ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete

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jay
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Re: ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना

Post by jay »

rajaarkey wrote: 15 Nov 2017 13:36 बहुत अच्छा अपडेट है दोस्त
rajsharma wrote: 15 Nov 2017 19:49 bahut achha update hai
Ankit wrote: 16 Nov 2017 11:48Superb update
thanks my dear friends
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(^^d^-1$s7)
(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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jay
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Re: ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना

Post by jay »

जब हमारे संगीत के टीचर ने आडिशन के लिए गाने को बोला था, तब मेरी नज़रें उसी पर टिकी हुई थीं, और स्वतः ही मेरे मुँह से यही गाना निकल पड़ा.

में गाने में इतना खो गया, उसको निहारते हुए, कि और लोगों से तो केवल मुखड़ा ही सुना, में पूरा गाना ख़तम करके ही रुका.

पप्पू मास्टर साब मुँह फाडे मेरी ओर देखते ही रह गये, जब गाना ख़तम हुआ तो सभी तालियाँ बजाने लगे, सबकी तालियाँ थोड़ी देर में बंद हो गयी बजना, लेकिन एक ताली बजती रही,

जब मेरा ध्यान गया तो रिंकी मेरे गाने में खोई हुई ताली बजाए जा रही थी और नज़रें मेरी तरफ थी, जब मैने उसकी आँखों में देखा तो सॉफ-2 उनमें तारीफ दिखाई दे रही थी.

पूरे रिहर्सल के दौरान हमारी कई बार नज़रें चार हुई, दिल से एक आवाज़ सी आई कि अरुण ये लड़की तेरे लिए स्पेशल है,

हम सभी चुने हुए लोग डेली 3 घंटे रिहर्सल करते, टीचर के एक साइड में लड़के बैठते, दूसरी साइड में लड़कियाँ.

रिंकी ने भी डुयेट के अलावा एक कोरस में भी पार्टिसिपेट किया था, अब तो ज़्यादातर हम दोनो की नज़रे टकराने लगी,

कभी-2 तो बहुत देर तक एक दूसरे में खोए रहते थे, जब दूसरों के गाने का नंबर होता.

हम अपने दिल की बातें ज़ुबान से तो नही कर पा रहे थे लेकिन आँखें बहुत कुछ कह जाती,

कॉलेज के बाद वो अपनी सहेलियों और अपनी कज़िन जो मेरी क्लास में ही थी उसी के साथ आती और जाती,

घर से कॉलेज, कॉलेज से घर, उसका घर भी कॉलेज से मात्र 500-600 मीटर दूर ही था.

आख़िर में पॅनल इनस्पेक्षन वाला दिन आ गया, सुबह से ही सब तैयारी में व्यस्त थे, प्रोग्राम शाम को शुरू होना था.

हमारे कॉलेज में स्टडी कॅंपस के साइड में मैं कॉलेज की बराबर जगह में टीचर्स कॉलोनी थी, जिसके पीछे की साइड में एक अमरूदो का बाग था,

अमरूदो के पेड़ इतने घने थे कि ज़मीन तक टिके हुए थे, सीज़न था तो अमरूदो के बजन से और ज़्यादा झुक जाते थे.

मौका देख कर मैने इशारे से उसको बाग में आने को बोला, तो वो थोड़ा सकुचाई, फिर में जब उधर जाने लगा, तो थोड़ी देर बाद वो भी हिम्मत जुटा कर मेरे पीछे-2 आ गई,

थोडा पेड़ों की आड़ में जाकर हम खड़े हो गये, एक दूसरे के सामने. ये पहला मौका था जब हम अकेले एक दूसरे के इतने नज़दीक थे.

रिंकी – यहाँ क्यों बुलाया मुझे, किसी ने देख लिया तो क्या सोचेंगे लोग मेरे बारे में. उसकी आवाज़ काँप रही थी.

कंपकंपी तो मुझे भी छूट रही थी, लेकिन थोड़ा सम्भल कर उसके हाथों को अपने हाथ में लेकर में बोला,

देखो रिंकी ऐसा वैसा कुछ नही है, में बस ये कहने के लिए बुलाया था, कि हमें अपने गाने को पूरे एफर्ट से गाना है, जिससे हमारी पर्फॉर्मेन्स बेस्ट रहे.

हम जानते हैं, कि हम दोनो ही अच्छा गाते हैं, लेकिन अब हमें स्टेज पर पर्फॉर्म करना है, जो कि पहली बार में हर किसी के लिए आसान नही है, हज़ारों की भीड़ हमें देख और सुन रही होगी,

सो प्लीज़ घबराना बिल्कुल नही, अगर तुम्हें घबराहट हो तो लोगों की तरफ बिल्कुल मत देखना, तुम सिर्फ़ मेरी तरफ ही ध्यान रखना, और सब कुछ अच्छा होगा.

बस इतना कह कर हम वहाँ से मैं कॅंपस में आ गये, और तैयारियों में हाथ बाँटने लगे…….



प्रोग्राम शुरू हुआ, सबसे पहले हमारे एक ड्रामे का प्ले था, इसमें मेरा छोटा सा रोल था, उसके बाद रिंकी का कोरस, जिसमे 8-10 लड़के और लड़किया ने मिलके गाया,

बीच में मेरी कब्बाली का प्रोग्राम हुआ, जिसमें में लीड गायक था, भीड़ जबर्जस्त थी,

उस समय पर रूरल एरीयाज़ में टीवी वग़ैरह तो थे नही, दूर-दूर तक हमारा इंटर कॉलेज फेम्स था, तो लोग ज़्यादा से ज़्यादा संख्या में आए थे प्रोग्राम देखने.

लास्ट में मेरा और रिंकी का डुयेट हुआ, जिसमें शुरू-शुरू में वो थोड़ा झेपी, पर मैने इशारे से उसे अपने उपर फोकस रखने को कहा, तो वो मेरी आँखों में देखते हुए अपनी लाइन्स पर फोकस करने लगी,

म्युज़ीशियन म्यूज़िक बजा रहे थे, हम गाने के साथ साथ पर्फॉर्म भी कर रहे थे, जैसे बॉबी फिल्म में ऋषि केपर और डिंपल ने किया था,

प्ले इतना शानदार रहा, में और पिंकी अपने करेक्टर्स में खो से गये,

प्ले ख़तम होते ही, मंत्री महोदय तक खड़े हो कर ताली बजाने लगे, हम दोनो अभी भी एक दूसरे की बाहों में, एक दूसरे की आँखों में आँखें डाले खोए हुए थे.

जब तालियों की गड़गड़ाहट बंद हुई तब हमारी तंद्रा टूटी. सबने हम दोनो को अप्रीशियेट किया, मंत्री जी ने खुद अपने हाथों से हमें फर्स्ट प्राइज़ दिया.

उसके बाद तो सभी लोगों को आभास हो गया था हमारी प्रेम कहानी का, लड़के लड़कियाँ रिंकी को मेरा नाम लेके कॉमेंट पास करते, और मुझे उसका.

जब भी हमें मौका मिलता हम पीरियड बंक करके बाग में सबसे अंत में पेड़ों की आड़ में बैठ जाते, एक दूसरे को निहारते रहते, बातें करते रहते.

कभी वो मेरी गोद में सर रख कर लेट जाती, कभी में उसकी गोद में.

हमारा प्यार और गहराइयों में पहुँचता गया, लेकिन इस प्यार में वासना का लेश मात्र भी अंश कभी नही आया.

समय गुज़रता गया, 10थ बोर्ड एग्ज़ॅम हुए, जैसे तैसे में पास हो गया,

11थ में मैथ और बाइयालजी मे से कोई एक चूज़ करना था, मेरा इंटेरेस्ट बाइयालजी में था, लेकिन पिता जी की ज़िद मैथ, क्या करते, लेना पड़ा.

कहते हैं ना, कि समय किसी का इंतजार नही करता, लोग समय का इंतजार करते हैं, हम दोनो का प्यार भी समय के साथ-2 बढ़ता गया.

पता नही चला दो साल और कैसे निकल गये, 12थ बोर्ड के एग्ज़ॅम थे, दो महीने बाद, उससे पहले लोकल ख़तम होने थे, सो उस दौरान हमरी प्रेपरेशन लीव एक महीने की थी,

रिंकी लोकल 11थ में थी उसके एग्ज़ॅम अपने ही कॉलेज में थे, हमारे बोर्ड के एग्ज़ॅम, दूसरे सेंटर यानी, तहसील वाले टाउन में देने थे जो कि दूर था.
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Re: ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना

Post by Smoothdad »

nice update
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Re: ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना

Post by jay »

Smoothdad wrote: 16 Nov 2017 20:10nice update
thanks bro
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Re: ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना

Post by jay »

एक दिन मौका निकाल कर हम फिर मिले, और अपने भविष्य के बारे में सोचने लगे,

रिंकी चिंतित स्वर में- अरुण अब तो तुम्हारे एग्ज़ॅम हो जाएँगे उसके बाद क्या प्लान है,

मे – देखते हैं रिज़ल्ट कैसा आता है, वैसे मैने इंजीनियरिंग डिप्लोमा का सोचा है, फिर देखते हैं, क्या हो पता है समय के हिसाब से.

रिंकी – तो अब हम कभी नही मिल पाएँगे..?

मे – क्यों ? ऐसा क्यों बोल रही हो? क्यों नही मिल पाएँगे..?

रिंकी गंभीर स्वर में, तुम अगर बाहर चले जाओगे तो कैसे मिलेंगे, में तुम्हारे बिना कैसे रह पाउन्गी ?

मे – तुम 4 साल मेरा इंतजार कर सकती हो..?

रिंकी – अरुण मुझे नही लगता है कि हम कभी एक हो पाएँगे, इसलिए में एक बार तुम्हे संपूर्ण रूप से पा लेना चाहती हूँ, क्या तुम ऐसा कर सकते हो??

मे – मतलब ??

अरुण, हम दिल से एक दूसरे के तो हो ही चुके हैं, तो में चाहती हूँ कि तन से भी एक दूसरे के हो जाएँ, फिर जिंदगी में मिल पाए या नही ये कहते हुए रिंकी की आँखे छालछला गयी.

में उसकी आँखों मे छलकते हुए उसके जज्बातो को समझने की कोशिश कर रहा था, जैसे ही मेरे ज़ज्बात उसके जज्बातों से मिले, मैने कस के उसे अपने सीने से लगा लिया.

मैने उसके माथे को चूमा और उसकी झील सी आँखों से निकले मोतियों को पीने लगा,

रिंकी की रुलाई फुट पड़ी, अरुण प्लीज़ कुछ करो ना, में तुम्हे संपूर्ण रूप से पाना लेना चाहती हूँ, फिर चाहे मुझे मौत भी आजाए तो गम नही.

मैने अपने होठ उसके होठों पे रख दिए और एक सॉफ्ट किस करते हुए कहा,

नही जान, मरे हमारे दुश्मन, ईश्वर ने चाहा तो हम एक साथ जिंदगी बिताएँगे… मैने भावुक होकर कहा.

ऐसा संभव नही हो पाएगा अरुण, ये सामाजिक बंधन, हमारे परिवारों की सामाजिक परंपरा कभी इसकी इजाज़त नही देंगी.. वो बोली.

तुम ब्राह्मण परिवार से हो में जैन, दोनो ही एक दूसरे को नही अपनाएँगे.

में सोच मे पड़ गया, … फिर कुछ सोच के..

मे- ठीक है, मेरा सेंटर तहसील टाउन मे है, और पेपर टाइम सुबह 7 बजे से रहेगा तो हम अपने घरों से तो रोज़ जा नही सकेंगे, हमें वहाँ रहने के लिए एक महीने रेंट पर लेना पड़ेगा.

उस बीच तुम मौका निकाल कर वहाँ आ सकती हो..?

रिंकी – उसमें कोई बड़ी बात नही है, मेरे पिता जी की कंपनी वही है, और मेरे एग्ज़ॅम के बाद छुट्टियाँ है, तो में उनके पास चली जाउन्गी.

फिर ठीक है, वही मिलते हैं और पूरा करते हैं अपना अधूरा मिलन.

में मस्त मौला, मेहनत करते करते, इतना बड़ा हुआ, लेकिन सेक्स में एबीसीडी भी नही पता था, मौहोल ही नही था मेरा, परिवार में सब बहुत बड़े-2 थे.

यारों दोस्तों में भी सभी लफंदर थे, मार-पीट में माहिर लेकिन सेक्स से कोसों दूर रहते थे,

एरेक्टेड लंड कैसा होता है ज़्यादा पता नही था, तो औरत के शरीर के बारे में तो बहुत ज़्यादा पता ही क्या होगा.

सबसे बड़ा कारण था घर के संस्कार, गीता भागवत पढ़ने वाला माहौल था, तो सेक्स भी शादी-सुदाओं तक ही सीमित था,

होता होगा, करते होंगे लोग लेकिन चूँकि अपना कोई इंटेरेस्ट नही था, तो ज़्यादा क्यों खोपड़ा लगाए.

कभी-कभी सुबह अंडरवेर कड़क सा लगता था, जैसे कि चासनी लग्के सुख गयी हो, दोस्तों से पुछा भी तब पता लगा कि ये स्वाभाविक है,

इसको नाइट फॉल कहते हैं, शरीर में जब वीर्य की मात्रा ज़्यादा हो जाती है, तो सपने में कुछ दिखाई देता है, तो निकल भी जाता है, इसमें चिंता की कोई बात नही है,

मैने कहा, लेकिन मुझे तो कोई सपना नही आया फिर.. दोस्त- तुझे याद नही होगा, आता है, मुझे तो हफ्ते में कई बार हो जाता है.

वैसे तू चाहे तो किसी लड़की या औरत को पटा ले और उसको चोद दे तो फिर नही होगा.

मे कहा ना यार इस चक्कर में नही पड़ना, जब ज़्यादा ज़रूरत होगी तब देखा जाएगा, वैसे भी इन कामों के लिए समय चाहिए, जो अपने पास नही है.

तो फिर एग्ज़ॅम की तैयारी शुरू हो गयी, 1 महीना ही बचा था, पिता जी ने भी एक मजदूर और रखलिया और मुझे सिर्फ़ पढ़ाई पर ध्यान देने को कहा,

में भी मन लगाके पढ़ाई मे जुट गया, क्योंकि बिना अच्छे मार्क्स लिए, कहीं इंजीनियरिंग डिग्री या डिप्लोमा में एडमीशन संभव नही था तो सीरियस्ली लग गया.

एग्ज़ॅम से 4 दिन पहले मेरे चाचा दी ग्रेट, मुझे लेके तहसील टाउन पहुँचे और अपने पहचान से एक माँ के मंदिर मे साइड का कमरा खाली था वो मुझे दे दिया रहने को.

कमरा क्या, पूरा हॉल जैसा, आगे बौंड्री वॉल से घिरा हुआ काफ़ी बड़ा आँगन जैसा.

एग्ज़ॅम से एक दिन पहले में वहाँ पहुँच गया, बिस्तर-इस्तर नीचे ज़मीन पर ही लगा लिया, अब एक महीने की ही बात थी, उसमें से भी बीच-2 मे लंबी छुट्टियाँ थी तो घर चले जाना था, तो क्या पलन्ग-वलन्ग का जुगाड़ करते.

वैसे मंदिर के पुजारी जी ने तो बोला भी की, चारपाई चाहिए तो है हमारे पास से ले-लेना, मेने कहा कोई ज़रूरत नही है, अपने को तो पढ़ना ही है ना.

एग्ज़ॅम शुरू हुआ, पहला ही पेपर साला मैथ का, जिसमे गान्ड फटी पड़ी थी, तो डर था कि पता नही कैसा होगा.

माँ की कृपा से ईज़ी पेपर आया और मेरी एक्सपेक्टेशन से अच्छा गया.

रिंकी को में आने से पहले अड्रेस बता के आया था, में जैसे ही पेपर देके वापस आया मुझे मंदिर मे रिंकी मिल गयी,

वाउ! डबल खुशी… पेपर भी अच्छा, और अपनी जान भी अपने पास.

मंदिर मे दोपहर के समय ज़्यादा भीड़ नही थी, पुजारी जी माँ का भोग वग़ैरह लगा के अपने आराम करने मंदिर के पीछे बने हुए कमरे मे चले गये.

हम दोनो दर्शन करके अपने रूम पर आ गये, मैने उसे अपनी बाहों मे कस लिया और पूछा..

कैसे क्या चल रहा है, यहाँ का क्या हिसाब किताब है, तुम्हारे पिता जी का.

रिंकी – पिता जी वैसे तो यहाँ रहते नही है, लेकिन कभी-कभार रुकते हैं तो कंपनी ने ही क्वार्टर दे रहा है, उसी में रुकते हैं.

मैने कहा कि छुट्टियाँ हैं तो कुछ दिन में हवा पानी बदलने के लिया आपके पास आ जाओ, तो वो तैयार हो गये, कि ठीक है, 10-15 दिन रह लो.

दिन में वो सुबह 8 बजे से रात 8 बजे तक फॅक्टरी मे ही रहते हैं. (रिंकी के पिता एक ग्लास फॅक्टरी में मॅनेजर हैं).
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