ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete

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jay
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Re: ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना

Post by jay »

रात का खाना-वाना खा पीके, सब लोग अपने-2 कमरों में सोने चले गये, मे और धनंजय थोड़ी देर गाप्पें लड़ाते रहे, आनेवाले समय के बारे में कैसे क्या करना होगा ये सब, फिर कोई 11 बजे हम दोनो भी सोने चले गये..!

वैसे रेखा ने कुछ बोला तो नही था, कि आज वो आएगी या नही मेरे पास पर मुझे पक्का पता था कि उसकी चूत ज़रूर कुलबुला रही होगी..!

मे अभी लेटा ही था, सोने की कोशिश कर ही रहा था कि आहट हुई…!!

मैने आँख खोल कर देखा तो रेखा अंदर से दरवाजा बंद कर रही थी…!

मे- अरे दीदी तुम यहाँ क्यों आई हो,,? और ये गेट क्यों बंद किया..?

वो- मेरे पास बिस्तर पर बैठती हुई..! अच्छा जैसे तुम्हें कुछ पता ही नही..? हाइन.. कैसे बन रहे हो..?

मे- अरे मुझे कैसे पता होगा…? जानते बुझते उसे चिड़ाते हुए बोला..!

वो मेरे सीने पर प्यार से मुक्के बरसाते हुए बोली- बहुत बुरे हो तुम.. अरुण..!, आग लगा कर पूछते हो कि ये कैसे लगी.. आम्मुन्च.. और मेरे होठों को चूम लिया..

वो बहुत बेसब्री हो रही थी, मैने भी उसको अपनी बाहों में कस लिया और उसके होत चुसते हुए बोला- दीदी क्या ये हम सही कर रहे है..?
किसी को पता चला तो लोग क्या कहेंगे, कि देखो कितना नीच है, अपने दोस्त की बेहन को भी नही छोड़ा..!

वो- अब ये सब सोचने का समय निकल गया है अरुण, मे वादा करती हूँ तुम्हें कोई आँच नही आने दूँगी..! और वैसे भी किसी को पता कैसे चलेगा..? क्या तुम किसी को बताओगे..? या में.?

और मेरे पूरे चेहरे पर चुम्मनों की बारिश सी करदी उस बेसब्री लौंडिया ने, वास्तव मे उसे अब कोई रोक नही सकता था..!

मे पलंग के सिरहाने से टिका बैठा था, उसकी कमीज़ उतार के उसे मैने अपनी गोद में बिठा लिया अपने दोनो ओर पैर करके.. !

मैने उसके 32” मम्मों को अपने दोनो हाथों मे लेके रगड़ दिया..!
सीयी… हआइई… रामम्म… मारीइ…रीए.. धीरीए.. ड्ड.आ.र.ड्ड..हो..त.त्ता.आ. है….!
लगता था, उसके संतरों पर भी अभी तक कोई काम नही हुआ था, थोड़ा बहुत उसी ने उनको छेड़ा होगा..!

उसकी ब्रा निकाल के बिस्तर पे डाल दी.. , वाउ ! क्या चुचियाँ थी, उन्हें देख कर मुझे रिंकी की याद आ गई और उसके हल्के गुलाबी निपल को होंठो से पकड़ के खींच दिया..!

ससुउुुआाहह…मुंम्मिईिइ.. मरी रीई… ओह माआ.. ये क्या हो रहाआ.. है.. मुझीए…ओह्ह्ह…अरुण.. बहुत मज़ाअ.. आरहा है… चूसो इनको… खा जाओ… मेरे राज आआ..!

दूसरे निपल को अंगूठे और उंगलियों के बीच मसल दिया हल्के से…! अब तो रेखा आसमानों में उड़ने लगी..आँखें बंद करके, औंत की तरह गर्दन उठाके मेरे मुँह को बुरी तरह अपनी चुचि पे दबा दिया..!

मेरा मुँह उसकी मुलायम चुचि में दब गया, मुझे सांस लेने में भी मुश्किल होने लगी..!

अरे दीदी मेरा दम घोंटोगी क्या..? मुँह हटा के बोला मे.. वो बुरी तरह शरमा गई..!

फिर मैने दूसरी चुचि के कांचे जैसे खड़े निपल को मुँह में लेके चूसा और दूसरी चुचि को हाथ में भर के ज़ोर्से मसल दिया…!

हआइईईई…ऊहह.. वो हाँफने सी लगी…! मे उसके बारी-2 से निपल चूस्ता रहा, और मेरे हाथ उसकी सलवार का नाडा खोलने में बिज़ी हो गये, इस बीच उसने भी मेरा कुर्ता मेरे शरीर से अलग कर दिया..!

रेखा को बेड पे लिटके, उसकी सलवार निकल दी, और उसकी आँखों में देखते हुए उसकी कोरी करारी मुनिया को अपने हाथ से सहलाते हुए मुट्ठी में भींच लिया..!

ग़ज़ब ही हो गया…! उसकी कमर धनुष की तरह उपर उठी, और आआययईीीई…न्नाऐईयइ… करती हुई धप्प से गिरी.. उसका ओरगिस्म हो चुका था, पेंटी चूत रस से सराबोर हो चुकी थी…!

अब उसकी पेंटी का वहाँ कोई काम नही रहा.. तो उसको मैने हाथ से खिच के फाड़ ही डाला..! उसको कोई फ़र्क नही पड़ा वो तो बस मस्ती में आखे बंद किए हुए, अभी-2 जो उसके साथ हुआ था उसी में खोई हुई थी…!

मे- दीदी कैसा लग रहा है…?

वो- ये…क्या..था अरुण..? तुम कोई जादूगर हो क्या…? मुझे लगा में यहाँ हूँ ही नही.. किसी और दुनिया में हूँ.. सच में.

फिर मैने अपना पाजामा भी उतार दिया, मेरे नत्थूलाल तो अकड़ के लोहे के डंडे के माफिक खड़े थे, और मेरे अंडरवेर से निकलने के लिए उतावले हुए जा रहे थे.

मैने प्यार से हाथ फेरा और पुच्कार्ते हुए कहा… पूकक्च… शांत मेरे शेर, सब्र कर सब कुछ मिलेगा..

रेखा ये देख कर शरमाते हुए, मंद-मंद मुस्करा रही थी.

मैने अपने लंड को रेखा के होठों पर रख कर इधर-से-उधर फिराया.

चूँकि वो ये सब कल रात को देख चुकी थी, सो उसने जीभ से सुपाडे को चाट लिया जिस पर एक बूँद शुद्ध देशी घी लगा था,

उसको स्वाद अच्छा लगा तो मुँह खोल दिया और सुपाडे को गडप्प कर गई, और मेरी आँखों में देखते हुए इशारे से कह रही हो मानो कि अच्छा टेस्ट है….!

थोड़ी देर तक उससे अपना लंड चुसवाने के बाद, मैने उसे लिटा दिया, और उसकी टाँगे खोलके उसकी मुनिया पर हाथ फिराया..

उसकी मुनिया की फाँकें एक-दूसरे से चिपकी हुई थी मानो गले मिल रही हों..! एक बार अपनी जीभ को नीचे से उपर को पूरी लंबाई तक उसकी कोरी चूत के उपर फिराया.. तो उसकी सिसकी एक बार फिर निकल गयी..!
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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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jay
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Re: ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना

Post by jay »

उसकी कोरी चूत ऐसी लग रही थी मानो किसी छोटी बच्ची अपने पतले पतले होठों को बंद किए हो. सिर्फ़ एक दरार सी बस, उपर को एक छोटी सी चिड़िया की चोंच जैसी बाहर मुँह चमका रही थी.

उसे देख कर मेरे मुँह और लंड दोनो में पानी आ गया. एक-दो बार पूरी चूत पर जीभ से चाटने के बाद, मैने उसकी फांकों को दोनो हाथों के अंगूठों की मदद से उसके चीरे को खोला…!

मासा अल्लाह !! एक गुलाबी रंग की छटा उसकी चूत के अंदर दिखी..! सिर्फ़ एक बार ही अपनी जीभ फिराई मैने उसके अन्द्रूनि भाग में और फिर अपने लंड को उसमें भिड़ा दिया..!

रेखा आँखें बंद किए मज़े का अनुभव कर रही थी.., धक्का देने से पहले मैने रेखा से कहा…!

दीदी थोड़ा कंट्रोल करना.. दर्द हो सकता है.. ओके.. वारना ज़ोर से चीख पड़ी तो कोई सुन लेगा..!

उसने बस हां में गर्दन हिला के हामी भर दी,

मैने हल्का सा पुश किया अपनी कमर को और सुपाडा पूरी तरह से अड्जस्ट हो गया उसकी अन्चुदी चूत के छोटे से छेद में.

उसको हल्का सा दर्द का आभास हुआ लेकिन सह गई..!

फिर उसके कंधों पर हाथ रख के एक तगड़ा सा धक्का मार दिया…!

लाख कोशिशों के बबजूद उसके मुँह से चीख निकल ही गयी…!

हाययययई….मुम्मिईिइ….मररर..गाइ…रीि…ऊहह… उउफ़फ्फ़… माआ….अरुण प्लस्सस.. निकालो अपना, मुझे नही करवाना.. हाईए.. जल्दी निकालो..मे.. मर्र्रीि…!

मे वही रुक गया और उसको नकली गुस्सा दिखाते हुए बोला… क्या बोली…? निकालो…? ठीक है मे निकाल लेता हूँ.. फिर मत आना मेरे पास अपनी अध-फटी चूत लेकर..! साला चूतिया समझ रखा है मुझे..?

आधा लंड चला गया, झिल्ली टूट चुकी है और अब बोल रही कि निकालो..! बोल क्या करूँ..? निकाल लूँ..?

वो कुछ नही बोली बस मुँह कस के बंद कर लिया, आँखो से पानी निकालती रही..!

मैने उसका दर्द कम करने के लिए, उसकी चुचिओ को मुँह से चूसने लगा और दूसरी को आहिस्ता-2 सहलाने लगा..!

उसका दर्द छमन्तर हो गया और फिर मेरी ओर आशा भारी नज़रों से देखने लगी..!

अब मैने उसके होठों को अपने होठों में जप्त करके एक और तेज झटका दिया कमर में…. सटकककक.. से पूरा लंड जड़ तक चूत के अंदर घुस गया..! उसके मुँह से गुउन्न्ं..गुउन्न्ं.. की आवाज़ निकल रही थी होठ मेरे होंठो से बंद थे, आँखें बरस रही थी मेरे नीचे पड़ी वो दर्द से छट-पटा रही थी..!

थोड़ी देर होंठ चूसने से और उसकी चुचियों को मसल्ने की वजह से वो जल्दी हो नॉर्मल हो गयी और अपनी कमर को जुम्बिश दे कर इशारा किया आगे बढ़ने का..

मैने बहुत ही धीरे से अपने लंड को बाहर की ओर खींचा तो वो फिरसे कराही, फिर अंदर किया तो फिर कराही, ऐसे ही मेने धीरे-2, कुछ देर आराम से लंड को अंदर बाहर किया..

अब उसकी चूत मे थोड़ा गीलापन बढ़ने लगा था, सो स्वाभविक है, दर्द भी कम हो रहा था, लंड और चूत के बीच का फ्रिक्षन कम होने लगा. मैने थोड़े धक्कों को गति दे दी, अब उसका दर्द सिसकियों में बदलता जा रहा था.

वो भी अब अपनी कमर उचका उचका के चुदने लगी..! फिर तो वो तूफान आया--- कि बस पुछो मत, 20 मिनट में ही सब बह गया..! हम दोनो ही पसीना-2 हो गये थे.

साँसें इतनी गति से चल रही थी मानो मीलों की दौड़ लगा के आए हों.

कितनी ही देर हम एक दूसरे की बाहों में पड़े रहे.. जब होश आया और मैने उसकी ओर देखा, तो उसने शरमा कर अपना मुँह दूसरी ओर कर लिया और मंद-2 मुस्कराने लगी…!

मैने उसके गाल को काट लिया, तब उसने मेरी ओर देखा, आयईयी… काट क्यों रहे हो निशान बन जाएँगे..!

मे- अच्छा और एक बहुत बड़ा निशान नीचे बना दिया तब कुछ नही कहा..?
वो शरमा गई और मेरे सीने में अपना मुँह छिपा लिया..

मे- दीदी.. , उम्म्म.. वो बोली, मे- खुश तो हो. वो- हमम्म.. बहुत.. और तुम्हारी एहसान मंद हूँ, कि तुमने मुझे औरत होने का एहसास करा दिया..

मे- दीदी.., इस बात को यही तक रखना.. दिल तक मत पहुँचने देना.. वरना बड़ा दुख देता है वो बाद में.

वो – नही अरुण में जानती हूँ, और तुम फ़िक्र ना करो.. इससे ज़्यादा की उम्मीद मे कभी होने भी नही दूँगी.

मे- हमम्म.. वैसे सच बताना, मज़ा तो आया ना…मैने उसके निपल को हल्के से उंगली से सहलाते हुए कहा..

वो- मेरे गाल को चूमती हुई.. सच कहूँ तो एक बार को लगा कि मर ही जाउन्गी अब, लेकिन तुम वाकई मे कोई जादू जानते हो..

अगले ही पल मुझे लगने लगा कि में स्वर्ग मे उड़ रही हूँ, इतना सुख, इतना मज़ा.. मैने कभी कल्पना भी नही की थी..

सहेलियों से सुना था जिनकी शादियाँ हो गयी हैं, या फिर जो ये सुख ले चुकी है, पर वो भी इतना नही बता पाई, ये तो बस… क्या कहूँ..?

मे- और लेना चाहोगी वो सुख..?

वो- हमम्म.. मन तो है, पर थोड़ा दर्द भी है..

मे- अरे वो तो एक मिनट. में छमन्तर हो जाएगा..
और फिर मैने उठके एक कपड़ा गीला करके उसकी चूत से खून और वीर्य को साफ किया और पूरे हाथ से सहलाने लगा.. उसकी आँखें बंद होती चली गयी..

अब मे पहली बार उसकी चूत चाटने वाला था, सो लग गया अपना हुनर दिखाने.. थोड़ी ही देर में वो अपना दर्द भूलके, उड़ चली ऊडन खटोले पे बैठ के आसमानों में, जब उतरी तो उसकी चूत आँसुओं से तर थी.
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Re: ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना

Post by Kamini »

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Re: ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना

Post by Smoothdad »

शानदार अपडेट।
जारी रखे, आगे की प्रतीक्षा में
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