी था। ऐसी इंतजार और इंतजार की कशमकश में दिन गुजरने वाला था शुभम अपने कमरे में आराम कर रहा था और नीचे निर्मला अपने बेटे से बात करने के लिए बेचैन हुए जा रही थी। वामन में सोचने लगी कि अगर ऐसे ही वहां अभी भी शर्म करती रहीे तो यूं ही रह जाएगी और कहीं इस नए रिश्ते के बारे में शुभम नादानी में किसी से कुछ कह दिया तो खामखां बदनामी हो जाएगी। इसलिए मन में ठान ली कि आज वह शुभम से बात करके ही रहेगी इसलिए वह सोचेगी शुभम के कमरे में जाकर बात करना ही उचित रहेगा,,,,, बात करने के उद्देश्य से वह शुभम के कमरे की तरफ जाने लगी,,,,
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Smoothdad
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Re: अधूरी हसरतें

Post by Smoothdad »

शानदार अपडेट।
जारी रखे, आगे की प्रतीक्षा में
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Rohit Kapoor
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Re: अधूरी हसरतें

Post by Rohit Kapoor »

Smoothdad wrote: 17 Dec 2017 14:07 शानदार अपडेट।
जारी रखे, आगे की प्रतीक्षा में
thanks bro
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Rohit Kapoor
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Re: अधूरी हसरतें

Post by Rohit Kapoor »

निर्मला के मन में अजीब सी हलचल मची हुई थी अपने बेटे से बात करने के बारे में सोच कर ही,,,,, वह बहुत ज्यादा उत्सुक भी थी अपने बेटे से बात करके अपने नए रिश्ते के बारे में सारी रुकावटें और धारणाओं को साफ कर लेना चाहती थी। उसकी इच्छा यही थी कि अपने बेटे के साथ खुलकर आनंद लें और वह भी उसके साथ खुले तौर पर जैसे एक मर्द अपनी प्रेमिका से बर्ताव करते हैं उसी तरह से वह भी बर्ताव करें। इन्हीं सब के बारे में बात करने के लिए अपने बेटे के कमरे की तरफ जाने लगी,,,,, निर्मला के मन में वासना का जो बीज अंकुरीत हो रहा था उस पौधे पर अपने बेटे के हांथों से पानी डालने जा रही थी। निर्मला के मन में इस बात को लेकर बहुत दुविधा थे कि वह अपने बेटे से इस बारे में बात की शुरुआत केसे करेगी। यही सब सोचते हुए निर्मला अपने बेटे के कमरे तक पहुंच गई,,,,, मन में बड़ी हलचल सी मच रही थी क्या कहे क्या करें कुछ समझ में नहीं आ रहा था दरवाजा बंद था उसे यह नहीं पता था कि अंदर शुभम सो रहा है या जाग रहा है लेकिन फिर भी मन की दुविधा को अपने अंदर उमड़ रही भावनाओं को पंख देने के लिए वह दरवाजे पर दस्तक दी,,, दरवाजे पर खट खट की आवाज से ही शुभम अपने बिस्तर पर से नीचे खड़ा हो गया,,,, वह इतना तो समझ गया था कि दरवाजे पर उसकी माही खड़ी है क्योंकि घर में उन दोनों के सिवा तीसरा कोई भी नहीं था,, लेकीन यह समझ में नहीं आ रहा था की आखिर ऊसकी मां क्यों आई है लेकिन तभी उसकी आंखों में चमक आ गई इस बात को लेकर कि शायद उसकी मां का फिर से मूड बन गया है। वह तुरंत बिस्तर पर से नीचे उतर गया। निर्मला दूसरी बार दरवाजे पर दस्तक देती ईससे पहले ही वह दरवाजा खोलते हुए बोला।

क्या बात है मम्मी आप यहां,,,,,

क्यों आ नहीं सकती क्या,,,,?

नहीं मेरे कहने का यह मतलब नहीं था आप इतने टाइम पर आराम करती हैं इसलिए,,,,,,

हां मुझे तुझसे कुछ जरूरी काम था,,,,,,( निर्मला की यह बात सुनते ही शुभम का दिल जोरो से उछलने लगा उसे लगने लगा कि उसकी मां फिर से उसके साथ चुदवाना चाहती है। इसलिए जानबूझकर बनते हुए वह बोला।)

क्या काम था मम्मी,,,,,


अरे सब कुछ यही खड़े-खड़े पूछता रहेगा या मुझे अंदर भी आने देगा,,,

हां हां मम्मी अंदर आइए ना (इतना कहते हुए वह थोड़ा सा बगल में हो गया और निर्मला कमरे के अंदर प्रदेश कि कमरे में निर्मला के प्रवेश करते ही मारे खुशी के शुभम ने दरवाजा बंद कर दिया,,,,, ऊसे लगने लगा कि अब फिर से मम्मी की खूबसूरत रसीली बुर में लंड डालने को मिलेगा,,,, निर्मला भी बड़ी मस्ती के साथ अपनी साड़ी के आंचल को हवा में लहराते हुए बिस्तर पर अपनी मद मस्त गांड का सारा वजन रख कर आराम से बैठ गई,,,,,, और शुभम से बोली,,,)

आज तू भी इधर मेरे बगल में बैठ,,,, ( शुभम को तो बस सुनने भर की देरी थी वह तुरंत जाकर अपनी मां की बगल में बैठ गया,,,, और बोला,,,,,)

क्या बात है मम्मी आप क्या बात करना चाहती हो,,,,,
( अपने बेटे की इस सवाल पर निर्मला हिचकिचा रही थी उसे समझ में नहीं आ रहा था की बात की शुरुआत कैसे करें इसलिए शर्मा कर इधर उधर नजरें घुमा ले रही थी इसलिए यह देखकर शुभम दुबारा अपनी मां से बोला,,,।)

क्या हुआ मम्मी आप क्या बात करना चाहती हैं मुझे बताओ तो,,,,,

बेटा,,,,,, मैं हम दोनों के बीच जो कुछ भी हुआ उस बारे में बात करना चाहती हुं।,,,,

कैसी बात मम्मी,,,,,


देख आज तुझे मै अपनी जिंदगी की पूरी सच्चाई बताती हूं,,,
( शुभम अपनी मां की तरफ ध्यान से देख रहा था वह तो अपनी मां की खूबसूरती में खोया हुआ था उसका गोऱा रंग ट्यूबलाइट के उजाले में और भी ज्यादा चमक रहा था। वह बार बार पंखे की हवा में लहरा रही अपनी बालों की लटों को बार-बार अपनी उंगलियों से गोरे गाल पर से हटा दे रहीे थी। जिससे निर्मला की यह अदा शुभम के बदन में हलचल मचा दे रही थी।)
बेटा तू मुझे देखकर यही समझता होगा कि मैं बहुत खुश हूं मेरी जिंदगी बड़े अच्छे से गुजर रही है और तेरे पापा मुझे बेहद प्यार करते हैं। ( शुभम अपनी मां की तरफ बड़े ध्यान से देख रहा था और उसकी बातों को सुन रहा था।) मेरे मुस्कुराते हंसते चेहरे के पीछे कितना दर्द कितना दूख छुपा हुआ है आज मैं तुझे सब बताऊंगी।


मम्मी तुम्हारी बात का कोई मतलब नहीं समझ पा रहा हूं आप कहना क्या चाहतीे हैं।( शुभम अपनी मां को बड़े ही आश्चर्य के साथ बोला वाकई में उसे अपनी मम्मी की बात समझ में नहीं आ रही थी कि आखिर वह कहना क्या चाह रही थी।)

बेटा पहले तो मैं तुझे साफ साफ शब्दों में बता देना चाहती हुं कि तेरे पापा मुझसे बिल्कुल भी प्यार नहीं करते।
( अपनी मां की यह बात सुनते ही शुभम एकदम आश्चर्यचकित हो गया उसे अपनी मां के कहे गए शब्दों पर बिल्कुल भी यकीन नहीं हो रहा था।)
हां बेटा यह बिल्कुल सच है शुरु शुरु में शादी के बाद तो 3 साल तक उन्होंने मुझसे बेहद प्यार किया लेकिन तेरे जन्म के बाद जैसे वह मुझ से दूरी रखने लगे। और यह सिलसिला आज तक जारी है।

मम्मी मुझे तो यकीन नहीं हो रहा है कि ऐसा आपके साथ हुआ है और हो रहा है क्योंकि आप को देख कर आप के चेहरे पर मुस्कुराहट देखकर कभी भी ऐसा नहीं लगता कि आप इतना ज्यादा दुखी है।

क्या करूं बेटा झूठी मुस्कान पर दुनिया के सामने अपना दुख छुपा ले जाती हुं लेकिन अब तू बड़ा हो गया है इसलिए तुझे मैं यह सब बता रही हूं। तेरे साथ जो मुझे इस तरह के संबंध की शुरूआत करनी पड़ी इसके पीछे भी यही कारण है।
( शुभम को अपनी मम्मी की यह बात समझ में नहीं आई वह जानना चाहता था कि उसके साथ इस तरह के संबंध बने हैं उसके पीछे इन हालातो को कैसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। ईसलिए वह अपनी मां से बोला,,,,

मम्मी मैं कुछ समझा नहीं,,,,,

अब तुझे कैसे समझाऊं मुझे समझ में खुद नहीं आ रहा है कि यह बात मैं तुझसे बोलु या ना बोलु। ( निर्मला इधर उधर देखते हुए बोली।)

मम्मी आप सब अब बता ही रही हो तो यह भी बता दो,,,,


तुझे जरूर बताऊंगी लेकिन तू मेरे बारे में कुछ गलत मत समझना तेरी मम्मी अभी भी पहले की ही तरह है बस थोड़ा सा प्यार पाना चाहती है। तेरे जन्म के बाद तेरे पापा मुझ से शारीरिक संबंध ना के बराबर रखने लगे,,,, शारीरिक संबंध मतलब तेरे पापा मुझे चोदना ही बंद कर दिए,,,, ( चोदना शब्द सुनते ही शुभम के कान के साथ-साथ उसका लंड भी खड़ा हो गया और यह शब्द बोलते हुए और वह भी अपने बेटे के सामने निर्मला के बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ गई,,,, शुभम आश्चर्य के साथ बोला।)

मम्मी यह कैसे शब्दों का प्रयोग आप कर रही है।?

क्या करूं बेटा अब यह तुझसे ना कहूं तो किससे कहूं,, मैं अब जानती हूं कि तू बड़ा हो गया है समझदार हो गया है इसलिए तू मेरी इन बातों को जरूर समझेगा,,,,, तू शायद नहीं जानता की औरतों की भी बहुत इच्छा होती है।
( शुभम अपनी मां के कहने का मतलब अच्छी तरह से जानता था फिर भी अनजान बनता हुआ बोला।)

कैसी इच्छा मम्मी?

चुदने की,,ओर कीसकी,,, ( थोड़ा रुककर बोली,,,,, )
मैं कितना तड़प रही हूं इसका एहसास शायद किसी को नहीं होगा एक औरत अपने पति से क्या चाहती है प्यार प्यार और बस प्यार,,,, लेकिन तेरे पापा ने तो मुझसे जैसे मुंह मोड़ लिया हो। मैं रात भर बिस्तर पर करवट बदलती रहती हूं मैं कितने बदनसीब हूं कि तेरे पापा के करीब होने के बावजूद भी मुझे कोई सुख नहीं है। तेरे पापा कभी कबार जब उनका मूड करता है तो मेरे साथ बिना बताए बिना प्यार किए ही चोदने लगते हैं।
( शुभम अपनी मां के बगल में बिल्कुल सट कर बैठा हुआ था अपनी मां की बातें सुनकर उसके बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ रही थी जोंकि उसके लंड पर साफ असर कर रही थी।
वह कभी सपने में भी सोच नहीं सकता था कि उसकी मां उससे इस तरह की बातें करेगी,,,, चोदने चुदने जेसी अश्लील शब्दों का प्रयोग वह बिल्कुल सहज भाव से कर रही थी। शुभम को आप इतना तो समझ में आ रहा था कि उसकी मां उसके सामने पूरी तरह से खुल चुकी है तो उसे इस तरह से दबे दबे रहने से कोई फायदा नहीं था,,,, इसलिए वह भी अपनी मां के सामने खुलते हुए बड़ी हिम्मत जुटाकर बोला।)

मुझे तो मम्मी बिल्कुल भी यकीन नहीं हो रहा है आप इतनी खूबसूरत है तुम्हारा बदन इतना खूबसूरत है जब दूसरों का मन हो जाता है तो आप तो पूरी तरह से पापा की हो और वह जब चाहे तब आप को चोद सकते हैं तो वह ऐसा क्यों कर रहे हैं।

यही तो मुझे नहीं पता चल रहा है आज कितने बरस बीत गए लेकिन तेरे पापा मुझे ढंग से प्यार नहीं कर सके,,,, और यही कारण है कि मेरा झुकाव तेरी तरफ बढ़ने लगा,,,,

मेरी तरफ,,,, मेरी तरफ क्यों मम्मी,,,,,

बेटा इतने से तू समझ तो गया होगा कि मैं कितने वर्षों से प्यासी हूं और वह भी तेरे पापा से चुदने के लिए लेकिन तेरे पापा मेरी प्यास कभी भी बुझाने की जरूरत नहीं समझे,,,
मै दीन रात चुदाई के सपने देखा करती थी,,,,( शुभम अपनी मां की बातों को सुनकर एकदम चुदवासा हो गया था,,,, पजामे में उसका लंड पूरी तरह से तन कर खड़ा हो गया था,,,
जिसे वह बार बार हाथ लगाकर एडजस्ट करने की कोशिश कर रहा था और निर्मला की निगाह में उसकी यह हरकत साफ आ रही थी।) मैं बरसों से अपनी प्यास को अपने अंदर दबा कर रखी हूं लेकिन मेरी प्यास उस समय एकदम भड़क गई जब मैं तुझे पहली बार तेरे कमरे में बिल्कुल नंगा खड़ा देखी थी,,,,( अपनी मां की आवाज सुनकर शुभम एकदम से चौक उठा और बोला,,,)

बिल्कुल नंगा,,,, मुझे और मेरे कमरे में,,,,, कब मम्मी,,,,?( शुभम आश्चर्य के साथ बोला उसकी यह बात सुनकर निर्मला मुस्कुराने लगी उसे पता था कि इस रिश्ते को हमेशा कायम रखना है तो दोनों के बीच की दीवार मजबूत होनी चाहिए इसलिए उन दोनों के बीच की सारी ग़लतफ़हमियां की दीवारों को गिराना बहुत जरूरी था इसलिए मुस्कुराते हुए निर्मला बोली।)

शुभम जब मैं तुझे पहली बार उस अवस्था में देखी थी तो मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि यह मेरा ही बेटा है शाम को किचन में मदद कराने के लिए मुझे तेरी जरूरत थी,,,

किचन में मदद कराने के उद्देश्य से मैं तेरे कमरे की तरफ गई कमरे का दरवाजा तो बंद था लेकिन खिड़की हल्की सी खुली हुई थी जिसमे मेरी नज़र पड़ते ही मैं वह देखी जिस पर मुझे कभी विश्वास ही नहीं हो रहा था,,,,
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