सिफली अमल ( काला जादू ) complete

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shubhs
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Re: सिफली अमल ( काला जादू )

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हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, और इसका सम्मान हमारा कर्तव्य है।
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sexi munda
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Re: सिफली अमल ( काला जादू )

Post by sexi munda »

बाजी एक क़बर के उपर बैठके मेरी ओर निगाह डाले मेरे इस नये रूप को अपनी आँखो से सेकने लगी...."ऐसा लगता है जैसे कितना पुराना रिश्ता हो हम दोनो के बीच आओ मेरे भीइ समा जाओ मुझ में"..बाजी की खून लगी नाइटी को उसने एक झटके में फीता खोलके अपने बदन से अलग कर दिया.....अब वो मेरे सामने एकदम नंगी थी एक नंगी पिसाचनी मरी हुई औरत का जिस्म जो खूबसूरती का कहेर ढा रहा था....भेड़िया अपनी ज़ीब निकाले उसकी चूत के करीब आया और उसे चाटने लगा "आहह बॅस धीरी से आहह".......स्लूर्रप स्लूर्रप की आवाज़ उसकी ज़बान से आ रही थी और वो अपनी बाजी की ही फुद्दि को चाटने लगा उसमें मुँह डालने लगा....वो और पागलो की तरहा उसे चूस रहा था उस जानवर के रुए से शीबा बाजी खेल रही थी

कुछ देर बाद बाजी कसमसाने लगी और उसे अपने से अलग किया उसकी चूत पूरी गीली हो चुकी थी...एक मेहेक्ति रस छोड़ रही थी....आम औरतो से भी कयि लज़्ज़तदार....उसने उस भेड़िए को उठाया और फिर उसके पंजो को सहलाते हुए उसके रोएँ से नीचे हुए पेट के नीचे झूलते उस मोटे भारी लंड को हाथो में लेके मसलना शुरू किया....वो धीरे धीरे अपने आप रूप में आने लगा बाजी ने उसे मुँह में लेके चूसना शुरू कर दिया ....भेड़िए की गुर्राहट आवाज़ पूरे खंडहर में गूँज़ रही थी...बाहर बिजलियो की गड़गड़ाहट सुनाई दे रही थी

खूब ज़ोर ज़ोर से बाजी उसका लंड चुस्स रही थी....उसके मुँह से लंड के निकलते लसलसाते रस को गले से होते हुए ज़मीन पे बिखेर रही थी....उम्म्म्म बाजी उस भयंकर भेड़िए के चेहरे को देख कर मुँह में भरके उसके अंडकोषो को भी चूस रही थी.....कुछ देर बाद उसने लंड को मुत्ठियाना ज़ारी रखा और उस मोटे लंड के लिए क़बर पे लेटके हल्का सा मुस्कुराइ....उसके नुकीले दाँतों की बीच की ज़ुबान भेड़िए की ज़ुबान से टकरा गयी और दोनो एक दूसरे की ज़ीब को चूसने लगे....बाजी उसके एक एक दाँत को ज़बान से चाट रही थी और वो भी बाजी के पूरे होंठो को चाट रहा था चूस रहा था मुँह में ज़ीब डाल रहा था....उसके बाद वो पंजो के बल बाजी के कंधे पर दोनो हाथ रखके अपना मोटा लंड चूत के उपर रखा

बाजी ने उसे अड्जस्ट कर लिया "आहह ये मिलन होने दो भाई मुझे तुम्हारा ये रूप चाहिए".........बाजी ने मेरे लंड को महसूस किया और मैने धक्के देने शुरू कर दिए..."आहहह सस्स आहह".......बाजी चिल्लाती रही उसके नुकीले दाँत हँसने से बाहर निकल आते...भेड़िया घुर्राते हुए उसकी चूत मारे जा रहा था उसका मोटा लंड ठंडे खून भरे जिस्म के अंदर बाहर हो रहा था...."आहह स आहह सस्स आहह"......बाजी भी आहें भरती रही आँखे उसने मूंद ली....और फिर भेड़िया ज़ोरो से बाजी की फुददी मारता रहा....मारते मारते उसके धक्के तेज़ हो गये और बाजी ने उसके पीछे की पूंछ को सहलाते हुए उसकी गान्ड के उपर दबाव दिया और वो झुकके बाजी की चूत में धक्के पेलता रहा

कुछ देर बाद वो घुर्राते हुए अपना रस छोड़ता लंड बाजी की चूत से निकालके बाजी की चुचियों पे और मुँह पे झड़ने लगा....बाजी उसकी एक एक बूँद को चाट रही थी फिर जब वो पष्ट हो गया तो उसके रस छोड़ते लंड को फिर से मुँह में लेके चूसा.....उसके बाद ज़ीब से पूरे गीले लंड को सॉफ किया उसने भी बाजी के निपल्स पे ज़बान फिराई और उसे काँटा दोनो चुचियों को अपने पंजो से दबाया और पूरे पेट से लेके चुचियों पे ज़ीब फिराई उसे चूसने की कोशिश की....बाजी ने उसे उठाया और उसके सामने कुतिया बन गयी....उसकी गान्ड की फांको के बीच भेड़िया ने मुँह लगाया और उसके छेद को चाटने लगा...बाजी सिहर उठी उसने अपनी गान्ड इस जानवर के लिए ढीली छोड़ दी थी...भेड़िए की लार और थूक से छेद पूरा गीला होने लगा था...भेड़िया ने अपने एक लंबे नाख़ून भरी उंगली उसके छेद पे लगाके उंगली अंदर की बाजी को सख़्त जलन हुई पर वो मीठे दर्द की आहें भर रही थी

फिर उसके बाद जल्द ही उसे अपने छेद पे एक मोटे चीज़ का अहसास हुआ...भेड़िया अब उसपे चढ़के अपने लंड उसके छेद के उपर फिराते हुए अंदर डालने की नाकाम कोशिशें कर रहा था...जल्द ही लंड गान्ड के द्वार में धस्ता चला गया और फिर बाजी ज़ोर से दहाड़ उठी....कुछ देर में लंड सततत गान्ड से अंदर बाहर होने लगा गान्ड का छेद इतना फटके चौड़ी हो गयी थी कि लंड आराम से भीतर तक जा रहा था और बाहर आ रहा था....."हववववव"........भेड़िए की आवाज़ पूरे खंडहर में गुंज़्ने लगी वो अपने चेहरे को उठाए बार बार हाउलिंग करते हुए सतसट धक्के बाजी की गान्ड पे मारता रहा...उसने बाजी के सख्ती से दोनो कुल्हों को अपने पंजो से पकड़ रखा था बाजी के दोनो ओर जो नाख़ून लगे थे उससे रिस रिस के काला खून बह रहा था...बाजी बस मीठी सिसकारिया लेते जा रही थी "औरर्र ज़ोरर से आहह और्र्रर आअहह"......उसकी जिन्सी भूक इतनी बढ़ गयी थी कि उसे अपने इस ख़तरनाक जानवर का भी ख़ौफ़ नही था

इस वीरानयत में खामोशियो में दो डरावनी आवाज़ें कब्रिस्तान के खंडहरो में गूँज़ रही थी जो कि इंसानो की नही बल्कि एक पिसाच और एक दरिंदे की थी जो एक दूसरे से मिलन कर रहे थे....जल्द ही बाजी को गरम गरम अपनी गान्ड में अहसास हुआ और फिर काँपते भेड़िए को देख उसके पंजे को सहलाने लगी जो सख्ती से उसकी गान्ड को भीचे हुए था....जल्द ही गान्ड से लबालब भेड़िए का गाढ़ा रस गिरने लगा बाजी वैसे ही पष्ट पड़ी लेटी रही और जल्द ही अपने लंड को झाड़ते हुए भेड़िया अपने रूप से तब्दील होते हुए इंसानी रूप में आ गया आसिफ़ अपनी बाजी की गान्ड मे लंड को निचोड़ते हुए उसके बगल में आके लेट गया और दोनो एक दूसरे से लिपटके कब्र के ही उपर सो गये...

अब महसूस हुआ कि रात ढल चुकी है और सुबह की हल्की हल्की रोशनी खंडहर के अंदर पड़ रही है...तो एक बार जाग के खुद से लिपटी नंगी बाजी को अपने से अलग किया और फिर बाहर निकलके चारो ओर देखने लगा सुबह होने वाली थी...सूरज अभी निकला नही था....मैने झट से बाजी को अपनी बाहों में भरा और कब उसी सुबह 4 बजे की हल्की रोशनी में जंगलो ही जंगलों से बाजी को घर लाया पता नही....वो तब भी सो रही थी जब मैने उन्हें अपनी बाहों से वापिस बिस्तर पर रखते हुए पीछे मुड़ा तो उन्होने मेरे हाथ को कस कर पकड़ लिया मैने मुस्कुरा कर उनके माथे पे एक किस किया और फिर अपनी उंगली छुड़ा कर बाथरूंम मे नहाने चला गया...कल रात का वाक़या एक बार फिर मेरे ज़हन में उतर गया...इस बार मुझे पछतावा नही था बल्कि ये महसूस हुआ कि ज़िंदगी को जीने के लिए कभी कभी जान लेने वाले जानवरों को मारना ही पड़ता है यहा मैं जानवर था वो इंसान थे जो मुझे जानवर समझने की भूल कर रहे थे...और अगर कोई भी मेरी बेहन और मेरे बीच आएगा उसका भी यही हश्र होगा

बाजी को दिन में सोने की आदत थी....मैं अपने कारोबार को संभालने के लिए काम पे निकल गया एक काग़ज़ पे लिख दिया कि मैं जल्द ही आ जाउन्गा वो फिकर ना करे...और बाहर ना आए....बाजी वैसे ही अंधेरे कमरे में करवट बदले आँखे मुन्दे सो रही थी....मैने बाजी के नंगे शरीर पे एक चादर ढक दी....और मैं वहाँ से निकल गया......शहर में तो ये हादसा आग की तरह फैल गया कि पोलीस की एक टुकड़ी फ़ौजी के साथ बीचो बीच जंगल में मरी पड़ी मिली....सबकी बेरहेमी मौत को जानने पर शहर के लोग और भी ख़ौफ़ में पड़ गये...क्यूंकी मौत किसी इंसान से नही बल्कि एक घातक जानवर से हुई थी दाँतों के काटे निशान गले पे थे उनके और किसी के हाथ तो किसी का पैर अपने जिस्मो से अलग था खून बेतहाशा था

प्रशासन को जवाब देना भारी पड़ा...हर तरफ इस शहर में हुए इन दो हादसो की बात फैल गयी पहली दो पोलीस कर्मी की बेरहेमी से मौत और फिरसे उन पर किए जा रहे स्टिंग ऑपरेशन में भी उनकी मौत हो गयी थी कोई जंगली जानवर था जो जंगल में रहता है और कोई भी आस पास की बस्ती पे हमला करके उन्हें मार डालता है...सबकोई ख़ौफ़ में था....प्रशासन ने सबसे विनती कि कोई भी रात 12 बजे के बाद अंधेरे में ना तो बाहर निकले और ना ही जंगल की तरफ़ जाए....वो उस जानवर को ढूँढ निकालेगे.....ये सब जानके मुझे बेहद फिकर हुई क्यूंकी लपेटे में बाजी ही आनेवाली थी उनके और वो लोग यक़ीनन बाजी को जब देख लेंगे तो उन्हें जान से मारें बिना नही छोड़ेंगे...बाजी क्या थी? इस वजूद को तो सिर्फ़ मैं जानता था हालाँकि बाजी को अब ख़तम करना इतना आसान नही था उन इंसानो के पास लेकिन ये काम मुझे खुद निपटाना था

जंगल में इन्वेस्टिगेशन शुरू हो गयी....लेकिन उन्हें कोई सुराग ना मिला..हालाँकि एक बाघ को मारके उन्होने सोचा कि शायद यही उनका शिकार है पर शायद वो लोग बेवकूफ़ थे क्यूंकी कोई बचा तो नही था जो उन्हें हमारा सुराग दे पाता....लेकिन मैं जानता था ये इंसान धीरे धीरे मेरी बाजी के पास पहुचने के लिए कोई भी हद तक जा सकते है....और इस बीच वो हुआ जो मैने सोचा भी नही था

मैं हर रात इसी लिए चौकन्ना होके अपने घर के चारो ओर एक बार चक्कर लगाता कि कहीं शायद कोई इंसान हम पर तो नज़र नही रख रहा....रोज़ रात बाजी को मैने बाहर निकलने से मना किया था ताकि उन्हें कोई प्राब्लम ना फेस करनी पड़े....हर रात शिकार के लिए मैं खुद निकल जाता था...ताकि पुलिस की नज़रों में वो ना आ सके....लेकिन मैं जानता था वो हम पर नज़र रखने की नाकाम कोशिश कर रहे थे...


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sexi munda
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Re: सिफली अमल ( काला जादू )

Post by sexi munda »

"साहेब ये है वो बाबा"..........पोलीस इनस्पेक्टर ने एस.पी के सामने उस आमाली को खड़ा कर दिया...."ह्म्म्म तुम क्या जानते हो? और यहाँ क्यूँ आए हो?".......एस.पी ने इस केस को खुद ही अपने हाथो में ले लिया था...

."आप लोग कुछ नही जानते सिर्फ़ यही समझते है कि महेज़ इंसान ही ऐसी चाल चलता है...लेकिन उससे भी दुगनी ताक़त है और वो है शैतानो की"......

.एस.पी झल्ला उठा "व्हाट नॉनसेन्स? तुम कहना चाहते हो कि ये सब काम किसी भूत पलित का है".....एस.पी कुछ मानने को तय्यार नही था उसे सिर्फ़ इस ढोंगी बाबा पे निहायत गुस्सा आ रहा था

"सच बताओ क्या कहना चाहते हो? वरना".................

.आमाली एस.पी की बात पे हँसने लगा "वरना क्या? क्या कर लोगे तुम मेरा? अगर सच जानना है तो गौर से सुनो और एक लव्ज़ ना कहना"........आमाली बताता चला गया उस सच्चाई को और एस.पी और बाकी खड़े ऊन पोलीस के माथे पे पसीने छूटते चले गये....

.............................

उस रात भी मैं जंगल के किनारे आया...चारो ओर खामोशियाँ छाई हुई थी...अचानक नथुनो में जैसे कोई महेक लगी...ये कच्चे माँस की महेक थी...मैं ना चाहते हुए भी उस ओर आया...मेरे अंदर का जुनून फिर मुझपे हावी होने लगा....

"सा..अहीब्बब वो देखिए वो आ रहा है".

..इस बात से बेख़बर कि ये इंसानो की फिर एक घिनोनी चाल थी...लेकिन वो ये नही जानते थे कि मैं उनसे ज़्यादा शातिर था सामने कच्चे माँस का टुकड़ा पड़ा हुआ था..जिसे सूंघते हुए मुझे इंसान की गंध भी मिल गयी थी

मैने झाड़ियों की ओर देखा और इससे पहले मैं करीब जा पाता "फाइयर".....धधड़ धधह करते हुए चारो ओर रोशनी जला दी गयी और मुझपे फाइरिंग शुरू हो गयी उनकी गोलियो से बचते हुए मैं जंगल के अंदर भागने लगा....मैं जानता था इन लोगो ने मुझे देख लिया है और अब मारे बिना नही छोड़ेंगे...उनके साथ कुत्ते भी थे जो डर से मेरा पीछा नही कर पा रहे थे बस रोए जा रहे थे...एस.पी अपने साथियो के साथ हम पर हमला करने की नाकाम कोशिशें कर रहा था...लेकिन अचानक उन्हें ये ईलम ना हुआ कि मौत उनके लिए उन्हें खीचते हुए जंगल मे ला रही थी एक के बाद एक पलक झपकते ही उनके आदमी गायब होते गये और सिर्फ़ छूट गयी लाशें पीछे...

जल्द ही मैं पहाड़ के करीब आ गया ऊन लोगो ने मुझे घेर लिया वो लोग कांप ज़रूर रहे थे पर उनके पास कोई चारा नही था...उनकी आँखो मे मेरे लिए दहशत थी."आआअहह"......मैं दहाड़ते हुए उन पर टूट पड़ा गोलिया मेरे बदन को छूती चली गई एक ही पंजे में मैने एस.पी को मार डाला...लेकिन मुझे अपने बदन के दूसरी ओर गुप्ती का अहसास हुआ एक बंदे ने पीछे से मेरे बदन पे गुप्ती घुसा दी थी...मैं दहाड़ता हुआ दर्द से उसकी गर्दन दबोच चुका था...अब उनके हाथ में गन थी और उन्होने अभी गोलिया चलाई ही थी कि पीछे से बाजी ने उन्हें गर्दन से पकड़के हवा में ही फैक दिया....और उसके जिसने मुझे गुप्ती घुसाई थी उसकी गर्दन को मैने तोड़ दिया और उसके गले की नस को अपने दांतो से काट लिया वो वही तड़प तड़प कर मरने लगा बाजी ने मेरे ही सामने दोनो पोलीस कर्मी की गर्दन को पकड़ के उनकी गर्दन पे काटते हुए उनका ताज़ा खून पी लिया.....जो बचे पोलीस कर्मी थे वो भागने को हुए पर अब मेरे हाथो से सिर्फ़ उन्हें मौत ही नसीब होने वाली थी

जबतक मैने उन्हें मार डाला तब तक बाजी की एक चीख सुनाई दी...जब मूड के देखा तो बाजी के पेट से गोली आर पार हो चुकी थी और उनका हाथ खून से सरॉबार था काला खून...वो मेरी ओर कांपति निगाहो से देख रही थी...."आआआअहह"........मैं दहाड़ते हुए बाजी के करीब आके उन्हें अपने आगोश में ले लिया "हववववववववववव".......और एक बार फिर पूरे जंगल में मातम मना रहे उस भेड़िए की आवाज़ गूँज़ उठी

सामने आमाली एक पोलीस ऑफीसर के साथ था जो मुझे डरी निगाहो से देख रहा था इससे पहले वो मुझपे वार कर पाता मैने उस कॉन्स्टेबल को एक ही बारी में गर्दन से सर काट के अलग कर दिया....आमाली सहम उठा "म...मुझहहे मांफफ्फ़ कर्र दूओ मांफफ्फ़ कर दूओ"........वो एक हिंसक भेड़िए के आगे झुक कर अपनी ज़िंदगी की भीक माँग रहा था...लेकिन बहुत देर हो चुकी थी मैने उसकी गर्दन अभी दबोची ही थी और बाजी ने उसकी गर्दन पे काट लिया वो तड़प्ता रहा छटपटाता रहा पर उसे अपने किए की तो सज़ा मिलनी ही थी....हो हो करती हवाओं के शोर में एक तूफान था....पहाड़ से एक मोटा बर्फ का ढलान गिर रहा था.....ये बर्फ़ीली तुफ्फान था...मैं बाजी के करीब आ पाता इससे पहले ही तूफान के लपेटे में हम दोनो आ गये...चारो ओर बस लाशें थी....मुझे कुछ दिखाई नही पड़ रहा था...."आसिफफ्फ़ आसिफफफफफफफफफफ्फ़"......बस एक ज़ोर की गूँज़ उठी वो आवाज़ और उसके बाद बर्फीला तूफान पहाड़ से ना जाने कहाँ बाजी गिरी कुछ मालूम नही...मैं वापिस अपने रूप में आने लगा था "बाजीीइईईई"........बस मैं सिर्फ़ चीख ही पाया क्यूंकी उसके बाद ना तो बाजी मुझे मिली और ना ही कोई और सबूत मिल सका..मैं बस उस तूफान में जैसे तैसे खोता चला गया शहर जाना आसान नही था.....क्या पता? पोलीस की टुकड़ी हमारे घर तक पहुच गयी हो और हमारे बारें सबकुछ मालूमात कर लिया हो

मैं बस चीखता चिल्लाता रहा लेकिन बाजी का मुझे कोई सबूत ना मिला...उस काली घाटी के बर्फ़ीले तूफान में मैं ना जाने कहा बेहोश होके गिरता चला गया....उसके बाद आँखे जैसे डूब सी गयी मानो जैसे अब कभी ना खुलेगी

"बज्जििइईई".......मैने एक बार फिर अपनी आँखे खोली उस भयंकर सपने से उठ चुका था...मैं इतनी ज़ोर का चिल्लाया था कि मेरी आवाज़ कमरे के चारो ओर गूँज़ उठी...वो बर्फीला तूफान बाजी की वो चीख सबकुछ गायब था....मैं एक कंबल ओढ़े कब्से नंगे बदन बिस्तर पे सोया हुआ था पता नही मेरे माथे पे लगी पट्टी और बदन के चारो तरफ लगी पत्तियो के एक तरफ खून का एक बड़ा सा धब्बा बन चुका था जो सुख गया था...अचानक एक ख़ान ड्रेस पहने गोल टोपी पहने दाढ़ी वाला शक्स अंदर आया "अर्रे बेटा तुम ठीक तो हो अच्छा हुआ तुम जाग गये हम तुम्हारी आवाज़ सुनके ही वापिस लौटे"........उसके साथ एक लड़की थी शायद उस बूढ़े आदमी की बेटी

"म..मैंन यहँन्न कैसेए?"......मेरी कुछ समझ नही आ रहा था कि मैं उस बर्फ़ीली तूफान से आखरी बार कैसे बचा था? बस मुझे इतना याद है कि मैं बेहोश हो गया था..और अपनी बाजी को खो चुका था

"दरअसल बेटा हमे तुम हमारी बस्ती के किनारे बर्फ में दबे मिले तुम्हारा सर पत्थरो पे लग गया था तुम शायद बहुत ज़ख़्मी हो गये थे 2 दिन पहले हुई उस बर्फ़बारी में ही शायद तुम्हारा यह हाल हुआ"........इतना तो तय हो चुका था कि इन लोगो को मेरे बारे में कुछ ख़ास पता नही था और मेरे लिए ये बात बहुत चैन की थी

"मेरी बेटी क़ीज़ा ने तुम्हें 2 दिन पहले नहेर के पास देखा बर्फ के अंदर से सिर्फ़ तुम्हारा हाथ दिख रहा था और तुम्हारा सर बुरी तरीके से पत्थर पे लगा हुआ था चारो ओर खून ही खून देख कर वो मेरे पास दौड़ी आई तब जाके तुम्हे यहा ले आए अब कैसा महसूस कर रहे हो बेटा? कहाँ से आए हो तुम?"..........उन्हें बताने के लिए मेरे पास कोई रास्ता तो नही था ना पूछ सकता था कि मेरे साथ क्या हुआ था? मेरी बाजी कहाँ है? ये सब सवाल मेरे अंदर उस वक़्त नदी की धारा की तरह बह रहे थे

मैं : द..अरस्सल्ल व.ओह्ह मैं पास ही के शहर का हूँ असल में हमारी गाड़ी का आक्सिडेंट हुआ तो

बुज़ुर्ग : अच्छा अच्छा चलो अल्लाह का शूकर है कि तुम सही सलामत बच गये (बुज़ुर्ग खुदा का शुक्रियादा करने लगा बातों से ही लग रहा था कि उन्होने मेरे रूप को पहचाना नही था ना ही मैं उन्हें भेड़िए के रूप में मिला था वरना अबतक तो पोलीस मेरी लाश की शिनाख्त कर रही होती और ये लोग ख़ौफ्फ से डर जाते)
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