ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete

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jay
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Re: ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना

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तभी उसकी मम्मी आ गई..! हमने खड़े होके नमस्ते की, उन्होने हमारे बारे मे रिंकी से पुछा..!

मम्मी- ये कॉन हैं रिंकी..?

रिंकी- मम्मी, ये अरुण है, एक्सवाई गाँव का है, आपको याद है, हमारे कॉलेज का फंक्षन..?

मम्मी- हां..! याद है, मैने तो वो पूरा प्रोग्राम देखा था..

रिंकी- मेरे साथ जो डुयेट गया था… पहचाना नही…?

मम्मी- ओह्ह..अच्छा वो अरुण है…! कैसे हो बेटा, क्या कर रहे हो आजकल..?

मे- मे ठीक हूँ आंटीजी, आजकल इंजिनियरिंग कर रहा हूँ,

रिंकी- वो न्यूज़ याद है मम्मी आपको, दो महीने पहले एक ड्रग माफिया का सफ़ाया वाली..!

मम्मी- हां.. हां वो *** शहर की..?

रिंकी- हां, वो इन्होने ही किया था उस गॅंग का सफ़ाया…

मम्मी- क्याअ..? सच में..? तुम तो बड़े बहादुर हो..? और ये कॉन है बेटा..?

मे- ये मेरा दोस्त है, हम दोनो और भी 6 दोस्त थे सबने मिलके किया था ये काम.

ऐसे ही कुछ देर और बात-चीत होती रही, फिर हम उठके चलने लगे.. तो रिंकी बोली, मम्मी मे इन्हें बाहर तक छोड़ के आती हूँ..!

मम्मी- हम.. ठीक है, जल्दी आना..

धनंजय को मैने इशारा कर दिया तो वो थोड़ा पहले गेट से बाहर आगया, और फिर जैसे ही हम मेन गेट तक पहुँचे, मैने मूड के पीछे देखा कि उसकी मम्मी तो नही आरहि.

फिर उसको पकड़ के एक लंबी सी किस… कि, अपने लौटने का डेट/ टाइम दिया और बाइ बोलके निकल आया..!

वो बहुत देर तक गेट से हमें देखती रही, जबतक उसकी नज़रों से ओझल नही हो गये….!

रास्ते में- अरुण भाभी तो बहुत सुंदर ढूढ़ ली यार, मानना पड़ेगा, हर काम तेरा पर्फेक्षन से होता है कैसे मिली ? बोला धनंजय..

मे- हंसते हुए..! ऐसा कुछ नही है यार.., पता नही हम एक हो पाएगे या नही..? अपने यहाँ जात-पात का बड़ा लोचा रहता है यार.. ये जैन है, मे पंडित तो पता नही आगे क्या होगा..?

और मैने गाँव तक उसको अपने मिलन का पूरा किस्सा सुना दिया, वो बड़ा इंप्रेस हुआ हमारी प्रेम कहानी सुन कर.

कुछ दिन और हमने मेरे गाँव मे निकाले खेत वग़ैरह घूमे.. उसको बताया कैसे मेहनत करके मैने पढ़ाई की, कितने मुश्किल दौर से गुजरा था मेरा बचपन…!

धनंजय- अब पता लगा साले तू इतना टफ क्यों है, और हमारी भी मारके रखता है..!

मे- क्यों तुझे पसंद नही है मेरा बिहेवियर ..?

धनंजय- साले पसंद नही होता तो साथ रहता क्या..? तेरी एक आवाज़ पर मर-खपने को तैयार रहता..? मेरे गले लगते हुए.. अब मत करना ऐसी बात वारना तेरी गान्ड मार लूँगा.. समझा...!!

और फिर एक दिन निकल लिए धनंजय के गाँव..

उसका घर एक हवेली नुमा काफ़ी बड़ा था, घर के सामने बड़ी सी चौपाल जिस पर ज़्यादा तर समय गाँव के बहुत से लोग बैठे रहते थे, हुक्का गुडगुडाते हुए..!

उसके पिता जी इस गाँव के मुखिया थे और लोग भी उन्हें इसी नाम से बुलाते थे..!
जब हम शाम के समय वहाँ पहुँचे तब भी वहाँ गाँव के बड़े-छोटे कम-से-कम 20-25 लोग बैठे थे..!

हमें देखते ही उसके पिता जी खुशी से चीख ही पड़े…धन्नु… मेरा धन्नु आ गया रे.. आ..आजा.. मेरे शेर..!

धनंजय ने आगे बढ़कर उनके पैर छुए.. तो उन्होने उसे गले से लगा लिया..मेरे बारे में पुचछा, तो उसने सब बताया..मे जब उनके पैर लगने लगा तो उन्होने मेरे कंधे पकड़ के रोक लिया, और कहा..

नही बेटा… ये पाप हम पर ना चढ़ो.. तुम ब्राह्मण पुत्र हो, और ब्राह्मण सदैव हमारे पूज्य,नीय रहे हैं,

मे- अरे अंकल आप मेरे पिता समान हैं, तो मेरा फ़र्ज़ ज़्यादा बनता है..

वो- वो सब शहरों मे ठीक है बेटा, हमें गाँव की परंपरा निभाने दो..!

फिर घर के अंदर गये, धनंजय की माँ से मिले, उसके एक बड़े भाई थे कोई 6 साल बड़े.. शादी हो चुकी थी.. भाभी बड़ी सुंदर और सुशील लगी, हल्के से घूँघट मे,

लंबा कद, 34 के बूबे, कमर एकदम पतली, पर ताजी-ताजी भैया की रातों की मेहनत का असर उसके गोल-मटोल कुल्हों पर सॉफ दिख रहा था.

हो सकता है घोड़ी बनके चोदने मे ज़्यादा शौक रखते होंगे, कसी हुई शादी में कुछ ज़्यादा ही मस्त लग रहे थे.

वैसे भी गाँव देहात और उपर से ठाकुरों के घर की परंपरा.. तो थोड़ा लाज-परदा होता ही है.

एक बेहन जो अरुण से 2 साल बड़ी, उसकी शादी होनी थी अभी.. गोरी चिटी, अच्छे नैन नक्श, गोल चेहरा, लंबे बाल सलवार सूट मे कसी हुई गोल-गोल चुचियाँ ना ज़्यादा छोटी, ना ज़्यादा बड़ी.

एकदम सपाट पेट, पतली कमर, हल्के पीछे को उभरे हुए कूल्हे, कुल मिलकर देसी माल लगती थी वो.

मेरी तरह धनंजय भी अपने बेहन भाइयों मे सबसे छोटा था.

चाइ नाश्ता करने के बाद, हम गाँव घूमने निकल गये, गाँव ज़्यादा बड़ा तो नही था पर ठीक तक था, जैसे गाँव होते थे उस जमाने में.
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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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jay
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Re: ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना

Post by jay »

दूसरे दिन सुबह ही धनंजय और उसके पिता जी नज़दीक के शहर निकल गये कुछ काम होगा, बड़े भाई खेतों में थे, रह गया मे अकेला मर्द घर पर..!

भाभी और धनंजय की बेहन रेखा को मंदिर जाना था, सोमवार का दिन था भोलेनाथ की पूजा करनी थी उन दोनो को.

मंदिर गाँव से बाहर कोई 400-500 मीटर की दूरी पर एक नहर के किनारे था.

उसकी माँ बोली, बेटा अरुण, तुम थोड़ा बहू और रेखा के साथ मंदिर तक चले जाओगे…?

मे- क्यों नही आंटी जी, और पड़े-2 करूँगा ही क्या, मेरा भी टाइम पास हो जाएगा.. चलिए भाभ जी, दीदी..!

हम तीनो मंदिर पहुँचे, उन्होने पूजा की, मैने भी भगवान के आगे डंडवत किया, थोड़ी देर वहाँ बैठे.

बड़ा ही मनोरम दृश्य था वहाँ, बड़ी शांति महसूस हुई मुझे तो.

नहर के किनारे बना मंदिर चरों ओर घने उँचे पेड़ों से घिरा, नहर का किनारा, ठंडी-2 हवा बड़ा सुकून दे रही थी, ज़्यादा लोग नही थे वहाँ.

में संगेमरमर के ठंडे फार्स पर लेट गया, अपने आप आँखें बंद हो गयी, और सुकून में लेटा रहा..!

रेखा और भाभी पूजा करके नहर की ओर निकल गयी..!

थोड़ी देर बाद मुझे नहर की तरफ शोर सा सुनाई पड़ा, जैसे कोई औरत चीख रही हो..!

मैने उठके थोड़ा आगे बढ़के देखा तो… ओ तेरी का…!! मेरा तो यहाँ आना ही बेकार हो गया..!

वहाँ चार लड़के रेखा और भाभी को छेड़ रहे थे, छेड़ क्या रहे थे एक तरह से जबर्जस्ती ही कर रहे थे उनके साथ.

एक ने रेखा का हाथ ही पकड़ रहा था, और वो उसे छुड़ाने की कोशिश कर रही थी, दूसरे ने भाभी की कमर में हाथ डालके पीछे से जकड रखा था.

दो लड़के सामने से उन दोनो के साथ छेड़ खानी कर रहे थे..!

मे लपक के वहाँ पहुँचा, और उन दो लड़कों को जो सामने से छेड़-छाड़ कर रहे थे, पीछे से उन दोनो की गुद्दि पकड़ के उनके सर एक दूसरे से टकरा के दे मारे…कड़क..!

अनायास का हमला वो भी सर पे, चक्कर ख़ाके गिर ही पड़े दोनो साले.

फिर मैने भाभी के पीछे वाले का गला पकड़ के उसे पीछे को धकेला और जोरदार किक उसके थोबडे पे पड़ी, पट्ठा सीधा नहर में.

रेखा का हाथ पकड़ने वाला लड़का तो डर के मारे पहले ही हाथ छोड़ के निकलने की तैयारी कर ही रहा था कि लपक लिया मैने…!

अबे साले…घोनचू ! जाता कहाँ है ? मज़े नही लेने क्या..?

वो ..मिमियाने लगा.. म..मुझे छोड़ दो..म.मुझे म.माफ़ करदो..

मे- क्यों ! मुफ़्त का माल समझा था क्या.. साले.. तेरी तो मे..माँ..

गाली देना चाहता था, पर बेहन और भाभी की वजह से दे नही पाया..और मैने उसे भी नहर में फेंक दिया..

फिर मैने उन दो के जिनके सर टकराए थे उन्हें उठाया और उनके गले पकड़ लिए, रेखा और भाभी से कहा-

अपने-अपने सॅंडल उतारो और लगाओ इन हरमियों थोबड़ों पर..!

उन दोनो ने सॅंडल उतार के दे-दबादब जो लगाए 4-6, सख़्त हील की सॅंडल की मार से उनकी चीखे गूंजने लगी, थोबडे लाल कर दिए सालों के.

उन चारों को अच्छा ख़ासा सबक सिखाने के बाद हम तीनों घर की ओर चल दिए…!

मे भाबी के बगल में चल रहा था, रेखा उनके दूसरे साइड मे थी,

देवर्जी.. इस उमर में ये तेवर..? क्या यही काम करते हो वहाँ कॉलेज में या पढ़ाई भी करते हो…?

मे- थोड़ा हंसते हुए ! नही.. वो पार्ट टाइम ये भी काम कर लेते हैं.. अपने देवर को नही देखा अभी आपने…? वैसे ये लड़के थे कॉन..?

रेखा – अपने गाँव के तो नही लगते, वैसे भी हमारे गाँव के लड़कों की हिम्मत नही कि हमें कुछ कह सकें.

मैने भाभी के कान में फुसफुसा के कहा- वैसे भाभी इन बेचारे लड़कों की फालतू मे ही पिटाई हो गयी..! अब आप लग ही इतनी पटाखा रही हो कि कोई भी छेड़ना चाहेगा.

भाभी शर्मीली स्माइल के साथ तिर्छि नज़र से मेरी ओर देखते हुए- अच्छा जी तो तुम्हें भी मे पटाखा लग रही हूँ..?

मे- पटाखा ही नही, एकदम कड़क माल लग रही हो भाभी सच कह रहा हूँ, अगर आपकी शादी भैया से नही हुई होती ना.. तो मे यहीं आपको किस कर लेता..!

रेखा भी नज़र तिर्छि करके हमारी बताओं को सुनने की कोशिश कर रही थी.

भाभी- क्या बात है..? तुम तो बड़े चालू निकले..! लगते तो नही हो ऐसे..? घर वालों को बोलके जल्दी शादी करनी पड़ेगी लगता है.

ऐसी ही देवर-भाभी के रिश्ते की छेड़-छाड़ भरी बातें करते-2 हम घर आ गये.

रेखा ने जो वहाँ हुआ, उसको अपनी माँ को बताया, शाम को सभी जब घर में मजूद थे, तभी आंटी ने बात चला दी.

धनंजय के पिता जी और भाई ने मुझे धन्यवाद किया, कि उसने उनके घर की इज़्ज़त पर आँच नही आने दी.

भाई- लेकिन अरुण तुमने अकेले ही उन चारों को पीट डाला, कैसे..? तुम तो अभी इतने छोटे हो..?

धनंजय- अरे भैया, ये दिखता छोटा है, अभी आपने इसके कारनामे नही देखे, वरना आप ऐसा कभी नही कहते..!

मे- और तू कम है..!

धनंजय के पिता जी- तुम लोग क्या बात कर रहे हो..?

फिर धनंजय ने कॉलेज मे हुई दो साल की घटनाए डीटेल मे बताई.. सभी मुँह बाए मेरी ओर देख रहे थे. रेखा तो मानो कोई मूरत बन गयी हो, वो एक तक मुझे ही घूर रही थी, उसकी नज़रों में एक अजीब सी चाहत थी.

रात का खाना ख़ाके, सभी जान अपने-अपने कमरों में सोने चले गये,
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Re: ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना

Post by jay »

धनंजय और मे थोड़ी देर तक मेरे बिस्तर पर बैठे बातें करते रहे और फिर वो भी अपने कमरे में सोने चला गया.

मेरी आदत है, कभी गेट बंद नही करता रूम का, तो धनंजय जाते समय मेरा गेट हल्का सा भिड़ा गया, मैने भी सोने की कोशिश की, थोड़ी देर में मे नीद में चला गया.

सुबह भाभी चाइ लेके मेरे रूम में आई, मुझे सोता हुआ देख कर वापस मुड़ने लगी, लेकिन फिर कुछ सोच कर मेरे बॅड पर बैठ गयी, और धीरे से मेरी जाँघ पर हाथ रख के सहलाने लगी,

सुबह-2 का थोड़ा एरेक्षन की वजह से मेरे पाजामे में उठान सा बना हुआ था, मे अपनी आँखों के बीच हल्की सी झिरी बना कर उनकी हरकत देख रहा था.

भाभी कुछ देर तक मेरे उठान को देखती रही और जाँघ सहलाती भी रही.. मेरा मन मचलने लगा था, पर जी कड़ा करके पड़ा रहा, और अपने लंड को भी काबू में रखने की कोशिश की.

फिर उन्होने मुझे हाथ से हिलाने की कोशिश की और धीरे से आवाज़ भी दी..

देवर्जी …देवर्जी.. अरुण… उठो.. लो चाइ पीलो..!

मे यूँही मक्कड़ बनाए पड़ा रहा.. जैसे गहरी नीद में हूँ.

अनायास उनका हाथ जाँघ को सहलाते हुए मेरे लंड पे आ गया, और सहलाने लगी..! अब मुझसे कंट्रोल कर पाना नामुमकिन होता जा रहा था..

मेरा लंड अकड़ने लगा, उसकी अकड़न महसूस करके भाभी ने अपना हाथ हटा लिया और फिर आवाज़ दी..

मे फिर भी नही उठा.. उन्होने सोचा मे गहरी नींद में हूँ.. तो फिर से उन्होने मेरे लंड को पकड़ लिया और पाजामे के उपर से ही धीरे-2 मुठियाने लगी..

मैने अब सीन से परदा उठाने की सोची, और झट से अपनी आखें खोल दी, उनका ध्यान मेरे खड़े लंड पर ही था,

मे- भाभी इसे बाहर निकाल के करो ना…!

वो एकदम चोंक के गर्दन नीची कर के खड़ी हो गयी,

मे- क्या हुआ भाभी खड़ी क्यों हो गयी..?

भाभी- बदमाश कहीं के…? तो तुम सोने का नाटक कर रहे थे..हां..!

मे – अरे भाभी ! सीन इतना अच्छा चल रहा था, तो सोचा थोड़ा और देख लेते हैं, पिक्चर कहाँ तक चलती है..

लेकिन सच में भाभी, आपके हाथों में जादू है..

भाभी- वऊू.. तूओ.. बॅस.. ऐसे ही .. , फिर थोड़ा तड़कर.. लो ये चाइ पीलो..

मे खड़ा हो गया और उनके हाथ से चाइ लेके स्टूल पे रख दी और अपना एक हाथ उनके कूल्हे पर रख कर उसे मसल्ते हुए बोला—

सच में भाभी आप बहुत ही सुंदर हो.. भैया की तो लॉटरी लग गयी..

छोड़ो मुझे, कोई आजाएगा.. वैसे ये सब तुम्हारे लिए नही है.. और आगे बढ़ने की कोशिश भी मत करना.. वो बोली पर उनके लहजे मे विरोध नही था.

एक किस की तो पर्मिशन मिल ही सकती है,

अब आपने इतना कुछ कर लिया, तो मेरा भी तो कुछ फर्ज़ बनता ही है.. और दूसरे हाथ से उनका सर पकड़ के उनके रसीले होठों का रस चूसने लगा..

दो मिनट. ही चल पाया किसिंग सीन, कि उसने मेरे सीने पे हाथ रख के धक्का दिया और खिल-खिलाती हुई चंचल हिरनी सी, कूल्हे मटकाते हुए, तेज कदमों से भाग गयी..

में मुस्कुराता हुआ, थोड़ी देर ऐसे ही खड़ा रहा फिर फ्रेश होकर चाइ पी और बाहर आ गया..!

बाहर आकर धनंजय के साथ कुछ देर चौपाल पर बैठे, कुछ लोग बैठे बातें कर रहे थे, वहाँ से उठके सुबह-2 के खुशनुमा वातावरण का मज़ा लेने खेतों की ओर निकल गये..!

थोड़ी धूप तेज होते ही घर वापस आ गये, चाइ नाश्ता किया और बैठक में आके बैठ गया, धनंजय अपने गाँव के स्कूल फ्रेंड्स से मिलने चला गया.

बैठक में रेखा भी बैठी थी, हम दोनो आपस में बात-चीत करने लगे. बातों के दौरान मैने नोटीस किया कि वो मुझे बड़ी गहरी नज़रों से देख रही थी.

मे- दीदी और क्या चल रहा है आजकल, पढ़ाई वाढ़ाई कर रही हो या नही..

वो- अरे अब कहाँ.. प्राइवेट बीए कर लिया, गाँव के लिए तो इतना ही काफ़ी है.

मे- हुउंम.. तो अब बस शादी का इंतजार है, क्यों..?

वो शरमा गयी… और नज़र नीची करके हस्ती हुई वहाँ से चली गयी..

मे- साला ये क्या किया मैने ? ऐसा सवाल कर दिया कि वो भाग गयी..फिर अकेला रह गया.

आंटी अपने पूजा पाठ में लगी थी, थोड़ी देर में भाभी वहाँ आ गई और मेरे बगल मे सोफे पर बैठ गयी.

भाभी- अकेले-2 बैठे हो, बोर नही हो रहे..?

मे- हाँ हो तो रहा हूँ, लेकिन कर भी क्या सकता हूँ..? आप तो नाराज़ ही हो तो किसके साथ बात करूँ ?

भाभी- तुमसे किसने कहा कि मे नाराज़ हूँ..?

मे- वो सुबह मेरे पास से भागी थी तो … मुझे लगा…कि…

भाभी- भागती नही तो पता नही तुम और कहाँ-2 तक पहुँच जाते..?

मे- उनकी आँखों में झाँकते हुए..! वैसे रास्ता तो आपने ही दिखाया है, फिर उसे बंद क्यों करना चाहती हैं ?

भाभी- डर लगता है अरुण…! किसी को पता लग गया, तो पता नही क्या होगा ?
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( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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Kamini
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Re: ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना

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Re: ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना

Post by jay »

मे- तो फिर मुझे उकसाया क्यों..?

भाभी- तुम्हारी मर्दानगी पर फिदा हो गयी हूँ में…! जो तुमने हमारे लिए किया, उतना तो कोई सगा भी नही करता..!

मे- तो अब पीछे मत हटिए, और अपने दिल की सुनिए.. वो क्या कहता है..?

भाभी- दिल के हाथों ही तो मजबूर होती जा रही हूँ, ये कम्बख़्त तुम्हारी ओर खिचा चला जा रहा है..

मे- उसके कान की लौ को जीभ से टच करते हुए.. तो फिर भूल जाओ सबको..और उसके गाल को काट लिया…!

भाभी- उ…माआ.. क्या करते हो ..? अभी नही, आज रात को आती हूँ तुम्हारे पास..!

मे- तो अभी के लिए स्टार्ट-अप ही हो जाए..! और उसके होठों को चूम लिया..एक हाथ से उसकी गोल-मटोल नेविया बॉल को मसल दिया..

भाभी- ससिईई… आयईयीई.. अब्भी छोड़ो…प्लस्सस.. समझा करो.. कोई भी आ सकता है यहाँ.. और वो उठके चली गयी..!

में खुश हो गया कि चलो आज रात को इसकी जम के बजाता हूँ..! उसकी चौड़ी गान्ड मेरी आँखों के सामने घूमने लगी..!

रात को सभी खाना खा पीकर, सोने चले गये, में थोड़ी देर वहीं बैठा रहा, धनंजय ने कहा, सोना नही है, मे बोला तू जा मुझे अभी नींद नही आरहि, थोड़ी देर में आता हूँ.

वो भी चला गया, मौका देख कर किचन की तरफ गया, वहाँ भाभी बरतन सॉफ कर रही थी, चुपके से जाके उसे अपनी बाहों मे कस लिया पीछे से… !

आअहह…! मेरे लौडे का कनेक्षन जैसे ही उसकी गद्देदार गान्ड से हुआ.. पुछो मत….?

सला कपड़ों के उपर से ही इतना मज़ा है इसकी गान्ड का, तो बिना कपड़ों के क्या होगा..? सोचा मन में.

मेरे अचानक इस तरह पीछे से पकड़ लेने से वो चिंहूक गयी…! और बोली.. अरे बेसबरे, थोड़ा तो इंतजार करो.. ये काम निपटा कर, थोड़ी देर तुम्हारे भैया का मन बहला दूं, फिर आती हूँ, जो जी मे आए कर लेना.. अब जाओ यहाँ से… प्लस्सस..

उसके गाल पे पप्पी लेके मे अपने कमरे में आ गया, और आने वाले हसीन पलों में खो गया..!

रात करीब 1 बजे को वो मेरे रूम में आई.. तबतक मे सो चुका था, काफ़ी देर तक वो मेरे पलंग के साइड में खड़ी होकेर मुझे देखती रही, फिर धीरे से मेरे साइड में घुटने मोड़ कर बैठ गयी.

आहिस्ते से पाजामे को खींचकर निकाल दिया, और मेरे सोए पड़े लल्लू के उपर हाथ रख कर प्यार से उसे सहलाने लगी.

लंड महाराज को अपने स्वामी की नींद से कोई वास्ता नही, उन्हें तो जो प्यार से दुलार दे बस, उठ खड़े होते हैं, सीना चौड़ा के.

जैसे ही साहिब बहादुर तन्तनाये…! मेरा अंडरवेर भी गायब हो गया, अब नीचे से बिल्कुल नंगा था. थोड़ी देर हाथ से सहलाने के बाद उसने लंड की खाल खींच कर सुपाडे को भी नंगा कर दिया.

टमाटर जैसे लाल-लाल सुपाडे को देख कर उसको सब्र नही हुआ और उसे चूम लिया.. धीरे-2 वो उसे चाटने लगी..

जब मुझे कुछ-2 गीले होने का एहसास हुआ, तो मेरी नींद खुल गयी, थोड़ा सर उठाके देखा तो मेरे… मेरे मुँह से किल्कारी निकल गयी..!

ळौडे को छोड़, उसने अपने होठों पे उंगली रख के मुझे चुप रहने का इशारा किया..!

मैने उसे कंधों से खिच कर अपने उपर कर लिया,, अब वो आधी मेरे उपर थी और आधी पलंग पर.

पेट के बल लेटी, कमर के नीचे वो पलंग पर थी, उसकी एक चुचि मेरे सीने से दबी थी, दूसरी मेरे बगल में दब गयी, उसके होंठ मेरे होठों पर.

मेरा एक हाथ उसकी पीठ पर था, दूसरा उसके नितंबों के उपर, उसकी पहाड़ियों की चढ़ाई-उतराई चेक कर रहा था.

उसके बाद उसने अपनी एक जाँघ मेरे लौडे के उपर रख कर उसे रगड़ने लगी.
5-6 मिनट की होठ चुसाइ के बाद मैने उसे पलट दिया, और अब मे उसके उपर चढ़ गया, उसके हाथों को दोनो साइड से फैला के अपनी उंगलियाँ उसकी उंगलियों में फँसा दी और उसखे होठों को चूसने लगा…

वो बहुत गरम हो चुकी थी, उसकी साँसें उखड़ने लगी, दोनो के बदन भट्टी की तरह तपने लगे…!

मेरे दोनों हाथों ने उसकी चुचियों को ब्लाउज के उपर से ही मसलना शुरू कर दिया…!

सीयी.. हीईिइ…ड्यूवर जी, खेले खाए लगते हो.. उउउऊहह.. आहह.. धीरे—
आहह.. एक दिन में ही इन्हें तरबूज बनाओगे क्या रजाअ…!

हेईए… राणिि.. तेरी.. ये आम.. बड़े रसीली..लग रहे… है.. बहुत रस भरा है इनमें…निकालने तो दो..!

आहह… मेरे रजाअ… सीयी..रस को चूसाआ…जाताअ.. है..मसलाअ.. नही..!

मैने फटाफट उसके ब्लाउस के बटन खोल दिए, कसी हुई ब्रा में उसके कबूतर बाहर निकलने को फड़फड़ाने लगे.. मे अब उसके ब्रा के बीच की घाटी को जीभ से चाटने लगा..

उसने अपनी पीठ उठा दी और ब्रा को भी निकलवा दिया.. अब उसके दोनो कबूतर चोंच उठाए गुटरगूं करने लगे, बोले तो चुसवाने को तैयार थे.

उसके निपल कंचे की तरह कड़क हो गये थे, मैने हल्के-2 अपनी जीभ से दोनो को बारी-2 से चाटा, तो उसकी छाती और उपर को उठ गयी, और मुँह से सिसकारी फुट पड़ी.

आहह…देवर्जी चूसो इन्हें… उऊहहू.. खा जाओ…ज़ोर-2 से… उहहुउऊ…ऐसी..हिी…हहानं… और ज़ोर से हाईए….नहिी…ज़ोर से मत कॅटू…!!

में अपने काम में बिज़ी था, वो सिसकारियों में डूबी थी.. कमरे का माहौल चुदाईमय हो चुका था……!!!

कुछ देर में हम दोनो जन्मजात नंगे थे, वो पलंग पर चित्त लेटी थी, थोड़ी देर तक में उसके बदन के कटाव देखता रहा, क्या फिगर थे उसके..?

एकदम परफेक्ट फिगर, 34-22-34..चुचियाँ एकदम उपर को मुँह उठाए हुए तनी हुई, लटकन नाम मात्र को भी नही.. गोल-गोल कसी हुई एक दम सॉफ्ट ..रूई के माफिक…

मैने उसके पूरे शरीर को चुंबनों से गीला कर दिया, होंठो से शुरू करके, गले, चुचियाँ, उसके बाद पेट पर आकर उसकी गहरी नाभि में जीभ डाल दी..

वो सिसकार भर उठी, अब मेरी जीभ जांघों के बीच पहुच गयी थी, पहले मैने उसकी जांघों के अन्द्रुनि हिस्से को चाटना शुरू किया, उसकी टाँगे अपने आप खुल गयी, जैसे ही मेरी जीभ उसके बिना बालों वाली चिकनी चूत पर गयी, स्वतः ही उसकी कमर थिरकने लगी..

ससिईईयाअहह…. हाईएईई..ये सब कहाँ से सीखा..देवर्जी… मेरी तो जान ही निकाले दे रहे हो…हाईए.. राम इतना मज़ा मुझे आजतक नही आया..
ससुउउ…आह..पूरे कलाकार हो तुम तो…!

वो ना जाने क्या-2 बोले जारही और मे पूरे मन से उसकी चूत को चाट रहा था, 5 मिनट. में ही उसने पानी छोड़ दिया..!

उसने झट से मुझे अपने उपर खींच लिया और मेरे होठों पे टूट पड़ी..

बहुत मज़ा देते मेरे प्यारे देवरजिी.. आहह.. अब डाल भी दो अपना ये मूसल और कूट दो मेरी ओखली को..!

रानी ! थोड़ी हमारे बबुआ की भी तो सेवा करदो.. तभी तो वो तुम्हारी रामप्यारी को अच्छे से प्यार करेगा..!!

वो समझ गयी और मुझे नीचे करके मेरे लंड पर टूट पड़ी… आअहह.. क्या मस्त लॉडा चुस्ती थी वो..! कभी सुपाडे को मुँह मे लेके आइस्क्रीम की तरह चाटती, कभी पूरे लौडे को मुँह में भर लेती, साथ-2 में मेरे सिपाहियों को हाथ से दुलार्ती..

मज़े की अधिकता में मेरे मुँह से स्वतः ही आहह.. निकल रही थी, अपने हाथ से उसके सर को लंड पर दबाने लगा..

उसके मुँह से लार बह-2 कर बाहर आ रही थी और अंडों को भी गीला कर रही थी,
में अपनी कमर चला कर उसके मुँह की चुदाई करने लगा.

अब मुझसे कंट्रोल करना मुश्किल होता जारहा था.
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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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