सिफली अमल ( काला जादू ) complete

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jay
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Re: सिफली अमल ( काला जादू )

Post by jay »

Very nice....keep writing
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(^^d^-1$s7)
(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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Kamini
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Re: सिफली अमल ( काला जादू )

Post by Kamini »

mast update
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sexi munda
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Re: सिफली अमल ( काला जादू )

Post by sexi munda »

लूसी टहाका लगाके हँसने लगी उसने मेरे मन को जैसे पढ़ लिया था....उसकी उस हल्की हँसी में भी एक डरावनापन था....कुछ देर तक हम चुप रहे फिर उसने खुद ही बात शुरू की....वो मुझे बहुत अच्छे तरीके से जानती है...यहाँ के निवासी उनकी जात और भेड़ियो से काफ़ी घबराते है लेकिन लूसी ने कभी इंसानो को नही मारा.....उसने बताया कि यहाँ शीबा बाजी ने उसे भेजा है मेरा हाल चाल जानने के लिए अब उन्हें मुझसे मिलना है

मैं भी सवाल भरी निगाहो से जिग्यासा भरी निगाहो से उससे आगे पूछने लगा कि बाजी कैसी है? वो यहाँ कैसे आई? वग़ैरा वग़ैरा

लूसी : ये बात मैं तुम्हें नही बता सकती हूँ मुझे कसम है बाजी जबतक तुमसे नही मुलाक़ात करेगी तब्तलक ये राज़ मैं तुम्हे नही बता सकती

मैं : फिर भी थोड़ा बहुत

लूसी : आइ आम सॉरी आसिफ़ पर यही नियम है हम पिशाचों को अपनी मालकिन का हर नियम मानना पड़ता है (मालकिन शब्द सुनके लगा कि कहीं बाजी इन पिशाचो की रानी तो नही बन गयी तब तो मुझे लूसी से कोई ख़तरा नही था और वो जानती थी कि मैं अब एक शापित भेड़िया हूँ फिर भी उसे मुझसे डर नही लगा) हमारे यहाँ बहुत से ख़तरनाक ख़ूँख़ार पिसाच थे जिन्होने हंपे क़ब्ज़ा किया हुआ था मालकिन ने उन सब पिशाचियो का अंत कर डाला और हमे आज़ादी दी लेकिन यहाँ भेड़ियो का एक दल है जो जंगलों में रहता है और हमारा कट्टर दुश्मन और सबसे ज़्यादा इंसानो का

मैं : ओह्ह सुना था चार्ल्स ने बताया तो था

लूसी : हम इंसानो को नुकसान नही पहुचाते पर वो हमसे ख़ौफ़ खाते है असल में उनकी ग़लती भी नही है हमारी जात आज भी इंसान की खून की प्यासी है पर अब उन्होने भी अपनी इक्षाओं को मार लिया है...मालकिन ने हम सबको अपनी भूख पे काबू करना सिखा दिया है लेकिन भेड़ियो से हमे बहुत ख़तरा है हम उनसे बहुत घबराते है मालकिन उनसे समझौता करना चाहती है पर वो शैतान के बीज किसी की सुनते नही

मैं लूसी की बात सुनके काफ़ी देर तक खामोश रहा फिर बात को पलटते हुए पूछा "तो शीबा बाजी से कब मिलने जाना है?".........

.लूसी मुस्कुराइ "आज नही आज भेड़िए बहुत ज़्यादा है हमारा रास्ता घैर लेंगे कल सूरज निकलने से पहले ही हमे रवाना होना है"..........

.उसकी बात को सुनके मैं खुश हुआ...."पर अगर चार्ल्स को".........मैं घबरा रहा था क्यूंकी मैं इंसानों की बस्ती में रह रहा था उन्हें अगर पता लग गया तो कहीं वो लोग मुझसे ही ख़ौफ़ ना खा जाए....

"ये बात तो आपको संभालना पड़ेगा"..........

मैं चुपचाप रहा ठीक है कोई बात नही मैने मन बना लिया था बाजी से ही तो मिलने इतना दूर आया था अब डर किस बात का

मैने लूसी को आज रात यही ठहरने को बोला....और उसे अपनी कहानी सुनाने लगा कि कैसे मैने बाजी को एक पिशाचिनी बनाया था? कैसे मैने लिलिता के शाप को झेला और हम अपने देश को छोड़ यहाँ चले आए...बाजी मुझसे किस तरह दूर चली गयी....वो सबकुछ जानती थी बस मुस्कुरा के हां में जवाब दे रही थी...उसकी आँखे सफेद होने लगी उसके उपर पिशाची रूप सवार होने लगा उसके दाँत नुकीले हो गये...."कहीं वो भेड़िए यहाँ ना आ जाए"......लूसी को आभास हो रहा था....

.मैने उसके पास आके उसे शांत किया "डरो नही मैं संभाल लूँगा"..........वो मुस्कुराइ और मुझे चिड़ाया कि तुम तो महेज़ एक इंसान हो तुम क्या कर लोगे? मैं अकेले ही संभाल लूँगी उन्हें वो लोग जिन्होने मेरा पीछा किया था पर मैने उन्हें चकमा देके रास्ता भुला दिया..

..मैं मुस्कुराया सिर्फ़

मैं : वैसे ये बात तुम मुझे पहले कह देती कि तुम शीबा बाजी के साथ शामिल हो

लूसी : तुम ख़ौफ़ जो खा जाते (इस बार हम दोनो टहाका लगाके हँसने लगे)

मैं लूसी को होंठो पे ज़ीब फिराते देख सकता था....वो कैसी निगाहों से मुझे घूर्र रही थी?.....यक़ीनन अपने सामने एक नौजवान लड़के को देख कर उसकी जिन्सी भूक बढ़ रही थी....इन पिशाचियो को मरने के बाद इनकी काम वासना कुछ ज़्यादा ही भड़क उठती है...इनकी जिन्सी भूक की तलब खून की प्यास से भी ज़्यादा बढ़ जाती है...मैने लूसी के मॅन को भाँप लिया जी तो मेरा भी था लेकिन पहेल नही कर पा रहा था...वो खुद ही धीरे धीरे मुझसे फ्लर्ट करने लगी....ऐसे अश्लील बातें करना शायद उसके लिए आम था

मैं : तुमने इससे पहले किसी के साथ किया है

लूसी : इंसान जब थी तब एक बेवफह के साथ किया था जिसने मुझे इन सुनसान वादियो में छोड़ दिया था...मेरी कोई बस्ती नही थी मैं दूर से आई एक विलायती लड़की थी....लेकिन कुछ बदमाशो ने मेरी इज़्ज़त लुटनी चाही...पर मैने पहाड़ से कूद के अपनी जान दे दी थी....और उसके दूसरे दिन ही मुझे जब होश आया तो मैं कुछ और ही थी....मैं मालकिन से मिली जिन्होने मुझे एक पिसाच बना दिया था अपनी तरह.....उन्होने मुझे अपना बदला लेने को कहा...और मैने उसी तरह ऊन पाँचो गुन्डो को और अपने उस बेवफा बाय्फ्रेंड को मौत के घाट उतार दिया

लूसी की आँखो से खून के आँसू बह रहे थे....मैने उसके करीब जाके उसकी आँखो से उन खून की बूँदो को पोन्छा और कंधे से उसे अपनी ओर किया "हम सब मज़बूर होते है लेकिन इसका ये मतलब नही कि बीती बातों को याद करे"........ना जाने क्यूँ मैं उसकी तरफ बढ़ा था उसने मेरी छाती पे हाथ रखके मेरे शर्ट के दो बटन्स खोल डाले...और फिर उस हाथ को नीचे खिसकाते हुए मेरे पाजामे के उभार को सहलाने लगी.....मेरा उभार अपने आप बड़ा होने लगा.....मैं लूसी को अपने से दूर ना कर पाया और उसने भी अपने ठंडे होंठ मेरे होंठो के बेहद नज़दीक ला दिए
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sexi munda
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Re: सिफली अमल ( काला जादू )

Post by sexi munda »


मैने उसके होंठो को बहुत प्यार से चूसा...और फिर बहुत ही कस्के..मैने उसकी पीठ अपनी तरफ मोड़ दी और उसकी चुचियों को भी भरपूर दबाने लगा...कपड़ों के उपर से ही...उसने फ़ौरन मुझे दूर धकेला और अपने पीछे लगे बटन्स को खोलती चली गयी और फिर उसके बाद...उसने जब अपने गाउन को अपने शरीर से अलग किया तो मेरे सामने एक नंगी मूर्ति खड़ी थी जिस काम वासना में मैं जल रहा था...उसके निपल्स एकदम गुलाबी थे पेट के नीचे से शुरू होते हल्की सुनहेरी झान्टो से एक लंबी लकीर जो सूजी चूत को अलग कर रही थी.....उसकी नितंब काफ़ी चिकने थे

वो मटकते हुए मेरे पास आई और खुद लेट गयी मैने अपनी बेल्ट ढीली की अपने कपड़ों को एक एक करके उतार के फैक्ना शुरू कर दिया जल्द ही ज़मीन पे हम दोनो के कपड़े इकट्ठे हो गये......मैने उसकी टाँगो को चौड़ा किया उसे लिटा दिया उसने अपनी उंगलियो पे थूक लगाके अपनी मादक खुश्बुदार चूत को और भी चिकना किया...मैने उसपे मुँह लगाया और अपनी ज़ीब को उस पाँव रोटी जैसी चूत में डालने लगा.....वो सिसक उठी उसने मेरे सर को सहलाना शुरू कर दिया.....मैं उसकी चूत में मुँह घुसाए उसे सूंघते हुए किसी कुत्ते की तरह चाटने लगा

जिन्सी तलब मेरी भी उठने लगी बहुत साल से आजतक किसी के साथ सेक्स ना करने की अलमत थी...आज मुझपे जिन्सी भूक सवार थी...मैं उसके दाने को चूस्ता और फिर उसे उंगलियो से सहलाते हुए उसकी सूजी चूत को थूक से गीला करके चाट्ता...उसके छेद को कुरेदता...वो बस सिसकते हुए मेरे मुँह को अपनी चूत पे रगड़ रही थी.....उसका मुँह खुला तो उसके दो नुकीले दाँत दिखे आज पहली बार मैं दूसरे पिसाच के साथ सेक्स कर रहा था

मैं उठके अपना लंड उसके करीब लाया और उसने बिना मुझसे सवाल किए मेरे लंड को चूसना शुरू कर दिया "उम्म्म्ममम आहह"........वो मेरे लंड को चुस्ती रही जबकि उसकी चूत में मैं उंगली किए जा रहा था....उसकी चूत से लसलसा के सफेद रस छुट्टने लगा....और वो मेरे लंड को बड़े प्यार से चूसने लगी...उसे शायद आजतक इतना मोटा लंड और गरम खून वाला इंसान नसीब नही हुआ था....उस ठंडे जिस्म पे हाथ फिरते हुए मेरी उंगलिया उसकी चूत में तेज़ हो गयी....वो बस सिसकते हुए काँपने लगी और मेरे लंड को बहुत ज़ोर ज़ोर से चूसने लगी उसकी हथेली में मेरा लंड था जिसे वो बीच बीच में भीच देती....मैं बस आहें भरता हुआ उससे मज़े ले रहा था

फिर जब उंगली करना बंद किया तो उसकी चूत ने एक तेज़ धार निकाला जिससे चढ़र भीग गयी....वो एकदम काँप उठी...पीला रस था एकदम....फिर मैने उस रसभरी चूत में मुँह लगाके उसे खूब चूसा चाटा....वो बस पागल हुई जा रही थी फिर कुछ देर बाद मैने उसके पेट पे लंड को हाथो से थपथपाना शुरू किया और फिर उसकी नाभि पर से रगड़ते हुए प्रेकुं छोड़ दिया...और खखारते हुए गले के थूक से उसकी रस से सनी चूत पे लगाया और कुछ अपने लंड पे....मैने हल्का सा चूत के मुँह पे लंड रखके दबाया...तो लंड अपने आप चूत के भीतर घुसने लगा...वो काँप उठी "आहह आहह स आआआहह आहहह".......जैसे जैसे लंड अंदर धँस रहा था उसकी सिसकिया भी तेज़ हो जाती

फिर उसके बाद उसने मेरे कंधे पे नाख़ून गढ़ा दिए...मैने फुरती से लंड को बाहर खींचा और फिर अंदर डाला कुछ देर तक करने के बाद मैं उसपे चढ़के लंड को चूत मे अच्छे से अड्जस्ट करके धक्के लगाने लगा..."ओह्ह यअहह आहह सस्स".......वो बस सिसकते हुए मेरे गाल और गले को चूमने लगी मैं उसकी चूत को चोदने लगा बस उसकी टाँगें मेरी कमर से रगड़ खाने लगी....वो मेरे कानो को और मेरे गाल को अपने नुकीले दाँतों से काट रही थी ज़बान से चाट रही थी जल्द ही मेरी भूक बढ़ गयी मेरे अंदर की ज्वाला फूटने को होने लगी और मैने तेज़ी से उसे चोदना शुरू कर दिया....हम दोनो के मुँह आपस में मिले और फिर शुरू हुआ बेदर्दी से एक दूसरे के होंठो को चूसना...ज़बान ज़बान से रगड़ना

कुछ देर में ही फ़च्छ से मेने लंड उसकी चूत के मुख से निकाला...और फिर मैने लिटा के उसे पहले अपना लंड चुस्वाया...वो बड़े मादक तौर से झुकके मेरी ओर बड़ी बड़ी सफेद निगाहो से देखते हुए लंड को पूरा मुँह में भरके उसका स्वाद चखने लगी और फिर उसे चूसने लगी....मैं मदहोशी में पागल हुए जा रहा था...आग की लपटें बरक़रार थी....अब वो मेरे पेट पे बैठी हुई थी उसके पेट के दोनो ओर मेरे हाथ मज़बूती से पकड़े हुए थे मेरे पूरे बदन पे गुस्सा होने से बल उठने लगे....और वो एकदम चिकनी थी...उसके निपल्स को बैठके एक बार चूस लिया फिर उन्हें मसल डाला वो मेरे लंड पे अपनी गान्ड के छेद को चौड़ा किए धीरे धीरे कूदने लगी...अब उसकी गान्ड में लंड की पकड़ बैठ चुकी थी

"आहह उम्म्म आहह".......किसी को पता नही था कि एक वीरान घर में दो जानवर एक दूसरे के साथ मिलन कर रहे थे....मैं सतसट उसकी गान्ड के छेद पे लंड घुसाए जा रहा था वो बस सिसक रही थी आँखे मूंद रही थी मेरी छाती पे हाथ रखके खुद ही गान्ड को उपर नीचे कूदवाने लगी....चुदवाने लगी....उसकी आँखें लज़्ज़त से बंद हो रही थी फिर मैने झट से उसे अपने करीब खींचा और उसके होंठो से होंठ लगाके पागलो की तरह चूमा....जल्द ही उसकी गान्ड काँपने लगी और मेरे लंड ने जवाब दे दिया और मैने उसकी गान्ड को हाथो से भींचते हुए उसके होंठो को चूस्ते हुए गान्ड में ही फारिग हो गया...जब गान्ड से लंड को बाहर खीचा था तो बहुत सारा लबालब रस बाहर उगलने लगा....वो एकदम पश्त पड़ चुकी थी और मेरी छाती पे सर रखके सोने लगी...मैं उसके कंधे को चूमते हुए अपने से लिपटाये बाजी के ख्याल में डूब गया....वो रात जल्द ही ढल गयी बाहर की ठंड अंदर की गर्मी के आगे पूरी फीकी पड़ चुकी थी वो सर्द भयंकर रात कब कट गई पता नही चला

सुबह 4 बजे भोर होने से पहले ही मुझे लूसी ने उठाया वो अपने कपड़े पहेन चुकी थी मैं अब भी नंगा था.....उसने बताया कि अब हमे रवाना होना है.......मैने सोचा यही ठीक रहेगा ताकि किसी की नज़रो में हम ना आ सके....बाहर गहरी धुन्ध थी....शायद कल रात की बर्फ़बारी की वजह से...मैं अस्तबल से अपना घोड़ा बाहर लाया और उसपे सवार हो गया लूसी मेरे ठीक सामने बैठ गयी उसकी गान्ड मुझसे एकदम चिपक चुकी थी...हम फ़ौरन रवाना हो गये....घोड़े के कदमो की आवाज़ जंगल के भीतर जाने लगी...घोड़ा मेरा पालतू था वो मेरी हर बात समझता था....इसलिए उसे लूसी से डर नही लगा.....अचानक घोड़ा भी दो कदम जंगल के भीतर और पाँव रखता इतनें मे घासो में कुछ हलचल हुई और घोड़ा ही ही करते हुए ख़ौफ़ ख़ाके पीछे होने लगा...."रुक क्यूँ गया आगे बढ़?".........लूसी भाँप चुकी थी उसने फ़ौरन मुझे मना किया

हम वही ठहर गये कुछ देर तक खामोशी छाई रही सूरज अब भी नही निकला था....इतने में हववव हावव करते कुछ कुत्तो जैसी आवाज़ आई और ठीक हमारे सामने झाड़ियो से निकलते 4 भेड़ियो का दल सामने था....उसका विशाल आकार मुझे ख़ौफ़ दिए जा रहा था...लूसी फ़ौरन घोड़े से उतर गयी और मैं भी....घोड़ा पीछे होने लगा वो एकदम ख़ौफ़ खाए जा रहा था मैं उसे शांत नही कर पा रहा था..."जिस बात का दर था वही हुआ मेरी घात लगाए ये भेड़िए छुपे हुए थे".........मैं सेहेम उठा शीबा बाजी से मिलने के लिए मैं किसी भी मुसीबत से सामना कर सकता था....लूसी को शीबा बाजी ने हिदायत दी थी वो मुझे महफूज़ रखने के लिए मेरे आगे खड़ी हो गयी और उन भेड़ियों को अपने नुकीले दाँत और सफेद निगाहो से देखने लगी बीच बीच में वो उन्हें फूँकार मारके पीछे हटने को कह रही थी पर वो भेड़िए जिनकी नज़रो में हिंसाकता और दांतो में अपने शिकार को कच्चा चबा जाने का मन साफ मुझे दिख सकता था
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