ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete
- jay
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Re: ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
ये जीमीपाल था, जिसके शरीर पर अनगिनत घाव थे, ऐसा लगता था मानो किसी भागते हुए जंगली सुअर को पीछा करते हुए तलवारों से मारा हो.
ये बॉडी कहाँ मिली तुम्हें, थानेदार ने एक सिपाही से पुछा जो उसे लेने गया था,
ये केबल से 1किमी दूर रेलवे ट्रॅक पर पड़ी थी साब, शायद इससे मारकर ट्रॅक पर डाला हो, सोचा होगा, कोई ट्रेन आके काट जाएगी, लोग सोचेंगे आक्सिडेंट हो गया होगा,
लेकिन ट्रेन के आने से पहले इसे अर्पेम वालों ने देख लिया, और यहाँ खबर करदी,
ह्म….. किसने किया होगा ये कत्ल…थानेदार बुदबुदाया…..
साब इन्होने… भूरेलाल रामसिंघ चाचा की ओर इशारा करके रोते हुए चिल्लाकर बोला….
क्या बकवास कर रहे हो, ये तो उल्टा तुम्हारे खिलाफ रिपोर्ट लिखने आए हैं, इनके ठोडी (चिन) में तुम्हारी तलवार का घाव है,
नही साब ये सब इनका ड्रामा है, अपने हाथ से अपने उपर घाव लगाके ये साबित करना चाहते हैं, कि ये तलवार का घाव है जो जीमीपाल ने मारी, तो फिर ये यहाँ मरा कैसे पड़ा है, सोचिए…..
थानेदार सोच में पड़ गया, उसे भी लगने लगा कि हो ना हो ये रामसिंघ वग़ैरह की ही साजिश हो,
अब मामला उल्टा पड़ गया, कहाँ तो वो लोग अपने उपर हुए अटॅक की रिपोर्ट लिखाने गये थे, और यहाँ जीमीपाल की मौत का उन्हें ही ज़िम्मेदार ठहराया जा रहा है,
चाचा के अलावा और किसी ने उसे देखा भी नही था अटॅक करते हुए, तो उन्हें ही मुजरिम ठहराकर, केस बना दिया उनके खिलाफ,
जिसमें चाचा, उनके दोनो बेटे और साथ में जानकी लाल को भी साथ देने के जुर्म में अरेस्ट करके हवालात में बंद कर दिया,..
वो लाख चिल्लाते रहे कि हमने ये कत्ल नही किया, हम निर्दोस हैं, लेकिन पोलीस को तो बैठे बिठाए ही मुजरिम मिल गये, तो कॉन छान बीन करे.
पूरे घर में मातम छा गया, जीमीपाल की ससुराल से भी लोग आ गये उसकी पत्नी को लेके, वो भी उन्हें ही दोषी मानने लगे.
जीमीपाल की पत्नी दहाड़ें मार-मार कर रो रही थी, उसकी तो अभी जिंदगी शुरू भी नही हुई थी कि ख़तम भी हो गयी,
घर में केवल एक जेठानी थी, वाकी को तो वो गुनेहगर मान रहे थे..
मातम दोनो ही तरफ था, इधर भी घर के सभी पुरुषों को तो हवालात में बंद कर रखा था, वाकी तीन बाहर थे, और उन्हें खबर भी कर्वादी, कि वो यहाँ आएँ भी ना,
क्या पता भूरे उन्हें भी अरेस्ट करवा दे, अब तो ऐसा लगता था जैसे पोलीस उसी का काम कर रही हो.
इधर की तो किसी सिफारिस को भी सुनने को तैयार नही था वो दारोगा.
इस तरफ वाकी बचे सदस्यों में घर की 4 औरतें, 3 बच्चे, जिनमें चाचा रामसिंघ की सबसे छोटी बेटी नीनु 9-10 साल की, जानकी लाल का तीसरा बेटा श्याम बिहारी 8-9 साल का और अरुण 5 साल का.
4-5 दिन हवालात में रखने के बाद उन सभी को जैल भेज दिया गया, जो कि बड़े शहर में था,
उसी शहर में ब्रिज बिहारी पढ़ाई करते थे, इस समय बीएससीएजी कर रहे थे,
वहीं उन्होने अपने पिता, चाचा और चचेरे भाइयों से जैल में मुलाकात की, और उनके डाइरेक्षन में वकील बगैरह करके बैल कराने की कोशिश की,
चूँकि मामला अपने सगे परिवार के सदस्य के कत्ल का था, उसे संगीन दिखाकर, बेल भी कॅन्सल करवा दी,
सब जगह से उम्मीद के दरवाजे बंद थे, उधर फसल पक चुकी थी, लेकिन भूरे के डर से कोई मजदूर आने को तैयार नही थे, वो उनको डराता धमकाता था,
जानबूझ कर रातों को फसल का नुकसान करता, जानवरों को छोड़ कर, कहते है, जब बुरा वक़्त आता है तो दोस्त भी दुश्मन बन जाते हैं,
कल तक जो नाते रिस्तेदार जिनका गुणगान करते नही थकते थे, आज वही उन्हें गालियाँ देते थे, ये कैसा समय का चुका था, जिसमें से निकलने का कोई मार्ग नही सूझ रहा था,
बड़ी बुआ के दामाद नेताजी, उन्होने उन्हें कुछ ग़लत लगा और मदद की, उनके कहने पर पोलीस की देख-रेख में मजदूरों को बाहर से बुलवाकर फसल के काम निपटाए.
ब्रिज बिहारी और यशपाल रातों में आ-आ कर फसल का काम देखते…
ईश्वर की असीम कृपा हुई, फसल की पैदावार, गये सालों से भी अच्छी हुई, बावजूद इसके कि उन्हें नुकसान पहुचाने में भूरे & कंपनी. ने कोई कसर नही छोड़ी थी.
समय बीतता गया, 6 महीने जैल में काटने के बाद केस अदालत में शुरू हुआ.
एक दो सुनवाई में नेताजी की कृपा से वकील अच्छा मिल गया, उसने सच्चाई को समझा, और अपनी काबिलियत से उन्हें बेल दिलवाई…
केस चलता रहा, तारीखें पड़ती रही, इसी तरह दो साल और बीत गये, अरुण अब 7 साल का हो गया था.
एक दिन सभी लोग अदालत गये हुए थे, तीनों बच्चे खेतों में देखभाल के लिए गये हुए थे,
एक खाली जूते हुए खेत में ये तीनो खेल रहे थे छुआ-छुयि, बाजू में ही बाजरे का खेत था,
बाजरे में बाली आ चुकी थी, बहुत बड़े एरिया में था ये बाजरा, उस जूते हुए खाली खेत के दो तरफ.
एक बार अरुण (में) का नंबर आया उन्हें छुके आउट करने का, में उस बाजरे के खेत के पास खड़े आम के पेड़ को छुने गया था,
पेड़ को छुके में उन दोनो में से किसी एक को पकड़ता, जिससे मेरी टर्न ख़तम होती और छुये हुए की शुरू होती.
में उस पेड़ को छुके जैसे ही मुड़ा और उन दोनो को छुने आगे बढ़ा, वो दोनो मेरे पीछे देखकर चिल्लाए…
भागो… अरुण… भाग… वो दोनो चिल्लाते हुए गाँव की तरफ भागने लगे..
मेरी समझ में कुछ नही आया, कि आख़िर बात क्या है, जानने के लिए मैं जैसे ही पीछे मुड़ा,
मारे डर के मेरे रोंगटे खड़े हो गये, और टाँगें काँपने लगी..
बाज़ारे के खेत से निकल कर एक लकडभग्गा (हाइना), एक बुलडॉग से भी तगड़ा, कानों तक उसका मुँह फटा हुआ मेरी तरफ आरहा था.
मेरी तो गान्ड फट गयी, चीखते हुए पीछे की तरफ उल्टा ही हटने लगा, और वो लक्कड़भग्गा मेरी तरफ बढ़ता रहा,
निरंतर हम दोनो के बीच की दूरी कम से कम होती जा रही थी,
मैने सोचा अगर पलट कर भागता हूँ, तो ये पीछे से झपट कर खा जाएगा मुझे, इसलिए में रोता हुआ, उसपर नज़र गढ़ाए पीछे की तरफ हटता रहा.
एक समय पर हम दोनो के बीच की दूरी मात्र 6-8 फीट ही रह गयी, अचानक वो लक्कड़भग्गा मेरे उपर गुर्राते हुए झपटा…..
हमला उसने अपनी पूरी शक्ति से किया था, मैने फ़ौरन एक तरफ को छलान्ग लगा दी,
वो जानवर झोंक में आगे गिरा, उसका मुँह ज़मीन में गीली जुति हुई मिट्टी में घुस गया,
वो उठा और अपने मुँह और आँखों में घुसी हुई मिट्टी को फडफडा के झटका.
भाग्यवश मैने जिधर छलान्ग लगाई थी उधर पेड़ से कटी हुई कुछ लड़कियाँ पड़ी थी,
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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).
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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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Re: ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
मेरे नन्हे दिमाग़ ने काम करना शुरू किया, मैने मन ही मन फ़ैसला कर लिया कि मरना तो है ही क्यों ना कोशिश की जाए.
स्कूल में मास्टर जी ने पढ़ाया था, कि आदमी को मरते दम तक प्रयास करते रहना चाहिए.
मेरे हाथ सबसे नज़दीक पड़ी एक लकड़ी पर जाम गये, ये लकड़ी एक लाठी के बरार मोटी और तकरीवन 5 या 6 फीट लंबी थी, और उसका एक सिरा वाइ की शेप में था,
में अपने पैरों के पंजों पर लकड़ी को कस के पकड़ के बैठ गया, लेकिन लकड़ी को उठाया नही.
लक्कड़भग्गा अपना मुँह झाड़ के दुबारा पलटा, इस बार उसने और गुस्से में मुझ पर हमला किया,
जैसे ही वो मुँह फाड़ कर मेरे उपर झपटा, झटके से में लकड़ी लेके उठा, और उसका वाई शेप वाला सिरा उसके मुँह में घुसेड दिया अपनी पूरी शक्ति और साहस के साथ.
वाई वाला सिरा, उस लक्कड़भग्गे के मुँह को और ज़्यादा खोलता चला गया, उसकी शक्ति छ्छीड हो गयी, उपर से मैने और ताक़त लगा उसे पीछे धकेला.
लक्कड़भग्गा गान्ड के वाल पीछे गिरा, फ़ौरन मैने लकड़ी घुमा कर उसके जबड़े पर कस्के रसीद कर दी.
लकड़ी के भरपूर बार से लक्कड़भग्गा ज़मीन पर दो-तीन पलटी खा गया,
उसका हौसला जबाब दे गया, कुछ देर के लिए वो ऐसे ही पड़ा रहा, मौका देख कर मैने दो-तीन बार और कस्के कर दिए उसके सर पर.
वो भयानक काले मुँह वाला जीव, निर्जीव सा पड़ा रह गया,
जब मुझे लगा कि अब ये उठके पीछे से बार करने की स्थिति में नही है, तब में वहाँ से सर पे पैर रखके भागा.
में बेतहासा घर की ओर भागे जा रहा था, कि थोड़ी दूर पर ही गाँव की तरफ से बहुत सारे लोग लाठी, डंडा लेके भागते हुए उधर को ही आते हुए दिखे.
में समझ गया कि ये लोग मुझ को बचाने के लिए आरहे हैं, में वहीं रुक गया और उन लोगों का इंतजार करने लगा.
सभी घरवाले, साथ में कुछ और मोहल्ले वाले भी थे, पास आए, और मुझे सही सलामत देखकर तसल्ली हुई.
पुच्छा की क्या-क्या हुआ, मैने सब बात बताई,
उस जगह गये तो देखा की वो लक्कड़भग्गा अभी भी वही पर मुँह से हल्की-2 गर्र्रर, गार्रररर की आवाज़ें निकालते हुए पड़ा था.
सभी लोगों ने मुझे शाबाशी दी, और मेरे भाई-बहन को बहुत डांता, मैने कहा कि इसमे इनकी कोई ग़लती नही, वो तो अचानक से आ गया,
माँ ने मुझे अपनी छाती से चिपका लिया और बलाएँ लेने लगी.
उसी दिन अदालत से लौटते समय जैल के 6 महीनों में चाचा के दूसरे बेटे मेघ सिंग की दोस्ती एक गुंडे से हो गयी थी वो मिल गया.
उसने कत्ल की सारी सच्चाई बताई, कि जीमीपाल का मर्डर क्यों और किसने किया.
अगली सुनवाई में उसे कोर्ट में गवाह के तौर पर पेश किया गया, और वहाँ उसने जो सच्चाई बयान की वो कुछ इस प्रकार थी ……
विश्वा और जीमीपाल की कॉलेज के दीनो से खास दोस्ती थी, कारण था दोनो की आदतें एक-जैसी थी, वो कहते हैं ना कि, जैसे को तैसा मिल ही जाता है.
दोनो ही गुंडे टाइप थे तो दोस्ती तो लाज़िमी ही थी, धीरे-2 वो दोस्ती गहरी और गहरी होती गयी,
जीमीपाल विश्वा के घर भी आने-जाने लगा, यहाँ तक कि कॉलेज ख़तम होने के बाद भी उसका विश्वा के घर आना-जाना लगा रहा,
विश्वा की एक छोटी बेहन थी, जिसकी आँखें जीमीपाल से लड़ गयी, वो उसके मर्दाने शरीर पर मर मिटी,
जीमीपाल की शादी के बाद भी उनका मिलना जुलना बंद नही हुआ, इसी चक्कर में वो प्रेग्नेंट हो गयी,
एक दिन वो चुदाई कर रहे थे, कि विश्वा ने उन्हें देख लिया, लेकिन सामने नही आया, और चुपके से उन्हें देखता रहा,
चुदाई के बाद विश्वा की बेहन ने बॉम्ब फोड़ा, कि वो उसके बच्चे की माँ बन गयी है,
जीमीपाल हड़वाड़ा गया, कुछ सोच विचार के उसने कहा कि तुम अबॉर्षन करा लो, में अब तुमसे शादी तो कर नही सकता.
वो सुनने को तैयार नही हुई, तो वो उसके साथ डाँट-दपट करके, गाली-गलोज करके चला आया,
विश्वा को ये बात नागवार गुज़री, और उसने मन ही मन जीमीपाल को सबक सिखाने की ठान ली,
बेहन को उसने समझा बुझ के, उसका अबॉर्षन करा दिया, लेकिन जीमीपाल को ये जाहिर नही होने दिया कि वो उसकी करतूत से वाकिफ़ है,
मौका विश्वा के हाथ लग गया, जब जीमीपाल, भूरे चाचा के मारने का प्लान बना रहे थे, तब उन्होने सोचा कि अगर किसी तरह पकड़े जाने का खतरा पैदा हुआ तो कोई तो चाहिए जो बचा सके,
फ़ौरन उन दोनो को विश्वा का नाम याद आया, उन्होने उससे बात की तुम सिर्फ़ अपने दो-तीन दोस्तों के साथ गाँव के बाहर छिप के नज़र रखना,
वैसे तो ये नौबत आएगी ही नही, क्योंकि रात के इतने वक़्त आदमी को उठाने में भी समय लगता है, तो भीड़ होने के चान्स कम हैं.
दिखावे के लिए विश्वा ने थोड़ी ना-नुकर की, पर अंत में मान गया..
स्कूल में मास्टर जी ने पढ़ाया था, कि आदमी को मरते दम तक प्रयास करते रहना चाहिए.
मेरे हाथ सबसे नज़दीक पड़ी एक लकड़ी पर जाम गये, ये लकड़ी एक लाठी के बरार मोटी और तकरीवन 5 या 6 फीट लंबी थी, और उसका एक सिरा वाइ की शेप में था,
में अपने पैरों के पंजों पर लकड़ी को कस के पकड़ के बैठ गया, लेकिन लकड़ी को उठाया नही.
लक्कड़भग्गा अपना मुँह झाड़ के दुबारा पलटा, इस बार उसने और गुस्से में मुझ पर हमला किया,
जैसे ही वो मुँह फाड़ कर मेरे उपर झपटा, झटके से में लकड़ी लेके उठा, और उसका वाई शेप वाला सिरा उसके मुँह में घुसेड दिया अपनी पूरी शक्ति और साहस के साथ.
वाई वाला सिरा, उस लक्कड़भग्गे के मुँह को और ज़्यादा खोलता चला गया, उसकी शक्ति छ्छीड हो गयी, उपर से मैने और ताक़त लगा उसे पीछे धकेला.
लक्कड़भग्गा गान्ड के वाल पीछे गिरा, फ़ौरन मैने लकड़ी घुमा कर उसके जबड़े पर कस्के रसीद कर दी.
लकड़ी के भरपूर बार से लक्कड़भग्गा ज़मीन पर दो-तीन पलटी खा गया,
उसका हौसला जबाब दे गया, कुछ देर के लिए वो ऐसे ही पड़ा रहा, मौका देख कर मैने दो-तीन बार और कस्के कर दिए उसके सर पर.
वो भयानक काले मुँह वाला जीव, निर्जीव सा पड़ा रह गया,
जब मुझे लगा कि अब ये उठके पीछे से बार करने की स्थिति में नही है, तब में वहाँ से सर पे पैर रखके भागा.
में बेतहासा घर की ओर भागे जा रहा था, कि थोड़ी दूर पर ही गाँव की तरफ से बहुत सारे लोग लाठी, डंडा लेके भागते हुए उधर को ही आते हुए दिखे.
में समझ गया कि ये लोग मुझ को बचाने के लिए आरहे हैं, में वहीं रुक गया और उन लोगों का इंतजार करने लगा.
सभी घरवाले, साथ में कुछ और मोहल्ले वाले भी थे, पास आए, और मुझे सही सलामत देखकर तसल्ली हुई.
पुच्छा की क्या-क्या हुआ, मैने सब बात बताई,
उस जगह गये तो देखा की वो लक्कड़भग्गा अभी भी वही पर मुँह से हल्की-2 गर्र्रर, गार्रररर की आवाज़ें निकालते हुए पड़ा था.
सभी लोगों ने मुझे शाबाशी दी, और मेरे भाई-बहन को बहुत डांता, मैने कहा कि इसमे इनकी कोई ग़लती नही, वो तो अचानक से आ गया,
माँ ने मुझे अपनी छाती से चिपका लिया और बलाएँ लेने लगी.
उसी दिन अदालत से लौटते समय जैल के 6 महीनों में चाचा के दूसरे बेटे मेघ सिंग की दोस्ती एक गुंडे से हो गयी थी वो मिल गया.
उसने कत्ल की सारी सच्चाई बताई, कि जीमीपाल का मर्डर क्यों और किसने किया.
अगली सुनवाई में उसे कोर्ट में गवाह के तौर पर पेश किया गया, और वहाँ उसने जो सच्चाई बयान की वो कुछ इस प्रकार थी ……
विश्वा और जीमीपाल की कॉलेज के दीनो से खास दोस्ती थी, कारण था दोनो की आदतें एक-जैसी थी, वो कहते हैं ना कि, जैसे को तैसा मिल ही जाता है.
दोनो ही गुंडे टाइप थे तो दोस्ती तो लाज़िमी ही थी, धीरे-2 वो दोस्ती गहरी और गहरी होती गयी,
जीमीपाल विश्वा के घर भी आने-जाने लगा, यहाँ तक कि कॉलेज ख़तम होने के बाद भी उसका विश्वा के घर आना-जाना लगा रहा,
विश्वा की एक छोटी बेहन थी, जिसकी आँखें जीमीपाल से लड़ गयी, वो उसके मर्दाने शरीर पर मर मिटी,
जीमीपाल की शादी के बाद भी उनका मिलना जुलना बंद नही हुआ, इसी चक्कर में वो प्रेग्नेंट हो गयी,
एक दिन वो चुदाई कर रहे थे, कि विश्वा ने उन्हें देख लिया, लेकिन सामने नही आया, और चुपके से उन्हें देखता रहा,
चुदाई के बाद विश्वा की बेहन ने बॉम्ब फोड़ा, कि वो उसके बच्चे की माँ बन गयी है,
जीमीपाल हड़वाड़ा गया, कुछ सोच विचार के उसने कहा कि तुम अबॉर्षन करा लो, में अब तुमसे शादी तो कर नही सकता.
वो सुनने को तैयार नही हुई, तो वो उसके साथ डाँट-दपट करके, गाली-गलोज करके चला आया,
विश्वा को ये बात नागवार गुज़री, और उसने मन ही मन जीमीपाल को सबक सिखाने की ठान ली,
बेहन को उसने समझा बुझ के, उसका अबॉर्षन करा दिया, लेकिन जीमीपाल को ये जाहिर नही होने दिया कि वो उसकी करतूत से वाकिफ़ है,
मौका विश्वा के हाथ लग गया, जब जीमीपाल, भूरे चाचा के मारने का प्लान बना रहे थे, तब उन्होने सोचा कि अगर किसी तरह पकड़े जाने का खतरा पैदा हुआ तो कोई तो चाहिए जो बचा सके,
फ़ौरन उन दोनो को विश्वा का नाम याद आया, उन्होने उससे बात की तुम सिर्फ़ अपने दो-तीन दोस्तों के साथ गाँव के बाहर छिप के नज़र रखना,
वैसे तो ये नौबत आएगी ही नही, क्योंकि रात के इतने वक़्त आदमी को उठाने में भी समय लगता है, तो भीड़ होने के चान्स कम हैं.
दिखावे के लिए विश्वा ने थोड़ी ना-नुकर की, पर अंत में मान गया..
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- pongapandit
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Re: ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
mast kahani hai bhai
- Kamini
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Re: ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
mast update
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Re: ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
thanks friend
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