ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete

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Kamini
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Re: ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना

Post by Kamini »

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jay
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Re: ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना

Post by jay »

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(^^d^-1$s7)
(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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jay
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Re: ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना

Post by jay »

यही सब वार्तालाप चल रहा था वहाँ, कि तब तक उस गाँव का प्रधान करीब 25-30 लोगों के साथ आ गया.. और आते ही भड़क कर बोला..

मुखिया जी ! ये क्या गुंडागिरी चल रही है, आपके लड़के अब किसी को भी मार-पीट कर उठा लाएँगे और हम देखते रहेंगे.. ऐसा नही चलेगा..

मुखिया जी- पहले आप शांति से बात करिए, यहाँ बदतमीज़ी से बात करने की ज़रूरत नही है.. क्या आपको सारी सच्चाई पता है या बस ऐसे ही भड़क रहे हो, प्रधान हो इसलिए..?

फिर आगे बोले मुखिया जी- आपके लड़कों की एक ग़लती नही है, इन्होने दो-दो ग़लतियाँ की हैं,

पहली ग़लती- तुम्हारे चार लड़कों ने उस दिन मंदिर पर दर्शन करने गयी मेरी बेटी और बहू के साथ बदतमीज़ी की, बदतमीज़ी ही नही, उनका हाथ पकड़ा और छेड़ा, अगर ये बच्छा ना होता तो पता नही क्या अनर्थ कर देते ये उस दिन, क्या आपको खबर है इस बात की..?

प्रधान ने ना में अपनी मुन्डी हिलाई..

दूसरी ग़लती- आज जब ये डन बच्चे नहर के किनारे घूमने गये तो तुम्हारे 10 लठेत इन निहत्तों को मारने के लिए आए.. ये तो पता होगा..?

अगर नही पता तो तुम ग्राम प्रधान बनने के बिल्कुल काबिल नही हो.

अब रही बात यहाँ आकर हमे हमारे ही गाँव में हमारी चौपाल पर धमकी देने की तो एक बात कान खोल कर सुनलो प्रधान जी..जब मेरा एक लड़का तुम्हारे चार लड़कों को मार-2 के भुर्ता बना सकता है, दो निहत्थे बच्चे जो अभी 20-20 साल के ही हैं, तुम्हारे 10 लठेतो की ऐसी की तैसी कर सकते हैं..

तो सोचो ये सारा गाँव तुम्हारे छोटे से गाँव का क्या हश्र करेगा खुद सोच सकते हो, अब जाओ और अपने लड़के की जमानत वग़ैरह का इंतेज़ाम कराओ जाके..

वो प्रधान मुखिया जी के पैरों में पड़ गया, और गिडगिडाने लगा-मुखिया जी मेहरबानी करके इन्हें माफ़ कर दीजिए इन हरामजादो की तो मे घर जाकर खबर लेता हूँ.. आपको मे विश्वास दिलाता हूँ, मेरे गाँव का कोई भी आदमी आपके गाँव की तरफ आइन्दा आँख उठा कर भी नही देखेगा आज के बाद.

नही प्रधान जी पानी अब सर से गुजर गया है, बोले मुखिया जी.. अरे हम तो उसी दिन फ़ैसला कर देते तुम्हारे इन हरामी पिल्लों का पर, इनकी पहचान नही थी हमारे बच्चों को.

अब तो प्रधान की हालत ही खराब, वो बुरी तरह गिडगिडाने लगा, मिन्नतें करने लगा.. तो मुखिया जी ने हमारी ओर देखा.. जैसे पूछना चाहते हों कि क्या करना है अब.

मैने इशारे से उन्हें एकांत में बुलाया और समझाया- अंकल जी, पोलीस केस से हमें कोई फ़ायदा नही होगा, उल्टा थाने-वाने के चक्कर हो जायेंगे और वैसे भी बहू-बेटी का मामला, ज़्यादा ना उछले तो अच्छा है,

मुखियली – जैसा तुम कहो… और वापस अपनी कुर्सी पर जाकर बैठ गये..

मैने बोलना शुरू किया- एक शर्त पर इन बदमाश लड़कों को माफ़ किया जा सकता है, ये चारों अगर रेखा दीदी और भाभी के पैरों पर नाक रगड़ कर माफी माँगे और अपने ही हाथों से कस्के 10-10 थप्पड़ लगाएँ तो वो दोनो शायद इन्हें माफ़ करदें, क्योंकि ये उन दोनो के गुनेहगार हैं.

प्रधान झट से राज़ी हो गया, मैने रेखा और भाभी को बुलवाया, वो जैसे ही आके चौपाल पे खड़ी हुईं, वो चारों लड़के उनके पैरों पर नाक रगड़ते हुए माफी माँगने लगे, फिर खड़े कोकर अपने हाथों से अपने ही हाथों से थप्पड़ मारने शुरू करने ही वाले थे कि मैने कहा.

थप्पाड़ों की आवाज़ यहाँ खड़े सबके कानों तक पहुँचनी चाहिए, अगर एक भी थप्पड़ मुझे कमजोर लगा, तो उसकी जगह भैया या धनंजय मारेंगे ये ध्यान रखना.

उन्होने पूरी ताक़त से 10-10 थप्पड़ पूरे किए, दोनो गाल लाल हो चुके थे हरमियों के, उसके बाद उन्हें जाने दिया, धीरे-2 वहाँ से सारी भीड़ चली गयी.

मुखिया जी और सारे घरवाले मेरे इस फ़ैसले से बहुत खुश थे, पूरे गाँव के सामने उनके मान-सम्मान और जो बढ़ गया था. उनका सीना और ज़्यादा चौड़ा हो गया .

कुछ देर के बाद सब बैठक में खाना खा रहे थे, मुखिया जी बड़े गर्वित स्वर में बोले-

धन्नु बेटे हम सच में अभी तक ये नही समझ पा रहे, कि सब तुम दोनो ने संभव किया कैसे? मतलब मैने अपनी जिंदगी में इतनी बहादुरी कहीं नही देखी हां किस्से कहानी में पढ़ा हो वो बात अलग है..

धनंजय- पिता जी..! ये जो आपके सामने बैठा मासूम सा लड़का देख रहे हैं, आपको लग रहा होगा, कितना भोला और मासूम है बेचारा… असल में ये दस सर वाला रावण है.. रावण..

वो बोले- ये क्या कह रहे तुम.. ?

धनंजय- मे सच कह रहा हूँ पिता जी, पिछले दो सालों में इसने जो-जो काम किए हैं वो पूरे शहर की पोलीस नही कर पाई,

इसको आज तक हमने घबराते या डरते हुए नही देखा.. मे मानता हूँ, कि इसके साथ हम कुछ दोस्त भी रहे हैं हर जगह, और आज भी में था, लेकिन करवाने वाला यही होता है, पता नही विपरीत परिस्थितियों में जहाँ हमारे जैसा आम इंसान भय से काँपने लगता है वहीं ये ऐसे-2 प्लान बना लेता है कि सफलता हाथ लग ही जाती है.

इसके इसी विस्वास पे हम लोग विस्वास करके आँख बंद करके इसका साथ देने को तैयार हो जाते हैं.

लेकिन हां ये भी अपनी जगह सही है, कि इसने आजतक कभी ग़लत का साथ नही दिया है, और नही ग़लत होने दिया है.

सब मुँह बाए मेरी ओर ही देख रहे थे… भाभी और रेखा की आँखों में तो ना जाने कितना प्रेम और कृताग्यता थी, कि मे उनसे नज़र ही नही मिला सका देर तक.

जब काफ़ी देर खामोशी छाई रही और सबकी सवालिया नज़र मेरे से नही हटी तो फिर मुझे बोलना ही पड़ा…!

मे- ऐसा कुछ नही है अंकल जी, धन्नु तो बस ऐसे ही हर जगह मुझे आगे दिखाने की कोशिश करता रहता है..!

अंकल - फिर भी बेटे… मे अपने बेटों को अच्छी तरह जानता हूँ, उनमें किसी में भी इतना साहस नही है कि वो 10 तो क्या किसी एक लठेत आदमी से अकेले मुकाबला कर सके तो फिर आज जो हुआ वो तो किसी सूरत में संभव नही था.

मे- सच मानिए अंकल जी, आज की लड़ाई में धनंजय बराबर का साथी था, मैने तो बस उसकी क्षमता को उसे दिखाया.

आंटी – वोही..! वोही तो हम समझना चाहते हैं अरुण बेटे..! कि हम माँ-बाप होके अपने बेटे की क्षमताओं को नही देख पाए, वो तुम्हें कैसे दिखाई दे गयी..?

मे- क्योंकि उसकी उन क्षमताओं की आपको ज़रूरत ही नही पड़ी..! हर माँ-बाप अपनी औलाद को हर मुशिबत से दूर रखना चाहता है, जिन बातों की उसे अपने बच्चों से अपेक्षा होती है वोही सिखाता है.

अंकल- ये बात एकदम सही कही है बेटे तुमने, पर ये तो बताओ, तुम में ये गुण आए कैसे, क्या तुम्हारे माँ-बाप ने इन सब बातों के लिए प्रेरित किया था.

मे- नही ! मेरे माता-पिता कोई अलग थोड़ी हैं, हां चाचा के साथ बचपन ज़्यादा बीता है, वो एक निडर व्यक्ति हैं. में जब भी कोई बात पुछ्ता था कि ये आपने कैसे किया, तो उनका एक ही जबाब होता था… कोशिश..! कोशिश करोगे तो ज़रूर होगा.

इसका अनुभव मुझे हुआ जब में कोई 8-10 साल का था, फिर मैने उन्हें अपनी लकड़बग्घा के साथ हुई टक्कर का व्रतांत सुनाया, कि किस तरह मौत सामने देख कर मैने उससे लड़ने का फ़ैसला लिया और में जीत गया..!

बस तभी से मैने एक बात अपने जीवन गाँठ बाँध ली, की कोई भी काम असंभव नही होता, कोशिश करने वाले को हमेशा कामयाबी मिलती ही है.

जीवन का एक मात्र सत्य है, कि जिसने जीवन लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है.. तो जो सत्य है उससे भय कैसा, वो तो अपने निहित समय पर आनी ही है. उससे डर के हम अपना जीवन तो निस्फल नही कर सकते.

और एक बात जो मेरे पिता जी ने मुझे सिखाई है, कि कोई भी अच्छा कार्य करने में ईश्वर की इच्छा सम्मिलित होती है, और वो हमारी किसी ना किसी रूप में सहयता अवश्य करते हैं, फिर चाहे वो आपका अंतर्मन ही क्यों ना हो.
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jay
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Re: ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना

Post by jay »

तभी धनंजय बोल पड़ा- सही कह रहा है यार तू ! कई बार मैने अनुभव किया इस दौरान, कि जब हम कोई काम करने जाते थे तो एक भय जैसा रहता था, लेकिन काम पूरा होने पर हमें खुद आश्चर्य होता था, कि ये कैसे हो गया.

मे- देखो जिंदगी में भय होना भी ज़रूरी है, अगर हमारा भय चला गया तो हमें अपने आप पर घमंड होने लगेगा, और फिर हम सही ग़लत की पहचान भूल जाते है.

अंकल- सुंदर ! क्या उत्तम बात कही है.. इतनी कम उम्र में इतना ज्ञान.. आश्चर्य जनक है.. है ना जानकी. उन्होने अपनी पत्नी को कहा.

आंटी- सही कह रहे हैं जी आप, हमारा धन्नु भाग्यशाली है, जिसे इसके जैसा गुणवान दोस्त मिला है.

और उन्होने मुझे गले से लगाकर मेरा माथा चूम लिया. अंकल भी अपने आप को रोक नही पाए, फिर धन्नु के भाई, अंत में धन्नु और रेखा ने एक साथ दोनो ओर से जकड लिया.

मैने भाभी से चुटकी लेते हुए कहा, क्यों आपको मेरी बातें पसंद नही आई..? आप गले नही लगोगी..? अरे देवर नही तो छोटा भाई समझ के ही लगा लीजिए..

तो झेप्ते हुए वो भी गले लग गयी, मैने मौके का फ़ायदा लेते हुए, गले को चूम लिया और कान में कहा.. क्यों क्या विचार है आज का ?

उन्होने हल्की सी सिसकी ली और बाय्ल…. कोशिश…

मुझे हँसी आ गयी….और वो शरमा गयी…

रात को अपने पति के सो जाने के बाद भाभी मेरे रूम में आई और फिर 2-3 घंटे हमारी खत कबड्डी जम के चली.

सुबह मैने धनंजय को बोला यार ! अब चलना चाहिए.. अपने क्लासस शुरू होने वाले हैं, तो माँ का दिल, बोली बेटा दो साल में तो ये अब आया है, अभी 4 दिन ही तो हुए हैं, और दो-चार दिन रुक जाओ, मैने कहा- आंटी जी 2-4 क्या मेरा तो हमेशा के लिए यही रहने का मन है, लेकिन कुछ उत्तरदायित्व होते हैं जीवन में, वो भी निभाने पड़ते हैं.

आंटी- अच्छा ज़्यादा नही दो दिन और रुक जाओ, परसों चले जाना.. मैने धनंजय की ओर देखा, वो भी बोला, हां यार परसों चलते हैं.

मे- ठीक है भाई ! गाम करे सो राम करे.. इस बात पर सभी एक साथ हंस पड़े..

वो दिन भी बीत गया, शाम हुई, रात का खाना ख़ाके, सोने भी चले गये सब लोग, आज दोनो जुगाड़ो में से किसी से कोई बात नही हो पाई थी, पता नही क्या होगा, मे अपना पलंग पकड़ के सो गया…!
…………………………..
…………………………………
थर्ड एअर की हमारी क्लासस शुरू हो चुकी थी, कॉलेज आकर सबसे पहले हमने अपनी कमिटी को अपडेट किया, सागर और मोहन हमेशा के लिए जा चुके थे तो हमें और नये मेंबर बढ़ाने थे.

कुछ अति उत्साहित स्टूडेंट्स में से चार लोगों को चुना जिनके नाम थे :

मनोज और राजेश – लास्ट एअर , विक्रम- फर्स्ट एअर, और विकास- सेकेंड एअर से..

अब हमारी कमिटी में 10 मेंबर्स हो गये थे.

नये मेंबर्ज़ को सख़्त हिदायत दी गयी थी, चाहे ज़रूरत हो या ना हो अपने को फिज़िकली और मेंटली फिट रखना ही है. और डेली अपने साथ 5 बजे से जिम में एक्सर्साइज़ और फाइटिंग टिप्स लेते रहना है.

समय गुजर रहा था, घर से आए हुए हमें 3 महीने हो चुके थे. एक दिन धनंजय के घर से खत आया, तो वो उसे पढ़कर उच्छलने-कूदने लगा, खुशी से नाचने लगा..

मे- अब्बे क्या बात है ? क्यों बंदर की तरह उच्छल-कूद कर रहा है…

धनंजय- याहू…!!! मत पुच्छ यार..!! आज मे इतना खुश हूँ.. इतना खुश हूँ कि बता नही सकता..?

ज – अरे भाई, जब बता ही नही सकेगा, तो हमें तेरी खुशी का राज़ कैसे पता चलेगा..?

धनंजय- पता है..! मे अपने घर में सबसे छोटा था, तो मुझे कोफ़्त सी होती थी.. लेकिन अब मे सबसे छोटा नही रहूँगा…! अब चाचा बनाने वाला हूँ.. याहू..!

र- ये तो वाकई खुशी की बात है… कंग्रॅजुलेशन्स !!

मे- फिर तो आज पार्टी हो जाए.. क्यों?

धनंजय- अरे तू जो बोले…! आज कोई कुछ भी बोलो…! मे करूँगा तुम लोगों के लिए.

फिर तय हुआ, कि कॉलेज के बाद हम सभी कमिटी मेंबर्ज़ मूवी देखने जाएँगे, और फिर शहर में थोड़ी मस्ती करेगे, और किसी रेस्टोरेंट में डिन्नर करके ही वापस लौटेंगे.

उठाई प्रिन्सिपल की जीप और चल दिए अपने प्लान के मुतविक मस्ती करने..!

हम लोग मूवी देखने के बाद थोड़ी देर यूही सड़कों पे भटके, और फिर एक अच्छे से रेस्तरा में खाना खाने घुस गये.

हमारे लिए मॅनेजर ने दो टेबल इकट्ठा लगवा दी. हमसे दो टेबल छोड़ के चार हसीनायें वो भी शायद किसी कॉलेज की स्टूडेंट्स थी, बैठी खाना खा रही थी, हम में से कुछ की नज़र उनपर पड़ी, तो उधर से भी लड़कियों की नज़र हमारे कुछ साथियों पर, दोनो तरफ से सैन मटक्का होने लगा.

शायद नयन सुख लिया जा रहा था, हम खाना थोडा पहले स्टार्ट कर चुके थे, वैसे भी आदमी और औरत के खाने में फ़र्क होता है.

आदमी जहाँ खाने पर टूट के पड़ता है भुक्कड़ की तरह, वो भी हमारे जैसा मास का खाने वाला, वहीं लड़कियाँ थोड़ा नजरो से बातें करती हुई समय लेती हैं.
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