चुदाई का वीज़ा complete

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rajsharma
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Re: चुदाई का वीज़ा

Post by rajsharma »

pongapandit wrote: 18 Nov 2017 18:01 राज भाई एकदम फाडू कहानी हैं दोनो की दोनो
Rohit Kapoor wrote: 18 Nov 2017 19:34 Keep writing dear, Excited for NEXT Update . . . .
jay wrote: 19 Nov 2017 09:09 wow superb story bro

maza aa gya
Dolly sharma wrote: 19 Nov 2017 14:01 superb story
धन्यवाद दोस्तो

अपडेट थोड़ी ही देर में
Read my all running stories

(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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rajsharma
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Re: चुदाई का वीज़ा

Post by rajsharma »

थोड़ी देर बाद वो वॉश रूम से बाहर आए तो उन्होंने कपड़े पहने हुए थे.

मुझे अभी तक कंबल में लेटे देखा तो बोले “बेटी उठो कपड़े बदल लो फ्लाइट सीट कन्फर्म होगई है हमे जल्दी एरपोर्ट चलना है.

बेटी कहने पर मैने उन को नफ़रत से देखा और गुस्से में चिल्लाते हुए बोली” खबरदार अगर मुझे अब बेटी कहा बेगैरत इंसान”

अब्बा ने मेरे गुस्से का कोई असर नही लिया बल्कि वो मुस्कुराते हुए कमरे से बाहर निकल गये.

उन के जाने के बाद में ब्लंकेट लपेट कर उठ गई और शवर में जा कर अब्बा के लाए हुए दूसरे कपड़े बदल लिये.

जहाज़ में अब्बा मेरे साथ ही बैठे हुए थे. और उन की बे शर्मी की हद ये थी कि सीट पर ऐसे पुर सकून सोते हुए खर्राटे ले रहे थे जैसे कुछ हुआ ही नही.

जब कि मेरे दिल-ओ-दिमाग़ में एक तूफान बर्पा हुआ था. कि आज में अपने उस सुसर के हाथों ही बे आबरू हो चुकी थी. जिस ससुर को मैने दिल की गहराइयों से अपने बाप का मुकाम दिया था.

जब में कराची वापिस अपने ससुराल पहुँची तो अपनी सास को देखते ही में अपनी सास को बताना तो चाहती थी. कि उन के शोहर ने किस तरह होटेल के कमरे में मेरी इज़्ज़त की धज्जियाँ उड़ा दीं हैं.

मगर चाहने के बावजूद मेरी ज़ुबान ने मेरा साथ देने से इनकार कर दिया.और में अपना मुँह खोलने की बजाए उन से से लिपट कर बुरी तरह रोने लगी .

अब्बा ने मुझे रोते देखा तो अम्मी से कहने लगे कि हमारी बेटी को वीसा ना मिलने का बहुत दुख हे. इस लिए ये सारे रास्ते रोती ही रही हे.

जिस पर मैरी सास मुझे तसल्ली देने लगीं और अब्बा अपने नवासों नवासी से खेलने में मसरूफ़ हो गये.

अब्बा पूरे खानदान में एक शरीफ आदमी मशहूर थे और मुझ समेत अपनी बेटी को चादर ओढ़ने और बारीक कपड़े ना पहनने का हुकुम देते थे.

लेकिन में नही जानती थी कि नज़ाने कब से वो अपनी ही बहू की चादर उतरने का मंसूबा बनाए बैठे थे.

मेने फ़ैसला कर लिया था कि कुछ भी हो जमाल को ज़रूर बताउन्गी और मुझे तो अब अपनी सुसराल के हर मर्द से नफ़रत हो गई थी.

रात को जमाल का फ़ोन आया तो में टूट टूट कर रोने लगी और कहा कि आप के अब्बा सही आदमी नहीं हैं.

मेने सोचा अगर जमाल को एक दम सारी बात बताउन्गी तो उन पर क़यामत टूट पड़ेगी.

इस लिए में अपने शोहर से खुल कर बात करने की बजाए उन को इशारे में अपनी बात समझाना चाहती थी.

मेरी बात सुन कर जमाल हंसते हुए कहने लगे कि क्या कह दिया मेरे अब्बा ने. तो मेने फिर भी पूरी बात तफ़सील से बताने की बजाय कहा कि वो मुझे ग़लत नज़रों से देखते हैं.

मेरा इतना कहने की देर थी कि जमाल चीख उठे और मुझ पर चिल्लाते हुए बोले “ मेरे खानदान के सब लोग सही कहते थे कि खानदान से बाहर शादी ना करो,आज तुम मेरे बाप की नज़रों पर इल्ज़ाम लगा रही हो कल ये भी कह देना कि वो तुमसे सेक्स करना चाहते हैं”.

अपने शोहर को इस तरह गुस्से में आता देख कर मैने उन को अपनी पूरी कहानी बयान करने की एक और कॉसिश की तो मेरी बात स्टार्ट होते ही जमाल ने दुबारा फोन पर गुस्से में चिल्लाते हुए मुझे अपनी ज़ुबान बंद करने का कहा “आज तो ये बात कह दी है अगर फिर कभी ऐसी ज़लील बात की तो में अभी तलाक़ देने को तैयार हूँ. कल मेरी बहनों और बहनोइयों पर भी इल्ज़ाम दे देना” और धक्के में फ़ोन रख दिया.

मुझे जमाल की बातों पर ज़ररा बराबर भी अफ़सोस ना हुआ क्यों कि अपनी इज़्ज़त अपने ही सुसर के हाथों लूटने के बाद जमाल की बातों की अब क्या हैसियत थी.

में समझ गई कि एक बेटा होने के नाते जमाल अपने जाहिरे शरीफ नज़र आने वाले अब्बा के बारे में मेरी किसी बात का यकीन नही करेंगी.

इस लिए अपना बसा बसाया घर उघड़ने की बजाए इस वाकये को एक भयानक ख्वाब समझ कर भूल जाना ही मेरे लिए बहतर बात है.

इस लिए में खामोश हो गई और फिर जमाल को फ़ोन किया और माफी माँग ने लगी.

जमाल ने मेरी बात को एक ग़लती समझ कर इस शर्त पर मुझे माफ़ किया कि में दुबारा कभी उन के अब्बा पर किसी किस्म के इल्ज़ाम तराशि नही करूँगी.

हाला कि अगर मेरा शोहर ठंडे दिल से मेरी पूरी बात सुन लेता.तो शायद उन को ये अंदाज़ा हो जाता कि जिस बात को वो इल्ज़ाम तराशि कह रहे हैं वो असल में हक़ीकत है.

अपने शोहर की तरफ से इस तरह का रिक्षन आने के बाद मैने अपने दिल में पक्का फ़ैसला कर लिया था. कह में इस तरह अपनी ज़िंदगी नहीं गुज़ारुँगी.

लेकिन एक मसलिहत के तहत थोड़ी मुद्दत के लिए मैने बिल्कुल खामोशी इक्तियार कर ली.

इस की वजह ये थी. कि उन्ही दिनो मेरा भाई और मेरी अम्मी हमारे सब से बड़े भाई के पास दुबई गये हुए थे.

इस लिए में अब उन की वापसी की मुन्तिजर थी. कि ज्यूँ ही मेरा भाई और अम्मी पाकिस्तान वापिस आएँगे तो में अपना सुसराल छोड़ कर अपने मेके में अपनी अम्मी के पास चली जाउन्गी.

इसी दौरान इस्लामाबाद से वापिस के कुछ दिनो तक तो अब्बा मुझ से थोड़े दूर दूर ही रहे.

उस की वजह शायद ये हो सकती थी. कि वो फोन पर अपने बेटे जमाल की बात चीत से इस बात का अंदाज़ा लगा रहे हों गये. कि मैने अपने शोहर को उन की हरकत के मुतलक बता दिया है कि नही.

फिर जब अब्बा को अंदाज़ा हो गया कि मैने उन के बेटे जमाल से उस वाकिये के बारे में कोई बात नही की. तो उस का हॉंसला और बुलंद हो गया.

अब अब्बा का जब दिल चाहता वो रात को चोरी छुपे मेरे कमरे में घुस आते और अपनी गंदी हवस पूरी कर लेते और में एक बेजान लाश की तरह कुछ भी नही कर सकती.

मेरी नींद और उस का शोहर घर के उपर वाली मंज़िल में रिहाइश पज़ीर थे.

इस लिए वो लोग रात को एक दफ़ा उपर की मंज़िल पर जाने के बाद सुबह तक दुबारा नीचे नीचे नही आते थे.

जब कि मेरी सास अपने इलाज के लिए जो दवाई इस्तेमाल कर रही थीं. उनमे नींद की दवा शामिल होती थी.
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Re: चुदाई का वीज़ा

Post by rajsharma »

इस लिए जब मेरी सास रात को अपने कमरे में जातीं .तो वो बिस्तर पर लेटते ही नीद की आगोश में चली जातीं और फिर अगली सुबह ही उन की आँख खुलती थी.

जिस वजह से रात की तन्हाई में अबाबा मेरे कमरे में बिना किसी ख़ौफ़ के चले आते और मुझे चोद कर अपने लंड की तसल्ली कर लेते.

वो मुझे चोदते वक़्त अक्सर कमरे की लाइट ऑन नही करते थे.

मुझे अब्बा से इस क़दर नफ़रत थी. कि जब भी उस ने मुझे चोदा तो चुदाई के दौरान में जज़्बात से बिल्कुल अलग रहती सिर्फ़ ये ही महसूस करती कि कोई चीज़ मेरे जिस्म के अंदर बाहर हो रही है.

में बस एक बे जान बुत बन कर उस के धक्कों को अपनी चूत के उपर बर्दाश्त करती और ये ही दुआ करती कि ये गलीज़ इंसान जल्द आज़ जल्द अपने लंड का पानी निकाले और मेरी जान छोड़े.

अब्बा का मुझ से अपना गंदा खेल खेलते दो महीने हो चले थे. कि एक रात को जब वो मुझ चोदने लगे. तो अपनी चूत के अंदर जाता हुआ अब्बा का लंड मुझे पहले की निसबत काफ़ी सख़्त महसूस हुआ.

फिर जब अब्बा ने मेरी छूट में लंड डाल कर मुझे ज़ोर ज़ोर से चोदना शुरू किया. तो मुझे उन के अंदाज़े चुदाई और धक्कों की रफ़्तार में पहले से काफ़ी तेज़ी महसूस हुई.

ना जाने मेरे दिल के किसी कोने से ये आवाज़ बुलंद हुई कि लगता है कि आज मेरे उपर चढ़ा हुआ शख्स अब्बा नही.

ये ख़याल आते ही चुदाई के दौरान मैने हाथ बढ़ा कर बेड के पास अलग टेबल लेम्प को ऑन किया तो मेरे उपर चढ़े आदमी का चेहरा देख कर ख़ौफ़ और शरम के मारे मेरा रंग फक्क हो गया.

में: खालिद भाई अप्प्प्प्प्प्प्प्प्प्प्प्प्प्प्प?.

मेरे अंदर अपना लंड डाले और मुझे जोश से चोदने में मसरूफ़ वो आदमी अब्बा नही बल्कि खालिद था, अब्बा का घर दामाद.

में चीख उठी कि “ खालिद भाई ये में हूँ, आप क्या कर रहे हैं”.

तो खालिद बैशर्मी से हंसा और कहने लगा. कि अब्बा कर सकते तो क्या मुझ में काँटे लगे हुए हैं.तुम शोर करोगी तो सब जाग जाएँगे और फिर में भी सब को बता दूँगा कि तुम ने खुद मुझे अपने कमरे में बुलाया था.

मुझे अंदाज़ा नही था कि खालिद ये राज़ जान चुका था. कि अब्बा मुझे अपनी हवस का निशाना बना रहे हैं.

सब घर वालो और खानदान वालों की नज़र में खालिद भी एक निहायत ही शरीफ और सच्चा शख्स मशहूर था.

इस लिए मुझे पता था कि अगर में शोर करूँ गी. तो वाकई ही कोई भी मेरी इस बात को कबूल नही करे गा कि खालिद खुद मेरे कमरे में आया है.

बल्कि इस के बजाय सब खालिद की कही हुई बात का यकीन करेंगे कि मैने ही उसे अपने पास अपनी चूत की प्यास बुझाने के लिए बुलाया हो गा.

यूँ खालिद भाई की धमकी काम कर गई और में चुप चाप लेटी उन से चुदती रही.

कमरे में जलते बल्ब की वजह से मेरा पूरा कमरा रोशन हो गया था.

और इस रोशनी में खालिद अपना लंड बहुत ही आराम से मेरी फुद्दी के अंदर बाहर करने लगा.

खालिद ने मेरी टाँगें उठा कर अपने कंधे पर रखीं.उस के झटके बहुत ही आहिस्ता ऑर गहरे थे.

खालिद मुझे चोदते चोदते आगे बढ़ा और मेरे होंठो पर अपने मोटे होंठ रख
दिए.

उस की ज़ुबान मेरे होंठो को एक दूसरे से अलग कर मेरे मुँह मे समा गयी.

वो मेरे होंठों को चूस्ते चूस्ते अपनी ज़ुबान भी मेरे मुँह के अंदर डालने में कामयाब हो गया.

उस की ज़ुबान मेरे मुँह का हर कोने में ऐसे फेरने लगी. जैसे वो शालीमार बाघ की सैर करने निकली हो.

साथ ही साथ खालिद एक हाथ से मेरे बदन को अपने सीने पर भींचे हुए था. और दूसरे हाथ को वो मेरी पीठ पर फेर रहा था.

इसी तरह करते हुए उस ने अचानक मेरे चुतड़ों को पकड़ कर अपना लंड इतने ज़ोर से मेरी फुद्दी में पेला कि मेरे मुँह से एक चीख निकल गई “ हाआआआआआईयइ”.

“छोड़ो मुझे खालिद भाई” मैने अपने आप को खालिद के चुंगल से छुड़ाने की एक ना काम कोशिस की.

"तू मुझे छोड़ने का कह रही है, जब कि तेरी ये मस्त और तंग चूत को चोदने के बाद में तो सारी ज़िंदगी तुजाहे अपनी रंडी बना कर रहने का सोच रहा हूँ" कहते हुए खालिद भाई ने मेरी एक चूंची को अपने मुँह मे लेकर चूसना शुरू कर दिया.
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