सिफली अमल ( काला जादू ) complete

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sexi munda
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Re: सिफली अमल ( काला जादू )

Post by sexi munda »

मैने फ़ौरन निकलने का फ़ैसला किया...पर उन्होने उस दिन भी मुझे निकलने नही दिया मेरे ज़ख़्म ज़्यादा भरे नही थे...पर मैं बेचैन था आँखे बस बार बार बाजी को ढूँढने के लिए खोज रही थी...मैने उससे घुमा फिरा के सवाल पूछा क़ि क्या उन्हें कोई और भी मिला था? पहले तो उन्होने पूछा कि क्या तुम अकेले नही थे?....मैने झूट कहा कि मैं अकेला ही था फिर भी...उन्होने बताया कि ऐसी कोई खबर तो उन्हें नही मिली किसी के घाटी के आस पास लोगों की पर हां शहर के जंगलों में उसी तूफ़ानी रात उन्हें पोलीस की लाशें मिली थी जिनकी इन्वेस्टिगेशन अब भी चल रही है सुना है कोई जानवर था..इस बात को सुनके मेरे रौन्गटे खड़े हो गये....फिर भी मैने कोशिश जारी रखी पहले तो वहाँ से ऊन लोगो का शुक्रिया अदा करके जैसे भी हुआ उनके इस अहसान के लिए मैने उनका शुक्रिया अदा किया...फिर शहर जैसे तैसे गुप्त रूप से पहुचा...क्या पता? पोलीस को मेरे बारे में कोई शक़ हो गया हो? क्या पता वो मुझे अब भी ढूँढ रहे हों?......लेकिन मेरे घर के आसपास कोई नही था...मेरा चेहरा सिर्फ़ आमाली को याद था और एस.पी और आमाली और पोलीस के जो लोग इस इन्वेस्टिगेशन में थे वो सब मारे जा चुके थे...पर पोलीस फिर भी ख़ौफ़ में थी और जंगल में नो एंट्री का बोर्ड और रिस्ट्रिक्षन्स लगा चुकी थी इस वजहों से मैं जंगल के रास्ते नही जा पाया

मैने इन दिनो अपने अंदर गौर किया मेरे अंदर का शाप जैसे काबू में हो गया है....मेरा रूप अब मुझपे हावी नही हो सकता था...इस बात की खुशी भी थी...कुछ दिन तक सबकुछ ठंडा रहा पर अपने बंगले पर आकर मुझे कुछ अच्छा महसूस नही हो पा रहा था...मैने वो घर बेच दिया क्यूंकी उस घर में मेरी और बाजी की सारी याद जुड़ी हुई थी उस रात के बाद बाजी कहाँ थी ? किस हाल में थी? नही जानता क्या सुलूक होगा उनके साथ? क्या वो सच में खाई गिरके मर चुकी होंगी? लेकिन ये कैसे संभव था वो अब कैसे मर सकती थी?

ये सब सोचते सोचते ना जाने क्यू दिल में एक आस था कि कभी ना कभी तो बाजी वापिस ज़रूर आएँगी...हर पल अपने बेचे हुए बंगले के आस पास घूमता था क्या पता कब कहीं ना कहीं बाजी आके मुझे ढूँढे...लेकिन ये सारी उमीदें मेरा सिर्फ़ एक वेहेम था ऐसा कुछ नही था वो कभी नही आई...धीरे धीरे दिल फिरसे कारोबार में लगाने लगा पर शायद अब मेरा वो मंन नही था जो मैं काम कर सकूँ....फ़ैसला कर लिया कि इस जगह को छोड़के चला जाउन्गा कहीं दूर ताकि शायद मेरे किए गुनाह का प्रायश्चित कर सकूँ....अचानक एक दिन मेरे बेचे हुए बंगले के पास एक खत मिला...जिसे बेचा था उसने अभीतक किसी को ये प्रॉपर्टी बेची नही थी...मैं तुरंत गेट के करीब आया और उस खत को देखा फिर चारो ओर दिल थोड़ा सहमा...लेकिन उस पीले लिफाफे के अंदर के काग़ज़ को खोलते ही मानो जैसे आँख ठहर सी गयी थी

उसमें लिखा था "मेरे प्यारे भाई जिसने मुझे एक नयी ज़िंदगी दी कितने महीनो पहले मुझसे कहीं दूर बिछड़ गया...आजतक तुम्हारे प्यार के लिए मैं तरसती आई हूँ...ज़िंदगी की हर ठोकर जो तुमने खाई और मेरे हिस्से के भी दर्द और पाप को तुमने सहा....लेकिन तुम्हारी शीबा बाजी तुम्हें कहीं छोड़के नही गयी ये बहुत लंबी कहानी है कि उस रात के बाद आख़िर क्या हुआ था? सिर्फ़ इतना कहूँगी कि मेरे नीचे दिए गये पते को याद कर लो...और मेरे पास चले आओ एक यही रास्ता है...सफ़र बहुत दूर का तय कर लिया मैने एक तरह से ज़रूरी भी था ताकि तुमसे दूर रहूंगी तो पोलीस तुमपे शक़ नही करेंगी पर तुम्हारे वजूद को सोचते हुए मैं काँप जाती हूँ कि तुम भी कहीं ना कही मेरे ही दर्द को अकेले सह रहे हो...एक दरिन्दा बन गये हो...जिसका कोई इलाज़ नही इंसानो के लिए तुम सिर्फ़ एक ख़तरनाक ख़ूँख़ार शिकारी हो वापिस चले आओ मेरे भाई छोड़ आओ उस इंसानो की नगरी को और चले आओ मेरे पास ताकि हम यहाँ सुकून से जी सके तुमसे मिलने का बहुत मन कर रहा है...सोचा कि तुम्हें लेने आउन्गि लेकिन तुम तो जानते हो कि ये आसान नही मैं यहाँ कैसे आई? कैसे पहुचि? ये सारे सवालात हमारे मिलन के बाद ही ख़तम होंगे अपना ख्याल रखना बस तुम्हारे इंतेज़ार में तुम्हारी बाजी शीबा"..........वो कलम किसी स्याही से नही बल्कि खून से लिखी थी उसकी गंध मैं महसूस कर सकता था

मेरी आँखो मे आँसू आ गये आज फिर एक बार बाजी मेरे पास थी मेरे साथ अब सिर्फ़ मैं बाजी से मिलने के लिए सारी तय्यारिया करने लगा नीचे लिखे पते के अनुसार उस देश में मुझे जाना था जिसका नाम था ट्रॅनसिलॅनियीया.....अपना सारा कारोबार सारी जाएज़ाद सबकुछ बेच बाच के ट्रॅन्सीलॅनिया के लिए मैं रवाना हो गया....और जल्द ही हिन्दुस्तान की सरहद से हवाई जहाज़ निकलते हुए साथ समुंद्र पार रोमेनिया पहुचा वहाँ से निकलके मेरी नींद टूटी मैने भी आम इंसानो के बीच चलते हुए पते के अनुसार बहुत ही मेहनत और मुशक्कत से ट्रेन पकड़ी जल्द ही ट्रेन सेंट्रल रोमेनिया मेी नस्तीत ट्रॅन्ज़ील्वेनिया में पहुचि स्टेशन से बाहर निकलते ही चारो ओर के इस खूबसूरत भरे वादियो और घाटियो में स्थित ईस्ट युरोप के देश सेंट्रल रोमेनिया के इस छोटे से वीरान क्षेत्र के सर ज़मीन पर मैने कदम रख डाला था

यहाँ के लोग अजनबी थे ...पर मुझमें इतनी काबिलियत और जुनून था बाजी से मिलने के लिए मैं हर उस दीवार को पार करता चला गया....ट्रॅन्ज़ील्वेनिया के एक छोटे कस्बे में पहुचा...जहाँ से वो जगह ज़्यादा दूर नही थी....हरपल उन बादलो में ग़रज़न होती थी और आसमान से सूरज ना के बराबर ही बाहर आता था....जल्द ही एक अँग्रेज़ से दोस्ती हुई जिसने मुझे आसरा दिया....उसने मुझसे सावालात किए कि मैं यहाँ क्यूँ आया हूँ? मेरा सिर्फ़ यही जवाबा होता क़ि बस अपने से मिलने.....उसने बताया कि इस गाओं से दूर सिवाय खंडहर और काली घाटियो के कुछ नही...और यहाँ काफ़ी जंगली जानवर रहते है जिनमें भेड़ियो का एक ग्रूप है जो रात को निकलके अपनी दरिंदगी से लोगो के घरो को उजाड़ते है उनका ताज़ा खून और उनका शिकार ही उनकी खुराक है...मैं ये सुनके दंग रह गया शायद मेरे ही तरह ये वेर्वुल्व्स हो सकते हो

चार्ल्स ने मुझे मेरा कमरा दिखाया काफ़ी छोटा सा लेकिन काफ़ी शांति भरा कमरा था...और ये हिदायत दी चाहे रात को कितने भी दस्तक हों दरवाजा कभी ना खोलू इन सुनसान वादियो में एक चुप्पी है एक खामोशी है और जब भी दस्तक देती है मौत की दस्तक होती है....उसे ये बात नही पता थी कि मैं कौन था? ना वो ये जानता था कि यहाँ आने का और मेरे अपने कहने का क्या मतलब था? तो क्या मेरी बाजी दरिन्दा बनके इन मासूमो पे ज़ुल्म करती है...नही ये बात हजम नही हुई..दो रात काफ़ी भयंकर गुज़री गाओं में एकदम सन्नाटा छा जाता और बस जंगली भेड़ियो के रोने की आवाज़ें और कहीं अस्तबल में बढ़ घोड़ो की ही ही करती रोने की आवाज़ मानो जैसे इन बेज़ुबानो के निगाहो में पिसाच घूमता हो....

यहा आके मैने सबकुछ खो दिया था जहा मैं अच्छे ख़ासे कारोबार को इंडिया में संभालता था यहा आके बिल्कुल अलग एक मज़दूर की तरह पेड़ों की लकड़ियो को दिन में काट कर उन्हें गिन के कारीगरो तक पहुचाना ही काम बन गया था....लेकिन मैं अपने इस काम से खुश था...बस मुझे अपनी बाजी को ढूँढने का इंतेज़ार था कभी ना कभी तो मिलेगी वो?....दो दिन बाद उनका मुझे खत आया....उन्हें सबकुछ पता था और उन्हें आभास भी हो गया था कि मैं अब हिन्दुस्तान में नही हूँ उनके बेहद नज़दीक आ गया हूँ....उस खत में भी मेरे लिए उनके दिल में दया की भावना लिखी हुई थी...वो बस जल्द ही मुझसे मिलना चाहती थी पर इंसान उनके बारें में जानते है इन्ही वजहों से वो मेरे पास नही आ रही थी...लेकिन जल्द ही वो मुझसे मिलेगी ये बात सॉफ उन्होने खत पे लिखके भेजा था...

मैं खुश था और ये सारी दास्तान मैं अपनी पर्सनल डायरी में उतारता और फिर खिड़की से बाहर जमा देने वाली उस ठंड की बरफबारी को देख कर अपना परदा लगाए लॅंप बंद करके अपने बिस्तर पे आँखे मुन्दे सो जाता ख्वाब में भी यही दिखता था कि बाजी मेरे पास है मेरे साथ....एक दिन एक लड़की से मुलाक़ात हुई लकड़िया काटने के वक़्त पता चला वो भी पास ही के कबीले से है उसका नाम उसने लूसी बताया बला की खूबसूरत गोरी . वहाँ की भाषा धीरे धीरे मुझे आने लगी थी क्यूंकी वहाँ लोग इंग्लीश नही बोलते...लूसी से मैं वहाँ की कहानी और रहस्य के बारे में जानने लगता हमारी इन सब चीज़ो पे चर्चा होती और फिर वो वापिस अपने कबीले चली जाती और मैं वापिस अपने गाओं आ जाता...ऐसा लग रहा था मानो ये दिन कितना बाजी से मुझे दूर कर रहा है...उस रात डाइयरी में मैं अपनी आज की घटना लिखके बाजी से ना मिलने का अफ़सोस जताते हुए परदा लगाके बिस्तर पर लेटा ही था...हू हो करती हवा बाहर से सुनाई दे रही थी खिड़की के बाहर बर्फ सी जम गई थी कमरे में एक ओर आग की गरमाहट में मुझे धीरे धीरे नींद आने लगी

इतने में अचानक बाहर के दरवाजे पे दस्तक हुई....ठककक ठककक ठककक ठककक......"कौन है?".......मैने सवाल किया...."कौन है बाहर?".......इस बार भी कोई आवाज़ नही उसने दरवाजे पे दस्तक देना बंद कर दिया था....मुझे थोड़ा डर लगा और मैने पास रखी टॉर्च जलाई....इस वक़्त रात गये बाहर कहीं से भेड़िए की रोने की आवाज़ आए जा रही थी यहाँ कीहोल नही था जिसमे से देखा जाए अब सवाल था दरवाजे के बाहर जो भी था उसे दरवाजा खोलके ही मुझे देखना था....मैने फिर सवाल किया "कौन है बाहर? क्या चाहिए?"..........इस बार आवाज़ आई लेकिन बेहद अलग ये बाजी की आवाज़ नही थी

"मैं हूँ दरवाजा खोलो तुमसे बात करनी है दरवाजा खोलो"..........अज़ीब बात है इतनी ठिठुरती जमा देने वाली ठंड में कोई इंसान ऐसे अपने घर से निकलके मेरे यहाँ क्या करने आया ? जबकि चार्ल्स ने हिदायत दी थी कि दरवाजा चाहे कुछ भी हो मत खोलना....मेरे नथुनो में अज़ीब सी गंध आने लगी ये गंध क्सिी इंसान की नही थी....मैने इंतेज़ार नही किया जो होना था हो जाए....मैं धीरे धीरे कदमो से उस दरवाजे के करीब आया..."कौन हो तुम? इतनी रात गये यहाँ क्या कर रही हो?"........मेरे इस सवाल के कुछ देर बाद उसका जवाब आया...."मैं बहुत दूर से आई हू दरअसल्ल्ल"......वो और कुछ कह पाती चुप हो गयी उसकी झिझक मुझे सॉफ अंदेशा दे रही थी कि शायद ये कोई और है कोई पिसाच जो मुझे इंसान समझ के ही मेरा शिकार करने आई है

मैने दरवाजे की चितकनी खोली और उसे एक ही झटके में खोल डाला....बाहर की हवा कमरे के अंदर आई जिसने आग की लपटों को एकपल के लिए भुजा दिया....एकदम से ठंडी हवा मेरे चेहरे से लगी....और उसके बाद सामने खड़ा वो अक्स मेरे बेहद करीब खड़ा था..
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Re: सिफली अमल ( काला जादू )

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दरवाजे की चरर चराती आवाज़ के खुलते ही बाहर की तेज़ हवा मेरे चेहरे से टकराई पूरा बदन मानो सिहर उठा....जब आँखे खोली तो सामने खड़े उस मुस्कुराते चेहरे को देख कर एक पल के लिए बस उसे ही घूर्रता रहा...उसने आम निवासीयो की तरह गले से लेके पाओ तक धकि पोशाक पहनी थी पर उसके बदन पे ना ही कोई स्वेटर या ऐसे कोई कपड़े थे जो उसे ठंड से बचाती हो इतनी सर्द रात को वो ऐसे तूफान में कैसे मेरे घर पहुचि इस बात की मुझे बेहद हैरानी थी...उसके बदन से एक अज़ीब सी महेक आ रही थी...उसका बदन निहायती बहुत गोरा था...एक सुंदर अँग्रेज़ औरत जिसकी आँखो के नीचे काले घेरे से थे आँखो की पुतलिया ठहरी हुई थी...आँखें एकदम सुर्ख ब्राउन रंग की थी....ये कोई इंसान नही थी...आम औरतो को मैने देखा था....उसका पूरा बदन ऐसा सफेद था मानो जैसे क़बर से उठके आई हो..वो बस मुस्कुरा रही थी ऐसा लग रहा था जैसे होंठो से अभी खून टपक के निकल जाएगा...बदन भरा पूरा था...उसकी चुचियों का उभार सॉफ देख सकता था....और पीछे के नितंब भी काफ़ी उठे हुए थे उसके बालों का रंग भी सुनहेरे रंग का था

"त्त...तुम यहाँ?".......जानने में देरी ना लगी ये लूसी थी....दूसरी बस्ती की निवासी और मेरी नयी बनी दोस्त लेकिन आज उसे देख कर बेहद अज़ीब लग रहा था और वो मुझे कहीं से भी इंसान नही नज़र आ रही थी

"हां मैं तुमसे ही मिलने आई हूँ इसलिए यहाँ आई हूँ तुम्हारे पास"......उसने फिर मुस्कुराया उसकी आँखो में एक कशिश थी उसकी खूबसूरती की तारीफ मैं करना चाहता था पर दिल को मज़बूत करते हुए उसे अंदर ले आया

बाहर की तूफ़ानी हो हो की आवाज़ें दरवाजे बंद होते ही दब गयी...अंदर जल रही आग में एक गर्मी थी...लेकिन उसे कोई फरक नही पड़ा वो एक सोफे पे जाके बैठ गयी और मैं ठीक मेज़ के उपर....हो हो करती हवाओं में एक अज़ीब सा शोर था मानो जैसे कितने लोग एक साथ हो हो की आवाज़ निकाल रहे हो....और फिर कुछ ही देर में हावोअवो की आवाज़ आई....भेड़िए की आवाज़ थी यह

लूसी जो मुझे एकटक बस मुस्कुराए देख रही थी....उस आवाज़ को सुन खिड़की की ओर देखने लगी "वो लोग मुझे ही ढूँढ रहे है"........उसने खिड़की की तरफ ही मुँह करके कहा....

"कौन ढूँढ रहे है?"........मैने उससे पूछा.....

"भेड़ियो का दल उनसे ही च्छुपते छुपाते यहाँ आई हूँ".......लूसी ने इस बार चेहरा मेरी ओर किया और मुस्कुराइ

मैं : क्या मतलब? एनीवेस तुम कुछ लोगि

लूसी : अपना खाना ख़ाके आई हूँ और तुम दोगे भी क्या? (वो मुस्कुराइ उसका अज़ीब बर्ताव उन दिनो की तरह नही था जब वो मुझसे जंगल में मिलती थी)

मैं : ह्म्म खैर यहाँ इतने रात गये तुम इस सर्द रात में अकेले मुझे कुछ समझ नही आ रहा लूसी तुम्हारी बस्ती भी तो यहाँ से काफ़ी दूर है और रात भी बहुत हो रही है

लूसी : मुझे ख़ौफ़ नही लगता ख़ौफ़ उन्हें होता है जो इंसान होते है (उसकी ये बात मेरे अंदर के शक़ को यकीन में तब्दील कर चुकी थी मेरे सामने सोफे पे बैठी ये लड़की कोई इंसान नही थी जिस लूसी से मैं आजतक मिला था वो एक पिसाच थी)

मैं : त्त...तुम्म वही हो ना
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shubhs
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Re: सिफली अमल ( काला जादू )

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सबका साथ सबका विकास।
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, और इसका सम्मान हमारा कर्तव्य है।
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