अनौखा इंतकाम complete

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pongapandit
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Re: अनौखा इंतकाम

Post by pongapandit »

Superb storytelling Raj
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rajsharma
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Re: अनौखा इंतकाम

Post by rajsharma »

इसी तरह वो पूरा लंड एकदम से अंदर डाल कर आहिस्ता आहिस्ता अपनी बहन को चोदने लगा. कुछ ही मिनिट्स में रमीज़ का लंड रूबीना की फुद्दि की जड़ तक पहुँच चुका था.

रूबीना ने अपनी टांगे अपने भाई की कमर के गिर्द लपेट दी. रूबीना के मुख से फूटने वाली हल्की कराहे उस के भाई का हॉंसला बढ़ा रही थीं और वो हर धक्के पर अपनी पूरी ताक़त लगा रहा था.

और रूबीना... मज़े की इस हालत में पहुँच चुकी थी. कि इस हालत को लफ़ज़ो में बयान करना उस के लिए ना मुमकिन था.

*आराम से रमीज़े....इतना भी ज़ोर मत लगा कि मेरी कमर टूट जाए.....तेरे पास ही हूँ जितना चाहे तू मुझे......*

*क्या करूँ बाजी...उफ्फ तुम्हारी इतनी टाइट है.....कंट्रोल नही ....होता..........एसा मज़ा जिंदगी में पहले कभी नही आया*

*नही रे तेरा ही इन्ना मोटा है के.....देख तो कैसे फँसा हुया है....उफ्फ कैसे रगड्र रहा है मेरी फू....* रूबीना के मुँह से फुद्दि का लफ़्ज निकलते निकलते रह गया.

रूबीना ने कभी भी अपने शोहर के साथ सेक्स करते हुए ऐसी ज़ुबान का इस्तेमाल नही किया था.मगर आज अपने भाई के साथ इतनी गर्म जोशी से सेक्स करते वक़्त रूबीना शरम-ओ-हेया की सभी हदें पार कर जाना चाहती थी.

फुद्दि और लंड की जंग जारी थी. फुद्दि में लगा तार पड़ रहे ज़ोरदार धक्कों से ज़ाहिर हो रहा था. कि रमीज़ को अपनी बहन की फुद्दी चोदने में कितना मज़ा आ रहा था.

वो हर धक्के में लंड रूबीना की फुद्दि की जड़ तक डाल देता. उस का लंड रूबीना की बच्चे दानी पर ठोकर मार रहा था. हर धक्के के साथ उसके टटटे रूबीना फुददी के नीचे ज़ोर से टकराते.

रूबीना भी अपने भाई की ताल से ताल मिलाते हुए अपनी कमर उछालती हुई अपनी फुद्दि अपने भाई के लंड पर पटकने लगी.

रूबीना ने रमीज़ के कंधे मज़बूती से थाम लिए और अपनी टाँगे उसके चुतड़ों के गिर्द कस दी और अपने भाई के हर धक्के का जवाब भी उतने ही जोश से देने लगी जितने जोश से वो अपनी बहन को चोद रहा था.हर धक्के के साथ रूबीना के मुख से सिसकारियाँ फुट रही थी.

दोनो बहन भाई के जिस्मों के टकराने और लंड की गीली फुद्दि में हो रही आवाज़ाही से पूरे कमरे में आवाज़ें गूँज़ रही थी.

*और ज़ोर लगा रमीज़े! और ज़ोर से! हाए एसा मज़ा पहले कभी नही आया! और ज़ोर लगा कर डालो मेरी चूत में भाई*रूबीना के मुँह से निकलने वाले अल्फ़ाज़ ने आग में घी का काम किया.

रमीज़ एक बेकाबू सांड़ की तरह अपनी बहन रूबीना को चोदने लगा. सॉफ ज़ाहिर था कि उसे अपनी बहन के मुँह से निकले उन गरम अल्फाज़ो को सुन कर कितना मज़ा आया था.

और उसके जोश में कितना इज़ाफ़ा हो गया था. जिस की वजह से उस का हर धक्का उस की बहन की फुद्दि को फाड़ कर रख देने वाला था.

*सबाश भाई...चोद मुझे...और ज़ोर से धक्का मार.... पूरा अंदर तक डाल अपना लंड मेरी फुद्दि में*

आज रूबीना ने सब रिश्ते नाते भुला कर दुनियाँ की सब हदें पार कर लीं और इसका इनाम भी उसे खूब मिला.

रमीज़ अपने दाँत पिसते हुए बुलेट ट्रेन की रफ़्तार से अपनी बहन की फुद्दी चोदने लगा.

रूबीना के जिस्म में जैसे करेंट दौड़ रहा था. फुद्दि के अंदर पड़ रही चोटों से मज़े की लहरें उठ कर पूरे बदन में फैल रही थी. जिस वजह से रूबीना अपना जिस्म अकड़ाने लगी. रूबीना अब जल्दी ही छूटने वाली थी.

*हाए! मार दित्ता मेनू!.... उफफफ्फ़ अपनी बहन को..... चोद रहा है या.... पिछले.... किसी जनम का... बदला ले रहा है*

*नही मेरी बहना! ...में तो... तुझे.... दिखा रहा हूँ असली.... चुदाई कैसे... होती है. कैसे एक मर्द....... औरत की तस्सली करता है*

*हाए.... देखना कहीं..... तस्सल्ली करते करते..... मेरी फुद्दी ना फाड़ देना*

रूबीना ने अपनी बाहें अपने भाई की गर्दन पर लपेट दीं और अपनी टाँगे भाई की कमर पर और भी ज़ोर से कस दीं.

रूबीना की कमर अब हिलनी बंद हो चुकी थी. दोनो भाई बहन बुरी तरह से हांफ रहे थे.

रूबीना को अपनी टाइट फुद्दि में अपने भाई का लंड फूलता हुआ महसूस हुआ, लगता था वो भी फारिग होने के करीब ही था.

*रमीज़े ...में छूटने..... वाली हूँ...मेरे साथ साथ तू भी...हाई....हाई...उफफफ्फ़....भाई...भाईईईईईईई!* और रूबीना की चूत फारिग होने लगी, फुद्दि से गाढ़ा रस निकल कर भाई के लंड को भिगोने लगा.रूबीना की फुद्दि बुरी तरह से खुलते और बंद होते हुए अपने भाई के लंड को कस रही थी.
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
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मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
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rajsharma
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Re: अनौखा इंतकाम

Post by rajsharma »

रमीज़ ने पूरा लंड बाहर निकाल कर पूरे ज़ोर से अंदर पेला, ऐसे ही दो तीन ज़ोरदार धक्के मारने के बाद एक हुंकार भरते हुए रूबीना के उपर ढह पड़ा. रमीज़ के लंड से गाढ़ी मलाई निकल कर उस की बहन की चूत को भरने लगी. उन दोनो की हालत बहुत बुरी थी.

रूबीना को एक अंजानी ख़ुसी का अहसास अपने पूरे जिस्म में महसूस हो रहा था.उसे लग रहा था जैसे उस का जिस्म एकदम हल्का हो कर आसमान में उड़ रहा हो. वो पल कितने मजेदार थे, एसा सुख, एसा करार उस ने ज़िंदगी में पहली बार महसूस किया था.

आहिस्ता आहिस्ता रूबीना की फुद्दि ने फड़कना बंद कर दिया.

उधर रमीज़ का लंड भी अब पूर सकून हो चुका था और आहिस्ता आहिस्ता उस का लंड भी सॉफ्ट होता जा रहा था.

रमीज़ अभी तक अपनी बहन के उपर ही गिरा पड़ा था. और उस के जिस्म के बोझ तले रूबीना के लिए अब हिलना भी मुश्किल था.

थोड़ी देर बाद रमीज़ रूबीना के उपर से उठ कर उस के बराबर में लेट गया.

जब दिमाग़ से चूत की गर्मी कम हुई तो तब रूबीना के होशो हवास वापिस लोटने लगे और अब रूबीना का सामना एक होलनाक हक़ीक़त से हो रहा था. अब उसे ये एहसास हो रहा था कि उन दोनो भाई बहन ने कैसा गुनाह कर दिया है.

रूबीना ने जब उन अल्फ़ाज़ को अपने दिल में दोहराया जो उस ने कुछ लम्हे पहले रमीज़ से सेक्स करते हुए उस को कहे थे तो रूबीना के पूरे बदन में झुरजूरी सी दौड़ गयी.

“में इतनी बेशर्म और बेहया कैसे बन गयी? मेरे मुँह से वो अल्फ़ाज़ कैसे निकल गये? कैसे में भूल गयी कि में अब शादी शुदा हूँ? में क्यों खुद को ये गुनाह करने से रोक नही पाई?”

रूबीना के दिल में अब ये तमाम सवाल उठ रहे थे. जिन का कोई भी जवाब उसे सूझ नही रहा था.
सब से बड़ा सवाल तो ये था कि अब में अपने भाई रमीज़ का सामना कैसे करूँगी!

“वो मेरे बारे में क्या सोच रहा होगा? कैसे में एक बाज़ारु औरत की तरह उस से पेश आ रही थी! मेरा काम तो अपने भाई को ग़लत रास्ते पर जाने से रोकना था मगर में तो खुद......खुदा मुझे इस गुनाह के लिए कभी माफ़ नही करेगा” रूबीना दिल ही दिल में खुद को दुतकार रही थी.

उधर बिस्तर पर रमीज़ की तरफ से भी कोई हलचल नही हो रही थी. शायद उसे भी अपनी बहन रूबीना की सोच का अंदाज़ा हो गया था. जिस वजह से शायद उसको भी अफ़सोस हो रहा था और वो भी अपनी बहन की तरह अपने किए पर अब पछता रहा था.

रूबीना ऐसे ही सोचों में गुम बिस्तर पर पड़ी रही. कोई रास्ता कोई हल उसे नही सूझ रहा था.

रूबीना जितना अपने किए हुए गुनाह के बारे में सोच रही थी उतना ही उसे खुद से नफ़रत हो रही थी. ऐसी ही सोचों में गुम काफ़ी वक़्त गुज़र गया.
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