मुहब्बत और जंग में सब जायज़ है complete

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dil1857
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Re: मुहब्बत और जंग में सब जायज़ है

Post by dil1857 »

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rajsharma
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Re: मुहब्बत और जंग में सब जायज़ है

Post by rajsharma »

pongapandit wrote: 21 Nov 2017 20:25 भाई एकदम मस्त अपडेट हैं
Kamini wrote: 22 Nov 2017 14:02 सूपर सेक्सी कहानी है राज जी
Rohit Kapoor wrote: 22 Nov 2017 16:42 Keep writing dear, Excited for NEXT Update . . . .
dil1857 wrote: 23 Nov 2017 07:47update
Dolly sharma wrote: 23 Nov 2017 11:33 nice update Raj
kunal wrote: 23 Nov 2017 14:06superb kahani
धन्यवाद दोस्तो
Read my all running stories

(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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rajsharma
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Re: मुहब्बत और जंग में सब जायज़ है

Post by rajsharma »

कुछ ही देर बाद मुझ एक झटका लगा और मेरी चूत ने अपना पानी छोड़ दिया.

में फारिग तो ज़रूर हो गई मगर मेरी चूत में लगी आग शायद अभी बुझी नही थी.फिर रात के किस पहर मेरी आँख लगी मुझे खुद पता ही ना चला.

उस वक़्त रात का शायद आख़िरी पहर था.जब नींद के आलम में मुझे मेरी कमीज़ के अंदर से अपने मम्मो पर किसी के बे चैन हाथ और किसी की गरम ज़ुबान अपनी “धुनि” ( नेवेल ) पर “रेंगते” हुई महसूस हुई.

पहले तो में समझी कि शायद में कोई ख्वाब देख रही हूँ. मगर दूसरे ही लम्हे में महसूस किया. कि मैने अपनी कमीज़ और ब्रेजियर पहनी तो ज़रूर है.

मगर मेरी कमीज़ मेरे मम्मो तक उपर उठी हुई थी और मेरे मम्मे भी ब्रेजियर से आज़ाद हो कर अंधेरे में “नंगे” हो रहे हैं.

जब कि मेरी शलवार मेरे जिस्म से अलग हो चुकी है और अब में बिस्तर पर बगैर शलवार के आधी नगी पड़ी हुई हूँ.

ये सब कुछ महसूस करते ही मुझे समझ आ गई. कि ये कोई ख्वाब नही बल्कि हक़ीकत में मेरा भाई रात के पिछले पहर मुझे अपनी बीवी समझ कर नंगा करने पर तुला हुआ है.और ये बात समझ आते ही में एक दम से हड बड़ा कर उठ गई.

इस से पहले कि में सम्भल पाती. सुल्तान भाई जो कि अब मेरी टाँगों के बीच में बैठा हुआ था. उस ने एक हाथ से मेरी गान्ड को हल्का सा उपर उठाया और अंधेरे में अपना मुँह आगे बढ़ाते हुए अपनी गरम ज़ुबान को मेरी गोश्त से भर पूर रानों के उपर फेरने लगा.

यूँ पहली बार अपनी रानो पर अपने भाई की ज़ुबान को “रेंगता” हुआ महसूस कर के मेरे बदन में एक आग सी जल उठी.

अभी में अपनी रानो पर सरकती हुई अपने भाई की ज़ुबान से ही लुफ्त ओ अंदोज़ हो रही थी. कि इतने में मेरी रानो पर “रेंगती” सुल्तान भाई की ज़ुबान मेरी चूत तक आन पहुँची..

ज्यूँ ही सुल्तान भाई ने मेरी चूत को अपने मुँह में लिया. तो हम दोनो बेहन भाई को जैसे एक शॉक सा लगा.

मुझे तो इस लिए ये शॉक पहुँचा. क्यों कि मेरे शोहर गुल नवाज़ ने हमारी तीन साला शादी शुदा ज़िंदगी में आज तक कभी इस तरह मेरी फुद्दी को अपने मुँह में नही लिया था.

जब कि भाई ने मेरी चूत पर थोड़े भरे हुए बालों में अपना मुँह फेरते ही एक हेरत भरी आवाज़ में बोलना चाहा. “ नुसरत कल तो तुम्हारी फुद्दी की शवीईई” ये कहते हुए भाई ने अपना मुँह मेरी चूत से अलग करने की कोशिश की.

“उफफफफफफफ्फ़”भाई के मुँह से ये इलफ़ाज़ सुन कर मेरे तो “होश” की खता हो गये.

में तो जल्दी में नुसरत से पूछना ही भूल गई थी. कि उस ने अपनी फुद्दी की शेव की हुई है या नही.

मगर अब क्या हो सकता था. अब मुझ ही इस काम को बिगड़ने से बचाना था.

वैसे भी नुसरत और उस के भाई की चुदाई के सीन ने मेरी चूत में जो आग लगाई थी.उस की वजह से मेरी पानी छोड़ती चूत को इस वक़्त सिर्फ़ एक लंड की ज़रूरत थी.

और अब सब रिश्तों नातो को भुला कर सुल्तान भाई मुझे एक भाई के रूप में नही बल्कि एक मर्द के रूप में मेरे सामने नज़र आ रहा था.

इस से पहले कि सुल्तान भाई अपना मुँह मेरी फुद्दी से अलग कर पाता. मैने फॉरन अपने हाथ आगे बढ़ा कर उस के सर को ज़ोर से पकड़ कर दुबारा अपनी फुद्दी पा टिका दिया.

में अंधेरे में दिखाई तो कुछ भी नही दे रहा था. मगर भाई के जिस्म की हरकत से में ये महसूस कर रही थी. कि मेरा भाई शायद किसी”शाषो पुंज” में मुब्तला हो कर “हिचकिचाहट” का मुजाइरा कर रहा है.

मगर में तो आज पहली बार किसी मर्द के होंठों को अपनी फुद्दी पर महसूस कर के पूरी पागल हो गई थी. और इस मज़े के कारण में अपनी गान्ड उठा उठा कर अपनी फुद्दी को ऊपर नीचे कर के अपने भाई के मुँह पर रगड़ने लगी.. जिस से मेरी फुद्दी में लगी आग और तेज होने लगी..

मैने अपने दोनों हाथों से सुल्तान भाई के सर को पकड़ा हुआ था. और भाई के होंठों पर अपनी गरमा गरम फुद्दी को ज़ोर ज़ोर से रगड़ रही थी.

मेरे इस वलिहान पन और खुद सुपुर्दगी के दिलकश अंदाज़ ने शायद मेरे भाई को भी पिघला दिया.

भाई ने अपने सर के उपर जकडे हुए मेरे हाथों को आहिस्ता से अलग किया और फिर बहुत ही प्यार से मेरी पानी छोड़ती फुद्दि के होंठों पर अपनी उंगली फेरी और उंगली को अपने मुँह में डाल कर चूसने लगा.

इस के साथ ही भाई ने आहिस्ता आहिस्ता अपने हाथों से मेरी फुद्दी के होंठ खोल कर अपनी ज़ुबान मेरी गुलाबी चूत के अंदर डाल दी. उउफफफफफफफफफफ्फ़ अहह मेरे मुँह से सिसकरीईईईईईईई निकल गई.

मैने अपनी आँखें बंद कर ली ऑर अपनी फुद्दी को बार बार ऊपर की तरफ़ ले जाती ताकि ज़यादा से ज़यादा अपने भाई की ज़ुबान और होंठो का दबाव अपनी फुद्दी के अंदर महसूस कर पाऊ.

सुल्तान भाई मेरी बेचैनी ऑर मज़े से बढ़ी कैफियत को समझ रहा था.इस लिए कभी सुल्तान भाई मेरी चूत के सुराख वाली जगह में ज़ुबान डालता और कभी वो मेरी चूत के दाने को ज़ुबान से रगड़ता और अपने दाँतों से मेरी चूत और जांघों पर काट रहा था.

में तो ज़ोर ज़ोर से “आआआआअहैीन” भर रही थी ओर अपने हाथ उस के बालों में फेर रही थी.

मेरी चूत इतनी गीली हो चुकी थी कि मेरी चूत का रस मेरी टाँगों से होता हुआ मुझे मेरे हिप्पस पर महसूस हो रहा था..

फिर अचानक मुझे लगा कि मेरे जिस्म में एक तूफान सा आ रहा है.वो तूफान एक दम से आया और मेरा सारा जिस्म अकड सा गया और इस के साथ ही मेरी फुद्दी ने अपना पानी भरपूर तरीके से छोड़ दिया. में आआहह आआहह कर रही थी..

थोड़ी देर बाद मेरी फुद्दी से फूटने वाली गरम फुहार बंद हो गई ऑर में बिस्तर पर बेसूध गिर गई..

मेरा झटके ख़ाता जिस्म जब तक ना संभला उस वक़्त तक सुल्तान भाई मेरी टाँगों के दरमियाँ ही मेरी चूत पर अपना मुँह रख कर लेटे रहे.
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